Thursday 31 August 2017

शाबर मन्त्र परिचय

शाबर मन्त्र परिचय

शीघ्र फल-दायक सिद्ध शाबर मन्त्र

‘साबर’ का प्रतीक अर्थ होता है ग्राम्य, अपरिष्कृत । ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य-शाखा है । इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर प्रत्यक्ष-तया नहीं है, किन्तु जिन सिद्धों ने इसका आविष्कार किया, वे परम-शिव-भक्त अवश्य थे । गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ ‘साबर-मन्त्र’ के जनक माने जाते हैं । अपने तप-प्रभाव से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं । अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं । ‘सिद्ध’ और ‘नाथ’ सम्प्रदायों ने परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर बोल-चाल की भाषा को मन्त्रो का दर्जा दिया गया ।
‘साबर’-मन्त्रों में ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है । साधक ‘याचक’ होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहता है, उसी से सब कुछ कराना चाहता है । आश्चर्य यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी काम करती है । ‘आन’ का अर्थ है – सौगन्ध ।
शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की ‘आन’ नहीं रहती । बाल-सुलभ सरलता का विश्वास ‘साबर मन्त्रों का साधक मन्त्र के देवता के प्रति रखता है । जिस प्रकार अबोध बालक की अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य-प्रेम के कारण कोई ध्यान नहीं देते, वैसे ही बाल-सुलभ ‘सरलता’ और ‘विश्वास’ के आधार पर ‘साबर’ मन्त्रों की साधना करना वाला सिद्धि प्राप्त कर लेता है ।
‘साबर’-मन्त्रों में संस्कृत, प्राकृत और क्षेत्रीय – सभी भाषाओं का उपयोग मिलता है । किन्हीं-किन्हीं मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगला या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली और कल्पना भी मिल जायेगी ।
भारत के एक बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ है । अतः अधिकांश ‘साबर’ – मन्त्र हिन्दी में ही मिलते हैं । इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान ‘षडङ्ग’ – ऋषि, छन्द, वीज, शक्ति, कीलक और देवता – की योजना अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही निहित रहता है । इसलिए प्रत्येक ‘साबर’ मन्त्र अपने आप में पूर्ण होता है । उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रुप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं । कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कइयों में केवल ‘गुरु के नाम से ही काम चल जाता है ।
‘पल्लव’ (मन्त्र के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द) के स्थान में ‘शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’ – वाक्य ही सामान्यतः रहता है । इस वाक्य का अर्थ है “शब्द ही सत्य है, नष्ट नहीं होता । यह देह अनित्य है, बहुत कच्चा है । हे मन्त्र ! तुम ईश्वरी वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट हो)” इसी प्रकार के या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द इस मन्त्रों के ‘पल्लव’ होते
साबर मंत्रो को जगाने की विधि
द्वापरयुग में भगवान् श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शिव का तप किया एक दिन भगवान् शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान् शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा , दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा , मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा अर्जुन और भगवान् शिव में युद्ध शुरू हुआ , युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी तभी भगवान् कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है अर्जुन ने भगवान् शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान् शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरुप दिखाया !
अर्जुन भगवान् शिव के चरणों में गिर पड़े और पाशुपत अस्त्र के लिए प्रार्थना की शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया , उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरुप दिखाया जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ” हे किरातों मैं प्रसन्न हूँ , वर मांगो ” इसपर शिकारीओं ने कहा ” हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमे संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है , इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमे ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके
माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान् शिव ने साबर मन्त्रों की रचना की यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान् शिव को ” आदिनाथ ” कहा जाता है और माता पार्वती को ” उदयनाथ ” कहा जाता है भगवान् शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली , उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और करोड़ो साबर मन्त्रों की रचना की उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नवनाथ एवं चौरासी सिद्धों के माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ कहा जाता है कि योगी कानिफनाथ जी ने पांच करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की और वही चर्पटनाथ जी ने सोलह करोड़ मन्त्रों की रचना की मान्यता है कि योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ साबर मन्त्रों की रचना की इन योगीयो के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धों ने साबर मन्त्रों की रचना की यह साबर विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी , इसलिए साबर मंत्र चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है अतः यह कहना गलत ना होगा कि साबर मंत्र नाथ सिद्धों की देन है
साबर मन्त्रों के मुख्य पांच प्रकार है –
१ . प्रबल साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्र कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग होते है , इन में प्रत्यक्षीकरण नहीं होता केवल जिस मंशा से जप किया जाता है वह इच्छा पूर्ण हो जाती है इन्हें कार्य सिद्धि मंत्र कहना गलत ना होगा यह मंत्र सभी प्रकार के कर्मों को करने में सक्षम है अतः इस प्रकार के मन्त्रों में व्यक्ति देवता से कार्यसिद्धि के लिए प्रार्थना करता है , साधक एक याचक के रूप में देवता से याचना करता है
२. बर्भर साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्र भी सभी प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम है पर यह प्रबल साबर मन्त्रों से अधिक तीव्र माने जाते है बर्भर साबर मन्त्रों में साधक देवता से याचना नहीं करता अपितु देवता से सौदा करता है इस प्रकार के मन्त्रों में देवता को गाली, श्राप, दुहाई और धमकी आदि देकर काम करवाया जाता है देवता को भेंट दी जाती है और कहा जाता है कि मेरा अमुक कार्य होने पर मैं आपको इसी प्रकार भेंट दूंगा ! यह मंत्र बहुत ज्यादा उग्र होते है
३. बराटी साबर – इस प्रकार के साबर मन्त्रों में देवता को भेंट आदि ना देकर उनसे बलपूर्वक काम करवाया जाता है यह मंत्र स्वयं सिद्ध होते है पर गुरुमुखी होने पर ही अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते है ! इस प्रकार के मंत्रों में साधक याचक नहीं होता और ना ही सौदा करता है वह देवता को आदेश देता है कि मेरा अमुक कार्य तुरंत करो यह मन्त्र मुख्य रूप से योगी कानिफनाथ जी के कापालिक मत में अधिक प्रचलित है कुछ प्रयोगों में योगी अपने जुते पर मंत्र पढ़कर उस जुते को जोर जोर से नीचे मारते है तो देवता को चोट लगती है और मजबूर होकर देवता कार्य करता है
४. अढैया साबर – इस प्रकार के साबर मंत्र बड़े ही प्रबल माने जाते है और इन मन्त्रों के प्रभाव से प्रत्यक्षीकरण बहुत जल्दी होता है प्रत्यक्षीकरण इन मन्त्रों की मुख्य विशेषता है और यह मंत्र लगभग ढ़ाई पंक्तियों के ही होते है ! अधिकतर अढैया मन्त्रों में दुहाई और धमकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता पर फिर भी यह पूर्ण प्रभावी होते है
५. डार साबर – डार साबर मन्त्र एक साथ अनेक देवताओं का दर्शन करवाने में सक्षम है जिस प्रकार “बारह भाई मसान” साधना में बारह के बारह मसान देव एक साथ दर्शन दे जाते है अनेक प्रकार के देवी देवता इस मंत्र के प्रभाव से दर्शन दे जाते है जैसे “चार वीर साधना” इस मार्ग से की जाती है और चारों वीर एक साथ प्रकट हो जाते है इन मन्त्रों की जितनी प्रशंसा की जाए उतना ही कम है , यह दिव्य सिद्धियों को देने वाले और हमारे इष्ट देवी देवताओं का दर्शन करवाने में पूर्ण रूप से सक्षम है गुरु अपने कुछ विशेष शिष्यों को ही इस प्रकार के मन्त्रों का ज्ञान देते है ।

भगवान् शिव ने सभी मंत्रो को कीलित कर दिया पर साबर मन्त्र कीलित नहीं है साबर मन्त्र कलयुग में अमृत स्वरुप है साबर मंत्रो को सिद्ध करना बड़ा ही सरल है न लम्बे विधि विधान की आवश्यकता और न ही करन्यास और अंगन्यास जैसी जटिल क्रियाए इतने सरल होने पर भी कई बार साबर मंत्रो का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता क्योंकि साबर मन्त्र सुप्त हो जाते है ऐसे में इन मंत्रो को एक विशेष क्रिया द्वारा जगाया जाता है
साबर मंत्रो के सुप्त होने के मुख्य कारण –
यदि सभा में साबर मन्त्र बोल दिए जाये तो साबर मन्त्र अपना प्रभाव छोड़ देते है
२.यदि किसी किताब से उठाकर मन्त्र जपना शुरू कर दे तो भी साबर मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते
३.साबर मन्त्र अशुद्ध होते है इनके शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता क्योंकि यह ग्रामीण भाषा में होते है यदि इन्हें शुद्ध कर दिया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है
४.प्रदर्शन के लिए यदि इनका प्रयोग किया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है !
५.यदि केवल आजमाइश के लिए इन मंत्रो का जप किया जाये तो यह मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते
ऐसे और भी अनेक कारण है उचित यही रहता है कि साबर मंत्रो को गुरुमुख से प्राप्त करे क्योंकि गुरु साक्षात शिव होते है और साबर मंत्रो के जन्मदाता स्वयं शिव है शिव के मुख से निकले मन्त्र असफल हो ही नहीं सकते
साबर मंत्रो के सुप्त होने का कारण कुछ भी हो इस विधि के बाद साबर मन्त्र पूर्ण रूप से प्रभावी होते है

1. “शाबर मन्त्र साधना” के तथ्य

१॰ इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है।
२॰ इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक रहे हैं। इतने पर भी कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि किसी होनेवाले विक्षेप से वह बचा सकता है।
३॰ साधना करते समय किसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी जा सकती है तथा किसी भी रंग का आसन उपयोग में लिया जा सकता है।
४॰ साधना में जब तक मन्त्र-जप चले घी या मीठे तेल का दीपक प्रज्वलित रखना चाहिए। एक ही दीपक के सामने कई मन्त्रों की साधना की जा सकती है।
५॰ अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है, किन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की विशेष महत्ता मानी गई है।
६॰ जहाँ ‘दिशा’ का निर्देश न हो, वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। मारण, उच्चाटन आदि दक्षिणाभिमुख होकर करें। मुसलमानी मन्त्रों की साधना पश्चिमाभिमुख होकर करें।
७॰ जहाँ ‘माला’ का निर्देश न हो, वहाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम होती है। वैष्णव देवताओं के विषय में ‘तुलसी’ की माला तथा मुसलमानी मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आवश्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का जप किया जा सकता है।
८॰ शाबर मन्त्रों की साधना में ग्रहण काल का अत्यधिक महत्त्व है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रहण काल में कम से कम एक बार हवन अवश्य करना चाहिए। इससे वे जाग्रत रहते हैं।
९॰ हवन के लिये मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने की आवश्यकता नहीं होती। जैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में आहुति दें।
१०॰ ‘शाबर’ मन्त्रों पर पूर्ण श्रद्धा होनी आवश्यक है। अधूरा विश्वास या मन्त्रों पर अश्रद्धा होने पर फल नहीं मिलता।
११॰ साधना काल में एक समय भोजन करें और ब्रह्मचर्य-पालन करें। मन्त्र-जप करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें।
१२॰ साधना दिन या रात्रि किसी भी समय कर सकते हैं।
१३॰ ‘मन्त्र’ का जप जैसा-का-तैसा करं। उच्चारण शुद्ध रुप से होना चाहिए।
१४॰ साधना-काल में हजामत बनवा सकते हैं। अपने सभी कार्य-व्यापार या नौकरी आदि सम्पन्न कर सकते हैं।
१५॰ मन्त्र-जप घर में एकान्त कमरे में या मन्दिर में या नदी के तट- कहीं भी किया जा सकता है।
१६॰ ‘शाबर-मन्त्र’ की साधना यदि अधूरी छूट जाए या साधना में कोई कमी रह जाए, तो किसी प्रकार की हानि नहीं होती।

इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है। इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक रहे हैं। इतने पर भी कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि किसी होनेवाले विक्षेप से वह बचा सकता है। साधना करते समय किसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी जा सकती है तथा किसी भी रंग का आसन उपयोग में लिया जा सकता है। साधना में जब तक मन्त्र-जप चले घी या मीठे तेल का दीपक प्रज्वलित रखना चाहिए। एक ही दीपक के सामने कई मन्त्रों की साधना की जा सकती है। अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है, किन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की विशेष महत्ता मानी गई है। जहाँ ‘दिशा’ का निर्देश न हो, वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। मारण, उच्चाटन आदि दक्षिणाभिमुख होकर करें। मुसलमानी मन्त्रों की साधना पश्चिमाभिमुख होकर करें।

जहाँ ‘माला’ का निर्देश न हो, वहाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम होती है। वैष्णव देवताओं के विषय में ‘तुलसी’ की माला तथा मुसलमानी मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आवश्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का जप किया जा सकता है।

शाबर मन्त्रों की साधना में ग्रहण काल का अत्यधिक महत्त्व है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रहण काल में कम से कम एक बार हवन अवश्य करना चाहिए। इससे वे जाग्रत रहते हैं। हवन के लिये मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने की आवश्यकता नहीं होती। जैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में आहुति दें। शाबर मन्त्रों पर पूर्ण श्रद्धा होनी आवश्यक है। अधूरा विश्वास या मन्त्रों पर अश्रद्धा होने पर फल नहीं मिलता। साधना काल में एक समय भोजन करें और ब्रह्मचर्य-पालन करें। मन्त्र-जप करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें। साधना दिन या रात्रि किसी भी समय कर सकते हैं। मन्त्र का जप जैसा-का-तैसा करं। उच्चारण शुद्ध रुप से होना चाहिए। साधना-काल में हजामत बनवा सकते हैं। अपने सभी कार्य-व्यापार या नौकरी आदि सम्पन्न कर सकते हैं। मन्त्र-जप घर में एकान्त कमरे में या मन्दिर में या नदी के तट- कहीं भी किया जा सकता है। ‘शाबर-मन्त्र’ की साधना यदि अधूरी छूट जाए या साधना में कोई कमी रह जाए, तो किसी प्रकार की हानि नहीं होती।

भक्तों को शाबर साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है:-
• सर्वश्रेष्ट तो यह है की आप गुरु खोजें और उससे मंत्र प्राप्त करें.
• साधना काल में वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वचन आदि का त्याग करें। मौन रहने की कोशिश करें।
• निरंतर मंत्र जप अथवा इष्टत देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है।
• जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति मन में पूर्ण आस्था रखें।
• मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें।
• साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी है।
• उपवास में दूध-फल आदि का सात्विक भोजन लिया जाए।
• श्रृंगार-प्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है।
• साधना काल में भूमि शयन ही करना चाहि
शाबर मंत्र साधना में गुरु की आवश्यकता:-
• शाबर मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
• गुरु साधना से उठने वाली उर्जा को नियंत्रित और संतुलित करता है जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
• वैसे ये साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
• शाबर साधना गुरु के आभाव में करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.
• इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.

गंगाजल में अमृत देखाई नहीं देता, सती का तेज देखाई नहीं देता, जति का सवरूप देखाई नहीं देता, पत्थर में भगवान् देखाई नहीं देता, ठीक उसी परकार शाबर मन्त्रों कि अदभूत शक्ति दिखाई नहीं देती। परन्तु प्रयोग कर और आज़मा कर देखिये – दुनिया को हिला कर रख दे ऐसी शक्ति इसमें समाई हुई है –
उच्चारण की अशुद्धता की संभावना और चरित्र की अपवित्रता के कारण कलियुग में वैदिक मंत्र जल्दी सिद्ध नहीं होते। ऐसे में लोक कल्याण और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सरल तथा सिद्धिदायक शाबर मंत्रों की रचना गुरु गोरखनाथ आदि योगियों ने की थी।

शाबर मंत्रों की प्रशंसा करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है- ‘अनमलि आखर अरथ न जापू। शाबर सिद्ध महेश प्रतापू।।’शाबर मन्त्र लोक भाषा में लिखे होते हैं, देखने से पता ही नहीं चलताकि इन मन्त्र में असाधारण शक्ति और चमत्कार भी भरा हुआ है, भगवान गोरखनाथके समय से इन मन्त्रों की प्रसिद्धि हुई और कलियुग में तो ये मन्त्र अत्यधिक चमत्कारीऔर प्रभावशाली हैं, और तुरंत फल देने वाले हैं …… नकोई साधना सामग्री न कोई विशेष विधान, बस एक विशिष्ट समय में जप ही करनाहै……

सबसे बात है कि इन साधनाओ में न तो विशेष विधि विधान की आवश्यकता है और नही किसी कर्मकांड की, इन साधना कि विधि सरल होने के साथ शीघ्र फलदायी भीहै….. अतः किसी भी वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं….. गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए।

जब प्राचीन काल के ग्रंथों में उल्लेखित शास्त्रोक्त मंत्रों का दुरूपयोग होने लगा तब महर्षि विश्वामित्र के द्वारा शास्त्रोक्त मंत्रों को श्रापित तथा किलीत कर दिया गया तब से शास्त्रोक्त मंत्र की साधना तथा प्रयोग से सामान्य जन वंचित होने लगे तथा विशेष गुरू कृपा से प्राप्त मंत्र ही साधकों के लिए फलदायी होते थे। तथा अनेकों प्रकार के कठिनाईयों के बावजूद सिद्धीयाँ प्राप्त होती थी तथा सामान्य साधक शास्त्रोक्त मंत्रों के प्रभाव से वंचित रह जाते थे। यह देखकर भगवान शंकर द्वारा कलयुग के साधकों के हित को ध्यान में रखते हुए शाबर मंत्रों का निर्माण किया गया। उसके बाद नवनाथ संप्रदायों के द्वारा शाबर मंत्र के प्रचलन को आगे बढ़ाया गया।

शाबर मंत्रों की उत्पत्ति और रचना के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने जिस समय अजुर्न के साथ किरत वेश में युद्ध किया था उसी समय आगम चर्चा के दौरान माता पार्वती जी के प्रश्नों के उत्तर शिवजी ने दिये थे उन्ही भिन्न प्रदत्त मंत्रों को बाद में शाबर मंत्र कहा गया।

उसके बाद जब कलयुग प्रारंभ हो रहा था तब भगवान शंकर ने कलयुग के मनुष्यों के कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुये नाथ पंथ की स्थापना करने का विचार किया तथा इस कार्य में ब्रह्मा तथा विष्णु भी सहमत हो गये। भगवान शिव के इस विचार को क्रिया रूप में परिवर्तित करने के लिए ही महासती अनुसुइया को दिये गये वरदान के कारण उन तीनों ने अपने- अपने अंशद्वारा सती अनसूया के गर्भ से जन्म लिया ।

ब्रह्म के अंशरूप में चन्द्रमा शिव के अंश रूप में दुर्वासा ऋषि और विष्णु को अंश रूप में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ। बाद मे भगवान दत्तात्रेय नाथ पंथ के आदि गुरू बने क्योंकि इनके अन्दर ब्रहमा विष्णु और महेश तीनों देवताओं के अंश विद्यामान थे। मुख्यतः विष्णु का अंशरूप होने से भगवान विष्णु के चैतिस अवतारों में दत्तात्रेय अवतारों की गणना होती है। फिर नवनाथों की उत्पति हुई तथा भगवान दत्तात्रेय द्वारा नवनाथों को शिक्षा दिक्षा प्रदान किया गया तथा योग विद्या, अस्त्र विद्या, मंत्र, तप इत्यादि विषयों में पारंगतता प्रदान की गई । इन नवनाथों के अन्दर उतनी क्षमता थी कि ये कुछ ही पल में कोई भी कार्य कर सकते थे, इनके पास आकाश गमन सिद्धि, पाताल गमन मृत संजीवनी विद्या परकाया प्रवेश जैसी हजारों सिद्धियाँ थी उन्हीं नवनाथों के द्वारा शाबर मंत्रों का विस्तार किया गया। बाद में शाबर मंत्रों को सामान्यतः ग्रामीण बोलचाल पर प्रयोग होन वाले सामान्य भाषा में लिखा गया।
इसलिए यह मंत्र सरल तथा तीव्र प्रभावी होता है। शाबर मंत्रों की खासियत यह है कि मंत्रों के आखिर में मंत्र से संबंधित देवी देवताओं के आन अथवा कसम दिया जाता है। जिससे देवी-देवताओं को कसम की मर्यादा रखने के लिए साधक के इच्छित कार्यां को पूरा करना पड़ता है।

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