Wednesday, 30 August 2017

ऋग्वेद  मण्डल 1- सूक्त 3 19

Skip to content ऋग्वेद  मण्डल 1- सूक्त 3 19. अश्विना यज्वरीरिषो दरवत्पाणी शुभस पती | पुरुभुजाचनस्यतम || हे विशालबाहो ! शुभ कर्मपालक, द्रुतगति से कार्य संपन्न करने वाले अश्विनीकुमारों ! हमारे द्वारा समर्पित हविष्यानो से आप भली प्रकार संतुष्ट हों. 20. अश्विना पुरुदंससा नरा शवीरया धिया | धिष्ण्या वनतं गिरः || असंख्य कर्मों को सम्पादित करने वाले, बुद्धिमान हे अश्विनीकुमारों ! आप अपनी उत्तम बुद्धि से हमारी वाणियों (प्रार्थनाओ) को स्वीकार करें. 21. दस्रा युवाकवः सुता नासत्या वर्क्तबर्हिषः | आ यातंरुद्रवर्तनी || रोगों को विनष्ट करने वाले, सदा सत्य बोलने वाले रुद्रदेव के समान (शत्रु संहारक) प्रवृति वाले, दर्शनीय हे अश्विनीकुमारों ! आप यहाँ आयें और बिछी हुई कुशाओं पर विराजमान होकर प्रस्तुत संस्कारित सोमरस का पान करें. 22. इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे तवायवः | अण्वीभिस्तना पूतासः || हे अद्भुत दीप्तिमान इन्द्रदेव ! अंगुलिओं द्वारा स्त्रवित, श्रेष्ट पवित्रतायुक्त यह सोमरस आपके निमित है. आप आयें और सोमरस का पान करें. 23. इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावतः | उप बरह्माणि वाघतः || हे इन्द्रदेव ! श्रेष्ठ बुद्धि द्वारा जानने योग्य आप, सोमरस प्रस्तुत करते हुए ऋत्विजों के द्वारा बुलाये गए हैं. उनकी स्तुति के आधार पर आप यज्ञशाला में पधारें. 24. इन्द्रा याहि तूतुजान उप बरह्माणि हरिवः | सुते दधिष्वनश्चनः || हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव ! आप स्तवनो के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ में हमारे द्वारा प्रदत हवियों का सेवन करने के लिए यज्ञशाला में शीघ्र ही पधारें. 25. ओमासश्चर्षणीध्र्तो विश्वे देवास आ गत | दाश्वांसो दाशुषः सुतम || हे विश्वेदेवो ! आप सबकी रक्षा करने वाले, सभी प्राणियों के आधारभूत और सभी को एश्वर्य प्रदान करने वाले हैं. अतः आप इस सोम युक्त हवी देने वाले यजमान के यज्ञ में पधारें. 26. विश्वे देवासो अप्तुरः सुतमा गन्त तूर्णयः | उस्रा इवस्वसराणि || समय समय पर वर्षा करने वाले हे विश्वेदेवो ! आप कर्म कुशल और द्रुतगति से कार्य करने वाले हैं. आप सूर्य रश्मियों के सदृश्य गतिशील होकर हमें प्राप्त हों. 27. विश्वे देवासो अस्रिध एहिमायासो अद्रुहः | मेधं जुषन्त वह्नयः || हे विश्वेदेवो ! आप किसी के द्वारा बध न किये जाने वाले, कर्म-कुशल,द्रोहरहित और सुखप्रद हैं. आप हमारे यज्ञ में उपस्थित होकर हवी का सेवन करें. 28. पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती | यज्ञं वष्टु धियावसुः || पवित्र बनाने वाली, पोषण देने वाली, बुद्धिमतापूर्वक एश्वर्य प्रदान करने वाली देवी सरस्वती ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफल बनायें. 29. चोदयित्री सून्र्तानां चेतन्ती सुमतीनाम | यज्ञं दधे सरस्वती || सत्यप्रिय वचन बोलने की प्रेरणा देने वाली मेधावी जनो को यज्ञानुष्ठान की प्रेरणा (मति) प्रदान करने वाली देवी सरस्वती हमारे इस यज्ञ को स्वीकार करके हमें अभीष्ट वैभव प्रदान करें. 30. महो अर्णः सरस्वती पर चेतयति केतुना | धियो विश्वा वि राजति || जो देवी सरवती नदी रूप में प्रभूत जल को प्रवाहित करती है. वे सुमति को जगाने वाली देवी सरस्वती सभी याजकों की प्रज्ञा को प्रखर बनाती है. ऋग्वेद स्वागतम ! मुख्य पृष्ठ गीता रामायण मण्डल 1- सूक्त 1 मण्डल 1- सूक्त 2 मण्डल 1- सूक्त 3 मण्डल 1- सूक्त 4 मण्डल 1- सूक्त 5 मण्डल 1- सूक्त 6 मण्डल 1- सूक्त 7 मण्डल 1- सूक्त 8 मण्डल 1- सूक्त 9 मण्डल 1- सूक्त 10 मण्डल 1- सूक्त 11 मण्डल 1- सूक्त 12 मण्डल 1- सूक्त 13 मण्डल 1- सूक्त 14 मण्डल 1- सूक्त 15 मण्डल 1- सूक्त 16 मण्डल 1- सूक्त 17 मण्डल 1- सूक्त 18 मण्डल 1- सूक्त 19 मण्डल 1- सूक्त 20 मण्डल 1- सूक्त 21 टिपण्णी Sharon on स्वागतम ! orlando criminal defense attorney on स्वागतम ! garyhenderson.hpage.com on स्वागतम ! ऋग्वेद Proudly powered by WordPress

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