Thursday 31 August 2017

यक्ष-युधिष्ठिर संवाद

ⓘ Optimized 11 minutes agoView original http://susanskrit.org/yaksh-yudhishthir-dialogue.html SuSanskritMenu Search  खोज... यक्ष-युधिष्ठिर सरोवर में जल लेने गये युधिष्ठिर को उस सरोवर में रहनेवाले यक्ष ने चार प्रश्न किये, और कहा कि उन चार प्रश्नों के उत्तर देने पर हि वह सरोवर का जल ले सकते हैं । तब उन के बीच निम्न प्रश्नोत्तरी हुई; यक्ष: का वार्ता किमाश्चर्यं कः पन्था कश्च मोदते । इति मे चतुरः प्रश्नान् पूरयित्वा जलं पिब ॥ कौतुक करने जैसी क्या बात है ? आश्चर्य क्या है ? कौन सा मार्ग है ? कौन आनंदित रहता है ? मेरे इन चार प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् हि पानी पी । Write comment (0 Comments) मासर्तुवर्षा परिवर्तनेन युधिष्ठिर: मासर्तुवर्षा परिवर्तनेन सूर्याग्निना रात्रि दिवेन्धनेन । अस्मिन् महामोहमये कराले भूतानि कालः पचतीति वार्ता ॥ इस मोहमयी कडाई में, महिने, वर्ष इत्यादि के परिवर्तन से, सूर्यरुप अग्नि के इंधन से रात-दिन काल प्राणियों को पकाता है; यह कौतुक करने जैसी बात है । Write comment (0 Comments) अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् । शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥ हर रोज़ कितने हि प्राणी यममंदिर जाते हैं (मर जाते हैं), वह देखने के बावजुद अन्य प्राणी जीने की इच्छा रखते हैं, इससे बडा आश्चर्य क्या हो सकता है ? Write comment (0 Comments) श्रुति र्विभिन्ना स्मृतयोऽपि श्रुति र्विभिन्ना स्मृतयोऽपि भिन्नाः नैको मुनि र्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥ श्रुति में अलग अलग कहा गया है; स्मृतियाँ भी भिन्न भिन्न कहती हैं; कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; (और) धर्म का तत्त्व तो गूढ है; इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग लेना योग्य है । Write comment (0 Comments) दिवसस्याष्टमे भागे दिवसस्याष्टमे भागे शाकं पचति गेहिनी । अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते ॥ हे जलचर ! दिन के आठवें भाग में (सुबह-शाम रसोई के वक्त) जिसकी गृहिणी खाना पकाती हो, जिसके सर पे कोई ऋण न हो, जिसे (अति) प्रवास न करना पडता हो, वह इन्सान (घर) आनंदित होता है । Write comment (0 Comments) विशेष यक्ष-युधिष्ठिर संवाद रम्भा-शुक संवाद रघुवंश सामान्य ज्ञान श्रीमद्भगवद्गीता अ१ अर्जुनविषादयोग अ२ सांख्ययोग अ३ कर्मयोग अ४ ज्ञानकर्मसन्यासयोग अ५ कर्मसन्यासयोग अ७ ज्ञानविज्ञानयोग अ८ अक्षरब्रह्मयोग अ९ राजविद्याराजगुह्ययोग अ१० विभूतियोग अ१२ भक्तियोग अ१३ क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग अ१४ गुणत्रयविभागयोग अ१५ पुरुषोत्तमयोग अ१७ श्रद्धात्रयविभागयोग Copyright © 2005 - 2017 SuSanskrit. Designed by JoomlArt.com Joomla! is Free Software released under the GNU General Public License.   [+] Type in  मुख्य पृष्ठआशयचिंतनसुभाषितसंस्कृतबाल सुरभिसूक्तियांविशेषवेब संसाधन का वार्ता किमाश्चर्यं कः मुद्रणई-मेल पोस्ट करेंरजिस्ट्रेशन और लेखनपाक्षिक चिंतनसम्पर्क करें

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