Wednesday, 30 August 2017
धर्मो का मूल सनातन धर्म
धर्मो का मूल सनातन धर्म
Wednesday, September 19, 2012
मुस्लिम की असलियत
प्राचीनतम इतिहास … श्री राम के द्वारा मुस्लिम की असलियत
मै काफी दिन से इस्लाम को समझने की कोशिस कर रहा था … की आखिर ये क्या है …ये कोई धर्म है या मत या कोई …. कुछ और ? लेकिन एक बात मुझे ज्यादा परेशन करती थी इनका हर काम हिन्दू धर्म के विपरीत करने का …. मुझे हमेशा से जिज्ञासा बनी रहती थी … इसको जानने की … और इसको जानने के लिए कभी किसी का लेख तो कभी इस्लाम की धार्मिक पुस्तकों को पढता था ..लेकिन कभी सही उत्तर नहीं मिला …. कोई कुछ कहता तो कोई कुछ हर एक के अपने अलग विचार ..हा कुछ बाते जरुर सामान होती थी ..यदि मै किसी मुस्लिम दोस्त से पूछता तो .. इस्लाम को पुराण धर्म बताता था … एक दिन किसी ने कुछ सबाल रामचरित्र मानस से पूछा जिसका उत्तर के लिए मुझे रामचरित्र मानस पढनी पढ़ी … और साथ में वाल्मीकि रामायण भी ………… कहते है राम उल्टा का नाम लेने से वाल्मीकि जी डाकू से ऋषि बन गए .. क्युकि राम से बड़ा राम का नाम ये ही बात सिद्ध होती है यदि आप इतिहास उठा कर देखे तो .. मुगलों से लेकर अंग्रेजो को भागने में राम का नाम ही काम आया है … राम नाम ही चमत्कार था की पत्थर भी पानी में तैर सकते है … भगवान शिव और हनुमान जी जो पलभर में भक्तो के दुःख दूर करते है ..बो भी राम नाम का जप करते है … राम से बड़ा राम का नाम … राम ही सत्य है ..इसका ज्ञान मुझे रामायण से हुआ जो सबालो के उत्तर कही ना मिले वह मुझे रामायण जी में मिले ….
क्यों ये लोग राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने की कोशिस करते है
आपने देखा होगा मुसलमान भाई और उनके धर्म गुरु… राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने की कोशिस करते रहते है ..इनमे ईसाई और सकुलर लोग भी पीछे नहीं है …
क्यों आखिर इनलोगों को क्या परेशनी है कभी आपने सोचा है है क्यों ये एक सोची समझी रणनीति के तहत कभी राम और कभी कृष्ण जी को बदनाम करते रहते है … कभी उनके चरित्र और कभी जन्म को लेकर ..
कारण येही है की राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर रामायण और महाभारत को झूठा साबित कर सत्य को छिपाना ….
मक्का शहर से कुछ मील दूर एक साइनबोर्ड पर स्पष्ट उल्लेख है कि “इस इलाके में गैर-मुस्लिमों का आना प्रतिबन्धित है…”। यह काबा के उन दिनों की याद ताज़ा करता है, जब नये-नये आये इस्लाम ने इस इलाके पर अपना कब्जा कर लिया था। इस इलाके में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश इसीलिये प्रतिबन्धित किया गया है, ताकि इस कब्जे के निशानों को छिपाया जा सके।”
ये हुक्म कुरआन में दिया गया कि गैर-मुस्लिमों को काबे से दुर कर दो….उन्हे मस्जिदे-हराम के पास भी नही आने देना
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल जाती तो ज्यादा स्पष्ट हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे…
१- मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से चली आ रही है,परंतु ये बात आधारहीन तथा तर्कहीन हैं . . .
# किसी भी सीधांत को रद्द करने के लिए उसको पहले सही तरीक़े से समझ लें. इसलाम धर्म का दावा है की दुनिया में शुरू में एक ही धर्म था और वो इस्लाम था. उस वक़्त उसकी भाषा और ,नाम अलग होगा. फिर लोगों ने धर्म परिवर्तन किए और असली धर्म की छबि बदल गयी. फिर अल्लाह ने धर्म को पुनः स्थापित किया. फिर ये होता रहा और अल्लाह अपने पैगंबरों से वापस धर्म को उसकी असली शक्ल में स्थापित करता रहा. इस सिलसिले में मोहम्मद पैगंबर अल्लाह के आखरी पैगंबर हैं, और ये इस्लाम की आखरी शक्ल है, इसके बाद बदलाओ या बिगाड़ होने पर प्रलय होगा.
ये उसी तरह है जैसे हम अपने संवीधन बदलते हैं. मौजूदा इस्लाम , इस्लाम धर्म का आखरी revision है. आप खुद समझ लें के आप हज़ारों साल पुराना संविधान follow कर रहे हैं.
2. – आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में होनी चाहिए अरबी या फारसी में नहीं|
भाई, क़ुरान को मुसलमान कब आदि ग्रंथ कहते हैं. अगर आप ने क़ुरान पढ़ा तो आप देखोगे के उस में क़ुरान से पहले के ग्रंथों पर भी बात की गयी है. एक जगह किसी ग्रंथ को आदि ग्रंथ कहा गया है जिस के बारे में हम लोग खुद कहते हैं के शायद ये वेदों के बारे में है
#बहुत सी भाषाओं में बहुत से शब्द मिलते जुलते हैं, किसी भाषा में
अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है जिसका अर्थ देवी होता है|
जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में “या” शब्द का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे “या देवी सर्वभूतेषु….”, “या वीणा वर ….” वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं “या अल्लाह”..इससे सिद्ध होता है कि ये अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह गया बस अर्थ बदल दिया गया|
एक मुस्लिम भाई ने कहा जनाब आपसे किसने कहा कि इसलाम सातवी-आठवीं सदी में हुआ…जब से दुनिया बनी है तब से इस्लाम है…
अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की…
कुरआन में नाम से 25 नबी और 4 किताबों का ज़िक्र है…. कुरआन में बताये गये २५ नबी व रसुलों के नाम बता रहा हूं…उनके नामों के इंग्लिश में वो नाम दिये है जिन नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में है….
1. आदम अलैहि सलाम (Adam)
2. इदरीस अलैहि सलाम (Enoch)
3. नुह अलैहि सलाम (Noah)
4. हुद अलैहि सलाम (Eber)
5. सालेह अलैहि सलाम (Saleh)
6. ईब्राहिम अलैहि सलाम (Abraham)
7. लुत अलैहि सलाम (Lot)
8. इस्माईल अलैहि सलाम (Ishmael)
9. इशाक अलैहि सलाम (Isaac)
10. याकुब अलैहि सलाम (Jacob)
11. युसुफ़ अलैहि सलाम (Joseph)
12. अय्युब अलैहि सलाम (Job)
13. शुऎब अलैहि सलाम (Jethro)
14. मुसा अलैहि सलाम (Moses)
15. हारुन अलैहि सलाम (Aaron)
16. दाऊद अलैहि सलाम (David)
17. सुलेमान अलैहि सलाम (Solomon)
18. इलियास अलैहि सलाम (Elijah)
19. अल-यासा अलैहि सलाम (Elisha)
20. युनुस अलैहि सलाम (Jonah)
21. धुल-किफ़्ल अलैहि सलाम (Ezekiel)
22. ज़करिया अलैहि सलाम (Zechariah)
23. याहया अलैहि सलाम (John the Baptist)
24. ईसा अलैहि सलाम (Jesus)
25. आखिरी रसुल सल्लाहो अलैहि वस्सलम (Ahmed)
इन नबीयों में से छ्ठें नबी “ईब्राहिम अलैहि सलाम” जिन्होने “काबा” को तामिल किया था उनका जन्म 1900 ईसा पूर्व हुआ था….
# तो भाई केबल २५ नवी की जानकारी के दम पर ये इस्लाम को पुराना धर्म बोल रहे है भाई बाकि 1,24,000 नबी और रसुल का क्या होगा ?????????
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है … जब की सब जानते है की इला एक देवी थी जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह कोन था आज हम इस को भी समझेगे की सत्य क्या था ….?
और बहुत कुछ ये भी पढ़ा ….
अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और भारत।।।।।
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगित का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था। आदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में रहा था। बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले है, उनमें विष्णु को हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण किया गया है।
उस युग में अरब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र रहा था, इसी कारण देवों, दानवों और दैत्यों में इलावर्त के विभाजन को लेकर 12 बार युद्ध ‘देवासुर संग्राम’ हुए। देवताओं के राजा इन्द्र ने अपनी पुत्री ज्यन्ती का विवाह शुक्र के साथ इसी विचार से किया था कि शुक्र उनके (देवों के) पक्षधर बन जायें, किन्तु शुक्र दैत्यों के ही गुरू बने रहे। यहाँ तक कि जब दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का कहना न माना, तो वे उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व के पास अरब में आ गये और वहाँ 10 वर्ष रहे। साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” में लिखा है कि ‘शुक्राचार्य लिव्ड टेन इयर्स इन अरब’। अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे ‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
“बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, उशना काव्योऽसुराणाम्”-जैमिनिय ब्रा.(01-125)
अर्थात बृहस्पति देवों के पुरोहित थे और उशना काव्य (शुक्राचार्य) असुरों के।
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह इस प्रकार है-
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।”
अर्थात- (1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ। (3) और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो। (4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है। (5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता।
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है,वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है। इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद पर रखे ।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ सेअरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है । ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता नयी दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़ला मन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर काली स्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार है -
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक ।
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ ।
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।3।
व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे यौमन ।
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।4।
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।
अर्थात् – (1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2) अदि अन्त में उसको पश्चाताप हो और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से उच्च पद को पा सकता है। (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत (हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है। (5) वहाँ की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्श गुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है
मुसलमानों के पूर्वज कोन?(जाकिर नाइक के चेलों को समर्पित लेख)
स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे। अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने निशंकोच स्वीकार किया है कि,”कुरआन” की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार” व “कुरुछेत्र” कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर “अल्लुज़ा” अर्ताथ शुक्र तारे का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू “शुक्राचार्य “का प्रतीक ही है। भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में “आद “जाती का वर्णन है,वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,वे ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो० फिलिप के अनुसार २४वी सदी ईसा पूर्व में “हिजाज़” (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा(जगदीश) का शासन था।२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसी को हराकर अंगेद नाम से राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह का ही बिगड़ा रूप है। १००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था। ६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस अथवा हरीस का शासन था। १४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार “अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून ” की ४० से अधिक भाषा में अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में लिखा है कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक “दमिश्क” व “बग़दाद” की हजारों मस्जिदों के निर्माण में मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग किया था। परम्परागत सपाट छत वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय वास्तुविदों की देन है।इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने “बैतूल हिक्मा” जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा……………………………..
भाइयो एक सत्य में आपको बताना चाहुगा की मुहम्मद को लेकर मुसलमानों में जो गलतफैमी है की मुहम्मद ने अरब से अत्याचारों को दूर किया … केबल अत्याचारियो को मारा , समाज की बुरयियो को दूर किया अरब में भाई भाई का दुश्मन था , स्त्रियो की दशा सुधारी … मुहमद एक अनपढ़ (उम्मी ) था …. आदि ..सत्य क्या है आप उस समय की जानकारियों से पता लगा सकते है … जब की उस समय अरब में सनातन धर्म ही था ..इसके कई प्रमाण है
१- जब मुहम्मद का जन्म हुआ तो पिता की म्रत्यु हो चुकी थी .. मा भी कुछ सालो बाद चल बसी .. मुहम्मद की देखभाल उनके चाचा ने की … यदि समाज में लालच , लोभ होता तो क्या उनके चाचा उनको पलते ?
२- खालिदा नामक पढ़ी लिखी स्त्री का खुद का व्यापर होना सनातन धर्म में स्त्रियो की आजादी का सबुत है… मुहमम्द वहा पर नोकरी करते थे ?
३- ३ बार शादी के बाद भी विधवा स्त्री का खुद मुहम्मद से शादी का प्रस्ताब ? स्त्रियो को खुद अपने लिए जीवन साथी चुने और विधवा स्त्री होने पर भी शादी और व्यापर की आजादी … सनातन धर्म के अंदर ..
४- खालिदा का खुद शिक्षित होना सनातन धर्म में स्त्रियो को शिक्षा का सबुत है
५- मुहम्मद का २५ साल का होकर ४० साल की स्त्री से विवाह ..किन्तु किसी ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया ..सनातन धर्म में हर एक को आजादी ..कोई बंधन नहीं
६- मुहम्मद का धार्मिक प्रबचन देना किसी का कोई विरोध ना होना जब तक सनातन धर्म के अंदर नये धर्म का प्रचार
७- मुहम्मद यदि अनपढ़ होते तो क्या व्यापर कर सकते थे ? नहीं ..मुहम्मद पहले अनपढ़ थे लेकिन बाद में उनकी पत्नी और साले ने उनको पढ़ना लिखना सीखा दिया था … सबूत मरते समय मुहम्मद का कोई वसीयत ना बनाने पर कलम और कागज का ना मिलना ..और कुछ लोगो का उनपर वसीयत ना बनाने पर रोष करना …
मुहम्मद को उनकी पत्नी ने सारे धार्मिक पुस्तकों जैसे रामायण , गीता , महाभारत , वेद, वाईविल, और यहूदी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ कर सुनाया था और पढ़ना लिखना सीखा दिया था , आप किसी को लिखना पढ़ना सीखा सकते हो लेकिन बुद्धि का क्या ?…जो आज तक उसके मानने बालो की बुद्धि पर असर है .. जो कुरान और हदीश में मुहम्मद में लिखा या उनके कहानुसार लिखा गया बाद में , लेकिन किसी को कितना ही कुछ भी सुना दो लेकिन व्यक्ति की सोच को कोन बदल सकता है मुझे तुलसीदास जी की चोपाई याद आ रही है जो मुहम्मद पर सटीक बैठती है
ढोल , गवाँर ,शूद्र, पसु , नारी , सकल ताडना के अधिकारी …..
आप किसी कितना ज्ञान देदो बो बेकार हो जाता है जब कोई किसी चीज का गलत अर्थ लगा कर समझता है गवाँर बुद्धि में क्या आया और उसने क्या समझा ये आप कुरान में जान सकते है …. कुरान में वेदों , रामायण , गीता , पुराणों का ज्ञान मिलेगा लेकिन उसका अर्थ गलत मिलेगा ………
चलिए आपको कुछ रामायण जी से इस्लाम की जानकारी लेते है ………
ये उस समय की बात है जन राम और लक्ष्मण जी और भरत आपस में सत्य कथाओ को उन रहे थे .. तब प्रभु श्री राम ने राजा इल की कथा सुनायी जो वाल्मीकि रामायण में उत्तरकांड में आती है .. मै श्लोको के अनुसार ना ले कर सारांश में बता रहा हू ……
उत्तरकांड का ८७ बा सर्ग :=
प्रजापति कर्दम के पुत्र राजा इल बहिकदेश (अरब ईरान क्षेत्र के जो इलावर्त क्षेत्र कहलाता था ) के राजा थे , बो धर्म और न्याय से राज्य करते थे .. सपूर्ण संसार के जीव , राक्षस , यक्ष , जानबर आदि उनसे भय खाते थे .एक बार राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर गए उन्होंने कई हजार हिसक पशुओ का वध किया था शिकार में ,राजा उस निर्जन प्रदेश में गए जहा महासेन (स्वामी कार्तीय) का जन्म हुआ था बहा भगवन शिव अपने को स्त्री रूप में प्रकट करके देवी पार्वती का प्रिय पात्र बनने करने की इच्छा से वह पर्वतीय झरने के पास उनसे विहार कर रहे थे .. वह जो कुछ भी चराचर प्राणी थे वे सब स्त्री रूप में हो गए थे , राजा इल भी सेवको के साथ स्त्रीलिंग में परिणत हो गए …. शिव की शरण में गए लेकिन शिवजी ने पुरुषत्व को छोड़ कर कुछ और मानने को कहा , राजा दुखी हुए फिर बो माँ पार्वती जी के पास गए और माँ की वंदना की .. फिर माँ पार्वती ने राजा से बोली में आधा भाग आपको दे सकती हू आधा भगवन शिव ही जाने … राजा इल को हर्ष हुआ .. माँ पार्वती ने राजा की इच्छानुसार वर दी की १ माह पुरुष राजा इल , और एक माह नारी इला रहोगे जीवन भर .. लेकिन दोनों ही रूपों में तुम अपने एक रूप का स्मरण नहीं रहेगा ..इस प्रकार राजा इल और इला बन कर रहने लगे
८८ बा सर्ग := चंद्रमा के पुत्र पुत्र बुध ( चंद्रमा और गुरु ब्रस्पति की पत्नी के पुत्र ) जो की सरोवर में ताप कर रहे थे इला ने उनको और उन्होंने इला को देखा …मन में आसक्त हो गया उन्होंने इला की सेविका से जानकारी पूछी ..बाद में बुध ने पुण्यमयी आवर्तनी विधा का आवर्तन (स्मरण ) किया और राजा के विषय में सम्पुण जानकारी प्राप्त करली , बुध ने सेविकाओ को किंपुरुषी (किन्नरी) हो कर पर्वत के किनारे रहने और निवास करने को बोला .. आगे चल कर तुम सभी स्त्रियों को किंपुरुष प्राप्त होगे .. बुध की बात सुन किंपुरुषी नाम से प्रसिद्ध हुयी सेविकाए जो संख्या में बहुत थी पर्वत पर रहने लगी ( इस प्रकार किंपुरुष जाति का जन्म हुआ )
८९ सर्ग := बुध का इला को अपना परिचय देना और इला का उनके साथ मे में रमण करना… एक माह राजा इल के रूप में एक माह रूपमती इला के रूप में रहना … इला और बुध का पुत्र पुरुरवा हुए
९० सर्ग;= राजा इल को अश्वमेध के अनुष्ठन से पुरुत्व की प्राप्ति बुध के द्वारा रूद्र( शिव ) की आराधना करना और यज्ञ करना मुनियों के द्वारा ..महादेव को दरशन देकर राजा इल को पूर्ण पुरुषत्व देना … राजा इल का बाहिक देश छोड़ कर मध्य प्रदेश (गंगा यमुना संगम के निकट ) प्रतिष्ठानपुर बसाया बाद में राजा इल के ब्रहम लोक जाने के बाद पुरुरवा का राज्य के राजा हुए
- इति समाप्त
आज के लेख से आपके प्रश्न और उसके जबाब …..
1. इस्लाम में बोलते है की इस्लाम सनातन धर्म है और बहुत पुराना है ? और अल्लाह कोन था ? कलमा में क्या है ?
# भाई आसान सबाल का आसान उत्तर है की सनातन धर्म सम्पूर्ण संसार में था और लोगो का विश्वास धर्म पर बहुत गहरा था , मुहम्मद ने जब सनातन धर्म के अंदर ही अपने धर्म का प्रचार किया था तो लोगो ने विरोध नहीं किया था ..लेकिन जब उसने सनातन धर्म का विरोध किया तो उसको मक्का छोडना पड़ा था … मुहम्मद कैसा भी था लेकिन देश भक्त था बो चाहता था जैसे पूरब का देश (भारत) का धर्म सम्पूर्ण संसार में है और सब उसको सम्मान देते है वैसे ही बो अरब के लिए चाहता था …. लेकिन जब उसको अपने ही शहर से निकला गया तो बो समझ गया की सनातन धर्म को कोई खतम नहीं कर सकता है लेकिन बो इसका रूप बदल सकता है …जिससे लोगो में विद्रोह का डर भी नहीं रहेगा … जब उसने काबा को जीता और उसकी सारी ३६० मुर्तिया और शिवलिंग तोडा … उसको कुछ याद आया और उसने कुछ नीचे के भाग(शक्ति) को चांदी में करके काबा की दीवार से लगा दिया और अपनी गलती के लिए पत्थर को चूमा (क्युकि उसका परिबार कई पीडीयो से इसकी रक्षा और पूजा करता आ रहा था ) और बोला तो केबल पत्थर है और कुछ और नहीं …….
इस्लाम के बारे में 1372 साल पहले अस्तित्व में आया था. यह सर्वविदित है कि 7500 साल पहले से अधिक, महाभारत युद्ध के समय में, कुरूस दुनिया शासन. कि परिवार के घरानों के वारिस के विभिन्न क्षेत्रों दिलाई. पैगंबर मोहम्मद खुद को और अपने परिवार के वैदिक संस्कृति के अनुयायियों थे. विश्वकोश इस्लामिया के रूप में बहुत मानते हैं, जब यह कहते हैं: “के मोहम्मद दादा और चाचा जो 360 मूर्तियों स्थित काबा मंदिर के वंशानुगत याजक थे!”
(ये मेरे एक मुस्लिम मित्र ने बताया था ….. की …
“काबा” में जो ३६० बुत रखे थे वो किसी तुफ़ान में नही टुटे थे बल्कि उनको “मक्का फ़तह” के वक्त हुज़ुर सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपनी छ्डी से तोडा था…हर बुत को तोड्ते जा रहे थे और कुरआन की आयत पढते जा रहे थे सुरह बनी इसराईल सु.१७ : आ. ८१ “और तु कह कि अल्लाह की तरफ़ से हक आ चुका है और झुठ नाबूद हो चुका है क्यौंकि झुठ बर्बाद होने वाला है….. )
तो उसने ये बोलना शुरू किया की अल्लाह का कोई आकार नहीं है बो निराकार है …जो की सनातन धर्म का ही एक भाग है (वेद से) …
• अल्लाह कोन था ?
मोहम्मद का जन्म हुआ Qurayshi जनजाति विशेष रूप से अल्लाह (पार्वती ) और चंद्रमा भगवान (शिव)की तीन बच्चों (त्रिदेवी – काली(७) , गोरी (दुर्गा ८) , सरस्वती (ज्ञान की देवी) या कात्यानी (सिद्धि की देवी) को समर्पित किया गया था. इसलिए जब मुहम्मद अपने ही देवी धर्म बनाने का फैसला किया, और ७८६ (जिससे ओम भी बनता है)
चुकी मुहम्मद एक लुटेरा था इस कारण बो अल्लाह को मानता था केबल (जैसे डाकू माँ काली की पूजा करते है ) कारण था की उसने ये रामायण की कथा सुन ली थी जिस कारण बो भगवान शिव की पूजा से बच कर शक्ति की पूजा करता था …. क्युकि माँ पार्वती ने ही राजा इल को वरदान दिया था और शिव के कारण ही समस्या हुयी टी ऐसा शयद बो सोचता था … इस लिए बो अल्लाह (पार्वती) के निर्गुण मानता था … मुहम्मद से भारत का नाम धर्म से हटाने के लिए हिन्दू देवी देवताओ को इस्लाम के नवी और पैगम्बर बोलना शुरु कर दिया और सनातन धर्म से उल्टा काम करना … जैसे काबा के ७ चक्कर (उलटे ), आदि जिससे उसको जनता से कोई परेशनी नहीं हुयी जिससे हुयी उसको उसने खत्म कर दिया …
• दिन की जगह रात में पूजा .?..
क्युकि भगवान शिव और शक्ति की पूजा रात्रि में ही होती है और सनातन धर्म का नाम इस्लाम रख दिया कुछ समय बाद जब बहुत कुछ उसके हाथो में आ गया ….
• कलमा में क्या है ?
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है … अब जब की सब जानते है की इला और इल एक थे , जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह (पार्वती शक्ति ) थी ..और मुहम्मद शक्ति मत को मानने और फ़ैलाने वाले ,
2. इस्लाम के आदम और ईव कोन कोन थे ?
# इस कथा के अनुसार राजा इल की आदम था और बो ही ईव … क्युकि आदम से ही ईव पैदा हुयी ऐसा इस्लाम और ईसाई मत है …और बाद में आदम और ईव (राजा इल ) को अपना देश छोडना देना ..इस मत को सिद्ध करता है
3. इस्लाम में हरा रंग क्यों ? चाँद और तारा क्यों ?
# इस्लाम में अपने पूर्वजो को पूजता है ये जग जाहिर है … हिन्दुओ में सब जानते है की नव ग्रह ने बुध एक ग्रह है और बो स्याम वर्ण और हरा रंग पहनते है ज्ञान के देवता कहलाते है .. लकिन उनके जन्म पर कुछ अजीब किस्सा है जिससे कुछ मुस्लिम हिन्दू धर्म को बदनाम करते है जब की ये इसके ही पूर्वजो की कहानी है … चंदमा के द्वारा देवताओ के गुरु ब्रस्पति की पत्नी तारा के संयोग से उत्पन्न हुए थे जिसके कारण आज भी मुसलमान चाँद तारा को देख कर अपना रोजा खोते है और ईद मानते है .. साथ ही अपने झंडो और धार्मिक स्थान में प्रयोग करते है
4. क्यों शेख लोग ओरत और मर्द दोनों को पसंद करते है ? क्यों शेख स्त्री जैसे बोलते और रहते है ?
# जैसा की इस कथा से जाहिर है की भगवान शिव ने उस क्षेत्र को स्त्री लिंग में बदल दिया था … ये बाद मे शुक्राचार्य(दत्यो के गुरु) जी के आने के बाद सब सही हुआ था अन्यथा तो सब स्त्री में था जिस कारण सभी में स्त्री अंश रह गया है
5. क्यों किन्नर अधिकतर मुस्लमान होते है ?
# कथा के अनुसार किन्नर की उत्पत्ति राजा इल के सेवको का स्त्री में हो जाने के कारण हुयी ..जिनको बुध ने उसी क्षेत्र (पर्वत के पास ) रहने को बोला था
भाइयो ये सत्य मैंने किसी धर्म का मजाक उड़ने के लिए नहीं बताया है .. मैंने केबल सत्य को सामने लाना चाहता हू ..आज हमारे हिन्दू समाज में ही बहुत से लोग राम और कृष्ण के साथ साथ सम्पूर्ण सनातन धर्म को बदनाम करने की सोचते है … इस कारण इस ग्रंथो को और राम , कृष्ण को कल्पनिक बता कर या कभी .. सत्य का मजाक उड़ा कर सत्य को छिपाने की कोशिस करते है लेकिन जो सत्य है तो सूरज की तरह है जो बदलो से कुछ समय के लिए कुछ लोगो से छिप सकता है सब से नहीं और नहीं ज्यादा देर तक … संतान धर्म तो उस गंगा , यमुना की तरह है जो निरंतर बहता रहत है ..और लोगो को सही राह दिखता है ..जो निर्मल और पवित्र है … जिसमे सादा ही परिवर्तन ..समय के अनुसार होते रहे है … जो वैज्ञानिक और अधात्मिक दोनों रूपों ने सिद्ध है … यहाँ मैंने एक कथा बुध के जन्म की सुनायी है जो पुराणों से है लेकिन इसका अर्थ भी कुछ और है,
धन्यवाद '''
एक हिन्दू
अजीत प्रताप सिंह राजावत at 6:59 AM
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153 comments:

DR. ANWER JAMALJune 11, 2014 at 5:42 AM
द और कुरआन के समान सूत्रों के आधार पर भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरम्यान दिव्य एकत्व का बोध कराना जनाब के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।
See this article-
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/haj
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Kumar NareshAugust 21, 2015 at 10:04 PM
Aap ki jankari adhbhut h sat main praman bhi adhbhut h aapka gyan adhbhut h itna khoj karke aapne ye Jo jankariyan do h iske liye dhanya waad
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UnknownSeptember 9, 2015 at 10:38 AM
Jankariya itihaas m nahi mili balkI sate ka gyaan prat kar tap dwarf
Reply

UnknownSeptember 9, 2015 at 10:38 AM
Jankariya itihaas m nahi mili balkI sate ka gyaan prat kar tap dwarf
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INTZAR KHANOctober 23, 2015 at 9:03 PM
आपकी जानकारी अभी बहुत अधूरी है।
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manojMarch 22, 2016 at 7:58 PM
जानकारी दीजिये हम जानकारी चाहते़ हैं.सत्य तो एक ही होगा

Ravi PatelSeptember 18, 2016 at 3:38 AM
aapki jaankari ka hum INTZAR karege

Ravi PatelSeptember 18, 2016 at 4:49 AM
aapki jaankari ka hum INTZAR karege
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RB kashyapOctober 24, 2015 at 1:27 PM
दोस्त हमारे पूर्वज हिब्रू भाषा बोलते थे।हिब्रू मे लाह् का मतलब होता है नमी यानि ह्यूमिडिटी यानि गैस यानि की परमाणुओं का मिश्रण।आज जो धरती हा ये पहले तरल थी।उससे भी पहले गैस थी।सूर्य आज भी गैस का गोल है।सूर्य भी एक गेलैक्सि का हैड्स है जो की एक गैस अवश्था है।इस तरह आप ध्यान दे तो पूरा ब्रह्माण्ड एक गैस के संयोजन से बना।यानी की साइंस कहती हा की दुनिया की शुरुआत गैस से हुई।अब किसी भी घटना या क्रिया या गुण के होने से भी पहले हिब्रू भाषा ''जो की हमारे की भाषा थी'' में अल लगाया जाता था ।इसप्रकार धरती के पुराने लोगो ने इश्वेर को पुकारा हे नमी से भी पहले यानि अल+लाह=अल्लाह् तो इसमें गलत क्या है।हम नहीं जानते अल्लाह का मतलब ओर अपने इश्वर यानि अल्लाह को कुछ भी अनाप सनाप बोलते है।भाई कोई शक्ति नमी से पहले थी तभी तो उसने नमी को पैदा किया ईश्वर ने ही तो अपनी संकल्प शक्ति से नमी को पेड़ किया यानि नमी से पहले कोउ शक्तिमान था बस उसी को हम संस्कृत ,हिंदी भाषा मे ईश्वर कहते है और हिब्रू मई अल्लाह ।उम्मीद करता हु की अब कोई मेरे ईश्वर यानि मेरे अल्लाह को गली नहीं देगा नहीं उन्हें कोई गलत बोलेगा और न ही उन्हें कोई देवी या देवता कहेगा।क्योंकि गीता में लिखा हा की जो इश्वर को भजते है उन्हें ही मोक्ष मिलता है देवताओं की पूजा करने वाले जनम मृत्य के जाल में फंसे रहते है और कभी मोक्ष नहीं पाते।
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UnknownApril 27, 2016 at 4:28 AM
namah plus ja means namaj, arthat namaj shabd ki utpatti namah yani namaskar se hui hai,,,,,ek baat aur mere dost aaj ki arabi lipi to hindu anka paddhati ka hi roop hai ,,yeh to siddh ho chuka hai,,,,,,,,

UnknownJune 27, 2016 at 12:25 AM
Rb kashyap sub jante hai ki hamare desh mai kuchh dalit janbhoojh kr hindu dhrm ka mjak udate hai.agr tujhe allah itna hi pyarahai to islam kbool kr le.adhiktrdalit bodhdhrm apna letehai lekin islam nahi.
Kyo?
Dusari baat yesahi hai ki iswar ak hai jo ki bisnu hai lekin baaki dewata unke ansh hai.unmaihi nihit hai
Isliye visnu ji ne sri krisn ka, rAM ji ka,
For exmple
Tu ye to manta hoga ki tera kull ak hai
Lekin tu apne baap ke alwa apne baap ke bhai ko chacha ya tao kyo bolta hai?
Agrteri sistar ki sadi kisi se hoti hai to usse jeeja kyo bolta hai
Ans is
Kyo tere baap ka bhaitere kull ka ak ansh hai theekwesehijese kisi ped se sakhaye nikalti hai lekin ped to ak hi hota hai
Theek wese hi jinhai hum bhagwan mante hai wo suprim lord visnu ji ka ansh hai
Dusrari baat kuran aur mohhamad kehta hai ki iswar ka aakar nahi hota matlab unvisibal hai
To ak baat btao ki agr light dikhati hai to electric instrumant mai zig zag ya dashdadh ke simbla mai ko dikhti hai
Jabki light ko wire mai behte huye kisi ne dekha nahi hai lekin light ko hum feel jrsakte hai agr wire ko chuuye jismai currant fallow ho rha ho.thhek usi prkar iswar ak hai suprim lord visnu baaki unke part hai.
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UnknownNovember 1, 2015 at 6:10 AM
Love for all hatred fo none.
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Jaysingh gurjarNovember 26, 2015 at 1:33 PM
aapki problem pata hai kya hai ! aap (islam) ye sochte ho jisko main manta hun wahin ishvar hai baki sab ishvar ko nhi kisi or ko maan rahe hain isliye sabko islam dharm apna lena chahiye magar ye such nahi hai subke tarike alag -alag ho sakte hain magar manjil ek hi hai ishvar , khuda , rab , ! Sabhi dharmo me ishvar ek hi hai chahe wo sanatan ( hindu) dharm ho ya islam dharm ho isai ya sikh jain bodh yahudi koi bhi dharm ho ! sab ne alag alag tarika ya alag alag rasta pakad rakha hai per jana use ishver k ghar ! Per islam iska mukhar virodhi hai wo kahta islam k apnaye bina khuda nhi milega ! Jo ki galat chij hai ! Islam ko sabhi dharmo ka sammaan karna chahiye ! Islam me ye likha hai islam me wo likha tum isko mante kyun nahi ho tumhe dojak nasib hogi ! Iski kya garunty hai islam manne se jannat nasib hogi ! Aree jis dharm ka ithihas 1500 saal purana hai bus... yani isse pehle to sab dojak me hi ja rahe the nahi isse pehle bhi dharm tha jiska naam tha sanatan dharm ! Shree kirshan k potte subahu ne shree krishan se jhagda karke alag dharm ki rachna ki jo aage chalkar islam kahlaya ! Islam ek trah se sanatan dharm ka virodhi dharm hai bcoz subahu shree kirshan se jagda ke makka madina gaya ! Waha pr usne sanatan se ulte dharm k niyam banaye jaise: - ulte haath dhona , jivhatya , sirf dadhi rakhna muchh nhi rakhna ityaadi - ityaadi !
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unkownJuly 11, 2017 at 11:36 PM
Sahi kaha
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Javed HayatDecember 3, 2015 at 4:10 AM
dear ajit pratap singh
अगर आप वास्तव में सुख चैन की तलाश कर रहे हैं तो आप यकीनन पा सकते हैं
जहाँ तक आपके लेख की बात है तो में कहूँगा की इन्सान को हमेशा लिखते रहना चाहिए
लेकिन आप ने अपने लेख के शुरू की पंक्तियों में लिखा है की मुस्लिम हिन्दुओं के ठीक विपरित बात करते हैं में आप की बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि इस्लाम का मेसेजहै सदा सत्य बोलो क्या हिन्दू हमेशा झूट बोलता है क्योंकि मुस;लिम तो हमेशा सत्य की बात करता है दूसरी बात मुस्लिम कहता है इश्वर एक है हिन्दू भी कहता है इश्वर एक है परंतुरूप अनेक हैं तो बात तो एक इश्वर की है न रूप की तो बात ही नहीं है जिसको जिस रूप में मानना हो माने किसिस को क्या इश्वर तो एक ही है क्या हिन्दू ये नहीं मानता मेरा मानना ये है की आप भ्रांतियों का शिकार हैं जीवन में एक सत्य को हमेशा अपने से जोड कर देखिये की संसार का कोई धर्म मेला नहीं है केवल मन मेला होता है इसीलिए कबीर ने कहा है बुरा जो देखन में चला बुरा न मिल्या कोई जो दिल खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोई
और तीसरी बात के वास्तव में मनुष्य वाही है जो अपने ज्ञान के स्तर तक बात करे और जिस बारे में न जनता हो उसके बारे में तब तक न बोले जबतक की उसे पूरा ज्ञान न हो जाए यदि आपको इस्लाम के बारे में जानकारी चाहिए तो आप कभी भी इस्लाम का पूर्ण ज्ञान रखने वाले से संपर्क करें कोई हिन्दू भाई या क्रिश्चन या जैन या बुद्ध या इस्लाम के अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति से नहीं क्योंकि हर व्यक्ति के अपने ज्ञान का स्तर होता है वो वन्ही तक बात कर सकता है उम्मीद है जब कभी आप या अन्य कोई ये बात पढ़ेगा समझ ही जाएगा
में इश्वर से आप सब के उज्वल भविष्य की कामना करता हूँ की इश्वर हम सब को सत्य का मार्ग बताए
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UnknownMarch 18, 2016 at 11:20 AM
आपकी बात सही होती अगर ये न होता क़ि क़ुरआन के न मानने वालो को जीने का हक़ नहीं है ।।
सोचिये क्यों हर मुस्लिम कंट्री कत्लोगारद के दौर से गुज़र रही है , क्यों कुछ लोग 72 हूरो के ख़याल में अपने को ही क़त्ल कर रहे हैं, क्यों दूसरी औरतो को मुता के तहत लूटा जा रहा है ।
क्या ये काफी नहीं क़ि ये धर्म और शरियात के नाम पे केवल लूटना ,क़त्ल करना और बलात्कार /रेप को जायज ठहराने का काम कर रहा है ।
खुदा क्या मज़लूमो को बम मार कर मिलता है ?
सोच कर देखिए ..पिछले 700 सालो में खुदा के नाम पर कितने घर तबाह हो गए और आज भी हो रहे हैं ।
वक़्त रहते आदमियत के बारे में सोचना शुरू कर दीजिये वर्ना वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया सीरिया बन जायेगी । रेफ्यूजेयो के लिए कोई जगह नहीं बचेगी , न यूरोप न हिन्दुस्तान । एक आदमी सबको गुलाम बना लेगा,वो भी खुदा के नाम पर ।
अल्लाह ये कभी नहीं चाहता कि अशरफुल मखलूक किसी का गुलाम बने ।
और शायद आप भी .....

Anurag TiwariMarch 18, 2016 at 11:40 AM
आपकी बात सही होती अगर ये न होता क़ि क़ुरआन के न मानने वालो को जीने का हक़ नहीं है ।।
सोचिये क्यों हर मुस्लिम कंट्री कत्लोगारद के दौर से गुज़र रही है , क्यों कुछ लोग 72 हूरो के ख़याल में अपने को ही क़त्ल कर रहे हैं, क्यों दूसरी औरतो को मुता के तहत लूटा जा रहा है ।
क्या ये काफी नहीं क़ि ये धर्म और शरियात के नाम पे केवल लूटना ,क़त्ल करना और बलात्कार /रेप को जायज ठहराने का काम कर रहा है ।
खुदा क्या मज़लूमो को बम मार कर मिलता है ?
सोच कर देखिए ..पिछले 700 सालो में खुदा के नाम पर कितने घर तबाह हो गए और आज भी हो रहे हैं ।
वक़्त रहते आदमियत के बारे में सोचना शुरू कर दीजिये वर्ना वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया सीरिया बन जायेगी । रेफ्यूजेयो के लिए कोई जगह नहीं बचेगी , न यूरोप न हिन्दुस्तान । एक आदमी सबको गुलाम बना लेगा,वो भी खुदा के नाम पर ।
अल्लाह ये कभी नहीं चाहता कि अशरफुल मखलूक किसी का गुलाम बने ।
और शायद आप भी .....

manojMarch 22, 2016 at 8:02 PM
अत-तौबा (At-Tawbah):5 - फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

markets monitorMay 25, 2017 at 4:24 AM
वैसे भी इतने दिनों से चैट हो रही मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि
कुरान, हदीस की असलियत को मुसलमान कैसे छुपाता है
झूठ के बोझ को संभालने के लिए मुसलमान कैसे
रात दिन एक कर देते है ,एक आनलाइन डिबेट मे
इसका नमूना देखिए :-
. 1) इस्लाम की पोल खुलने पर सबसे पहले मुस्लिम
बोलते है कि ये सब तथ्यहीन आधारहीन
है ,अज्ञानता है ,इस्लाम मे कोई
जबरदस्ती नही है! अगर आप रैफरेंस देंगे वो सिरे
से
नकार देंगे और आपको पूरी तरह कुरान
स्टड़ी करने
को बोला जायेगा तभी रोशनी मिलेगी ! .
2)अगर आप कुरान और हदीसो के हवाले देंगे
तो आपको बोलेगे कि तुमने आयते
अधूरी समझी है ,आयतो को गलत संदर्भ मे
लिया है और उन आयतो मे लडाई का मतलब उस
समय के युद्ध से था । (यानि इससे मुस्लिम यह
दिखाना चाहते है कि अब हम दुनियाभर मे
जेहाद नही कर रहे है) .
3)अगर आप संपूर्ण आयतो और
हदीसो का हवाला देंगे तो वो कहेंगे
आपका अनुवाद गलत है और आपको अरबी सीखने
के साथ आरिजनल वर्जन पढ़ने
को बोला जायेगा ! .
4)अगर आप कहेंगे कि आप अरबी भी जानते है
साथ ही आपके पास प्रमाणित अनुवाद और
सारी जानकारी उन्ही प्रमाणित रिसोर्स
से है जिससे सर्वश्रेष्ठ मुस्लिम स्कालर्स
हवाला देते है ,तो मुसलमान कहेंगे कि हदीसे
पढ़ना भी जरूरी है … अगर आप
हदीस से सच
साबित करेंगे तो वे कहेंगे कुरान ही एकमात्र सच
है ! .
5)इन सबके बाद अगर आप जारी रखते है तो वे इस
मुद्दे से बात घुमाने के लिये दूसरे टापिक उठायेंगे
जैसे
गरीबी ,इंसानियत ,शांति ,फिलिस्तीन ,इजराइल ,अमेरिका .
6)अगर आप कहेंगे कि कुरान इंसान ने लिखी है
तो वे Dr Bucalie की किताब
का हवाला देकर सुनिश्चित करेंगे कि कुरान मे
विज्ञान भी है ! .
7)जबकि असल मे Dr bucalie सऊदी अरब से पैसे
लिया करता था और Dr bucalie को कई
विशेषज्ञो ने गलत और झूठा साबित कर
दिया है ! .
8)अब फिर मुस्लिम बोलेंगे कि ये सब वैस्टर्न
मीड़िया का प्रौपगेंड़ा है इस्लाम
को बदनाम करने का ! .
9)अगर आप फिर भी सच सामने लायेंगे
तो मुस्लिम कुतर्को पर उतर आएंगे और दूसरे
मजहबो मे की किताबो मे कमियां निकालेंगे
जैसे बाइबल ,तोराह ,वेद गीता आदि ! .
10)लेकिन हद तो यहा है कि जिन
किताबो को ये नही मानते
उन्ही किताबो मे ये अपने मोहम्मद
जी को अवतार भी दिखायेंगे (जैसे वेदो मे
मुहम्मद को दिखाना).. और इस्लाम
को जबरदस्ती विज्ञान से जोड़गे! (मतलब
किसी भी तरह से हर हाल मे इस्लाम और
मौहम्मद जी की मार्केटिंग करते रहते है ! इस
तरह ये हमेशा काफिरो को थकाकर और
उलझा कर रखते है !) .
11)अगर आप न रूकेतो मुसलमान
द्वारा आपको जाहिल झुठा ,कुत्ता ,जालिम
वगैरह के साथ मां बहन की गाली और
निजी हमले किये जायेंगे .. .
12)अब मुस्लिम रट्टा लगायेंगे कि “इस्लाम
तेजी से फैल रहा है “लेकिन जैसे ही सच्चाई
सामने लायी जाये तो ये चिल्ला भी पड़ेंगे
“इस्लाम खतरे मे है !” .
13)अगर फिर भी आप असली मुद्दे पर अड़े रहेंगे
तो मुसलमान बोलेंगे तुम जहुन्नम मे
जाओगे …आखिरी दिन तुम्हारा हिसाब
होगा …तुम पर अल्लाह का आजाब
होगा ..अल्लाह तुम्हारे साथ ये कर देगा..
वो कर देगा ,वगैरह वगैरह! .
14)और आखिर मे जब सब फेल
हो जायेगा तो अब मुसलमान धमकाने पर आ
जायेंगे जैसे तुम्हे देख लूंगा,बचके रहना ,अपना नंबर
और एड्रेस बताओ ! .
Reply

Javed HayatDecember 3, 2015 at 4:11 AM
dear ajit pratap singh
अगर आप वास्तव में सुख चैन की तलाश कर रहे हैं तो आप यकीनन पा सकते हैं
जहाँ तक आपके लेख की बात है तो में कहूँगा की इन्सान को हमेशा लिखते रहना चाहिए
लेकिन आप ने अपने लेख के शुरू की पंक्तियों में लिखा है की मुस्लिम हिन्दुओं के ठीक विपरित बात करते हैं में आप की बात से सहमत नहीं हूँ क्योंकि इस्लाम का मेसेजहै सदा सत्य बोलो क्या हिन्दू हमेशा झूट बोलता है क्योंकि मुस;लिम तो हमेशा सत्य की बात करता है दूसरी बात मुस्लिम कहता है इश्वर एक है हिन्दू भी कहता है इश्वर एक है परंतुरूप अनेक हैं तो बात तो एक इश्वर की है न रूप की तो बात ही नहीं है जिसको जिस रूप में मानना हो माने किसिस को क्या इश्वर तो एक ही है क्या हिन्दू ये नहीं मानता मेरा मानना ये है की आप भ्रांतियों का शिकार हैं जीवन में एक सत्य को हमेशा अपने से जोड कर देखिये की संसार का कोई धर्म मेला नहीं है केवल मन मेला होता है इसीलिए कबीर ने कहा है बुरा जो देखन में चला बुरा न मिल्या कोई जो दिल खोजा आपना तो मुझसे बुरा न कोई
और तीसरी बात के वास्तव में मनुष्य वाही है जो अपने ज्ञान के स्तर तक बात करे और जिस बारे में न जनता हो उसके बारे में तब तक न बोले जबतक की उसे पूरा ज्ञान न हो जाए यदि आपको इस्लाम के बारे में जानकारी चाहिए तो आप कभी भी इस्लाम का पूर्ण ज्ञान रखने वाले से संपर्क करें कोई हिन्दू भाई या क्रिश्चन या जैन या बुद्ध या इस्लाम के अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति से नहीं क्योंकि हर व्यक्ति के अपने ज्ञान का स्तर होता है वो वन्ही तक बात कर सकता है उम्मीद है जब कभी आप या अन्य कोई ये बात पढ़ेगा समझ ही जाएगा
में इश्वर से आप सब के उज्वल भविष्य की कामना करता हूँ की इश्वर हम सब को सत्य का मार्ग बताए
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Pritam MadaviMarch 16, 2016 at 1:56 AM
मुझे तो कुछ पता नहीं पर
मै एक वैज्ञानिक सोचने वाला हु
मै सभी धर्मोका अभ्यास किया तब मुझे पता चला की धर्म की निर्मिति मानव निर्मित है परन्तु एक अपवाद है वो है "हिन्दू"
इस के प्रमाण बताता हु
1)बाली, इंडिनेशिया
यहाँ 5000 साल पुराणी विष्णु जी की समुन्दर में बनायीं गयी मूर्ति है ।
हैरान करनेवाली ये बात है 5000 वर्ष पूर्व पाणी में रहकर काम करने की तकनीक नहीं थी तो मूर्ति कैसे बनायीं
2) ज्वालादेवी, हिमांचल प्रदेश
ये भी मंदिर 5000 वर्ष पूर्व बनाया गया है
विशेषता:- यहाँ नव ज्योति है वो बिना ईंधन से अविरत जल रही है
वैज्ञानिक दृष्टी से देखे जाये तो कोई चीज जलती है तो ज्वलनशील पदार्थ चाहिए चाहे लकड़ी, गॅस, जो भी जलानेवाले परन्तु ये अपनेआप जलती है
3)अमरनाथ,
यहाँ तो अपने आप शिवलिंग बनते है ये सोचनेवाली बात है
4) पूरी मंदिर
यहाँ का पताका हवे की विपरीत दिशा में लहराता है और मंदिर के ऊपर से ना पंछी जाते है ना हवाई जहाज
भाई साहब हिन्दू धर्म तो सनातन है क्यो की
मुहम्मद, गौतम बुद्ध, येशु, ऋषभदेव,एक पहले
गीत, रामायण ,वेद लिखे है और आज तक उत्खनन में वो हिन्दू मंदिर -5000
बाकि जो भी मिले 2500 के पहले के
इसका प्रमाण है ही हिन्दू सनातन है वैज्ञानिक तरीके से

manojMarch 22, 2016 at 8:04 PM
अत-तौबा (At-Tawbah):5 - फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

manojMarch 22, 2016 at 8:07 PM
अत-तौबा (At-Tawbah):5 - फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है

unkownJuly 12, 2017 at 12:14 AM
Kabir ne kaha h bura jo dekhan mai chala wala dialog muhammad pe v lagu hota h jisne murtiya tod kr alag hi dharm ka raag alap krna suru kr diya.
Jaha tak baat h Islam ki wo kisi majhab k upar thopi gai ek dusri vichardhara h jise god ki echha bata k logo ko satisfy krne ka asafal prayas kiya gya h.
Aaj result samne h sabhi muslim desh aur Islam ko manne wale atankwadi bante ja rhe h.
Kahne ko Islam achhi sikchha deta h but muslim aatankwadi kyu bante ja rhe h.
Charo traf hi nsa kyu faili ja rhi h.
God ne to nabiyo ko paigambaro ko tab tab bheja h jab jab kuch galat huaa h dharti pe.
Abhi kya galat ni ho rha kya??
Sach to ye h ki dhram k naam pe ensaan ko hamesa hi vewkuf banaya gya.
Alag alag time pe alag alag logo ne naye naye dharm bana k rotiya seki h.
Gulamo ki fauj kadhi ki h.
Aaj sabhi gulam h jo kisi v trah kisi v god ko mante h.
Agr God hota to wo khud chal k ata apne bete betiyo se milne k liye khud apni baat unke samne rakhata.
Kisi tisre anpadh logo ko ni bhej deta.
Aur agt aisa krta to uski gulami discard kr drni chahiye aise VVIP God ki aisi ki taisi jise etni v fursat ni ki apne banaye bete betiyo se mil sake.
Agr wo nirgun h wo waise hi hame uski gulami ni krni chahiye coz wo na to bol sakta h na kuch kr sakta h
Jab uska khud hi akar ni h to to wo dusro ko kya akar de sakta h.
Human sabhi jivo me budhijivi h jisne v es kalpanik god ko discard kiya usne ensano ko sukh aur suvidha di jaise ki scientist. Aaj jo v sukh suvidhaye ham use kr rhe h wo science ki den h jabki dharm ne scientisto ko hamesa hi discrad kiya h.
Agt ham dharm ki baat kre to rsne aaj tak hame kya diya kuran jise manne wale sabhi aatanwad ko pariposit kr rhe h. Ved aur puran jise mannr wale brahman aur sudra aut achhut mr ensaan ko baat dete h.
Krischian to sata ki bhuk k liye dusre deso ko vinas krte rahte h.
Ab samay aa gya h human ko human ki tah sochne ka na ki gulam kibtrah.
Ek dharm ko manne wala gulam hibh jo hajaro saal purami outdated bato ki gulami god k naam pe krta rhata h.
Ensaan bane dharm ko hataye gloabal bane. Kattarta se bache.
Yahi humanity h God sayad ye baat kahne se bach gya tha coz wo h hi ni to kahta kaise.
Uske naam pe bahuto ne bahut malai khai h.
By cut aal farzi dharms. Be human .
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Sumit DubeyDecember 9, 2015 at 3:56 AM
Wah Ajit Pratap ji ati uttam
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UnknownJanuary 20, 2016 at 11:11 AM
Javen sahab, sahi baat.. Ajit Pratap only described the traditions of Muslims not things. Please don't be confused and feel bad and think about the same.
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Devendra KumarFebruary 11, 2016 at 3:16 PM
Bhai saab mere liye to sab barabar h. Hindu bhi apna. Muslim bhi apna. Sikh bhi apna.cristen bhi apna....or aap log pagal h jo apni ray dete h..
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Arun sApril 27, 2016 at 4:36 AM
aap shayad jamin par nahi hava mein rahte hain,,,,,,,,,One must know the real truth,

unkownJuly 12, 2017 at 12:22 AM
Devendra ji u r right.
But islam k accorng apko kafir kaha gya h.
Hindu dharm apko brahaman chhatiya veshaya sudra kah sakta h.
Krischiyan apko higher ya lower ya fir middle class me divide kr dega.
Ab aap hi socho dharm hame kya de rha h.
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SHAILENDRA SHARMAFebruary 12, 2016 at 11:38 PM
Me to itihas par depend rhta hu itihas ko koi bhula nhi skta
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SHAILENDRA SHARMAFebruary 12, 2016 at 11:39 PM
Me to itihas par depend rhta hu itihas ko koi bhula nhi skta
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अली वालेFebruary 18, 2016 at 2:11 AM
सिफ़ाते जलाले ख़ुदा
ख़ुदा हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा वह समस्त नुक़्स व ऐब से पाक व पवित्र है। प्रत्येक कम व बेशि से दूर है, वह उपस्थित जैसी उपस्थित नहीं है कि शरीर का मोह्ताज हो या विभिन्न प्रकार किसी आज ज़ा से पैदा नहीं है कि किसी स्थान को पुर करे या क़ाबिले लम्स या दिख़ाई देता हो वह न पृथ्वी में दिख़ाई देगा और न आख़ेरत में।
वह कोई उपस्थित चीज़ नहीं है की क़ाबिले परिवर्तन या परिवर्धन हो, और उस में कोई मद्दि शैई प्रवेश कर नहीं सकती, और यही वजह है की वह व्याधि में नहीं पढ़ता, उस को भूक नहीं लग्ती, निन्द नहीं अती, अल्लाह पर बूढ़ापे व जवानी का कोई प्रभाब नहीं होता।
वह ला-शरीक है यानी उस का कोई शरीक नहीं है, बल्कि वह एक है, जो उस के सिफ़ात है वही उस की ज़ात है, वह हमारे जैसा मख़लूक़ नहीं है अल्लाह प्रत्येक चीज़ से पाक व पवित्र है। और उस को किसी चीज़ की जरुरत नहीं पड़ती और न परामर्श की ज़रुरत और न सहायता, उज़िर, न लश्कर, माल, सर्वत की ज़रुरत पड़ती है।
पेर्मेश्वर को मे- खुदा उर्दु मे अल्लाह अरबी मे जनता हूँ
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Anurag TiwariMarch 18, 2016 at 11:27 AM
सही कहा ।
हमे ही उसे मानना और जानना है ।
और इंसानियत को ये बताना है , बिना कत्लोगारद और औरतो की इज़्ज़त को नुक्सान पहुचाये ।

Bhanudas RawadeAugust 28, 2016 at 9:21 PM
जनाब अली वाले
हे होगई हवा में बातें इस बात को कोई सबूत या तर्क की जरुरत नहीं है...!!!
ये सेम बाते हिंदू भगवान के बारे में करेंगे उसको भी कोई सबूत या तर्क नहीं होगा
लेकिन
यंहा पर पुरातन धर्म और संस्कृति की बात चल रही है
लेखक ने लेखक यंहा सबूतो के साथ बात कर रहा है की इस्लाम का अस्तित्व 1400 सालो से पुराना नहीं है
आपको उनको ये बताना चाइये की 1400 साल पहले इस्लाम के बारे में कहा और कोनसी किताब या ग्रन्थ में उल्लेख आया है
तर्कहिन् बातो को कोई सबूत की जरुरत नहीं होती है
लेखक जैसे हिन्दू धर्म के बारे में बताते है की कोनसी गुफा में कोनसा चित्र या कोनसा शिलालेख है जो साइन्टिफिकलि 5000 साल पुराना है तो वो हो गया सबूत
आपके बारे अगर पैगंबर साहब का जन्म ही 1400 साल पुराना है और आप अगर कहना चाहोगे की इस्लाम दुनिया की शुरू से है तो आपको भी कोई ग्रन्थ या कोई शिलालेख या ऐसा ही कुछ सबूत के तौर पर सामने लाना होगा
मुझे इस बात से ज़रा भी संदेह नहीं है की इंसान ने भगवान और धर्म को जन्म दिया है
लेकिन बात सिर्फ इतनी है की पुरातन धर्म और संस्कृति कोनसी है....!!!

unkownJuly 12, 2017 at 12:28 AM
Janab ali wale kisi god ya alla ko aap define na kre jab uska koi akar hi ni h na naak h na kaan h na aakh h to wo chhamashil kaise h aur kaise islam ko manne wale kattar muslimo ki gunaho ko maaf karega.
Kaise maulabi use define krte h jab use kisi ne dekha hi ni.
Jab muhamad ne khud use ni dekha tha to define kaise kr sakye ho us kalnik god ki???
Kewal hawa me batr kr dharm kibrotiya sekni band kro.
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अली वालेFebruary 18, 2016 at 2:54 AM
शुरु ईश्वर के नाम से जो बड़ा क्रपालु ओर सबसे ज्यादा दयावान हें
अजीत प्रताप सिंह राजावत जी
जो ईश्वर को जनता हें ओर उसकी वाणी समझता हें
अभी आप उस उंचाई पर नहीं पोह्चे हें
कुरान ईश्वर की किताब हें या नही
पढ़िये समझ जाएँगे क्यू की कुरान मे एक ईश्वर को ना मानने वालो को काफिर (नास्तिक) कहाँ गया हें
सनातन धर्म मे भी यही कहाँ हें
मूर्ती पूज व्यर्थ हें
सनातन धर्म मे भी यही कहाँ हें
अब अगर ईश्वर के संदेश वाहक (पेघम्बर)हजरत मोहम्मद स.अ.स. मूर्तियों को तोड़ दे ओर ईश्वर के नाम पे झूट बोलने वाले पूजारी को बिना किसी खून ख़राबे के एक ईश्वर का अनुयायी बना दे !तो ये कर्म ईश्वर का आदेश ही हें
और लॉगों ने उनकी बात शुरू मे नहीं मानी
तो सूखा क्यू पड़ा और मदीने मे उनका स्वागत क्यू हुआ क्या पेहले से कोई मदीने मे मुसलमान था
नही जहाँ पाप अधिक होता हें वहाँ ईश्वर अपना दूत भेजता हें
आप समझदार हें खुद से पूछिए क्या कुरान से बेहतर किताब आपके पास हें
आपके पास अधूरा ज्ञान हें
पेहले चालीस दिन अपना शरीर साफ रखे
और उन्हीं 40 दिनो तक अपने खून पसीने की कमाई यूही रोटी ही खाए आपको तब खुद ही सही सोच प्राप्त होगी
धन्यवाद
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Anurag TiwariMarch 18, 2016 at 11:37 AM
एक बात है मूर्ति पूजा शायद व्यर्थ हो मगर कोई जीसस कोई वली कोई ख्वाज़ा कोई नानक कोई पैगम्बर कोई कुछ और ,, को मानता है । ये सब क्या है । क्यों कोई किसी ख़ास को मानता है अगर उपर वाला एक ही है ।
इंसानियत का क़त्ल क्यूँ होता है हर रोज़ , मानने और न मानने के नाम पर ।।
क्या यही धर्म है ?

Anurag TiwariMarch 18, 2016 at 11:38 AM
एक बात है मूर्ति पूजा शायद व्यर्थ हो मगर कोई जीसस कोई वली कोई ख्वाज़ा कोई नानक कोई पैगम्बर कोई कुछ और ,, को मानता है । ये सब क्या है । क्यों कोई किसी ख़ास को मानता है अगर उपर वाला एक ही है ।
इंसानियत का क़त्ल क्यूँ होता है हर रोज़ , मानने और न मानने के नाम पर ।।
क्या यही धर्म है ?

unkownJuly 12, 2017 at 12:32 AM
Ali wale tujhe kaise pata h god k bare me jab use kisi ne dekha hi ni.
Jab khud use mil lena tab uske vichar share krna. Abhi bina jankari k hawa hawai bato se parhez rkho ni to allah bhramak jankari dene k katan tumhe dogaj me bhej dega jaha aaj ki lapto me jal jaogr.
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azharrockMarch 17, 2016 at 12:26 AM
aap ne achhi likhi hai bhai par aap such me bahut bade bebkuf hai.....!
aaj apne ye sabit kar diya..!
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Anjit SinghApril 18, 2016 at 1:38 AM
आप के बातों का समर्थन कर्ता हु। जिसे ऐतराज हिन्दुस्तान छोड दें
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UnknownMay 6, 2016 at 3:58 AM
Hindu hi asli dharm sanatan hai, Muslim Isai ,sikh,baudh,jain sab usi ki aulad hai
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jakaullah azizJune 2, 2016 at 6:38 AM
Inshan se badha dharam koi sa nhe hai..sabhi dharam humare paidha hone se pahle banae gae..or sabhi dharam ek dusre ki help karne ko kahta....bas ese dharam ko mano....or ye likhne wala es duniya ka sab se khabab insan hai kyu ki ye insaniyat ko alag karna chahta hai..
Thank you dosto.......
Reply

rahul chaturvediJune 24, 2016 at 2:25 PM
Eak BAAT bolna changing aap sabhi yog purushon se aap ne kya dharm dharm laga rakha h me puchna chahuga kya aap ka dharm aap itna kamjor h ki aap logo ko us ki hifajat karni pade yaro agar AAJ khud bhagwan bi aakar ye bole ki me hi khuda iswar Hun tab bhi aap ko Santusti nahi hone Bali
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ravinderJuly 30, 2016 at 10:04 AM
खुदा अल्लाह या भगवन नाम की कोई चीज़ नहीं होती । जितने भी मजहब या धर्म है सब इंसानी दिमाग का फितूर भर है ।और इन मजहबो धर्मो ने इंसानियत का सबसे ज्यादा नुक्सान किया है । अगर आप सब लोग अगली पीढ़ी का भला चाहते हो तो god ता जो भी आप उसे बुलाते है । मानना छोड़ दो
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Ajay SahuAugust 12, 2016 at 1:47 AM
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपका धन्यवाद हो ॥
Reply

Ajay SahuAugust 12, 2016 at 1:49 AM
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपका धन्यवाद हो ॥
Reply

Lok BharatAugust 15, 2016 at 12:01 PM
तुम्हे कम ज्ञान है इसमें तुम्हारी कमी है, अपने मन से कहानियां छापकर कोई सच को झूठ साबित नही कर सकता ।
Reply

Lok BharatAugust 15, 2016 at 12:01 PM
तुम्हे कम ज्ञान है इसमें तुम्हारी कमी है, अपने मन से कहानियां छापकर कोई सच को झूठ साबित नही कर सकता ।
Reply

AZHAR FAROOQUIAugust 20, 2016 at 6:31 AM
Mere bhai mujhe sirf itna bata do ki,
Agar 0 ki khoj Arya bhatt ne ki or arya bhatt kalyug me paida huve to mahabharat me 100 kaurav or ramayan me ravan ke 10 sir ki ginati kisne ki?
Or yadi itni hi khunnas he islam se to Arab mulko se aane wala petrol or dielsel ka tyag karo or apne sach che dharm nisht hone ka saboot do...
Reply

Bhanudas RawadeAugust 29, 2016 at 3:05 AM
इमा मेऽअग्नऽइष्टका धेनव: सन्त्वेका च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं व नियुतं च प्रयुतं चार्बु दं च न्यर्बु दं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्धश्चैता मेऽअग्नऽइष्टका धेनव: सन्त्वमुत्रामुष
मिंल्लोके ।। (शुक्ल यजुर्ववेद १७/२)
अर्थात् – हे अग्ने । ये इष्टकाऐं (पांच चित्तियो में स्थापित ) हमारे लिए अभीष्ट फलदायक कामधेनु गौ के समान हों । ये इष्टका परार्द्ध -सङ्ख्यक (१०००००००००००००००००) एक से दश ,दश से सौ, सौ से हजार ,हजार से दश हजार ,दश हजार से लाख ,लाख से दश लाख ,दशलाख से करोड़ ,करोड़ से दश करोड़ ,दश करोड़ से अरब ,अरब से दश अरब ,दश अरब से खरब ,खरब से दश खरब ,दश खरब से नील, नील से दश नील, दश नील से शङ्ख ,शङ्ख से दश शङ्ख ,दश शङ्ख से परार्द्ध ( लक्ष कोटि) है ।
यहाँ स्पष्ट एक एक। शून्य जोड़ते हुए काल गणना की गयी है ।
अब फिर आर्यभट्ट ने कैसे शून्य की खोज की ?
इसका जवाब है विज्ञान की दो क्रियाएँ हैं एक खोज (डिस्कवर ) दूसरी आविष्कार (एक्सपेरिमेंट) । खोज उसे कहते हैं जो पहले से विद्यमान हो बाद में खो गयी हो और फिर उसे ढूढा जाए उसे खोज कहते हैं ।
आविष्कार उसे कहते हैं जो विद्यमान नहीं है और उसे अलग अलग पदार्थों से बनाया जाए वो आविष्कार है ।
अब शून्य और अंको की खोज आर्यभट्ट ने की न कि आविष्कार किया
इसका प्रमाण सिंधु -सरस्वती सभ्यता (हड़प्पा की सभ्यता) जो की 1750 ई पू तक विलुप्त हो चुकी थी में अंको की गणना स्पष्ट रूप से अंकित है।
मेरे भाई हमे कुछ इस्लाम से खुन्नस नहीं है
ये तो सिर्फ इस्लाम की निर्मिति कैसे हुई ये बताने की कोशिश है
अब ये भी देखिये
बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और उसके पहले भी यंहा पर जो लोग थे तो वो हिन्दू थे इसको नकारा नहीं जा सकता है
ईसाई धर्म की स्थापना हुई उसके पहले भी वहां पे लोग थे और वह यहूदी थे इसको भी कोई नकारता नहीं है
तो इस्लाम की स्थापना हुई उसके पहले भी अरब में लोग थे और वो हिंदू थे इसको नकारने से क्या मतलब है
अफगानिस्तान में जब इस्लाम आया तब वहां बौद्ध धर्म था और बौद्ध धर्म के पहले भी वंहा हिन्दू धर्म था इसको हम नकार नहीं सकते
जैसे हिन्दू धर्म में से ही
जैन धर्म
बौद्ध धर्म
शिख धर्म
इनकी स्थापना होई है
नए नए विचारवंतो को नया नया ज्ञान प्राप्त होता रहता है वैसे ही पैगंबर साहाब को कुछ अलग ज्ञान प्राप्त हुवा और उन्होंने इस्लाम की स्थापना की इतनी आसान सी बात है
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Ravi PatelSeptember 18, 2016 at 4:45 AM
bhaai bahot khub khaas kar aapki woh khoj waali baat, khoj wahi hoti hai jo pahle se hi maujud ho.

Ravi PatelSeptember 18, 2016 at 4:49 AM
bhaai bahot khub khaas kar aapki woh khoj waali baat, khoj wahi hoti hai jo pahle se hi maujud ho.

Dr. Athar khanNovember 23, 2016 at 8:18 PM
भारतीय संविधान और कानूनों की रोशनी में 'हिंदू' शब्द के आशय और परिभाषा के बारे में केंद्र सरकार सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकी है।
मध्य प्रदेश के नीमच के रहने वाले सोशल वर्कर चंद्रशेखर गौर ने बताया कि उन्होंने आरटीआई के तहत अर्जी दायर कर पूछा था कि भारतीय संविधान और कानूनों के अनुसार 'हिंदू' शब्द का मतलब और परिभाषा क्या है।

Karan GondMarch 22, 2017 at 1:48 AM
हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत और नेपाल में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।[1] विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।
यह वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।[2][3] [4]
इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।[5]

unkownJuly 12, 2017 at 12:41 AM
Athar Khan yah mudda hindu word ni h.
Tumara islam to hindu ko kafir kahta h ab kahi RTI mat daal dena God k paas use to ye v ni pta hoga ki kafir kaun h.
Kal ko koi islam manne walo ko hi kafir kahna suru kr de to tum kafir hi kahlane lagoge.
Esliye mudde se dhayan mat bhatkao.
Mudda ye hi ki Doctrate krne k baad v idealism pe belive krte ho ekadh baar pragmtism k research pe v dhayan diya hota.
Fir sara concept clear ho jata.
Reply

Pratipal SinghSeptember 2, 2016 at 4:05 AM
god only knows
Reply

Mumtaj AliOctober 4, 2016 at 2:28 AM
aap ko islam ka acchi tarh gyan nahi h mohommed ki shan me gustaki kar rahe ho
Reply

Mumtaj AliOctober 4, 2016 at 2:29 AM
aap ko islam ka acchi tarh gyan nahi h mohommed ki shan me gustaki kar rahe ho
Reply

UnknownOctober 20, 2016 at 7:22 AM
Me b yahi sochta hu ....ki sanatan Dharm se pahle koi Dharm nhi h ....sabhi Dharm Santana Dharm se nikle h
Islam b or bodth b
Bs unhone apne rule thode badal diye
Sanatan Dharm me
Budth ko ..Vishnu ka avatar mana jata h
Or jb bodth hanare hi dhrm ko pujte h to
Kya bs nam alg h
Wese b
Samaj me samay samay par
Dharm or niyam badlte rahte h
Par sbse badi bat ye h ki
Jo sbse pahle se h
Wo
Kam ho skta h MIT nhi skta
Apki jankari bahot achhi lgi
Me apka aabhari hu
Om
Reply

Rabindra JhaOctober 21, 2016 at 3:57 AM
Who will dare to comment to be abused.Thanks to him who labored so much over sanatan.God is one & is called by various name.Inially idol worship is not bad for loving God & concentrating on Him.Masjid Church etc are too idols in a sence to symbolize Him.
Sadhan tells what is what.
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Danish SaifiOctober 23, 2016 at 12:11 PM
Bhaand media
Ek mussalmaan hone k nate m kisi mazhab know bura bahi kah sakta.Beshak insaniyat badi cheez h magar insaaan ki sahuliyat k liye insaan ko insaan k liye kisne bataya.
sirf aur sirf islam ne.
Reply

RahulOctober 23, 2016 at 8:53 PM
mai bhi islam dhrm ka itihas janna chahta hu to maine sbke cament read kiye hai ye to sch hai ki ye dhrm 1400 purana hai fir bhi ek bat or plz clear kre bohot cnfuzn hai mujhe.........maine camnt mai pdha hai ki kisi ne bola hai ki krishan g k poute ne ye dhrm bnaya coz vo krishan g se jhgda krk aye the.......isliye hr kam ulta tha unka........ but ek bat mere dimag m ghar kr gyi hai vo hai ye ki ravan ki behn ka nam suprn kha tha or #kha muslim hote hai aap sb jante hai or ayodhya mai bhi islamic dhrm k kuch astitv paye gye hai jo islam k log bolte hai ki islam dhrm stya yug se phle ka tha mtlv or jo ravan ki behn suprn kha muslim lgti hai nam se pr ravan k pita ne apne kisi bete ka nam mai #kha ni rkha bs beti k nam pr hi ku ????? or ravan k khandan k sare log mare gye the bs suprn kha bchi rahi or vo arab mai jake chip gye (ram g se bcchne k liye ) vhi se islam dhrm ka janm hua i think so not confrm okk........inke safed kpde pehnne pr b ek raaj hai inke sir pr topi lgane pr b raaj hai or bohpt se raaj hai plzzz tell m i right ???? muslim and hindu both r give me right answer plzzZ
Reply

Dr. Athar khanNovember 23, 2016 at 8:11 PM
भाई पहले हिन्दू धर्म की जानकारी प्राप्त करो उसके बाद औरों के बारे में सोचना
तुम्हें इस्लाम के बारे में कोई जानकारी नहीं हे इसलिए इस तरह की गलत जानकरी पोस्ट मत करो
तुम्हे ये तो पता तक नहीं की हिन्दू कहते किसे हैं
पहले हिन्दू की परिभाषा जानो उसके बाद बात करना ओके । तुम जिस धर्म को मानते हो उसका कोई भी प्रमाण सरकार के पास भी नहीं हे और तुम फूले नहीं समाते की हम हिन्दू हैं ।
हिन्दू एक अरबी शब्द हे जिसका अर्थ हे काला यानि जब अरबी यहाँ आये तो वो यहाँ वालों को काला कहते थे यानी हिन्दू और तुम अपने आप को काला कहने पर खुश होते हो पहले अपने धर्म के बारे में ज्ञान बांटो समझे और जो तूने ये पोस्ट किया हे सब का सब गलत हे प्लीज इसे हटा देना ।
उन्होंने कहा, 'मेरी आरटीआई अर्जी पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से 31 जुलाई को भेजे गए जवाब में कहा गया कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) के पास अपेक्षित सूचना उपलब्ध नहीं है।'
गौर ने अपने आरटीआई आवेदन में सरकार से यह भी जानना चाहा था कि देश में किन आधारों पर किसी समुदाय को हिंदू माना जाता है और हिंदुओं को बहुसंख्यकों की तरह देखा जाता है। लेकिन इन सवालों पर यही जवाब दोहरा दिया गया कि अपेक्षित सूचना सीपीआईओ के पास उपलब्ध नहीं है।
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Karan GondMarch 22, 2017 at 1:49 AM
हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत और नेपाल में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।[1] विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।
यह वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।[2][3] [4]
इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नही है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।[5]

Karan GondMarch 22, 2017 at 1:50 AM
इतिहास[संपादित करें]
हिन्दू धर्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; हालाँकि इसके इतिहास के बारे में अनेक विद्वानों के अनेक मत हैं। हिंदू ज्योतिष शास्त्र में विद्यमान काल गणना के अनुसार सृष्टि के आरंभ की तिथि कई करोड़ वर्ष पहले की वर्णित है; संदर्भ हेतु - बहुप्रचलित ग्रेगरी कैलेण्डर के सन् २०१५ मे मार्च माह में प्रारंभ हुआ हिंदू नव वर्ष सृष्टि प्रारंभ से १,९५,५८,८ ५,११६ वाँ वर्ष था। वेदांग ज्योतिषानुसार[कृपया उद्धरण जोड़ें] इस आधार पर हिंदू धर्मावलंबी इस धर्म को उतना ही पुराना मानते हैं। वहीं आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों के आधार पर इस धर्म का इतिहास मात्र कुछ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। इन्हें खारिज करने हेतु कई चमत्कारी, सटीक साक्ष्य भी उपलब्ध हैं जो इस धर्म को प्राचीनतम धर्म साबित करते हैं उदाहरणार्थ जर्मनी में १९३९ में मिली नृसिंह की मूर्ति। कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से उसकी आयु ४०००० वर्ष ज्ञात हुई।[6]
जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।
आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण के अनुसार लगभग १७०० ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनके विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसके बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता के अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों के अलग हो जाने के बाद वैदिक धर्म मे काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ।
दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है।

Karan GondMarch 22, 2017 at 1:50 AM
भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार:
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
"हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र मे मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि। ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म के बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।
आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों ने विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। हिन्दू धर्म को सनातनधर्म या वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) मे जाकर हफ्त हिन्दु मे परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। चारौं वेदौंमे,पुराणौंमे, महाभारतमे, स्मृतियौंमे इस धर्मको हिन्दुधर्म नहिं कहा है, वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है |

Karan GondMarch 22, 2017 at 1:51 AM
मुख्य सिद्धान्त[संपादित करें]
हिंदू मंदिर, श्री लंका
हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे। जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया।
संक्षेप में, हिन्दुत्व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?-- गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नही है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।
हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु:
1. ईश्वर एक नाम अनेक.
2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
9. स्त्री आदरणीय है।
10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
14. आत्मा अजर-अमर है।
15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।

Karan GondMarch 22, 2017 at 1:52 AM
ब्रह्म
हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूप-शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्त चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नहीं की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है। प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते हैं। हिन्दू यह मानते हैं कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड मे गूंज रही है। ध्यान में गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है।

Karan GondMarch 22, 2017 at 1:53 AM
ईश्वर[संपादित करें]
ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है। अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मानव माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश मे रहता है। अर्थात जब माया के आइने में ब्रह्म की छाया पड़ती है, तो ब्रह्म का प्रतिबिम्ब हमें ईश्वर के रूप में दिखायी पड़ता है। ईश्वर अपनी इसी जादुई शक्ति "माया" से विश्व की सृष्टि करता है और उस पर शासन करता है। इस स्तिथी में हालाँकि ईश्वर एक नकारात्मक शक्ति के साथ है, लेकिन माया उसपर अपना कुप्रभाव नहीं डाल पाती है, जैसे एक जादूगर अपने ही जादू से अचंम्भित नहीं होता है। माया ईश्वर की दासी है, परन्तु हम जीवों की स्वामिनी है। वैसे तो ईश्वर रूपहीन है, पर माया की वजह से वो हमें कई देवताओं के रूप में प्रतीत हो सकता है। इसके विपरीत वैष्णव मतों और दर्शनों में माना जाता है कि ईश्वर और ब्रह्म में कोई फ़र्क नहीं है--और विष्णु (या कृष्ण) ही ईश्वर हैं। न्याय, वैषेशिक और योग दर्शनों के अनुसार ईश्वर एक परम और सर्वोच्च आत्मा है, जो चैतन्य से युक्त है और विश्व का सृष्टा और शासक है।
जो भी हो, बाकी बातें सभी हिन्दू मानते हैं : ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का कारण (सृष्टा) है। वो पूजा और उपासना का विषय है। वो पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है। वो राग-द्वेष से परे है, पर अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस दुनिया में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। वो विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम रखता है और जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सुख-दुख प्रदान करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर वो समय-समय पर धरती पर अवतार (जैसे कृष्ण) रूप ले कर आता है। ईश्वर के अन्य नाम हैं : परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान (जो हिन्दी मे सबसे ज़्यादा प्रचलित है)। इसी ईश्वर को मुसल्मान (अरबी में) अल्लाह, (फ़ारसी में) ख़ुदा, ईसाई (अंग्रेज़ी में) गॉड और यहूदी (इब्रानी में) याह्वेह कहते हैं।

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:26 AM
हिन्दू-धर्म - गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है।
लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित वर्णाश्रम रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नही है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।
हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु:
• 1. ईश्वर एक नाम अनेक.
• 2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
• 3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
• 4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
• 5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
• 6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
• 7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
• 8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
• 9. स्त्री आदरणीय है।
• 10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
• 11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
• 12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
• 13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
• 14. आत्मा अजर-अमर है।
• 15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
• 16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
• 17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
• 18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:27 AM
कुल मिलाकर हे मित्र तुम मानव धर्म का पालन कर सबके दुःख - सुख में साथ दे

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:45 AM
निम्ननलिखित प्रश्नोंि के आगे क्रमानुसार उत्तंर हैं
प्रश्नः1. इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
प्रश्नः2. यदि एक पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ करने की अनुमति है तो इस्लाम में स्त्री को एक समय में अधिक पति रखने की अनुमति क्यों नहीं है?
प्रश्नः3.‘‘इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?
प्रश्नः4. यह कैसे संभव है कि इस्लाम को शांति का धर्म माना जाए क्योंकि यह तो तलवार (युद्ध और रक्तपात) के द्वारा फैला है?
प्रश्नः5. अधिकांश मुसलमान रूढ़िवादी और आतंकवादी हैं?
प्रश्नः6.पशुओं को मारना एक क्रूरतापूर्ण कृत्य है तो फिर मुसलमान मांसाहारी भोजन क्यों पसन्द करते हैं?
प्रश्नः7. मुसलमान पशुओं को ज़िब्ह (हलाल) करते समय निदर्यतापूर्ण ढंग क्यों अपनाते हैं? अर्थात उन्हें यातना देकर धीरे-धीरे मारने का तरीकष, इस पर बहुत लोग आपत्ति करते हैं?
प्रश्नः8. विज्ञान हमें बताता है कि मनुष्य जो कुछ खाता है उसका प्रभाव उसकी प्रवृत्ति पर अवश्य पड़ता है, तो फिर इस्लाम अपने अनुयायियों को सामिष आहार की अनुमति क्यों देता है? यद्यपि पशुओं का मांस खाने के कारण मनुष्य हिंसक और क्रूर बन सकता है?
प्रश्नः9. यद्यपि इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है परन्तु मुसलमान काबे की पूजा क्यों करते हैं? और अपनी नमाज़ों के दौरान उसके सामने क्यों झुकते हैं?
प्रश्नः10. मक्का और मदीना के पवित्रा नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं है?
प्रश्नः11. इस्लाम में सुअर का मांस खाना क्यों वर्जित है?
प्रश्नः12. इस्लाम में शराब पीने की मनाही क्यों है?
प्रश्नः13. क्या कारण है कि इस्लाम में दो स्त्रीयों की गवाही एक पुरुष के समान ठहराई जाती है?
प्रश्नः14. इस्लामी कानून के अनुसार विरासत की धन-सम्पत्ति में स्त्री का हिस्सा पुरूष की अपेक्षा आधा क्यों है?
प्रश्नः15. क्या पवित्र कुरआन अल्लाह का कलाम (ईष वाक्य) है?
उत्तर: online book: “IS THE QURAN GOD’S WORD?” किया कुरआन ईश्वरीय ग्रन्थ है?
प्रश्नः16. आप आख़िरत अथवा मृत्योपरांत जीवन की सत्यता कैसे सिद्ध करेंगे?
प्रश्नः17. क्या कारण है कि मुसलमान विभिन्न समुदायों और विचाधाराओं में विभाजित हैं?
प्रश्नः18. सभी धर्म अपने अनुयायियों को अच्छे कामों की शिक्षा देते हैं तो फिर किसी व्यक्ति को इस्लाम का ही अनुकरण क्यों करना चाहिए? क्या वह किसी अन्य धर्म का अनुकरण नहीं कर सकता?
प्रश्नः19. यदि इस्लाम विश्व का श्रेष्ठ धर्म है तो फिर क्या कारण है कि बहुत से मुसलमान बेईमान और विश्वासघाती होते हैं। धोखेबाज़ी, घूसख़ोरी और नशीले पदार्थों के व्यापार जैसे घृणित कामों में लिप्त होते हैं।
प्रश्नः20. मुसलमान ग़ैर मुस्लिमों का अपमान करते हुए उन्हें ‘‘काफ़िर’’ क्यों कहते हैं?

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:49 AM
बहुपत्नी प्रथा
प्रश्नः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
उत्तरः बहुपत्नी प्रथा (Policamy)से आश्य विवाह की ऐसे व्यवस्था से है जिसके अनुसार एक व्यक्ति एक से अधिक पत्नियाँ रख सकता है। बहुपत्नी प्रथा के दो रूप हो सकते हैं। उसका एक रूप (Polygyny)है जिसके अनुसार एक पुरूष एक से अधिक स्त्रिायों से विवाह कर सकता है। जबकि दूसरा रूप (Polyandry) है जिसमें एक स्त्री एक ही समय में कई पुरूषों की पत्नी रह सकती है। इस्लाम में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की सीमित अनुमति है। परन्तु (Polyandry)अर्थात स्त्रियों द्वारा एक ही पुरूष में अनेक पति रखने की पूर्णातया मनाही है।
अब मैं इस प्रश्न की ओर आता हूँ कि इस्लाम में पुरूषों को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
पवित्र क़ुरआन विश्व का एकमात्र धर्मग्रंथ है जो केवल ‘‘एक विवाह करो’’ का आदेश देता है
सम्पूर्ण मानवजगत मे केवल पवित्र क़ुरआन ही एकमात्र धर्म ग्रंथ (ईश्वाक्य) है जिसमें यह वाक्य मौजूद हैः ‘‘केवल एक ही विवाह करो’’, अन्य कोई धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखने का आदेश देता हो। अन्य धर्मग्रंथों में चाहे वेदों में कोई हो, रामायण, महाभारत, गीता अथवा बाइबल या ज़बूर हो किसी में पुरूष के लिए पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है, इन समस्त ग्रंथों के अनुसार कोई पुरुष एक समय में जितनी स्त्रियों से चाहे विवाह कर सकता है, यह तो बाद की बात है जब हिन्दू पंडितों और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को सीमित करके केवल एक कर दिया।
हिन्दुओं के धार्मिक महापुरुष स्वयं उनके ग्रंथ के अनुसार एक समय में अनेक पत्नियाँ रखते थे। जैसे श्रीराम के पिता दशरथ जी की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। स्वंय श्री कृष्ण की अनेक पत्नियाँ थीं।
आरंभिक काल में ईसाईयों को इतनी पत्नियाँ रखने की अनुमति थी जितनी वे चाहें, क्योंकि बाइबल में पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है। यह तो आज से कुछ ही शताब्दियों पूर्व की बात है जब चर्च ने केवल एक पत्नी तक ही सीमित रहने का प्रावधान कर दिया था।

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:55 AM
यहूदी धर्म में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। ‘ज़बूर’ में बताया गया है कि हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की तीन पत्नियाँ थीं जबकि हज़रत सुलेमान (अलैहिस्सलाम) एक समय में सैंकड़ों पत्नियों के पति थे। यहूदियों में बहुपत्नी प्रथा ‘रब्बी ग्रश्म बिन यहूदा’ (960 ई. से 1030 ई.) तक प्रचलित रही। ग्रश्म ने इस प्रथा के विरुद्ध एक
धर्मादेश निकाला था। इस्लामी देशों में प्रवासी यहूदियों ने, यहूदी जो कि आम तौर से स्पेनी और उत्तरी अफ्ऱीकी यहूदियों के वंशज थे, 1950 ई. के अंतिम दशक तक यह प्रथा जारी रखी। यहाँ तक कि इस्राईल के बड़े रब्बी (सर्वोच्चय धर्मगुरू) ने एक धार्मिक कानून द्वारा विश्वभर के यहूदियों के लिए बहुपत्नी प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
रोचक तथ्य
भारत में 1975 ई. की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात अधिक था। 1975 ई. में Commitee of the Status of Wemen in Islam (इस्लाम में महिलाओं की प्रतिष्ठा के विषय में गठित समिति) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के पृष्ठ 66-67 पर यह बताया गया है कि 1951 ई. और 1961 ई. के मध्यांतर में 5.6 प्रतिशत हिन्दू बहुपत्नी धारक थे, जबकि इस अवधि में मुसलमानों की 4.31 प्रतिशत लोगों की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। भारतीय संविधान के अनुसार केवल मुसलमानों को ही एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। गै़र मुस्लिमों के लिए एक से अधिक पत्नी रखने के वैधानिक प्रतिबन्ध के बावजूद मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात
अधिक था। इससे पूर्व हिन्दू पुरूषों पर पत्नियों की संख्या के विषय में कोई प्रतिबन्ध नहीं था। 1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस समय भी, भारतीय कानून के अनुसार किसी भी हिन्दू पुरूष के लिए एक से अधिक पत्नी रखना कषनूनन वर्जित है। परन्तु हिन्दू
धर्मगं्रथों के अनुसार आज भी उन पर ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
आईये अब हम यह विश्लेषण करते हैं कि अंततः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों दी गई है?
पवित्र क़ुरआन पत्नियों की संख्या सीमित करता है जैसा कि मैंने पहले बताया कि पवित्र क़ुरआन ही वह एकमात्र धार्मिक ग्रंथ है जिसमें कहा गया हैः
‘‘केवल एक से विवाह करो।’’

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:55 AM
इस आदेश की सम्पूर्ण व्याख्या पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में मौजूद है जो ‘‘सूरह अन्-निसा’’ की हैः
‘‘यदि तुम को भय हो कि तुम अनाथों के साथ न्याय नहीं कर सकते तो जो अन्य स्त्रियाँ तुम्हें पसन्द आएं उनमें दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो, परन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि उनके साथ तुम न्याय न कर सकोगे तो फिर एक ही पत्नी करो, अथवा उन स्त्रियों को दामपत्य में लाओ जो तुम्हारे अधिकार में आती हैं। यह अन्याय से बचने के लिए भलाई के अधिक निकट है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4 : 3 )
पवित्र क़ुरआन के अवतरण से पूर्व पत्नियों की संख्या की कोई सीमा निधारित नहीं थी। अतः पुरूषों की एक समय में अनेक पत्नियाँ होती थीं। कभी-कभी यह संख्या सैंकड़ों तक पहुँच जाती थी। इस्लाम ने चार पत्नियों की सीमा निधारित कर दी। इस्लाम किसी पुरूष को दो, तीन अथवा चार शादियाँ करने की अनुमति तो देता है, किन्तु न्याय करने की शर्त के साथ।
इसी सूरह में पवित्र क़ुरआन स्पष्ट आदेश दे रहा हैः
‘‘पत्नियों के बीची पूरा-पूरा न्याय करना तुम्हारे वश में नहीं, तुम चाहो भी तो इस पर कषदिर (समर्थ) नहीं हो सकते। अतः (अल्लाह के कानून का मन्तव्य पूरा करने के लिए यह पर्याप्त है कि) एक पत्नी की ओर इस प्रकार न झुक जाओ कि दूसरी को अधर में लटकता छोड़ दो। यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और अल्लाह से डरते रहो तो अल्लाह दुर्गुणों की उपेक्षा करने (टाल देने) वाला और दया करने वाला है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4:129)
अतः बहु-विवाह कोई विधान नहीं केवल एक रियायत (छूट) है, बहुत से लोग इस ग़लतफ़हमी का शिकार हैं कि मुसलमानों के लिये एक से अधिक पत्नियाँ रखना अनिवार्य है।
विस्तृत परिप्रेक्ष में अम्र (निर्देशित कर्म Do’s) और नवाही (निषिद्ध कर्म Dont’s) के पाँच स्तर हैंः
कः फ़र्ज़ (कर्तव्य) अथवा अनिवार्य कर्म।
खः मुस्तहब अर्थात ऐसा कार्य जिसे करने की प्रेरणा दी गई हो, उसे करने को प्रोत्साहित किया जाता हो किन्तु वह कार्य अनिवार्य न हो।
गः मुबाह (उचित, जायज़ कर्म) जिसे करने की अनुमति हो।
घः मकरूह (अप्रिय कर्म) अर्थात जिस कार्य का करना अच्छा न माना जाता हो और जिस के करने को हतोत्साहित किया गया हो।
ङः हराम (वर्जित कर्म) अर्थात ऐसा कार्य जिसकी अनुमति न हो, जिसको करने की स्पष्ट मनाही हो।
बहुविवाह का मुद्दा उपरोक्त पाँचों स्तरों के मध्यस्तर अर्थात ‘‘मुबाह’’ के अंर्तगत आता है, अर्थात वह कार्य जिसकी अनुमति है। यह नहीं कहा जा सकता कि वह मुसलमान जिसकी दो, तीन अथवा चार पत्नियाँ हों, वह एक पत्नी वाले मुसलमान से अच्छा है।
स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है प्राकृतिक रूप से स्त्रियाँ और पुरूष लगभग समान अनुपात से उत्पन्न होते हैं। एक लड़की में जन्म के समय से ही लड़कों की अपेक्षा अधिक प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)होती है और वह रोगाणुओं से अपना बचाव लड़कों की अपेक्षा अधिक सुगमता से कर सकती है, यही कारण है कि बालमृत्यु में लड़कों की दर अधिक होती है। संक्षेप में यह कि स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है और किसी भी समय में अध्ययन करने पर हमें स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक ही मिलती है।
कन्या गर्भपात तथा कन्याओं की मृत्यु के कारण भारत में पुरूषों की संख्या स्त्रियों से ज़्यादा है
अपने कुछ पड़ौसी देशों सहित, भारत की गणना विश्व के उन कुछ देशों में की जाती है जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरूषों से कम है। इसका कारण यह है कि भारत में अधिकांश कन्याओं को शैशव काल में ही मार दिया जाता है। जबकि इस देश में प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक लड़कियों की भ्रुणहत्या अर्थात ग्रर्भपात द्वारा उनको इस संसार में आँख खोलने से पहले ही नष्ट कर दिया जाता है। जैसे ही यह पता चलता है कि अमुक गर्भ से कन्या का जन्म होगा, तो गर्भपात कर दिया जाता है, यदि भारत में यह क्रूरता बन्द कर दी जाए तो यहाँ भी स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक होगी।

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:56 AM
(आज स्थिति यह है कि भारतीय समाज विशेष रूप से हिन्दू समाज में कन्याभ्रुण हत्या का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। अल्ट्रा साउण्ड तकनीक द्वारा भ्रुण के लिंग का पता चलते ही गर्भ्रपात कराने का चलन चर्म पर पहुँच गया है और अब यह स्थिति है कि पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में स्त्रियों की इतनी कमी हो गई है कि लाखों पुरूष कुंवारे रह गए हैं। कुछ लोग अन्य राज्यों से पत्नियाँ ख़रीद कर लाने पर विवश हैं। इसका मुख्य कारण हिन्दू समाज में भयंकर दहेज प्रथा को बताया जाता है) अनुवादक

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:56 AM
विश्व जनसंख्या में स्त्रियाँ अधिक हैं
अमरीका में स्त्रियों की संख्या कुल आबादी में पुरूषों से 87 लाख
अधिक है। केवल न्यूयार्क में स्त्रियाँ पुरूषों से लगभग 10 लाख अधिक हैं, जबकि न्यूयार्क में पुरूषों की एक तिहाई संख्या समलैंगिक है। पूरे अमरीका में कुल मिलाकर 2.50 करोड़ से अधिक समलैंगिक (Gays)मौजूद हैं अर्थात ये पुरूष स्त्रियों से विवाह नहीं करना चाहते। ब्रिटेन में स्त्रियों की संख्या पुरूषों से 40 लाख के लगभग अधिक है। इसी प्रकार जर्मनी में स्त्रियाँ पुरूषों से 50 लाख अधिक हैं। रूस में स्त्रियाँ पुरूषों से 90 लाख अधिक हैं। यह तो अल्लाह ही बेहतर जानता है कि विश्व में स्त्रियों की संख्या पुरूषों की अपेक्षा कितनी अधिक है।
प्रत्येक पुरूष को केवल एक पत्नी तक सीमित रखना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं
यदि प्रत्येक पुरूष को केवल एक पत्नी रखने की अनुमति हो तो केवल अमरीका ही में लगभग 3 करोड़ लड़कियाँ बिन ब्याही रह जाएंगी क्योंकि वहाँ लगभग ढाई करोड़ पुरूष समलैंगिक हैं। ब्रिटेन में 40 लाख, जर्मनी में 50 लाख और रूस में 90 लाख स्त्रियाँ पतियों से वंचित रहेंगी।
मान लीजिए, आपकी या मेरी बहन अविवाहित है और अमरीकी नागरिक है तो उसके सामने दो ही रास्ते होंगे कि वह या तो किसी विवाहित पुरूष से शादी करे अथवा अविवाहित रहकर सार्वजनिक सम्पत्ति बन जाए, अन्य कोई विकल्प नहीं। समझदार और बुद्धिमान लोग पहले विकल्प को तरजीह देंगे।
अधिकांश स्त्रियाँ यह नहीं चाहेंगी कि उनके पति की एक और पत्नी भी हो, और जब इस्लाम की बात सामने आए और पुरूष के लिए इससे शादी करना (इस्लाम को बचाने हेतु) अनिवार्य हो जाए तो एक साहिबे ईमान विवाहित मुसलमान महिला यह निजी कष्ट सहन करके अपने पति को दूसरी शादी की अनुमति दे सकती है ताकि अपनी मुसलमान बहन को ‘‘सार्वजनिक सम्पत्ति’’ बनने की बहुत बड़ी हानि से बचा सके।
‘‘सार्वजनिक सम्पत्ति’’ बनने से अच्छा है कि विवाहित पुरूष से शादी कर ली जाए
पश्चिमी समाज में यह आम बात है कि पुरूष एक शादी करने के बावजूद (अपनी पत्नी के अतिरिक्त) दूसरी औरतों जैसे नौकरानियों (सेक्रेट्रीज़ और सहकर्मी महिलाओं) आदि से पति-पत्नि वाले सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो एक स्त्री के जीवन को लज्जाजनक और असुरक्षित बना देती है, क्या यह अत्यंत खेद की बात नहीं कि वही समाज जो पुरूष को केवल एक ही पत्नी पर प्रतिबंधित करता है और दूसरी पत्नी को सिरे से स्वीकार नहीं करता, यद्यपि दूसरी स्त्री को वैध पत्नी होने के कारण समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, उसका सम्मान समान रूप से किया जाता है और वह एक सुरक्षित जीवन बिता सकती है।
अतः वे स्त्रियाँ जिन्हें किसी कारणवश पति नहीं मिल पाता। वे केवल दो ही विकल्प अपनाने पर विवश होती हैं, किसी विवाहित पुरूष से दाम्पत्य जोड़ लें अथवा ‘‘सार्वजनिक सम्पति’’ बन जाएं। इस्लाम अच्छाई के आधार पर स्त्री को प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिये पहले विकल्प की अनुमति देता है। इसके औचित्य में अनेक तर्क मौजूद हैं। परन्तु इस का प्रमुख उद्देश्य नारी की पवित्रता और सम्मान की रक्षा करना है।

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:57 AM
एक समय में एक से अधिक पति (Policamy)
प्रश्नः यदि एक पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ करने की अनुमति है तो इस्लाम में स्त्री को एक समय में अधिक पति रखने की अनुमति क्यों नहीं है?
उत्तरः अनेकों लोग जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं, यह पूछते हैं कि आख़िर इस्लाम मे पुरूषों के लिए ‘बहुपत्नी’ की अनुमति है जबकि स्त्रियों के लिए यह वर्जित है, इसका बौद्धिक तर्क क्या है?….क्योंकि उनके विचार में यह स्त्रि
का ‘‘अधिकार’’ है जिससे उसे वंचित किया गया है आर्थात उसका अधिकार हनन किया गया है।
पहले तो मैं आदरपूर्वक यह कहूंगा कि इस्लाम का आधार न्याय और समता पर है। अल्लाह ने पुरूष और स्त्री की समान रचना की है किन्तु विभिन्न योग्यताओं के साथ और विभिन्न ज़िम्मेदारियों के निर्वाहन के लिए। स्त्री और पुरूष न केवल शारीरिक रूप से एक दूजे से भिन्न हैं वरन् मनोवैज्ञानिक रूप से भी उनमें स्पष्ट अंतर है। इसी प्रकार उनकी भूमिका और दायित्वों में भी भिन्नता है। इस्लाम में स्त्री-पुरूष (एक दूसरे के) बराबर हैं परन्तु परस्पर समरूप (Identical)नहीं है।
पवित्र क़ुरआन की पवित्र सूरह ‘‘अन्-निसा’’ की 22वीं और 24वीं आयतों में उन स्त्रियों की सूची दी गई है जिनसे मुसलमान विवाह नहीं कर सकते। 24वीं पवित्र आयत में यह भी बताया गया है कि उन स्त्रियों से भी विवाह करने की अनुमति नहीं है जो विवाहित हो।
निम्ननिखित कारणों से यह सिद्ध किया गया है कि इस्लाम में स्त्री के लिये एक समय में एक से अधिक पति रखना क्यों वर्जित किया गया है।
1. यदि किसी व्यक्ति के एक से अधिक पत्नियाँ हों तो उनसे उत्पन्न संतानों के माता-पिता की पहचान सहज और संभव है अर्थात ऐसे बच्चों के माता-पिता के विषय में किसी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता और समाज में उनकी प्रतिष्ठा स्थापित रहती है। इसके विपरीत यदि किसी स्त्री के एक से अधिक पति हों तो ऐसी संतानों की माता का पता तो चल जाएगा लेकिन पिता का निर्धारण कठिन होगा। इस्लाम की सामाजिक व्यवस्था में माता-पिता की पहचान को अत्याधिक महत्व दिया गया है।
मनोविज्ञान शास्त्रियों का कहना है कि वे बच्चे जिन्हें माता पिता का ज्ञान नहीं, विशेष रूप से जिन्हें अपने पिता का नाम न मालूम हो वे अत्याघिक मानसिक उत्पीड़न और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। आम तौर पर उनका बचपन तनावग्रस्त रहता है। यही कारण है कि वेश्याओं के बच्चों का जीवन अत्यंत दुख और पीड़ा में रहता है। ऐसी कई पतियों की पत्नी से उत्पन्न बच्चे को जब स्कूल में भर्ती कराया जाता है और उस समय जब उसकी माता से बच्चे के बाप का नाम पूछा जाता है तो उसे दो अथवा अधिक नाम बताने पड़ेंगे।
मुझे उस आधुनिक विज्ञान की जानकारी है जिसके द्वारा ‘‘जेनिटिक टेस्ट’’ या DNA जाँच से बच्चे के माता-पिता की पहचान की जा सकती है, अतः संभव है कि अतीत का यह प्रश्न वर्तमान युग में लागू न हो।
2. स्त्री की अपेक्षा पुरूष में एक से अधिक पत्नी का रूझान अधिक है।
3. सामाजिक जीवन के दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक पुरूष के लिए कई पत्नियों के होते हुए भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करना सहज होता है। यदि ऐसी स्थिति का सामना किसी स्त्री को करना पड़े अर्थात उसके कई पति हों तो उसके लिये पत्नी की ज़िम्मेदारिया कुशलता पूर्वक निभाना कदापि सम्भव नहीं होगा। अपने मासिक धर्म के चक्र में विभिन्न चरणों के दौरान एक स्त्री के व्यवहार और मनोदशा में अनेक परिवर्तन आते हैं।
4. किसी स्त्री के एक से अधिक पति होने का मतलब यह होगा कि उसके शारीरिक सहभागी (Sexual Partners)भी अधिक होंगे। अतः उसको किसी गुप्तरोग से ग्रस्त हो जाने की आशंका अधिक होगी चाहे वह समस्त पुरूष उसी एक स्त्री तक ही सीमित क्यों न हों। इसके विपरीत यदि किसी पुरूष की अनेक पत्नियाँ हों और वह अपनी सभी पत्नियों तक ही सीमित रहे तो ऐसी आशंका नहीं के बराबर है।
उपरौक्त तर्क और दलीलें केवल वह हैं जिनसे सहज में समझाया जा सकता है। निश्चय ही जब अल्लाह तआला ने स्त्री के लिए एक से
अधिक पति रखना वर्जित किया है तो इसमें मानव जाति की अच्छाई के अनेकों उद्देश्य और प्रयोजन निहित होंगे।

Karan GondMarch 22, 2017 at 2:59 AM
मुसलमान औरतों के लिये हिजाब (पर्दा)
प्रश्नः ‘‘इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?
उत्तरः विधर्मी मीडिया विशेष रूप से इस्लाम में स्त्रियां को लेकर समय समय पर आपत्ति और आलोचना करता रहता है। हिजाब अथवा मुसलमान स्त्रियों के वस्त्रों (बुर्का) इत्यादि को अधिकांश ग़ैर मुस्लिम इस्लामी कानून के तहत महिलाओं का ‘अधिकार हनन’ ठहराते हैं। इससे पहले कि हम इस्लाम में स्त्रियों के पर्दे पर चर्चा करें, यह अच्छा होगा कि इस्लाम के उदय से पूर्व अन्य संस्कृतियों में नारी जाति की स्थिति और स्थान पर एक नज़र डाल ली जाए।
अतीत में स्त्रियों को केवल शारीरिक वासनापूर्ति का साधन समझा जाता था और उनका अपमान किया जाता था। निम्नलिखित उदाहरणों से यह तथ्य उजागर होता है कि इस्लाम के आगमन से पूर्व की संस्कृतियों और समाजों में स्त्रियों का स्थान अत्यंत नीचा था और उन्हें समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था।
बाबुल (बेबिलोन) संस्कृति में
प्राचीन बेबिलोन संस्कृति में नारीजाति को बुरी तरह अपमानित किया गया था। उन्हें समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। मिसाल के तौर पर यदि कोई पुरुष किसी की हत्या कर देता था तो मृत्यु दण्ड उसकी पत्नी को मिलता था।
यूनानी (ग्रीक) संस्कृति में
प्राचीन काल में यूनानी संस्कृति को सबसे महान और श्रेष्ठ माना जाता है। इसी ‘‘श्रेष्ठ’’ सांस्कृतिक व्यवस्था में स्त्रियों को किसी प्रकार का अधिकार प्राप्त नहीं था। प्राचीन यूनानी समाज में स्त्रियों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। यूनानी पौराणिक साहित्य में ‘‘पिंडौरा’’ नामक एक काल्पनिक महिला का उल्लेख मिलता है जो इस संसार में मानवजाति की समस्त समस्याओं और परेशानियों का प्रमुख कारण थी, यूनानियों के अनुसार नारी जाति मनुष्यता से नीचे की प्राणी थी और उसका स्थान पुरूषों की अपेक्षा तुच्छतम था, यद्यपि यूनानी संस्कृति में स्त्रियों के शील और लाज का बहुत महत्व था तथा उनका सम्मान भी किया जाता था, परन्तु बाद के युग में यूनानियों ने पुरूषों के अहंकार और वासना द्वारा अपने समाज में स्त्रियों की जो दुर्दशा की वह यूनानी संस्कृति के इतिहास में देखी जा सकती है। पूरे यूनानी समाज में देह व्यापार समान्य बात होकर रह गई थी।
रोमन संस्कृति में
जब रोमन संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष पर थी तो वहाँ पुरूषों को यहाँ तक स्वतंत्रता प्राप्त थी कि पत्नियों की हत्या तक करने का अधिकार था। देह व्यापार और व्यभिचार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था।
प्राचीन मिस्री संस्कृति में
मिस्र की प्राचीन संस्कृति को विश्व की आदिम संस्कृतियों में सबसे उन्नत संस्कृति माना जाता है। वहाँ स्त्रियों को शैतान का प्रतीक माना जाता था।
इस्लाम से पूर्व अरब में
अरब में इस्लाम के प्रकाशोदय से पूर्व स्त्रियों को अत्यंत हेय और तिरस्कृत समझा जाता था। आम तौर पर अरब समाज में यह कुप्रथा प्रचलित थी कि यदि किसी के घर कन्या का जन्म होता तो उसे जीवित दफ़न कर दिया जाता था। इस्लाम के आगमन से पूर्व अरब संस्कृति अनेकों प्रकार की बुराइयों से बुरी तरह दूषित हो चुकी थी।
इस्लाम की रौशनी
इस्लाम ने नारी जाती को समाज में ऊँचा स्थान दिया, इस्लाम ने स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार प्रदान किये और मुसलमानों को उनकी रक्षा करने का निर्देश दिया है। इस्लाम ने आज से 1400 वर्ष पूर्व स्त्रियों को उनके उचित अधिकारों के निर्धारण का क्रांतिकारी कष्दम उठाया जो विश्व के सांकृतिक और समाजिक इतिहास की सर्वप्रथम घटना है। इस्लाम ने जो श्रेष्ठ स्थान स्त्रियों को दिया है उसके लिये मुसलमान स्त्रियों से अपेक्षा भी करता है कि वे इन अधिकारों की सुरक्षा भी करेंगी।
पुरूषों के लिए हिजाब (पर्दा)
आम तौर से लोग स्त्रियों के हिजाब की बात करते हैं परन्तु पवित्र क़ुरआन में स्त्रियों के हिजाब से पहले पुरूषों के लिये हिजाब की चर्चा की गई है। (हिजाब शब्द का अर्थ है शर्म, लज्जा, आड़, पर्दा, इसका अभिप्राय केवल स्त्रियों के चेहरे अथवा शरीर ढांकने वाले वस्त्र, चादर अथवा बुरका इत्यादि से ही नहीं है।)

Karan GondMarch 22, 2017 at 3:00 AM
पवित्र क़ुरआन की सूरह ‘अन्-नूर’ में पुरूषों के हिजाब की इस प्रकार चर्चा की गई हैः
‘‘हे नबी! ईमान रखने वालों (मुसलमानों) से कहो कि अपनी नज़रें बचाकर रखें और अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें। यह उनके लिए ज़्यादा पाकीज़ा तरीका है, जो कुछ वे करते हैं अल्लाह उससे बाख़बर रहता है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:30)
इस्लामी शिक्षा में प्रत्येक मुसलमान को निर्देश दिया गया है कि जब कोई पुरूष किसी स्त्री को देख ले तो संभवतः उसके मन में किसी प्रकार का बुरा विचार आ जाए अतः उसे चाहिए कि वह तुरन्त नज़रें नीची कर ले।
स्त्रियों के लिए हिजाब
पवित्र क़ुरआन में सूरह ‘अन्-नूर’ में आदेश दिया गया हैः
‘‘हे नबी! मोमिन औरतों से कह दो, अपनी नज़रें बचा कर रखें और अपनी शर्मगाहों की सुरक्षा करें, और अपना बनाव-श्रंगार न दिखाएं, सिवाय इसके कि वह स्वतः प्रकट हो जाए और अपने वक्ष पर अपनी ओढ़नियों के आँचल डाले रहें, वे अपना बनाव-श्रंगार न दिखांए, परन्तु उन लोगों के सामने पति, पिता, पतियों के पिता, पुत्र…।’’ (पवित्र क़ुरआन, 24:31)
हिजाब की 6 कसौटियाँ
पवित्र क़ुरआनके अनुसार हिजाब के लिए 6 बुनियादी कसौटियाँ अथवा शर्तें लागू की गई हैं।
1. सीमाएँ (Extent):प्रथम कसोटी तो यह है कि शरीर का कितना भाग (अनिवार्य) ढका होना चाहिए। पुरूषों और स्त्रियों के लिये यह स्थिति भिन्न है। पुरूषों के लिए अनिवार्य है कि वे नाभी से लेकर घुटनों तक अपना शरीर ढांक कर रखें जबकि स्त्रियों के लिए चेहरे के सिवाए समस्त शरीर को और हाथों को कलाईयों तक ढांकने का आदेश है। यदि वे चाहें तो चेहरा और हाथ भी ढांक सकती हैं। कुछ उलेमा का कहना है कि हाथ और चेहरा शरीर का वह अंग है जिनको ढांकना स्त्रियों के लिये अनिवार्य है अर्थात स्त्रियों के हिजाब का हिस्सा है और यही कथन उत्तम है। शेष पाँचों शर्तें स्त्रियों और पुरूषों के लिए समान हैं।
2. धारण किए गये वस्त्र ढीले-ढाले हों, जिससे अंग प्रदर्शन न हो (मतलब यह कि कपड़े तंग, कसे हुए अथवा ‘‘फ़िटिंग’’ वाले न हों।
3. पहने हुए वस्त्र पारदर्शी न हों जिनके आर पार दिखाई देता हो।
4. पहने गए वस्त्र इतने शोख़, चटक और भड़कदार न हों जो स्त्रियों को पुरूषों और पुरूषों को स्त्रियों की ओर आकर्षित करते हों।
5. पहने गए वस्त्रों का स्त्रियों और पुरूषों से भिन्न प्रकार का होना अनिवार्य है अर्थात यदि पुरूष ने वस्त्र धारण किये हैं तो वे पुरूषों के समान ही हों, स्त्रियों के वस्त्र स्त्रियों जैसे ही हों और उन पर पुरूषों के वस्त्रों का प्रभाव न दिखाई दे। (जैसे आजकल पश्चिम की नकल में स्त्रियाँ पैंट-टीशर्ट इत्यादि धारण करती हैं। इस्लाम में इसकी सख़्त मनाही है, और मुसलमान स्त्रियों के लिए इस प्रकार के वस्त्र पहनना हराम है।
6. पहने गए वस्त्र ऐसे हों कि जिनमें ‘काफ़िरों’ की समानता न हो। अर्थात ऐसे कपड़े न पहने जाएं जिनसे (काफ़िरों के किसी समूह) की कोई विशेष पहचान सम्बद्ध हो। अथवा कपड़ों पर कुछ ऐसे प्रतीक चिन्ह बने हों जो काफ़िरों के धर्मों को चिन्हित करते हों।
हिजाब में पर्दें के अतिरिक्त कर्म और
आचरण भी शामिल है
लिबास में उपरौक्त 6 शर्तों के अतिरिक्त सम्पूर्ण ‘हिजाब’ में पूरी नैतिकता, आचरण, रवैया और हिजाब करने वाले की नियत भी शामिल है। यदि कोई व्यक्ति केवल शर्तों के अनुसार वस्त्र धारण करता हे तो वह हिजाब के आदेश पर सीमित रूप से ही अमल कर रहा होगा। लिबास के हिजाब के साथ ‘आँखों का हिजाब, दिल का हिजाब, नियत और अमल का हिजाब भी आवश्यक है। इस (हिजाब) में किसी व्यक्ति का चलना, बोलना और आचरण तथा व्यवहार सभी कुछ शामिल है।
हिजाब स्त्रियों को छेड़छाड़ से बचाता है
स्त्रियों के लिये हिजाब क्यों अनिवार्य किया गया है? इसका एक कारण पवित्र क़ुरआन के सूरह ‘‘अहज़ाब’’ में इस प्रकार बताया गया हैः
‘‘हे नबी! अपनी पत्नियों और बेटियों और ईमान रखने वाले (मुसलमानों) की स्त्रियों से कह दो कि अपनी चादरों के पल्लू लटका लिया करें, यह मुनासिब तरीका है ताकि वे पहचान ली जाएं, और न सताई जाएं। अल्लाह ग़फूर व रहीम (क्षमा करने वाला और दयावान) है। (पवित्र क़ुरआन , 33:59)
पवित्र क़ुरआन की इस आयत से यह स्पष्ट है कि स्त्रियों के लिये पर्दा इस कारण अनिवार्य किया गया ताकि वे सम्मानित ढंग से पहचान ली जाएं और छेड़छाड़ से भी सुरक्षित रह सकें।

Karan GondMarch 22, 2017 at 3:01 AM
जुड़वाँ बहनों की मिसाल
‘‘मान लीजिए कि दो जुड़वाँ बहनें हैं, जो समान रूप से सुन्दर भी हैं। उनमें एक ने पूर्णरूप से इस्लामी हिजाब किया हुआ है, उसका सारा शरीर (चादर अथवा बुरके से) ढका हुआ है। दूसरी जुड़वाँ बहन ने पश्चिमी वस्त्र धारण किये हुए हैं, अर्थात मिनी स्कर्ट अथवा शाटर्स इत्यादि जो पश्चिम में प्रचलित सामान्य परिधान है। अब मान लीजिए कि गली के नुक्कड़ पर कोई आवारा, लुच्चा लफ़ंगा या बदमाश बैठा है, जो आते जाते लड़कियों को छेड़ता है, ख़ास तौर पर युवा लड़कियों को। अब आप बताईए कि वह पहले किसे तंग करेगा? इस्लामी हिजाब वाली लड़की को या पश्चिमी वस्त्रों वाली लड़की को?’’
ज़ाहिर सी बात है कि उसका पहला लक्ष्य वही लड़की होगी जो पश्चिमी फै़शन के कपड़ों में घर से निकली है। इस प्रकार के आधुनिक वस्त्र पुरूषों के लिए प्रत्यक्ष निमंत्रण होते हैं। अतः यह सिद्ध हुआ कि पवित्र कुरआन ने बिल्कुल सही फ़रमाया है कि ‘‘हिजाब लड़कियों को छेड़छाड़ इत्यादि से बचाता है।’’
दुष्कर्म का दण्ड, मृत्यु
इस्लामी शरीअत के अनुसार यदि किसी व्यक्ति पर किसी विवाहित स्त्री के साथ दुष्कर्म (शारीरिक सम्बन्ध) का अपराध सिद्ध हो जाए तो उसके लिए मृत्युदण्ड का प्रावधान है। बहुतों को इस ‘‘क्रूर दण्ड व्यवस्था’’ पर आश्चर्य है। कुछ लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि इस्लाम एक निर्दयी और क्रूर धर्म है, नऊजुबिल्लाह (ईश्वर अपनी शरण में रखे) मैंने सैंकड़ो ग़ैर मुस्लिम पुरूषों से यह सादा सा प्रश्न किया कि ‘‘मान लें कि ईश्वर न करे, आपकी अपनी बहन, बेटी या माँ के साथ कोई दुष्कर्म करता है और उसे उसके अपराध का दण्ड देने के लिए आपके सामने लाया जाता है तो आप क्या करेंगे?’’ उन सभी का यह उत्तर था कि ‘‘हम उसे मार डालेंगे।’’ कुछ ने तो यहाँ तक कहा, ‘‘हम उसे यातनाएं देते रहेंगे, यहाँ तक कि वह मर जाए।’’ तब मैंने उनसे पूछा, ‘‘यदि कोई व्यक्ति आपकी माँ, बहन, बेटी की इज़्ज़त लूट ले तो आप उसकी हत्या करने को तैयार हैं, परन्तु यही दुर्घटना किसी अन्य की माँ, बहन, बेटी के साथ घटी हो तो उसके लिए मृत्युदण्ड प्रस्तावित करना क्रूरता और निर्दयता कैसे हो सकती है? यह दोहरा मानदण्ड क्यों है?’’
स्त्रियों का स्तर ऊँचा करने का
पश्चिमी दावा निराधार है
नारी जाति की स्वतंत्रता के विषय में पश्चिमी जगत की दावेदारी एक ऐसा आडंबर है जो स्त्री के शारीरिक उपभोग, आत्मा का हनन तथा स्त्री को प्रतिष्ठा और सम्मान से वंचित करने के लिए रचा गया है। पश्चिमी समाज का दावा है कि उसने स्त्री को प्रतिष्ठा प्रदान की है, वास्तविकता इसके विपरीत है। वहाँ स्त्री को ‘‘आज़ादी’’ के नाम पर बुरी तरह अपमानित किया गया है। उसे ‘‘मिस्ट्रेस’’ (हर प्रकार की सेवा करने वाली दासी) तथा ‘‘सोसाइटी बटरफ़्लाई’’ बनाकर वासना के पुजारियों तथा देह व्यापारियों का खिलौना बना दिया गया है। यही वे लोग हैं जो ‘‘आर्ट’’ और ‘‘कल्चर’’ के पर्दों में छिपकर अपना करोबार चमका रहे हैं।
अमरीका मे बलात्कार की दर सर्वाधिक है

Karan GondMarch 22, 2017 at 3:01 AM
संयुक्त राज्य अमरीका (U.S.A.)को विश्व का सबसे अधिक प्रगतिशील देश समझा जाता है। परन्तु यही वह महान देश है जहाँ बलात्कार की घटनाएं पूरे संसार की अपेक्षा सबसे अधिक होती हैं। एफ़.बी.आई की रिपोर्ट के अनुसार 1990 ई. में केवल अमरीका में प्रति दिन औसतन 1756 बलात्कार की घटनाएं हुईं। उसके बाद की रिपोर्टस में (वर्ष नहीं लिखा) प्रतिदिन 1900 बलात्कार काण्ड दर्ज हुए। संभवतः यह आंकड़े 1992, 1993 ई. के हों और यह भी संभव है कि इसके बाद अमरीकी पुरूष बलात्कार के बारे में और ज़्यादा ‘‘बहादुर’’ हो गए हों।
‘‘वास्तव में अमरीकी समाज में देह व्यापार को कषनूनी दर्जा हासिल है। वहाँ की वेश्याएं सरकार को विधिवत् टेक्स देती हैं। अमरीकी कानून में ‘बलात्कार’ ऐसे अपराध को कहा जाता है जिसमें शारीरिक सम्बन्ध में एक पक्ष (स्त्री अथवा पुरूष) की सहमति न हो। यही कारण है कि अमरीका में अविवाहित जोड़ों की संख्या लाखों में है जबकि स्वेच्छा से व्याभिचार अपराध नहीं माना जाता। अर्थात इस प्रकार के स्वेच्छाचार और व्यभिचार को भी बलात् दुष्कर्म की श्रेणी में लाया जाए तो केवल अमरीका में ही लाखों स्त्री-पुरूष ‘‘ज़िना’’ जैसे महापाप में संलग्न हैं।’’ (अनुवादक)
ज़रा कल्पना कीजिए कि अमरीका में इस्लामी हिजाब की पाबन्दी की जाती है जिसके अनुसार यदि किसी पुरूष की दृष्टि किसी परस्त्री पर पड़ जाए तो वह तुरंत आँखें झुका ले। प्रत्येक स्त्री पूरी तरह से इस्लामी हिजाब करके घर से निकले। फिर यह भी हो कि यदि कोई पुरूष बलात्कार का दोषी पाया जाए तो उसे मृत्युदण्ड दिया जाए, मैं आपसे पूछता हूँ कि ऐसे हालात में अमरीका में बलात्कार की दर बढ़ेगी, सामान्य रहेगी अथवा घटेगी?
इस्लीमी शरीअत के लागू होने से बलात्कार घटेंगे
यह स्वाभाविक सी बात है कि जब इस्लामी शरीअत का कानून लागू होगा तो उसके सकारात्मक परिणाम भी शीध्र ही सामने आने लगेंगे। यदि इस्लामी कानून विश्व के किसी भाग में भी लागू हो जाए, चाहे अमरीका हो, अथवा यूरोप, मानव समाज को राहत की साँस मिलेगी। हिजाब स्त्री के सम्मान और प्रतिष्ठा को कम नहीं करता वरन् इससे तो स्त्री का सम्मान बढ़ता है। पर्दा महिलाओं की इज़्ज़त और नारित्व की सुरक्षा करता है।
‘‘हमारे देश भारत में प्रगति और ज्ञान के विकास के नाम पर समाज में फै़शन, नग्नता और स्वेच्छाचार बढ़ा है, पश्चिमी संस्कृति का प्रसार टी.वी और सिनेमा आदि के प्रभाव से जितनी नग्नता और स्वच्छन्दता बढ़ी है उससे न केवल हिन्दू समाज का संभ्रांत वर्ग बल्कि मुसलमानों का भी एक पढ़ा लिखा ख़ुशहाल तब्क़ा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आज़ादी और प्रगतिशीलता के नाम पर परंपरागत भारतीय समाज की मान्यताएं अस्त-व्यस्त हो रही हैं, अन्य अपराधों के अतिरिक्त बलात्कार की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। चूंकि हमार…
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