Thursday, 31 August 2017

पंचायतन (सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ पाँच देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हों 

ⓘ Optimized 4 minutes agoView original http://www.hindisamay.com/contentDetail.aspx?id=3159&pageno=31 hindisamay.comMenu  मुद्रण कोश वर्धा हिंदी शब्दकोश संपादन - राम प्रकाश सक्सेना प प हिंदी वर्णमाला का व्यंजन वर्ण। उच्चारण की दृष्टि से यह द्वि-ओष्ठ्य, अघोष, अल्पप्राण स्पर्श है। पँखड़ा [सं-पु.] बाँह और कंधे का जोड़; पखौरा। पँचमेल [वि.] 1. जिसमें पाँच तरह की चीज़ें मिली हों; मिश्रित; मिला-जुला 2. जिसमें सभी तरह की चीज़ें मिली हों 3. विविधतापूर्ण। पँचमेवा [सं-पु.] दे. पंचमेवा। पँचरंग [वि.] दे. पंचरंगा। पँचरंगा [वि.] 1. पाँच रंग का; पाँच रंगों से युक्त 2. अनेक रंगों वाला 3. {ला-अ.} मिला-जुला; विविधतापूर्ण। पँचलड़ा [वि.] जिसमें पाँच लड़ियाँ हो; पाँच लड़ों वाला। पँजीरी [सं-स्त्री.] 1. आटे को घी में भूनकर और चीनी मिलाकर बनाया गया मीठा चूर्ण; कसार 2. एक प्रकार की मिठाई 3. दक्षिण भारत में होने वाला एक प्रकार का पौधा; इंद्रपर्णी। पँवरी [सं-स्त्री.] 1. पैरों में पहनने की एक प्रकार की खड़ाऊँ या चप्पल; पाँवड़ी 2. घर के प्रवेश द्वार में दहलीज का चौड़ा स्थान; दरवाज़े की ड्योढ़ी। पँवाड़ा [सं-पु.] 1. वीरतापूर्ण कारनामों से परिपूर्ण काव्य; लोकगीतों की एक शैली; वीरकाव्य; पँवारा 2. अतिशयोक्ति पूर्ण कथन 3. लंबी गाथा। पँवारना [क्रि-स.] 1. काम करने से रोकना 2. उपेक्षापूर्वक दूर हटाना; फेंकना। पँवारा [सं-पु.] दे. पँवाड़ा। पंक (सं.) [सं-पु.] 1. कीचड़; गारा 2. दलदल; तलछट 3. गंदा करने वाली कोई चीज़ 4. {ला-अ.} किसी प्रकार का लांछन; अपराध; पाप 5. लेप आदि के काम आने वाला कोई गाढ़ा गीला पदार्थ। पंकज (सं.) [सं-पु.] 1. कमल 2. सारस पक्षी। [वि.] कीचड़ में उत्पन्न होने वाला। पंकजराग (सं.) [सं-पु.] पद्मराग मणि। पंकजासन (सं.) [सं-पु.] 1. पंकज या कमल का आसन 2. ब्रह्मा। पंकिल (सं.) [वि.] 1. कीचड़ से युक्त; कीचड़ मिला हुआ 2. गंदा; मैला 3. दलदली। पंक्चर (इं.) [सं-पु.] 1. गाड़ी या साइकिल आदि के पहिए की ट्यूब में किसी नुकीली वस्तु से होने वाला बहुत महीन छेद जिससे उसमें भरी हवा निकल जाती है 2. छिद्र। पंक्चुअल (इं.) [वि.] 1. समय का पालन करने वाला 2. नियमित; अनुशासित; पाबंद 3. नियमों से बँधा हुआ; नियमबद्ध; निश्चित 4. नियम, कायदे या कानून के अनुसार बना हुआ; बाकायदा। पंक्ति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. समान वर्ग के व्यक्तियों या वस्तुओं आदि का एक-दूसरे के बाद एक सीध में होना; कतार; श्रेणी 2. शृंखला 3. ताँता; पट्टी 4. अवली; लड़ी 5. भोज में एक साथ खाने वालों की पाँत; पंगत 6. छंदशास्त्र में दस अक्षरों वाले छंदों की संख्या 7. एक ही सीध में दूर तक बनी हुई रेखा; लकीर 8. जीवों की वर्तमान पीढ़ी। पंक्तिपावन (सं.) [वि.] स्मृतियों के अनुसार ऐसा ब्राह्मण जिसे भोजन कराना, दान देना श्रेष्ठ माना गया है। पंक्तिबद्ध (सं.) [वि.] 1. किसी उद्देश्य से एक सीध में या क्रमिक रूप से खड़े हुए 2. एक शृंखला में बँधा हुआ 3. क्रमिक 4. कतारबद्ध; श्रेणीबद्ध। पंख (सं.) [सं-पु.] 1. पक्षियों का वह अंग जिनके सहारे वे हवा में उड़ते हैं; डैना; पर 2. हवा देने वाले यंत्र या पंखे का घूमने वाला लंबा हिस्सा। [मु.] -जमना : भागने या कुसंगति में पड़ने के लक्षण प्रकट होना। -निकलना : चतुर होना; आज़ाद होना। -लगाना : उड़ान भरना; पक्षियों की तरह गतिमान होना। पंखदार (सं.+फ़ा.) [वि.] जिसमें पंख लगे हों; पंखवाला; पंखयुक्त। पंखहीन (सं.) [वि.] 1. जिसमें पंख न हों; जिसके पंख कट चुके हों 2. {ला-अ.} निरुपाय; लाचार। पंखा [सं-पु.] 1. वह वस्तु जिसे हिलाने से हवा होती है; हाथ पंखा; बिजना 2. बिजली से चलने वाला वह यंत्र जो हवा देता है; (फ़ैन) 3. चँवर। पंखी [सं-पु.] 1. पक्षी; चिड़िया 2. उड़ने वाला छोटा कीड़ा या पतिंगा; शलभ। [सं-स्त्री.] 1. पहाड़ी भेड़ों पर से उतारी जाने वाली मुलायम एवं हलकी ऊन 2. उक्त ऊन से निर्मित चादर 3. साखू के फल के सिरे पर लगी हुई पतली पत्तियाँ 4. छोटा पंखा। पंगत (सं.) [सं-स्त्री.] 1. भोज के समय एक पंक्ति में बैठकर भोजन करना 2. पाँत; पंक्ति; कतार 3. सामूहिक भोज; दावत। पंगा1 (सं.) [वि.] 1. लँगड़ा; लूला 2. अपंग। पंगा2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. दो व्यक्तियों का आपसी झगड़ा 2. शत्रुता; दुश्मनी। पंगु (सं.) [वि.] 1. पैरों में कोई ख़राबी होने के कारण जो चलने में अक्षम हो; लँगड़ा 2. {ला-अ.} असहाय; अक्षम; शक्तिहीन; निष्चेष्ट; गतिहीन। [सं-पु.] लँगड़ा आदमी। पंगुता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंगु होने की अवस्था या भाव; लँगड़ापन 2. सहयोग न करने की अवस्था 3. {ला-अ.} गतिहीनता; अक्षमता। पंगुल (सं.) [वि.] लँगड़ा; पंगु। [सं-पु.] लँगड़ापन। पंच1 (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच की संख्या 2. पंचायत 3. ग्राम पंचायत का प्रधान व्यक्ति 4. न्याय करने के लिए चुने गए पाँच आदमियों का समूह; मध्यस्थ 5. तटस्थ निर्णायक। [वि.] पाँच। -मानना : विवाद का फ़ैसला कराने के लिए मध्यस्थ बनाना। पंच2 (इं.) [सं-पु.] 1. घूँसा; मुक्का 2. किसी घटना या समाचार के संदर्भ में वह रोचक तथ्य जो किसी को रोमांचित कर देता हो; हैरतंगेज़ तथ्य 3. छेदने या दबाने की क्रिया या अवस्था। पंचक (सं.) [सं-पु.] 1. सजातीय पाँच वस्तुओं का समूह 2. पाँच रुपए प्रति सैकड़े के हिसाब से लगने वाला ब्याज 3. धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नामक पाँच नक्षत्रों का समूह जिसमें कुछ धार्मिक कार्य निषिद्ध होते हैं; पचखा 4. युद्धक्षेत्र। [वि.] 1. पाँच अवयवों या अंगोंवाला 2. पाँच में खरीदा हुआ 3. पाँच से संबंधित। पंचकन्या (सं.) [सं-स्त्री.] (पुराण) कन्याओं की तरह मानी जाने वाली पाँच स्त्रियाँ- अहल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी। पंचकर्म (सं.) [सं-पु.] 1. (न्यायशास्त्र) पाँच प्रकार के कर्म- उत्कक्षेपण, अवक्षेपण, आकुंचन, प्रसारण और गमन 2. (आयुर्वेद) चिकित्सा के अंतर्गत पाँच क्रियाएँ- वमन, विरेचन, नस्य, निरूह और अनुवासन। पंचकर्मी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आयुर्वेदिक उपचार के पाँच अंग 2. पंचकर्म। पंचकल्याण (सं.) [सं-पु.] लाल या काले रंग का घोड़ा जिसके चारों पैर और सिर सफ़ेद रंग के हों। पंचकवल (सं.) [सं-पु.] भोजन करने के समय पक्षियों के लिए निकाला जाने वाला पाँच ग्रास अन्न। पंचकषाय (सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकार के वृक्ष- जामुन, सेमल, बेर, मौलसिरी तथा बरियारा की छाल का रस या काढ़ा। पंचकाम (सं.) [सं-पु.] कामदेव के पाँच रूप- काम, मन्मथ, कंदर्प, मकरध्वज और मीनकेतु। पंचकारण (सं.) [सं-पु.] (जैन साहित्य) कार्योत्पत्ति के पाँच कारण- काल, स्वभाव, नियति, व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) और कर्म। पंचकृत्य (सं.) [सं-पु.] ईश्वर द्वारा किए जाने वाले पाँच कर्म- सृष्टि, ध्वंस, संहार, तिरोभाव और अनुग्रहकरण। पंचकोण (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच भुजाओं से घिरी हुई आकृति या क्षेत्र 2. पंचभुज। [वि.] पाँच कोनोंवाला; पंचकोणीय। पंचकोश (सं.) [सं-पु.] वेदांत के अनुसार आत्मा के आवरण के रूप में माने जाने वाले पाँच कोश- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश। पंचकोष (सं.) [सं-पु.] दे. पंचकोश। पंचकोसी [सं-स्त्री.] काशी की परिक्रमा जिसमें पाँच पड़ाव हैं- कंदवा, भीमचंदी, रामेश्वर, शिवपुर और कपिलधारा। पंचक्रोशी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाँच कोस का फ़ासला 2. (पौराणिक मान्यता) पाँच कोस के घेरे में बसा हुआ काशी नामक नगर 3. किसी तीर्थस्थान की परिक्रमा। पंचक्लेश (सं.) [सं-पु.] दुख या क्लेश पैदा करने वाले पाँच कारक- अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। पंचक्षारगण (सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के लवण या रसायन- काच, सैंधव, सामुद्र, विट और सौवर्चल। पंचगंग (सं.) [सं-पु.] पाँच नदियों का समूह जिन्हें गंगा के समान महत्व प्राप्त है- गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा और धूतपापा (अब सरस्वती, किरणा और धूतपापा लुप्त हो चुकी हैं)। पंचगंगा (सं.) [सं-स्त्री.] काशी का एक प्रसिद्ध घाट जो मान्यतानुसार पाँच नदियों का संगमस्थान है। पंचगव्य (सं.) [सं-पु.] गौ (गाय) से प्राप्त होने वाले पाँच द्रव्य- दूध, दही, घी, गोमूत्र तथा गोबर। पंचगुण (सं.) [सं-पु.] पाँच गुण- शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध। पंचगौड़ (सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के ब्राह्मणों का समूह- सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल और उत्कल। पंचग्रास (सं.) [सं-पु.] भोजन करने के समय पक्षियों के लिए निकाला जाने वाला पाँच ग्रास अन्न; पंचकवल। पंचजन (सं.) [सं-पु.] 1. (पुराण) पाँच तरह के जन- देव, मानव, नाग, गंधर्व और पितर 2. (पुराण) एक असुर जिसे कृष्ण ने मारा था तथा जिसकी अस्थियों से पांचजन्य नामक शंख बनाया गया था। पंचतंत्र (सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकरणों में विभाजित संस्कृत की एक प्रसिद्ध पुस्तक जिसमें जीवन व्यवहार के संबंध में उपदेशात्मक कहानियाँ हैं। पंचतत्व (सं.) [सं-पु.] 1. जीवन के पाँच आधारभूत तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश 2. पंचमहाभूत; पंचमकार 3. पदार्थ; तत्व; (एलीमेंट)। पंचतरु (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच सबसे पवित्र माने जाने वाले वृक्ष- कल्पवृक्ष, पारिजात, मंदार, संतान तथा हरिचंदन 2. देवतरु। पंचतारा (सं.+अ.) [सं-पु.] सुविधाओं की दृष्टि से दिए जाने वाले सितारा संख्या के आधार पर पाँच सितारों या उत्तम सुविधाओं से युक्त होटल; (फ़ाइव स्टार)। पंचतिक्त (सं.) [सं-पु.] पाँच कड़वी औषधियों- गुडुच (गिलोय), भटकटैया, सोंठ, कुट और चिरायता का मिश्रण। पंचतृण (सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकार के उपयोगी तिनके या घास- कुश, कास, सरकंडा, डाभ और ईख का समूह। पंचत्व (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच का भाव 2. शरीर के पाँच महाभूत या तत्वों का अपने स्वरूप को प्राप्त हो जाना; मौत; मृत्यु। पंचदश (सं.) [सं-पु.] पंद्रह की संख्या। पंचदीर्घ (सं.) [सं-पु.] शरीर के पाँच दीर्घ अंग- बाहु, नेत्र, कुक्षि, नासिका और वक्षस्थल। पंचदेव (सं.) [सं-पु.] धार्मिक रूप से उपास्य पाँच देव- सूर्य, शिव, विष्णु, गणेश और दुर्गा। पंचन (इं.) [सं-पु.] काग़ज़ आदि में छेद करने का कार्य; (पंचिंग)। पंचनद (सं.) [सं-पु.] 1. पंजाब प्रांत की पाँच बड़ी नदियों (सतलज, व्यास, रावी, चनाब और झेलम) का समूह 2. पाँच नदियों से घिरा प्रदेश; पंजाब प्रदेश। पंचनामा (सं.+फ़ा.) [सं-पु.] किसी महत्वपूर्ण विषय पर लिए गए निर्णय का लिखित रूप जिसपर पंचों के हस्ताक्षर होते हैं; एक तरह का सहमति-पत्र। पंचनीराजन (सं.) [सं-पु.] पाँच वस्तुओं- दीपक, कमल, आम, वस्त्र और पान द्वारा की जाने वाली आरती या पूजा। पंचपल्लव (सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के वृक्षों- आम, जामुन, कैथ, बिजौरा और बेल के पत्ते जिनका पूजा आदि में प्रयोग होता है। पंचपात्र (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच पात्रों का समूह 2. प्राचीन रीति के अनुसार श्राद्ध का एक प्रकार जिसमें पाँच पात्र रखे जाते हैं 3. चौड़े मुँह के गिलास के आकार का एक पात्र जिसमें पूजा आदि के निमित्त जल रखा जाता है। पंचपिता (सं.) [सं-पु.] (पुराण) पिता या पितृतुल्य व्यक्ति- पिता, आचार्य, श्वसुर, अन्नदाता और भयत्राता। पंचपुष्प (सं.) [सं-पु.] पाँच प्रकार के फूलों- चंपा, आम, शमी, कमल और कनेर का समूह। पंचप्राण (सं.) [सं-पु.] शरीर में संचरण करने वाली वायु के पाँच भेद- प्राण, अपान, समान, व्यान, और उदान। पंचफोड़न [सं-स्त्री.] छौंकने के काम आने वाली पाँच वस्तुओं- राई, जीरा, मेथी, सौंफ और मंगरैला (कलौंजी, किरायता) का मिश्रण। पंचबाण (सं.) [सं-पु.] कामदेव के पाँच बाण- सम्मोहन, उन्मादन, स्तंभन, शोषण और तापन। पंचबीज (सं.) [सं-पु.] पाँच बीजकोश वाले फल- अनार, ककड़ी, खीरा, पद्मबीज और पानरीबीज। पंचभुज (सं.) [सं-पु.] पाँच भुजाओं वाली आकृति। [वि.] पाँच भुजाओं वाला; पंचकोणीय; पंचबाहु। पंचभूत (सं.) [सं-पु.] 1. (भारतीय दर्शन) पाँच मूलतत्व- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी जिनसे सृष्टि की रचना हुई है 2. अजैव पदार्थ 3. पंचतत्व। पंचभौतिक (सं.) [वि.] पाँच तरह के तत्वों अथवा भौतिक पदार्थों से बना हुआ। पंचम (सं.) [सं-पु.] (संगीत में) सरगम या सप्तक का 'प' के रूप में पाँचवाँ स्वर जिसे कोयल की कूक का स्वर भी माना जाता है। [वि.] 1. पाँचवाँ 2. सुंदर; मनोहर 3. निपुण; दक्ष। पंचमकार (सं.) [सं-पु.] तांत्रिक साधना में प्रयुक्त 'म' से आरंभ होने वाली पाँच वस्तुएँ- मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन जिन्हें तंत्र साधना में पंचतत्व, कुलद्रव्य या कुलतत्व भी कहा जाता है। पंचमहापातक (सं.) [सं-पु.] धर्मशास्त्र वर्णित पाँच प्रकार के महापाप- मानव हत्या, मद्यपान, चोरी, गुरु-पत्नी से व्यभिचार और इन चार पापों को करने वाले से मेल-जोल। पंचमहाभूत (सं.) [सं-पु.] 1. पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु नामक पाँच मूल तत्व 2. भारतीय चिंतन परंपरा के अनुसार उक्त तत्वों से निर्मित संसार या सृष्टि। पंचमहायज्ञ (सं.) [सं-पु.] धर्मशास्त्र वर्णित गृहस्थों द्वारा नित्य करने योग्य माने जाने वाले पाँच कार्य- अध्यापन, पितृतर्पण, होम, भूतयज्ञ और अतिथि-पूजन। पंचमांग (सं.) [सं-पु.] 1. पत्रकारिता में ख़ास उद्देश्य से तैयार किया जाने वाला कॉलम; (फ़िफ़्थ कॉलम) 2. किसी बात या काम का पाँचवाँ अंग। पंचमांगी (सं.) [वि.] 1. पंचमांग संबंधी 2. गद्दार। [सं-पु.] वह व्यक्ति या वर्ग जो दूसरे देश से गुप्त संबंध रखकर अपने देश को हानि पहुँचाता है; गुप्त देशद्रोही। पंचमी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चांद्र मास के प्रत्येक पक्ष की पाँचवी तिथि 2. अपादान कारक 3. (महाभारत) पाँडव पत्नी द्रौपदी 4. वैदिक युगीन एक प्रकार की ईंट जो यज्ञ की वेदी बनाने के काम आती थी 5. संगीत की एक रागिनी 7. बिसात। पंचमेवा (सं.+फ़ा.) [सं-पु.] पाँच मेवों- गरी (नारियल), चिरौंजी, बादाम, छुहारा और किशमिश का मिश्रण। पंचर (इं.) [सं-पु.] 1. कील आदि नुकीली चीज़ के धँस जाने से वाहन के पहिए की हवा निकलने की स्थिति 2. किसी पाइप आदि में छेद हो जाने के कारण उससे प्रवाहित होने वाले द्रव या गैस के रिसने की स्थिति। पंचरंगी [वि.] 1. पाँच रंगों वाला 2. पाँच तरह के रंगों से बना हुआ 3. जिसमें पाँच रंग हों 4. विविधतापूर्ण। [सं-पु.] पाँच रंगों से पूरा गया चौक। पंचरत्न (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच प्रकार के रत्नों- नीलम, हीरा, पद्मराग मणि, मोती और मूँगा का समूह 2. (महाभारत) पाँच प्रसिद्ध आख्यान। पंचरात्र (सं.) [सं-पु.] पाँच रातों का समय। [वि.] लगातार पाँच रात तक चलने वाला। पंचराशिक (सं.) [सं-पु.] गणित का एक सूत्र जिसमें चार ज्ञात राशियों की सहायता से पाँचवीं अज्ञात राशि का पता लगाया जाता है। पंचवटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाँच वृक्षों का समूह- अशोक, पीपल, बेल, वट और पाकड़ 2. रामायण आदि ग्रंथों में वर्णित दंडकारण्य (नासिक) में गोदावरी के तट का एक प्रसिद्ध स्थान जहाँ वनवासी राम, सीता और लक्ष्मण ने निवास किया था। पंचवर्ण (सं.) [सं-पु.] अकार, उकार, मकार, नाद और बिंदु से संयुक्त ओंकार नामक शब्द। पंचवर्षीय (सं.) [वि.] पाँच वर्ष तक चलने या होने वाला; पाँच वर्ष का। पंचशब्द (सं.) [सं-पु.] पाँच तरह के वाद्य- तंत्री, ताल, झाँझ, नगाड़ा और तुरही जिनकी ध्वनियों को मंगलसूचक माना जाता है। पंचशर (सं.) [सं-पु.] (पुराण) पाँच बाणों वाला अर्थात कामदेव। पंचशाख (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच शाखाओं का समूह 2. हाथ। पंचशील (सं.) [सं-पु.] बौद्ध धर्म के नीति संबंधी पाँच सिद्धांत- अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य और मादक द्रव्य निषेध। पंचसुगंधक (सं.) [सं-पु.] (आयुर्वेद) सुगंध देने वाले पाँच पदार्थ- कपूर, शीतलचीनी, लौंग, अगर और जायफल। पंचस्कंध (सं.) [सं-पु.] (बौद्ध दर्शन) समस्त पदार्थों के पाँच स्कंध- रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार तथा विज्ञान। पंचस्नेह (सं.) [सं-पु.] चिकने या स्निग्ध पाँच पदार्थ- घी, तेल, चरबी, मज्जा और मोम। पंचांग (सं.) [सं-पु.] 1. किसी चीज़ के पाँच अंग 2. पाँच अंगों वाली वस्तु 3. तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करणों वाली एक पुस्तिका या पंजी; पत्रा; जंत्री 4. जड़, छाल, पत्ती, फूल एवं फल; किसी वनस्पति के पाँच अंग 5. तंत्र में जप, होम, तर्पण, अभिषेक और भोजन नामक पाँच अंगोंसे युक्त पुरश्चरण 6. प्रणाम करने की वह विधि जिसके अंतर्गत घुटना, सिर, हाथ तथा छाती को पृथ्वी से सटाकर और आँखों को प्रणम्य की ओर देखते हुए मुँह से प्रणाम शब्द का उच्चारण किया जाता है 7. राजनीतिशास्त्र के अंतर्गत (सहाय, साधन, उपाय, देश-कालभेद और विपत-प्रतिकार नामक) पाँच कार्य। पंचांगुल (सं.) [सं-पु.] 1. अरंड या अंडी का पेड़ 2. तेजपत्ता 3. भूसा आदि बटोरने के लिए पाँचा नामक उपकरण। [वि.] 1. जिसमें पाँच उँगलियाँ हो 2. जो नाप में पाँच अंगुल का हो। पंचांश (सं.) [सं-पु.] किसी वस्तु का पाँचवाँ भाग या अंश; पंचमांश। पंचाक्षर (सं.) [सं-पु.] 1. प्रतिष्ठा नामक वृत्ति जिसमें पाँच अक्षर होते हैं 2. शिव का 'ओम नमः शिवाय' मंत्र जिसमें पाँच अक्षर होते हैं। [वि.] पाँच अक्षरों वाला; जिसमें पाँच अक्षर हों। पंचाग्नि (सं.) [सं-पु.] 1. अन्वाहार्यपचन, गार्हपत्य, आहवनीय, सभ्य और आवसथ्य नामक अग्नि के पाँच प्रकार 2. (छांदोग्य उपनिषद) सूर्य, पर्जन्य, पृथ्वी, पुरुष और योषित् नामक अग्नि के पाँच रूप 3. (आयुर्वेद) चीता, चिचिड़ी, भिलावाँ, गंधक और मदार नामक पाँच गरम तासीरवाली औषधियाँ 4. चारों ओर से जलती हुई पाँचों प्रकार की अग्नियों के बीच बैठकर और ऊपर से सूर्य का तप सहते हुए ग्रीष्म ऋतु में किया जाने वाला एक प्रकार का तप। पंचाट (सं.) [सं-पु.] 1. किसी विवादित विषय पर पंचों द्वारा लिया गया निर्णय या फ़ैसला; परिनिर्णय 2. मध्यस्थता; बीचबचाव 3. समझौता; सौदेबाज़ी। पंचात्मा (सं.) [सं-स्त्री.] शरीर में स्थित माने जाने वाले पंचप्राण- प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। पंचानन (सं.) [सं-पु.] 1. किसी विषय का विद्वान 2. शेर; सिंह 3. पंचमुखी रुद्राक्ष; शिव 4. सिंह राशि 5. (संगीत) स्वर-साधना की एक प्रणाली। पंचामृत (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच पदार्थों- दूध, दही, घी, चीनी और शहद मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद 2. (आयुर्वेद) पाँच गुणकारी औषधियाँ- गिलोय, मुसली, गोखरू, गोरखमुंडी और शतावरी का समूह। पंचायत (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी समाज में लोगों द्वारा निर्वाचित या मनोनीत सदस्यों की सभा 2. संबंधित समाज के किसी विवाद या झगड़े के विषय में उक्त सदस्यों द्वारा लिया गया सर्वमान्य निर्णय 3. पंचायतघर 4. पंचों की मंडली, सभा या सम्मेलन। पंचायतघर [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ गाँव, बिरादरी या समुदाय की पंचायत होती है 2. ग्राम-पंचायत की इमारत 3. चौपाल। पंचायतन (सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थान जहाँ पाँच देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हों 2. किसी एक देवता की मूर्ति के साथ चार अन्य देवताओं की मूर्तियों का समूह। पंचायती (सं.) [वि.] 1. पंचायत संबंधी; पंचायत का 2. लोकतांत्रिक; सामाजिक 3. मिला-जुला या साझे का; सार्वजनिक; सामूहिक। पंचाल (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्राचीन देश जो हिमालय और चंबल के बीच गंगा के दोनों ओर स्थित था 2. उक्त देश का निवासी 3. पंचमुख महादेव 4. एक प्रकार का छंद 5. लकड़ी और लोहे का काम करने वाली दक्षिण भारतीय एक जाति 6. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा 7. बाभ्रव्य गोत्र के एक ऋषि। पंचालिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अभिनेत्री; नटी 2. गुड़िया; पुतली 3. (काव्यशास्त्र) पांचाली रीति का दूसरा नाम। पंचाली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पंचाल प्रदेश की नारी 2. द्रौपदी 3. गुड़िया; कठपुतली 4. चौपड़ या चौरस की बिसात। पंचावयव (सं.) [सं-पु.] 1. पाँच अवयवों- प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन से युक्त न्याय-वाक्य 2. न्याय के पाँच अवयव। [वि.] पाँच अवयवों या अंगों वाला; पंचांगी। पंचास्य (सं.) [वि.] पाँच मुखों वाला; पँचमुखी; पंचानन। पंचेंद्रिय (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पाँच ज्ञानेंद्रियाँ 2. पाँच कर्मेंद्रियाँ। पंचोपचार (सं.) [सं-पु.] गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य नामक पाँच द्रव्यों से किया जाने वाला पूजन। पंछा (सं.) [सं-पु.] 1. प्राणियों के शरीर पर होने वाले फुंसी या दाने के फूटने से उसमें से निकलने वाला स्राव 2. वनस्पतियों को किसी स्थान से काटने या छीलने पर निकलने वाला तरल पदार्थ 3. फफोले, चेचक के दाने आदि में भरा हुआ पानी। पंछी (सं.) [सं-पु.] पक्षी; पाखी; परिंदा; चिड़िया। पंज (फ़ा.) [वि.] 1. पाँच 2. पाँच का संक्षिप्त रूप। पंजक (सं.) [सं-पु.] 1. मांगलिक अवसरों पर दीवारों पर लगाया जाने वाला हाथ के पंजे का निशान या छापा 2. चित्रकला में पाँच-पाँच दल या शाखाएँ दिखाकर किया जाने वाला चित्रण। पंजर (सं.) [सं-पु.] 1. हड्डियों का ढाँचा 2. मांस, त्वचा आदि से ढके हुए शरीर की हड्डियों का ढाँचा जिनके आधार पर शरीर ठहरा रहता है; कंकाल; ठठरी 3. पिंजड़ा 4. कोल नामक छंद 5. {ला-अ.} किसी वस्तु का वह आंतरिक ढाँचा जिसपर कई आवरण रहते हैं और जिनसे उनका अस्तित्व बना रहता है। पंजा (सं.) [सं-पु.] 1. हाथ या पैर का वह अगला भाग जिसमें हथेली या तलवा और पाँचों उँगलियाँ होती हैं 2. पाँच वस्तुओं का समूह 3. ताश का वह पत्ता जिसमें पाँच बूटियाँ होती हैं 4. एक प्रकार की कसरत जिसमें पंजा लड़ाते हैं 5. जूते का अगला भाग जिसमें उँगलियाँ ढकी रहती हैं 6. टिन आदि का पंजे के आकार का वह टुकड़ा जिसे लंबे बाँस में लगाकर ताज़िए के साथ झंडे या निशान के रूप में लेकर चलते हैं। पंजाब (फ़ा.) [सं-पु.] भारत का पश्चिमोत्तर राज्य जिसमें रावी, चिनाब, झेलम, व्यास और सतलज नामक पाँच नदियाँ बहती हैं। पंजाबी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] पंजाब राज्य की भाषा। [वि.] 1. पंजाब से संबंधित 2. पंजाब का। [सं-पु.] पंजाब का निवासी। पंजिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी टीका जिसमें प्रत्येक शब्द का अर्थ स्पष्ट किया गया हो 2. आय-व्यय का हिसाब लिखने की पुस्तिका; (रजिस्टर) 3. तिथिपत्र; पंचांग; (कैलेंडर)। पंजी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह पुस्तिका जिसमें ख़र्च का हिसाब, जन्म-मृत्यु का विवरण, गृह, भूमि आदि की अधिकृत बिक्री या हस्तांतरण आदि का ब्योरा दर्ज किया जाता है 2. बही; (रजिस्टर)। पंजीकरण (सं.) [सं-पु.] 1. शासन या सरकार द्वारा किया जाने वाला प्रमाणीकरण; मान्यीकरण 2. किसी लेख या विवरण का किसी पंजिका, बही या रजिस्टर में लिखा जाना 3. नाम की सूची में नाम का लिखा जाना 4. पंजी में लिखकर मान्यता प्रदान करना। पंजीकार (सं.) [सं-पु.] 1. पंजी या बही-खाता लिखने का काम करने वाला व्यक्ति 2. आय-व्यय आदि का ब्योरा लिखने वाला व्यक्ति; लेखक; मुनीम 3. पंचांग बनाने का काम करने वाला व्यक्ति। पंजीकृत (सं.) [वि.] 1. व्यवस्थित उपादान या संस्था के रूप में सरकार द्वारा प्रमाणित 2. जो पंजिका या रजिस्टर में दर्ज किया जा चुका हो; जिसका पंजीकरण किया जा चुका हो; (रजिस्टर्ड)। पंजीबद्ध (सं.) [वि.] दे. पंजीकृत। पंजीयक (सं.) [सं-पु.] 1. किसी संस्था अथवा विभाग के अभिलेख, पत्र, विवरण आदि की प्रामाणिक प्रतिलिपि पंजी में सुरक्षित रखने का प्रबंध करने वाला अधिकारी; कुलसचिव; (रजिस्ट्रार) 2. वह व्यक्ति जो पंजी या बहीखाता में लेख, विवरण आदि लिखने या दर्ज कराने का प्रबंध करता हो। पंजीयन (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी लेख, विवरण या ब्योरे का संबंधित विभाग की पंजी में दर्ज किया जाना; (रजिस्ट्रेशन) 2. भूमि, भवन आदि संपत्ति की बिक्री अथवा हस्तांतरण का ब्योरा पंजिका या रजिस्टर में चढ़ाकर अभिलेख के रूप में रखा जाना 3. पत्र, पार्सल आदि के सुरक्षित रूप से भेजे जाने के लिए पाने वाले का पता आदि लिखना। पंजीरी [सं-स्त्री.] दे. पँजीरी। पंडा [सं-पु.] 1. तीर्थ स्थान, नदी घाट आदि स्थानों पर कर्मकांड कराने वाला व्यक्ति; तीर्थ पुरोहित 2. रसोई बनाने वाला ब्राह्मण 3. {ला-अ.} चालाक या छल करने वाला व्यक्ति। [सं-स्त्री.] सत्य-असत्य का विवेक करने वाली बुद्धि। पंडाइन [सं-स्त्री.] 1. पंडे की पत्नी 2. पुरोहित की पत्नी 3. रसोईदारिन। पंडाल (त.) [सं-पु.] 1. कनातों आदि से घिरा और तंबुओं से छाया हुआ उत्सव आदि का विस्तृत मंडप; शामियाना; (टेंट) 2. किसी संस्था के अधिवेशन आदि के लिए लगाया हुआ शामियाना। पंडित (सं.) [सं-पु.] 1. शिक्षित और व्यवहारिक व्यक्ति; अध्यापक 2. किसी कार्य में निपुण या कुशल व्यक्ति 3. शास्त्रज्ञ विद्वान; धर्मज्ञानी 4. पूजा-पाठ कराने वाला व्यक्ति; उपदेशक 5. सिद्ध कलाकार 6. विशेषज्ञ 7. ब्राह्मणों के नाम के पहले लगने वाला एक आदरसूचक शब्द 8. कश्मीरी ब्राह्मणों में प्रचलित एक कुलनाम या सरनेम। [वि.] कुशल; निपुण। पंडिताइन [सं-स्त्री.] 1. पंडित की पत्नी 2. ब्राह्मण जाति की स्त्री 3. शिक्षित स्त्री। पंडिताई [सं-स्त्री.] 1. पंडित होने का गुण या भाव; पांडित्य 2. कुशलता; विद्वत्ता 2. धार्मिक कर्मकांड करने वाले पंडित समुदाय की वृत्ति, कार्य या व्यवसाय। पंडिताऊ [वि.] 1. पंडितों की तरह का 2. पंडितों के ढंग का 3. विद्वत्तापूर्ण 4. परंपरागत 5. आडंबरपूर्ण। पंडु (सं.) [वि.] 1. पीलापन लिए हुए मटमैला 2. पीला। पंडुक (सं.) [सं-पु.] कबूतर की प्रजाति का हलके कत्थई रंग का एक पक्षी; फ़ाख़्ता; पेंडकी। पंत [सं-पु.] पहाड़ी ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम या सरनेम। पंथ (सं.) [सं-पु.] 1. पथ; राह; रास्ता; मार्ग 2. कोई ऐसा धार्मिक संप्रदाय जिसके अनुयायी उसकी प्रथाओं तथा सिद्धातों को विशेषरूपसे मान्यता देते हैं, जैसे- नानकपंथ 3. मत; धर्म; संप्रदाय 4. रीति; परंपरा 5. आचार-व्यवहार या रहन-सहन का ढंग। [मु.] -देखना : किसी की प्रतीक्षा करना, बाट जोहना। -दिखाना : रास्ता दिखलाना; शिक्षा देना। -लगाना : सही रास्ते पर चलाना। पंथक (सं.) [वि.] मार्ग में उत्पन्न होने वाला। पंथ-निरपेक्ष (सं.) [वि.] 1. जो किसी पंथ का अनुयायी न हो 2. पंथों या संप्रदायों के परस्पर विरोधी विचारों से अप्रभावित; (सेक्युलर)। पंथी (सं.) [सं-पु.] 1. राही; पथिक; यात्री; बटोही 2. धार्मिक पक्षधर; मतानुगामी 3. किसी संप्रदाय या पंथ का अनुयायी, जैसे- गोरखपंथी 4. किसी विशेष मत को मानने वाला व्यक्ति। [सं-स्त्री.] पंथ होने की अवस्था। [परप्रत्य.] कुछ शब्दों के अंत में लगकर भाववाचक प्रत्यय का अर्थ देता है, जैसे- वामपंथी। पंद्रह (सं.) [वि.] संख्या '15' का सूचक। पंप (इं.) [सं-पु.] 1. पानी आदि तरल पदार्थों को हवा के ज़ोर से ऊपर खींचने का यंत्र 2. पिचकारी 3. ट्यूब आदि में हवा भरने का उपकरण 4. एक प्रकार का हलका अँग्रेज़ी जूता जिसमें पंजे से ऊपर का भाग ढका रहता है। पंसारी (सं.) [सं-पु.] जीरा, धनियाँ, नमक आदि किराने का सामान तथा साधारण जड़ी-बूटी बेचने वाला दुकानदार। पकड़ [सं-स्त्री.] 1. पकड़ने का भाव या क्रिया; शिकंजा 2. पकड़ने का ढंग या तरीका 3. अपहरण 4. ग्रहण 5. मूठ; सँडसी 6. कुश्ती या लड़ाई में एक बार की भिड़ंत; हाथापाई 7. किसी कार्य का वह अंग जिससे उसकी त्रुटि या दोष का पता चल सकता हो 8. लाभ का डौल या सुभीता 9. {ला-अ.} किसी विषय या कलाक्षेत्र में गहरी समझ; विशेषज्ञता; कौशल; गुणज्ञता; अंतर्बोध। [मु.] -जाना : कैद कर लिया जाना। -में आना : पकड़ा जाना; काबू में आना। पकड़-धकड़ [सं-स्त्री.] गिरफ़्तारी; धर-पकड़। पकड़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी वस्तु को इस प्रकार दृढ़तापूर्वक थामना कि वह इधर-उधर न हट सके; दबोचना; थामना 2. ग्रहण करना; चंगुल में लेना; झपटना 3. खोज निकालना; पता लगाना; गिरफ़्तार करना 4. वेगवान वस्तु को आगे बढ़ने से रोकना 5. किसी रोग या विकार के कारण शरीर या उसके किसी अंग का ठीक ढंग से काम न करना 6. किसी काम में आगे बढ़े हुए के बराबर पहुँचना। पकड़वाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को कुछ पकड़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी के पकड़े जाने में सहायक होना या सहायता करना। पकड़ाना (सं.) [क्रि-स.] 1. पकड़ने में प्रवृत्त करना; सौंपना 2. किसी के अधिकार में कोई चीज़ देना। पकना (सं.) [क्रि-अ.] 1. परिपक्व होना 2. पूर्णता की अवस्था तक पहुँचना 3. आँच पर भोज्य पदार्थों का इतना तपना कि वह खाया जा सके; रँधना 4. प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से फलों का इस अवस्था में पहुँचना कि उन्हें खाया जा सके 5. कच्ची मिट्टी से निर्मित वस्तुओं का आँच पर इस प्रकार पकना कि वह सहजता से टूट न सके 6. बालों का सफ़ेद होना 7. फोड़ा-फुंसी आदि का इस अवस्था में पहुँचना कि उसमें मवाद भर जाए 8. चौसर के खेल में गोटियों का सभी खानों को पार करके अपने खाने में पहुँचना 9. ऐसी अवस्था में पहुँचना जहाँ से पतन, ह्रास या विनाश का आरंभ होता है 10. लेन-देन या व्यवहार में कोई बात पक्की या निश्चित होना। पकवान (सं.) [सं-पु.] 1. घी अथवा तेल में तलकर पकाया हुआ कोई भोज्य या खाद्य पदार्थ, जैसे- कचौड़ी, जलेबी, समोसा आदि 2. पक्का खाना; व्यंजन। पकवाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को कुछ पकाने में प्रवृत्त करना 2. पकाने का काम किसी दूसरे से कराना। पकाई [सं-स्त्री.] 1. पकाने की क्रिया या भाव 2. पकाने की मज़दूरी 3. मज़बूती; दृढ़ता (ईंट) 4. अभ्यास। पकाना (सं.) [क्रि-स.] 1. ऐसी क्रिया करना जिससे कुछ पक सकता हो; पकाने में प्रवृत्त करना 2. अन्न एवं फल का पकने की अवस्था में पहुँचना; उबालना; भूनना 3. अन्न का आँच पर रख कर गलाना या तपाना जिससे कि वह खाने योग्य हो सके; राँधना 4. ऐसी क्रिया करना जिससे कच्चे फल मीठे और मुलायम हो जाए तथा उन्हें खाया जा सके 5. कच्ची मिट्टी से निर्मित वस्तुओं को आग पर तपाना जिससे वे सहजता से टूट न सकें या पानी में गल न सकें 6. फोड़ा-फुंसी को मवाद भर आने की अवस्था तक पहुँचाना 7. सफ़ेद करना या बनाना 8. अभ्यास आदि से परिपक्व और कुशल बनाना। पका-पकाया [वि.] 1. खाने योग्य 2. बना-बनाया 3. किया-कराया; तैयार। पकौड़ा [सं-पु.] बेसन, आलू, प्याज़, हरी सब्ज़ियों और मसालों से युक्त तेल में तला हुआ व्यंजन; बड़ी पकौड़ी। पक्का (सं.) [वि.] 1. (ऐसा प्रपत्र) जो विधिक दृष्टि से प्रामाणिक माना जाता हो 2. जो विकसित होकर पुष्ट तथा पूर्ण हो चुका हो; अटूट; अचल; सुदृढ़ 3. पूरी तरह से पका या पकाया हुआ 4. अनुभवी; निपुण; निष्णात; दक्ष 5. निश्चित; निर्णायक 6. जिसमें किसी प्रकार की मिलावट या खोट न हो 7. जो इतना स्थिर या निश्चित हो चुका हो कि उसमें सहसा किसी परिवर्तन की गुंजाइश न हो; प्रभावातीत 8. कटिबद्ध; दायित्वपूर्ण 9. जिसमें किसी प्रकार का दोष या त्रुटि न हो; प्रमाणसिद्ध; विवादातीत 10. जो प्रायः सभी जगह प्रामाणिक और मानक माना जाता हो; सत्याधारित 11. जिसका अच्छी तरह संशोधन किया जा चुका हो 12. जो कभी छूट न सके; विजड़ित 13. जिसपर लिखी हुई बात कानून के विरुद्ध न हो 14. जो वृद्धि करते हुए विनाश के निकट पहुँच चुका हो। पक्का चिट्ठा [सं-पु.] आय-व्यय का तैयार किया गया सटीक प्रपत्र या कागज़। पक्की निकासी [सं-स्त्री.] 1. कुल आय में से होने वाली बचत; (नेट एसेट्स) 2. किसी संपत्ति में से व्यय को निकाल देने के बाद बची हुई आय या रकम। पक्की रसोई [सं-स्त्री.] 1. घी या तैलीय पदार्थ में पका या तला हुआ खाद्यपदार्थ 2. पकवान; व्यंजन। पक्व (सं.) [वि.] 1. पका या पकाया हुआ 2. पुष्ट; दृढ़ 3. अनुभवी; पक्का 4. वयस्क; पूर्णतः विकसित। [सं-पु.] पकाया हुआ भोजन। पक्वान्न (सं.) [सं-पु.] 1. पका या पकाया हुआ अन्न 2. पकायी हुई भोज्य वस्तु 3. पकवान। पक्वाशय (सं.) [सं-पु.] पाचन तंत्र का वह अंश जहाँ आहार पचता है; आमाशय; जठर। पक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु या व्यक्ति का दायाँ या बायाँ भाग 2. किसी विशेष स्थिति से दाहिने या बाएँ पड़ने वाला विस्तार 3. ओर; तरफ़; पार्श्व 4. किसी विषय या वस्तु के दो या दो से अधिक परस्पर विरोधी तत्व, सिद्धांत या भाग 5. किसी प्रतियोगिता या विवाद आदि में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों या दलों में से प्रत्येक व्यक्ति या दल 6. सेना का आगे की ओर बढ़ा हुआ भाग; पार्श्व 7. किसी बात या विचार का कोई भाग 8. शरीर का अंग; आयाम 9. किसी विचारधारा या सिद्धांत के समर्थकों का दल; सहायक; गुट 10. पक्षियों का डैना; पंख; पर 11. चूल्हे का वह गड्ढा या मुँह जिसमें राख इकट्ठा होती है 12. जवाब; उत्तर 13. चंद्रमास के दो बराबर भागों में से प्रत्येक भाग जो पंद्रह दिनों का माना जाता है। पक्षधर [वि.] 1. झगड़े-लड़ाई या किसी अन्य विषय में किसी का पक्ष लेने वाला; पक्षपाती 2. जो निष्पक्ष न हो; तरफ़दार; हिमायती 3. समर्थक; पिछलग्गू। [सं-पु.] 1. पक्षी; पाखी 2. चिड़िया। पक्षधरता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पक्षधर होने की अवस्था या भाव; पक्षपात; तरफ़दारी 2. दो पक्षों में से किसी एक पक्ष के प्रति हिमायत 3. झंडाबरदारी; अलमबरदारी। पक्षपात (सं.) [सं-पु.] 1. राग या संबंध आदि के कारण अच्छे-बुरे का विचार त्याग कर किसी पक्ष के प्रति होने वाली अनुकूल प्रवृत्ति 2. स्वार्थ या लोभ आदि के कारण किसी की तरफ़ होने वाला झुकाव; तरफ़दारी; हिमायत 3. भेदभाव; धाँधली 4. {व्यं-अ.} अनीति; अन्याय। पक्षपातपूर्ण (सं.) [वि.] 1. पक्षपात किया हुआ; पक्षपात का सूचक 2. सिफ़ारिशी 3. {व्यं-अ.} न्यायहीन; भेदभावपूर्ण। पक्षपाती (सं.) [वि.] 1. पक्षपात करने वाला; भेदभाव करने वाला; पक्षधर 2. तरफ़दार; सहायक 3. अन्यायी; कुटिल; बेईमान 4. भेदभावपूर्ण। [सं-पु.] औचित्य या न्याय का विचार छोड़कर जो व्यक्ति किसी एक पक्ष का समर्थन करे; पक्ष लेने वाला व्यक्ति। पक्ष विपक्ष (सं.) [सं-पु.] 1. वादी तथा प्रतिवादी 2. संसदीय प्रणाली में सत्ताधारी दल तथा उसका विरोधी दल। पक्षसमर्थक (सं.) [वि.] 1. किसी विषय या विचार के अनुकूल प्रवृत्ति रखने वाला 2. सत्ता की तरफ़दारी करने वाला; हिमायती। पक्षहीन (सं.) [वि.] 1. जो किसी पक्ष का न हो; निष्पक्ष 2. गुटनिरपेक्ष 3. तटस्थ। पक्षाघात (सं.) [सं-पु.] 1. शरीर के बाईं या दाईं ओर के हिस्से को निष्क्रिय कर देने वाला एक गंभीर रोग; अंगघात; (परैलसिस) 2. लकवा; फ़ालिज। पक्षावलंबी (सं.) [सं-पु.] जो किसी पक्ष की तरफ़ हो; पक्षपाती; पक्षधर। पक्षावसर (सं.) [सं-पु.] 1. पूर्णिमा 2. अमावस्या। पक्षाहार (सं.) [सं-पु.] 1. पक्ष में केवल एक बार भोजन करना 2. किसी पक्ष से संबंधित नियम या व्रत। पक्षिणी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मादा चिड़िया या पक्षी 2. दो दिन और एक रात का समय 3. पूर्णिमा तिथि। पक्षी (सं.) [सं-पु.] 1. पंक्षी; चिड़िया; खग; विहग 2. खेचर; नभचर। [वि.] 1. पंख या पर से युक्त; पंखवाला 2. पक्षपात करने वाला; पक्षपाती 3. किसी का पक्ष लेने या ग्रहण करने वाला; तरफ़दार। पक्षीय (सं.) [वि.] 1. किसी पक्ष से संबंधित 2. (मासांत में) पक्ष का, जैसे- एकपक्षीय, बहुपक्षीय 3. पक्षधर 4. पार्श्वीय। पक्षीराज (सं.) [सं-पु.] पक्षियों का राजा अर्थात गरुड़। पक्षीविज्ञान (सं.) [सं-पु.] जीवविज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पक्षियों की बाह्य और आंतरिक रचना, वर्गीकरण एवं विकास तथा मानव के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उपयोगिता इत्यादि का विवेचन होता है; (ऑर्निथोलॉजी)। पक्षीविहार (सं.) [सं-पु.] 1. वह प्राकृतिक स्थल जो पक्षियों के रहने के अनुकूल हो एवं उसे संरक्षित किया गया हो; (बर्ड सैंक्चुअरी) 2. पक्षियों के लिए संरक्षित उद्यान। पक्ष्म (सं.) [सं-पु.] 1. आँख की पलक; बरौनी, भौंह 2. किसी पुष्प का केसर 3. पुष्प की पंखुड़ी 4. पंख; पर 5. बाल। पख़ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. ऐसी शर्त जिससे किसी काम में बाधा या अड़चन पैदा हो; अड़ंगा; प्रतिबंध; रोक 2. झंझट; झगड़ा; विवाद फ़साद 3. दोष; ऐब। पखवाड़ा (सं.) [सं-पु.] 1. महीने का आधा भाग; पंद्रह दिन का समय; अर्धमास; (फोर्टनाइट) 2. चंद्रमास का शुक्ल या कृष्ण पक्ष। पखारना (सं.) [क्रि-स.] 1. पैर आदि को पानी से धोना 2. किसी स्थान को धोकर साफ़ करना 3. धूल, मैल आदि गंदगी छुड़ाना। पखाल [सं-स्त्री.] 1. पानी भरने की मशक 2. लुहार की धौंकनी 3. मुँह धोने का बरतन 4. चिलमची। पखाली [सं-पु.] पानी भरने का काम करने वाला व्यक्ति; भिश्ती। पखावज (सं.) [सं-स्त्री.] मृदंग जैसा किंतु उससे कुछ छोटे आकार का एक वाद्य यंत्र। पखावजी [सं-पु.] पखावज अथवा मृदंग बजाने वाला व्यक्ति; ढोलकिया। पखिया [सं-पु.] 1. व्यर्थ का दोष निकालने वाला 2. व्यर्थ का झगड़ा-फ़साद खड़ा करने वाला; झगड़ालू; फ़सादी 3. वितंडावादी। [वि.] बेकार का; फ़िज़ूल। पखुरा [सं-पु.] मानव शरीर में कंधे और बाँह के जोड़ के पास का भाग; भुजमूल के पास का भाग। पखेरू [सं-पु.] पक्षी; चिड़िया। पग (सं.) [सं-पु.] 1. पैर; पाँव; चरण 2. डग; कदम। पगडंडी [सं-स्त्री.] 1. वह सँकरा मार्ग जो पैदल आने-जाने से जंगल, बगीचे आदि में बन जाता है; टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता 2. खेत या मैदान आदि में बना हुआ छोटा रास्ता 3. कच्ची राह; डगर; बाट; लीक। पगड़ी [सं-स्त्री.] 1. सिर पर लपेटकर बाँधा जाने वाला एक लंबा कपड़ा; साफ़ा; मुरेठा; मुँडासा; पाग 2. दुकान आदि किराए पर देने के पूर्व भावी किराएदार से नज़राने के रूप में ली जाने वाली रकम 3. किसी व्यक्ति के देहांत के बाद उत्तराधिकार घोषित करने की रस्म 4. {ला-अ.} मध्यकालीन विचार से प्रतिष्ठा; मान-मर्यादा। पगना (सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी वस्तु या पदार्थ का किसी गाढ़े तरल पदार्थ या रस से ओत-प्रोत होना; सराबोर होना 2. मिठाई आदि का चाशनी में डूबना 3. निमग्न होना 4. लिप्त होना 5. {ला-अ.} किसी के प्रेम में डूबना। पग-पग (सं.) [क्रि.वि.] 1. थोड़ी-थोड़ी दूरी या देर 2. कदम-कदम। पगरा [सं-पु.] डग; कदम; पग। पगला [वि.] 1. नासमझ 2. पागल। पगली [सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जिसका मानसिक संतुलन ठीक न हो 2. जेल में किसी प्रकार का ख़तरा उत्पन्न होने पर बजाई जाने वाली घंटी; खतरे की घंटी; (अलार्म)। पगहा (सं.) [सं-पु.] पशुओं के गले में बाँधी जाने वाली वह रस्सी जिससे उन्हें खूँटे से बाँधा जाता है; पघा। पगाना [क्रि-स.] किसी खाद्य वस्तु को चाशनी में डुबोकर रखना। पगार1 [सं-पु.] 1. पैरों से कुचलकर तैयार किया हुआ गारा 2. कीचड़। पगार2 (सं.) [सं-पु.] 1. चहारदीवारी; परकोटा 2. दीवार; घेरा। पगार3 (फ़ा.) [सं-पु.] वह नाला या नदी जिसे पैदल पार किया जा सके। पगार4 (तु.) [सं-स्त्री.] वेतन; तनख़्वाह। पगिया [सं-स्त्री.] 1. पगड़ी 2. साफ़ा। पगुराना [क्रि-अ.] 1. मुँह चलाना 2. चौपायों का जुगाली या पागुर करना। [क्रि-स.] {ला-अ.} हड़प जाना; पचा जाना। पगोडा (ब.) [सं-पु.] 1. बौद्ध धर्मावलंबियों का उपासना स्थल 2. महात्मा बुद्ध का मंदिर; बौद्ध मंदिर। पग्गड़ [सं-पु.] सिर पर लपेटकर बाँधी जाने वाली बहुत बड़ी और भारी पगड़ी। पघा [सं-पु.] गाय, भैंस आदि के गले में बाँधी जाने वाली रस्सी; पगहा। पचकना [क्रि-अ.] दे. पिचकना। पचगुना [वि.] जिसमें कोई राशि या माप पाँच बार सम्मिलित किया गया हो; पाँचगुना। पचड़ा [सं-पु.] 1. व्यर्थ का बखेड़ा, झंझट या प्रपंच 2. लावनी की तरह का एक प्रकार का लोकगीत 3. वह गीत जो ओझा लोगों द्वारा देवी के सामने गाया जाता है। पचन (सं.) [सं-पु.] पचने की क्रिया या भाव। पचना (सं.) [क्रि-अ.] 1. खाए हुए भोज्य पदार्थ का आमाशय में पहुँचकर जठराग्नि की सहायता से गल कर तरल रूप में परिवर्तित हो जाना; हज़म होना 2. किसी दूसरे का धन इस प्रकार भोगा जाना या अधिकार में करना कि उसके मूल स्वामी को उसका कोई भी अंश प्राप्त न हो और उसका दुष्परिणाम भी न भोगना पड़े 3. एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ में पूर्ण रूप से लीन होना; खपना 4. किसी बात का किसी व्यक्ति के मन में इस प्रकार छिपा रहना कि उसका औरों को पता न चले 5. अधिक परिश्रम से क्षीण होना 6. परेशान होना। पचनाग्नि (सं.) [सं-स्त्री.] पेट की आग जिससे खाया हुआ पदार्थ पचता है; जठराग्नि। पचनीय (सं.) [वि.] 1. जो पच या पचाया जा सकता हो 2. पकाने योग्य 3. पचने योग्य। पचपच [सं-स्त्री.] 1. 'पच-पच' शब्द करने या होने की क्रिया या भाव 2. बार-बार पच शब्द उत्पन्न करना 3. कीच। पचपन (सं.) [वि.] संख्या '55' का सूचक। पचमढ़ी [सं-पु.] 1. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित एक पर्वतीय पर्यटन स्थल 2. सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। पचमेल [वि.] दे. पँचमेल। पचरंग [सं-पु.] पाँच रंग की बुकनी या चूर्ण जिसका प्रयोग चौक पूरने में होता है। पचहत्तर [वि.] संख्या '75' का सूचक। पचहरा [वि.] 1. पाँच तहों या परतों वाला 2. पाँच बार का 3. पाँच तरह का 4. पँचगुणा। पचाना (सं.) [क्रि-स.] 1. खाई हुई वस्तु को पक्वाशय की अग्नि से रस में परिणत करना 2. किसी बात या तथ्य को छुपा ले जाना। पचास (सं.) [सं-पु.] संख्या '50' का सूचक। पचासा [सं-पु.] 1. पचास सजातीय वस्तुओं का समूह 2. पचास वर्षों का समूह 3. पचास रुपए। पचित [वि.] 1. पचा हुआ 2. घुला-मिला हुआ। पचीसी [सं-स्त्री.] 1. पच्चीस सजातीय वस्तुओं का समूह 2. गणना का वह प्रकार जिसमें पच्चीस वस्तुओं की एक इकाई मानी जाती है 3. किसी के जीवन के आरंभिक पच्चीस वर्ष 4. एक तरह की द्यूतक्रीड़ा 5. द्यूतक्रीड़ा की बिसात। पचेलिम (सं.) [सं-पु.] 1. सूर्य 2. अग्नि। [वि.] सुगमतापूर्वक और शीघ्रता से पचने वाला। पचेलुक (सं.) [सं-पु.] रसोइया; जो भोजन बनाता या पकाता है पचौनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पचने या पचाने की क्रिया या भाव 2. आमाशय; अँतड़ी; आँत; मेदा। पच्चड़ [सं-पु.] दे. पच्चर। पच्चर (सं.) [सं-पु.] 1. बाँस या लकड़ी का वह छोटा एवं पतला टुकड़ा जो लकड़ी की बनी हुई चीज़ों में संधि की दरार भरने के लिए ठोंका जाता है 2. {ला-अ.} व्यर्थ की बाधा; अड़चन; रुकावट। पच्ची (सं.) [सं-स्त्री.] धातुओं, पत्थरों आदि पर नगीने आदि के छोटे-छोटे टुकड़े जड़ने की वह क्रिया या प्रकार, जिसमें जड़ी जाने वाली चीज़ इस प्रकार जमाकर बैठाई जाती है, कि उसका ऊपरी तल उभरा हुआ नहीं रह जाता, जैसे- सोने के हार में हीरों की पच्ची। [परप्रत्य.] एक प्रकार का प्रत्यय जिसका अर्थ पचना, पचाना या खपाना होता है, जैसे- माथापच्ची। पच्चीकारी [सं-स्त्री.] 1. पच्ची करके जड़ाई करने की क्रिया या भाव 2. पच्ची करके तैयार किया गया काम। पच्चीस [सं-पु.] संख्या '25' का सूचक। पच्छिम [सं-पु.] दे. पश्चिम। पछताना [क्रि-अ.] 1. कोई अनुचित कार्य करके बाद में उसके लिए दुखी होना 2. अफ़सोस या पश्चाताप करना। पछतावा [सं-पु.] 1. पछताने की क्रिया या भाव 2. पश्चाताप; अफ़सोस 3. अनुचित कार्य करने के बाद होने वाली आत्मग्लानि। पछना [सं-पु.] 1. पाछने का औज़ार 2. फसद। [क्रि-अ.] पाछा अर्थात छुरे से हलका चीरा लगाया जाना। पछवाँ [सं-स्त्री.] 1. पश्चिम की ओर से आने वाली हवा; पश्चिमी हवा 2. अँगिया का वह भाग जो पीछे की ओर होता है। [वि.] पश्चिमीय; पश्चिम का। पछाँह (सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थान विशेष के पश्चिम की ओर स्थित प्रदेश या क्षेत्र 2. पश्चिम दिशा। पछाँही (सं.) [वि.] 1. पछाँह से संबंधित 2. पछाँह (पश्चिम) में रहने वाला। पछाड़ [सं-पु.] कुश्ती का एक दाँव। [सं-स्त्री.] 1. पछाड़ने की क्रिया या भाव 2. पछाड़े जाने की अवस्था या भाव 3. किसी शोक के कारण बेसुध होकर ज़मीन पर गिर पड़ना; मूर्छित होना। पछाड़ना1 [क्रि-स.] 1. किसी प्रतियोगिता में प्रतिद्वंद्वी को पराजित करना 2. कुश्ती प्रतियोगिता में विपक्षी को चित करना। पछाड़ना2 (सं.) [सं-पु.] कपड़ा धोकर साफ़ करने के लिए ज़मीन पर ज़ोर-ज़ोर से पटकना। पछियाव (सं.) [सं-स्त्री.] पश्चिम दिशा की ओर से आने वाली हवा; पश्चिमी हवा। पछुआ [सं-स्त्री.] पश्चिम दिशा से चलने वाली हवा; पछवाँ। [सं-पु.] कड़े जैसा एक आभूषण जिसे पैरों में पहना जाता है। पछेली [सं-स्त्री.] हाथ में पहना जाने वाला स्त्रियों का एक गहना। पछोड़न [सं-स्त्री.] अनाज आदि को पछोड़ने या फटकने के बाद उससे निकला कूड़ा-करकट। पछोड़ना [क्रि-स.] अनाज आदि को फटककर साफ़ करना; फटकना। पज़ाबा (फ़ा.) [सं-पु.] ईंट पकाने की भट्ठी। पजारना [क्रि-स.] जलाना। पजूसण [सं-पु.] जैनों का एक व्रत; पर्यूषण। पट (सं.) [सं-पु.] 1. परदा; ओट; आवरण 2. कोई आड़ करने वाली चीज़ या कपड़ा; पल्ला 3. पहनने के कपड़े, वस्त्र या पोशाक 4. किवाड़ का पल्ला 5. पालकी का दरवाज़ा 6. किसी वस्तु की चपटी सतह 7. कुश्ती का पेंच 8. सिंहासन 9. जगन्नाथ, बदरीनाथ आदि का चित्र 10. जलबूँद के गिरने की ध्वनि। पटइन [सं-स्त्री.] गहने गूँथने वाली पटवा जाति की स्त्री। पटकथा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मुख्य कथा 2. सिनेमा आदि में प्रयुक्त कथा एवं संवाद; (स्क्रीनप्ले)। पटकना (सं.) [क्रि-स.] 1. निर्दयता के साथ ज़मीन पर फेंकना या गिराना 2. कुश्ती में प्रतिद्वंद्वी को ज़मीन पर पछाड़ना या दे मारना 3. हाथ में ली हुई वस्तु को ज़मीन आदि पर ज़ोर से गिराना। [क्रि-अ.] 1. ऊपरी तल का दब कर कुछ कम हो जाना; पचकना 2. पट की आवाज़ करते हुए दरकना या फूटना 3. सूखकर सिकुड़ना। पटकनिया [सं-स्त्री.] पटकने का ढंग, भाव अथवा युक्ति। पटकनी [सं-स्त्री.] 1. पटकने या पटके जाने की क्रिया, भाव या अवस्था 2. पछाड़ खाकर गिरने की क्रिया या भाव; पटकान। पटका [सं-पु.] कमर में लपेटकर बाँधने वाला कपड़ा; कमरबंद। पटकान [सं-स्त्री.] 1. पटकने या पटके जाने की क्रिया या भाव 2. गिराने की क्रिया या भाव। पटचित्र (सं.) [सं-पु.] कपड़े पर बना हुआ चित्र जिसे लपेटकर रखा जा सके। पटतारना [क्रि-स.] 1. असमान धरातल को समतल या चौरस करना 2. भाला, तलवार आदि को इस प्रकार पकड़ना कि उससे वार किया जा सके। पटना [सं-पु.] प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध नगरी पाटलिपुत्र का वर्तमान नाम जो बिहार राज्य की राजधानी है। [क्रि-अ.] 1. पाटा जाना 2. अपेक्षाकृत नीची भूमि या गड्ढे आदि को भरकर समतल किया जाना 3. खेतों आदि का पानी से सींचा जाना 4. रुचि, स्वभाव आदि में समानता के कारण परस्पर सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित होना 5. ऋण आदि अदा किया जाना 6. व्यापारिक मुद्दों पर सहमति होना। पटनी [सं-स्त्री.] 1. वह कमरा जिसके ऊपर और भी कमरा हो 2. चीज़ें रखने के लिए दीवार में लगा हुआ पट्टा 3. ज़मीन का स्थायी बंदोवस्त करने की रीति। पटपट [सं-स्त्री.] पट शब्द का निरंतर उत्पन्न होना। [क्रि.वि.] 'पट-पट' शब्द करते हुए। पटपटाना [क्रि-स.] 1. लगातार 'पट-पट' की आवाज़ करना 2. 'पट-पट' की ध्वनि के साथ किसी चीज़ को बजाना या पीटना। [क्रि-अ.] भूख या गरमी से तड़पना। पट-बंधक (सं.) [सं-पु.] रेहन अथवा बंधक का एक प्रकार। पटभाक्ष (सं.) [सं-पु.] प्राचीन काल में प्रयुक्त एक प्रकार का प्रकाशयंत्र। पटमंजरी (सं.) [सं-पु.] वसंत ऋतु में आधी रात के समय गाई जाने वाली एक रागिनी। पटरा (सं.) [सं-पु.] 1. लकड़ी का ऐसा समतल टुकड़ा जिसकी लंबाई अधिक किंतु चौड़ाई और मोटाई कम हो; तख़्ता; पल्ला 2. काठ का पीढ़ा; पाटा 3. धोबी का पाट 4. हेंगा। पटरानी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. राजा की प्रथम ब्याहता पत्नी; पट्टमहिषी 2. वह रानी जिसको राजा के साथ सिंहासन पर बैठने का अधिकार होता था। पटरी [सं-स्त्री.] 1. लोहे के मोटे और समानांतर गार्डर जिन पर रेलगा‌ड़ी चलती है; (रेलवेलाइन) 2. लकड़ी से बना एक विशेष प्रकार का पट्टा, जिसपर खड़िया या चॉक से लिखा जाता है; तख़्ती; पटिया 3. छोटा पटरा 4. एक प्रकार की चू‌ड़ी 5. साड़ी, लहँगे आदि की कोर पर टाँकने का सोने या चाँदी के तारों से बना फ़ीता 6. नहर, सड़क आदि के किनारे का रास्ता 7. सीधी रेखा खींचने में प्रयोग की जाने वाली लकड़ी या प्लास्टिक पट्टी; (स्केल)। पटल (सं.) [सं-पु.] 1. छत 2. आड़ करने का आवरण; परदा 3. तह; परत 4. आँख का एक रोग 5. छप्पर 6. पटर; तख़्ता 7. पक्ष; पहल 8. पंखुड़ी 9. पट्ट; (बोर्ड)। पटलन (सं.) [सं-पु.] पटल चढ़ाने या जमाने का कार्य। पटवा [सं-पु.] 1. एक जाति जो गहने गूँथने का काम करती है; गुहेरा 2. पटसन; पाट। पटवाना [क्रि-स.] 1. पाटने का काम किसी अन्य से कराना या इस हेतु किसी को प्रवृत्त करना 2. गड्ढा आदि भरवाकर समतल कराना 3. ऋण आदि अदा करवाना 4. व्यापारिक सौदा तय कराना। पटवारी [सं-पु.] ज़मीन आदि का पट्टा लिखने वाला सरकारी अधिकारी; लेखपाल। पटवास (सं.) [सं-पु.] 1. तंबू; खेमा 2. स्त्रियों का लहँगा। पट विज्ञापन (सं.) [सं-पु.] पटल रूप में किसी सार्वजनिक स्थान पर लटकाया या गाड़ा गया विज्ञापन। पटसन (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध पौधा जिसके डंठल में लगे हुए रेशे को बटकर रस्सी, बोरा आदि तैयार किया जाता है तथा उसके सूखे तने से दियासलाई की सींक तैयार की जाती है 2. सनई के रेशे; जूट। पटह (सं.) [सं-पु.] 1. डुगडुगी 2. डंका; नगाड़ा 3. ढोल 4. किसी काम में हाथ डालना या लगाना 5. क्षति या हानि पहुँचाना 6. हिंसा। पटहार (सं.) [सं-पु.] 1. रेशम या सूत में मनके आदि गूँथने वाला व्यक्ति; गहना गूँथने वाला व्यक्ति 2. गहना गूँथने का पेशा करने वाली एक जाति 3. एक तरह का बैल 4. पटवा। पटहारिन (सं.) [सं-स्त्री.] 1. रेशम या सूत में मनके आदि गूँथने वाली स्त्री; गहना गूँथने का काम करने वाली स्त्री 2. पटहार की स्त्री। पटा (सं.) [सं-पु.] 1. पटरा; पीढ़ा 2. दुपट्टा 3. कपड़ा; वस्त्र 4. लोहे की पट्टी जिससे लोग तलवारबाज़ी सीखते हैं। पटाई [सं-स्त्री.] 1. पाटने या पटाने की क्रिया या भाव 2. पाटने या पटाने की मज़दूरी। पटाक [सं-पु.] 1. पट की आवाज़ 2. किसी भारी वस्तु के गिरने अथवा किसी वस्तु पर कठोर आघात करने से उत्पन्न शब्द। पटाका [सं-पु.] 1. छोटी आतिशबाज़ी 2. पट या पटाक की ध्वनि। पटाक्षेप (सं.) [सं-पु.] 1. परदा गिरना या गिराना 2. रंगमंच पर किए जा रहे नाटक का एक अंक समाप्त होने पर परदा गिरना 3. {ला-अ.} किसी घटना की समाप्ति की क्रिया या भाव। पटाखा [सं-पु.] 1. पटाक से होने वाला ज़ोर का शब्द 2. एक तरह की आतिशबाज़ी जिससे तीव्र ध्वनि होती है 3. थप्पड़ और तमाचा। पटान [सं-स्त्री.] 1. ऋण या कर्ज़ चुकाने की क्रिया या भाव 2. पाटने की क्रिया या भाव। पटाना [क्रि-स.] 1. पाटने की क्रिया में किसी को प्रवृत्त करना 2. गड्ढा आदि भरवाकर समतल कराना 3. खेत में सिंचाई कराना 4. ऋण या कर्ज़ चुकाना 5. व्यापार संबंधी सहमति बनाना; सौदा पटाना 6. मोलभाव करके सौदा तय करना 7. अपने व्यवहार तथा स्वभाव से किसी को वशीभूत करना 8. सहमत करना। पटापट [सं-स्त्री.] निरंतर होने वाली पटपट की ध्वनि या शब्द। [अव्य.] 1. निरंतर 'पट-पट' शब्द करते हुए 2. बहुत तेज़ी या शीघ्रता से। पटापटी [सं-स्त्री.] 1. वह वस्तु जिसपर रंग-बिरंगे बेल-बूटे, फूल-पत्तियाँ आदि बनी हों 2. रंगबिरंगी वस्तु। पटाफेर [सं-पु.] विवाह की एक रस्म जिसमें वर-वधू परस्पर आसन बदलते हैं। पटाव [सं-पु.] 1. पाटने की क्रिया या भाव 2. पाटकर समतल या ऊँचा किया हुआ स्थल। पटिया [सं-स्त्री.] पट्टी। पटी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कपड़े का लंबा एवं पतला टुकड़ा; पट्टी 2. साफ़ा; पगड़ी 3. कमरबंद; पटका 4. परदा; आवरण 5. रंगमंच का परदा; यवनिका। पटीमा [सं-पु.] छीपियों का वह तख़्ता जिसपर वे कपड़े को फैलाकर छापते हैं। पटीर (सं.) [सं-पु.] 1. कत्था; खैर 2. एक प्रकार का चंदन 3. कत्था या खैर का वृक्ष; खदिर वृक्ष 4. गेंद 5. बरगद का पेड़; वटवृक्ष 6. मूली 7. क्यारी 8. क्षेत्र; मैदान 9. जुकाम; प्रतिश्याय 10. उदर; पेट 11. चलनी 12. मेघ; बादल। पटीलना [क्रि-स.] 1. किसी को समझा-बुझाकर या बहला-फुसलाकर अपने मत के अनुकूल करना 2. छलना; ठगना 3. पराजित करना; हराना 4. कोई काम पूर्ण करना 5. कमाना 6. मारना; पीटना। पटु (सं.) [वि.] 1. कुशल; दक्ष; निपुण; प्रवीण; चतुर; होशियार 2. तीक्ष्ण; तेज़। [सं-पु.] 1. नमक 2. पाँगा या पांशु नमक; समुद्री नमक 3. परवल 4. करेला 5. जीरा 6. चिरमिटा नामक लता। पटुआ (सं.) [सं-पु.] 1. जूट; पटसन 2. वह डंडा जिसके सिरे पर डोरी बँधी रहती है और जिसे पकड़कर नाव खींचते हैं। पटुता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पटु होने की अवस्था या भाव 2. दक्षता; कुशलता; निपुणता; प्रवीणता; होशियारी। पटुवा (सं.) [सं-पु.] दे. पटुआ। पटेबाज़ [सं-पु.] पटा खेलने वाला; पटैत। [वि.] धूर्त और व्यभिचारी। पटेल (सं.) [सं-पु.] 1. गाँव का मुखिया या प्रधान 2. प्राचीन काल में गाँव का एक कर्मचारी; नंबरदार 3. गुजराती कुर्मियों में एक कुलनाम या सरनेम। पटोरी [सं-स्त्री.] 1. रेशम की साड़ी या धोती 2. रेशमी चादर। पटोल (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का रेशमी वस्त्र 2. परवल। पटोलक (सं.) [सं-पु.] सीपी; शुक्ति। पटोलरी [सं-पु.] पटोल। पटोला [सं-पु.] 1. कपड़े का छोटा टुकड़ा 2. गुजरात में बनने वाला एक प्रकार का रेशमी कपड़ा; परवल। पटौनी [सं-स्त्री.] 1. पाटने या पटाने की क्रिया या भाव 2. पाटने या पटाने की मज़दूरी। पट्ट (सं.) [सं-पु.] 1. किसी धातु या लकड़ी का समतल छोटा टुकड़ा; तख़्ती; पटिया; (प्लेट) 2. पीढ़ा; पाटा 3. राजाज्ञा, दानपत्र आदि खुदवाने के लिए प्रयुक्त ताँबा आदि की पट्टी 4. घाव आदि पर बाँधने के लिए कपड़े की पट्टी 5. पत्थर का मध्यम आकार का समतल टुकड़ा; सिल 6. पगड़ी 7. दुपट्टा 8. शहर; नगर 9. चौराहा 10. राजसिंहासन 11. पटसन; पाट 12. रेशम। पट्टक (सं.) [सं-पु.] 1. लेखन कार्य में प्रयुक्त पट्टी या तख़्ती 2. राजकीय आदेश या दान-लेख आदि खुदवाने के लिए ताँबा आदि धातुओं का पत्तर 3. दस्तावेज़ 4. घाव या सूजन आदि पर बाँधने की पट्टी 5. पगड़ी या साफ़ा बनाने में प्रयुक्त रेशमी कपड़ा। पट्टन (सं.) [सं-पु.] नगर; शहर। पट्टमहिषी (सं.) [सं-स्त्री.] पटरानी; राजा की पहली रानी। पट्टला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. आधुनिक जनपद जैसी एक प्राचीन प्रशासनिक इकाई 2. उक्त इकाई में निवास करने वाली जनता या जनसमुदाय। पट्टा [सं-पु.] 1. किसी ज़मीन के उपयोग का अधिकारपत्र; इस्तमरारी 2. कुत्ते आदि के गले में बाँधी जाने वाली चमौटी 3. लकड़ी का बना बैठने का उपकरण; पीढ़ा 4. पुरुषों के सिर के पीछे की ओर के बराबर कटे बाल 5. चमड़े का कमरबंद; (बेल्ट)। पट्टाधारी (सं.) [वि.] वह व्यक्ति जिसने कुछ शर्तों के अधीन कोई भू-खंड या अन्य संपत्ति भोग्यार्थ प्राप्त की हो। पट्टानामा (सं.) [सं-पु.] 1. किसी स्थावर संपत्ति के उपभोग एवं प्रशासनिक व्यवस्था की देख-रेख से संबंधित सशर्त अधिकारपत्र; सनद 2. ज़मींदार द्वारा किसान को एक निश्चित अवधि तक ज़मीन जोतने-बोने के लिए दिया जाने वाला नियमों एवं शर्तों से संबंधित लेख; दस्तावेज़। पट्टार (सं.) [सं-पु.] एक प्राचीन देश। पट्टिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पटिया; तख़्ती 2. छोटे आकार का चित्र-पट या ताम्रपट 3. घाव आदि पर बाँधने की पट्टी 4. दस्तावेज़; पट्टा 5. रेशम का पतला एवं लंबा टुकड़ा 6. पठानी लोध। पट्टिकाख्य (सं.) [सं-पु.] पठानी लोध; रक्त लोध्र। पट्टिल (सं.) [सं-पु.] पलंग। पट्टिलोध्र (सं.) [सं-पु.] पठानी लोध। पट्टिश (सं.) [सं-पु.] दोनों तरफ़ धार वाला एक प्राचीन अस्त्र; पटा। पट्टी [सं-स्त्री.] 1. तख़्त और पलंग के किनारे की ओर लगने वाली लकड़ी की तख़्ती 2. चोट पर बाँधा जाने वाला जालीदार कपड़ा 3. बच्चों के लिखने की पाटी; पटिया 4. उपदेश; शिक्षा 5. बुरे इरादे से दी जाने वाली सलाह 6. किसी संपत्ति या उससे होने वाली आय का अंश; हिस्सा; पत्ती 7. पाठ; सबक 8. ज़मीन पर बिछाया जाने वाला टाट का लंबा सँकरा कपड़ा 9. नाव के बीच का तख़्ता 10. तिल एवं गुड़ से बनी एक प्रकार की मिठाई 11. कमरबंध 12. कुछ दूर तक जाने वाली कम चौड़ी और अधिक लंबी वस्तु या भूभाग। पट्टीदार [सं-पु.] 1. संपत्ति या ज़मीन में हिस्सेदार व्यक्ति 2. बराबर का हकदार। पट्टीदारी [सं-स्त्री.] पट्टीदारों का आपसी या पारस्परिक संबंध। पट्टू [सं-पु.] 1. एक प्रकार का ऊनी कपड़ा जो कम चौड़ा और लंबी पट्टी के रूप में बुना होता है 2. एक प्रकार का चारख़ानेदार कपड़ा। पट्टेदार [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जिसने पट्टा लिखकर कोई ज़मीन ली हो 2. संपत्ति आदि में समान हिस्सा रखने वाला व्यक्ति। पट्ठा [सं-पु.] 1. जवान; युवा; तरुण 2. चढ़ती जवानी वाला व्यक्ति 3. कुश्ती लड़ने वाला पहलवान; कुश्तीबाज़ 4. एक तरह का चौड़ा गोटा 5. लंबा, बड़ा तथा दलदार मोटा पत्ता 6. मांस-पेशियों को हड्डियों के साथ बाँधे रखने वाली तंतु या नसें; स्नायु। पठन (सं.) [सं-पु.] पढ़ने की क्रिया या भाव। पठन-पाठन (सं.) [सं-पु.] पढ़ना और पढ़ाना; अध्ययन और अध्यापन। पठन-सामग्री (सं.) [सं-स्त्री.] पढ़ने के लिए प्रयोग की जाने वाली सामग्री; पाठ्य पुस्तक। पठनीय (सं.) [वि.] 1. जो पढ़ने के योग्य हो 2. जिसे सरलता से पढ़ा जा सके। पठमंजरी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पटमंजरी 2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक रागिनी। पठान (फ़ा.) [सं-पु.] 1. मुसलमानों की एक उपजाति और उपनाम 2. पश्तो भाषा बोलने वाला व्यक्ति 3. अफ़गानिस्तान-पख़्तूनिश्तान प्रदेश का निवासी। पठानी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. पठान की या पठान जाति की स्त्री 2. पठान का स्वभाव; पठानपन। [वि.] 1. पठान संबंधी 2. पठान का। पठार (सं.) [सं-पु.] 1. दूर तक फैली हुई लंबी-चौंड़ी ऊँची ज़मीन 2. एक पहाड़ी जाति। पठावन [सं-पु.] दूत; संदेशवाहक। पठावनी [सं-स्त्री.] किसी को कुछ देने या संदेश पहुँचाने हेतु कहीं भेजने की क्रिया या भाव। पठित (सं.) [वि.] जिसे पढ़ा जा चुका हो; पढ़ा हुआ। पठौनी [सं-स्त्री.] पठावनी। पड़छत्ती [सं-स्त्री.] परछत्ती। पड़ता [सं-पु.] 1. बिक्री मूल्य में से लागत मूल्य निकालकर होने वाली बचत 2. किसी वस्तु की ख़रीद, लागत, परिवहन आदि पर होने वाला व्यय जिसके आधार पर उसका मूल्य निश्चित होता है 3. आय-व्यय आदि का औसत या माध्य 4. भूमिकर की दर; लगान की दर। पड़ताल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी वस्तु या बात आदि के विषय में भली-भाँति की जाने वाली छान-बीन या निरीक्षण; जाँच 2. पटवारियों या कानूनगो द्वारा भूमि की माप, बोई गई फ़सल, बोने वाले के नाम आदि से संबंधित की जाने वाली जाँच। पड़ती [सं-स्त्री.] कुछ समय के लिए खाली पड़ी उर्वर ज़मीन; न जोती-बोई गई खेती योग्य भूमि; परती। पड़ना (सं.) [क्रि-अ.] 1. किसी पात्र या आधान में किसी चीज़ का डाला या पहुँचाया जाना 2. गिरना; पतित होना 3. दुख, कष्ट आदि ऊपर आना 4. एक वस्तु का किसी दूसरी वस्तु पर ठीक ढंग से फैलाया या बिछाया जाना 5. कहीं अचानक जा पहुँचना 6. किसी विकट स्थिति या कष्टदायक घटना का सामना होना। पड़पड़ाना [क्रि-अ.] 1. 'पड़-पड़' शब्द उत्पन्न करना 2. 'पड़-पड़' शब्द होना। पड़पड़ाहट [सं-स्त्री.] 'पड़-पड़' शब्द करने या होने की क्रिया अथवा भाव। पड़पोता [सं-पु.] दे. परपोता। पड़वा [सं-पु.] भैंस का नर बच्चा। पड़ा [सं-पु.] भैंस का नर बच्चा; पड़वा। पड़ाव [सं-पु.] 1. डेरा; शिविर; अस्थायी ठहरने का स्थान 2. सेना, पथिकों आदि का कुछ समय के लिए रास्ते में कहीं ठहरना; टिकान; ठहराव। पड़िया [सं-स्त्री.] भैंस का मादा बच्चा। पड़िहार [सं-पु.] राजपूतों में एक कुलनाम या सरनेम; प्रतिहार; परिहार। पड़ोस (सं.) [सं-पु.] 1. किसी के निवास स्थान के आस-पास के घर एवं क्षेत्र 2. किसी नगर, गाँव, प्रदेश आदि से सटा या लगा हुआ अथवा समीपवर्ती क्षेत्र 3. प्रतिवेश; प्रतिवास। पड़ोसन (सं.) [सं-स्त्री.] पड़ोस में रहने वाली स्त्री। पड़ोसिन (सं.) [सं-स्त्री.] दे. पड़ोसन। पड़ोसी (सं.) [सं-पु.] पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति; हमसाया; प्रतिवेशी; प्रतिवासी। पढ़ंत [सं-स्त्री.] पढ़ाई। पढ़त [सं-स्त्री.] पढ़ने की क्रिया या भाव; पढ़ाई। पढ़ना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी लिपि के वर्णों के उच्चारण, रूप आदि से परिचित होना 2. लिखे या छपे हुए अक्षरों का क्रम से उच्चारण करना 3. लिखित अथवा मुद्रित चिह्नों, वर्णों आदि को देखकर उनका आशय या अभिप्राय जानना 4. किसी पाठ का बार-बार उच्चारण करते हुए अभ्यास करना। पढ़ना-लिखना [क्रि-स.] 1. पढ़ने और लिखने का कार्य करना 2. शिक्षा प्राप्त करना। पढ़वाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को पढ़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी को पढ़ाने में प्रवृत्त करना; किसी से पढ़ाने की क्रिया कराना। पढ़वैया [वि.] 1. पढ़नेवाला 2. पढ़ानेवाला। पढ़ाई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पढ़ने की क्रिया या भाव 2. अध्ययन; पठन 3. विद्योपार्जन; शिक्षा 4. पढ़ने के लिए मिलने वाला धन 5. पढ़ाने का काम 6. पाठन; अध्यापन 7. पढ़ाने का ढंग या तरीका 8. पढ़ाने के बदले दिया जाने वाला या मिलने वाला धन। पढ़ाना (सं.) [क्रि-स.] 1. किसी को पढ़ने में प्रवृत्त करना 2. किसी को शिक्षा देना या शिक्षित करना 3. लिखित या मुद्रित बातों का ज्ञान प्राप्त कराने के उद्देश्य से किसी को किसी पाठ का वाचन कराना 4. मंत्र, श्लोक आदि का विधिपूर्वक उच्चारण संपन्न कराना 5. तोता, मैना आदि पक्षियों को मनुष्य की तरह किसी शब्द या शब्दसमूह का उच्चारण करना सिखाना 6. किसी को कोई कला या हुनर सिखाना। पढ़ालिखा (सं.) [वि.] 1. शिक्षित 2. जिसे पढ़ना-लिखना आता हो 3. पढ़ने-लिखने में सक्षम। पढ़ैया [सं-पु.] पढ़नेवाला; पढ़ाकू। पण (सं.) [सं-पु.] 1. पासों से खेला जाने वाला एक खेल; जुआ; द्यूत 2. बाजी; शर्त 3. क्रय-विक्रय की वस्तु 4. किसी वस्तु की कीमत या मूल्य 5. विक्रेता 6. पारिश्रमिक; मज़दूरी 7. वेतन 8. व्यापार; रोज़गार 9. प्राचीन कालीन तौल की एक नाप 10. प्राचीनकाल में प्रचलित दस या बीस माशे के बराबर का एक ताम्र सिक्का 11. प्रशंसा; स्तुति 12. प्रतिज्ञा। पणता (सं.) [सं-स्त्री.] मूल्य; कीमत; दाम। पणन (सं.) [सं-पु.] 1. क्रय-विक्रय की क्रिया या भाव 2. व्यापार आदि करने की क्रिया 3. बाजी या शर्त लगाना 4. प्रतिज्ञा, इकरार या कौल करना। पणनीय (सं.) [वि.] 1. जिसका क्रय-विक्रय किया जा सके 2. पणन के योग्य 3. जिससे धन के लोभ से कोई काम कराया जा सके। पणवानक (सं.) [सं-पु.] एक प्रसिद्ध बाजा; नगाड़ा। पणांगना (सं.) [सं-स्त्री.] वेश्या; रंडी। पणायित (सं.) [वि.] 1. वह वस्तु जो ख़रीदी या बेची जा चुकी हो 2. जिसकी स्तुति की गई हो; स्तुत। पणास्थि (सं.) [सं-स्त्री.] कौड़ी; कपर्दक। पणि (सं.) [सं-पु.] 1. क्रय-विक्रय करने वाला व्यक्ति 2. कंजूस या पापी व्यक्ति। [सं-स्त्री.] 1. बाज़ार; हाट 2. दुकानों की कतार या पंक्ति। पणित (सं.) [सं-पु.] 1. बाजी; शर्त 2. अग्रिम राशि; पेशगी; बयाना 3. द्यूत; जुआ। [वि.] 1. जिसका क्रय-विक्रय हो चुका हो 2. जिसके संबंध में या जिसकी बाज़ी लगाई गई हो 3. जिसके विषय में कोई शर्त लगी हो 4. जिसकी स्तुति की गई हो; स्तुत; प्रशंसित। पणितव्य (सं.) [वि.] 1. जिसका क्रय-विक्रय किया जा सके 2. जिसका लेन-देन हो सके 3. जिसके साथ लेन-देन या व्यवहार किया जा सके 4. जिसकी प्रशंसा या स्तुति की जा सके। पणिता (सं.) [सं-पु.] क्रय-विक्रय करने वाला व्यक्ति; व्यापारी; सौदागर। पण्य (सं.) [सं-पु.] 1. वह चीज़ जो खरीदी और बेची जाती हो; माल; सौदा; विक्रेय वस्तु 2. बाज़ार; हाट 3. दुकान 4. व्यापार 5. मूल्य; दाम। [वि.] जिसे ख़रीदा या बेचा जा सके। पत (सं.) [सं-स्त्री.] लाज; आबरू; प्रतिष्ठा; इज़्ज़त। पतंग (सं.) [सं-स्त्री.] पतले कागज़ से बनी वह वस्तु जो डोर की सहायता से हवा में उड़ाई जाती है; कनकौआ; गुड्डी; चंग। पतंगबाज़ [सं-पु.] वह व्यक्ति जिसे पतंग उड़ाने का व्यसन हो; पतंगबाज़ी का शौकीन व्यक्ति। पतंगबाज़ी [सं-स्त्री.] 1. पतंग उड़ाने की क्रिया या भाव 2. पतंग उड़ाने का शौक 3. पतंग उड़ाने की कला। पतंगा [सं-पु.] 1. उड़ने वाला कीड़ा; पतिंगा 2. चिनगारी 3. दीए का फूल; चिराग का गुल 4. एक प्रकार का कीड़ा जो पौधों की पत्तियों, फलों आदि को खाता तथा नष्ट करता है 5. कीड़ा; कीट। पतंगी (सं.) [सं-पु.] पक्षी; चिड़िया। पतंचल (सं.) [सं-पु.] एक गोत्र प्रवर्तक ऋषि। पतंचिका (सं.) [सं-स्त्री.] धनुष की डोरी; प्रत्यंचा; चिल्ला। पतंजलि (सं.) [सं-पु.] 1. योगदर्शन के प्रवर्तक 2. एक प्रसिद्ध ऋषि जिन्होंने पाणिनीय सूत्रों और कात्यायन कृत उनके वार्तिक पर 'महाभाष्य' नामक बृहद भाष्य का निर्माण किया था। पतजिव (सं.) [सं-पु.] पुत्र-जीव। पतझड़ [सं-पु.] 1. वह ऋतु जिसमें सभी वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं और नए पत्ते निकलते हैं (फागुन और चैत माह में); शिशिर ऋतु 2. {ला-अ.} उन्नति के बाद होने वाली अवनति या ह्रास। पतझड़ी [वि.] 1. पतझड़ की-सी स्थिति 2. पतझड़ संबंधी। पतत्र (सं.) [सं-पु.] 1. पंख; पर 2. डैना; पंखा 3. वाहन; सवारी। पतत्रि (सं.) [सं-पु.] पक्षी; चिड़िया। पतन [सं-पु.] 1. ऊपर से नीचे आने या गिरने का भाव या क्रिया 2. 'उत्थान' का विलोम; अधोगति 3. मरण; संहार; नाश 4. किसी राष्ट्र या जाति आदि का ऐसी स्थिति में आना कि उसकी प्रभुता और महत्ता नष्ट हो जाए 5. पातक; पाप 6. बैठना; डूबना 7. उड़ना 8. किसी ग्रह या नक्षत्र का अक्षांश 9. घटाव। पतनशील (सं.) [वि.] 1. जिसका पतन हो रहा हो; पतन की ओर जाने वाला 2. गिरने वाला या गिरता हुआ। पतनशीलता (सं.) [सं-स्त्री.] पतनशील होने की स्थिति या भाव। पतनीय (सं.) [वि.] 1. पतन के योग्य 2. पतित होने के योग्य 3. पतन की ओर अग्रसर 4. पतित करने या बनाने वाला। [सं-पु.] पतित या च्युत करने वाला पाप। पतनोन्मुख (सं.) [वि.] 1. पतन की ओर उन्मुख 2. पतन की ओर जाने वाला 3. पतन की राह पर चलने वाला। पतयिष्णु (सं.) [वि.] जिसका पतन हो रहा हो; पतनशील। पतर (सं.) [सं-पु.] 1. पत्ता 2. पत्तल। पतरिंगा [सं-पु.] लंबी चोंच तथा लंबी पूँछवाला सुनहले हरे रंग का एक पक्षी। पतरौल [सं-पु.] 1. राजस्व विभाग का वह कर्मचारी जो कृषकों से जल कर आदि को वसूलकर राजस्व विभाग में जमा करता है; अमीन 2. गश्त लगाने वाला व्यक्ति। पतला (सं.) [वि.] 1. जिसका फैलाव या विस्तार कम हो 2. कृश 3. सँकरा 4. बारीक; झीना 5. जो गाढ़ा न हो 6. जिसमें द्रव की अधिकता हो; तरल 7. {ला-अ.} शक्तिहीन; निर्बल; दुर्बल; कमज़ोर। पतलापन (सं.) [सं-पु.] पतला होने की अवस्था या भाव; दुबलापन; कमज़ोरी। पतलून (इं.) [सं-स्त्री.] 1. सीधे पायँचों तथा जेबों वाला एक तरह का वस्त्र; (पेंट) 2. अँग्रेज़ी ढंग का एक प्रकार का पाजामा। पतवार (सं.) [सं-स्त्री.] 1. डाँड; नाव खेने का डंडा 2. नाव में पीछे की ओर लगी तिकोनी लकड़ी 3. पार उतारने का साधन। [सं-पु.] खेत में उगी घास-फूस। पतवास (सं.) [सं-स्त्री.] पक्षियों का अड्डा; चिक्कस। पतस (सं.) [सं-पु.] 1. पतिंगा; शलभ 2. चंद्रमा 3. पक्षी; चिड़िया। पता (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान का ऐसा परिचय जो उसे पाने-ढूँढ़ने या उसके पास तक संदेश पहुँचाने में सहायक हो 2. ठिकाना 3. डाक और रेल से भेजे जाने वाले समानों के आवरण पर लिखा जाने वाला नाम और रहने की जगह का पूरा विवरण 4. ज्ञात; मालूम 5. खोज; अनुसंधान 6. स्थिति सूचक लक्षण 7. गूढ़ तत्व; रहस्य। पताका (सं.) [सं-पु.] 1. झंडा; ध्वजा; फरहरा 2. बाँस आदि का वह डंडा जिसमें ध्वज पहनाया जाता है 3. चिह्न; निशान; प्रतीक 4. सौभाग्य 5. (नाट्यशास्त्र) प्रासंगिक कथावस्तु के दो भेदों में से एक; किसी नाटक की मूल कथा के साथ चलने वाली दूसरी कथा। पताकिनी (सं.) [सं-स्त्री.] सेना; फ़ौज। पता-ठिकाना [सं-पु.] किसी व्यक्ति या वस्तु का परिचय और स्थान आदि। पतापत (सं.) [वि.] अतिशय पतनयुक्त। पतावर [सं-पु.] झड़े हुए सूखे पत्ते। पति (सं.) [सं-पु.] 1. वह पुरुष जिससे किसी स्त्री का विवाह हुआ हो; शौहर; खाविंद; भर्ता; कांत; दूल्हा 2. सहचर; जीवनसाथी 3. किसी वस्तु या स्थान का मालिक। पतिंग [सं-पु.] दे. पतिंगा। पतिआना [क्रि-अ.] दे. पतियाना। पतिगृह (सं.) [सं-पु.] पति का घर; स्त्री का ससुराल। पतित (सं.) [वि.] 1. गिरा हुआ 2. जिसका नैतिक पतन हो चका हो; आचार भ्रष्ट 3. अधम; नीच; पापी 4. जाति, धर्म, समाज आदि से च्युत 5. युद्ध में पराजित 6. अपवित्र; मलिन 7. नीचे की ओर झुका हुआ; नत। पतितपावन (सं.) [वि.] 1. पतित को भी पवित्र करने वाला 2. पतितों का उद्धार करने वाला। [सं-पु.] 1. सगुण ब्रह्म 2. ईश्वर। पतितावस्था (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पतित होने की अवस्था या भाव 2. पापी या अधम होने की अवस्था। पतित्व (सं.) [सं-पु.] 1. पति होने की अवस्था या भाव 2. स्वामित्व; प्रभुत्व। पतियाना (सं.) [क्रि-स.] 1. विश्वास करना 2. विश्वसनीय या सच्चा समझना। पतिव्रत (सं.) [सं-पु.] 1. विवाहिता स्त्री का यह संकल्प कि मै सदा पति का साथ दूँगी एवं कभी विश्वासघात नहीं करूँगी 2. पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम; अनुराग; भक्ति। पतिव्रता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पति में पूर्ण निष्ठा, अनन्य श्रद्धा, अनुराग रखने वाली स्त्री 2. सच्चरित्रा; साध्वी। पतिहंता (सं.) [वि.] पति की हत्या करने वाली। [सं-स्त्री.] पति को मारने वाली स्त्री। पतीला (सं.) [सं-पु.] ताँबे, पीतल या एल्यूमिनियम आदि का गोल आकार का ऊँचे तथा खड़े किनारे वाला एक प्रसिद्ध पात्र। पतीली [सं-स्त्री.] दाल, चावल आदि पकाने का धातु से बना एक पात्र या बरतन। पतोई [सं-स्त्री.] गन्ने का रस खौलाते समय उसमें से निकलने वाला मैला झाग। पतोखदी [सं-स्त्री.] किसी वृक्ष, पौधे या घास के फूल, पत्ते आदि से निर्मित औषधि। पतोखा [सं-पु.] 1. पत्ते अथवा पत्तों से बना कटोरे के आकार का पात्र; दोना 2. पत्तों से निर्मित छाता या छतरी 3. एक प्रकार का बगुला; पतंखा। पतोहू [सं-स्त्री.] पुत्र की पत्नी; पुत्रवधू। पत्तंग (सं.) [सं-पु.] 1. पतंग नामक लकड़ी; बक्कम 2. लाल चंदन। पत्तन (सं.) [सं-पु.] 1. बंदरगाह; पोताश्रय 2. बंदरगाही शहर; (पोर्ट) 3. वह स्थान जहाँ से वायुयान उड़ान भरते हैं या उतरते हैं; विमानपत्तन; हवाईअड्डा; (एयरपोर्ट) 4. नगर; शहर। पत्तनक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] पत्तन के आसपास विकसित कस्बा या नगर जिसकी पूरी व्यवस्था वहाँ के कुछ निर्वाचित लोगों के हाथों में होती है। पत्तर (सं.) [सं-पु.] 1. पीटकर पतला किया हुआ धातु का टुकड़ा 2. किसी धातु की चादर 3. पत्तल। पत्तल (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्तों को जोड़कर बनाया हुआ एक पात्र जो खाने के लिए थाली का काम करता है 2. पत्तल पर रखी हुई भोजन सामग्री। पत्ता (सं.) [सं-पु.] 1. पेड़ पर लगा हुआ हरे रंग का अवयव; पत्र; पर्ण 2. मोटे कागज़ के चौकोर टुकड़े (ताश के पत्ते) 3. पत्ते का आकार का वह चिह्न जो कपड़े, कागज़ आदि पर छापा या काढ़ा जाता है 4. कान में पहनने का एक गहना 5. सरकारी नोट। पत्तागोभी [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की सब्ज़ी 2. आपस में कस कर गुँथे हुए पत्तों की गोलाकार हलके हरे रंग की सब्ज़ी। पत्ति (सं.) [सं-पु.] प्यादा; पैदल सिपाही। पत्ती [सं-स्त्री.] 1. छोटा पत्ता 2. आय का हिस्सा, भाग या अंश 3. पंखुड़ी; दल 4. भंग 5. धातु आदि का कटा छोटा धारदार टुकड़ा; (ब्लेड) 6. व्यवसाय, रोज़गार आदि में होने वाला साझे का अंश; भाग 7. ताश का कोई पत्ता। पत्तीदार (हिं.+फ़ा.) [वि.] 1. जिसमें पत्तियाँ हों; पत्तियों से युक्त 2. जिसका किसी व्यापार में हिस्सा हो 3. जो संपत्ति का भागीदार हो। पत्तेबाज़ [वि.] 1. ताश के पत्तों में हेराफ़ेरी करने वाला 2. चालाक; धूर्त। पत्थर (सं.) [सं-पु.] 1. पहाड़ों को काटकर या खानों को खोदकर निकाला गया खंड; पृथ्वी का कठोर स्तर; वह पदार्थ जिससे पृथ्वी का कठोर स्तर बना है; शिला 2. शिलाखंड 3. मील की संख्या सूचित करने के लिए सड़क के किनारे गाड़ा जाने वाला पत्थर का टुकड़ा; ढेला 4. सीमा निर्धारित करने के लिए गाड़ा जाने वाला पत्थर 5. {व्यं-अ.} वह जो मौन या जड़ हो 6. {ला-अ.} कठोर हृदय वाला व्यक्ति 7. गुड़ से युक्त कठोर वस्तु 8. ओला; बिनौरी 9. लाल, पन्ना आदि रत्न। पत्थरदिल (सं.+फ़ा.) [वि.] जिसका दिल पत्थर के समान कठोर हो; कठोर हृदयवाला। पत्थरबाज़ी [सं-स्त्री.] 1. दूसरों पर पत्थर चलाकर उन्हें मारने एवं घायल करने की क्रिया 2. पत्थर फेंकने की क्रिया। पत्नी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी की विवाहिता स्त्री; भार्या; परिणीता; कांता; जोरू 2. सहचरी; जीवनसंगिनी; सहगामिनी। पत्नीधर्म (सं.) [सं-पु.] पत्नी का पति के प्रति कर्तव्य। पत्नीव्रत (सं.) [सं-पु.] पत्नी के प्रति एकनिष्ठ प्रेम; अनुराग; भक्ति। पत्र (सं.) [सं-पु.] 1. चिट्ठी; ख़त 2. पेड़ का पत्ता 3. अख़बार 4. वह कागज़ जिसपर कोई बात छपी हो 5. पुस्तक का कोई पन्ना 6. समाचारपत्रों का समूह (प्रेस) 7. धातु का पत्तर 8. तेजपत्ता 9. कागज़ 10. बाण का पर की तरह निकला हुआ हिस्सा 11. सुंदरता बढ़ाने के लिए रंगों, सुगंधित द्रव्यों आदि से बनाई जाने वाली आकृतियाँ या चिह्न। पत्रक (सं.) [सं-पु.] 1. पत्ता 2. पत्तों की श्रेणी या शृंखला; पत्रावली 3. तेजपत्ता 4. स्मृतिपत्र 5. शांति नामक साग। [वि.] 1. पत्र से संबंधित 2. पत्र के रूप में होने वाला। पत्रक धन (सं.) [सं-पु.] वह धन जो छपे हुए पत्र या कागज़ के रूप में हो; (पेपर मनी)। पत्रकार (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो समाचार पत्रों को नित नई सूचना देता है; समाचार पत्र का लेखक या संपादक 2. टीवी, रेडियो आदि जन संचार माध्यमों में सक्रिय रूप से कार्य करने वाला व्यक्ति; (जर्नलिस्ट)। पत्रकार कक्ष (सं.) [सं-पु.] सरकारी अथवा गैरसरकारी संस्थानों का वह कक्ष जहाँ पत्रकार आपस में विचार-विमर्श कर सकते हैं। पत्रकार कोष्ठ (सं.) [सं-पु.] सरकारी अथवा अन्य बड़े संस्थानों में पत्र-पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों के लिए विशेष रूप से आरक्षित स्थान। पत्रकारिक (सं.) [वि.] पत्रकारिता या पत्रकार से संबद्ध। पत्रकारिता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्रकार होने की अवस्था या भाव 2. पत्रकार का काम या पेशा 3. ऐसा विषय जिसमें पत्रकारों के कार्यों, उद्देश्यों आदि का विवेचन किया जाता है; (जर्नलिज्म)। पत्रकारिता लेखन (सं.) [सं-स्त्री.] पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की एक विशिष्ट शैली जो मुख्यतः सरल, सुबोध, प्रवाहमयी और प्रभावकारी होती है। पत्रकार्यालय (सं.) [सं-पु.] 1. समाचार पत्र का कार्यालय 2. संपादक अथवा व्यवस्थापक का कार्यालय। पत्रचाप (सं.) [सं-पु.] कागज़-पत्रों को दबाकर रखने के लिए प्रयुक्त लकड़ी, पत्थर, शीशा आदि का टुकड़ा जिससे वे हवा में उड़ न सकें; पत्रभारक; (पेपरवेट)। पत्रपंजी (सं.) [सं-स्त्री.] वह रजिस्टर जिसमें आए हुए पत्रों और उनके उत्तरों का विवरण रखा जाता है; (आवक-जावक रजिस्टर)। पत्र-पेटिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. डाक विभाग द्वारा विभिन्न स्थानों पर लगाया गया लाल रंग का वह बड़ा डिब्बा जिसमें बाहर भेजे जाने वाले पत्र लोगों द्वारा छोड़े जाते हैं 2. घर के प्रवेश-द्वार पर लगा वह डिब्बा जिसमें डाकिया बाहर से आया पत्र डाल जाता है 3. पत्र रखने की पेटी अथवा संदूक; (लेटरबॉक्स)। पत्र-पेटी (सं.) [सं-स्त्री.] दे. पत्र-पेटिका। पत्रबंध (सं.) [सं-पु.] पत्र लिखने हेतु निर्मित कागज़ों की गड्डी; (लेटर पैड)। पत्रवाहक (सं.) [सं-पु.] पत्र-पत्रिकाओं की प्रतियाँ ग्राहकों के पास पहुचाने वाला व्यक्ति। पत्र व्यवहार (सं.) [सं-पु.] 1. एक दूसरे को पत्र लिखना; पत्रोत्तर देना 2. पत्राचार। पत्रा (सं.) [सं-पु.] 1. तिथिपत्र 2. पंचांग 3. पृष्ठ; पन्ना। पत्रांक (सं.) [सं-पु.] 1. पत्र या पत्रिका का अंक 2. पत्ते की गोद। पत्रांग (सं.) [सं-पु.] 1. भोजपत्र 2. पतंग या बक्कम नामक वृक्ष 3. लाल चंदन 4. कमलगट्टा। पत्राचार (सं.) [सं-पु.] पत्र-व्यवहार; ख़तोकिताबत; लिखा-पढ़ी; (कॉरेस्पांडेंस)। पत्रान्य (सं.) [सं-पु.] 1. पतंग; बक्कम 2. लाल चंदन। पत्रालय (सं.) [सं-पु.] डाकघर; (पोस्ट ऑफ़िस)। पत्रावलि (सं.) [सं-स्त्री.] 1. सजावट के लिए बनाई गई फूल-पत्तियों की लड़ी या श्रेणी 2. गेरू 3. पत्रभंग। पत्रावली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पत्रावलि 2. पीपल की कोंपलों के साथ मधु और जौ को मिला कर दुर्गा पूजा हेतु तैयार की गई सामग्री। पत्रिका (सं.) [सं-स्त्री.] पाक्षिक, मासिक या त्रैमासिक निकलने वाली पुस्तिका। पत्रिकाख्य (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का कपूर; पानकपूर। पत्रिका परिशिष्ट (सं.) [सं-स्त्री.] सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक साहित्यिक परिशिष्ट। पत्रिका संपादक (सं.) [सं-पु.] पत्रिका का संपादन करने वाला व्यक्ति। पत्री (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चिट्ठी; पत्र; ख़त 2. छोटी पत्रिका 3. जन्मपत्री 4. पत्तों का बना हुआ दोना। [सं-पु.] 1. तीर; बाण 2. पक्षी 3. रथ का सवार; रथी 4. पर्वत; पहाड़ 5. पेड़; वृक्ष। [वि.] 1. जिसमें पत्ते हों; पत्तोंवाला 2. पंखदार। पत्रोर्ण (सं.) [सं-पु.] 1. रेशमी वस्त्र 2. सोनापाठा। पत्रोल्लास (सं.) [सं-पु.] अँखुआ; कोंपल। पथ (सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग; रास्ता; राह 2. कार्य या व्यवहार की रीति या पद्धति। पथगामी (सं.) [वि.] 1. पथ या रास्ते पर चलने वाला; पथिक; राही 2. अनुसरण करने वाला। पथचिह्न (सं.) [सं-पु.] रास्ते में रास्तों की पहचान हेतु बने हुए चिह्न। पथदर्शिका (सं.) [सं-स्त्री.] मार्ग दिखाने वाली स्त्री; मार्गदर्शिका। पथप्रदर्शक (सं.) [सं-पु.] राह या मार्ग दिखाने वाला; मार्गदर्शक; रहनुमा। पथप्रदर्शन (सं.) [सं-पु.] 1. मार्गदर्शन 2. पथ या रास्ता दिखाना। पथबाधा (सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग में आने वाली बाधा 2. {ला-अ.} किसी कार्य के निष्पादन में आने वाली रुकावट या अवरोध। पथभ्रष्ट (सं.) [वि.] 1. जो अपने उचित मार्ग या व्यवहार आदि के प्रतिकूल हो गया हो 2. {ला-अ.} बुरे आचरणवाला; दुराचारी। पथभ्रष्टता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अनुचित मार्ग पर चलने की स्थिति, क्रिया या भाव 2. पथभ्रष्ट होने की अवस्था या भाव। पथरना [क्रि-स.] पत्थर पर रगड़कर औज़ार आदि की धार तेज़ करना। पथराना [क्रि-अ.] 1. सूखकर पत्थर की तरह कड़ा एवं कठोर हो जाना 2. शुष्क हो जाना 3. स्तब्ध एवं स्थिर हो जाना 4. चेतनाशून्य या जड़ हो जाना। पथराव [सं-पु.] ईंट, पत्थर आदि के टुकड़ों की बौछार करना; दूसरों पर पत्थर फेंकना; झगड़ा हो जाने पर दोनों पक्षों का एक-दूसरे पर ईंट या पत्थर के टुकड़े फेंक कर मारना। पथरी [सं-स्त्री.] 1. एक रोग जिसमें वृक्क आदि में पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जैसे पिंड बन जाते हैं; अश्मरी 2. कटोरेनुमा पत्थर का बना हुआ पात्र 3. उस्तरा आदि की धार तेज़ करने के लिए प्रयुक्त पत्थर का टुकड़ा; सिल 4. चकमक पत्थर 5. पक्षियों के पेट का वह भाग जहाँ खाए हुए कड़े पदार्थ पच जाते हैं 6. जायफल की जाति का एक वृक्ष जिसके फल से तेल निकाला जाता है। पथरीला [वि.] 1. जिसमें पत्थर या उसके खंड मिले हों 2. पत्थरों से बना हुआ 3. जो पत्थर के समान कठोर हो। पथरीली [वि.] 1. कंकड़ों-पत्थरों से युक्त, जैसे- पथरीली ज़मीन 2. जिसपर कंकड़-पत्थर पड़े हों, जैसे- पथरीली सड़क। पथरौटा [सं-पु.] पत्थर का बना हुआ बड़े आकार का कटोरेनुमा एक पात्र; बड़ी पथरी। पथरौटी [सं-स्त्री.] पत्थर की कड़ी; पथरी। पथिक (सं.) [सं-पु.] बटोही; राहगीर; मुसाफ़िर। पथिका (सं.) [सं-स्त्री.] 1. मुनक्का 2. मुनक्का या अंगूर से बनाई जाने वाली एक प्रकार की शराब। पथिल (सं.) [सं-पु.] पथिक; राही; यात्री। पथी (सं.) [सं-पु.] 1. मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति; राही; पथिक; यात्री 2. राह; रास्ता; मार्ग 3. यात्रा 4. संप्रदाय; मत। पथेरा [सं-पु.] 1. ईंट पाथने वाला व्यक्ति 2. खपड़ा पाथने वाला व्यक्ति; कुम्हार 3. गोबर पाथने वाला व्यक्ति। [वि.] पाथने वाला। पथौरा [सं-पु.] वह स्थान जहाँ गोबर पाथा जाता हो; गोबर पाथने की जगह। पथ्य (सं.) [सं-पु.] 1. रोगी को दिया जाने वाला उचित और अनुकूल आहार जिसे वह आसानी से पचा सके 2. स्वास्थ के लिए हितकर वस्तु 3. हड़ का पेड़ 4. सेंधा नमक 5. कल्याण; मंगल। [वि.] 1. पथ संबंधी 2. लाभकर; हितकर 3. अनुकूल; उचित। पथ्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. हरीतकी; हरड़ 2. चिरमिटा 3. सैंधनी 4. बनककोड़ा 5. गंगा 6. (काव्यशास्त्र) एक मात्रिक छंद 7. सड़क; मार्ग। पथ्याशी (सं.) [वि.] पथ्य खाने वाला पद (सं.) [सं-पु.] 1. पैर; कदम; पग 2. पैर का निशान; चरण-चिह्न 3. पदवी; ओहदा; काम के अनुसार कर्मचारियों का नियत स्थान 4. आधार; स्थान 5. किसी श्लोक या छंद का चतुर्थांश 6. विभक्ति; प्रत्यय युक्त शब्द 7. मंत्र में प्रयुक्त शब्दों को अलग-अलग करना 8. कोष्ठ; ख़ाना 9. किसी वाक्य का कोई अंश या भाग। पदक (सं.) [सं-पु.] 1. उत्कृष्ट कार्य हेतु किसी को उपहारस्वरूप दिया जाने वाला सोने, चाँदी, ताँबा आदि धातु का वह टुकड़ा जिसपर प्रायः देने वाले का नाम अंकित रहता है; तमगा; (मेडल) 2. पूजा हेतु निर्मित किसी देवता के चरण की प्रतिमूर्ति 3. आभूषण के रूप में पहना जाने वाला वह धातुखंड जिसपर किसी देवता के चरण-चिह्न अंकित हों 4. वैदिक पद-पाठ का ज्ञाता 5. एक प्रचीन गोत्र प्रवर्तक ऋषि। पदक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. चलना; डग भरना; गमन 2. वेद मंत्रों के पदों को एक दूसरे से अलग करने का कार्य। पदग्रहण (सं.) [सं-पु.] किसी पद को धारण करने की क्रिया या भाव। पदग्रहण-समारोह (सं.) [सं-पु.] किसी के पदभार-ग्रहण करने के अवसर पर होने वाला समारोह या जलसा। पदचर (सं.) [सं-पु.] पैदल। पदचाप (सं.) [सं-स्त्री.] चलते समय पैर से निकलने वाली ध्वनि या आवाज़। पदचार (सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलना 2. घूमना-फिरना 3. टहलना। पदचारण (सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलने की क्रिया 2. टहलना; घूमना-फिरना। पदचिह्न (सं.) [सं-पु.] 1. पैर के निशान; पगचिह्न 2. अनुभवी व्यक्तियों द्वारा बताए हुए आदर्शों एवं विचारों के अनुसरण करने का भाव या क्रिया। पदच्छेद (सं.) [सं-पु.] पद को विच्छेद करने की प्रक्रिया; मूल शब्द से उपसर्ग या प्रत्यय को पृथक करने की क्रिया। पदच्युत (सं.) [वि.] 1. जो अपने पद से हट गया हो या हटा दिया गया हो 2. नौकरी आदि से बरख़ास्त किया हुआ। पदच्युति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पद से हटने या हटाने की क्रिया, अवस्था या भाव 2. सेवा से हटा दिया जाना; बरख़ास्तगी; (डिसमिसल)। पदज (सं.) [सं-पु.] पाँव की उँगली। पदतल (सं.) [सं-पु.] पाँव का तलवा। पदत्याग (सं.) [सं-पु.] 1. अपना पद, ओहदा या अधिकार छोड़ना 2. इस्तीफ़ा; (रेज़िग्नेशन)। पदत्राण (सं.) [सं-पु.] पैरों की रक्षा करने वाला जूता; चप्पल; खडाऊँ। पददलित (सं.) [वि.] 1. पैरों तले रौंदा या कुचला हुआ 2. समाज में जिसे दबाकर रखा गया हो 3. जो हीन अवस्था में पड़ा हो 4. जिसे विकास के अवसर से वंचित रखा गया हो। पदनाम (सं.) [सं-पु.] 1. किसी अधिकारी के पद का नाम 2. ओहदा; पदवी; (डेज़िग्नेशन)। पदनामित (सं.) [वि.] 1. पदसंज्ञित 2. नामज़द 3. मनोनीत; नामित; निर्दिष्ट। पदपल्लव (सं.) [सं-पु.] पल्लव की तरह कोमल पाँव। पदबंध (सं.) [सं-पु.] 1. पग; डग 2. पदों का व्यवस्थित स्वरूप 3. व्याकरण में पद एवं पदों का विस्तार। पदबंधीय (सं.) [वि.] 1. पदबंध संबंधी 2. पदबंध की तरह। पदभार (सं.) [सं-पु.] वह उत्तरदायित्व या भार जिसका निर्वहन करना आवश्यक होता है; (चार्ज)। पदमुक्त (सं.) [वि.] जो अपने पद से मुक्त हो चुका हो। पदमैत्री (सं.) [सं-स्त्री.] पदों का मिलता-जुलता समूह। पदयात्रा (सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चल कर यात्रा करना 2. पैदल यात्रा। पदयोजना (सं.) [सं-स्त्री.] वाक्य में पदों (शब्दों) को जोड़ने या बिठाने की क्रिया या भाव। पदविन्यास (सं.) [सं-पु.] 1. चलने की शैली; चाल 2. पदों या शब्दों को वाक्य में ठीक ढंग से रखने की क्रिया। पदवी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. शासन या किसी संस्था की ओर से किसी को दी जाने वाली आदरसूचक या योग्यतासूचक उपाधि; ख़िताब; (टाइटल) 2. सरकारी या गैरसरकारी सेवाओं में कोई ऊँचा पद; (रैंक)। पदस्थ (सं.) [वि.] 1. जो किसी ऊँचे पद या ओहदे पर हो 2. पैदल चलने वाला 3. जो अपने पैरों के बल खड़ा हो या चल रहा हो। पदांक (सं.) [सं-पु.] पैर का चिह्न या छाप; पदचिह्न। पदांगी (सं.) [सं-स्त्री.] हंसपदी नामक लता। पदांत (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पद का अंतिम भाग 2. किसी श्लोक आदि का अंतिम अंश। पदांतर (सं.) [सं-पु.] 1. एक कदम या डग की दूरी 2. दूसरा कदम या डग 3. दूसरा स्थान। पदांत्य (सं.) [वि.] पद के अंत में स्थित; अंतिम। पदाक्रांत (सं.) [वि.] 1. पैरों से कुचला या रौंदा हुआ 2. पददलित। पदाघात (सं.) [सं-पु.] पैर से लगाया जाने वाला धक्का; (किक)। पदाति (सं.) [सं-पु.] 1. जो पैदल चलता हो 2. पैदल सिपाही; प्यादा 3. पैदल यात्रा करने वाला व्यक्ति; पदयात्री 4. सेवक; नौकर 5. जनमेजय के एक पुत्र का नाम। पदातिक (सं.) [सं-पु.] 1. पैदल चलने वाला व्यक्ति 2. पैदल सेना; (इनफ़ैंट्री) 3. सेवक; नौकर। पदाती (सं.) [सं-पु.] दे. पदाति। पदादि (सं.) [सं-पु.] 1. किसी पद का आरंभिक अंश 2. छंद के चरण का आरंभिक भाग 3. किसी शब्द का पहला वर्ण। पदाधिकारी (सं.) [सं-पु.] पद पर रह कर कार्य करने वाला अधिकारी; ओहदेदार। पदाध्ययन (सं.) [सं-पु.] पदपाठ की दृष्टि से वेद का पाठ या अध्ययन। पदाना [क्रि-स.] खेल में प्रतिपक्षी को हराना; बार-बार दौड़ाना; परेशान करना (गुल्ली-डंडे के खेल में)। पदानुकूल (सं.) [वि.] 1. जो पद के अनुकूल हो 2. जो पद के योग्य और पद के अनुसार हो। पदानुक्रम (सं.) [सं-पु.] 1. पद का अनुक्रम 2. पदों या शब्दों का वाक्य आदि में निश्चित स्थान या क्रम। पदानुक्रमता (सं.) [सं-स्त्री.] वाक्य में शब्दों के क्रमानुसार होने की अवस्था या स्थिति। पदानुराग (सं.) [सं-पु.] किसी के चरणों में होने वाला अनुराग; किसी के प्रति होने वाली श्रद्धा। पदानुशासन (सं.) [सं-पु.] शब्दानुशासन; व्याकरण। पदाभिलाषी (सं.) [सं-पु.] वह जो पद की अभिलाषा रखता हो; पद पाने का इच्छुक। पदायता (सं.) [सं-स्त्री.] जूता। पदार (सं.) [सं-पु.] 1. पैर की धूल; चरण रज 2. पैर का ऊपरी भाग। पदारूढ़ (सं.) [वि.] पद पर आसीन; पद पर बैठा हुआ। पदार्थ (सं.) [सं-पु.] 1. पद (शब्द) का अर्थ 2. वह वस्तु जिसका कुछ नाम हो और जिससे उसे जाना जा सके 3. जिसका कोई रूप या आकार हो अथवा जो पिंड, शरीर आदि के रूप में मूर्त हो 4. भार और विस्तार से युक्त वस्तु जिसका ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जाता है; (मैटर) 5. (भारतीय दर्शन) विभिन्न संप्रदायों में अलग-अलग संख्या में वर्णित वे विषय जिनका सम्यक ज्ञान मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक माना गया है। पदार्थवाचक (सं.) [वि.] पदार्थ की विवेचना करने वाला। पदार्थवाद (सं.) [सं-पु.] 1. वह मत या सिद्धांत जिसमें केवल भौतिक पदार्थों की ही सत्ता स्वीकार की जाती है; (मटिरियलिज़म) 2. ऐसा सिद्धांत जो अध्यात्मवाद से बिल्कुल भिन्न हो। पदार्थवादी (सं.) [सं-पु.] पदार्थवाद का समर्थक या अनुयायी। [वि.] पदार्थवाद संबंधी। पदार्थविज्ञान (सं.) [सं-पु.] वह विज्ञान जिसमें पृथ्वी, जल, वायु, प्रकाश आदि तत्वों के गुण आदि का अध्ययन एवं विवेचन किया जाता है। पदार्थविद्या (सं.) [सं-स्त्री.] भौतिकविज्ञान; भौतिकी; (फ़िज़िक्स)। पदार्पण (सं.) [सं-पु.] 1. पैर रखना; आना (आदरसूचक) 2. किसी स्थान या क्षेत्र में होने वाला प्रवेश या आगमन। पदालिक (सं.) [सं-पु.] पैर का ऊपरी भाग या हिस्सा। पदावनत (सं.) [वि.] 1. जिसे अपने वर्तमान पद से हटाकर निम्न पद पर कर दिया गया हो 2. पैरों पर झुका हुआ 3. जो झुककर प्रणाम कर रहा हो 4. विनीत; नम्र। पदावनति (सं.) [सं-स्त्री.] ऊँचे पद से हटाकर नीचे पद पर किया जाना; (डिमोशन)। पदावली (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पदों का क्रम, शृंखला या समूह 2. गाए जाने वाले पदों, भजनों और गीतों का संग्रह, जैसे- विद्यापति पदावली 3. पदों या शब्दों की परंपरा 4. किसी सहित्यकार द्वारा प्रयुक्त शब्दों की योजना, प्रकार या ढंग 5. किसी विषय के पारिभाषिक पदों एवं शब्दों की सूची। पदासन (सं.) [सं-पु.] वह आसन या छोटी चौकी जिसपर पैर रखा जाता है; पादपीठ। पदासीन (सं.) [वि.] पद पर आसीन, आरूढ़ या विराजमान। पदाहत (सं.) [वि.] पैर से ठुकराया हुआ। पदिक (सं.) 1. पैदल सेना; प्यादा; (इनफ़ैंट्री) 2. गले में पहनने का जुगनूँ नामक एक आभूषण 3. रत्न 4. तमगा। [वि.] 1. पैदल 2. एक कदम के बराबर 3. जिसमें केवल एक विभाग हो। पदी (सं.) [सं-पु.] पैदल; प्यादा। [वि.] 1. पैरवाला; पदवाला 2. पद युक्त रचना। पदुम (सं.) [सं-पु.] 1. घोड़ों के शरीर पर पाया जाने वाला एक प्रकार का चिह्न 2. पद्म। पदेन (सं.) [अव्य.] 1. किसी पद पर आरूढ़ होने के अधिकार से 2. पद पर रहने की वजह से; पद की हैसियत से। पदे-पदे (सं.) [क्रि.वि.] पग-पग पर; कदम-कदम पर। पदोड़ा (सं.) [वि.] 1. बहुत अधिक पादने वाला 2. डरपोक; कायर। पदोदक (सं.) [सं-पु.] वह जल जिससे पूज्य व्यक्तियों का पैर धोया गया हो; चरणामृत। पदोन्नति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पद में होने वाली उन्नति या तरक्की; पदवृद्धि; (प्रमोशन) 2. वर्तमान पद से उच्च पद पर नियुक्त होना। पद्धटिका (सं.) [सं-स्त्री.] (काव्यशास्त्र) एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा अंत में जगण होता है। पद्धड़ी (सं.) [सं-स्त्री.] दे. पद्धटिका। पद्धति (सं.) [सं-स्त्री.] 1. एक विशेष प्रकार का तरीका; प्रविधि; प्रणाली 2. परिपाटी; रिवाज; रीति 3. मार्ग; रास्ता 4. पंक्ति; शृंखला 5. तरीका; ढंग; शैली। पद्म (सं.) [सं-पु.] 1. कमल का फूल और पौधा 2. (सामुद्रिकशास्त्र) किसी के पैर के तलवे में पाया जाने वाला कमल के आकार का एक सौभाग्यसूचक चिह्न 3. मोर्चाबंदी; पद्मव्यूह 4. कमल के आकार का विष्णु का एक आयुध 5. एक रतिबंध 6. सीसा 7. पदमकाठ 8. दाग; धब्बा; चिह्न 9. शरीर पर विद्यमान कोई दाग; तिल 10. शरीर में विद्यमान षट् चक्रों में से कोई एक 11. कुबेर की नौ निधियों में से एक 12. वास्तुकला में स्तंभ के सातवें भाग की संज्ञा 13. गले में पहना जाने वाला एक हार 14. हाथी के मस्तक पर की जाने वाली रंगीन चित्रकारी 15. साँप के फन पर बना हुआ चिह्न 16. एक प्रकार का मंदिर 17. एक आसन 18. एक वर्णवृत्त 19. (पुराण) एक नरक 20. (पुराण) एक कल्प 21. (बौद्ध मत) एक नक्षत्र 22. कश्मीर का एक शासक जिसने पद्मपुर नगर बसाया था 23. एक नदी। पद्मक (सं.) [सं-पु.] 1. पद्मकाठ नामक पेड़ 2. पद्मव्यूह 3. हाथी की सूँड़ पर का चिह्न या दाग 4. श्वेत कुष्ठ; सफ़ेद कोढ़ 5. कुट नामक औषधि 6. पद्मासन। पद्मजा (सं.) [सं-स्त्री.] लक्ष्मी। पद्मनाभ (सं.) [सं-पु.] 1. विष्णु 2. अस्त्र चलाते समय पढ़ा जाने वाला एक मंत्र 3. एक नाग 4. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। पद्मनाल (सं.) [सं-स्त्री.] कमल का डंठल; मृणाल। पद्मपुराण (सं.) [सं-पु.] अठारह महापुराणों में एक महापुराण, जिसमें भगवान विष्णु की विविध लीलाओं का वर्णन है। पद्मबंध (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का चित्रकाव्य। पद्मबीज (सं.) [सं-पु.] कमल का बीज; कमलगट्टा। पद्मभूषण (सं.) [सं-पु.] स्वतंत्र भारत में केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट नागरिकों, विद्वानों तथा देशसेवकों को विभिन्न क्षेत्रों में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दिए जाने वाले अलंकरणों भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण तथा पद्मश्री के क्रम में तृतीय अलंकरण। पद्मराग (सं.) [सं-पु.] माणिक्य; मानिक; लालड़ी; लाल। पद्मश्री (सं.) [सं-पु.] 1. स्वतंत्र भारत में केंद्र सरकार द्वारा विशिष्ट नागरिकों, विद्वानों तथा देशसेवकों को विभिन्न क्षेत्रों में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दिए जाने वाले अलंकरणों भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण तथा पद्मश्री के क्रम में चतुर्थ अलंकरण 2. एक बोधिसत्व का नाम। पद्मा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. लक्ष्मी 2. मनसा देवी 3. गंगा नदी की एक शाखा जो बंगाल में पूर्वी शाखा के रूप में जानी जाती है 4. लौंग 5. कुसुंभ का फूल (बर्रे का फूल) 6. गेंदे का पौधा। पद्मांतर (सं.) [सं-पु.] कमलदल। पद्माकर (सं.) [सं-पु.] 1. जिस जलाशय में कमल खिले हों; कमल युक्त जलाशय 2. कमलराशि 3. हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि। पद्माट (सं.) [सं-पु.] बरसात में उगने वाली एक प्रकार की वनस्पति जिसके छाल एवं पत्ते का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। पद्मावती (सं.) [सं-स्त्री.] 1. (लोककथा) सिंहल द्वीप की एक राजकुमारी जिसका विवाह चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के साथ हुआ था 2. मनसा देवी का एक नाम 3. एक मात्रिक छंद। पद्मासन (सं.) [सं-पु.] 1. कमल का आसन 2. विशिष्ट प्रकार की पालथी मारकर तनकर बैठने की एक योगमुद्रा 3. वह जो उक्त मुद्रा में बैठा हो 4. स्त्री के संभोग करने का एक आसन या रतिबंध। पद्मिनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. कमल का पौधा 2. कमल की नाल 3. कमलों का समूह 4. कमल से युक्त तालाब 5. मादा हाथी 6. कामशास्त्र के अनुसार स्त्रियों के चार प्रकारों में से एक श्रेष्ठ प्रकार। पद्य (सं.) [सं-पु.] 1. पद के नियमों के अनुसार होने वाली साहित्यिक रचना; छंदोबद्ध रचना; काव्य 2. (पुराण) ब्रह्मा के पैरों से उत्पन्न 3. कीचड़ जो अभी पूरी तरह सूखा न हो। [वि.] 1. पद या पैर संबंधी 2. जो काव्य के रूप में हो। पद्यबद्ध (सं.) [वि.] पद्य में रची हुई; पद्यात्मक; छंदोबद्ध। पद्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पैदल चलने से बनने वाला रास्ता; पगडंडी 2. मुख्य सड़क के किनारे पैदल चलने के लिए बना हुआ रास्ता; (फ़ुटपाथ)। पद्यात्मक (सं.) [वि.] पद्य के रूप में होने वाला; पद्यरूप; छंदोबद्ध। पधारना [क्रि-स.] आदर के साथ बैठाना; प्रतिष्ठित करना। [क्रि-अ.] उपस्थित होना; पदार्पण करना; पहुँचना। पन1 (सं.) [परप्रत्य.] कुछ संज्ञाओं या गुणवाचक विशेषणों के अंत में जुड़कर उनका भाववाचक रूप बनाने वाला प्रत्यय, जैसे- लड़कपन, बाँकपन। [सं-पु.] मानव जीवन की चार अवस्थाओं में से कोई एक। पन2 [पूर्वप्रत्य.] 1. पानी का वह संक्षिप्त रूप जो यौगिक पदों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- पनचक्की 2. पान का वह संक्षिप्त रूप जो यौगिक पदों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है, जैसे- पनवाड़ी। पनकाल [सं-पु.] अतिवृष्टि के कारण पड़ने वाला अकाल। पनघट [सं-पु.] वह घाट जहाँ से पानी भरा जाता है; कोई ऐसा स्थान जहाँ से पानी घड़े आदि में भरकर ले जाया जाता हो। पनचक्की [सं-स्त्री.] पानी के प्रवाह या वेग की शक्ति से चलने वाली चक्की। पनडुब्बा [सं-पु.] 1. पानी में गोता लगाने वाला; गोताख़ोर 2. एक पक्षी जो जलाशय आदि में गोता लगाकर मछलियाँ पकड़ता है; मुरगाबी 4. (अंधविश्वास) जलाशय आदि में रहने वाला भूत। पनडुब्बी [सं-स्त्री.] 1. जलाशयों या पोखरों आदि में रहने वाली एक प्रकार की चिड़िया, जो पानी में डुबकी लगाकर मछलियाँ पकड़ती है 2. पानी के अंदर डूबकर चलने वाली एक प्रकार की नाव; (सबमैरीन)। पनपना [क्रि-अ.] 1. वनस्पतियों का अंकुरित होकर समुचित विकास और वृद्धि को प्राप्त होना; हरा-भरा होना 2. व्यवसाय या रोज़गार आदि में उन्नति होना 3. किसी व्यक्ति का पुनः स्वस्थ, संपन्न और सशक्त होना। पनपाना [क्रि-स.] किसी को पनपने में प्रवृत्त करना; किसी के पनपने में सहायक या कारण बनना। पनबिजली [सं-स्त्री.] जलविद्युत। पनभरा [सं-पु.] घरों में पानी भरने वाला और इससे प्राप्त पारिश्रमिक से जीविका चलाने वाला सेवक; पनहरा। पनरंगा [वि.] पानी के रंग जैसा। पनवाड़ी [सं-पु.] तमोली; पान बेचने वाला। पनवारी [सं-स्त्री.] पान के पौधौं का भीटा; वह टीलेनुमा ज़मीन जो पान की पैदावार के लिए तैयार की जाती है; वह खेत अथवा भूमि जिसमें पान की खेती की जाती है। पनस (सं.) [सं-पु.] 1. कटहल का वृक्ष 2. उक्त वृक्ष का फल 3. काँटा 4. एक प्रकार का साँप 5. विभीषण का एक मंत्री 6. राम की सेना का एक बंदर। पनसारी [सं-पु.] दे. पंसारी। पनसाल [सं-स्त्री.] 1. जल की गहराई मापने का उपकरण 2. पानी पिलाने का सार्वजनिक स्थान; प्याऊ; पौसरा। पनहरा [सं-पु.] दूसरों के घरों में पानी भरने का काम करने वाला व्यक्ति; पनभरा। पनहारा [सं-पु.] दे. पनहरा। पना1 (सं.) [सं-पु.] आग में भूने हुए आम या भिगाई हुई इमली आदि के गूदे से तैयार किया गया एक प्रकार का खट्टा-मीठा पेय पदार्थ; पन्ना। पना2 [परप्रत्य.] एक प्रत्यय जो भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए जातिवाचक और गुणवाचक संज्ञाओं से जोड़ा जाता है, जैसे- बाँकपना, पाजीपना। पनाती (सं.) [सं-पु.] पुत्री का नाती; नाती का पुत्र; परनाती। पनारा [सं-पु.] गंदा पानी बहने की नाली; नाला; नाबदान; परनाला। पनाला (सं.) [सं-स्त्री.] 1. पानी बहने का रास्ता; नाला; नाबदान 2. प्रवाह। पनाह (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. शत्रु आदि द्वारा उत्पन्न किसी प्रकार के संकट से प्राण बचाने की क्रिया या भाव 2. उक्त आशय से किसी की शरण में जाने की क्रिया या भाव 3. शरण लेने का स्थान; शरण्य; आड़; आश्रय 4. रक्षा; बचाव। [मु.] -मांगना : शरण लेना; किसी से संरक्षण माँगना। पनाहगाह (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. वह स्थान जहाँ शत्रु आदि से जीवन सुरक्षित रह सके 2. वह स्थान जहाँ से भरण-पोषण हो और सहायता मिले 3. शरण लेने की जगह; शरणस्थल।। पनाहगीर (फ़ा.) [वि.] पनाह देने वाला; किसी व्यक्ति को संकट के समय शरण देने वाला; ज़रूरतमंद की सहायता करने वाला। पनिया [वि.] 1. पानी में रहने वाला 2. जिसमें पानी मिला हो। पनियाना [क्रि-स.] 1. पानी से सराबोर करना 2. खेत आदि को पानी से सींचना। [क्रि-अ.] पानी से चपचपाना। पनिहा [सं-पु.] 1. चोरी गए माल का पता लगाने वाला तांत्रिक 2. इस हेतु दिया जाने वाला पुरस्कार। [वि.] 1. पानी संबंधी 2. पानी में रहने वाला 3. जिसमें पानी का मेल हो; जलयुक्त। पनिहारिन [सं-स्त्री.] 1. वह स्त्री जो सबके घर पानी पहुँचाने का काम करती है; पानी भरने वाली स्त्री 2. गाँवों में कहार जाति की स्त्रियों द्वारा पानी भरने के समय गाया जाने वाला कहरवा की तरह का एक लोकगीत। पनीर (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. फटे दूध का थक्का; छेना 2. इससे तैयार की गयी एक प्रकार की टिकिया जो खाने के काम में आती है। पनीला [वि.] 1. पानी से भरा हुआ; गीला 2. जो पानी में रहता हो। पनेरी [सं-पु.] पान बेचने वाला व्यक्ति; पनवाड़ी; बरई; तँबोली। [सं-स्त्री.] 1. अन्यत्र लगाने के लिए उगाए गए छोटे पौधे; पौधों के बेहन 2. ऐसे पौधे या बेहन उगाने की क्यारी। पनेहड़ी [सं-स्त्री.] वह पात्र जिसमें पनवाड़ी पान या हाथ धोने के लिए पानी रखते हैं। पनेहरा [सं-पु.] 1. पानी भरने के लिए रखा हुआ सेवक; पनभरा 2. वह पात्र जिसमें सुनार गहने धोने के लिए पानी रखते हैं। पनैला [सं-पु.] एक प्रकार का चिकना एवं चमकदार कपड़ा जो प्रायः अस्तर के लिए प्रयोग किया जाता है। [वि.] 1. जिसमें पानी मिला हो; पानी से युक्त; पनीला 2. जो पानी में रहता या होता हो। पनौटी [सं-स्त्री.] पान रखने की पिटारी या डिब्बा; बाँस का बना पानदान। पन्नई [वि.] पन्ना नामक एक प्रसिद्ध रत्न के रंग का; फ़िरोजी रंग का; गहरे हरे रंग का। पन्नग (सं.) [सं-पु.] 1. साँप 2. एक प्रकार की जड़ी-बूटी; पदमकाठ 3. सीसा। पन्नगारि (सं.) [सं-पु.] साँप का शत्रु; गरूड़। पन्नगाशन (सं.) [सं-पु.] साँपों का शत्रु और उनका भक्षक; गरुड़। पन्नगी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. साँपिन; सर्पिणी 2. सर्पिणी नामक जड़ी-बूटी। पन्ना1 [सं-पु.] 1. पुस्तक के दो पृष्ठ; वरक; (पेज) 2. एक प्रसिद्ध व कीमती रत्न 3. भेड़ों के कान का वह भाग जहाँ का ऊन काटा जाता है 4. जूते का पान 5. कच्चे आम से बना पेय; पना। पन्ना2 (सं.) [सं-पु.] हरे या फ़िरोजी रंग का एक बहुमूल्य रत्न; पर्ण। पन्नी [सं-स्त्री.] 1. रंगीन चमकीला कागज़ 2. सोना-चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ कपड़ा या कागज़ 3. रांगे, पीतल आदि का पतला पत्तर जिसे काटकर अन्य वस्तु की शोभा बढ़ाने हेतु उन वस्तुओं पर चिपकाया जाता है। पपड़ा [सं-पु.] 1. रोटी के ऊपर का छिलका 2. लकड़ी आदि का छीलन (छिलका); चिप्पड़ 3. वृक्ष की चिटकी हुई छाल। पपड़ी [सं-स्त्री.] 1. सूखकर ऐंठी हुई किसी नरम, गीली वस्तु की ऊपरी परत 2. मवाद सूख जाने पर घाव या ज़ख़्म के ऊपर जमी परत या खुरंट 3. पत्तर के ऊपर जमाई गई मिठाई; सोहन पपड़ी 4. पापड़ के आकार का पकवान 5. पेड़ की सूखकर चिटकी हुई छाल। पपड़ीदार (हिं.+अ.) [वि.] पपड़ीला। पपड़ीला [वि.] पपड़ीयुक्त; पपड़ीदार; जिसमें पपड़ी पड़ी हो। पपरी [सं-स्त्री.] एक पौधा जिसकी जड़ औषधि के काम आती है। पपीता [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध पौधा जिसमें लंबोतर आकार के फल लगते हैं 2. उक्त पौधे का फल जो मीठा होता है तथा रेचक का काम करता है। पपीहा [सं-पु.] 1. हलके काले रंग का एक प्रसिद्ध पक्षी जो वसंत तथा पावस में मधुर स्वर में 'पी-कहाँ' 'पी-कहाँ' की तरह का शब्द बोलता है; चातक 2. सितार के छह तारों में से एक लोहे वाले तार का नाम 3. आल्हा नामक वीर के पिता के घोड़े का नाम 5. अमोला (आम की गुठली) को घिसकर बनाई जाने वाली सीटी। पपोटा [सं-पु.] आँख की पलक। पपोलना [क्रि-अ.] पोपले (दंतविहीन व्यक्ति का) का मुँह में कुछ रखकर चुभलाना या मुँह चलाना। पप्पी [सं-स्त्री.] बच्चों का चुंबन; चुम्मी। पब (इं.) [सं-पु.] छोटी मद्यशाला; मधुशाला; शराबख़ाना। पब्लिक (इं.) [सं-स्त्री.] जनता; जनसाधारण लोग। [वि.] 1. सार्वजनिक; आम 2. शासकीय 3. सर्वविदित; प्रकट; खुला। पब्लिक सेक्टर (इं.) [सं-पु.] राजकीय क्षेत्र; लोक उद्यम। पब्लिशर (इं.) [सं-पु.] प्रकाशक, पुस्तक आदि प्रकाशित करने वाला व्यक्ति। पब्लिसिटी (इं.) [सं-पु.] 1. प्रचार; विज्ञापन 2. ख्याति। पमार [सं-पु.] 1. परमार; राजपूत समाज में एक सरनेम 2. चक्रमर्दक नामक औषधि। पम्मन [सं-पु.] गेहूँ का एक प्रकार; बड़े दाने वाला उत्तम गेहूँ। पयश्चय (सं.) [सं-पु.] झील; जलाशय। पयस् (सं.) [सं-पु.] 1. पानी; पय 2. दूध। पयस्य (सं.) [सं-पु.] दूध का विकार- घी, दही आदि। [वि.] 1. दूध से निर्मित; दूध का 2. जल का। पयस्या (सं.) [सं-स्त्री.] 1. दुधिया नामक घास 2. एक वनौषधि- क्षीरकाकोली; अर्क पुष्पी; स्वर्णक्षीरी। पयस्वल (सं.) [सं-पु.] अज; बकरा। [वि.] जल से युक्त। पयस्विनी (सं.) [सं-स्त्री.] 1. चित्रकूट में बहने वाली एक पवित्र नदी 2. दूध देने वाली गाय; धेनु 3. क्षीरकाकोली; अर्क पुष्पी; स्वर्णक्षीरी और जीवंती 4. बकरी। पयस्वी (सं.) [वि.] 1. दूधयुक्त 2. जिसमें जल हो। पयहारी (सं.) [सं-पु.] केवल जल या दूध पीकर रहने वाला व्यक्ति। पयादा [सं-पु.] प्यादा; शतरंज का एक मोहरा। [वि.] पैदल। पयान (सं.) [सं-पु.] गमन; रवानगी; प्रस्थान। पयाम (फ़ा.) [सं-पु.] पैगाम; संदेश। पयार [सं-पु.] धान आदि के दाने निकाल दिए जाने के बाद बचे सूखे डंठल; पुआल। पयाल (सं.) [सं-पु.] पुआल; पयाल; धान; कोदो के वे डंठल जिनसे दाने झाड़ लिए गए हों। पयोद (सं.) [सं-पु.] बादल; मेघ। पयोधर (सं.) [सं-पु.] 1. स्तन 2. मेघ; बादल 3. तालाब 4. पर्वत; पहाड़। पयोधि (सं.) [सं-पु.] सागर; उदधि। पयोनिधि (सं.) [सं-पु.] समुद्र; सागर। पयोष्णी (सं.) [सं-स्त्री.] विंध्य पर्वत से निकलने वाली एक पुरानी नदी। पर1 (सं.) [अव्य.] परंतु; किंतु; लेकिन। [पूर्वप्रत्य.] 1. भिन्न, गैर, दूर, बाद या पीछे का अर्थ देने वाला एक प्रत्यय, जैसे- परलोक, परदेस 2. एक पीढ़ी पहले होने का द्योतक प्रत्यय, जैसे- परदादा, परनाना 3. एक पीढ़ी बाद का द्योतक प्रत्यय, जैसे- परनाती, परपोता। [पर.] 'ऊपर' अर्थ द्योतक, जैसे- मेज़ पर। पर2 (फ़ा.) [सं-पु.] पक्ष; पंख; डैना। [मु.] -न मारना : पास न आ सकना। -फड़फड़ाना : उड़ान भरने की कोशिश करना। परंच (सं.) [अव्य.] 1. परंतु; लेकिन; तो भी 2. और भी। परंज (सं.) [सं-पु.] 1. कोल्हू 2. इंद्र का खड्ग 3. फेन 4. छुरी का फल। परंजन (सं.) [सं-पु.] पश्चिम दिशा के स्वामी; वरुण। परंजय (सं.) [सं-पु.] शत्रुजित; वरुण देवता। [वि.] शत्रु को जीतने वाला। परंजा (सं.) [सं-स्त्री.] उत्सव के समय अस्त्र-शस्त्र आदि के प्रदर्शन से उत्पन्न ध्वनि। परंतप (सं.) [सं-पु.] 1. अर्जुन; कौंतेय 2. चिंतामणि 3. तामस मनु के एक पुत्र का नाम। [वि.] शत्रुसंतापक; तप द्वारा इंद्रियों को वश में करने वाला। परंतु (सं.) [अव्य.] 1. किंतु; मगर; लेकिन 2. इतना होने पर भी (पूर्व कथित स्थिति से वैपरीत्य या अंतर दिखाने वाला शब्द)। परंतुक (सं.) [सं-पु.] अनावश्यक और संदेहास्पद तर्क; कुतर्क। परंदा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. पक्षी; चिड़िया 2. एक तरह की हवादार नाव (प्रायः कश्मीर की झीलों में चलने वाली नाव)। परंपरया (सं.) [अव्य.] परंपरा से; परंपरा के अनुसार। परंपरा (सं.) [सं-स्त्री.] 1. वह व्यवहार जिसमें वर्तमान पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की देखा-देखी करते हुए उनके रीति-रिवाज़ों का अनुकरण करती है 2. प्राचीन समय से चली आ रही रीति; परिपाटी; (ट्रैडिशन) 3. बहुत-सी घटनाओं, बातों या कार्यों के एक-एक कर होने का क्रम; अनुक्रम। परंपराक (सं.) [सं-पु.] 1. जो पहले परंपरा से होता आ रहा था 2. यज्ञ हेतु पशुओं का वध। परंपरागत (सं.) [वि.] 1. परंपरा से प्राप्त होने वाला; परंपरा से संबद्ध 2. पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाला। परंपरानिष्ठ (सं.) [वि.] परंपरा में निष्ठा रखने वाला; परंपराओं का निष्ठापूर्वक पालन करने वाला। परंपरानुगत (सं.) [वि.] 1. परंपरा से चली आ रही 2. परंपरा के अनुसार। परंपराप्रसूत (सं.) [वि.] परंपरा से उत्पन्न; परंपरा से प्राप्त। परंपराबद्ध (सं.) [वि.] परंपरा से आबद्ध; परंपराओं से बँधा हुआ। परंपराभंजक (सं.) [वि.] परंपरा को तोड़ने वाला; परंपरा को नकारने वाला। परंपराभंजन (सं.) [सं-पु.] परंपरा को तोड़ना; परंपरा को नकारना। परंपरावाद (सं.) [सं-पु.] वह मत या विचारधारा जिसमें परंपरा से चली आ रही बातों या चीज़ों को ही सार्थक, उचित और सत्य मान लिया जाता है; वह सिद्धांत तथा कार्य जिसमें परंपराबद्ध सिद्धांत या मत को सार्थक माना जाता है; (ट्रैडिशनलिज़म)। परंपरावादी (सं.) [वि.] 1. परंपरावाद संबंधी; परंपरावाद का 2. परंपरावाद के सिद्धांत को मानने वाला। परंपरित (सं.) [वि.] परंपरायुक्त; परंपरा पर अवलंबित। परई (सं.) [सं-स्त्री.] सकोरे की तरह का मिट्टी का एक बड़ा पात्र; मिट्टी का एक बड़ा कसोरा। परक1 (सं.) [सं-स्त्री.] परकने की क्रिया या भाव; चस्का। परक2 (सं.) [परप्रत्य.] 1. एक प्रत्यय जो शब्दों के अंत में लगकर निम्नलिखित अर्थ देता है, जैसे- विष्णुपरक नामावली अर्थात ऐसी नामावली जिसके अंत में विष्णु या कोई उसका वाचक शब्द हो 2. संबंध रखने वाला, जैसे- आध्यात्मपरक; प्रशंसापरक। परकटा (फ़ा.+हिं.) [वि.] 1. जिसका पर काट दिया गया हो 2. {ला-अ.} जिसकी शक्ति नष्ट कर दी गई हो या अधिकार छीन लिए गए हों। परकना [क्रि-अ.] 1. चसका लगना; आदत लगना; किसी विषय या कार्य में ढीठ बनना 2. हिलना-मिलना। परकाया प्रवेश (सं.) [सं-पु.] 1. वह स्थिति जिसमें रचनाकार अन्य व्यक्तियों की अनुभूतियों को स्वयं में आत्मसात कर लेते हैं 2. अपने आत्म या मन को किसी दूसरे शरीर में प्रवेश कराने की क्रिया या भाव। परकार (फ़ा.) [सं-पु.] वृत्त अथवा गोलाई खींचने का एक उपकरण। परकाला1 (सं.) [सं-पु.] 1. सीढ़ी 2. देहरी; चौखट; दहलीज़। परकाला2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. टुकड़ा; शीशे का टुकड़ा 2. चिनगारी; अंगार। परकासना [क्रि-स.] प्रकाशित करना; रोशन करना। परकीय (सं.) [वि.] जो किसी दूसरे का हो; पराया; जिसका संबंध दूसरे से हो। परकीया (सं.) [सं-स्त्री.] वह (विवाहिता) नायिका जो गुप्त रूप से परपुरुष से प्यार करती है; (काव्यशास्त्र) नायिका का एक भेद। परकोटा [सं-पु.] गढ़ या किले की रक्षा के लिए बनाया गया घेरा जिसके ऊपर टहलने के लिए जगह होती है। परक्रामण [सं-पु.] पूरे अधिकारों के साथ (अनुबंधपत्रादि) किसी दूसरे को हस्तांतरित करने की क्रिया; (नेगोशिएशन)। परक्षेत्र (सं.) [सं-पु.] पराया खेत; पराया शरीर। [सं-स्त्री.] पराई स्त्री। परख (सं.) [सं-स्त्री.] 1. परखने की क्रिया या भाव; अच्छे-बुरे की समझ, योग्यता या पहचान 2. जाँच; परीक्षण; परीक्षा; (टेस्ट)। परखचा [सं-पु.] खंड; टुकड़ा। [मु.] परखच्चे उड़ाना : टुकड़े-टुकड़े करना; छीछालेदर करना। परखनली [सं-स्त्री.] परीक्षण नालिका; विज्ञान प्रयोगशाला में प्रयुक्त एक उपकरण; शीशे की पारदर्शी एक ओर ही मुखवाली नलिका; (टेस्टट्यूब)। परखना [क्रि-स.] किसी व्यक्ति या वस्तु को उसके गुण-दोष के आधार पर भली-भाँति जाँचना या देखना; अच्छे-बुरे की पहचान करना। परखवाना [क्रि-स.] परखाना; परखने का काम दूसरे से करवाना; जाँच या परीक्षा करवाना। परखी [सं-स्त्री.] लोहे का छोटा, लंबा और पतला शंक्वाकार उपकरण जिसकी सहायता से बोरे में भरे अनाज को नमूने के तौर पर निकाला जाता है। परखैया [सं-पु.] परख करने वाला; परखने वाला। परगाछा [सं-पु.] दूसरे पेड़ों पर उगने वाला पौधा। परचम (फ़ा.) [सं-पु.] 1. झंडे का कपड़ा 2. पताका; झंडा। परचा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. कागज़ का टुकड़ा; चिट 2. प्रश्नपत्र 3 कागज़ के छोटे टुकड़े पर लिखी हुई बात या सूचना 4. कोई छोटा विज्ञापन 5. शोधपत्र 6. नामांकनपत्र 7. पत्र-पत्रिका का कोई अंक 8. रहस्य संप्रदाय में किसी बात का परिचय। परची (फ़ा.) [सं-स्त्री.] चिट; कागज़ के टुकड़े पर लिखी हुई सूचना। परचून (सं.) [सं-पु.] खाना बनाने का छोटा-मोटा सामान; ख़ुदरा, जैसे- आटा, दाल, चावल आदि। परचूनियाँ [सं-पु.] ख़ुदरा व्यापारी; (रिटेलर)। परछत्ती [सं-स्त्री.] 1. सामान रखने के लिए घर के अंदर दीवार से लगाकर बनाया जाने वाला ख़ाना या टाँड़ 2. फूस आदि का हलका छप्पर। परछन [सं-पु.] 1. एक वैवाहिक लोकाचार- वर के द्वार पर पहुँचने पर होने वाली एक रीति जिसमें स्त्रियाँ वर को दही एवं अक्षत का टीका लगाती हैं, आरती करती हैं तथा उसके ऊपर मूसल, बट्टा (लोढ़ा) आदि घुमाती हैं 2. वर की आरती उतारने की रीति। परछना [क्रि-स.] परछन करना; वर की आरती करना। परछाँई (सं.) [सं-स्त्री.] 1. किसी दिशा से प्रकाश पड़ने से किसी वस्तु या व्यक्ति की उसके विपरीत दिशा में बनने वाली अंधेरे की आकृति; प्रतिच्छाया 2. जल, दर्पण आदि में दिखाई पड़ने वाला किसी वस्तु या व्यक्ति का प्रतिबिंब या अक्स। [मु.] किसी की परछाँई से डरना : किसी के पास जाने तक से घबराना। परछाई (सं.) [सं-स्त्री.] दे. परछाँई। परज (सं.) [सं-पु.] 1. कोयल; कोकिल 2. रात के अंतिम पहर में गाया जाने वाला एक राग। [वि.] अपने पिता के अतिरिक्त अन्य से उत्पन्न; परजात। परजवट [सं-पु.] दे. परजौट। परजा [सं-स्त्री.] दूसरी जाति। [वि.] दूसरी जाति का। परजात [सं-पु.] 1. दूसरी जाति का व्यक्ति 2. कोयल। [ वि.] 1. दूसरे से उत्पन्न 2. दूसरी जाति से संबध रखने वाला। परजाता [सं-पु.] 1. हरसिंगार का पौधा 2. हरसिंगार का फूल; पारिजात। परजीवी (सं.) [सं-पु.] 1. ऐसे जीवजंतु या वनस्पति जो आहार या अस्तित्व के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते है, जैसे- अमरबेल, पिस्सू, मलेरिया आदि; (पैरासाइट) 2. दूसरों के सहारे जीवन बिताने वाला व्यक्ति। [वि.] दूसरों पर निर्भर रहने वाला। परजौट [सं-पु.] घर आदि बनाने हेतु सालाना दर पर ज़मीन लेने की प्रथा; मकान बनाने की ज़मीन का सालाना ख़िराज; (टैक्स)। परणना (सं.) [क्रि-स.] ब्याहना। [क्रि-अ.] ब्याहा जाना; विवाहित होना। परणाना [क्रि-स.] दे. परणना। परत (सं.) [सं-पु.] 1. स्तर; तह 2. किसी वस्तु को मोड़ने पर बनने वाला उसका मोड़; तह। परतंत्र (सं.) [वि.] जो दूसरे के शासन या नियंत्रण में हो; गुलाम; पराधीन; परवश; 'स्वतंत्र' का उलटा। परतंत्रता (सं.) [सं-स्त्री.] परवशता; गुलामी; 'स्वतंत्रता' का विपर्यय। परतः (सं.) [क्रि.वि.] 1. आगे; परे 2. पीछे; पश्चात 3. दूसरे से। परत-दर-परत [क्रि.वि.] तह-दर-तह; एक के बाद एक कई परतें। परतदार (सं.+अ.) [वि.] परतवाला; तहयुक्त; स्तरवाला। परतर (सं.) [वि.] ठीक बाद का; क्रमानुसार जो ठीक बाद का हो। परतल (सं.) [सं-पु.] 1. सामान ढोने वाले घोड़े या खच्चर की पीठ पर रखी जाने वाली बोरी या बोरा 2. गोनी या गून जिसमें सामान भरा या लादा जाता है। परतला (सं.) [सं-पु.] कंधे से लटकाई जाने वाली कमर तक की कपड़े या चमड़े की बनी पट्टी जिसमें तलवार लटकाई जाती है। परतली (सं.) [सं-स्त्री.] एक प्रकार की चमड़े या कपड़े की पट्टी जो कंधे से कमर तक तिरछी पहनी जाती है। परताल [सं-स्त्री.] पड़ताल; जाँच; निरीक्षण। परती [सं-स्त्री.] 1. वह ज़मीन जिसे जोता-बोया न गया हो 2. बंजर 3. वह चादर जिससे हवा करके अनाज के दानों का भूसा उड़ाते हैं। परत्व (सं.) [सं-पु.] पराया या अन्य होने का भाव। परथन [सं-स्त्री.] पलेथन; वह सूखा आटा जिसे लोई पर लगाकर रोटी बेलते हैं। परदा (फ़ा.) [सं-पु.] 1. आड़ करने के लिए लटकाया हुआ कपड़ा; पट; (कर्टेन) 2. ओट; आड़ 3. दुराव; छिपाव 4. स्त्रियों के घूँघट निकालने की प्रथा 5. रंगमंच पर लगाया जाने वाला आड़ करने का वह कपड़ा जो समय-समय पर उठाया और गिराया जाता है 6. आड़ करने के लिए बनाई जाने वाली दीवार 7. जनानख़ाना 8. मर्यादा; लाज 9. रहस्य 10. हारमोनियम आदि में स्वर निकलने का स्थान 11. कान का आवरण 12. फ़ारसी के बारह रागों में से हर एक। [मु.] -खोलना : रहस्य प्रकट करना। -डालना : छिपाना। आँखों पर परदा पड़ना : वास्तविकता दिखाई न देना। -करना : परदे में रहना। परदादा [सं-पु.] प्रपितामह; पिता का दादा। परदानशीन (फ़ा.) [वि.] परदे में रहने वाली (स्त्री); पराए मर्दों के सामने अपने मुँह को कपड़े से ढककर रखने वाली (स्त्री)। परदाफाश (फ़ा.) [सं-पु.] किसी गुप्त विषय या वस्तु को प्रकट करने की कार्यवाही; प्रकटीकरण; ख़ुलासा; रहस्योद्घाटन; भेद खोलना। परदारी (सं.) [सं-स्त्री.] परस्त्री; दूसरे की पत्नी; परकीया। परदुखकातर (सं.) [वि.] दूसरे के दुख से दुखी होने वाला। परदेश (सं.) [सं-पु.] वह देश जहाँ कोई व्यक्ति अपना देश छोड़ कर आया हो; विदेश; अपने देश से भिन्न देश। परदेशी (सं.) [सं-पु.] 1. दूसरे देश में रहने वाला या परदेस से आया हुआ व्यक्ति; विदेशी 2. बाहरी। [वि.] परदेस संबंधी; दूसरे देश का; परदेस से आया हुआ। परदेस [सं-पु.] दे. परदेश। परदेसी [सं-पु.] दे. परदेशी। परधर्म (सं.) [सं-पु.] अपने धर्म से भिन्न धर्म; दूसरा धर्म। परधाम (सं.) [सं-पु.] 1. बैकुंठधाम 2. मृत्युलोक। परनाना [सं-पु.] नाना का पिता; माता का दादा। परनानी [सं-स्त्री.] परनाना की पत्नी; माता की दादी। परनाला [सं-पु.] मोरी; बड़ा चौड़ा नाला। परनाली [सं-स्त्री.] 1. छोटी मोरी; छोटी पतली नाली 2. घोड़ों के पीठ के मध्य का नीचापन (पुट्ठों और कंधों की अपेक्षा) जो उनके शुभ लक्षणों में गिना जाता है। परनिंदक (सं.) [सं-पु.] दूसरे की निंदा (शिकायत) करने वाला। परपट [सं-पु.] समतल भूमि; चौरस मैदान। [वि.] चौपट। परपद (सं.) [सं-पु.] 1. श्रेष्ठतम पद या स्थान 2. मोक्ष। परपराना [अव्य.] मिर्च जैसी कड़वी चीज़ों का जीभ या मुँह में लगने पर होने वाला अनुभव; चुनचुनाना। परपराहट [सं-स्त्री.] मिर्ची आदि लगने से जीभ की जलन। परपार (सं.) [सं-पु.] दूसरी ओर का तट या किनारा। परपीड़क (सं.) [वि.] 1. दूसरों को सताने वाला 2. दूसरे की पीड़ा या दर्द को समझने वाला; दूसरे के दर्द को सहानुभूतिपूर्वक अनुभव करने वाला; पराई पीड़ा समझने वाला। परपीड़न (सं.) [क्रि-अ.] दूसरे की पीड़ा; कष्ट; पर-दुख। परपुरुष (सं.) [सं-पु.] परकीया नायिका से प्रेम करने वाला पुरुष; विवाहिता स्त्री की दृष्टि से उसके पति से भिन्न पुरुष। परपुष्ट (सं.) [वि.] 1. दूसरे से पोषित 2. दूसरे द्वारा समर्थित। परपोता [सं-पु.] परपौत्र; पोता का पुत्र; पुत्र का पोता। परफ़ार्मर (इं.) [सं-पु.] वह जो मंच पर गीत, नृत्य आदि की प्रस्तुति देता है; वह जो प्रदर्शन करता है; प्रदर्शक; अभिनेता; कलाकार। परबत्ता (सं.) [सं-पु.] पहाड़ी तोता। परबाबा [सं-पु.] दादा या बाबा के पिता; परदादा। परब्रह्म (सं.) [सं-पु.] जगत से परे निर्गुण और निरुपाधि ब्रह्म; ब्रह्म का निर्गुण स्वरूप। परभृत (सं.) [सं-पु.] 1. जिसका पालन किसी और ने किया हो 2. कोयल 3. कार्तिकेय। परम (सं.) [सं-पु.] वह जो मुख्य या सर्वोच्च हो। [वि.] 1. उच्च; उत्कृष्ट; श्रेष्ठ 2. अत्यधिक; सबसे बढ़कर 3. प्रधान; मुख्य। परमआज्ञा (सं.) [सं-स्त्री.] ऐसी आज्ञा जो अंतिम हो और जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन या फेर-बदल न हो सकता है। परमक (सं.) [वि.] 1. सर्वोत्तम; सर्वोच्च; सर्वश्रेष्ठ 2. परले सिरे का; चरम सीमा का। परमगति (सं.) [सं-स्त्री.] मुक्ति; मोक्ष। परमटा [सं-पु.] पनैला; वह चिकना रंगीन कपड़ा जो अस्तर के काम आता है। परम-तत्व (सं.) [सं-पु.] 1. सृष्टि या विकास का कारक मूल तत्व 2. परब्रह्म। परमधाम (सं.) [सं-पु.] 1. बैकुंठ 2. स्वर्गलोक। परमपद (सं.) [सं-पु.] 1. श्रेष्ठतम पद या स्थान 2. मोक्ष; मुक्ति। परमपिता (सं.) [सं-पु.] परब्रह्म; ईश्वर; परमेश्वर। परमपुरुष (सं.) [सं-पु.] 1. वह व्यक्ति जो पुरुषों में श्रेष्ठ हो 2. परमात्मा 3. विष्णु। परमपूज्य (सं.) [वि.] 1. वह व्यक्ति जो पूजा करने के योग्य हो 2. व्यावहारिक और आचरणशील (व्यक्ति) 3. सारे जगत में पूजनीय। परमप्रिय (सं.) [वि.] सबसे प्रिय (व्यक्ति); प्राणप्रिय; प्राणप्यारा। परमब्रह्म (सं.) [सं-पु.] 1. निर्गुण और उपाधि रहित ब्रह्म 2. ईश्वर। परममित्र (सं.) [सं-पु.] 1. सबसे प्रिय मित्र 2. लंगोटिया यार। परमवीर (सं.) [सं-पु.] सबसे अधिक बलवान; ज़्यादा शक्तिशाली व्यक्ति। [वि.] वीरों में श्रेष्ठ। परमसत्ता (सं.) [सं-पु.] वह सत्ता या शक्ति जो अन्य सत्ता को न मानती हो अर्थात जिसके ऊपर कोई और सत्ता न हो; प्रभुसत्ता; (एब्सोल्यूट पॉवर)। परमसत्ताधारी (सं.) [वि.] सबसे बड़ी सत्ता या अधिकार को प्राप्त करने वाला; सर्वेसर्वा; (सॉवरेन)। परमहंस (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रकार का संन्यासी; परिव्राजक (इनके लिए शिखा, सूत्र आदि महत्वपूर्ण नहीं होते) 2. परमेश्वर 3. ज्ञान की परमावस्था तक पहुँचा हुआ संन्यासी। परमाणविक (सं.) [वि.] परमाणु संबंधी। परमाणु (सं.) [सं-पु.] (विज्ञान) अत्यंत क्षुद्र कणों- प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन से निर्मित पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण जो रासायनिक क्रिया में भाग लेता है। परमाणु ऊर्जा (सं.) [सं-स्त्री.] परमाणु विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा; (ऐटॉमिक इनर्जी)। परमाणु बम (सं.) [सं-पु.] एक प्रकार का गोला (बम) जिसमें रासायनिक क्रियाओं (यूरैनियम नाभिक की विखंडन शृंखला) द्वारा अणु का विस्फोट होता है तथा जिसके फलस्वरूप ढेर-सी ऊर्जा विस्फोट के रूप में विमुक्त होती है; (ऐटम बम)। परमाणु भट्टी (सं.) [सं-स्त्री.] वह भट्टी जिसमें भारी धातु (पारा, प्लुटेनियम आदि) के टुकड़े रख देने के बाद वे रेडियो सक्रिय हो जाते हैं; (न्यूक्लियर रिऐक्टर)। परमाणु भार (सं.) [सं-पु.] वह संख्या जो यह प्रदर्शित करती है कि किसी तत्व का एक परमाणु कार्बन-12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोज़न के 1.008 भाग द्रव्यमान से कितना गुना भारी है; (ऐटॉमिक वेट)। परमाणु भार = तत्व के परमाणु का द्रव्यमान/ कार्बन। परमाणुवाद (सं.) [सं-पु.] वैशेषिक दर्शन का वह सिद्धांत जो पदार्थों की निर्मिति को परमाणुओं के संयोग से हुआ मानता है। परमाणुवादी (सं.) [वि.] परमाणुवाद के सिद्धांत को मानने वाला; वैशेषिक दर्शन को मानने वाला। परमाणु विघटन (सं.) [सं-पु.] परमाणु के नाभिक का विखंडन; (ऐटॉमिक फ़्यूज़न)। परमाणु संख्या (सं.) [सं-पु.] किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों को व्यक्त करने वाली संख्या। परमात्म (सं.) [वि.] परमात्मा संबंधी; परमात्मा का। परमात्मपरायण (सं.) [वि.] परमात्मा की आराधना या सेवा में लगा हुआ। परमात्मा (सं.) [सं-पु.] परमसत्ता; ब्रह्म; ईश्वर; भगवान; ख़ुदा। [वि.] जो श्रेष्ठ और उत्तम हो। परमानंद (सं.) [सं-पु.] आनंदस्वरुप ब्रह्म; आत्मा को परमात्मा में लीन करने पर प्राप्त उच्चतम आनंद। परमायु (सं.) [सं-स्त्री.] मनुष्य के जीवन-काल की चरम सीमा (जो लगभग सौ वर्ष मानी जाती है)। परमार्थ (सं.) [सं-पु.] 1. भलाई; उपकार; परोपकार 2. ऐसा पदार्थ या वस्तु जो सबसे बढ़कर हो; उत्कृष्ट वस्तु 3. मोक्ष 4. नाम, रूप आदि से परे वास्तविक परम तत्व 5. यथार्थ तत्व 6. नित्य एवं अबाधित पदार्थ 7. सत्य; ब्रह्म 8. ईश्वर। परमार्थपरायण (सं.) [वि.] परमार्थ में लगा रहने वाला; परमार्थी। परमावश्यक (सं.) [वि.] अति अनिवार्य; बहुत ज़रूरी; (नेसेसरी)। परमिट (इं.) [सं-पु.] 1. कोई काम करने या कोई वस्तु ख़रीदने की अनुमति जो सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर लिखित रूप में दी जाती है 2. आधिकारिक अनुमति पत्र 3. वह कागज़ जिसपर अनुमति लिखी जाती है। परमुखापेक्षी (सं.) [वि.] प्रत्येक बात के लिए दूसरों का मुँह ताकने वाला; दूसरे से सहयोग के लिए लालायित। परमेश (सं.) [सं-पु.] सबसे बड़ा ईश्वर; परमात्मा। परमेश्वर (सं.) [सं-पु.] 1. सर्वशक्तिमान ईश्वर 2. सगुण ब्रह्म; ब्रह्मा; विष्णु; महेश; ओंकार। परमेश्वरी (सं.) [सं-स्त्री.] सृष्टि मंडल की मूल अधिष्ठाता शक्ति; आदिशक्ति; परमशक्ति माता भुवनेश्वरी; परब्रह्म का स्त्री रूप; दुर्गा। [वि.] 1. परमेश्वर संबंधी 2. दैवीय; ईश्वरीय। परमेष्ट (सं.) [वि.] जो परम इष्ट हो; जो सबसे अधिक प्रिय हो। परमेष्टी (सं.) [सं-पु.] 1. प्राचीन काल का एक प्रकार का यज्ञ 2. अग्नि, जल, वायु आदि तत्व 3. ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवता। परराष्ट्र (सं.) [सं-पु.] अपने राष्ट्र से भिन्न राष्ट्र; अन्य राष्ट्र; विदेश। परला [वि.] उधर का; उस ओर का। परलोक (सं.) [सं-पु.] इस लोक से भिन्न लोक, दूसरा लोक, स्वर्ग आदि। परलोकवास (सं.) [सं-पु.] मृत्यु; देहांत। परलोकवासी (सं.) [वि.] परलोक में वास करने वाला; मरा हुआ; मृत। परवर (फ़ा.) [सं-पु.] पालक; पालनकर्ता। परवरदिगार (फ़ा.) [सं-पु.] ईश्वर; भगवान। परवरिश (फ़ा.) [सं-स्त्री.] पालन-पोषण; देखरेख। परवर्ती (सं.) [वि.] 1. बाद के काल का 2. घटना क्रम के अनुसार बाद का। परवल (सं.) [सं-पु.] 1. एक प्रसिद्ध लता 2. उक्त लता का फल जिसकी सब्ज़ी, तरकारी बनाई जाती है 3. चिचड़ा नामक पौधा जिसके फलों की तरकारी बनती है। परवश (सं.) [वि.] 1. अन्याश्रित 2. जो दूसरे के वश में हो; पराधीन। परवशता (सं.) [सं-स्त्री.] 1. अपना वश न चलने का भाव; मजबूरी 2. पराधीनता। परवश्य (सं.) [वि.] दे. परवश। परवा1 [सं-पु.] मिट्टी का कटोरे जैसा पात्र; पुरवा (कोसा या कसोरा)। [सं-स्त्री.] 1. एक प्रकार की घास 2. प्रतिपदा तिथि 3. सहारा; भरोसा; अवलंब। परवा2 (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. सोच; चिंता 2. गरज़; ध्यान; ख़याल। परवाज़ (फ़ा.) [सं-स्त्री.] 1. उड़ान 2. अहंकार; नाज़। [वि.] 1. उड़ने वाला 2. डींग मारने वाला। परवान (सं.) [सं-पु.] 1. प्रमाण 2. सीमा; हद 3. अवधि 4. जहाज़ का मस्तूल। [वि.] 1. उचित 2. विश्वसनीय एवं प्रामाणिक। [मु.] -चढ़ना : सत्य सिद्ध होना। परवानगी (फ़ा.) [सं-स्त्री.] अनुमति; आज्ञा। परवाना1 [सं-पु.] खली, चूना, बरी आदि नापने का एक पैमाना, जो प्रायः लकड़ी का बना होता है। परवाना2 (फ़ा.) [सं-पु.] 1. पतंगा; शलभ 2. आदेशपत्र; नियुक्तिपत्र 3. भक्त 4. आसक्त; मुग्ध; किसी पर स्वयं को बलिदान कर देने वाला व्यक्ति। परवाल [सं-पु.] 1. प्रवाल; मूँगा 2. कोपल; कल्ला 3. सितार आदि का बीचवाला लंबा डंड; बीन। परवाह [सं-स्त्री.] दे. परवा। (लोक प्रयुक्त) [सं-पु.] प्रवाह; शव को बहा देना। परशु (सं.) [सं-पु.] फरसा; कुल्हाड़ी की तरह का एक शस्त्र। परशुराम (सं…

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