Wednesday 30 August 2017

किंवदन्तियाँ इस प्रकार है - राजा भर्तृहरि

किंवदन्तियाँ संपादित करें इनके जीवन से सम्बन्धित कुछ किंवदन्तियाँ इस प्रकार है - एक बार राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला के साथ जंगल में शिकार खेलने के लिये गये हुए थे। वहाँ काफी समय तक भटकते रहने के बाद भी उन्हें कोई शिकार नहीं मिला। निराश पति-पत्नी जब घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें हिरनों का एक झुण्ड दिखाई दिया। जिसके आगे एक मृग चल रहा था। भर्तृहरि ने उस पर प्रहार करना चाहा तभी पिंगला ने उन्हें रोकते हुए अनुरोध किया कि महाराज, यह मृगराज ७ सौ हिरनियों का पति और पालनकर्ता है। इसलिये आप उसका शिकार न करें। भर्तृहरि ने पत्नी की बात नहीं मानी और हिरन को मार डाला जिससे वह मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़ा। प्राण छोड़ते-छोड़ते हिरन ने राजा भर्तृहरि से कहा- तुमने यह ठीक नहीं किया। अब जो मैं कहता हूँ उसका पालन करो। मेरी मृत्यु के बाद मेरे सींग श्रृंगीबाबा को, मेरे नेत्र चंचल नारी को, मेरी त्वचा साधु-संतों को, मेरे पैर भागने वाले चोरों को और मेरे शरीर की मिट्टी पापी राजा को दे दो। हिरन की करुणामयी बातें सुनकर भर्तृहरि का हृदय द्रवित हो उठा। हिरन का कलेवर घोड़े पर लाद कर वह मार्ग में चलने लगे। रास्ते में उनकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से हुई। भर्तृहरि ने इस घटना से अवगत कराते हुए उनसे हिरन को जीवित करने की प्रार्थना की। इस पर बाबा गोरखनाथ ने कहा- मैं एक शर्त पर इसे जीवनदान दे सकता हूँ कि इसके जीवित हो जाने पर तुम्हें मेरा शिष्य बनना पड़ेगा। राजा ने गोरखनाथ की बात मान ली। भर्तृहरि ने वैराग्य क्यों ग्रहण किया यह बतलाने वाली अन्य किंवदन्तियां भी हैं जो उन्हें राजा तथा विक्रमादित्य का ज्येष्ठ भ्राता बतलाती हैं। इनके ग्रंथों से ज्ञात होता है कि इन्हें ऐसी प्रियतमा से निराशा हुई थी जिसे ये बहुत प्रेम करते थे। नीति-शतक के प्रारम्भिक श्लोक में भी निराश प्रेम की झलक मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने प्रेम में धोखा खाने पर वैराग्य जीवन ग्रहण कर लिया था, जिसका विवरण इस प्रकार है। इस अनुश्रुति के अनुसार एक बार राजा भर्तृहरि के दरबार में एक साधु आया तथा राजा के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करते हुए उन्हें एक अमर फल प्रदान किया। इस फल को खाकर राजा या कोई भी व्यक्ति अमर को सकता था। राजा ने इस फल को अपनी प्रिय रानी पिंगला को खाने के लिए दे दिया, किन्तु रानी ने उसे स्वयं न खाकर अपने एक प्रिय सेनानायक को दे दिया जिसका सम्बन्ध राजनर्तिकी से था। उसने भी फल को स्वयं न खाकर उसे उस राजनर्तिकी को दे दिया। इस प्रकार यह अमर फल राजनर्तिकी के पास पहुँच गया। फल को पाकर उस राजनर्तिकी ने इसे राजा को देने का विचार किया। वह राजदरबार में पहुँची तथा राजा को फल अर्पित कर दिया। रानी पिंगला को दिया हुआ फल राजनर्तिकी से पाकर राजा आश्चर्यचकित रह गये तथा इसे उसके पास पहुँचने का वृत्तान्त पूछा। राजनर्तिकी ने संक्षेप में राजा को सब कुछ बतला दिया। इस घटना का राजा के ऊपर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ा तथा उन्होंने संसार की नश्वरता को जानकर संन्यास लेने का निश्चय कर लिया और अपने छोटे भाई विक्रम को राज्य का उत्तराधिकारी बनाकर वन में तपस्या करने चले गये। इनके तीनों ही शतक उत्कृष्टतम संस्कृत काव्य हैं। इनके अनेक पद्य व्यक्तिगत अनुभूति से अनुप्राणित हैं तथा उनमें आत्म-दर्शन का तत्त्व पूर्णरूपेण परिलक्षित होता है। भविष्य पुराण से ज्ञात होता है कि राजा विक्रमादित्य का समय अत्यन्त सुख और समृद्धि का था। उस समय उनके राज्य में जयंत नाम का एक ब्राह्मण रहता था। घोर तपस्या के परिणाम स्वरूप उसे इन्द्र के यहाँ से एक फल की प्राप्ति हुई थी जिसकी विशेषता यह थी कि कोई भी व्यक्ति उसे खा लेने के उपरान्त अमर हो सकता था। फल को पाकर ब्राह्मण अपने घर चला आया तथा उसे राजा भर्तृहरि को देने का निश्चय किया और उन्हें दे दिया। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार भर्तृहरि विक्रमादित्य के बड़े भाई तथा भारत के प्रसिद्ध सम्राट थे। वे मालवा की राजधानी उज्जयिनी में न्याय पूर्वक शासन करते थे। उनकी एक रानी थी जिसका नाम पिंगला बताया जाता है। राजा उससे अत्यन्त प्रेम करते थे, जबकि वह महाराजा से अत्यन्त कपटपूर्ण व्यवहार करती थी। यद्यपि इनके छोटे भाई विक्रमादित्य ने राजा भर्तृहरि को अनेक बार सचेष्ट किया था तथापि राजा ने उसके प्रेम जाल में फँसे होने के कारण उसके क्रिया-कलापों पर ध्यान नहीं दिया था। उस अनुश्रुति के आधार पर यह संकेत मिलता है कि भर्तृहरि मालवा के निवासी तथा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे।

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  1. baglamukhi sadhna प्राचीन शक्तिशाली मां बगलामुखी साधना ph.85280 57364

    https://gurumantrasadhna.com/baglamukhi-sadhna/

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