ⓘ Optimized 13 hours agoView original https://rajyogi255.wordpress.com/2012/10/07/%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%BF/ rajyogi255.wordpress.com दाखवा ऑक्टोबर 7, 2012 यक्ष और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच संवाद यक्ष और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच संवाद -महाकाव्य महाभारत में ‘यक्ष- युधिष्ठिर संवाद’ नाम से एक पर्याप्त चर्चित प्रकरण है । संक्षेप में उसका विवरण यूं है: पांडवजन अपने तेरह-वर्षीय वनवास पर वनों में विचरण कर रहे थे । तब उन्हें एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश हुई । पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सोंपा गया । उसे पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वह वहां पहुंचा । जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उसे रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी, जिसकी सहदेव ने अवहेलना कर दी । यक्ष ने उसे निर्जीव (संज्ञाशून्य?) कर दिया । उसके न लौट पाने पर बारी-बारी से क्रमशः नकुल, अर्जुन एवं भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई । वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण सभी का वही हस्र हुआ । अंत में युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे । यक्ष ने उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा । युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया, यक्ष को संतुष्ट किया, और जल-प्राप्ति के साथ यक्ष के वरदान से भाइयों का जीवन भी वापस पाया । यक्ष ने अंत में यह भी उन्हें बता दिया कि वे धर्मराज हैं और उनकी परीक्षा लेना चाहते थे । उस समय संपन्न यक्ष-युधिष्ठिर संवाद वस्तुतः काफी लंबा है । संवाद का विस्तृत वर्णन वनपर्व के अध्याय ३१२ एवं ३१३ में दिया गया है । यक्ष ने सवालों की झणी लगाकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली । अनेकों प्रकार के प्रश्न उनके सामने रखे और उत्तरों से संतुष्ट हुए । यक्ष प्रश्न… यक्ष – कौन हूँ मैं? युधिष्ठिर – तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है। यक्ष – जीवन का उद्देश्य क्या है? युधिष्ठिर – जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है। यक्ष – जन्म का कारण क्या है? युधिष्ठिर – अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं। यक्ष – जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है? युधिष्ठिर – जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। यक्ष – वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है? युधिष्ठिर – जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म। यक्ष – संसार में दुःख क्यों है? युधिष्ठिर – लालच, स्वार्थ, भय संसार के दुःख का कारण हैं। यक्ष – तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की? युधिष्ठिर – ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की। यक्ष – क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या रुप है उसका? क्या वह स्त्री है या पुरुष? युधिष्ठिर – हे यक्ष! कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही आध्यात्म में ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष। यक्ष – उसका स्वरूप क्या है? युधिष्ठिर – वह सत्-चित्-आनन्द है, वह अनाकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता है यक्ष – वह अनाकार स्वयं करता क्या है? युधिष्ठिर – वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है। यक्ष – यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की? युधिष्ठिर – वह अजन्मा अमृत और अकारण है यक्ष – भाग्य क्या है? युधिष्ठिर – हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है। यक्ष – सुख और शान्ति का रहस्य क्या है? युधिष्ठिर – सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है। यक्ष – चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है? युधिष्ठिर – इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उतपन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है। यक्ष – सच्चा प्रेम क्या है? युधिष्ठिर – स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है। यक्ष – तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता? युधिष्ठिर – जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता। यक्ष – आसक्ति क्या है? युधिष्ठिर – प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है। यक्ष – बुद्धिमान कौन है? युधिष्ठिर – जिसके पास विवेक है। यक्ष – नशा क्या है? युधिष्ठिर – आसक्ति। यक्ष – चोर कौन है? युधिष्ठिर – इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं। यक्ष – जागते हुए भी कौन सोया हुआ है? युधिष्ठिर – जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है। यक्ष – कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है? युधिष्ठिर – यौवन, धन और जीवन। यक्ष – नरक क्या है? युधिष्ठिर – इन्द्रियों की दासता नरक है। यक्ष – मुक्ति क्या है? युधिष्ठिर – अनासक्ति ही मुक्ति है। यक्ष – दुर्भाग्य का कारण क्या है? युधिष्ठिर – मद और अहंकार। यक्ष – सौभाग्य का कारण क्या है? युधिष्ठिर – सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव। यक्ष – सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है? युधिष्ठिर – जो सब छोड़ने को तैयार हो। यक्ष – मृत्यु पर्यंत यातना कौन देता है? युधिष्ठिर – गुप्त रूप से किया गया अपराध। यक्ष – दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए? युधिष्ठिर – सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का। यक्ष – संसार को कौन जीतता है? युधिष्ठिर – जिसमें सत्य और श्रद्धा है। यक्ष – भय से मुक्ति कैसे संभव है? युधिष्ठिर – वैराग्य से। यक्ष – मुक्त कौन है? युधिष्ठिर – जो अज्ञान से परे है। यक्ष – अज्ञान क्या है? युधिष्ठिर – आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है। यक्ष – दुःखों से मुक्त कौन है? युधिष्ठिर – जो कभी क्रोध नहीं करता। यक्ष – वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी? युधिष्ठिर – माया। यक्ष – माया क्या है? युधिष्ठिर – नाम और रूपधारी नाशवान जगत। यक्ष – परम सत्य क्या है? युधिष्ठिर – ब्रह्म।…! Advertisements Related “ आचार्य श्री शंकर और मण्डन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ ” { १४ }: With 2 comments “ आचार्य श्री शंकर और मण्डन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ ” { १ }: With 2 comments सूरदास के पद: भ्रमरगीत With 2 comments PREVIOUS: तुझा दास मी व्यर्थ जन्मास आलो NEXT: श्री गुरु तत्त्व 7 thoughts on “यक्ष और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच संवाद”  GC Parihar म्हणतो आहे: डिसेंबर 11, 2015 येथे 7:10 अतिशय उत्तम जिवन सार समाविष्ट अशलेल संवाद. आपला आभार! उत्तर  rajyogi255 म्हणतो आहे: डिसेंबर 12, 2015 येथे 7:10 मन:पूर्वक धन्यवाद उत्तर  Brahm Pratap म्हणतो आहे: सप्टेंबर 10, 2016 येथे 7:10 यक्ष युधिष्ठिर संवाद महाभारत के वन पर्व का एक बहुत ही रोचक प्रसंग है। यक्ष प्रश्न इतना जटिल था की आज भी किसी जटिल प्रश्न को लोग उसे यक्ष प्रश्न संज्ञा दे देते हैं उत्तर  rajyogi255 म्हणतो आहे: सप्टेंबर 13, 2016 येथे 7:10 मन:पूर्वक धन्यवाद उत्तर  अजय गुजर म्हणतो आहे: जानेवारी 20, 2017 येथे 7:10 मा. यक्ष आणि युधिष्ठीर यांचा सवांद वाचून मी ., वंचित राहीलेल्या ज्ञानापासून शिकलो . खुप खुप आभार उत्तर  rajyogi255 म्हणतो आहे: जानेवारी 22, 2017 येथे 7:10 मन:पूर्वक धन्यवाद उत्तर  rajyogi255 म्हणतो आहे: जानेवारी 22, 2017 येथे 7:10 मन:पूर्वक धन्यवाद प्रतिक्रिया व्यक्त करा आपला ई-मेल अड्रेस प्रकाशित केला जाणार नाही. आवश्यक फील्डस् * मार्क केले आहेत टिप्पणी  नाव *  ईमेल *  वेबसाईट  कंमेन्ट द्या  Notify me of new comments via email. 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