ऋग्वेद मंगलवार, 8 मई 2012 ऋग्वेद   41 || 42 || 43 || 44 || 45 || 46 || 47 || 48 || 49 || 50 || 51 || 52 || 53 || 54 || 55 || 56 || 57 || 58 || 59 || 60 || PreviousNex satish sharma पर 8:38 pm साझा करें  कोई टिप्पणी नहीं: एक टिप्पणी भेजें ‹ मुख्यपृष्ठ वेब वर्शन देखें मेरे बारे में  satish sharma  ''यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें।''- (ऋग्वेद-3-18-1) हम बोले गा तो बोलोगे की बोलता है ? वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है। आर्य समाज यानि एक डूबता जहाज।पता है क्योँ?क्योँकि इसके खेवनहार दयानंद को अपना आदर्श मानने वाले आर्य राजनीति के गर्त में डूब गये हैँ।वेदपथ पर चलने की प्रेरणा देने वाले विद्वानोँ को केवल अपनी दक्षिणा की चिँता है।आर्य समाज भाड मेँ जाये या वेद चूल्हे मेँ बस दक्षिणा अच्छी मिलनी चाहिये।अरे धर्म का चोला पहनकर लूटने वालोँ बंद करो यह दोगलापन।करनी कथनी मेँ भेद है आचरण मेँ छेद है ठेँगे पर ईश्वर इनके कोसोँ दूर वेद है।प्रभु को न्यायकारी कहने वालो कुछ तो डरो उससे वो सब देखता है।तुम्हे कोई अधिकार नही है दूसरोँ को पाखंडी कहने का क्योँकि तुमसे बडा पाखंडी कोई नही है।असत के सागर से तराने वाली आर्य समाज रूपी नौका को डुबाने वाले अन्य कोई नही उसके अपने हैँ।अरे पथ प्रदर्शकोँ तुम्हेँ डूबना है तो डूबो पर इस पवित्र संस्था को तो मत डुबाओ। भारत में हिन्दू किसी इंदु -सिन्धु से नही आये थे .जेसा की नेट पर बताया जाता है , जब दुष्यन्त और शकुन्तला का प्रेम कुछ बढ़ने लगता है, तभी भरत का भारत बनता है और इसके रहनेवाले तपस्वी हिन्दू कहलाये थे |आप अपनी राये जरुर दें धन्यवाद मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें Blogger द्वारा संचालित. 
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