Thursday, 31 August 2017

अत्यंत आकर्षक पंचायतन शैली

ⓘ Optimized just nowView original http://drpkarya.blogspot.com/2016/12/lakshman-temple-khajuraho-visited-by.html PROF P K ARYA DEC 19 LAKSHMAN TEMPLE KHAJURAHO VISITED BY P.K.ARYA श्री लक्ष्मण मंदिर - खजुराहो  अत्यंत आकर्षक पंचायतन शैली का यह सांघार प्रासादविष्णु को समर्पित है। बलुवे पत्थर से निर्मित, भव्य: मनोहारी और पूर्ण विकसित खजुराहो शैली के मंदिरों में यह प्राचीनतम है। 98' लंबे और 45' चौड़े मंदिर के अधिष्ठान की जगती के चारों कोनों पर चार खूंटरा मंदिर बने हुए हैं। इसके ठीक सामने विष्णु के वाहन गरुड़ के लिए एक मंदिर था। गरुड़ की प्रतिमा अब लुप्त हो गयी है। वर्तमान में इस छोटे से मंदिर को देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। लक्ष्मण मंदिर से ही प्राप्त एक अभिलेख से पता चलता है कि चन्देल वंश की सातवीं पीढ़ी में हुए यशोवर्मण (लक्षवर्मा) ने अपनी मृत्यु से पहले खजुराहो में बैकुंठ विष्णु का एक भव्य मंदिर बनवाया था। इससे यह पता चलता है कि यह मंदिर 930- 950 के मध्य बना होगा, क्योंकि राजा लक्षवर्मा ने 954 में मृत्यु पायी थी। इसके शिल्प और वास्तु की विलक्षणताओं से भी यही तिथि उपयुक्त प्रतीत होती है। यह अलग बात है कि यह मंदिर विष्णु के बैकुंठ रुप को समर्पित है, लेकिन नामांकरण मंदिर निर्माता यशोवर्मा के उपनाम लक्षवर्मा के आधार पर हुआ है। शिल्प और वास्तु की दृष्टि से लक्ष्मण मंदिर खजुराहो के परिष्कृत मंदिरों में सर्वोत्कृष्ट है। इसके अर्द्धमंडप, मंडप और महामंडप की छतें स्तुपाकार हैं, जिसमें शिखरों का अभाव है। इस मंदिर- छतों की विशेषताएँ सबसे अलग है। कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-  1. . इसके मंडप और महामंडप की छतों के पीढ़े खपरों की छाजन के समान है, 2. . महामंडप की छत के पीढ़ो के सिरों का अलंकरण अंजलिबद्ध नागों की लघु आकृतियों से किया गया है। 3. . मंडप की छत पर लटकी हुई पत्रावली के साथ कलश का किरिट है। 4. . इस मंदिर के मंडप और महामंडप की छतें स्तूपाकार है। 5. . मंदिर के महामंडप में स्तंभों के ऊपर अलंवन बाहुओं के रुप में अप्सराएँ शिल्प कला की अनुपम कृतियाँ हैं। इस मंदिर की मूर्तियों की तरंगायित शोभा गुप्ताशैली से प्रभावित है। मंदिर के कुछ स्तंभों पर बेलबूटों का उत्कृष्ट अलंकन है। मंदिर के मकर तोरण में योद्धाओं को बड़ी कुशलता से अंकित किया गया है। खजुराहो के मंदिरों से अलग, इस देव प्रासाद की कुछ दिग्पाल प्रतिमाएँ द्विभुजी है और गर्भगृह के द्वार उत्तीर्ण कमलपात्रों से अलंकृत किया गया है। · इस मंदिर के प्रवेश द्वार के सिरदल एक दूसरे के ऊपर दो स्थूल सज्जापट्टियाँ हैं।  Search AUG 31 Bhojpatra ? By Aaryam  https://youtu.be/f5BUT4QY-tU *"आर्यम-सूत्र"* *"भोजपत्र का महत्व"* भोजपत्र का नाम आते ही उन प्राचीन पांडुलिपियों का विचार आता है, जिन्हे भोजपत्रों पर लिखा गया है। कागज की खोज के पूर्व हमारे देश में लिखने का काम भोजपत्र पर ही किया जाता था। 'भोज' हमारी प्राचीन संस्कृति का परिचायक वृक्ष है। यह हिमालयीन वनस्पतियों का एक प्रतिनिधि पेड़ है। अति महत्वपूर्ण औषधि गुणों से भरपूर इस वृक्ष के धार्मिक महत्व के कारण इस वृक्ष की उपादेयता अधिक रही है।हमारे देश में बहुत ही शुभ व शुद्ध संस्कारों के तहत इनका उपयोग किया जाता रहा है... *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्स्क्राइब कीजिए।"* Posted 3 hours ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 29 P.K.Arya 30 August 17 Posted Yesterday by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 26 Nastik v/s Astik by aaryam https://youtu.be/1QFz6pTxcmE *"आर्यम-सूत्र"* *"नास्तिक बनाम आस्तिक"* जीवन की थाती 'गुरु की सदशिक्षा' जिसका प्रथम चरण स्व-में निहित करना है, अपने गुरु के द्वारा दी गई शिक्षा और उनके मार्ग का अनुसरण सच्चे मायनों में गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा-आस्था को प्रकट करने का सच्चा मार्ग है! स्वयं के रूपांतरण के पश्चात ही हम किसी के लिए प्रेरणा स्वरूप हो सकते हैं किंतु उसके पहले गुरु से प्राप्त ज्ञान और शिक्षा का पूर्णरूपेण परिपालन अति आवश्यक है। सर्वप्रथम दिन-प्रति-दिन जीवन के आयाम से मिलने वाले परिणाम के साथ संतुलन बैठना आवश्यक है तभी हम इसके आगे आगाध आस्था के मार्ग पर- गुरु के शुभ संदेशों के मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं। इसलिए जब कभी ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास की बात आए! जीवन के अस्तित्व में गुरु की महत्ता व उपादेयता की बात आए तो निज विचार व निज प्रेरणा होंनी चाहिए किसी को कभी भी प्रेरित करने की चेष्ठा नही होनी चाहिए। गुरु प्राप्ति के बाद जीवन के संकल्प और प्रखर हो जाते हैं तब हमें अपने जीवन में और उत्तम व उत्कृष्ट कार्य करने के लिए अग्रसर होना चाहिए। जीवन का रहस्य कुछ ऐसा है कि जब कभी नास्तिक और आस्तिक में संघर्ष होगा तो विजय नास्तिक की ही होगी चूंकि उसकी तैयारी प्रारम्भ से ही 'ना' करने की है। परमात्मा को जानने वाला कभी भी उन्हें सिद्ध नही कर सकता! चूंकि परमात्मा को समझा जा सकता है उन्हें अनुभूत किया जा सकता है परमात्मा को सोचा जा सकता है और परमात्मा हुआ भी जा सकता है! दिए से दिया जल सकता है लेकिन दूसरे को सिद्ध नही किया जा सकता। जैसे ही हम कुछ कहते हैं वह हमारी कही हुई बात हो जाती है लेकिन जो हम कह रहे हैं वह बात अनिर्वचनीय हो जाती है जिसका वर्णन ना किया जा सके। जैसे-जैसे व्यक्ति के ज्ञान-बोध के आयाम उर्ध्वगामी होते चले जाते हैं वैसे-वैसे उसकी वाणी मौन होने लगती है। ऐसा व्यक्ति कम बोलने लगता है, चुप रहने लगता है। वह परमात्मा के लिए दावा करना बंद कर देता है। ज्ञान का प्रथम लक्षण ही है अज्ञानता का बोध! अज्ञानी की अज्ञानता का प्रथम लक्षण है ज्ञान का दंभ! *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्स्क्राइब कीजिए।"* Posted 4 days ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 26 कण कण में ईश्वर , आर्यम https://youtu.be/Dj-fl_25Nvs *"आर्यम-सूत्र"* *" कण-कण में ईश्वर!"* ऋग्वेद में एक श्लोक आता है- *"ईशा वास्यम मिदं सर्वम यत किंचियाम जगत्याम जगत।"* अर्थात ईश्वर इस जग के कण-कण में विद्यमान हैं। यह बात सार्वभौमिक सत्य भी है और हमारी वैदिक देशना का मूल तत्व भी है। भारतीय आध्यात्म व हिन्दू जीवन-दर्शन का अभिन्न सूत्र भी यही मूल वाक्य है। वैदिक-देशनाओं से अपने जीवन का परिपालन करने वाले बहुत से लोग जो अपने जीवन संस्कारों में बहुत सारे वैदिक शास्त्रों और मंत्रों का समावेश रखते हैं वे सब यह मानते हैं कि कण-कण में ईश्वर बसते हैं तो क्या किसी प्राणी में ईश्वर नही हैं! जब परमात्मा कण-कण में व्याप्त हैं तो हममें भी ईश्वर का वास है! जितना सागर समुद्र में है उतना ही एक चमच्च के अनुपात में भी है...जब हम इस जल के गुण-तत्व का मापन करेंगे तो वही गुण-तत्व चम्मच के जल में भी समाहित होगा जितना समुद्र के जल-तत्व में है, एक समान अनुपात-मात्रा का संतुलन हमें परिमाप में मिलेगा। जीवन में जो चीज़े बहुत मायने नही रखतीं, कम मूल्यवान हैं ,जो प्राणहीन हैं! हम उनको लेकर तो बहुत गंभीर-संजीदा हैं! घर में रखे हुए टेलिविजन से बड़ा सरोकार रखते हैं! अपने उपयोग में आने वाले गैजेट्स को लेकर बड़े जागरूक व गंभीर रहते हैं लेकिन जो हमारे साथ हमारे संबंधी-सहचर-भाई-बंधु-पति-पत्नी-बच्चे-मित्र-सखा-बंधु-बांधव के बारे में उदासीन हैं! हम अपने मोबाईल से ज्यादा आदर-पूर्वक, ख्याल-पूर्वक, ध्यान-पूर्वक व्यवहार करते हैं और हमसे सम्बद्ध सचेतन से-जीवात्मा से , लापरवाही भरा व्यवहार करते हैं! उनके प्रति दुराग्रह से भरे होते हैं! अगर हम इस बात पर विश्वास रखते हैं कि परमात्मा इस जग के कण-कण में विद्यमान हैं तो सबसे पहले जिन चीजों को परमात्मा ने बनाया है तो सबसे पहले हमें उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए, उनका पहले पायदान में रखना चाहिए! उसके पश्चात मनुष्य निर्मित बनाई चीजों को स्थान देना चाहिए। परमात्मा द्वारा-प्रकृति द्वारा प्रदत्त अवयवों को जब हम प्राथमिकता देते हैं तो एक तरह से हम परमात्मा को ही प्रथम रखते हैं और तभी यह सूत्र अपनी पूर्णता को परिलक्षित होता है कि - "ईशा वास्यम मिदं सर्वम, यत किंचियाम जगत्याम जगत।" *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्स्क्राइब कीजिए।"* Courtesy Manisha Shree Posted 4 days ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 24 Social media and you ? By Aaryan https://youtu.be/Vv_qfxKh7fI *"आर्यम-सूत्र"* *"सोशल मीडिया और आप"* *नवीन- मॉरीशस* प्रश्न- सोशल मीडिया में संदेश प्रसारित करने पर लोगों की प्रतिक्रियाओं का हमारे व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव होना चाहिए? सूचना-संचार-प्रौद्योगिकी के इस युग में अपनी बात या विचार दूसरों तक पहुँचाने के कई माध्यम और आयाम अब निर्मित हो चुके हैं जिनमें व्हाट्सअप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि कई प्रमुख विकल्प मौजूद हैं। इनके माध्यम से आज हम अपनी बातें देश-विदेश-डोर-दराज़ गांवों तक भी पहुंचा रहे हैं ऐसे में हमारे माध्यम से प्रसारित किए जाने वाले विचार-समाचार-धारणा आदि की प्रतिक्रिया के संबंध में हमें ज़्यादा केंद्रित या फोकस नही होना चाहिए। गंगा की निर्मल धारा की तरह निर्द्वन्द्व व पावन हो बहते जाना है कोई इस पावन जल में गंदगी भी डालता है कोई कचरा भी फेंकता है कोई स्नान भी करता है कोई उसकी पूजा भी करता है। हमें अपने मंतव्य-विचार-उद्देश्य पर सदा एकनिष्ठ व स्थिर बने रहना चाहिए। अपनी बात सदा करते रहना चाहिए। जो लोग विषाद से भरे हैं, मानसिक अवसाद व डिप्रेशन में हैं, तनाव से जूझ रहे हैं और अपने जीवन के प्रतिक्षण समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं उन्हें कभी सुख की-खुशी की-प्रसन्नता की-जीवन की पुलक की बात-जीवन का मधुर गीत कभी अच्छा नही लगेगा। वे उन बातों से चिढ़ने लगेंगे। जीवन का विरोधाभास देखिये की बुरी चीज़ें तो लोगों को बुरी लगती ही हैं किंतु अच्छी चीजें भी लोगों को बुरी लगने लगती हैं कभी-कभी तो अच्छी बातें लोगों को और भी ज्यादा परेशान करने लगती हैं। हम अपने जीवन में वातावरण होता है वैसा ही हम अनुभूत करने लगते हैं जैसे अगर हम सुखी हैं तो सुख का आनंद लेने लगते हैं अगर हमारा जीवन शांत है तो हम शांति का आनंद लेने लगते हैं अगर जीवन में समृद्धि है तो हम समृद्धि को भोगने लगते है अगर जीवन ज्ञान से परिपूर्ण है तो हम हम हर ज्ञानवान बात से आनंद उठाने लगते हैं यदि हमारे पास पद-प्रतिष्ठा है सुख-शांति-आनंद-उत्सव-वैभव-समृद्धि-ऐश्वर्य है तो हम इन सब गुणों का आनंद उठाएंगे इन्हें अपने जीवन में पूरी तरह समाहित करते जाएंगे। लेकिन जिनके भी जीवन में यह सब नही है वे लोग उन लोगों से चिढ़ने लगेंगे परेशान होने लगेंगे जिनके जीवन में सारा वैभव उपलब्ध है। ऐसे लोग ईर्ष्या वश शांत भाव से सबकुछ चुपचाप देखते रहते हैं और कभी-कभी ये द्वेष भाव जब अतिरेक की अवस्था में पहुँचता है तो यही लोग मुखर रूप से आनंदित लोगों के प्रति विरोध भी प्रकट करने लगते हैं यहां तक कि यही विरोध शत्रुता में भी परिवर्तित हो जाता है। ऐसी स्थिति में अच्छी चीजों से भी बुरा प्रभाव आने लगता है। ऐसे में अपने स्वभाव की स्वाभाविक गति को बदलना नही चाहिए बल्कि अपनी गति में ही अच्छे काम करते चले जाना चाहिए। व्यक्तिगत रूप से यदि हमें कभी ये जान पड़े की हमारी अच्छी बात से भी किसी व्यक्ति को बुरा लग रहा है तो ऐसे में ये बात सुनिश्चित मान लेनी चाहिए कि उस व्यक्ति का समय बुरा चल रहा है वरना अच्छी बात से सही इंसान को सदा-सर्वदा-सर्वत्र यानि हमेशा अच्छा ही लगेगा यदि अच्छी बात किसी को बुरी लगती है तो इसके मायने यही होते हैं कि उस व्यक्ति-विशेष का समय निश्चित रूप से बुरा चल रहा है।उसके जीवन में बुरी घटनाएं घटित हो रही हैं और वह उन बुरी घटनाओं के कलह-क्लेश-कर्ज़-तनाव से इतना आतप्त है और थक चुका है कि उसे कोई अच्छी बात भी तीर की तरह चुभती है उन्हें अच्छे गुण-धर्म की बाते अप्रीतिकर लगती हैं! ऐसे में हमें उन लोगों को सही समझाइश और अच्छी बातें बोलनी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि वे इस समय अपने जीवन के कष्टप्रद समय को भोग रहे होते हैं। इसके मायने ये नही की उनका जीवन यूँ ही बीतेगा!!!उनका जीवन भी शुभता की ओर जा सकता था यदि वे बिना किसी स्वार्थ के बिना किसी प्रयोजन के अपने जीवन में अच्छाइयों को आत्मसात किए हुए होते। सुसंगत में, सत्संग में और परमात्मा के ध्यान में उनकी प्रार्थना में ! सबके जीवन में सुख की कामना अगर ऐसे लोगों के मन में होती तो उनका जीवन भी निश्चित रूप से शांत-सुखी-सुंदर-अच्छा होता। इतिहास के पन्नों में कई प्रेरणादायी शख़्सियत हैं जिनमें से एक नाम है मैडम गलिस्टिन का! जो अक्सर ट्रेन के सफर के दौरान अपने साथ फूलों के बीज रखा करती थी जब भी ट्रेन किसी कच्ची मिट्टी वाली उपजाऊ भूमि वाले स्थान से गुज़रती तो वो अपने बीज वाले बैग से एक मुट्ठी बीज निकाल कर ट्रेन की खिड़की से बाहर की ओर छिड़क देती। जब वह इस कृत्य को बार-बार करती तो उसके बाजू में बैठे हुए यात्री से रहा नही गया और उसने उससे पूछा कि आप बार-बार ट्रेन से बाहर क्या फेंक रही हैं? तब उस महिला ने जवाब दिया कि- मैं कुछ फूलों के बीज बाहर फेंक रही हूँ । तब सहयात्री उनसे पूछता है कि क्या आप इस मार्ग से बार-बार आना जाना करती हैं? तब गलिस्टिंन कहतीं हैं की- नही इस मार्ग में अब मेरा दुबारा कभी आना नही होगा! लेकिन जब कभी कोई किसी समय इस रास्ते से गुज़रेगा तो हवा-पानी की संगत से ये बीज अंकुरित हो जाएंगे और इनमें से कुछ बीज पूरी तरह से पनप जाएंगे और फिर उन पौधौं में समय आने पर पुष्प भी खिल जाएंगे! इस तरह इस ट्रेन के मार्ग से जो भी व्यक्ति गुज़रेगा- जिनमें कोई स्त्री-पुरुष-बच्चा-या कोई दुखी व्यक्ति भी हो सकते हैं, अगर उनमें से कोई भी इनके फूलों को देख कर मुस्कुरा उठा तो मेरे मन को बड़ा संतोष प्राप्त होगा, की मैंने अपने जीवन में किसी को मुस्कुराहट दी!किसी के आंसू पोंछने में मेरा ये कृत्य काम आया। जीवन को सुंदर बनाने की दिशा में अपना कुछ योगदान दिया। इस प्रकार हमें ऐसी घटनाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम भी लोगों के जीवन में सुंदर वचन व सुंदर बातों के माध्यम सभी के जीवन को सुंदर बनाने में अपना योगदान दे सकें। ऐसे में अगर किसी को हमारी बात या प्रयास पसंद न आए तो हमें सामने वाले को स्वतंत्रता व स्वच्छंदता देनी चाहिए कि वह अपने आपको उस ग्रुप या माध्यम से अलग कर सके। अच्छाई को विस्तार देने के उद्देश्य में अच्छाई को कभी नही रोकना चाहिए उसी प्रकार जैसे चंदन का वृक्ष साँपों के लिपटे होने के बावजूद अपनी शीतलता कभी नही खोता। वह अपनी सुगंध बिखेरना कभी नही छोड़ता। उसी प्रकार अगर हमें अच्छाई को बांटना या प्रसारित करना है तो हमें निर्विरोध हो कर अपना कार्य करते रहना चाहिए, समय आने पर विरोध दर्शाने वाले भी अच्छाई के प्रभाव में आकर आपके प्रति कृतज्ञता दर्शाएंगे! चूंकि अच्छी बात भी बुरे से बुरे व्यक्ति को कभी न कभी अच्छी लगती ही है। *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्स्क्राइब कीजिए।"* Courtesy manisha shree Posted 6 days ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 20 52 Shakti peeth of Goddess Devi बावन शक्ति पीठ -------------------- 1.हिंगलाज हिंगुला या हिंगलाज शक्तिपीठ जो कराची से 125 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है, जहाँ माता का ब्रह्मरंध (सिर) गिरा था। इसकी शक्ति- कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है और भैरव को भीमलोचन कहते हैं। 2.शर्कररे (करवीर) पाकिस्तान में कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट स्थित है शर्कररे शक्तिपीठ, जहाँ माता की आँख गिरी थी। इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी और भैरव को क्रोधिश कहते हैं। 3.सुगंधा- सुनंदा बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंध, जहाँ माता की नासिका गिरी थी। इसकी शक्ति है सुनंदा और भैरव को त्र्यंबक कहते हैं। 4.कश्मीर- महामाया भारत के कश्मीर में पहलगाँव के निकट माता का कंठ गिरा था। इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं। 5.ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका) भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी, उसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं। 6.जालंधर- त्रिपुरमालिनी पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के निकट देवी तलाब जहाँ माता का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी और भैरव को भीषण कहते हैं। 7.वैद्यनाथ- जयदुर्गा झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहाँ माता का हृदय गिरा था। इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं। 8.नेपाल- महामाया नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के निकट स्‍थित है गुजरेश्वरी मंदिर जहाँ माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं। 9.मानस- दाक्षायणी तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता का दायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है दाक्षायनी और भैरव अमर हैं। 10.विरजा- विरजाक्षेत्र भारतीय प्रदेश उड़ीसा के विराज में उत्कल स्थित जगह पर माता की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति है विमला और भैरव को जगन्नाथ कहते हैं। 11.गंडकी- गंडकी नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी और भैरव चक्रपाणि हैं। 12.बहुला- बहुला (चंडिका) भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर कटुआ केतुग्राम के निकट अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बाहुला और भैरव को भीरुक कहते हैं। 13.उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 16 किमी गुस्कुर स्टेशन से उज्जय‍िनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं। 14.त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं। 15.चट्टल - भवानी बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के सीताकुंड स्टेशन के निकट ‍चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति भवानी है और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं। 16.त्रिस्रोता- भ्रामरी भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्‍थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं। 17.कामगिरि- कामाख्‍या भारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र में स्‍थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। इसकी शक्ति है कामाख्या और भैरव को उमानंद कहते हैं। 18.प्रयाग- ललिता भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के इलाहबाद शहर (प्रयाग) के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं। 19.जयंती- जयंती बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गाँव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर जहाँ माता की बायीं जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं। 20.युगाद्या- भूतधात्री पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्‍या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं। 21.कालीपीठ- कालिका कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं। 22.किरीट- विमला (भुवनेशी) पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। इसकी शक्ति है विमला और भैरव को संवर्त्त कहते हैं। 23.वाराणसी- विशालाक्षी उत्तरप्रदेश के काशी में मणि‍कर्णिक घाट पर माता के कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इसकी शक्ति है विशालाक्षी‍ मणिकर्णी और भैरव को काल भैरव कहते हैं। 24.कन्याश्रम- सर्वाणी कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं। 25.कुरुक्षेत्र- सावित्री हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव है स्थाणु। 26.मणिदेविक- गायत्री अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं। 27.श्रीशैल- महालक्ष्मी बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गाँव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं। 28.कांची- देवगर्भा पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं। 29.कालमाधव- देवी काली मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था जहाँ एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं। 30.शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी) मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थित नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायाँ नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं। 31.रामगिरि- शिवानी उत्तरप्रदेश के झाँसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ वक्ष गिरा था। इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं। 32.वृंदावन- उमा उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं। 33.शुचि- नारायणी तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है नारायणी और भैरव को संहार कहते हैं। 34.पंचसागर- वाराही पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं। 35.करतोयातट- अपर्णा बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गाँव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं। 36.श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर की एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं। 37.विभाष- कपालिनी पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं। 38.प्रभास- चंद्रभागा गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के निकट वेरावल स्टेशन से 4 किमी प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं। 39.भैरवपर्वत- अवंती मध्यप्रदेश के ‍उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं। 40.जनस्थान- भ्रामरी महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष। 41.सर्वशैल स्थान आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास सर्वशैल स्थान पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। इसकी शक्ति है रा‍किनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैं' 42.गोदावरीतीर : यहाँ माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं। 43.रत्नावली- कुमारी बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं। 44.मिथिला- उमा (महादेवी) भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं। 45.नलहाटी- कालिका तारापीठ पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं। 46.कर्णाट- जयदुर्गा कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं। 47.वक्रेश्वर- महिषमर्दिनी पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं। 48.यशोर- यशोरेश्वरी बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं। 49.अट्टाहास- फुल्लरा पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं। 50.नंदीपूर- नंदिनी पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। इसकी शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं। 51.लंका- इंद्राक्षी श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी (त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट)। इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं। 52.विराट- अंबिका विराट (अज्ञात स्थान) में पैर की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है अंबिका और भैरव को अमृत कहते हैं। नोट : इसके अलावा पटना-गया के इलाके में कहीं मगध शक्तिपीठ माना जाता है.... 53. मगध- सर्वानन्दकरी मगध में दाएँ पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते हैं। *****💐 Posted 1 week ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 19 Intellectual meetings by Aaryam https://youtu.be/TbGkijH-JFI *"आर्यम-सूत्र"* *"बौद्धिक सत्संग का आध्यात्म में महत्व?(Roll of intellectual meetings in Spirituality?)"* बौद्धिक सत्संग का आध्यात्म में महत्वपूर्ण स्थान है इस बात को हम इस संदर्भ से समझ सकते हैं कि जब हम स्कूल-विद्यालय में विद्या अध्ययन के लिए जाते हैं तो वहां पांच घण्टे थ्योरी के होते हैं जिसमें हम विषय को समझते हैं और एक घंटे प्रेक्टिकल या प्रायोगिक के होते हैं! ताकि हमने जिस विषय विशेष की वृहद जानकारी थ्योरी से प्राप्त की हैं उन्हें प्रयोग के माध्यम से और पुख़्ता कर लें। वैसे ही आध्यात्म और धर्म में भी इसका गूढ़ अर्थ व महत्व है, जिसके अंतर्गत बौद्धिक परिचर्चा, विचार-विनिमय, विचार-विमर्श करना! अपने अंतस में उठने वाले प्रश्नों के उत्तर ढूंढना! अपनी जिज्ञासाओं को विस्तार देना और उन्हें संतुष्ट करना! बौद्धिक मुमुक्षु के समक्ष अपने प्रश्नों का हल प्राप्त कर उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करना बड़ी गहरी-लम्बी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जो आध्यात्म-मार्ग की आवश्यक गति है... *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्स्क्राइब कीजिए।"* Courtesy Manisha Shree Posted 1 week ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 16 Decision power by aaryam https://youtu.be/8Zmz-ynqbfE *"आर्यम-सूत्र"* *"अपने निर्णय स्वयं करें'* "तप-तप के श्रम की अग्नि में जिनका जीवन हवन हो गया। ऐसे पौरुष के बलिदानी महामृत्यु से भी लड़ते हैं, रोक सकीं हैं कब बाधाएं मंज़िल के साहसिक पथिक को! मन का केवल वेग चाहिए पांव स्वयं ही चल पड़ते हैं।" अगर हमारा मन अपने उद्देश्यों के प्रति आशान्वित है हमारे उद्देश्य हमारे समक्ष स्पष्ट है, हमारे लक्ष्य पहले से निर्धारित हैं और जीवन-संबंधी कुछ महत्वपूर्ण फैसले अगर हम ले चुके हैं तो इस सृष्टि की सभी गति और इस ब्रह्मांड का प्रत्येक तत्व हमें उस लयबद्धता के साथ जोड़ने में सहयोग करता है! हमारे उस उद्देश्य-लक्ष्य तक पहुंचने में और उसके समायोजन में हमारा मददगार बनता है। जीवन में अनायास ही ऐसे पुष्प पल्लवित होने लगते हैं जिनकी सुगंध से-सुरभि से चारों दिशाएं महक उठती हैं तब जीवन में आत्मतोष और पारितोष की ज्योति अवतरित होती है, परमात्मा की अनुकंपा का प्रसाद आपके जीवन को मधुर व शांत बनाता जाता है फिर हमें अपने मुख से किसी को कुछ बताने की आवश्यकता ही नही रह जाती! क्रमशः सभी बातें धीरे-धीरे सभी को समझ आने लगतीं हैं। हमसे जुड़े तामाम लोगों की समझ-बूझ में उनकी प्रवृत्ति में हमसे जुड़ी हर बात स्वतः ही समाहित होने लगती हैं जिन्हें वास्तव में इनकी आवश्यकता है। जीवन को सहज-सरल-स्पष्ट बनाने पर हमें ध्यान देना चाहिए। हमें अपने जीवन के ध्येय को और लक्ष्य को स्पष्ट व निर्धारित रखना चाहिए और कुछ निर्णय अवश्य करें! सच्चा इंसान वही है जो जीवन में स्वयं निर्णय लेता है और उन निर्णयों पे अडिग भी रहता है, कभी-कभी हो सकता है कि वे निर्णय ग़लत हों! फौरी तौर पर वो फैसले आपको और आपसे संबंधित लोगों को कई दफ़ा ग़लत भी लग सकते हैं! लेकिन अगर आपके निर्णय में सत्य का अंश है तो कुछ समय उपरांत एक कालखण्ड के व्यतीत हो जाने के बाद फिर हम और हमसे संबंधित सभी लोग उन फैसलों पर! उस सोचे गए निर्णय पर स्वयं भी हर्षित होते हैं और हमसे जुड़े लोग भी उस निर्णय से गर्वान्वित महसूस करते हैं। *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्स्क्राइब कीजिये।"* Courtesy Manisha shree Posted 2 weeks ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 16 Shri Krishna janm ashtami samagam at aaryam aashram Posted 2 weeks ago by P.K. ARYA 0 Add a comment AUG 16 Fast food ? By Aaryam https://youtu.be/G3s49np9JQQ *"आर्यम-सूत्र"* *'फास्टफूड की असलियत'* (प्रश्न) गिरिशा- मॉरीशस हमारे ज्यादातर अभिभावक और माता-पिता हमें पिज्जा-बर्गर-नूडल्स जैसे फास्टफूड खाने से मना करते हैं! हमें चपाती, हरी-सब्जियां, पनीर, तौफू, सोया और ढूध जैसी सेहतमंद चीजें खाने के लिए कहते हैं। जो हमारे शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखेगा। हमारे माता-पिता हमारे सबसे बड़े हितैषी होते हैं ! जब हम Growing age में होते हैं यानि हमारा शरीर बन रहा होता है-बढ़ रहा होता है, हम अपने शरीर की विकास की ओर ले जा रहे होते हैं ऐसे में एक नौनिहाल पौधा जो बिल्कुल छोटा व ताज़ा पौधा है अगर उस पौधे में ऐसे कीटाणुओं को डाल दिया जाए जो उसकी जड़ों को खराब करें तो ऐसा कोई भी माता-पिता नही चाहते कि उन्होंने जो पौधा इस दुनियां में लगाया है वह कमजोर रह जाए!ख़राब हो जाए!और उसमें बैक्टीरिया-बीमारियां लग जाए! समय के झंझावातों को किसी सुनामी को वो सह ना पाए तथा इन सब के बीच वह कमज़ोर हो कर ख़त्म हो जाए। इस तरह हर माँ-बाप अपने बच्चों को अपने अनुभव से, अपने प्रेम से सींच कर उन्हें शुद्ध-वातावरण व शुद्ध-सेहतमंद आहार देना चाहते हैं। कई खाद्य-पदार्थ स्वादिष्ट तो होते हैं लेकिन सेहतमंद नही होते वह हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं। ज्यादातर फास्टफूड जैसे- नूडल्स, पिज्जा, बर्गर बासी हो कर बनता है। बासी भोजन कूड़ेदान यानि Dustbeen में डालना चाहिए ना कि हमारे पेट में! क्योंकि बासी भोजन हमारे स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक होता है, ऐसे भोजन के स्वादिष्ट होने के पीछे उनके मसालों का मिश्रण काम आता है जो उस बासी खाद्य-पदार्थ को स्वादिष्ट बना देता है और फिर उसके prsentation को ऐसा रखा जाता है जो बच्चों को भाता-लुभाता है। कभी-कभी तो यह भोजन स्वादिष्ट होता भी है लेकिन स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल भी होता है। एक वृक्ष जो पूरी तरह Devlop हो चुका है, बढ़-बन चुका है, अपनी पूरी उम्र जी चुका है वह तेज़ आँधी-तूफान-बारिश में भी वह खड़ा रहेगा! तेज़ सूनामी को भी झेल कर वह बच सकता है लेकिन एक छोटा पौधा जो अभी-अभी जी रौंपा गया है अभी उसकी उम्र बहुत कम है तो ऐसे में तो वह हवा के एक झौंके में ही उखड़-टूट सकता है इसलिए ही बच्चों के माता-पिता नही चाहते कि उनके बच्चों की जड़ें कमज़ोर हों। मेडिकल साइंस ने कई बार इस बात को प्रूफ किया है कि बहुत से पेय-पदार्थ (Cold-Drink) आदि में ऐसे केमिकल और पेस्ट्रीसाइट्स डाले जाते हैं जो शरीर के लिए बहुत नुकसानदायी होते हैं कई विकसित देशों में तो इस तरह के फ़ूड-आइटम्स पर रोक लगा दी गई है, उनके स्कूलों की कैंटीन्स में ऐसे पेय-पदार्थों को रखने की मनाही कर दी गईं हैं। ऐसे खाद्य-पदार्थों का स्वास्थ्य पे पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के चलते इन्हें कई देशों ने बैन कर दिया है। एक शोध के अनुसार अमेरिका में सबसे बड़ी बीमारी मोटापा-ओबेसिटी है! डिप्रेशन-पागलपन बड़ी समस्या है वहां की! पूरी दुनियां में पागलों की जितनी संख्या होगी उतनी अकेले न्यूयॉर्क के पागलों की संख्या है। ये सभी समस्याएं और रोग ऐसे कृत्रिम भोजन-फास्टफूड की देन हैं कि इस भोजन में शरीर को खोखला बनाने वाले समस्त तत्व विद्यमान हैं इनसे मोटापा-बीमारी हमारे शरीर को सीधा निशाना बनातीं हैं ! इनके सेवन से सबसे पहले मेमोरी डेमेज होती है, विचार कीजिए अगर किसी बच्चे की मेमोरी डेमेज हो गई तो वह पढ़ाई कैसे करेगा! एग्जामिनेशन कैसे क्वालीफाई करेगा! यही कारण है कि अमेरिका में बच्चों को question paper के साथ answer book भी दी जाती है कि वो उसमें से ढूंढ कर जवाब दे सकें!उसके बावजूद भी वे उस प्रश्न का उत्तर अपनी उत्तर-पुस्तिका से ढूंढ कर नही निकाल पाते चूंकि उन्हें याद ही नही रहता! उनकी मैमोरी ही नही होती कि किस सवाल के प्रश्न का जवाब बुक के किन हिस्सों में है? अमेरिकन सिस्टम में सवाल आपको दे दिया गया उसे आप समझ भी गए और उसका हल आपको दी हुई उत्तर पुस्तिका से निकालकर देना है लेकिन बच्चे answer book से answer भी वहां नही निकाल पातें हैं और फेल हो जाते हैं चूंकि वहां फास्टफूड खाने की वज़ह से ज्यादातर बच्चों की मेमोरी लॉस्ट हो जाती है। मैमोरी लॉस्ट होने के मुख्य कारक- टेलीविजन और गैजेट्स भी हैं। बच्चों को इनसे भी बचाना आवश्यक है। कभी-कभी test करने के लिए खाइए सभी चीजें लेकिन ज़्यादा नहीं-आदत मत बनाइये। *"अपने जीवन को रूपांतरित करने के लिए और पूरे संदेश को देखने-सुनने के लिए हमारा यू-ट्यूब चैनेल सब्स्क्राइब कीजिए।"* Posted 3 weeks ago by P.K. ARYA 0 Add a comment ...Loading 

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