Tuesday 29 August 2017

राजा इक्ष्वाकु के पुत्र निमि से निमिवंश का नामकरण .... गौत्र - शांडिल्य। ... परमार वंश में ही प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य एवं भोजहुए हैं।

Contact Us | About Us | Home संक्ष्प्ति परिचय उपनियम संस्थापक की कलम से स्व.राणा प्रताप सिंह बाबू जी आधार स्तर स्व. कृष्णपाल सिंह दीप जो नक्षत्र बन गये जिनके हम सदैव आभारी रहेगें क्षत्रिय वंश का उदभव एंव प्रसार क्षत्रिय वीर सिसोदिया वंश एंव मेवाड राज वर्तमान के गौरवशाली क्षत्रिय चित्र दर्शन वर्तमान कार्यकारिणी सदस्यगण वार्षिक कार्यक्रम भविष्य की योजनाएं क्षत्रिय वंश का उदभव एवं प्रसार भारतीय सामाजिक व्यवस्था एक अनुपम सामाजिक व्यवस्था है जितना व्यवस्थित विभाजन और वर्गीकरण भारतीय सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत हम पाते हैं वैसा विश्व के अन्य किसी समाज में नहीं। विश्व के अधिकांश राष्ट्र जब अविकसित अव्यवस्था में थे, तब भारतीय समाज और संस्कृति विकास की चरम अवस्था में थी। अनादि काल से मनुष्य विभिन्न समुदाय में विभाजित था। धीरे - धीरे मनुष्य को कार्यों के आधार मनु ने अपने मनुस्मृति में तार्किक रुप से वर्गीकृत कर दिया और यह वर्गीकरण वर्णव्यवस्था के नाम संबोधन की गई। भारतीय समाज और संस्कृति का आधार स्तंभ रही है वर्णव्यवस्था। यह वर्णव्यवस्था वैदिक युग में समाज के सुचारु संचालन के लिए, कार्य के आधार पर तय की गई। शिक्षा और धर्म के ध्वज वाहक ब्राम्हण कहलाये, सुरक्षा, शासन, और युद्ध का कार्य वाला क्षत्रिय कहलाया, भरण - पोषण की जिम्मेदारी निभाने वाला वैश्य तथा हर तरह की सेवा में संलग्न समुदाय शुद्र कहलाया। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त - 10 /09/ 12 - में वर्णन है कि - ब्रम्हणोस्य मुखमासीत वाहू राजन्यकय्तः। अरुःयत तद्वैश्यः पदभ्यांशूद्रो आजयता॥ अर्थात ब्राम्हण का जन्म ईश्वर के मुख से, क्षत्रिय का हाथ से, वैश्य का जांघ से और शुद्र का पांव से हुआ बताया गया। आर्यों के द्वारा सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास में अत्यन्त नियोजित रुप से एक उपयोगी संस्था के रुप में वर्ण व्यवस्था का विकास किया गया। वैदिक साहित्य में क्षत्रिय का आरम्भिक प्रयोग राज्याधिकारी या दैवी अधिकारी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। "क्षतात त्रायते इति क्षत्य अर्थात क्षत आघात से त्राण" देने वाला। मनुस्मृति में कहा कि क्षत्रिय शत्रु के साथ उचित व्यवहार और कुशलता पूर्वक राज्य विस्तार तथा अपने क्षत्रित्व धर्म में विशेष आस्था रखना क्षत्रियों का परम कर्तव्य है। क्षत्रिय अर्थात वीर राजपूत सनातन वर्ण व्यवस्था का वह स्तम्भ है जो भगवान की भुजाओं से जन्म पाया और ब्राम्हण के बाद मानव समाज का दूसरा अंग कहा गया। यो क्षयेन त्रायते स?ःक्षत्रिय की उपाधि से अतंकृत क्षत्रिय के लिये गीता में कहा गया कि - शौर्य तेजोधृति र्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनमं। दानमीश्वर भावश्च क्षत्रं कर्म स्वभावजम॥ अर्थात शुरविरता, तेज, धैर्य, युद्ध में चतुरता, युद्ध से न भागना, दान, सेवा, शास्त्रानुसार राज्यशासन, पुत्र के समान पूजा का पालन - ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्तव्य - डर्म कहे गये हैं। क्षत्रिय और राजपूत शब्द को लेकर कुछ विवाद भी की स्थिति है। कुछ लोग दोनो को अलग - अलग मानते हैं। लेकिन अधिकांश इतिहासकार यह मानते हैं कि राजपूतों का संबंध क्षत्रियों से है। प्रत्येक राजा प्रायः क्षत्रिय हुआ करते थे। अतः राजपूत्र का अर्थ क्षत्रिय से माना गया। 12 वीं सदी के बाद राजपूत्र का मुख्सुख राजपूत हो गया जो कालान्तर में क्षत्रिय का जाति सुचक शब्द बन गया। 600 ई० से 1200 ई० तक काल को राजपूत काल कहा गया है। क्योकिं पूरे देश् में इस काल में इनका प्रभुत्व था। राजपूत निडर, निर्भय, साहसी, बहादुर, देश भक्त, सत्यवादी, वीर धुन के पक्के. कृतज्ञ, युद्ध कुशल, मर्यादापूर्ण, धार्मिक, न्यायप्रिय, उच्चविचार रखने वाला तो है हि सदैव ही भारतमाता की रक्षा के लिये अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर रहते थे। राजपूतों का एक बडा गुण यह भी था कि वे अपनी मानमर्यादा, आन-बान-सम्मान पर हर क्षण अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिये तत्पर रहते थे। कर्नलटाड ने भी राजपूतों के उपर्युक्त गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। 600 वर्षों तक राजपूतों ने न केवल भारत पर शासन किया, बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ़ देश की रक्षा करें। भारतीय सभ्यता, संस्कृति तथा धर्म के संरक्षण एवं पोषण में इस जाति का प्रभाव श्लाघनीय एवं अतुलनीय है। राजनीतिक अवस्था के बाद भी राजपूत काल साहित्य, कला के उन्नति का काल था। स्थापत्य तथा शिल्पकला की इस समय बडी उन्नति हुई। मूर्तिकला और चित्रकला विकसित अवस्था में थी। साथ ही आर्थिक दशा भी इस समय अच्छी थी। अपूर्व पौरुषता और साहस की प्रतीक यह जाति बलिदान, सहिष्णुता और सिद्धांतों के त्याग के लिये इतिहास प्रसिद्ध रही है। भारतीय संस्कृति की रक्षा करने में जन समुदायों में श्रेष्ठ क्षत्रिय राजपूत कुलों का योगदान सर्वोपरि रहा है। क्षत्रिय वंशजों के खून से सिंचित यह पुरातन संस्कृति अन्यों की अपेक्षा आज भी अजर - अमर है। क्षत्रिय वंश के उद्भव का प्रारम्भिक संकेत हमें पुराणों से मिलने लगता है कि सूर्यवंश और चंद्रवंश ही क्षत्रिय वंश परम्परा के मूल स्त्रोत है। पुराणों से संकेत मिलता है कि मनु के पूत्रों से ही सुर्यवंश की नींव पडी थी और मनु की कन्या ईला के पति बुध थे जो चंद्रदेव के पुत्र थे, इन्ही से चंद्रवंश की नींव पडी। मूल क्षत्रिय वंशों की संख्या के बारे में विद्वानों में एकमत नहीं है। कुछेक - सूर्यवंश, चंद्रवंश और अग्निवंश की चर्चा करते हैं तो सूर्यवंश, चंद्रवंश और अग्निवंश, ऋषिवंश तथा दैत्यवंश। हालाकिं अधिकांश इतिहासकार यह मानते है कि सूर्य तथा चंद्रवंश से ही सभी वंश शाखाएं है। अग्निवंश के संदर्भ में कहा जाता है कि अग्निवंशीय राजपूतों की उत्पत्ति ऋषियों द्वारा आबू पर्वत पर किये यज्ञ के अग्निकुंड से हुई जिनकी चार शाखाएं परमार, प्रतिहार, चौहान तथा सोलंकी। "चालुक्य" सूर्यवंश नामकरण के पूर्व मरीचि हुए जिनसे कश्यप और कश्यप से सूर्य तथा सूर्य से वैवस्तु मनु पैदा हुए जिन्होने अयोध्या नगरी बसाई। मनु के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्ताकु अयोध्या की गद्दी पर बैठे तथा अपने दादा के नाम पर सूर्यवंश की स्थापना की। इसी कुल में मांधता, हरिचंद्र, सगर, दिलीप, भफ़ीरथ, दशरथ और भगवान राम जैसे प्रतापी राजा हुए है। इस वंश का गौत्र भारद्वाज है। सूर्यवंश की शाखाएं एवं उपशाखाएं हैं - गहलौत क्षत्रिय - इसकी शाखाएं हैं : - गोत्र - बैजपाय गौतम, कश्यप कुलदेव - वाणमता वेद - यजूर्वेद, नदी सरयू अहाडिया मांगलिमा पीपरा सिसोदिया गहलोत वंश के आदि पुरुष गुह्यदत्त हुए है जिनके नाम पर यह वंश चला। एकमत के अनुसार गुजरात के राजा शिलादित्य के पुत्र केशवादित्य से यह वंश चला। गह्वर गुफ़ा में केशवादित्य के जन्म होने के कारण इस वंश का नाम गहलौत पड गया। एक दूररे मत के अनुरार इस वंश के आदि पुरुष गुहिल थे। कछवाहा क्षत्रिय - गौत्र - गौतम, कुलदेवी - दुर्गा, वेद - सामवेद नदी सरयू। इनकी तेरह मुख्य शाखाओं एवं उपशाखाओं का उल्लेख मिलता है। राठौर - गौत्र "राजपूताना" कश्यप पूर्व में , अत्रि दक्षिण भारत में तथा बिहार में शंडिल्य। वेद - सामवेद, देवी- दुर्गा। इस वंश की 24 शाखाओं का उल्लेख मिलता है। निकुम्म क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वशिष्ठ तथा भारद्वाज। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि एवं सांकृति। कुल देवि - कालिका। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू। श्री नेत क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। देवी - चंद्रिका। वेद - सामवेद। कुछ लोग इन्हे निकुम्म की शाखा मानते हैं। नागवंशी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गोत्र - कश्यप तथा शुनक। बैस क्षत्रिय - बैस क्षत्रिय सूर्यवंश के अन्तर्गत माने जाते हैं। गौत्र - गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। देवी - कालिका। वेद - यजुर्वेद। वैसे क्षत्रियों का प्रधान क्षेत्र बैसवाडा उत्तर प्रदेश है। इनकी तीन मुख्य शाखायें हैं - कोट भीतर, कोट बाहर, एवं त्रिलोक चंदी। विसेन क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - स्थानुसार - परासर, भारद्वाज, शंडिल्य, अत्रि तथा वत्स। वेद - सामवेद। कुल देवी- दुर्गा। राजा विस्स सेन के नाम पर इस वंश का नाम विसेन पडा। गौतम क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - गौतम। प्रवर - पांच - गौतम, आंगीरस, आष्यासार, वृहस्पति, पैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। नदी गंगा। देवी - दुर्गा। गौतम वंश की प्रधान शाखायें कंडवार, गोनिह एवं अंटैया हैं। बडगूजर क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वरिष्ठ। प्रवर - तीन-वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद- यजुर्वेद। देवी - कालीका। ये रामचंद्र जी के पुत्र लव के वंशज है। गौड क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। कुलदेवी - महाकाली। गौड क्षत्रिय अपने को राजा भरत दशरथ पुत्र का वंशज मानते हैं। गौड क्षत्रिय की प्रमुख शाखाय्रं - अतहरि, सिलहाना, तूर, दुसेना तथा बोडाना। नरौनी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप, वशिष्ठ। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद - यजुर्वेद। इसे शीनेत की एक शाखा भी माना गया हैं। राजपूताना के नरवर में बसने के कारण नरौनी क्षत्रिय नामकरण हुआ है। रैकवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। रैकवार नामक राजा के जम्बू के निकट रैकागढ बसाया और उन्ही के नाम पर रैकवार क्षत्रिय नामकरण हुआ। सिकरवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज, शंडिल्य, सांकृति। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद। कुलदेवी - दुर्गा। दुर्गवंश क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कौत्स। वेद - यजुर्वेद। कुलदेवी - चण्डी। दीक्षित क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर तीन-कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - दुर्गा। दुर्गवंश की शाखा है। दुर्ग वंशी राजा कन्याण शाह को प्रमर राजा विक्रमादित्य ने उज्जैन में दीक्षित किया और यहीं से दुर्ग वंश की दीक्षित शाखा चल रही है। कानन क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भार्गव। प्रवर - तीन- भार्गव, निलोहित, रोहित। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा। दक्षिण भारत के कोकन प्रदेश से उत्तर की ओर आव्रजित होने पर पूर्व स्थान के नाम पर काकन क्षेत्रिय नामकरण। गोहिल क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर तीन-कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी - बाणमाता। निमी वंशीय क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप, वशिष्ठ। वशिष्ठ गौत्र का वेद - यजुर्वेद एवं कश्यप गौत्र का वेद - सामवेद। राजा इक्ष्वाकु के पुत्र निमि से निमिवंश का नामकरण हुआ है। निमि के पुत्र मिथि ने मिथिला नगरी बसाई है। लिच्छवी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - गौच्छल। वेद - यजुर्वेद। देवी चण्डी। नदी - नर्मदा। गर्गवंशी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र गर्ग। प्रवर - तीन - गर्ग, कौस्तुभ, माण्डव्य। वेद - सामवेद। देवी - कालिका। दघुवंशी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप, वशिष्ठ। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्साह, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। राजा रघु के वंशज कहलाते हैं। जौनपुर जनपद का बयालसी परगना और डोमी परगना रघुवंशी क्षत्रियों का क्षेत्र है। वाराणसी के कटेहर क्षेत्र में भी रघुवंशी क्षत्रियों का निवास है। पहाडी सूर्यवंशी क्षत्रिय - गौत्र - शौकन। प्रवर - तीन - शोनक, शुनक, गृत्सनद। वेद - यजुर्वेद। देवी - काली। इनके पूर्वज अयोध्या से नेपाल गये। सिंधेल क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र- कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी - पार्वती। उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ जिलों में इनके कई गांव हैं। लोहथम्भ क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। ्देवी - चण्डी। गाजीपुर, बलिया, गया, आरा जिलों में इनकी आबादी अधिक है। धाकर क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - कालिका। धाकर क्षत्रिय हरदोई, बुलंदशहर, आगरा, मैनपुरी, इटावा, एटा तथा बिहार के शाहाबाद तथा पटना जिलों में बहुताय से हैं। उदमियता क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वत्स। प्रवर - पांच- और्ण्य, च्यवन, भार्गव, जन्मदग्नि, अप्रुवान। वेद-सामवेद। देव_ - कालिका। उद्यालक ऋषि के छत्र - छाया में पलने के कारण ये उद्यमिता क्षत्रिय कहलायें। मूल स्थान राजस्थान है। वहां से ये लोग गोरखपुर, आलमगढ तथा बिहार के शाहाबाद, गया तथा मागलपुर जिलों में आकर बस गये। काकतीय क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - चण्डी। दक्षिण के वारंगल क्षेत्र तथा बस्तर में इनका राज्य था। उत्तर प्रदेश में भी ये क्षत्रिय मिलते थे। सूरवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - गर्ग। प्रवर - तीन - गर्ग, कौस्तुम्भ, माण्डव। वेद - यजुर्वेद। नेवतनी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - शंडिल्य। प्रवर - तीन - शंडिल्य, असित, देवल। देवी - अम्बिका। मौर्य क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - गौतम। प्रवर - तीन - गौतम, वशिष्ठ, वृहस्पति। वेद - यजुर्वेद। शुंग वंशी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वशिष्ठ। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद। देवी - दुर्गा। कटहरिया क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वशिष्ठ। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू। देनी - कालिका। कटहर में बसने के कारण ये कटहरिया कहलाये। इनका निवास मुरादाबाद, ब्दांयू, शाहजंहापुर, अलीगढ, एटा तथा बुलंदशहर में अधिक है। अमेठिया क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद। यह गौड क्षत्रियों की एक उपशाखा है। इनका निवास अमेठी परगना ( लखनऊ ) होने के कारण ये अपने को अमेठिया क्षत्रिय कहते हैं। कछलियां क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - शंडिल्य। प्रवर - तीन- शंडिल्य, असित, देवल। वेद - सामवेद। कुशभवनियां क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र स्थानभेद से - शांडिल्य, असित, पराशर तथा भारद्वाज। वेद - सामवेद। देवी- बंदीमाता। ये क्षत्रिय अपने को कुश का वंशज मानते हैं। सुल्तानपुर में गोमती नदी के किनारे कुशभवनपुर है। निवा के आधार पर इनका नाम कुशभवनियां क्षत्रिय पडा। मडियार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वत्स। प्रवर - पांच-औवर्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्युवान। वेद - सामवेद। देवी - सतीपरमेश्वरी। नदी - सरयू। मूलस्थान - उदयपुर। कैलवाड क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - बन्दी। नदी - गंगा। कैलवाड क्षत्रियों राठौड वंश की एक शाखा जगावत की उपशाखा से संबंधित है। जगावत वंश के राजा का कैलवाड ( मेवाड के पास ) में राज्य था। उसी के नाम पर कैलवाड क्षत्रिय पडा। अन्टैया क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - गौतम। प्रवर - पांच- गौतम, अंगीरस, अप्यार, वाचस्पत्य, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। नदी - सरयू। भतिहाल क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। बाला क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। बंधलगोती क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। महथान क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वत्स। प्रवर - पांच - और्व्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। देवी - दुर्गा। वेद - सामवेद। चमिपाल क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -सामवेद। मूलस्थान उदयपुर है। मलियान तथा सेवतिया इनकी दो शाखायें हैं। सिहोगिया क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। देवी - दुर्गा। बिहार के गया तथा पलामू जिलों में इनका निवास है। बमटेला क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - शांडिल्य। प्रवर - तीन - शंडिल्य, असित, देवल। वेद - सामवेद। यह विसेन क्षत्रियों की शाखा है। हरदोई, फ़रुखाबाद जिलों मं इनकी जनसंख्या अधिक है। बम्बवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। इनका भी उल्लेख विसेन वंश की शाखा के रुप में हुआ है। चोलवंशी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। चोल प्रदेश ( दक्षिण भारत) में निवास करने के कारण चोल क्षत्रिय नामकरण हुआ। पुंडीर क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - पुलस्त्य। वेद - यजुर्वेद। देवी - दधिमती माता। उत्तर प्रदेश के इटावा अलीगढ, सहारनपुर जिलों में इन क्षत्रियों का निवास है। कुलूवास क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - पुलस्त्य। वेद - यजुर्वेद। निवास सलेडा राजस्थान। किनवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -सामवेद। बलिया छपरा तथा भागलपुर के कुछ गांवों में इनका निवास है। कंडवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - गौतम। प्रवर - पांच - गौतम, अंगीरस, वत्सार, वृहस्पति, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी- चण्डी। गौतम क्षत्रियों की एक उपशाखा कंडावत गढ में बसने से कण्डवार क्षत्रिय हो गई। छपरा जिले में इनका निवास है। रावत क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। देवी -चण्डी। गौतम वंश की उपशाखा है। इन क्षत्रियों का निवास उन्नाव तथा फ़तेहपुर जिलों में हैं। नन्दबक क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -यजुर्वेद। देवी - दुर्गा। यह कछवाहा वंश की उपशाखा है। ये जैनपुर, आजमगढ, बलिया तथा मिर्जापुर जिलों में है। निशान क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वत्स। प्रवर - पांच - और्व्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। देवी - भगवती दुर्गा। वेद - सामवेद। निशान निमिवंश की उपशाखा है। बिहार के पटना, गया तथा शाहाबाद जिलों में इनका निवास है। जायस क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। यह राठौर वंश की उपशाखा है। इनका गौत्र आदी भी राठौर जैसा है। रायबरेली के जासस नामक स्थान में बसने के कारण यह नाम पडा। चंदौसिया क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। देवी - दुर्गा। यह वैस क्षत्रियों की एक उपशाखा है जो वैसवाड से आव्रजित होकर सुल्तानपुर के चंदौर ग्राम में बस गई। मौनस क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - मानव। यह कछवाहा क्षत्रियों की उपशाखा है जो आमोर से मिर्जापुर तथा बनारस आकर बस गई। दोनवार क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद -यजुर्वेद। यह विसेन क्षत्रियों की उपशाखा है। निमुडी क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। यह निमि वंश की उपशाखा है। गौत्र आदि भी एक ही है। झोतियाना क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। यह कछवाहा वंश की एक उपशाखा है। इनका निवास उत्तर प्रदेश में मेरठ और मुज्ज्फ़रनगर जिलों में है। ठकुराई क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -यजुर्वेद। इस वंश का संबंध नेपाल से है। इनको शाह की पदवी भी मिली है। वर्तमान में इनका निवास बिहार के मोतीहारी, शाहाबाद तथा भागलपुर जिलों में है। मराठा या भोंसला क्षत्रिय - सूर्यवंश की शाखा है। गौत्र - वैजपायण, कौशिक तथा शैनक। वेद - यजुर्वेद। देवी जगदम्बा। अधिकांश विद्वानों की राय से भोंसला वंश सिसोदिया वंश की एक उपशाखा अहि। सूर्यवंश की वह शाखायें एवं उपशाखायें जो आबू पर्वत पर यज्ञ की अग्नि के समक्ष देश और धर्म की रक्षा का व्रत लेकर अग्नि वंशी कहलाई। परमार क्षत्रिय - गौत्र - वशिष्ठ, गार्ग्य, शौनक, कौडिन्य। प्रवर - तीन - वशिष्ठ, अत्रि, सांकृति। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा तथा काली देवी। परमार वंश में ही प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य एवं भोज हुए हैं। चौहान क्षत्रिय - गौत्र - वत्स। प्रवर - पांच- और्व्य, च्यवन, भार्गव, जमदग्नि, अप्रुवान। वेद - सामवेद। देवी - आशापुरी। चौहान वंश की 26 उपशाखाओं का उल्लेख मिलता है। प्रतिहार या परिहार - गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - यजुर्वेद। देवी चामुण्डा। परिहार वंश की भी अनेक उपशाखायें हैं। चन्द्रवंशी क्षत्रीय - अत्रि जी के पुत्र चन्द्र देव थे। चन्द्र देव के पुत्र वुध थे। महाराजा वुध का विवाह महाराजा तनु की पुत्री ईला से हुआ था। इनसे महाराजा पुरुरुवा का जन्म हुआ। पुरुरुवा ने ही अपने दादा चन्द्र देव के नाम पर चन्द्रवंशी की नींव डाली जिसकी आज अनेक शाखायें और उपशाखायें हो गई हैं। चन्द्र वंश को ही सोमवंशी भी कहते हैं। चन्द्रवंश की शाखायें तथा उपशाखायें सोमवंशी क्षत्रिय - गौत्र - अत्रि। प्रवर - तीन - अत्रि, आत्रेय, शाताआतप। वेद - यजुर्वेद। देवी - तहालक्ष्मी। नदी - त्रिवेणी। यादव क्षत्रिय - चन्द्रवंश की शाखा। गौत्र - कौन्डिय। प्रवर - तीन - कौन्डिन्य, कौत्स, स्तिमिक। देवी - जोगेश्वरी। वेद - यजुर्वेद। नदी - यमुना। महाराजा ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के नाम से यदु वंश या यादव वंश का नामकरण हुआ। इसी काल में भगवान कृष्ण और बलराम का जन्म हुआ था। भाटी या जरदम क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। ये लोग अपने को कृष्ण का वंशज मानते हैं। इस शाखा में कभी भाटी नाम के प्रतापी राजा हुए थे। इन्ही के नाम पर भाटी वंश चल पडा। जैसलमेर का दुर्ग इसी वंश के राजाओं ने बनवाया है। जाडेजा क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। इस शाखा के लोग अपने को कृष्ण के पुत्र साम्ब का वंशज मानते हैं तोमर क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। इन्हे तुर या तंवर भी कहते हैं। गौत्र - गार्ग्य। प्रवर - तीन - गार्ग्य, कौस्तुभ, माण्डव्य। वेद यजुर्वेद। देवी - योगेश्वरी, चिकलाई माता। तोमर वंश के लोग अपने को पाण्डु का वंशज मानते हैं। जन्मेजय ने नागवंश को समूल नष्ट करने का व्रत लिया था। उनके इस आचरण से नागवंश के महर्षि आस्तिक बहुत अप्रसन्न हुए। जन्मेजय ने महर्षि आस्तिक से क्षमा याचना की और प्रायश्चित के लिए यज्ञ सम्पन्न हुआ। जिसके अधिष्ठाता महर्षि तुर थे। इन्ही महर्षि तुर के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए जन्मेजय के वंशज अपने को तुर क्षत्रिय कहने लगे डा. देव सिंह निर्वाण ने एक आलेख में तोमर क्षत्रियों की 25 शाखाओं का उल्लेख किया है। हैहय क्षत्रिय - गौत्र - कृष्णात्रेय, कश्यप, शांडिल्यय, नारायण। प्रवर - तीन - कृष्णात्रेय, आत्रेय, व्यास। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा। हैयय क्षत्रिय अपने को प्रतापी राजा कार्तबीर्य का वंशज मानते हैं। कुछ लोग उन्हे राजा हय का भी वंशज मानते हैं। करचुलिया क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - विन्ध्यवासिनी। संभवतः यह हैयय वंश की उपशाखा है। कौशिक क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कौशिक। प्रवर - तीन - कौशिक, जमदग्नि, अत्रि। देवी - योगेश्वरी। वेद - यजुर्वेद। सेंगर क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - गौतम। प्रवर - तीन - गौतम, वशिष्ठ, वृहष्पति। वेद - यजुर्वेद। देवी - विन्ध्यवासिनी। चंदेल क्षत्रिय - गौत्र - चंद्रायण। प्रवर - तीन - चंद्रात्रेय, आत्रेय, संतातप। वेद-यजुर्वेद। देवी- मनिया देवी। राजा चन्द्र वर्मा की संतानों ने अपने को चंदेल क्षत्रिय उदघोषित किया। इस वंश का प्रधान स्थान ग्वालियर के पास का चंदेरी था जो आज भी अपनी साडीयों के लिये प्रसिद्ध है। खजुराहो का मंदिर चंदेल राजाओं का ही बनवाया गया है। गहरवार क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - अन्नपूर्णा। बेरुवार क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - चण्डिका। सिरमौर क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। जनवार क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कौशिक। प्रवर - तीन - कौशिक, जमदग्नि, अत्रि। देवी - चण्डिका। वेद - यजुर्वेद। भाला क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - महाकाली। पलिवार क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - वेयाध्र। प्रवर - दो - वैयाध्र, सांकृति। वेद - सामवेद। फ़ाइजाबाद जिले में इनके नाम से एक पलिवारी क्षेत्र ही है। गंगा वंशी क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - अत्रि। प्रवर - तीन - अत्रि, आत्रेय, शातातप। वेद - यजुर्वेद। देवी - योगेश्वरी। पुरुवंशी क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - वृहस्पति। प्रवर - तीन - वृहस्पति, अंगीसर, भारद्वाज। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा। खाति क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - अत्रि। प्रवर - तीन - अत्रि, आत्रेय, शातातप। वेद - यजुर्वेद। देवी - दुर्गा। बुंदेला क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। यह गहरवार वंश की एक उपशाखा है और गोत्रादि उसी के अनुसार है। कान्हवंशी क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। रकसेल क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कौन्डिय। प्रवर - तीन - कौन्डिन्य, कौत्स, स्तिमिक। वेद - यजुर्वेद। कटोच क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। तिलोता क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। देवी - दुर्गा। बनाफ़र क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कौन्डिन्य, कौत्स, स्तिमिक। वेद - यजुर्वेद। देवी - शारदा। भारद्वाज क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कौन्डिअन्य। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - सामवेद। देवी - श्रदा। सरनिहा क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद -सामवेद। देवी - दुर्गा। हरद्वार क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - भार्गव। प्रहर - तीन - भार्गव, नीलोहीत, रोहित। चौपट खम्भ क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - कश्यप। प्रवर - तीन - कश्यप, वत्सार, नैध्रुव। वेद - सामवेद। कर्मवार क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। भृगु वंशी क्षत्रिय - चन्द्र वंश की एक शाखा। गौत्र - भार्गव। प्रवर- तीन - भार्गव, नीलोहित, रोहित। वेद - यजुर्वेद। चंद्र वंश की शाखा जो अग्नि वंश के रुप में प्रचारित हुई है। 1 सोलंकी क्षत्रिय - गौत्र - भारद्वाज। प्रवर - तीन - भारद्वाज, वृहस्पति, अंगीरस। वेद - यजुर्वेद। देवी - काली। Copyright @ 2010-11 KKS Bhilai. 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