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पौराणिक मान्यता अनुसार :
दस सूर्य, दस चन्द्रमा, द्वादस ऋषि प्रमाण।
चार अग्नि वंश पैदा भया, गौत्र छत्तीसो जाण।।
सृष्टि का रचयिता ब्रह्मा को माना गया है। ब्रह्मा के प्रथम पुत्र मनु हैं। मनु के 3 पुत्रियां व 2 पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद हुए। ब्रह्मा के दूसरे पुत्र मरीचि हुए। मरीचि के पुत्र कश्यप की 13 रानियां थीं। इनमें से 1 रानी के 88 हजार ऋषि हुए। इनमें से गौतम ऋषि से गहलोद वंश की उत्पत्ति मानी गई तथा दधीचि ऋषि से दाहिमा वंश की उत्पत्ति हुई। कश्यप की दूसरी रानी के सूर्य हुए। सूर्य से सूर्य वंश की उत्पत्ति हुई। सूर्य से 10 गौत्र बने।
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ब्रह्मा के तीसरे पुत्र अत्रि ऋषि थे। इनके 3 पुत्र हुए- 1. दत्तात्रेय, 2. चन्द्रमा, 3. भृगु। दत्तात्रेय से 10 गौत्र बने, जो ऋषि वंश कहलाते हैं तथा चन्द्रमा से भी 10 गौत्र बने, जो चन्द्रवंशी कहलाते हैं। ब्रह्माजी के चौथे पुत्र वशिष्ठजी के 4 पुत्रों से अग्नि वंश बना। इनके भी 4 गौत्र बने जिनकी कई शाखाएं हैं।
कश्यप की 13 रानियों में से ही 1 के नाग वंश भी बने लेकिन राजा परीक्षित के भय से नागवंशी अपने नाम को त्यागकर अन्य नाम से बस गए। इस प्रकार मानव जाति में कुल 4 वंश व 36 गौत्र माने गए हैं।
कर्म आधारित जातियां : ऋषि-महर्षियों ने कर्म की तुलना करके जाति बनाई है। 20 कर्म करने वाले को ब्राह्मण कहा जाने लगा। 6 कर्म करने वाले को क्षत्रिय माना गया। सेवारूपी कार्य करने वाले को शूद्र माना गया। इस प्रकार 4 वर्ण बने। ब्राह्मण एक होते हुए भी इनमें कई हैं और इनमें भी कर्म के अनुसार 84 तरह के ब्राह्मण हैं। क्षत्रिय वंश में कई अन्य काम करने से कर्म जाति के अनुसार इनमें भी कई उपजातियां बन गईं।
क्रमश:
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