blogspot.com  सनातन धर्म का तार्किक खंडन इस ब्लॉग का मुख्या उद्देश्य सनातक धर्म का तार्किक खंडन करना है कुछ लोगो के मन में सनातन धर्म के प्रति गलत भावनाए उत्पन होती है तो उनके द्वारा दिए गए सभी कुतर्को का अनुशोध किया जाता है एक सनातन धर्म ही धर्म है । बाकी सब अधर्म है,कुपन्थ है,संप्रदाय है,मजहब है।क्योकि धर्म का कोई पर्यायवाची या समानार्थी शब्द नही है। हिन्दु सनातन धर्म है जबकि अन्य मजहब किसी न किसी के दिमाक की उपज है । मुझे हिन्दु होने पर गर्व है। मुझे हिन्दी ,हिन्दु और हिन्दुस्थान से प्यार है। जय हिन्द जय भारत्। वन्दे मातरम । Thursday, May 15, 2014 हिन्दू धर्म में जीव हत्या का कुप्रचार करने वालो को जबाब  कृपया पोस्ट पूरा पढे मुसलमान ने श्लोको का गलत उच्चारण करके हिन्दू धर्म में जीव हटाया को दर्शाया है उसके लिए यहाँ देखे http://goo.gl/3atd9s ये पोस्ट मुझे मजबूरन इसलिए लिखना पड़ रहा है कि कुछ लोगो ने अपने को श्रेस्ठ सिद्ध करने के लिए कुतर्क देने में नीचता कि हद पर कर दी है ये लोगो ने कुछ प्रमाण दिए है और बोलते है कि सनातन धर्म में जीव हत्या या गौ हत्या को सही ठहराया गया है कुछ समय निकाल कर पोस्ट को पूरा पड़े अब कोई प्रश्न करता है तो जबाब देना जरुरी है क्योकि सनातन विद्धवानों का धर्म है महाभारत में आया है - @गव्येन दत्तं श्राद्धे तु संवत्सरमिहोच्येत। (अनुशासन पर्व, 88-5) इसको लोग अपनी शुविधा के लिए पूरा परिवर्तित कर देते है इस पंक्ति का सत्य अर्थ है……… श्राद्ध में गाय का 'दान'(दत्तं) देने से वर्षभर पितरों की तृप्ति का लाभ मिलता है। उस पंक्ति में 'माँस'शब्द ही नहीं है। झूठ को शर्म नहीं होती और न उसका कोई ईमान होता है लेकिन उस व्यक्ति कि छोटी मानसिकता कहे या फिर उसका अल्प ज्ञान उसका जबाब हम आपको देते है महाभारत में १००० से ज्यादा श्लोक है और जिस एक श्लोक को लेकर गौ हत्या करार दे रहे है वो ये है "राज्ञो महानसे पूर्वं रंतिदेवस्य वै द्विज | द्वे सहस्त्रे तु वध्येते पशुनंन्वहनं तदा | अहन्यहनि वध्येते द्वे सहस्त्रे गवां तथा ॥ " इस श्लोक में ‘वध्येते’” का अर्थ मारना लिखा माना गया है जो कि संस्कृत व्याकरण क अनुसार बिलकुल गलत है क्युकी संस्कृत में ‘वध’ धातु स्वतंत्र नही है जिसका अर्थ ‘मारना’ हो सके ,मारने के अर्थ में तो ‘हन्’ धातु का प्रयोग होता है |पाणिनि का सूत्र है “हनी वध लिङ् लिङु च “ इस सूत्र में कर्तः हन् धातु को वध का आदेश होता है .. अर्थात वध स्व्तंत्र रूप से प्रयोग नही हो सकता .. । व्याकरण के रूप में स्पस्ट करते है ‘वध्येते ‘ हिंसा का रूप नही है ... | इसके अलावा दो और श्लोक का सहारा लेकर राजा को "गौ हत्यारा " बताया जाता है .. "समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्य नित्यशः अतुला कीर्तिरभवन्नृप्स्य द्विजसत्तम" अब सुनो यहाँ ‘समांसं‘ का मतलब पशुमांस कहना बिलकुल गलत है .. वेदो में सभी शब्दो का विस्तृत अर्थ हुआ करता था लेकिन आज के समय में अर्थ सीमित हो गया है उदाहरण ‘मृग’ को सभी जानवर के लिए किया जाता था लेकिन आज के समय में ‘हिरण’ के लिए है ।ओर "वृषभ" का मतलब बैल है . , लेकिन इसके ७८ से ज्यादा विभिन्न अर्थ है लेकिन हम सिर्फ बैल के लिए प्रयोग करते है ऐसे ही आदि कल में मांस का अर्थ पशुमांस के साथ गौ उत्पादन मतलब दूध दही घी आदि के लिए प्रयोग होता था आप संस्कृत के आधार पर देखो तो राजा रातीदेव को गौ हत्यारा कहना बिलकुल हे गलत है ..| वाप्यो मैरेयपूर्णाश्च मृष्टमांसचयैर्वृताः। प्रतप्तपिठरैश्चापि मार्गमायूरकौक्कुटैः।। अर्थ - इस श्लोक में भारत जब बाल्मीकि के आश्रम में सेना सहित राज्य से चलकर आते है उसके बाद का वर्णन है, मूर्ख मुल्ले "मृष्टमांस" का अर्थ चौपाये जानवर के मांस से लेते हैं, जबकि "मृष्ट" का अर्थ cleaned या साफ़ होता है, और मांसं का अर्थ यहाँ मांस (meat) नहीं, मांस के कई अर्थ होते है, लोट लकार के अर्थ में इसका अर्थ "time" (समय होता है) मांस के विभिन्न अर्थ ये रहे - १ मांस, २ जीव, ३ दागना (cauterize), ४ क्षारकर्म, इत्यादि! अतः यहाँ "वाप्यो मैरेयपूर्णाश्च" अर्थात शरबत जैसे एक मीठे पेय से, जो एक साफ़ मैटल के कुंड में भरा जाता है, तथा उस धातुकुन्द को cauterize (मांसं) करने का वर्णन है! तथा उससे ही भरत कि थकी सेना का सत्कार किया जाता है ना कि मांस से! ये बताता है कि आश्रम मार्ग के आसपास कितने प्रकार के पक्षी थे/हैं! "मार्गमायूरकौक्कुटैः". तथा, प्रतप्तपिठरैश्चापि का संधि विच्छेद करें तो ये प्राप्त होता है! प्रतप्तपिठरैश्चापि = प्रतप्त+पिठरैः+च+अपि यहाँ "च" का अर्थ "धातु" के रूप में नहीं हुआ है, "च" के निम्न अर्थ हैं, च ca adj. moving to and fro ,च pure च seedless च mischievous च both च मोरे over च as well as च tortoise ,अतः हमने देखा कि इसका प्रयोग व्याकरण के अतिरिक्त, मूल शब्दो में भी होता है! अतः आग में कुछ पकाने के सम्बन्ध में तीसरे नंबर के अर्थ "च seedless (बीजरहित का प्रयोग इस श्लोक में किया जा रहा है)" अब बीजराही विशेषण का प्रयोग मांस के सम्बन्ध म ओ किया नहीं जा सकता, अतैव ये किसी बीजरहित फल या सब्जी कि ओर इंगित करता है, जिसे ("प्रतप्त+पिठरैः") मिटटी के गर्म पात्र पर पकाया जा रहा हो! श्लोक का आशय ये है! इस प्रकार हम देखते है कि किस प्रकार मलेच्छ श्लोको का गलत सलत अर्थ लगाकर दुष्प्रचार कर रहे हैं! इसी तरह एक और श्लोक है : रुरून् गोधान् वराहांश्च हत्वाऽ ऽदायामिषं बहु।। स त्वं नाम च गोत्रं च कुलमाचक्ष्व तत्त्वतः।। एकश्च दण्डकारण्ये किमर्थ चरसि द्विज।। पहले इस श्लोक को पूर्ण कर दूँ इसके आगे २ लाईनें और हैं! समाश्वस मुहूर्तम् तु शक्यम् वस्तुम् इह त्वया ! आगमिष्यति मे भर्ता वन्यम् आदाय पुष्कलम् !! अब इसका अनुवाद करते हैं : सीता जी, छलवेश धारी रावण को सम्बोधित करते हुए कहती है, -"हे विप्रवर आप कुछ काल के लिये विश्राम कीजिये, अगर विश्राम आपके लिये सम्भव हो तो (समाश्वस मुहूर्तम् तु शक्यम् वस्तुम् इह त्वया), मेरे भर्तृ वन में वनोत्पाद लेने गए हैं, (मे भर्ता वन्यम् आदाय पुष्कलम् ), अब मुल्ले, मलेच्छ इसके बाद के श्लोक का उल्टा अर्थ निकालकर, श्री राम के वन में जीवों का शिकार करने जाने का वर्णन जोड़ देते हैं, जिसका सही अनुवाद ये रहा - रुरून् के संस्कृत में ६ मूल पर्याय होते हैं, उसमे से एक है, रुरु ruru m. species of fruit tree (फल वृक्ष का १ प्रकार) , और इस सन्दर्भ में श्रीराम द्वारा इसे लाने का वर्णन है,
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