Friday, 1 September 2017

क्यों नहीं होती है सृष्टि-निर्माता ब्रह्मा जी की पूजा

☰ ENTERTAINMENT HUMOR NEWS CELEBS LIFE VIDEO LIFESTYLE SPORTS WOMEN ABOUT US CONTACT US CONTRIBUTE PARTNER PRIVACY POLICY TERMS AND CONDITIONS  Jun 27, 2016 at 14:33 क्यों नहीं होती है सृष्टि-निर्माता ब्रह्मा जी की पूजा, और क्यों है इनके सिर्फ़ कुछ ही मंदिर by Shankar  हिंदू पौराणिक कथाओं में संपूर्ण सृष्टि का रचनाकार ब्रह्मा को कहा जाता है, जिन्होंने अपने ही शरीर से देवताओं, राक्षसों, पुरुषों और इस धरती पर मौजूद सारे प्राणियों को बनाया है. ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा के चार सिर हैं, जिन्हें चारों वेदों के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. शुरू में उनके पांच सिर थे, जिनमें से एक को शिव जी ने क्रोध में आकर काट दिया था . वैसे तो अकसर त्रिदेवों का नाम लेने के क्रम में ब्रह्मा, विष्णु और महेश बोला जाता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है, जो अभी मेरे मन में उठ रहा है कि सभी भगवान के मंदिर होते हैं और जहां देखो मिल जाएंगे, पर भगवान ब्रह्मा जी के मंदिर क्यों नहीं देखे जाते? जबकि भगवान के विभिन्न रूपों में शिव, विष्णु, दुर्गा, गणेश और अन्य देवताओं की पूजा आम लोगों में व्यापक रूप से प्रचलित है, लेकिन शायद ही हमें कभी ब्रह्मा जी का मंदिर देखने को मिलता है. बहरहाल, इसका जवाब हमें पौराणिक कथाओं में ही मिल सकता है. लेकिन पौराणिक कथाओं में भी कई तरह के सिद्धांत और कहानियों को बतलाया गया है. एक सिद्धांत यह मानता है कि इंसान अकसर उन्हीं देवी-देवताओं की पूजा करता है, जो आम तौर पर एक योद्धा होते हैं.  अगर आप देश में मंदिरों पर नज़र डालेंगे, तो आपको अधिकांश मंदिर अपने उग्र आंख, विनाश स्वरूप भयानक नृत्य और उसकी डरावना त्रिशूल लिये भगवान शिव का ही होंगे या हाथों में सुदर्शन चक्र लिये, सभी के रक्षक भगवान विष्णु ही देखने को मिलेंगे. या फिर हाथों में तीर-धनूष और तलवार लिए मां दुर्गा के मंदिर. यहां तक कि भारत के उत्तरी भाग में हनुमान की पूजा की जाती है और दक्षिण भारत और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में आपको कार्तिकेय की पूजा की करते लोग दिख जाएंगे. कुल मिलाकर ये है कि आपको भारत में सभी देवी-देवताओं के मंदिर तो सहज ही मिल जाएंगे, पर ब्रह्मा जी का मंदिर विरले ही आपको देखने को मिलेगा. दावा करता हूं कि सरस्वती (विद्या की देवी) और ब्रह्मा (सृष्टि के रचनाकार) के भी मंदिर आपको शायद ही कभी मिल पायेंगे. बहरहाल, इस बात से यह साबित होता है कि मानव जाति उन्हीं देवी-देवताओं की पूजा करती है, जो योद्धा होते हैं, जिनसे उन्हें डर लगता है, जो उनके मन में अपने प्रति आतंक जगाते हैं. इस बात से आप भी समझ सकते हैं कि निर्माता होने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है विध्वशंक होना होता है. ब्रह्मा के बारे में सबसे ज़्यादा यह भी सुना जाता है कि ब्रह्मा ने अपनी ही बेटियों सतरूपा, गायत्री, ब्राह्मणी और सावित्री के साथ अनाचार किया है. अब इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो मैं नहीं जानता.  अकसर कहानियों में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सृजन के दौरान ही एक चौंकाने और बेहद ही सुंदर महिला को बनाया था. हालांकि, उनकी यह रचना इतनी सुंदर थी कि वे उसकी सुंदरता से मुग्ध हो गये और ब्र्ह्मा उसे अपनाने की कोशिश करने लगे. ब्रह्मा जी अपने द्वारा उत्पन्न सतरूपा के प्रति आकृष्ट हो गए तथा उन्हें टकटकी बांध कर निहारने लगे. सतरूपा ने ब्रह्मा की दृष्टि से बचने की हर कोशिश की किंतु असफल रहीं. कहा तो ये भी जाता है कि सतरूपा में हजारों जानवरों में बदल जाने की शक्ति थी और उन्होंने ब्रह्मा जी से बचने के लिए ऐसा किया भी, लेकिन ब्रह्मा जी ने जानवर रूप में भी उन्हें परेशान करना नहीं छोड़ा. इसके अलावा ब्रह्मा जी की नज़र से बचने के लिए सतरूपा ऊपर की ओर देखने लगीं, तो ब्रह्मा जी अपना एक सिर ऊपर की ओर विकसित कर दिया जिससे सतरूपा की हर कोशिश नाकाम हो गई. भगवान शिव ब्रह्मा जी की इस हरकत को देख रहे थे. शिव की दृष्टि में सतरूपा ब्रह्मा की पुत्री सदृश थीं, इसीलिए उन्हें यह घोर पाप लगा. इससे क्रुद्ध होकर शिव जी ने ब्रह्मा का सिर काट डाला ताकि सतरूपा को ब्रह्मा जी की कुदृष्टि से बचाया जा सके. भगवान शिव ने इसके अतिरिक्त भी ब्रह्मा जी को शाप के रूप में दंड दिया. इस श्राप के अनुसार, त्रिदेवों में शामिल ब्रह्मा जी की पूजा-उपासना नहीं होगी. इसीलिए आप देखते हैं कि आज भी शिव एवं विष्णु पूजा का व्यापक चलन है ,जबकि ब्रह्मा जी को उपेक्षित रखा जाता है. हिंदु धर्म के बुनियादी सिद्धांतो के अनुसार, लोलुपता, वासना , लालच आदि की इच्छाओं को मोक्ष प्राप्ती का अवरोधक तत्व माना गया है. इस तरह का काम करके ब्रह्मा जी ने पूरे मानव जाति के समक्ष एक अनैतिक उदाहरण पेश किया था, जिसके कारण उन्हें ये श्राप मिला था. जब ब्रह्मा और विष्णु जी का यह विवाद कि त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, नियत्रंण से बाहर होने लगा, तब अन्य देव-मुनियों ने त्रिदेवों में श्रेष्ठ के अंतर को स्थापित करने के लिए भगवान शिव की मदद मांगी. शिवलिंग को शिव का प्रतीक माना जाता है. शिव का अर्थ है- कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है-सृजन. इस विवाद ‘मैं बड़ा तो मैं बड़ा’ का अंत करने के लिए सदाशिव एक विशालकाय 'योतिस्तंभ रूप में प्रकट हुए, जिसके ओर-छोर का पता अनिश्चित था. शिव ने उन दोनों को चुनौती दी कि जो भी इस शिवलिंग के किसी भी छोर तक पहुंच जाएगा, उसी का वर्चस्व सबसे बड़ा होगा. यह सुनते ही ब्रह्मा ने एक हंस का आकार ले लिया और वर्चस्व साबित करने के लिए शिवलिंग के ऊपर की ओर उड़ान भरी, वहीं विष्णु एक सूअर के रूप में वेश बदल कर शिवलिंग के नीचे के क्षेत्र में उतरे. जैसे ही कुछ दूर तक विष्णु जी ने यात्रा तय की, उन्हें अहसास हुआ कि इससे पहले भी शिव ने उन्हें मात दी थी, अत: विष्णु लौट आए और भगवान शिव को सुप्रीम रूप में स्वीकार किया. वहीं ब्रह्मा ने रास्ते में ऊपर की तरफ बढ़ते समय केतकी फूल से मुलाकात की और केतकी को यह बोलने के लिए मनाया कि वे शिव को जाकर बताएं कि ब्रह्मा शिवलिंग के सबसे ऊपरी छोर तक पहुंच गये हैं. ब्रह्मा जी की बात मानकर केतकी फूल ने भगवान शिव से झूठ कहा, जिसका पता शिव जी को लग गया. इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी इस पृथ्वी पर कहीं भी पूजा नहीं की जाएगी और केतकी फूल का किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पूजा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. लाज़िमी है कि अन्य पौराणिक कहानियां अनैतिक गतिविधियों के प्रति डर पैदा करने के लिए बनाई गई होती हैं. बहरहाल, भारत में ब्रह्मा जी के कुछ ही मंदिर हैं, जिनमें से राजस्थान के पुष्कर में स्थित यह मंदिर प्रमुख है. इस स्थान को ब्रह्मा जी का घर भी कहा जाता है. मान्यता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल के दौरान अनेकों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया. ब्रह्मा जी का यही एकमात्र मंदिर है, जिसे औरंगजेब छू तक नहीं पाया. इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ. आम तौर पर इस मंदिर को 2000 साल पुराना माना जा रहा है. तमिलनाडु के कुंभकोणम में स्थित ब्रह्मा जी के इस मंदिर को भी भारत के अन्य सभी मंदिरों में से प्रमुख मंदिर माना जाता है. यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है और उनकी दो पत्नियों गायत्री और सरस्वती के साथ ब्रह्मा की एक मूर्ति है. आंध्र प्रदेश के Chebrolu में चतुर्मुख ब्रह्मा मंदिर इस तरह के दूसरे मंदिरों में से एक है, जिसे लगभग 200 साल पहले राजा वासीरेड्डी वेंकटाद्री नायडू द्वारा बनवाया गया था. यहां पर ब्रह्मा के साथ शिव की पूजा भी की जाती है. हालांकि पौराणिक कथाओं से जुड़ी अनेक दंत कथाएं ऐसी ही हैं, अब इसकी हकीक़त कितनी है, ये तो खुद हमें भी नहीं पता. 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