Thursday 26 October 2017

राम और कृष्ण ने भी गुरु दीक्षा ली 

▼ 15 मई 2012 क्या राम और कृष्ण ने भी गुरु दीक्षा ली थी 1 सतगुरु । परमात्मा ( काल पुरुष ) और परम पुरुष । इनकी प्राप्ति में पुरुषार्थ की क्या भूमिका है ? ANS - पहले तो ये बात एकदम उलटी या विपरीत सी हो जाती है । आप इनको प्राप्त नहीं करते । बल्कि खुद इनको प्राप्त होते हो । क्योंकि सूक्ष्मता के स्तर पर बात कही जाये । तो इनको प्राप्त करने वाला इनका स्वामी हुआ । फ़िर अगर कई लोगों ने इनको प्राप्त किया । तो परमात्मा या अन्य बङी शक्तियाँ कई हो गयीं ना । फ़िर किसी 1 को प्राप्त हुआ । तो वो किसी दूसरे को क्यों देने लगा । ऐसे बङा झगङा खङा हो जायेगा । दरअसल 1 अति तुच्छ जीव से लेकर सर्व शक्तिमान परमात्मा तक सभी । चेतन की अनगिनत स्थितियाँ उपाधियाँ हैं । केवल अन्तिम यानी आत्मा या परमात्मा ही सब स्थितियों और उपाधियों से रहित है । क्योंकि वो कोई स्थिति नहीं । वो तो सदा से - है । है । आप जिस स्थिति को योग द्वारा जानने लगते हो । उस पर नियंत्रण करना जान जाते हो । वही हो जाते हो । ये सिर्फ़ योग में ही नहीं । चेतन या जीवन की हर गतिविधि में यही बात लागू होती है । जैसे तैरना या ड्राइविंग । तैरना आ जाने पर आपको तैराक । और ड्राइंविंग आ जाने पर ड्राइवर की उपाधि स्वतः मिल जाती है । पर ये सिद्धांत द्वैत योग में लागू होता है । आत्म ज्ञान वास्तव में लय योग है । इसमें आत्मा का सभी ज्ञान और स्थितियाँ उपाधियाँ स्वतः समायी  हुयी हैं । इसमें एक तरह से योग के बजाय वियोग करना होता है । यानी सब तरफ़ के जुङाव से ध्यान हटाकर आत्म स्थिति में अधिकाधिक केन्द्रित होना  । इस वियोग में कभी उत्पन्न हुआ द्वैत जितना % आपके अन्दर से खत्म होता जाता है । उतना ही आप परमात्मा के निकट । या सीधे सीधे कहिये । स्वयं परमात्मा होते जाते हैं । बाकी संक्षेप में एक अन्य कोण से पुरुषार्थ को मान कर भी चला जा सकता है । जब ये जीव आत्मा ( हँस दीक्षा मिलने के बाद ) हँस हो जाती हैं । अभी ये ( बिना दीक्षा के ) काग ( कौआ वृति ) है । क्योंकि विषय वासना रूपी ट्टटी खाती है । इस आत्मा रूपी हँस के 1 भक्ति ( या समर्पण ) । 2 ज्ञान । 3  वैराग । ये 3 पंख है । ये तीनों पंख स्वस्थ होने पर ही ऊर्ध्व ( ऊपर ) की ठीक यात्रा संभव हो पाती हैं । बाकी आप कोई पुरुषार्थ करते रहिये । कुछ काम न आयेगा । दरअसल इन 3 अंगों में ही बहुत कुछ समाया हुआ है । 2 संत मत में श्रीमद भगवद गीता का महत्व क्या है ? ANS - सन्त मत हो । या कोई अन्य पंथ । एक दृष्टिकोण से हर चीज का अपना महत्व है । क्योंकि कब किसको कहाँ से क्या प्राप्त हो जाय । कुछ कहा नहीं जा सकता । लेकिन गीता ज्ञान के आधार पर बात कही जाये । तो गीता धर्म शास्त्रों का निचोङ है । कहानियों के रूप में वर्णित धर्म शास्त्र सामान्य बुद्धि के लोगों की धर्म में जिज्ञासा बनाये रखने का काम करते हैं । जैसे छोटे बच्चे को रोचक चित्र या कहानी कविता के माध्यम से बात समझायी जाती है । लेकिन उस पाठ का सार 1 वाक्य के उपदेश या सूत्र के रूप में हो सकता है । इसलिये तमाम कथा वात्रा से उकता  कर इंसान जब परिपक्व  होकर 1 स्थान पर सार को जानना चाहता  है । वह गीता है । लेकिन दरअसल गीता का जहाँ पूरा ज्ञान अपने शिखर पर खत्म होता है । सन्त मत की A B C D ही वहाँ से शुरू होती है । अपनी बात खत्म करके गीता ( उस ) समय के किसी तत्व वेत्ता या सदगुरु के पास जाने की सलाह देकर हाथ जोङ लेती है । इससे यही संकेत निकलता है । ज्ञान प्राप्ति या आत्म प्रयोग तत्व वेत्ता के बिना संभव ही नहीं । 3 राम और कृष्ण ने काल पुरुष अवतार होने पर भी गुरु बनाये । ऐसा क्यों ? ( यहाँ कबीर का नाम मैंने अपनी तरफ़ से जोङा - जिसके द्वारा उत्तर दिये गये ) ANS - सम्पूर्ण या कहिये अखिल सृष्टि परमात्मा के नियम ( आदेश ) द्वारा संचालित है । इसका उलंघन करने की शक्ति किसी में नहीं है । विराट में राम श्रीकृष्ण या काल पुरुष की हैसियत 1 तिनका से अधिक नहीं है । ये हैसियत भी उसी परमात्मा की ही दात है । इसीलिये उसी आदेश परम्परा का निर्वहन करने के लिये राम ( के बृह्मा पुत्र - वशिष्ठ ) कृष्ण ( के  आध्यात्मिक गुरु - दुर्वासा ) ने गुरु बनाये । राम कृष्ण से कौन बढ ( त्रिलोकी में ) तिन हू ने गुरु कीन । तीन लोक के ये धनी । गुरु आज्ञा आधीन । गुरु गृह पढन गये ( राम ) रघुराई । अल्प काल विध्या सब पायी । कबीर ने भी इसी नियम का सम्मान करते हुये रामानन्द को गुरु बनाया । अन्यथा वास्तविक कहानी कुछ अलग ही है । श्रीकृष्ण भी कहते हैं - लोग मेरा अनुसरण करते हैं । इसलिये मैं कर्म करता हूँ । वरना मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है । 4 राम का वशिष्ठ जी को गुरु बनाना ( जिन्हें त्रेता युग में कबीर जी के द्वारा नामदान मिला था ) क्या वशिष्ठ जी ने राम को भी नाम दान दिया था ? ANS - आप ( आम इंसान या विद्वान आदि ) जिस आध्यात्म से परिचित हैं । वह स्थूल ज्ञान है । मन आदि इन्द्रियों द्वारा जाना गया । गो गोचर जहाँ लगि मन जाई । सो सब माया जानो भाई । जबकि - आंतरिक । सूक्ष्म । अति सूक्ष्म । ज्ञान बहुत अलग है । बल्कि एकदम अलग कहो । तो ज्यादा ठीक है । अवतार आधा और अंश रूप में होता हैं । अतः राम सिर्फ़ 1 पुतला मात्र है । जिसे काल पुरुष । विष्णु । शंकर आदि अपने अपने चेतना अंश देकर सक्रिय करते हैं । दरअसल यहाँ बहुत ही जटिल और सूक्ष्म बिज्ञान आ जाता है । जिसको सिर्फ़ इसी स्तर के उच्च योगी ही ठीक समझ सकते हैं । खैर..फ़िर भी राम के इस कृतिम शरीर ? को  नाम शक्ति से हँस दीक्षा द्वारा ( गुरु दीक्षा ) जोङा गया । अतः स्थूल रूप से राम हँस योगी थे । 1 पत्नी वृत । 12 कलाओं का ज्ञान । मर्यादा पुरुष । वचन पर दृढ रहना आदि इनकी खास विशेषतायें थी । रघुकुल रीत सदा चलि आयी । प्राण जाये पर वचन न जायी । इसी प्रश्न का विस्तार अगले उत्तर में भी... 5 क्या कृष्ण अवतार में भी काल पुरुष ने गुरु से नाम दान या कोई अन्य संत मत की दीक्षा ली थी ? ANS - जबकि श्रीकृष्ण परमहँस ज्ञानी ( मगर गुरु अनुसार - 7 चक्रों के ) थे । इनके गुरु दुर्वासा थे । इनकी परमहँस दीक्षा हुयी थी । भले ही ये राम की ही आगे की कङी थे । पर यहाँ मामला बहुत अलग और विपरीत था । इनके लिये अपने ही वचन का कोई महत्व नहीं था । जबकि वास्तविक सत्य ये था कि - ये कभी झूठ नहीं बोलते थे । इनकी 8 प्रमुख पत्नियाँ । और 16100 अन्य थी । जबकि वास्तविक सत्य ये था कि - ये पूर्ण बृह्मचारी थे । इनका 16 कलाओं का ज्ञान था । और ये योगेश्वर हैं । किसी भी मर्यादा का इनके लिये कोई मतलब ही न था । जबकि वास्तविक सत्य ये था कि - इनकी तुलना में राम की मर्यादा मामूली ही थी । अब बताईये । उपरोक्त विवरण एकदम 100% सत्य है । पर कैसे ? ये समझाना बेहद कठिन है । 6 आपके ही ब्लॉग पर शायद कहीं पर पढ़ा था - काल पुरुष बुरा भी है । और अच्छा भी है । यह बात क्या आत्माओं के वापस सतलोक जाने के सन्दर्भ में भी सत्य है ? ANS - हँस दीक्षा मिलने के बाद मन की मलिन वासनायें धीरे धीरे नाम जप अभ्यास अनुसार शुद्ध होने लगती हैं । एक अच्छी स्थिति या उच्चता आ जाने पर इसके सभी अवगुण ठीक विपरीत शुभ गुणों में परिवर्तित हो जाते हैं । ये पिंडी मन से बृह्माण्डी मन होता हुआ कृमशः शुद्धता पवित्रता को प्राप्त होता जाता है । और फ़िर सहायक भी हो जाता है । लेकिन ध्यान रहे । इसकी सभी चाल  साधक के विवेक पर निर्भर है । क्योंकि वास्तव में ये जङ है । और चेतन ( यहाँ जीव ) के बिना इसकी कोई औकात नहीं । अतः सतलोक जाने में सहायता भी  करता है ।  और आपका रुख थोङा भी बदलने पर बहुत ऊँचाई से गिरा भी सकता है । 7 जब सत पुरुष ने आद्यशक्ति के द्वारा काल पुरुष की सृष्टि में जीव भेजे । तो असल में उन्होंने क्या भेजा ? क्या तब जीव हंस थे ? या मात्र उनकी सुरती को ही काल पुरुष की सृष्टि से जोड़ा ? ANS - ये प्रश्न एक अत्यन्त जटिल अलौकिक सूक्ष्म बिज्ञान के क्षेत्र में चला जाता है । जो समझाने के बाबजूद ठीक समझ में आ जाये । मुझे बहुत मुश्किल लगता है । सत पुरुष ने "  सोहंग " जीव वीज भेजा । तब ये बीज था । जीव नहीं । ये " हुँ " से चेतना लेकर र्र्र्र्र्र्र्र रंकार से रमता ( गति या एक्टिव । चेतना का रूपान्तरण ) हुआ सो-हं द्वारा अंकुरित होने लगता है । ज्ञान प्राप्त हो जाने पर ये  उलटकर हं-सो हो जाता है । दरअसल द्वैत के अनुसार उत्तर देना । और अद्वैत के अनुसार उत्तर देना । दोनों में बहुत फ़र्क और विरोधाभास सा लगेगा । जबकि प्रश्न 1 ही होगा । और उत्तर भी 1 ही होगा । द्वैत में इन सब काल पुरुष अष्टांगी आदि की सत्ता है । अद्वैत में कोई है ही नहीं । वही एक परमात्मा लगातार सृष्टि खेल खेल रहा है । और एकदम शान्त खेल से निर्लिप्त अलग भी है । अपनी मढी में आप में खेलूँ । खेलूँ खेल स्वेच्छा । 8 परम पुरुष ने कितने जीव भेजे ? सभी ( अर्थात कोई सीमित संख्या ) ? अनन्त ? या ऐसा लगातार हो रहा है ? ANS - ये प्रश्न और भी अधिक जटिलता लिये है । जैसे किसी 1 पेङ का बीज हो । कुछ ही समय में वो हजारों लाखों बीजों को पैदा कर देता है । फ़िर वे हजारों लाखों पेङ होने पर कितने बीज उत्पन्न करेंगे । कल्पना भी मुश्किल है । और वे सभी स्थूल रूप से नष्ट होते भी नजर आते हैं । लेकिन सूक्ष्म स्तर पर नष्ट नहीं होते । जैसे 1 सही सलामत बीज है । अभी कारगर है । लेकिन इसको पीस दो । अब ये उग नहीं सकता । जबकि पदार्थ तो वही है । सरंचना बदल गयी । लेकिन क्या ये नष्ट हो गया ? नहीं । बिखर गया । कभी फ़िर घनीभूत हो जाने पर ये उगने की स्थिति में आ जायेगा । इसी प्रकार समुद्र के पानी का गर्मी द्वारा भाप आदि में रूपांतरित होकर बूंद । बादल । बर्फ़ । और बूँदों के कई स्तर पर संयुक्त होने से गढ्ढों में भरा जल । तालाब । झील । नदी । नहरें आदि का रूप ले लेता है । ये सब समुद्र के ही रूपांतरित रूप हैं । जो समय स्थिति अनुसार बार बार बनते बिगङते रहते हैं । यही " मैं " के अज्ञान रूप में जीव है । और " तू " के ज्ञान रूप में आत्मा होने लगता है । बूँद से सागर तक । अब इसी पर निर्भर है । क्या होने तक जा सके । 9 सतपुरुष के द्वारा प्रकट किये गये प्रत्येक तत्व चेतन हैं ? अगर ऐसा है । तो जड़ क्या है ? क्या जड़ तत्व भृम मात्र है ? ANS - अखिल सृष्टि में सिर्फ़ आत्मा में ही चेतन गुण है । ध्यान रहे । आत्मा अचल है । चेतनता या गति सिर्फ़ आत्मा से है । मगर स्वयं आत्मा में नहीं । इसके अलावा सभी तत्व । प्रकृति । सृष्टि आदि सब कुछ । जो भी है । जहाँ भी है । जङ है । जैसे अग्नि वायु जल आदि ये सभी तत्व जङ हैं ।  इनकी सक्रियता या  गुण । जैसे आग में दाहकता । चेतन गुण से ही है । द्वैत में हर चीज सत्य है । अद्वैत ( की पूर्ण स्थिति ) में हर चीज भृम है । सिर्फ़ उसी 1 के अतिरिक्त । और वो स्वयं सत्य - है । है ॥ है ॥ शेष उत्तर अगले लेखों में । साहेब । ********************* क्या आप जानते हैं - प्रापर्टी डीलिंग या किसी भी प्रकार की जमीन की खरीद फ़रोख्त व्यवसाय के रूप में करना महा पाप है । और इसके परिणाम सुनकर आप थर थर कांप जाओगे । इस पर विस्तार से बात फ़िर कभी । क्या आप जानते हैं - बृह्म ज्ञान बेचना महा पाप है । वशिष्ठ ने राम से कहा - प्रभो ! पुरोहिती अत्यन्त नीच कर्म है । लेकिन मेरे पिता बृह्मा ने कहा । त्रेता में सूर्य कुल में स्वयं बृह्म का अवतार होगा । इसलिये तुम्हारे लिये सूर्य वंश की पुरोहिती लाभदायक होगी । पर वह वशिष्ठ और अन्य स्थिति की बात थी । ध्यान रहे । वशिष्ठ इसका उपयोग व्यवसाय की तरह नहीं करते थे । फ़िर भी उन्होंने इसको नीच कहा । सभी शास्त्र इस बात पर एकमत है कि - वेद ज्ञान आदि बेचना महा पाप है । इसका अर्थ है । व्यवसायिक रूप से इस बृह्म ज्ञान का किसी भी रूप में उपयोग करना । जबकि आज सभी मर्यादायें लांघ कर तमाम - पुरोहित । कथा वाचक । भागवताचार्य आदि लगभग बेशर्मी से यही कर रहे हैं । बङिया मेकअप । महंगे वस्त्र । महंगी साज सज्जा का सैट । उसके टेलीकास्ट आदि बङिया तामझाम और अति महंगी फ़ीस में अलग अलग बहुरूप धरे ये ऐसा लगता है । साक्षात अभी अभी भगवान से सीधा मिलकर आ रहे हों - मेरा कन्हैया । मेरा बांके बिहारी ।  मेरे राम । मेरे भोले आदि आदि ये इस प्रकार भाव विभोर होकर कहते हैं । जैसे भक्ति में बेहद उच्चता को प्राप्त हो चुके हों । और मात्र इनकी कथा सुनने से आपका मोक्ष हो जायेगा । पर जिस शास्त्र से ये बात कह रहे हैं । वही शास्त्र स्पष्ट कह रहा है । मरने के बाद - कन्हैया और स्वर्ग छोङों । खुद ये दीर्घकाल के लिये महा नरक रूपी दण्ड के भागी होंगे । और अपराध बस इतना ही कि - इन्होने अलौकिक दिव्य ज्ञान को व्यवसाय बनाया । उसमें सादगी के बजाय बहुरूपिया पन दिखाया । और जीवों को सफ़ेद झूठ बोलकर भरमाया ।  सोचिये  जब इन्हीं की ये हालत होगी । तो इनके पीछे चलने वालों की क्या होगी ? हाँ ! यही व्यवसाय के बजाय । ये परमार्थ भावना से हरि गुण गान करते । तो ये अच्छा पुण्य । और अच्छे पुण्य फ़ल देता । इनको धन तब भी लोग देते । पर वह जरूरत के अनुसार लिया जाता । और इनका जीवन और शिक्षा और व्यवहार आचरण आडम्बर रहित होता । Guru ji pranam ! mein jaldi se jaldi apni kundlini jaagran karna chahta hun. Aap mujhe batayen anulom vilom karne ki sahi vidhi kya hai ? Or kundlini jaagran ke liye kya karna chahiye ? एक जिज्ञासु । मेल से । आप अपने स्तर पर कुण्डलिनी कभी जागृत नहीं कर सकते । ये समर्थ गुरु के सानिंध्य में ही संभव है । हठ योग करने पर मृत्यु या गम्भीर पागलपन की स्थिति भी बन सकती है । इसके कई तरीके हैं । कई मंत्र हैं । कई स्तर के गुरु हो सकते हैं । आप फ़िरोजाबाद ( उ. प्र. ) के पास कौरारी स्थित हमारे आश्रम पर आ जाईये । 2 दिन में कुण्डलिनी सहजता से जागृत हो जायेगी । फ़िर बस आपको साधना ही करनी शेष होगी । लेकिन आने से पहले श्री महाराज जी से 0 96398 92934 नम्बर पर बात अवश्य कर लें । अन्य शंका समाधान भी फ़ोन पर जानें । व्यक्तिगत रूप से उत्तर देना संभव नहीं । at 6:25 am साझा करें ‹ › मुख्यपृष्ठ वेब वर्शन देखें Blogger द्वारा संचालित.

1 comment:

  1. गुरुजी मैने हंस योग की दिक्षा (अनुग्रह) लिया हुआ है कुंडलिनी सहस्रार तक जाकर स्पंदीत है. अनाहत नाद भी सुनाई देते है लेकीन समाधी का अनुभव अभी तक नही आया. क्या साधना करते हुऐ समाधी कभी गठीत होगी या फिर इसके आगे की परमहंस दिक्षा लेनी आवश्यक है कृपया मार्गदर्शन करे - मुरलीधर बुधनेर पता: कल्याण शहर, जिला ठाणे,महाराष्ट्र.मो.9833551110

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