Sunday 29 October 2017

गौत्र परिचय

PAREEK SAMAJ ,PALI search AUG 22 गौत्र परिचय गौत्र परिचय ब्रह्मा ने वृहस्‍पति को व्‍याकरण पढ़ाया, वृहस्‍पति ने इन्‍द्र को, इन्‍द्र ने भारद्वाज को, भारद्वाज ने ऋषियों को, ऋषियों ने ब्राह्मणों क। वही यह अक्षर समाम्‍नाय है। विद्या का मूल लिपी है। वह लिपी आदि में ब्रह्मा ने दी इसलिए भारत की मूल लिपी का नाम ब्राह्मी लिपी है। भारत के अंतों में सर्वत्र म्‍लेच्‍छ बस्तियां हैं। पूर्वान्‍त में किरात और पश्चिम में वयन है, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्‍य मध्‍य अर्थात आयावर्त आदि में हैं। शुद्र भिन्‍न-भिन्‍न भागों में बिखरे हैं। मोहनजोदड़ो और सौराष्‍ट्र की सीमा स्‍थानों पर यवन और उनके साथी असुरों आदि की बस्तियां थी। कभी ये यवन आदि संस्‍कृत भाषी विशुद्ध आर्य थे। कालान्‍तर में ये म्‍लेच्‍छ हो गए। भारत वर्ष जम्‍बूद्वीप का एक भाग है। पहले जम्‍बूद्वीप पर ही नहीं प्रत्‍युत संपूर्ण द्वीपों के बसनीय खंडों पर आर्यों का निवास था। कालान्‍तर में भाषा में अस्‍पृश्‍यता आयी और म्‍लेच्‍छ लोग उत्‍पन्‍न हो गए। लोगों का स्‍थान संकुचित होता गया। पुन: भारत में भी उनका वास भाग संकुचित हुआ। भारत की सीमाओं पर म्‍लेच्‍छ लोग उत्‍पन्‍न हो गए। अंगिरा, कश्‍यप, वशिष्‍ठ और भृगु ये चार मूल गौत्र थे। अन्‍य गौत्र कर्म से उत्‍पन्‍न हुए। गौत्र परम्‍परा प्राचीन काल से चली आई है। तथागत बुद्ध भी अपना गौत्र जानता था। गौत्र प्रवर्तक ऋषि भारत में रहा करते थे। उनकी सन्‍तति और उनके शिष्‍य, प्रशिष्‍य सतयुग से चले आ रहे थे। तभी से उनमें से अनेकों की मातृभूमि भारत थी। समाज के प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए यह आवश्‍यक है कि वह अपने गौत्र, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र, प्रवर, पाद, शिखा एवं देवता आदि की पूर्ण जानकारी रखे। हमारी 103 शाखायें हैं। पारीक्ष ब्राह्मणोत्‍पत्ति के अनुसार इनका सरल एवं सुबोध अर्थ निम्‍न प्रकार है - 1. गौत्र -  "प्रारंभ में जो ऋषि जिस वंश को चलाता है, वह ऋषि उस वंश का गौत्र माना जाता है। 2. वेद - "गौत्र प्रवर्तक ऋषि जिस वेद को चिन्‍तन, व्‍याख्‍यादि के अध्‍ययन एवं वंशानुगत निरन्‍तरता पढ़ने की आज्ञा अपने वंशजों को देता है, उस वंश का वही वेद माना जाता है। 3. उपवेद - "वेदों की सहायता के लिए कलाकौशल का प्रचार कर संसार की सामाजिक उन्‍नति का मार्ग बतलाने वाले शास्‍त्र का नाम उपवेद है। 4. शाखा - "प्रत्‍येक वेद में कई शाखायें होती हैं। जैसे ऋग्‍वेद की 21 शाखा, यजुर्वेद की 101 शाखा, सामवेद की 1000 शाखा, अथर्ववेद की 9 शाखा है। इस प्रकार चारों वेदों की 1131 शाखा होती है। प्रत्‍येक वेद की अथवा अपने ही वेद की समस्‍त शाखाओं को अल्‍पायु मानव नहीं पढ़ सकता, इसलिए महर्षियों ने 1 शाखा अवश्‍य पढ़ने का पूर्व में नियम बनाया था और अपने गौत्र में उत्‍पन्‍न होने वालों को आज्ञा दी कि वे अपने वेद की अमूक शाखा को अवश्‍य पढ़ा करें, इसलिए जिस गौत्र वालों को जिस शाखा के पढ़ने का आदेश दिया, उस गौत्र की वही शाखा हो गई। जैसे पराशर गौत्र का शुक्‍ल यजुर्वेद है और यजुर्वेद की 101 शाखा है। वेद की इन सब शाखाओं को कोई भी व्‍यक्ति नहीं पढ़ सकता, इसलिए उसकी एक शाखा (माध्‍यन्दिनी) को प्रत्‍येक व्‍यक्ति 1-2 साल में पढ़ कर अपने धर्म-कर्म में निपुण हो सकता है। 5. सूत्र  - "वेदानुकूल स्‍मृतियों में ब्राह्मणों के जिन षोडश (16) संस्‍कारों का वर्णन किया है, उन षोडश संस्‍कारों की विधि बतलाने वाले ग्रन्‍थ ऋषियों ने सूत्र रूप में लिखे हैं और वे ग्रन्‍थ भिन्‍न-भिन्‍न गौत्रों के लिए निर्धारित वेदों के भिन्‍न-भिन्‍न सूत्र ग्रन्‍थ हैं।   6. प्रवर - "वैदिक कर्म-यज्ञ-विवाहादिक में पिता, पितामह, प्रपितामहादि का नाम लेकर संकल्‍प पढ़ा जाता है (यह रीति कर्म-काण्डियों में अब भी विद्यमान है) इन्‍हें ही प्रवर कहते हैं। इनकी जानकारी के बिना कोई भी ब्राह्मण धर्म-कार्य का अधिकारी नहीं हो सकता, अत: इनका जानना भी अति आवश्‍यक है। 7. पाद - "वेद-स्‍मृतियों में कहे हुए धर्म-कर्म में पाद नवा कर बैठने की आज्ञा है। जिस गौत्र का जो पाद है, उसको उसी पाद को नवाकर बैठ कर वह कर्म करना चाहिये। 8. शिखा -  "जिस समय बालक का मुण्‍डन संस्‍कार होता है, उस समय बालक के‍ शिखा रखने का नियम है। जिनकी दक्षिण शिखा है, उनको दक्षिण तरफ और जिनकी वाम शिखा है, उनको वाम की तरफ शिखा रखवानी चाहिये। 9. देवता - "सृष्टि के आदि में ब्रह्माजी ने जिस देवता द्वारा ऋषियों को जिस वेद का उपदेश दिलवाया, उस वेद का वही देवता माना गया। जैसे – अग्निवायुरविभयस्‍तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्। दुदोह यज्ञसिद्धयर्थमृम्‍यजु: सामलक्षणम्।। (मनु: 1/23) अर्थ- अग्नि, वायु, सूर्य इन देवताओं से यज्ञ का प्रचार करने के लिए ऋक्, यजु:, साम इन तीन वेदों का प्रचार प्रजापति ने करवाया, इसिलये जिस वेद का जिस देवता ने प्रथम उपदेश दिया, उस वेद का वही देवता माना गया। इस प्रकार गौत्र, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र, प्रवर, शिखा, पाद और देवता इन 9 बातों को जानना प्रत्‍येक ब्राह्मण का धर्म है। इन्‍हीं 9 बातों के आधार पर महर्षियों ने नवगुणित यज्ञोपवीत का निर्माण किया गया था। यज्ञोपवीत (जनेऊ) 9 सूत्रों का होता है, जिसमें प्रत्‍येक सूत्र में इन्‍हीं देवताओं का आह्वान करके उसमें इनकी प्रतिष्‍ठा की जाती है।"       पारीकों की 108 और 103 शाखाओं की सामाजिक खोज -- पारीक समाज की शाखाओं के सम्‍बन्‍ध में विद्वानों ने जो मत व्‍यक्‍त किया है वह दृष्‍टव्‍य है। पारीक ब्राह्मणोंत्‍पत्ति के विद्वान लेखक श्री नारायण कठवड़ व्‍यास ने इस सम्‍बन्‍ध में विचार व्‍यक्‍त किया कि - 1. "सम्‍वत् 1300 वि. के आरम्‍भ में तावणा मिश्र (पारीक्षों के वत्‍स गौत्र की एक शाखा) श्री ज्ञानचूड़ जी ने संसार भ्रमण करके पता लगाकर यह निश्‍चय किया था कि पारीकों को 9 आस्‍पद, 12 गौत्र और 108 शाखायें विद्यमान हैं।" 2. "इसके बाद सम्‍वत् 1531 वि. में देवर्षि कठवड़ पराशर व्‍यास ने (जो जिलो पाटण राज्‍य के गुरू थे और ग्रंथ 'पारीक्ष ब्राह्मणोंत्‍पत्ति' लेखक के पूर्वजों में थे) लालचन्‍द्र नाम के पंडित को बहुत सा द्रव्‍य देकर पारीक्षों के आस्‍पद, गौत्र, शाखाओं का पता लगाने के‍ लिए अनेक देशों का भ्रमण करने के लिए भेजा। पण्डित लालचन्‍द्र जी ने मारवाड़, ढूंढाड़, शेखावटी, मथुरा, काशी, मालवा, मेवाड़ आदि देशों में भ्रमण किया और पता लगा कर यह निश्‍चय किया कि वर्तमान समय में पारीक्ष ब्राह्मणों के 9 आस्‍पाद, 12 गौत्र और 103 शाखायें विद्यमान हैं।" 3. "इसके बाद सम्‍वत् 1600 वि. ज्‍येष्‍ठ शुक्‍ला द्वितीया को सांगानेर में वरणाग जोशी जोगा जी के पुत्र छीतर मल जी की पु‍त्री सुभद्रा बाई (या सोतरा बाई) के विवाह में जोगा जी की प्रार्थनानुसार अकबर बादशाह की आज्ञा से उसके पुत्र जहांगीर ने समस्‍त भारतवर्ष में पारीक्षों को फरमान भेजकर बुलाया था और ये सब उस जोशी जी की पौत्री के विवाह में इकट्ठा हुए थे। तत् समय विवाह हो जाने के बाद 'पारीक्ष सरखत'  नाम का जातीय प्रबंध पत्र भी समस्‍त भारतवर्षीय पारीक्षों की सम्‍मति से कापडोदा जोशी गोकुल जी ने लिखा था "उस समय पारीक्षों की 103 शाखायें थी। श्री पारीक वंश परिचय पृष्‍ठ 176 पर इस सम्‍बन्‍ध में यह उल्‍लेख किया गया है कि बारहवीं शताब्‍दी में पारीक श्रीमान सेढू जी महाराज ने कूर्म वंशियों (कछवाहा) की पुरोहिताई का पुनरूद्धार किया। कालवंश पारीकों  की शाखायें जब जब लुप्‍त हुई हैं, तब-तब जाति हितैषी सज्‍जनों ने वंश के लिए किया है। तेरहवीं शताब्‍दी में तावणा मिश्र श्री ज्ञानचन्‍द्र जी ने समस्‍त शाखाओं की गणना करके उक्‍त शाखाओं का उद्धार किया" पारीक्ष संहिता पृष्‍ठ 50-53 पर इस सम्‍बन्‍ध में अंकित यह तथ्‍य भसी दृष्‍टव्‍य है - "मध्‍य देश में निषध नाम का देश है। वहां भूतर पर प्रसिद्ध नरवर नाम का एक नगर है। जहां पर परम धार्मिक राजा नल हुए थे। नल से तेईसवीं पीढ़ी में सोझदेव नाम के राजा हुए, इनका समय विक्रम की नवमी शताब्‍दी का समाप्ति काल है। उसके पारीक्ष जाति के ही सुधन्‍वा नाम के गुरू थे। सोढ़देव ने गुरू की आज्ञा से एक बड़ा यज्ञ किया था।" "उस यज्ञ में भारत के सब देशों से में निवास करनेवाले ब्राह्मणों को बुलाया गया था। कुछ विद्वान तो उस यज्ञ कर्म में भाग लेने के लिये ही आये थे और कुछ केवल दर्शन करने के लिये ही आये थे। सबसे प्रथम पारीक्ष ब्राह्मणों की गणना इसी यज्ञ में हुई थी। वहां इनके 9 आस्‍पद, 12 गौत्र और 108 शाखायें गिनी गई थी। इसके अनुसार विक्रम की 13वीं शताब्‍दी में तावणा मिश्र ज्ञानचूड़ जी हुए। उन्‍होंने भारत में सभी देशों में भ्रमण करके पारीक्ष ब्राह्मणों की यह संख्‍या निश्चित की। पारीक्षों के शासन 103 हैं। विक्रम सम्‍वत् 1531 में देवर्षि नाम के व्‍यास हुए। इन्‍होंने लालचन्‍द ब्रह्मभट्ट (राव) को धन देकर परीक्ष जाति की खोज करने के लिए देश देशान्‍तरों में भेजा था। लालचन्‍द ने भी सम्‍पूर्ण देशों में भ्रमण करके पारीक्ष ब्राह्मणों की गणना की।" वि. सं. 1531 में सेढू जी के वंशज देवऋषि जी ने जमुआरामगढ़ में भारी जाति सम्‍मेलन किया। उस समय उन्‍होंने अपने कुल गुरू (राय) लालचन्‍द जी से समस्‍त प्रान्‍तों के पारीक्षों की गणना कराई। उस समय पारीक्षों की घर संख्‍या 1,99,050 (उक्‍त सूचना के प्रेषक श्री नरसिंह जी शिवरतन जी तिवाड़ी नया शहर हैं) निश्चित की तथा पारीक्षों के शासन 103 हैं।       "इन्‍होंने नौ आस्‍पद और 12 गौत्र और उनके शासन 103 निश्चित किए। इसके अनन्‍तर विक्रय की 16वीं शता‍ब्‍दी में सांगानेर नाम के नगर में वरणा ज्‍योशियों में जोगा जी नाम के पारीक हुए। इनकी लड़की सुभद्राबाई के विवाह में आमेर से बारात आई। इस विवाह में भारत के सभी पारीक्ष ब्राह्मण एकत्रित हुए थे। इस समय इनके गौत्रादि की गणना हुई थी। इसी विवाह में सम्‍पूर्ण पारीक्ष ब्राह्मणों की सम्‍मति से जातीय प्रबन्‍ध पत्र (पारीख सरखत) लिखा गया था।" "उस समय भी पारीक्षों के गौत्रादि का यह निर्णय हुआ था क‍ि पारीक्षों में 12 गौत्र हैं, 9 आस्‍पद हैं और 103 शाखायें है। विशेषज्ञों ने इस प्रकार की गणना की थी।" "इसके अनन्‍तर सवाई जयसिंह नाम के राजा ने जयपुर नाम के नगर में 1645 विक्रम सम्‍वत् में अश्‍वमेघ यज्ञ किया था। इसमें भी पारीकों की गणना हुई थी तथा गणना करने पर पारीकों के 9 आस्‍पद और 12 गौत्र तथा 103 शाखायें निश्चित हुई थी। समय के अनुसार समय-समय पर पूर्वजों ने पारीक्ष ब्राह्मणों की गणाना की थी।" Posted 22nd August 2015 by Himanshu Pareek Labels: pareek samaj View comments Loading

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