Thursday 26 October 2017

सोहम का महत्व

Moments so Far ... "Sofar" captures the distance traveled so far from now. ▼ Tuesday, June 08, 2010 सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता है. आपके पास ढेर सारे प्रश्न होतें हैं, आपके सरे आश्चर्ये भय मैं ढक गए हैं. जब आप हमेसा आश्चर्ये मैं होतें हैं तब आप अपने से करीब होतें हैं. जब आप शंका करते हैं तो आप खुद से दूर होते जाते हैं. अपने जीवन मैं रस भरने के लिए योग का सहारा लेना ही होगा.   संख्या का महत्व हमने  नहीं जाना, अब विज्ञानं मैं विकास होने के बाद लगता है संख्या का संतुलन विश्व के अस्तित्व के लिए आवश्यक है. यह स्ट्रिंग थेओरी का तथ्य है. रूद्र पूजा मैं भी १,३,५,७ आदि गिनती होती है. कुछ लोग सोचते हैं कि अब पूजा पूरी हुई. उसके आलावा हम संसार कि हर वास्तु को नमस्ते करते हैं, यहाँ तक कि उन चीजों को भी करते हैं जो हमें तकलीफ देती हैं. जब हम एक होतें हैं तब हम सुखी होतें हैं. जैसे प्रीति मैं. अगर हम अपने प्रियेतम को अलग रखेंगे तो हमें कस्ट होगा, तब हम उसमें दोष ढूढेंगे ओर देखेंगे, लेकिन जब उन्हें खुद ही समझेंगे तो दोषमुक्त होंगे. उसी प्रकार हम अपने शरीर, मन ओर साँस को तीन सोचेंगे तो कस्ट मैं होंगे. मन कहीं ओर, सांसों कि लय कुछ ओर ओर शरीर की लय कुछ ओर. लेकिन जब तीनों को एक देखेंगे तब मन शरीर के साथ रहेगा ओर जहाँ भी शरीर मैं कस्ट होगा वहां सांसों को ले जाएगा ओर ठीक कर देगा. दिन के हर पल मैं तीनों मैं बदलाव आता है लेकिन अगर तीनों लय मैं ओर एक दुसरे के पास हों तो प्रीत होती है.  प्रकृति का नियम है की इच्क्षा प्रकट होने से पहले उसकी पूर्ती की तैयारी हो. जैसे की आपको पेट मैं दर्द है तो उसकी इच्क्षा आपने प्रकट की होगी तभी दर्द है. लेकिन आपको लगने लगा है की दर्द पहले हुआ अब मुझे इसका निवारण करना है, ओर उसके लिए आपका दृष्टीकोण बाह्ये होता है, आप दवाई के लिए बाहर भागते हैं. मंत्रों का अर्थ समझ मैं आये या नहीं लिकिन मंत्रो के स्नान से, ओर उन तरंगों मैं विलीन होने से भी उतनी शांति मिलती है. आँख बंद कर लो ओर उनमें डुबकी लगा लो, तार हो जोअगे. कुछ लोग चमत्कारों के पीछे भागते है, वहां जाने से पहले सतर्क रहना. हर पल एक चमत्कार है. प्रभु से उस बुद्धि की प्राथना करो जो तुम्हे इस चमत्कार से अवगत कराती रहे. यह नहीं की तुम्हारी सांसें चमत्कार हो ओर तुम हिमालय मैं खोज रहे हो की प्रभु कुछ तो दिखायो की मैं मंत्र मुग्ध हो जाऊं. Dhaval Sharma at 11:51 AM Share ‹ › Home View web version Powered by Blogger.

No comments:

Post a Comment