Saturday, 28 October 2017

 त्रयी तत:॥स्कन्दपुराण

Skip to content PILGRIMAGE FACEBOOK LINKEDIN TWITTER INSTAGRAM VISHNU SAHASTR NAM STROTR विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र SHRI KRASHN WORSHIP PRAYERS श्री कृष्ण आराधना TEN MAHA VIDYA दस महा विधा MORNING & EVENING PRAYERS सन्ध्योपासना PROTECTION FROM GHOSTS, EVIL SPIRITS भूत-प्रेत-पिशाच से रक्षा PROTECTION BY BHAERVI SHIELD भैरवी कवच MAHISASUR MARDINISTOTRAM महिषासुरमर्दिनिस्तोत्रम् RUDRASHTAK रुद्राष्टक PANCH KOSHI SADHNA पंचकोशी साधना PANCH KARM पंच कर्म GAYATRI MANTR गायत्री-सावित्री मंत्र FIVE FORMS OF PRAYER 5 प्रकार की पूजा HAWAN हवन YAGY यज्ञ ARTI MAA GOURI आरती माँ गौरी HOUSE INAUGURATION गृह प्रवेश SHRI CHANDI DAWAJ STROTR श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् PROCEDURE FOR SACRIFICIAL PRAYERS देव पूजन विधि तंत्र-मंत्र (1) :: TANTR SADHNA तंत्र साधना HOMAGE TO MANES-PITRES तर्पण-श्राद्ध SCRIPTURES शास्त्र :: आगम और निगम  SAFED AK-SHWETARK सफ़ेद आक-श्वेतार्क :: (साधना-उपचार) MAHA LAKSHMI VRAT KATHA महालक्ष्मी व्रत कथा  SATY NARAYAN VRAT KATHA सत्य नारायण व्रत कथा SHARAD PURNIMA VRAT KATHA शरद पूर्णिमा व्रत कथा MANGLA GOURI VRAT KATHA मंगला गौरी व्रत कथा SHRI SATY NARAYAN BHAGWAN ARTI श्री सत्य नारायण भगवान् आरती  PRADOSH VRAT प्रदोष व्रत SHRI KRASHN JANMASHTAMI श्री कृष्ण जन्माष्टमी PENANCES  प्रायश्चित्त तंत्र-मंत्र (2) :: MESMERISM वशीकरण तंत्र-मंत्र (3) :: DIVINE REMEDIES मंत्रोपचार तंत्र मंत्र (4) :: दुर्गा सप्तशती DHARM VIDYA धर्मविद्या ABOUT THE EXPERT :: This is a text widget, which allows you to add text or HTML to your sidebar. You can use them to display text, links, images, HTML, or a combination of these. Edit them in the Widget section of the Customizer. GAYATRI MANTR गायत्री-सावित्री मंत्र GAYATRI MANTR गायत्री-सावित्री मंत्र  CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM By :: Pt. Santosh  Bhardwaj dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com  santoshhastrekhashastr.wordpress.com  santoshkipathshala.blogspot.com     santoshsuvichar.blogspot.com    santoshkathasagar.blogspot.com   bhartiyshiksha.blogspot.com       bhagwatkathamrat.wordpress.com     (1). यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों मे केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था और संपूर्ण ऋग्वेद के 10 सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में 24 अक्षर हैं। उनमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप  स्थिर हुआ।  ॐ भूर्भुव स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं।भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात्॥ उस प्राण स्वरूप, दुखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अंतर आत्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्वि को सन्मार्ग मे प्रेरित करे। मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है। ब्रह्मा जी के कथनानुसार :- ब्रह्म ज्ञान (गायत्री) की उत्पत्ति स्वयम्भू भगवान् विष्णु की अंगुलियाँ मथने से जल उत्पन्न हुआ। जल से फेन निकला। फेनों से बुद्बुद्ध की उत्पत्ति हुई। उससे अण्ड की और अण्ड से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। उनसे वायु निकला।अग्नि की उत्पत्ति उससे ही हुई। अग्नि से ओङ्कार उत्पन्न हुआ। ओङ्कार से व्याहृति उत्पन्न हुईं। व्याहृति से गायत्री पैदा हुईं और गायत्री से सावित्री। उनसे सरस्वती। सरस्वती से सभी वेद उत्पन्न हुए। वेदों से सभी लोक हुए और उनसे सभी प्राणी हुए। इसके बाद गायत्री और व्याहृतियाँ प्रवृत्त हुईं। गायत्री दो प्रकार की होती है :– लौकिक और वैदिक। लौकिक गायत्री में चार चरण होते हैं तथा वैदिक गायत्री में तीन चरण होते हैं। इसी कारणवश गायत्री का नाम त्रिपदा भी है। त्रिपदा गायत्री के ऋषि विश्वामित्र हैं। परमसत्ता धर्मी, शक्ति या शक्तिमान् की जो इच्छा, ज्ञान और क्रिया इस गुणत्रय से सम्पन्न है और जो ज्योति: स्वरुप है उसकी मैं उपासना करता हूँ। त्रिपदा गायत्री के :– भूमि, अन्तरिक्ष और स्वर्ग ये अष्टाक्षर कहलाते है। गायत्री का प्रत्येक पाद आठ अक्षरों का है :– भू:, भुव: और स्व: यह तीनो लोक परिन्त विराजमान हैं। ऋच: यजूंषि ओर सामानि ये अष्टाक्षर भी गायत्री की एक पदत्रयी विद्या है। प्राणों का नाम गय है। उनका त्राण करने से ही गायत्री कहलाती है। गायत्री के भिन्न–भिन्न 24 अक्षर इस प्रकार है :– ऊँ (1). त, (2). त्स, (3). वि, (4). तु, (5). र्व, (6). रे, (7). णि, (8). यं। ऊँ (9). भ, (10). र्गो, (11). दे, (12). व, (13). स्य, (14). धी, (15). म, (16). हि। ऊँ (17). धि, (18). यो, (19). यो, (20). न:, (21). प्र, (22). चो, (23). द, (24). यात् ।    ॥ ऊँ नम:॥  मुक्ताविद्रुमहेमनील धवलच्छायैमु‍र्खैस्त्रीक्षणैयु‍र्क्ता मिन्दुनिबद्धरत्नमुकुटां तत्वार्थवर्णात्मिकाम्।  गायत्रीं वरदाभयाडंकुशकषा: षुभ्रं कपालं गुणं, षंखं चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे॥  यह पॉंच सिर वाली है (जो पंच ज्ञानेन्द्रियों के बोधक) तथा प्रधान पंच प्राणधारिणी है। इन पंच प्राणों के पंच वर्ण हैं। एक मोती जैसा, दूसरा विद्रुम मणि जैसा तीसरा सुवर्ण जैसा, चौथा नीलमणि जैसा और पॉंचवा धवल अर्थात् गौरवपूर्ण का है। इसके तीन आँखें हैं अर्थात् (अ–उ–म् :: ऊॅं) प्रणव के वर्ण–त्रय के अनुसार वेदत्रय अर्थात् रसवेद, विज्ञानवेद और छन्दोवेद सम्बद्ध, ऋक, यजु: और साम वेदात्मक तीन नयन अर्थात् ज्ञानवाली या त्रिविद्यावाली है। इसी को दूसरे प्रकार से श्रुति कहती है कि ये नाद, बिन्दु और कला के द्योतक है। इसके मुकुट पर, जो रत्न–मंडित है, वह चन्द्र है अर्थात् ज्योतिर्मयी आद्यषक्ति अमृत वर्शिणी है, ऐसा बोध है। तत्व वर्णात्मिका है अर्थात् चौबीस अक्षर वाली गायत्री चतुविशंति तत्वों की बनी हुई पूर्ण अर्थात् सत् चिद् ब्रा स्वरुपिणी है। यहॉ गायत्री में तीन अक्षर हैं :– ग+य+त्र। ग से ‘गति‘ ‘य‘ तथा ‘त्र‘ से ‘यात्री‘ अर्थात् यात्री की गति हो, वह ‘गायत्री‘ है। ‘ग‘ से गंगा, ‘य‘ से यमुना और ‘त्र‘ से त्रिवेणी। ये तीनों हिन्दू के पवित्र तीर्थ माने जाते हैं। दसों भुजायें कर्मेन्द्रियों और विषयों की द्योतक है। दक्षिण पाँचों भुजाएँ, वाक्, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ की द्योतक है तथा बॉंई–पाँचों भुजाएँ वचन, आदान, विहरण, उत्सर्ग और आनन्द विशयक रुप है। ये दसों आयुध इनके कर्म करण रुप हैं। ऐसी ही रुप–कल्पना परा प्राण शक्ति या परमात्मा की भी है और अपरा, चन्चला, माध्यमा, प्राणशक्ति या जीवात्मा की भी है। श्रुति भी कहती है कि ‘‘गायत्री वा इदं सर्वम्‘‘ गायत्री ही सब कुछ है। व्युत्पत्ति शास्त्र की दृष्टि से गायत्री वह है जो इसके साधक को सभी प्रकार की मलिनता तथा पापों से बचाये एवं संरक्षण करे। कहा गया हे कि ‘गायन्तं त्रायते इति गायत्री‘। गायत्री मन्त्र भी है और प्रार्थना है जिसमें उपासक केवल अपने लिये ही नहीं, सभी के लिये ज्ञान की ज्योति पाने हेतु प्रार्थना करता है । देवियों में स्थान ::  गयत्र्येव परो विश्णुगायित्र्व पर: षिव:। गायत्र्येव परो ब्राा, गायत्र्येव त्रयी तत:॥स्कन्दपुराण॥   गायत्री ही परमात्मा विष्णु है, गायत्री ही परमात्मा शिव है और गायत्री ही परमात्मा परम् ब्रह्म है। अत: गायत्री से ही तीनों वेदों की उत्पत्ति हुई है। भगवती गायत्री को सावित्री, ब्राागायत्री, वेदमाता, देवमाता आदि के नाम से मनुष्य ही नही अपितु देवगण भी सम्बोधित करते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि, गायत्री वेदों की माता है और गायत्री से ही चारो वेदों की उत्पत्ति हुई है। यह सब ब्रह्माण्ड गायत्री ही है। वेद, उपनिशद्, वेदों की शाखाएं, ब्रााण ग्रन्थ, पुराण और धर्मशास्त्र ये सभी गायत्री के कारण पवित्र माने जाते हैं। अनेक शास्त्र, पुराणादि के कीर्तन करने पर भी ये सभी शास्त्र गायत्री के द्वारा ही पावन होते हैं। गायत्री मन्त्र के जप में भगवत् तत्व को प्रकट करने की रहस्यमयी क्षमता है। मन्त्र के जप से हृदय की ग्रंथियों का भेदन होता है, सम्पूर्ण दु:ख छिन्न–भिन्न हो जाते हैं और सभी अवशिष्ट कर्मबन्धन विनिष्ट हो जाते हैं। Gayatri is Tri Pada :- a Trinity, since being the Primordial Divine Energy, it is the source of three cosmic qualities known as “Sat”, “Raj” and “Tam” representing spirituality by the deities “Saraswati” or “Hreem”. “Lakshmi” or “Shreem” and “Kali” or “Durga” as “Kleem”. Incorporation of “Hreem” in the soul augments positive traits like wisdom, intelligence, discrimination between right and wrong, love, self-discipline and humility. Yogis, spiritual masters, philosophers, devotees and compassionate saints derive their strength from Saraswati. (2). ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥ om bhoor bhuvah svah Tat savitur varenyam bhargo devasy dheemahi dhiyo yo nah prachodayat. हे ! पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल लोक के प्रकाशक, सबसे उत्तम, सूर्य की भाँति उज्जवल, कर्मों का उद्धार करने वाले, आत्म चिंतन और बुद्धि में धारण-ध्यान करने के योग्य  परमात्मा, हमें शक्ति दें।  Hey Almighty! The one who has to be meditated through intelligence, spreading radiance-lustre-brilliance to the three abodes :- The earth, The Heaven & The Nether world; shinning like the Sun, kindly grant me strength to liberate from the impact of deeds.  उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पाप नाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें। यह मंत्र ऋग्वेद में उद्धृत है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों मे केवल एक है। इसकी महिमा का अनुभव ऋषियों ने किया। संपूर्ण ऋग्वेद के 10 सहस्र मंत्रों में से इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में 24 अक्षर हैं। उनमें आठ आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप :: (1), ॐ,  (2). भूर्भव: स्व: और (3). तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है। गायत्री एक ओर विराट् विश्व और दूसरी ओर मानव जीवन, एक ओर देवतत्व और दूसरी ओर भूततत्त्व, एक ओर मन और दूसरी ओर प्राण, एक ओर ज्ञान और दूसरी ओर कर्म के पारस्परिक संबंधों की पूरी व्याख्या कर देती है। इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं, उनमें सविता वह रूप है जो समस्त देवों को प्रेरित करता है। जाग्रत् में सवितारूपी मन ही मानव की महती शक्ति है। जैसे सविता देव है, वैसे मन भी देव है [देवं मन: ऋग्वेद, 1.164.18]। मन ही प्राण का प्रेरक है। मन और प्राण के इस संबंध की व्याख्या गायत्री मंत्र को इष्ट है। सविता मन प्राणों के रूप में सब कर्मों का अधिष्ठाता है, यह सत्य और प्रत्यक्ष सिद्ध है। इसे ही गायत्री के तीसरे चरण में कहा गया है। ब्राह्मण ग्रंथों की व्याख्या है :- कर्माणि धिय:, अर्थातृ जिसे हम धी या बुद्धि तत्त्व कहते हैं, वह केवल मन के द्वारा होनेवाले विचार या कल्पना सविता नहीं किंतु उन विचारों का कर्मरूप में मूर्त होना है। यही उसकी चरितार्थता है। किंतु मन की इस कर्म क्षम शक्ति के लिए मन का सशक्त या बलिष्ठ होना आवश्यक है। उस मन का जो तेज कर्म की प्रेरणा के लिए आवश्यक है, वही वरेण्य भर्ग है। मन की शक्तियों का तो पारवार नहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिए सक्षम बना पाता है, वहीं उसके लिए उस तेज का वरणीय अंश है। अतएव सविता के भर्ग की प्रार्थना में विशेष ध्वनि यह भी है कि सविता या मन का जो दिव्य अंश है, वह पार्थिव या भूतों के धरातल पर अवतीर्ण होकर पार्थिव शरीर में प्रकाशित हो। गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पाई जाती। यहाँ एक मात्र अभिलाषा यही है कि मानव को ईश्वर की ओर से मन के रूप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है, उसी के द्वारा वह उसी सविता का ज्ञान करे और कर्मों के द्वारा उसे इस जीवन में सार्थक करे। गायत्री के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं। “भू”:- पृथ्वी लोक, ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है। “भुव:” अंतरिक्ष लोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है। “स्व:” द्युलोक, सामवेद, आदित्य देवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है। इस त्रिक के अन्य अनेक प्रतीक ब्राह्मण, उपनिषद् और पुराणों में कहे गए हैं, किंतु यदि त्रिक के विस्तार में व्याप्त निखिल विश्व को वाक के अक्षरों के संक्षिप्त संकेत में समझना चाहें तो उसके लिए ही यह ॐ संक्षिप्त संकेत गायत्री के आरंभ में रखा गया है। अ, उ, म इन तीनों मात्राओं से ॐ का स्वरूप बना है। अ अग्नि, उ वायु और म आदित्य का प्रतीक है। यह विश्व प्रजापति की वाक है। वाक का अनंत विस्तार है, किंतु यदि उसका एक संक्षिप्त प्रतीक लेकर सारे विश्व का स्वरूप बताना चाहें तो अ, उ, म या ॐ कहने से उस त्रिक का परिचय प्राप्त होगा, जिसका स्फुट प्रतीक त्रिपदा गायत्री है। ॐ ::  प्रणव; ओउम OM. I adore the Divine Self, who illuminates the three abodes :- Earth, Heaven & the Nether world physical, astral and causal; I offer my prayers to that God who shines like the Sun. May He enlighten our intellect. Pranav or Omkar Mantr consisting of the vowels a and u and the consonant `m’. It refers to the Almighty, OM, Brahmn; भूर :- मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला; भुवः :- दुख़ों का नाश करने वाला, The Earth and the world immediately above the earth; स्वः :- सुख़ प्रदान करने वाला one’s own; तत्सवितुर्वरेण्यं; That all creating great person in the form of sun; तत् :- वह; सवितुर :- सूर्य की भांति उज्जवल, वरेण्यं :- सबसे उत्तम, भर्गो :- कर्मों का उद्धार करने वाला, radiance; lustre; brilliance; देवस्य :- प्रभु, intellect and mind; धीमहि :- आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान), May meditate; धियो :- बुद्धि, यो :- जो, He who; नः :- हमारी, us; to us or ours, प्रचोदयात् :- हमें शक्ति दें (प्रार्थना), inspire; kindle, urge, induce. गायत्रीमन्त्राः  सूर्य :: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥ ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात्॥ ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥ ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥ ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि तन्न आदित्यः प्रचोदयात्॥ ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥ ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥ ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥ चन्द्र :: ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात्॥ ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात्॥ ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात्॥ अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज :: ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्॥ ॐ अङ्गारकाय विद्महे भूमिपालाय धीमहि तन्नः कुजः प्रचोदयात्॥  ॐ चित्रिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्॥  ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्॥ बुध :: ॐ गजध्वजाय विद्महे सुखहस्ताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात्॥ ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात्॥ ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात्॥ गुरु :: ॐ वृषभध्वजाय विद्महे क्रुनिहस्ताय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥ ॐ सुराचार्याय विद्महे सुरश्रेष्ठाय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥  शुक्र :: ॐ अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्॥ ॐ रजदाभाय विद्महे भृगुसुताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्॥ ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्॥ शनीश्वर, शनैश्चर, शनी :: ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात्॥ ॐ शनैश्चराय विद्महे सूर्यपुत्राय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात्॥ ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः सौरिः प्रचोदयात्॥  राहु :: ॐ नाकध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात्॥ ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात्॥ केतु :: ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात्॥ ॐ चित्रवर्णाय विद्महे सर्परूपाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात्॥ ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात्॥ पृथ्वी :: ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्रमर्त्यै च धीमहि तन्नः पृथ्वी प्रचोदयात्॥ ब्रह्मा :: ॐ पद्मोद्भवाय विद्महे देववक्त्राय धीमहि तन्नः स्रष्टा प्रचोदयात्॥ ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥ ॐ वेदात्मनाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥ ॐ चतुर्मुखाय विद्महे कमण्डलुधराय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥ ॐ परमेश्वराय विद्महे परमतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥ विष्णु :: ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥ नारायण :: ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥ वेङ्कटेश्वर :: ॐ निरञ्जनाय विद्महे निरपाशाय धीमहि तन्नः श्रीनिवासः प्रचोदयात्॥ राम :: ॐ रघुवंश्याय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्॥ ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्॥  ॐ भरताग्रजाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्॥ ॐ भरताग्रजाय विद्महे रघुनन्दनाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्॥ कृष्ण :: ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ ॐ दामोदराय विद्महे रुक्मिणीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ ॐ गोविन्दाय विद्महे गोपीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्। गोपाल :: ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात्॥ पाण्डुरङ्ग :: ॐ भक्तवरदाय विद्महे पाण्डुरङ्गाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ नृसिंह :: ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि तन्नो नारसिꣳहः प्रचोदयात्॥ ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नः सिंहः प्रचोदयात्॥ परशुराम :: ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नः परशुरामः प्रचोदयात्॥ इन्द्र :: ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात्॥ हनुमान :: ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात्॥ ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात्॥ मारुती :: ॐ मरुत्पुत्राय विद्महे आञ्जनेयाय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात्॥  दुर्गा :: ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥ ॐ महाशूलिन्यै विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात्॥  ॐ गिरिजायै च विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥ शक्ति :: ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात्॥ काली :: ॐ कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै च धीमहि तन्न अघोरा प्रचोदयात्॥ ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि तन्नः कालीः प्रचोदयात्॥  देवी :: ॐ महाशूलिन्यै च विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात्॥ ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराज्ञै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥ गौरी :: ॐ सुभगायै च विद्महे काममालिन्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥ लक्ष्मी :: ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीश्च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥ ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥ सरस्वती :: ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात्॥ सीता :: ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै च धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात्॥ राधा :: ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्॥ अन्नपूर्णा :: ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्न अन्नपूर्णा प्रचोदयात्॥ तुलसी :: ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि तन्नो बृन्दः प्रचोदयात्॥  महादेव :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥  रुद्र :: ॐ पुरुषस्य विद्महे सहस्राक्षस्य धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ शङ्कर :: ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि तन्नः साम्बः प्रचोदयात्॥ नन्दिकेश्वर :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नन्दिकेश्वराय धीमहि तन्नो वृषभः प्रचोदयात्॥  गणेश :: ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥ ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥ ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥ षण्मुख :: ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः स्कन्दः प्रचोदयात्॥ ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षष्ठः प्रचोदयात्॥ सुब्रह्मण्य :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षण्मुखः प्रचोदयात्॥ ॐ ॐ ॐकाराय विद्महे डमरुजातस्य धीमहि! तन्नः प्रणवः प्रचोदयात्॥ अजपा :: ॐ हंस हंसाय विद्महे सोऽहं हंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥ दक्षिणामूर्ति :: ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात्॥ गुरु :: ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्मणे धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥ हयग्रीव :: ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥ अग्नि :: ॐ रुद्रनेत्राय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो वह्निः प्रचोदयात्॥ ॐ वैश्वानराय विद्महे लाललीलाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात्॥ ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमथनाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात्॥ ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात्॥ ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात्॥ ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्॥ यम :: ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्॥ वरुण :: ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात्॥ वैश्वानर :: ॐ पावकाय विद्महे सप्तजिह्वाय धीमहि तन्नो वैश्वानरः प्रचोदयात्॥ मन्मथ :: ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पवनाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात्॥ हंस :: ॐ हंस हंसाय विद्महे परमहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥ ॐ परमहंसाय विद्महे महत्तत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥ नन्दी :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नन्दिः प्रचोदयात्॥ गरुड :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात्॥ सर्प :: ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नः सर्पः प्रचोदयात्॥ पाञ्चजन्य :: ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शङ्खः प्रचोदयात्॥ सुदर्शन :: ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्॥     आकाश :: ॐ आकाशाय च विद्महे नभोदेवाय धीमहि तन्नो गगनं प्रचोदयात्॥ अन्नपूर्णा :: ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्नोऽन्नपूर्णा प्रचोदयात्॥ बगलामुखी :: ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥ बटुकभैरव :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे आपदुद्धारणाय धीमहि तन्नो बटुकः प्रचोदयात्॥ भैरवी :: ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥ भुवनेश्वरी :: ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥  छिन्नमस्ता :: ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥ दक्षिणामूर्ति :: ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात्॥ देवी :: ॐ देव्यैब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥ धूमावती : ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात्॥ दुर्गा :: ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥ ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥ गणेश :: ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥ ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥ गरुड :: ॐ वैनतेयाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपर्णाय (सुवर्णपक्षाय) धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥ गौरी :: ॐ गणाम्बिकायै विद्महे कर्मसिद्ध्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥ ॐ सुभगायै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥ गोपाल :: ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥ 130 गुरु :: ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥  हनुमत् :: ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥ ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात्॥ हयग्रीव :: ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥ इन्द्र, शक्र :: ॐ देवराजाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नः शक्रः प्रचोदयात्॥ ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात्॥ जल :: ॐ ह्रीं जलबिम्बाय विद्महे मीनपुरुषाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥ ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नस्त्वम्बु प्रचोदयात्॥ जानकी :: ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात्॥ जयदुर्गा :: ॐ नारायण्यै विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥ काली ॐ कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नोऽघोरा प्रचोदयात्॥ काम :: ॐ मनोभवाय विद्महे कन्दर्पाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात्॥ ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात्॥ ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात्॥ कामकलाकाली ॐ अनङ्गाकुलायै विद्महे॥ ॐ दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥ ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्ण: प्रचोदयात॥  Advertisements SHARE THIS: TwitterFacebook2Google PRAYERS प्रार्थना Search for: Search … TEXT WIDGET About the expert (Edit) Pt. Santosh Bhardwaj, is a retired Senior Secondary School Principal & a teacher by profession, with over 45 years of experience in the field of Palmistry, Neurology, Vastu, Faith Healing, Psycho-analyst, a Family counsellor blessed with the knowledge of Tantr-Mantr. He is based out of NOIDA, India; a suburb of New Delhi, the capital city of India. His deep interest in the subject reflects in every interaction that you have with him on the subject. Mostly his interest lies in providing guidance when required and helping you take the right decisions when the path looks dark. The list of people who reach him for a consultation is endless and he has been providing guidance to people from all over the world, mostly India and UK in particular.Photo: He also gives lessons to people who are interested in learning more about the Science and Art of Palmistry. The work on TREATISE ON PALMISTRY IS ALMOST COMPLETE. Mr. Bhardwaj can be contacted on +91 98180 25009 or skbhardwaj51@gmail.com for consultation with prior appointment. His other interests are reading, writing, gardening and photography. His contribution to Dharm can be assessed over :: santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com hindutv.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com hinduism.blog.com santoshhindukosh.blogspot.com His wife, Mrs. Mithilesh Bhardwaj is a retired lecturer by profession and his son, Prashant Bhardwaj (IT Services Consultant and Social Documentary Photo Artist) complete his small family. Prashant’s photography endeavours are available over :: Prashant is an experienced & matured photographer, acquainted with latest trends in photography. Knot Just Pictures @KnotJustPictures Spam Blocked 113 spam blocked by Akismet SEARCH Search for: Search … TEXT WIDGET This is a text widget, which allows you to add text or HTML to your sidebar. 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