Sunday 29 October 2017

कर्म, उपासना, ज्ञान को मुक्ति का मार्ग

Aryamantavya Search PRIMARY MENUSKIP TO CONTENT ACHARYA SOMDEV JI, IMP, शंका समाधान, हिन्दी मुक्ति-महर्षि ने कर्म, उपासना, ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया, जबकि कपिलमुनि ने ज्ञान से मुक्ति मानी है तथा गीता में कर्म और ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया है। कृपया स्पष्ट करें कि ज्ञान मुक्ति का मार्ग है या कर्म-ज्ञान दोनों। APRIL 20, 2017 AMIT ROY LEAVE A COMMENT जिज्ञासा-  इसी अंक पृष्ठ 33 पर जिज्ञासा-समाधान-103 पर मुक्ति–महर्षि ने कर्म, उपासना, ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया, जबकि कपिलमुनि ने ज्ञान से मुक्ति मानी है तथा गीता में कर्म और ज्ञान को मुक्ति का मार्ग बताया है। कृपया स्पष्ट करें कि ज्ञान मुक्ति का मार्ग है या कर्म-ज्ञान दोनों। समाधान- (ख)मुक्ति दुःखों से छूटने का नाम है। दुःख से पूर्णतः छूटना यथार्थ ज्ञान से ही हो सकता है। कर्म, उपासना से दुःख को दबाया जा सकता है, कम किया जा सकता है, किन्तु सर्वथा नहीं हटाया जा सकता, दुःख को सर्वथा तो ज्ञान से ही हटाया जा सकता है। जिस दिन ज्ञान से दुःख को पूर्णरूप से दूर कर दिया जायेगा, उस दिन मुक्ति की भी अनुभूति होगी। योगदर्शन के अन्दर दुःख का हेतु अविद्या कहा है- ‘तस्यहेतुरविद्या’। दुःख का कारण अन्य कुछ नहीं कहा। जब दुःख का कारण अविद्या है तो अर्थापत्ति से दुःख के हटने का नियत कारण विद्या ही होगा। इसी बात को महर्षि कपिल ने सांखयदर्शन में कहा है ‘ज्ञानान्मुक्तिः’ज्ञान से मुक्ति होती है, इसी बात को अन्य शास्त्र भी पुष्ट करते हैं। ज्ञान से ही मुक्ति होती है यह बात भक्ति-मार्गी तथा कर्ममार्गियों को नहीं पचती। उनको लगता है कि यह बात तो विपरीत है। कुछ लोग उपासना को ही प्रधान बनाकर चलते हैं। उनको उपासना ही मुक्ति का मार्ग दिखता है, किन्तु वे यह नहीं जानते कि बिना ज्ञान के परिष्कृत हुए उपासना भी ठीक-ठीक नहीं होने वाली, उपासना का स्तर नहीं बढ़ने वाला। जब तक व्यक्ति के सिद्धान्त परिष्कृत नहीं होंगे, तब तक वह कैसे ठीक-ठीक उपासना कर सकता है। हाँ, अपने आधे-अधूरे ज्ञान के बल पर उपासना करता है और उसी में सन्तुष्ट रहने लगता है तो वह कैसे आगे प्रगति कर सकता है। यदि व्यक्ति ठीक-ठीक उपासना करता है तो उसको ज्ञान के महत्त्व का भी पता लगेगा और वह ज्ञान प्राप्ति के लिए अधिक प्रयत्नशील रहेगा। ज्ञान का तात्पर्य यहाँ केवल शाबदिक ज्ञान से नहीं है। अपितु यथार्थ ज्ञान, तात्विक ज्ञान से है। जब यथार्थ ज्ञान होता है, तब हमारे अन्दर के क्लेश परेश्वर के सहयोग से क्षीण होने लगते हैं। क्षीण होते-होते सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, दग्धबीजभाव को प्राप्त हो जाते हैं, ऐसी अवस्था में मुक्ति होती है। जैसे भक्तिमार्गी ज्ञान की आवश्यकता नहीं समझते, ऐसे ही कर्ममार्गी भी ज्ञान को आवश्यक नहीं मानते। उनका कथन होता है कि कर्म करते रहो, मुक्ति अपने आप हो जायेगी। उनका यह कहना अधूरी जानकारी का द्योतक है। यथार्थ ज्ञान के बिना शुद्ध-कर्म कैसे होगा? इसलिए ऋषियों की मान्यता के अनुसार ज्ञान से ही मुक्ति होती है। इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं कि कर्म और उपासना को छोड़ देना चाहिए। शुद्ध कर्म-उपासना हमारे अन्तःकरण को पवित्र करते हैं। पवित्र अन्तःकरण ज्ञान को ग्रहण करने में अधिक समर्थ होता जाता है। जैसे-जैसे यथार्थ ज्ञान होता जायेगा, वैसे-वैसे साधक मुक्ति की ओर अग्रसर होता चला जायेगा। गीता के हवाले से जो बात आपने कही है, तो गीता में भी यत्र-तत्र ज्ञान को ही महत्त्व दिया है। कुछ प्रमाण गीता से ही- न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। तत्स्वं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।    – 4.38 यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन। ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरूते तथा।। – 4.37 तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः। छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत।।     – 4.42 तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एक भक्तिर्विशिष्यते। प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।   – 7.27 गीता के इन सभी श्लोकों में ज्ञान को श्रेष्ठ कहा है, ज्ञान की महिमा कही है। इसलिए शास्त्र के मत में तो ज्ञान से ही मुक्ति होती है। इसमें न तो कोई ज्ञान के साथ लगकर मुक्ति देने वाला है और न ही ज्ञान का कोई विकल्प है। अस्तु SHARE THIS: TwitterFacebookGoogleEmailPrint Related क्या यम-नियम का पालन करने वाले व धार्मिक सेवा कार्य में लगे हुए व्यक्ति को मुक्ति मिलेगी?: आचार्य सोमदेव जी February 23, 2016 In "पाखण्ड खंडिनी" (1) मेरी शंका है कि जब जीवात्मा श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना अथवा योग बल से मोक्ष प्राप्त करके ईश्वर के साथ आनन्द भोगता है। फिर अवधि पूर्ण होने पर वापिस संसार में आकर एक सामान्य परिवार में जन्म लेता है, जबकि उसने तो श्रेष्ठ ज्ञान, कर्म, उपासना की है। उसे तो श्रेष्ठ तथा धार्मिक उच्च कुल में जन्म मिलना चाहिए। कृपया मेरी शंका दूर कीजिए। March 15, 2016 In "Acharya Somdev jI" ऋषि दयानन्द की दृष्टि में मुक्ति May 4, 2017 In "Dr. Dharmveer Paropkarini Sabha Ajmer" MUKTI KAA MARG Post navigation PREVIOUS POST The Uttarakhand woman further said it was better to convert and adopt Hinduism than to face injustice due to `triple talaq` system. 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O man, this visible poem of God neither dies nor ages. — Veda Next quote » DAYANAND SAGAR RECENT COMMENTS प्रेम आर्य on …वैदिक ईश्वर Shyam kumar ariya on …वैदिक ईश्वर प्रेम आर्य on वैदिक ईश्वर Shyam kumar ariya on वैदिक ईश्वर प्रेम आर्य on अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद: LIKE US TOP POSTS मैंने इस्लाम क्यों छोड़ा......... ब्रह्मकुमारी का सच : आचार्य सोमदेव जी मृत्यु के बाद आत्मा दूसरा शरीर कितने दिनों के अन्दर धारण करता है? आचार्य सोमदेव जी परोपकारिणी सभा आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था उचित नहीं, क्यों? और विकल्प हिन्दू शब्द का अर्थ - अरबी - फ़ारसी - लिपियों - व्याख्याकारों के संग्रह से - लव कुश के जन्म की यथार्थ कहानी.... इस्लाम में नारी की स्थिति - २ :- कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश ईसा (यीशु) एक झूठा मसीहा है - पार्ट 1 आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, इन दोनों का आपस में सबन्ध क्या है । क्या आर्य विदेशी थे ? 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