Saturday 28 October 2017

गायत्री साधना

All World Gayatri Pariwar Books गायत्री की परम... गायत्री साधना से... 🔍 INDEX गायत्री की परम कल्याणकारी सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि गायत्री साधना से अनेकों प्रयोजनों की सिद्धि   |     | 11  |     |   गायत्री- मन्त्र सर्वोपरि मन्त्र है ।। इससे बड़ा और कोई मन्त्र नहीं। जो काम संसार के किसी अन्य मंत्र से नहीं हो सकता है, वह निश्चित रूप से गायत्री द्वारा हो सकता है। दक्षिण मार्गी योग साधक वेदोक्त पद्धति से जिन कार्यों के लिए अन्य किसी मन्त्र से सफलता प्राप्त करते हैं, वे सब प्रयोजन गायत्री से पूरे हो सक ते हैं। इसी प्रकार वाममार्गी तान्त्रिक जो कार्य तन्त्र- प्रणाली से किसी मन्त्र के आधार पर करते हैं, वह भी गायत्री द्वारा किये जा सकते हैं। यह एक प्रचण्ड शक्ति है जिसे जिधर भी लगा दिया जायेगा, उधर ही चमत्कारी सफलता मिलेगी ।। अन्य कर्मों के लिए, सकाम प्रयोजनों के लिए अनुष्ठान करना आवश्यक होता है। सवा लक्ष का पूर्ण अनुष्ठान चौबीस हजार का आंशिक अनुष्ठान अपनी- अपनी मर्यादा के अनुसार फल देते हैं। ‘‘जितना गुड़ डालो उतना मीठा’’ वाली कहावत उस क्षेत्र में भी चरितार्थ होती है। साधना और तपश्चर्या द्वारा जो आत्म- बल संग्रह किया गया है, उसे जिस काम में भी खर्च किया जायेगा, उसका प्रतिफल अवश्य मिलेगा। बन्दूक उतनी ही उपयोग सिद्ध होगी, जितने बढ़िया और जितने अधिक कारतूस होंगे। गायत्री की प्रयोग- विधि एक प्रकार की आध्यात्मिक बन्दूक है। तपश्चर्या या साधना द्वारा संग्रह की हुई आत्मिक शक्ति कारतूसों की पेटी है। दोनों के मिलने से ही निशाने को मार गिराया जा सकता है। कोई व्यक्ति प्रयोग विधि जानता हो, पर उसके पास साधन बल न हो तो ऐसा ही परिणाम होगा, जैसा खाली बन्दूक का घोड़ा बार- बार चटकाकर कोई यह आशा करे कि अचूक निशाना लगेगा। इसी प्रकार जिनके पास तपोबल है, पर उसका काम्य प्रयोजन के लिए विधिवत् प्रयोग करना नहीं जानते, वे वैसे हैं जैसे कोई कारतूस की पोटली बाँधे फिरे, उन्हें हाथ से फेंक- फेंक कर शत्रुओं की सेना का संहार करना चाहे। यह हास्यास्पद तरीके हैं। आत्म- बल संचय करने के लिए जितनी अधिक साधनाएँ की जायें उतना ही अच्छा है, पाँच प्रकार के साधक गायत्री सिद्ध समझे जाते हैं (१) लगातार बारह वर्ष तक कम से कम एक माला नित्य जप किया हो, (२) गायत्री ब्रह्म सन्ध्या को नौ वर्ष तक किया हो, (३) ब्रह्मचर्यपूर्वक पाँच वर्ष तक एक हजार मंत्र जपे हों, (४) चौबीस लक्ष गायत्री का अनुष्ठान किया हो, (५) पाँच वर्ष तक विशेष गायत्री जप किया हो। जो व्यक्ति इन साधनाओं में से कम से कम एक या एक से अधिक का तप पूरा कर चुके हों, वे गायत्री मन्त्र का काम्य कर्म में प्रयोग करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं। चौबीस हजार वाले अनुष्ठानों की पूँजी जिनके पास है, वे भी अपनी- अपनी पूँजी के अनुसार एक ही सीमा तक सफल हो सकते हैं। कई बार मनुष्य के सामने ऐसी सामयिक कठिनाइयाँ आ खड़ी होती हैं जिनका निराकरण करने के लिए विशेष मनोबल की आवश्यकता पड़ती है। उसमें न्यूनता रहे तो मनुष्य घबराता है और उस घबराहट के कारण उत्पन्न मानसिक अस्त- व्यस्तता, अन्य नई- नई कठिनाइयाँ उत्पन्न करती हैं। कहा जाता है कि विपत्ति अकेली नहीं आती अपने साथ और भी अनेकों संकट लाती है। मनोबल के अभाव में कठिनाइयों के समय घबराहट होती है, उसी से चिन्ता, निराशा, कातरता जैसी अनेकों असंतुलन की छटायें उमड़ पड़ती हैं फलतः सामने के सामान्य कार्य भी गड़बड़ाने लगते हैं। इसी प्रकार प्रस्तुत बड़ी विपत्तियों की नई सहेलियाँ भी आ धमकती हैं और मनुष्य बुरी तरह विपत्तियों के कुचक्र में फंस जाता है। विपत्ति से उबरने के लिए साथियों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। इससे भी अधिक सहायता उन घड़ियों में आन्तरिक साहसिकता से मिलती है। मन को संतुलित रखा जा सके, विपत्ति का सही मूल्यांकन बन पड़े और उबरने के उपायों को दूरदर्शिता के आधार पर खोजा जा सके तो प्रतीत होगा कि संकट उतना बड़ा नहीं था जितना कि समझा गया ।। बड़ा भी हो तो भी विवेक एवं साहस के बल पर प्रबल पुरूषार्थ करके हर कठिनाइयों से जूझना और उसका हल निकाल लेना संभव हो सकता है। कोई विपत्ति न टले तो उसे हँसते- हँसते सहन कर लेने का मनोबल भी एक बहुत बड़ी बात है। इन्हीं आन्तरिक विशिष्टताओं के आधार पर विपत्तियों से बच निकलना, परास्त करना एवं सरलता पूर्वक सहन कर सकना संभव होता है। इसी दूरदर्शी मनोबल को दैवी सहायता समझा जा सकता है। गायत्री उपासना के कुछ विशेष विधान ऐसे हैं जिनके आधार पर विशेष प्रकार की विपत्तियों के अनुरूप विशेष प्रकार का मनोबल प्राप्त होता है, सूझ- बूझ उत्पन्न होती है। अप्रत्याशित सहायता मिलती है और पर्वत जैसा संकट राई बन कर सहज ही बिन बरसी घटा की तरह उतर जाता है। नीचे कुछ खास- खास प्रयोजनों के लिए गायत्री के प्रयोग की विधियाँ दी जाती हैं- (१) रोग- निवारण- स्वयं रोगी होने पर जिस स्थिति में भी रहना पड़े उसी में मन ही मन गायत्री का जप करना चाहिए। एक मन्त्र समाप्त होने और दूसरा आरम्भ होने के बीच में एक ‘‘बीज मन्त्र’’ का सम्पुट भी लगाते रहना चाहिए। सर्दी प्रधान (कफ) रोगों में ‘ऐं’ बीज मन्त्र, गर्मी प्रधान ‘पित्त’ रोगों में ‘एैं’, अपच एवं ‘विष’ तथा (वात) रोगों में ‘हूँ’, बीज- मन्त्र का प्रयोग करना चाहिए। निरोग रहने के लिये वृषभ- वाहिनी हरित वस्त्र गायत्री का ध्यान करना चाहिए। दूसरों को निरोग करने के लिए भी इन्हीं बीज- मन्त्रों का और इसी ध्यान का प्रयोग करना चाहिए। रोगी के पीड़ित अंगों पर उपयुक्त ध्यान और तप करते हुये हाथ फेरना, जल अभिमन्त्रित करके रोगी पर मार्जन देना एवं छिड़कना चाहिए। इन्हीं स्थितियों में तुलसी- पत्र और काली मिर्च गंगाजल में पीस कर दवा के रूप में देना, यह सब उपचार ऐसे हैं, जो किसी भी रोग के रोगी पर दिये जायें, उसे लाभ पहुँचाये बिना न रहेंगे ।। (२) विष- निवारण सर्प, बिच्छू, बर्र, ततैया, मधुमक्खी और जहरीले जीवों के काट लेने पर बड़ी पीड़ा होती है। साथ ही शरीर में विष फैलने से मृत्यु हो जाने की सम्भावना रहती है। इस प्रकार की दुर्घटनाएं घटित होने पर गायत्री शक्ति द्वारा उपचार किया जा सकता है। पीपल वृक्ष की समिधाओं से विधिवत् हवन करके उसकी भस्म को सुरक्षित रख लेना चाहिए। अपनी नासिका का जो स्वर चल रहा है, उसी हाथ पर थोड़ी से भस्म रखकर दूसरे हाथ से उसे अभिमन्त्रित करता चले और बीच में ‘हूँ’ बीज- मन्त्र का सम्पुट लगावे तथा रक्तवर्ण अश्वरूढ़ा गायत्री का ध्यान करता हुआ उस भस्म को विषैले कीड़े के काटे हुए स्थान पर दो चार मिनट मसले। पीड़ा को जादू के समान आराम होता है। सर्प के काटे हुए स्थान पर रक्त चन्दन से किये हुये हवन की भस्म मलनी चाहिए और अभिमन्त्रित करके घृत पिलाना चाहिए। पीली सरसों अभिमन्त्रित करके उसे पीसकर दसों इन्द्रियों के द्वार पर थोड़ा- थोड़ा लगा देना चाहिए। ऐसा करने से सर्प- विष दूर हो जाता है। (३) बुद्धि- वृद्धि गायत्री प्रधानतः बुद्धि को शुद्ध, प्रखर और समुन्नत करने वाला मन्त्र है। मन्द बुद्धि, स्मरण शक्ति की कमी वाले रोग इससे विशेष रूप से लाभ उठा सकते हैं। जो बालक अनुत्तीर्ण हो जाते हैं, पाठ ठीक प्रकार याद नहीं कर पाते उनके लिए निम्नलिखित उपासना बड़ी उपयोगी है। सूर्योदय के समय की प्रथम किरणें पानी से भीगे हुए मस्तक पर लपेट दें। पूर्व की ओर मुख करके अधखुले नेत्रों से सूर्य का दर्शन करते हुए आरम्भ में तीन बार ॐ का उच्चारण करते हुये गायत्री का जप करें कम से कम एक माला (१०८ मन्त्र) अवश्य जपने चाहिए। पीछे दोनों हाथों की हथेली वाला भाग सूर्य की ओर इस प्रकार करें मानों आग पर ताप रहे हैं। इस स्थिति में बारह मन्त्र जपकर हथेलियों को आपस में रगड़ना चाहिए और उन उष्ण हाथों को मुख, नेत्र, नासिका, ग्रीवा, कर्ण, मस्तक आदि समस्त शिरोभागों पर फिराना चाहिए ।। (४) राजकीय सफलता- किसी सरकारी कार्य, मुकदमा, राज्य- स्वीकृति, नियुक्ति आदि में सफलता प्राप्त करने के लिए गायत्री का उपयोग किया सकता है। जिस समय अधिकारी के सन्मुख उपस्थित होना हो अथवा कोई आवेदन- पत्र लिखना हो, उस समय यह देखना चाहिए कि कौन- सा स्वर चल रहा है। यदि दाहिना स्वर चल रहा हो तो पीतवर्ण ज्योति का मस्तिष्क में ध्यान करना चाहिए और यदि बायां स्वर चल रहा हो तो हरे रंग के प्रकाश का ध्यान करना चाहिए। मन्त्र में सप्त व्याहृतियाँ लगाते हुए (ॐ भूर्भुवः स्वः तपः जनः महः सत्यम्) बारह मन्त्रों का मन ही मन जप करना चाहिये। दृष्टि उस हाथ के अंगूठे के नाखून पर रखनी चाहिए, जिसका स्वर चल रहा हो। भगवती की मानसिक आराधना, प्रार्थना करते हुए राजद्वार में प्रवेश करने की सफलता मिलती है। (५) दरिद्रता का नाश- दरिद्रता, हानि, ऋण, बेकारी, साधनहीनता, वस्तुओं का अभाव, कम आमदनी, बढ़ा हुआ खर्च, कोई रूका हुआ आवश्यक कार्य आदि की अर्थ- चिन्ता से मुक्ति दिलाने में गायत्री- साधना बड़ी सहायक सिद्ध होती है। उसमें ऐसी मनोभूमि तैयार हो जाती है, जो वर्तमान अर्थ- चक्र से निकाल कर साधक को सन्तोषजनक स्थिति पर पहुँचा दे। दरिद्रता- नाश के लिए गायत्री की ‘श्री’ शक्ति की उपासना करनी चाहिए। मन्त्र के अन्त में तीन बार ‘श्री’ बीज का सम्पुट लगाना चाहिए। साधनाकाल के लिए पीत वस्त्र, पीले पुष्प, पीला यज्ञोपवीत, पीला तिलक, पीला आसन का उपयोग करना चाहिए। शरीर पर शुक्रवार को हल्दी मिले हुए तेल की मालिश करनी चाहिए और रविवार को उपवास करना चाहिए। पीतवर्ण लक्ष्मी का प्रतीक है, भोजन में भी पीली चीजें प्रधान रूप से लेनी चाहिए। इस प्रकार की साधना से धन की वृद्धि और दरिद्रता का नाश होता है। (६) सुसन्तति की प्राप्ति- जिसके सन्तान नहीं होती है, होकर मर जाती है, रोगी रहती है गर्भपात हो जाते हैं, केवल कन्याएं होती हैं तो इन कारणों से माता पिता को दुःखी रहना स्वाभाविक है। इस प्रकार के दुःखों से भगवती की कृपा द्वारा छुटकारा मिल सकता है। इस प्रकार की साधना में स्त्री- पुरूष दोनों ही सम्मिलित हो सकें तो बहुत ही अच्छा, एक पक्ष के द्वारा ही पूरा भार कन्धे पर लिए जाने से आंशिक सफलता ही मिलती है। प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्वाभिमुख होकर साधना पर बैठे। नेत्र बन्द करके श्वेत वस्त्राभूषण अलंकृत किशोर आयु वाली, कमल पुष्प हाथ में लिये गायत्री का ध्यान करें। ‘यं’ बीज के तीन सम्पुट लगाकर गायत्री का जप चन्दन की माला पर करें। नासिका से साँस खींचते हुए पेडू तक ले जानी चाहिए। पेडू को जितना वायु से भरा जा सके भरना चाहिए। फिर साँस रोककर या ‘यं’ बीज सम्पुटित गायत्री का कम से कम एक, अधिक से अधिक तीन बार जप करना चाहिए। फिर धीरे- धीरे साँस का निकाल देना चाहिए। इस प्रकार पेडू में गायत्री- शक्ति का आकर्षण और धारण कराने वाला यह प्राणायाम दस बार करना चाहिए। तदनन्तर अपने वीर्यकोष या गर्भाशय में शुभ्रवर्ण ज्योति का ध्यान करना चाहिए। यह साधन स्वस्थ, सुन्दर, तेजस्वी, गुणवान, बुद्धिमान सन्तान उत्पन्न करने के लिए है। इस साधन के दिनों में प्रत्येक रविवार को चावल, दूध, दही आदि श्वेत वस्तुओं का ही भोजन करना चाहिए। (७) शत्रुता का संहार- द्वेष, कलह, मुकदमाबाजी, मनमुटाव को दूर करना, और अत्याचारी, अन्यायी, अकारण आक्रमण करने वाली मनोवृत्ति का संहार करना, आत्मा तथा समाज में शांति रखने के लिए चार ‘क्लीं’ बीज- मन्त्रों का सम्पुट समेत रक्त चन्दन की माला से पश्चिमाभिमुख होकर गायत्री का जप करना चाहिए। जप काल में सिर पर यज्ञ भस्म का तिलक लगाना तथा ऊन का आसन बिछाना चाहिए। लाल वस्त्र पहिनने, सिंहारूढ़, खड्ग हस्ता, विकराल बदना, दुर्गा वेषधारी गायत्री का ध्यान करना चाहिए। जिन व्यक्तियों का द्वेष- दुर्भाव निवारण करना हो उनका नाम पीपल के पत्ते पर रक्त चन्दन की स्याही और अनार की कलम द्वारा लिखना चाहिए। इस पत्ते को उलटा रखकर प्रत्येक मन्त्र के बाद जल- पात्र में से एक छोटी चमची भरके जल लेकर उस पत्ते पर डालना चाहिए। इस प्रकार १०८ मन्त्र नित्य जपने चाहिए। इससे शत्रु के स्वभाव का परिवर्तन होता है और उसकी द्वेष करने वाली सामर्थ्य घट जाती है। (८) भूत बाध का शांति- कुछ मनोवैज्ञानिक कारणों, सांसारिक विकृतियों तथा प्रेतात्माओं के कोप से कई बार भूत बाधा के उपद्रव होने लगते हैं। कोई व्यक्ति उन्मादियों जैसी चेष्टा करने लगता है, उसके मस्तिष्क पर कोई दूसरी आत्मा का आधिपत्य दृष्टिगोचर होता है। इसके अतिरिक्त कोई मनुष्य या पशु ऐसी विचित्र दशा का रोगी होता है, जैसा कि साधारण रोगों में नहीं होता ।। भयानक आकृतियां दिखाई पड़ना, अदृश्य मनुष्यों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का देखा जाना भूतबाधा के लक्षण हैं। इसके लिए गायत्री हवन सर्वश्रेष्ठ है। सतोगुणी हवन सामग्री से विधिपूर्वक यज्ञ करना चाहिए और रोगी को उसके निकट बिठा लेना चाहिए। हवन की अग्नि में तपाया हुआ जल रोगी को पिलाना चाहिए। बुझी हुई यज्ञ- भस्म सुरक्षित रख लेनी चाहिए, किसी रोगी को अचानक भूतबाधा हो तो उस यज्ञ- भस्म उसके हृदय,ग्रीवा, मस्तक, नेत्र, कर्ण, मुख, नासिका आदि पर लगाना चाहिए। (९) दूसरों का प्रभावित करना- जो व्यक्ति अपने प्रतिकूल हैं, उन्हें अनुकूल बनाने के लिए उपेक्षा करने वालों में प्रेम उत्पन्न करने के लिए गायत्री द्वारा आकर्षण की जा सकती है। वशीकरण तो घोर तांत्रिक क्रियाओं द्वारा ही होता है, पर चुम्बकीय आकर्षण, जिससे किसी व्यक्ति का मन अपनी ओर सद्भावनापूर्वक आकर्षित हो, गायत्री की दक्षिणमार्गी इस योग- साधना से हो सकता है। गायत्री का जप तीन प्रणव लगाकर जपना चाहिए और ऐसा ध्यान करना चाहिए कि अपनी त्रिकुटी (मस्तिष्क का मध्य भाग) में एक नील वर्ण विद्युत- तेज की रस्सी जैसी शक्ति निकलकर उस व्यक्ति तक पहुँचती है जिसे आपको आकर्षित करना है और उसके चारों ओर अनेक लपेट मारकर लिपट जाती है। इस प्रकार लिपटा हुआ वह व्यक्ति अर्द्धनिद्रित अवस्था में धीरे- धीरे खिंचता चला जाता है और अनुकूलता की प्रसन्न मुद्रा उसके चेहरे पर छाई हुई हैं। आकर्षण के लिए यह ध्यान बड़ा प्रभावशाली है। किसी के मन में, मस्तिष्क में उसके अनुचित विचार हटाकर उचित विचार भरने हों तो ऐसा करना चाहिए कि शांतचित्त होकर उस व्यक्ति को अखिल नील आकाश में अकेला सोता हुआ ध्यान करें और भावना करें कि उसके कुविचारों को हटाकर आप उसके मन में सद्विचार भर रहे हैं। इस ध्यान- साधना के समय अपना शरीर भी बिल्कुल शिथिल और नील वस्त्र से ढका हुआ होना चाहिए। (१०) रक्षा- कवच- किसी शुभ दिन उपवास रखकर केशर, कस्तूरी, जावित्री, गोरोचन इन पांच चीजों के मिश्रण की स्याही बना कर अनार की कलम से पाँच प्रणव संयुक्त गायत्री- मंत्र बिना पालिश किये हुए कागज या भोजपत्र पर लिखना चाहिए। यह कवच चाँदी के ताबीज में बन्द करके जिस किसी को धारण कराया जाय, उसकी सब प्रकार की रक्षा करता है। रोग, अकाल मृत्यु, शत्रु, चोर, हानि, बुरे दिन, कलह, भय, राजदण्ड, भूत- प्रेत, अभिचार आदि से यह कवच रक्षा करता है। इसके प्रताप और प्रभाव से शारीरिक, आर्थिक और मानसिक सुख- साधनों में वृद्धि होती है। (११) प्रसूतिकष्ट निवारण- काँसे की थाली में उपयुक्त प्रकार से गायत्री मन्त्र लिखकर उसे प्रसव- कष्ट से पीड़ित प्रसूता को दिखाया जाय और फिर पानी में घोलकर उसे पिला दिया जाय तो कष्ट दूर होकर सुख- पूर्वक शीघ्र प्रसव हो जाता है। (१२) बुरे मुहूर्त और शकुनों का परिहार- कभी- कभी ऐसे अवसर आते हैं कि कोई कार्य करना है या कहीं जाना है, पर उस समय कोई शकुन या मुहूर्त ऐसे उपस्थित हो रहे हैं, जिनके कारण आगे कदम बढ़ाते हुए झिझक होती है, ऐसे अवसरों पर गायत्री की माला जपने के पश्चात् कार्य आरम्भ किया जा सकता है। इससे सारे अनिष्टों और आशंकाओं का समाधान हो जाता है और किसी अनिष्ट की संभावना नहीं रहती। विवाह न बनता हो या विधि- वर्ग न मिलते हों विवाह- मुहूर्त में सूर्य, बृहस्पति, चन्द्रमा आदि की बाधा हो तो चौबीस हजार जप का नौ दिन वाला लघु अनुष्ठान करके विवाह कर देना चाहिए। ऐसे विवाह से किसी प्रकार का अनिष्ट होने की कोई सम्भावना नहीं है। वह सब प्रकार शुद्ध और ज्योतिष सम्मत विवाह के समान ही ठीक माना जाना चाहिए। (१३) बुरे स्वप्नों के फल का नाश- रात्रि या दिन में सोने से कभी- कभी कई बार ऐसे भयंकर स्वप्न दिखाई पड़ते हैं, जिनसे स्वप्नकाल में भी बड़ा त्रास और दुःख मिलता है एवं जागने पर भी उनका स्मरण करके दिल धड़कता है। ऐसे स्वप्न किसी अनिष्ट की आशंका का संकेत करते हैं। जब ऐसे स्वप्न किसी हों तो एक सप्ताह तक प्रतिदिन दस- दस मालायें गायत्री- जप करना चाहिए और गायत्री का पूजन करना या कराना चाहिए। गायत्री सहस्रनाम या गायत्री चालीसा का पाठ भी दुःस्वप्नों के प्रभाव को नष्ट करने वाला है। उपर्युक्त पंक्तियों में कुछ थोड़े से प्रयोग और उपचारों का आभास कराया गया है। अनेक विषयों में अनेक विधियों से गायत्री का जो उपयोग हो सकता है, उसका वर्णन बहुत विस्तृत है, उसे तो स्वयं अनुभव करके ही जाना जा सकता है। गायत्री की महिमा अपार है, वह कामधेनु है। गायत्री साधना- उपासना करने वाला कभी भी निराश नहीं लौटता।   |     | 11  |     |    Versions  HINDI गायत्री की परम कल्याणकारी सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि Text Book Version gurukulamFacebookTwitterGoogle+TelegramWhatsApp अखंड ज्योति कहानियाँ मौत का ख्याल (kahani) भक्तिमती मीराबाई अपने (Kahani) धर्म और संस्कृति (Kahani) उलटे पैर लौट गए (Kahani) See More भारतीय संस्कृति को जानने शांतिकुंज पहुँचा अमेरिकी दल आत्मिक विकास में साधना महत्त्वपूर्ण : डॉ. प्रणव पण्ड्याजीहरिद्वार, २८ अक्टूबर।अमेरिका के 'द सेंटर फार थॉट ट्रांसफार्मेशन' का सात सदस्यीय दल साधनात्मक मार्गदर्शन प्राप्त करने शांतिकुंज एवं देवसंस्कृति विश्वविद्यालय पहुँचा। इन्होंने शांतिकुंज में नियमित रूप से चलने वाले ध्यान, योग व हवन आदि में भागीदारी करते हुए विशेष साधना का प्रशिक्षण प्रारंभ किया।दल का मार्गदर्शन करते हु More About Gayatri Pariwar Gayatri Pariwar is a living model of a futuristic society, being guided by principles of human unity and equality. 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