Thursday 26 October 2017

पूर्ण परमात्मा एवं उनके साक्षी

Kabir Gyan Path to Satlok (our origin) ▼ पूर्ण परमात्मा एवं उनके साक्षी पूर्ण परमात्मा एवं उनके साक्षी पूर्ण सन्त पूर्ण परमात्मा ने पृथ्वी पर पृकट होकर कुछ पुण्यात्माओं को जिंदा महात्मा के रूप में दर्शन दिया और सतलोक लेकर गए। सतलोक में महात्मा और पूर्ण परमात्मा दो  रूप दिखा कर  स्वयं पूर्ण परमात्मा वाले सिंहासन पर विराजमान हो गए। जिन-जिन पुण्यात्माओं ने पूर्ण  परमात्मा का साक्षात दर्शन प्राप्त किया उन्होंने पृथ्वी पर वापस आने पर बताया कि कुल का मालिक पूर्ण परमात्मा एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं। पूर्ण परमेश्वर के वास्तविक नाम भिन्न2 भाषाओं में कविर्देव, हक्का कबीर, सत् कबीर, बन्दी छोड़ कबीर, कबीरा, कबीरन् व खबीरा या खबीरन् हैं। इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति, शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। जिन सन्तों व ऋषियों को परमात्मा प्राप्ति नहीं हुई, उन्होंने अपना अन्तिम अनुभव बताया है कि प्रभु को केवल प्रकाश रूप देखा जा सकता है, प्रभु दिखाई नहीं देता क्योंकि उसका कोई आकार नहीं है तथा शरीर में धुनि सुनना आदि प्रभु भक्ति की उपलब्धि है। जो परमात्मा को निराकार कहते हैं तथा केवल प्रकाश देखना तथा धुनि सुनना ही प्रभु प्राप्ति मानते हैं वे पूर्ण रूप से प्रभु तथा भक्ति से अपरिचित हैं। ऐसे साधकों के न तो तत्वज्ञान रूपी नेत्र हैं तथा न ही उनके गुरुदेव के। जिन पूर्ण सन्तों ने पूर्ण परमात्मा को देखा उन में से कुछ के नाम हैं:- (क) आदरणीय धर्मदास साहेब जी  (ख) आदरणीय दादू साहेब जी  (ग) आदणीय मलूक दास साहेब जी  (घ) आदरणीय गरीबदास साहेब जी  (ड़) आदरणीय नानक साहेब जी  (च) आदरणीय घीसा दास साहेब जी (क) परमेश्वर से धर्मदास जी का साक्षात्कार:- आदरणीय धर्मदास साहेब जी, बांधवगढ़ मध्य प्रदेश वाले, जिनको पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मथुरा में मिले, सतलोक दिखाया। वहाँ सतलोक में दो रूप दिखा कर जिंदा वाले रूप में पूर्ण परमात्मा वाले सिंहासन पर विराजमान हो गए तथा आदरणीय धर्मदास साहेब जी को कहा कि मैं ही काशी (बनारस) में नीरू-नीमा के घर गया हुआ हूँ। आदरणीय श्री रामानन्द जी मेरे गुरु जी हैं। यह कह कर श्री धर्मदास जी की आत्मा को वापिस शरीर में भेज दिया। श्री धर्मदास जी का शरीर दो दिन बेहोश रहा, तीसरे दिन होश आया तो काशी में खोज करने पर पाया कि यही काशी में आया धाणक ही पूर्ण परमात्मा (सतपुरुष) है। आदरणीय धर्मदास साहेब जी ने पवित्रा कबीर सागर, कबीर साखी, कबीर बीजक नामक सद्ग्रन्थों की आँखों देखे तथा पूर्ण परमात्मा के पवित्रा मुख कमल से निकले अमृत वचन रूपी विवरण से रचना की। अमृत वाणी में प्रमाण: आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।।टेक।। सत्यलोक से चल कर आए, काटन जम की जंजीर।।1।। थारे दर्शन से म्हारे पाप कटत हैं, निर्मल होवै जी शरीर।।2।। भोजन म्हारे सतगुरु जीमैं, शब्द अमृत दूध की खीर।। ।।3 हिन्दू के तुम देव कहाये, मुसलमान के पीर।।4।। दोनों दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे ना पाये शरीर।।5।। धर्मदास की अर्ज गोसांई, बेड़ा लंघाईयो परले तीर।।6।। (ख) परमेश्वर से दादू जी का साक्षात्कार:- आदरणीय दादू साहेब जी (अमृत वाणी में प्रमाण) कबीर परमेश्वर के साक्षी हुवे जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक ले गए। तीन दिन तक दादू जी बेहोश रहे। फिर होश में आकर बहुत-सी अमृतवाणी उच्चारण की: जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।। दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट। उनको कबहू लागे नहीं, काल वज्र की चोट।। दादू नाम कबीर का, सुनकर कांपे काल। नाम भरोसे जो नर चले, होवे न बंका बाल।। जो जो शरण कबीर के, तरगए अनन्त अपार। दादू गुण कीता कहे, कहत न आवै पार।। कबीर कर्ता आप है, दूजा नाहिं कोय। दादू पूरन जगत को, भक्ति दृढावन सोय।। ठेका पूरन होय जब, सब कोई तजै शरीर। दादू काल गँजे नहीं, जपै जो नाम कबीर।। आदमी की आयु घटै, तब यम घेरे आय। सुमिरन किया कबीर का, दादू लिया बचाय।। मेटि दिया अपराध सब, आय मिले छनमाँह। दादू संग ले चले, कबीर चरण की छांह।। सेवक देव निज चरण का, दादू अपना जान। भृंगी सत्य कबीर ने, कीन्हा आप समान।। दादू अन्तरगत सदा, छिन-छिन सुमिरन ध्यान। वारु नाम कबीर पर, पल-पल मेरा प्रान।। सुन-2 साखी कबीर की, काल नवावै भाथ। धन्य-धन्य हो तिन लोक में, दादू जोड़े हाथ।। केहरि नाम कबीर का, विषम काल गज राज। दादू भजन प्रतापते, भागे सुनत आवाज।। पल एक नाम कबीर का, दादू मनचित लाय। हस्ती के अश्वार को, श्वान काल नहीं खाय।। सुमरत नाम कबीर का, कटे काल की पीर। दादू दिन दिन ऊँचे, परमानन्द सुख सीर।। दादू नाम कबीर की, जो कोई लेवे ओट। तिनको कबहुं ना लगई, काल बज्र की चोट।। और संत सब कूप हैं, केते सरिता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।। अबही तेरी सब मिटै, जन्म मरन की पीर। स्वांस उस्वांस सुमिरले, दादू नाम कबीर।। कोई सर्गुण में रीझ रहा, कोई निर्गुण ठहराय। दादू गति कबीर की, मौसे कही न जाय।। जिन मोको निज नाम दई, सदगुरु सोई हमार। दादू दूसरा कौन है, कबीर सिरजन हार।। (ग) परमेश्वर से मलूक दास जी का साक्षात्कार:- (ग) आदरणीय मलूक दास साहेब जी को 42 वर्ष की आयु में पूर्ण परमात्मा मिले तथा दो दिन तक श्री मलूक दास जी अचेत रहे। फिर सतलोक से वापसी पर निम्न वाणी उच्चारण की: जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।।टेक।। एक समय गुरु बंसी बजाई कालंद्री के तीर। सुर-नर मुनि थक गए, रूक गया दरिया नीर।। काँशी तज गुरु मगहर आये, दोनों दीन के पीर। कोई गाढ़े कोई अग्नि जरावै, ढूंडा न पाया शरीर। चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर। दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।। (घ) परमेश्वर से गरीबदास जी का साक्षात्कार:- आदरणीय गरीबदास साहेब जी छुड़ानी जिला-झज्जर, हरियाणा वाले (अमृत वाणी में प्रमाण) प्रभु कबीर (कविर्देव) के साक्षी दस वर्ष की आयु में हुवे। गरीबदास साहेब जी का आर्विभाव सन् 1717 में हुआ तथा सत्लोक वास सन् 1778 में हुआ। दस वर्ष की आयु में कबलाना गाँव की सीमा से सटे नला नामक खेत में हुए आदरणीय गरीबदास साहेब जी को भी परमात्मा कबीर साहेब जी सशरीर जिंदा रूप में मिले। आदरणीय गरीबदास साहेब जी खेतों में अन्य साथी ग्वालों के साथ गाय चरा रहे थे। बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर को एक अतिथि रूप में देख कर ग्वालों ने जिन्दा महात्मा के रूप में प्रकट कबीर परमेश्वर से आग्रह किया कि आप खाना नहीं खाते हो तो दूध पीयो क्योंकि परमात्मा ने कहा था कि मैं अपने सतलोक गाँव से खाना खाकर आया हूँ। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैं कुँआरी गाय का दूध पीता हूँ। तब बड़ी आयु के ग्वाले बोले कि महात्मा जी आप मजाक कर रहे हो। कुँआरी गाय कभी दूध देती है? लगता है आप की दूध पीने की नीयत नहीं है। उसी समय बालक गरीबदास जी ने एक कुँआरी गाय को परमेश्वर कबीर जी के पास लाकर कहा कि बाबा जी यह बिना ब्याई (कुँआरी) गाय कैसे दूध दे सकती है ? तब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने कुँआरी गाय (बच्छिया) के कमर पर हाथ रखा, अपने आप कुँआरी गाय (अध्नि धेनु) के थनों से दूध निकलने लगा। पात्रा भरने पर रूक गया। वह दूध परमेश्वर कबीर जी ने पीया तथा प्रसाद रूप में कुछ अपने बच्चे गरीबदास जी को पिलाया तथा सतलोक के दर्शन कराये। सतलोक में अपने दो रूप दिखाकर फिर जिंदा वाले रूप में कुल मालिक रूप में सिंहासन पर विराजमान हो गए। आदरणीय गरीबदास जी की आत्मा अपने परमात्मा कबीर बन्दी छोड़ के साथ चले जाने के बाद उन्हें मृत जान कर चिता पर रख कर जलाने की तैयारी करने लगे, उसी समय आदरणीय गरीबदास साहेब जी की आत्मा पूर्ण परमेश्वर ने शरीर में प्रवेश कर दिया। दस वर्षीय बालक गरीब दास जी जीवित हो गए। (गाँव छुड़ानी जि. झज्जर (हरियाणा) में आज भी उस स्थान पर जहाँ पूर्ण परमात्मा, सन्त गरीबदास जी को मानव शरीर में साक्षात्कार हुआ था, एक यादगार विद्यमान है।) उसके बाद उस पूर्ण परमात्मा का आँखों देखा विवरण अपनी अमृत वाणी में ‘‘सद्ग्रन्थ‘‘ नाम से रचना की। उसी अमृत वाणी में प्रमाण: अजब नगर में ले गया, हमकूं सतगुरु आन।  झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।। अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।  सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।। गैबी ख्याल विशाल सतगुरु, अचल दिगम्बर थीर है।  भक्ति हेत काया धर आये, अविगत सत् कबीर हैं।। हरदम खोज हनोज हाजर, त्रिवैणी के तीर हैं।  दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड़ कबीर हैं।। हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।  जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।। सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर।  दास गरीब सतपुरुष भजो, अविगत कला कबीर।। जिंदा जोगी जगत् गुरु, मालिक मुरशद पीर।  दहूँ दीन झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर।। उपरोक्त वाणी में आदरणीय गरीबदास साहेब जी महाराज ने स्पष्ट कर दिया कि काशी वाले धाणक (जुलाहे) ने मुझे भी नाम दान देकर पार किया, यही काशी वाला धाणक ही (सतपुरुष) पूर्ण ब्रह्म है। परमेश्वर कबीर ही सतलोक से जिन्दा महात्मा के रूप में आकर मुझे अजब नगर (अद्धभुत नगर सतलोक) में लेकर गए। जहाँ पर आनन्द ही आनन्द है, कोई चिन्ता नहीं, जन्म-मृत्यु, अन्य प्राणियों के शरीर में कष्ट आदि का शोक नहीं है। वही कविर्देव जिसके एक रोम कूप में करोड़ो सूर्यों जैसा प्रकाश है तथा मानव सदृश अति तेजोमय अपने वास्तविक शरीर के ऊपर हल्के तेजपुंज का चोला (भद्रा वस्त्रा अर्थात् तेजपुंज का शरीर) डाल कर हमें मृतलोक में मिलता है। (ड़) परमेश्वर से नानक जी का साक्षात्कार:- आदरणीय श्री नानक साहेब जी प्रभु कबीर(धाणक) जुलाहा के साक्षी हुए। श्री रामानन्द जी ने एक सेवक को श्री नानक जी के साथ कबीर साहेब जी की झोपड़ी पर भेजा। उस सेवक से भी सच्चखण्ड के विषय में वार्ता करते हुए श्री नानक जी चले तो उस कबीर साहेब के सेवक ने भी सच्चखण्ड व सृष्टि रचना जो परमेश्वर कबीर साहेब जी से सुन रखी थी सुनाई। तब श्री नानक जी ने आश्चर्य हुआ कि मेरे से तो कबीर साहेब के चाकर (सेवक) भी अधिक ज्ञान रखते हैं। इसीलिए गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में श्री नानक जी ने कहा है कि - “हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार। नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक” जिसका भावार्थ है कि हे कबीर परमेश्वर जी मैं नानक कह रहा हूँ कि मेरा उद्धार हो गया, मैं तो आपके सेवकों के चरणों की धूर तुल्य हूँ। जब नानक जी ने देखा यह धाणक (जुलाहा) वही परमेश्वर है जिसके दर्शन सत्यलोक (सच्चखण्ड) में किए तथा बेई नदी पर हुए थे। वहाँ यह जिन्दा महात्मा के वेश में थे यहाँ धाणक (जुलाहे) के वेश में हैं। यह स्थान अनुसार अपना वेश बदल लेते हैं परन्तु स्वरूप (चेहरा) तो वही है। वही मोहिनी सूरत जो सच्चखण्ड में भी विराजमान था। वही करतार आज धाणक रूप में बैठा है। श्री नानक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आँखों में आँसू भर गए। तब श्री नानक जी अपने सच्चे स्वामी अकाल मूर्ति को पाकर चरणों में गिरकर सत्यनाम (सच्चानाम) प्राप्त किया। तब शान्ति पाई तथा अपने प्रभु की महिमा देश विदेश में गाई। पहले श्री नानकदेव जी एक ओंकार(ओम) मन्त्रा का जाप करते थे तथा उसी को सत मान कर कहा करते थे एक ओंकार। उन्हें बेई नदी पर कबीर साहेब ने दर्शन दे कर सतलोक(सच्चखण्ड) दिखाया तथा अपने सतपुरुष रूप को दिखाया। जब सतनाम का जाप दिया तब नानक जी की काल लोक से मुक्ति हुई। नानक जी ने कहा कि: इसी का प्रमाण गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं.24 पर शब्द नं.29 शब्द - एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।1।। मै पति की पंदि न करनी की कार। उह बिगड़ै रूप रहा बिकराल।। तेरा एक नाम तारे संसार, मैं ऐहो आस एहो आधार। मुख निंदा आखा दिन रात, पर घर जोही नीच मनाति।। काम क्रोध तन वसह चंडाल, धाणक रूप रहा करतार।।2।। फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।। खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।3।। मैं कीता न जाता हरामखोर, उह किआ मुह देसा दुष्ट चोर। नानक नीच कह बिचार, धाणक रूप रहा करतार।।4।। इसमें स्पष्ट लिखा है कि एक(मन रूपी) कुत्ता तथा इसके साथ दो (आशा-तृष्णा रूपी) कुतिया अनावश्यक भौंकती(उमंग उठती) रहती हैं तथा सदा नई-नई आशाएँ उत्पन्न(ब्याती हैं) होती हैं। इनको मारने का तरीका(जो सत्यनाम तथा तत्व ज्ञान बिना) झुठा(कुड़) साधन(मुठ मुरदार) था। मुझे धाणक के रूप में हक्का कबीर (सत कबीर) परमात्मा मिला। उन्होनें मुझे वास्तविक उपासना बताई। नानक जी ने कहा कि उस परमेश्वर(कबीर साहेब) की साधना बिना न तो पति(साख) रहनी थी और न ही कोई अच्छी करनी(भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है उससे केवल कबीर साहेब तेरा एक(सत्यनाम) नाम पूर्ण संसार को पार(काल लोक से निकाल सकता है) कर सकता है। मुझे(नानक जी कहते हैं) भी एही एक तेरे नाम की आश है व यही नाम मेरा आधार है। पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की होगी क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं। मुझे धाणक(जुलाहे का कार्य करने वाले कबीर साहेब) रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया तथा काल से छुटवाया। जिसकी सुरति(स्वरूप) बहुत प्यारी है मन को फंसाने वाली अर्थात् मन मोहिनी है तथा सुन्दर वेश-भूषा में(जिन्दा रूप में) मुझे मिले उसको कोई नहीं पहचान सकता। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है धाणक(जुलाहा) फिर बन गया जिन्दा। काल भगवान भी भ्रम में पड़ गया भगवान(पूर्णब्रह्म) नहीं हो सकता। इसी प्रकार परमेश्वर कबीर साहेब अपना वास्तविक अस्तित्व छुपा कर एक सेवक बन कर आते हैं। काल या आम व्यक्ति पहचान नहीं सकता। इसलिए नानक जी ने उसे प्यार में ठगवाड़ा कहा है और साथ में कहा है कि वह धाणक(जुलाहा कबीर) बहुत समझदार है। दिखाई देता है कुछ परन्तु है बहुत महिमा(बहुता भार) वाला जो धाणक जुलाहा रूप मंे स्वयं परमात्मा पूर्ण ब्रह्म(सतपुरुष) आया है। प्रत्येक जीव को आधीनी समझाने के लिए अपनी भूल को स्वीकार करते हुए कि मैंने(नानक जी ने) पूर्णब्रह्म के साथ बहस(वाद-विवाद) की तथा उन्होनें (कबीर साहेब ने) अपने आपको भी (एक लीला करके) सेवक रूप में दर्शन दे कर तथा(नानक जी को) मुझको स्वामी नाम से सम्बोधित किया। इसलिए उनकी महानता तथा अपनी नादानी का पश्चाताप करते हुए श्री नानक जी ने कहा कि मैं(नानक जी) कुछ करने कराने योग्य नहीं था। फिर भी अपनी साधना को उत्तम मान कर भगवान से सम्मुख हुआ(ज्ञान संवाद किया)। मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है जो अपने मालिक पूर्ण परमात्मा धाणक रूप(जुलाहा रूप में आए करतार कबीर साहेब) को नहीं पहचान पाया? श्री नानक जी कहते हैं कि यह सब मैं पूर्ण सोच समझ से कह रहा हूँ कि परमात्मा यही धाणक (जुलाहा कबीर) रूप में है। भावार्थ:- श्री नानक साहेब जी कह रहे हैं कि यह फासने वाली अर्थात् मनमोहिनी शक्ल सूरत में तथा जिस देश में जाता है वैसा ही वेश बना लेता है, जैसे जिंदा महात्मा रूप में बेई नदी पर मिले, सतलोक में पूर्ण परमात्मा वाले वेश में तथा यहाँ उतर प्रदेश में धाणक(जुलाहे) रूप में स्वयं करतार (पूर्ण प्रभु) विराजमान है। आपसी वार्ता के दौरान हुई नोक-झोंक को याद करके क्षमा याचना करते हुए अधिक भाव से कह रहे हैं कि मैं अपने सत्भाव से कह रहा हूँ कि यही धाणक(जुलाहे) रूप में सत्पुरुष अर्थात् अकाल मूर्त ही है। दूसरा प्रमाण:- नीचे प्रमाण है जिसमें कबीर परमेश्वर का नाम स्पष्ट लिखा है। श्री गु.ग्र.पृष्ठ नं.721 राग तिलंग महला पहला में है। और अधिक प्रमाण के लिए प्रस्तुत है ‘‘राग तिलंग महला 1‘‘ पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं721 यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कुन करतार। हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।। दूनियाँ मुकामे फानी तहकीक दिलदानी। मम सर मुई अजराईल गिरफ्त दिल हेच न दानी।। जन पिसर पदर बिरादराँ कस नेस्त दस्तं गीर। आखिर बयफ्तम कस नदारद चूँ शब्द तकबीर।। शबरोज गशतम दरहवा करदेम बदी ख्याल। गाहे न नेकी कार करदम मम ई चिनी अहवाल।। बदबख्त हम चु बखील गाफिल बेनजर बेबाक। नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।। सरलार्थ:-- (कुन करतार) हे शब्द स्वरूपी कर्ता अर्थात् शब्द से सर्व सृष्टि के रचनहार (गोश) निर्गुणी संत रूप में आए (करीम) दयालु (हक्का कबीर) सत कबीर (तू) आप (बेएब परवरदिगार) निर्विकार परमेश्वर हंै। (पेश तोदर) आपके समक्ष अर्थात् आप के द्वार पर (तहकीक) पूरी तरह जान कर (यक अर्ज गुफतम) एक हृदय से विशेष प्रार्थना है कि (दिलदानी) हे महबूब (दुनियां मुकामे) यह संसार रूपी ठिकाना (फानी) नाशवान है (मम सर मूई) जीव के शरीर त्यागने के पश्चात् (अजराईल) अजराईल नामक फरिश्ता यमदूत (गिरफ्त दिल हेच न दानी) बेरहमी के साथ पकड़ कर ले जाता है। उस समय (कस) कोई (दस्तं गीर) साथी (जन) व्यक्ति जैसे (पिसर) बेटा (पदर) पिता (बिरादरां) भाई चारा (नेस्तं) साथ नहीं देता। (आखिर बेफ्तम) अन्त में सर्व उपाय (तकबीर) फर्ज अर्थात् (कस) कोई क्रिया काम नहीं आती (नदारद चूं शब्द) तथा आवाज भी बंद हो जाती है (शबरोज) प्रतिदिन (गशतम) गसत की तरह न रूकने वाली (दर हवा) चलती हुई वायु की तरह (बदी ख्याल) बुरे विचार (करदेम) करते रहते हैं (नेकी कार करदम) शुभ कर्म करने का (मम ई चिनी) मुझे कोई (अहवाल) जरीया अर्थात् साधन (गाहे न) नहीं मिला (बदबख्त) ऐसे बुरे समय में (हम चु) हमारे जैसे (बखील) नादान (गाफील) ला परवाह (बेनजर बेबाक) भक्ति और भगवान का वास्तविक ज्ञान न होने के कारण ज्ञान नेत्रा हीन था तथा ऊवा-बाई का ज्ञान कहता था। (नानक बुगोयद) नानक जी कह रहे हैं कि हे कबीर परमेश्वर आप की कृपा से (तेरे चाकरां पाखाक) आपके सेवकों के चरणों की धूर डूबता हुआ (जनु तूरा) बंदा पार हो गया। भावार्थ - श्री गुरु नानक साहेब जी कह रहे हैं कि हे हक्का कबीर (सत् कबीर)! आप निर्विकार दयालु परमेश्वर हो। आप से मेरी एक अर्ज है कि मैं तो सत्यज्ञान वाली नजर रहित तथा आपके सत्यज्ञान के सामने तो निर्उत्तर अर्थात् जुबान रहित हो गया हूँ। हे कुल मालिक! मैं तो आपके दासों के चरणों की धूल हूँ, मुझे शरण में रखना। इसके पश्चात् जब श्री नानक जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि पूर्ण परमात्मा तो गीता ज्ञान दाता प्रभु से अन्य ही है। वही पूजा के योग्य है। पूर्ण परमात्मा की भक्ति तथा ज्ञान के विषय में गीता ज्ञान दाता प्रभु भी अनभिज्ञ है। परमेश्वर स्वयं ही तत्वदर्शी संत रूप से प्रकट होकर तत्वज्ञान को जन-जन को सुनाता है। अमृतवाणी कबीर सागर (अगम निगम बोध, बोध सागर से) पृष्ठ नं.44 ।।नानक वचन।। ।।शब्द।। वाह वाह कबीर गुरु पूरा है। पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा हैै।। अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।। श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।। पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।। नाम कबीर जपै बड़भागी नानक चरण को धूरा है।। विशेष विवेचन:- बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे (धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष रूप में भी रहता है तथा यहाँ भी वही है। (च) परमेश्वर से घीसा दास जी का साक्षात्कार:- आदरणीय घीसा दास साहेब जी को भी पूज्य कबीर परमेश्वर जी सशरीर मिले - भारत वर्ष सदा से ही संतों के आशीर्वाद युक्त रहा है। प्रभु के भेजे संत व स्वयं परमेश्वर समय-समय पर इस भूतल को पावन करते रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक पावन ग्राम खेखड़ा है, जिसमें विक्रमी सं.1860 सन् 1803 में परमेश्वर के कृपा पात्र संत घीसा दास जी का आविर्भाव हुआ। जब आप जी सात वर्ष के हुए तो पूर्ण ब्रह्म कविर्देव (कबीर परमेश्वर) सतलोक (ऋतधाम) से सशरीर आए तथा गाँव के बाहर खेल रहे आपजी को दर्शन दिए। परम पूज्य कबीर साहेब (कविर्देव) ने अपने प्यारे हंस घीसादास जी को प्रभु साधना करने को कहा तथा लगभग एक घण्टे तक सत्संग सुनाया। बहुत से बच्चे उपस्थित थे तथा एक वृद्धा भी उपस्थित थी। परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से अपनी ही (परमेश्वर की) महिमा सुनकर आदरणीय घीसा दास साहेब जी ने सत्यलोक चलने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। तब प्रभु कबीर (कविर्देव) ने कहा कि पुत्रा आओ, एकांत स्थान पर मंत्रा दान करूंगा। अन्य श्रोताओं से 200 फुट की दूरी पर ले जाकर नाम दान किया, मंत्रित  जल अपने लोटे(एक पात्रा) से पिलाया तथा कुछ मिश्री संत घीसा दास साहेब जी को खिलाई। शाम का अंधेरा होने लगा था। परमेश्वर कबीर (कविर्देव) अन्तध्र्यान हो गए।  सात वर्षीय बालक घीसादास साहेब जी अचेत हो गए। वृद्धा भतेरी ने गाँव में आकर आप जी के माता-पिता को बताया कि आपके बच्चे को एक जिन्दा महात्मा ने मन्त्रिात जल पिला दिया, तुम्हारा बेटा तो अचेत हो गया तथा वह जिन्दा अदृश हो गया। आपजी के माता-पिता जी को वृद्ध अवस्था में एक संत के आशीर्वाद से संतान रूप में आपजी की प्राप्ति हुई थी। समाचार सुनते ही माता-पिता अचेत हो गए। अन्य ग्रामवासी घटना स्थल पर पहुँचे और अचेत अवस्था में ही बालक घीसा दास साहेब जी को घर ले आए। जब माता-पिता होश में आए। बच्चे की गंभीर दशा देखकर विलाप करने लगे। सुबह सूर्य उदय होते ही बालक घीसा जी सचेत हो गए। फिर आप जी ने बताया कि यह बाबा जिंदा रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा कबीर जी थे, यही पूर्ण परमात्मा काशी में धाणक (जुलाहा) रूप में एक सौ बीस वर्ष रह कर सशरीर वापिस चले गए थे। कल मुझे अपने साथ सतलोक लेकर गए थे। आज वापिस छोड़ा है। माता-पिता ने बच्चे के स्वस्थ हो जाने पर सुख की सांस ली, बच्चे की बातों पर विशेष ध्यान नहीं दिया। आदरणीय घीसा दास साहेब जी समाज की परवाह न करते हुए भक्ति प्रचार में लगे रहे तथा पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) के उपदेशों का प्रचार करने लगे। सर्व को बताने लगे कि वही कबीर जी जो काशी में जुलाहा रूप में रह कर चला गया, पूर्ण परमात्मा है, वह साकार है। Home View web version About Me Alok Dass View my complete profile Powered by Blogger.

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