Wednesday, 25 October 2017

ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।5.24।।

Search form Search Search Navigation श्रीमद् भगवद्गीता Script Chapter Sloka ‹‹ ‹ › ›› Show Audio Show Select the Translation's and Commentaries to be Displayed मूल श्लोकः योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः। स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।5.24।। Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka ।।5.24।।ब्रह्ममें स्थित हुआ कैसा पुरुष ब्रह्मको प्राप्त होता है सो कहते हैं जो पुरुष अन्तरात्मामें सुखवाला है जिसको अन्तरात्मामें ही सुख है वह अन्तःसुखवाला है तथा जो अन्तरात्मामें रमण करनेवाला है जिसकी क्रीड़ा ( खेल ) अन्तरात्मामें ही होती है वह अन्तरारामी है और अन्तरात्मा ही जिसकी ज्योति प्रकाश है वह अन्तर्ज्योति है। जो ऐसा योगी है वह यहाँ जीवितावस्थामें ही ब्रह्मरूप हुआ ब्रह्ममें लीन होनारूप मोक्षको प्राप्त हो जाता है। Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta ।।5.24।।योऽन्तरिति। अन्तः तस्यान्तरेव बाह्यानपेक्षि ( omits बाह्यानपेक्षि to व्यवहारे तु) सुखं तत्रैव रमते तत्र चास्य प्रकाशः व्यवहारे तु मूढत्वमिव। उक्तं च जड इव विचरेदवादमतिः इति। ( PS 71 ) । Hindi Translation By Swami Ramsukhdas ।।5.24।।जो मनुष्य केवल परमात्मामें सुखवाला है और केवल परमात्मामें रमण करनेवाला है तथा जो केवल परमात्मामें ज्ञानवाला है वह ब्रह्ममें अपनी स्थितिका अनुभव करनेवाला सांख्ययोगी निर्वाण ब्रह्मको प्राप्त होता है। Hindi Translation By Swami Tejomayananda ।।5.24।। जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुख वाला आत्मा में ही आराम वाला तथा आत्मा में ही ज्ञान वाला है वह योगी ब्रह्मरूप बनकर ब्रह्मनिर्वाण अर्थात् परम मोक्ष को प्राप्त होता है।। Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya ।।5.24।। यः अन्तःसुखः अन्तः आत्मनि सुखं यस्य सः अन्तःसुखः तथा अन्तरेव आत्मनि आरामः आरमणं क्रीडा यस्य सः अन्तरारामः तथा एव अन्तः एव आत्मन्येव ज्योतिः प्रकाशो यस्य सः अन्तर्ज्योतिरेव यः ईदृशः सः योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मणि निर्वृतिं मोक्षम् इह जीवन्नेव ब्रह्मभूतः सन् अधिगच्छति प्राप्नोति।।किञ्च

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