Friday, 27 October 2017
नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी

नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥
By: Pravin Agrawal

1.
1. नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥ सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥1॥

2.
2. भावार्थ:-हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। हनुमान्जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब प्रभु श्री रामचंद्रजी ने 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा॥1॥

3.
3. चौपाई : * नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥ सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥1॥ भावार्थ:-हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। हनुमान्जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब प्रभु श्री रामचंद्रजी ने 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा॥1॥


4.
4. उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना॥ यह संबाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥2॥ भावार्थ:-हे उमा! जिसने श्री रामजी का स्वभाव जान लिया, उसे भजन छोड़कर दूसरी बात ही नहीं सुहाती। यह स्वामी-सेवक का संवाद जिसके हृदय में आ गया, वही श्री रघुनाथजी के चरणों की भक्ति पा गया॥2॥

5.
5. दोहा : * ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल। तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥33॥ भावार्थ:-हे प्रभु! जिस पर आप प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। आपके प्रभाव से रूई (जो स्वयं बहुत जल्दी जल जाने वाली वस्तु है) बड़वानल को निश्चय ही जला सकती है (अर्थात् असंभव भी संभव हो सकता है)॥3॥




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