Saturday, 28 October 2017
त्रयी विद्या
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gyan vigyan Brhamgyan
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Dec 28, 2013
वेद शब्द के तीन अर्थ सामान्यतः किये जाते है जिसको त्रयी विद्या भी कहते है। ईश्वर जीव प्रकृती, परमात्मा को सत्त्चिदानन्द सत्य अर्थात आन्तरीक अस्तित्व अन्तःकरणीय सत्य, चित्त अर्थात श्रेष्ट चेतनता श्रेष्ट आनन्द जो अस्तित्व से आता है। केवल परमात्रमा के सभी वस्तु नासवान हैं। परमात्मा के पास ही सबसे अधीक शक्तिशाली शक्ति है। परमात्मा ही इस जगत का सबसे बड़ा स्वामी है और सबका रक्षक है। परमात्मा ही एक ऐसा तत्त्व है जो सब जगह सब में विद्यमान हैं। परमात्मा ही सभी प्रकार की शक्तियों का मालिक और उद्धारकर्ता है। परमात्मा सब कुछ जानने वाला है वह सब के हृदय में बैठ कर सबका हर पल साक्षात्कार कर रहा है। उससे कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता हैं ना ही कुछ भी छुप सकता है क्योंकि वह सर्वज्ञ है। परमात्मा सर्वव्यापक है सबकुछ जानने वाला है। परमात्मा सर्वशक्तिमान, सर्वेश्वर, सर्वाअन्तर्यामी, सर्वोत्पादक, अजय, अमर, अभय, नित्य, पवीत्र, अनन्तज्ञान, त्रीकालदर्शि, परमात्मा ही सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान का प्रमुख श्रोत है जिसको सत्य के द्वारा जाना जाता है। परमात्मा ही सबसे अधीक आनन्दित और आनन्द को देने वाला है। परमात्मा ही सहसे श्रेष्ट न्याय करने वाला न्यायधीस है जो हम सब को हमारें कर्मों के आधार पर निस्पक्ष भाव से न्याय करता है, और उपयुक्त कर्मों का फल उपहार पुरष्कार के रूप में देता है। केवल परमात्मा ही पूर्ण है, और सभी प्रकार की अपूर्णता से रहित है। परमात्मा ही केवल एक ऐसा तत्त्व है जिसकी कोई भी मानव परीपूर्रण ब्याख्या नहीं कर सकता है। क्योंकि वह अब्याख्य है उसको व्यक्त करने की जो भाषा वह मौन की भाषा है। आज के समय में एक क्षण के लिए भी किसी का मौन होना असंभव के समान है उवर से तो लग सकता है की मौन है लेकिन मन कभी शान्त या मौन नहीं होता है। उपर से उसने मौनता को ओढ़ रखा है। विचार उसके अन्दर बिना किसी ब्यवधान के निर्बिध्न रूप से निरन्तर हमेशा चलते रहते है। जिसके लिए ही स्टेफिन हाकिन्स कहता है केवल परमात्मा ही एक ऐसा विषय है जिसकी ब्याख्या या परीभाषा हम नहीं कर सकते है। इसका केवल हम अपनी आत्मा से अनुभूती कर सकते है। दूसरें सारें मार्ग अपूर्ण है। अदृश्य की क्या ब्याख्या कर सकते है? यही एक रहस्य है, और जो भी उससे जुड़ा है वह भी उसके गुणों से परीपूर्ण है जीवन का मूल आधार वही हैं इसलिए मै कहता हूं की यह जीवन रहस्य है इसमें जितना प्रवेश करते जायेगें उतना ही आनन्द बढ़ता जायेगा। परमात्मा एक है उसको लोग अपने अनुसार अनन्त नामों से जानते है। जैसा की वेद स्वयं कहते हैं एकं सद विप्रा बहुदा बदन्ति। आनन्द और रहस्य के साथ आश्चर्य की अनुभूती होती है।
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