Saturday 28 October 2017

गायत्री शाप

Press question mark to see available shortcut keys 8 Awes NIRAJ Public Jul 7, 2015  ।। गायत्री शाप ।। सात्त्विक राजसिक तामसिक तीन प्रकार की साधनाँए व सिद्धियाँ होती हैं जो साधक के उद्देश्य एवं भावनानुरूप परिणाम उपस्थित करती हैं । गायत्री शक्ति हैं , शक्ति का उपयोग कल्याण व अनिष्ट मे किसी भी एक मे हो सकता है । यहाँ विधि-विधान , पथ-प्रदर्शन , पात्र - कुपात्र का विचार आवश्यक हो जाता है । पुराणों के अनुसार वसिष्ठ और विश्वामित्र ऋषियों ने गायत्री की साधना निष्फल होने का श्राप दे रखा है । देवताओं द्वारा श्राप विमोचन हेतु प्रार्थना करने पर उत्कीलन की विधि व्यवस्था बनाई गई । विधि का अपना महत्व है परंतु इस उपाख्यान की उपेक्षा नही की जा सकती । वसिष्ठ अर्थात विशेष रूप से श्रेष्ठ जो कि प्राचीन काल मे एक सम्मानित पद होता था । गायत्री पुरश्चरण ( सवा करोड़ गायत्री जप ) उपरांत यह पद मिलता था । रघु - अज - दिलीप - दशरथ - राम - लव कुश , इन छह पीढ़ियों के गुरु एक ही वशिष्ठ नही अपितु अलग अलग उपासना एवं तपस्या धारक थे । वशिष्ठ श्राप मोचन का अर्थ यही है कि किस तरह के सिद्ध साधक से गायत्री की दीक्षा लेनी चाहिये जो मार्ग की सभी कठिनाइयों का उचित रीति से मन्त्र , पथ निर्देशन कर सके । एैसे पथ प्रदर्शन के संरक्षण मे साधना करना वशिष्ठ श्राप मोचन है । विश्वामित्र अर्थात विश्व का , समाज का , राष्ट्र का - मित्र ( हितचिन्तक ) । स्वार्थी व्यक्ति किसी प्रकार का भी अनिष्ठ कर सकता है । गुरु का तपस्वी होना ही पर्याप्त नही होता उसमें उदारता , महानता , और कर्तव्य निष्ठा के गुण भी होने चाहिये । रावण वेदपाठी , विद्वान , और तपस्वी भी था परंतु उसका आचरण ठीक नही था , उसे वशिष्ठ तो कहा जा सकता था परंतु विश्वामित्र नही , उसे गायत्री की साधना गुरु होने का अधिकार प्राप्त नही हो सकता था । वसिष्ठ एवं विश्वामित्र का श्राप विमोचन तभी होगा जब तप और चरित्र दोनो मे वह उच्च और श्रेष्ठ होगा । इन दोनो के शापों से मुक्त होने पर गायत्री साधना निश्चित रूप से सफल होती है । Translate 6 plus ones 6 no comments no shares Shared publicly•View activity Add a comment...

No comments:

Post a Comment