Wednesday, 25 October 2017

तीसरी महाविद्या षोडषी (दस महाविद्या)

Parivartan Ki Awaj A blog about religion & art of living ▼ मंगलवार, 8 सितंबर 2015 तीसरी महाविद्या षोडषी (दस महाविद्या) तीसरी महाविद्या श्रीविद्या को षोडषी एवं त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। इन्हें काली का ही एक रूप माना जाता है। काली के दो रूप कृष्णवर्णा और रक्तवर्णा हैं। रक्तवर्णा काली ही त्रिपुर सुंदरी हैं। यह धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की अधिष्ठात्री देवी हैं। इससे पहले की महाविद्याओं में कोई भोग तो कोई मोक्ष में विशेष प्रभावी हैं लेकिन यह देवी समान रूप से दोनों ही प्रदान करती हैं। इनकी उपासना बहुत ही गूढ़ है और मान्यता के अनुसार पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों व संस्कारों के बलवान होने पर ही श्रीविद्या की दीक्षा का योग बनता है। यह देवी अत्यंत प्रभावी हैं। मेरा अनुभव है कि इनकी उपासना जहां व्यक्ति को हर क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचा देती है, वहीं लापरवाही होने पर देवी अपने महसूस करने वाले तरीके से दूर कर देती हैं। इस विद्या के तीन रूप-आठ वर्षीय बालिका बाला त्रिपुर सुंदरी, षोडष वर्षीय षोडषी तथा युवा स्वरूप ललिता त्रिपुर सुंदरी हैं। अत: इनकी साधना में तीनों के क्रम का ध्यान रखना आवश्यक है। जिन्होंने सीधे ललिता त्रिपुर सुंदरी की उपासना की उन्हें शुरू में आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हालांकि बाद में उसका विकास अवश्य हुआ है। बाला त्रिपुरा मंत्र ऐं क्लीं सौ: विनियोग-- ऊं अस्य श्रीत्रिपुरबाला मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति्त: ऋषि:, पंक्तिश्छंद:, त्रिपुरबाला देवता, सौ: बीजं, क्लीं शक्ति:, ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोग:। न्यास--  दक्षिणामूर्ति्तये नमों मूर्घि्न, पंक्तिश्छंदसे नमो मुखे, त्रिपुराबालादेवतायै नमो हृदि, सौ: बीजाय नमो गुह्ये, क्लीं शक्तये नम: पादयो:, विनियोगाय नम: सर्वांगे। ध्यान रक्तांबरां चंद्रकलावतंसा समुद्यादादित्यनिभां त्रिनेत्राम्। विद्याक्षमालाभयदानहस्तां ध्यायामि बालामरुणाबुंजस्थाम्।। पाशांकुशौ पुस्तकमक्ष सूत्रं करैर्दधाना सकला मराचर्या। रक्तात्रिनेत्रा शशिशेखरेयं ध्येयाखिलद्धर्यै त्रिपुरात्रबाला।। विधि व फल--  पुस्तकों में पुरश्चरण के लिए इस मंत्र के तीन लाख जप और तदनुसार दशांश हवन का प्रावधान है। मेरे विचार से इसकी एक और आवृत्ति कर लेनी चाहिए। तगर, राजवृक्ष, गुलाब या चंपा के फूलों एवं बिल्व फलों से हवन करने पर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। लाल कमलों से हवन करने पर स्त्रियां वशीभूत होती हैं। सरसों से हवन करने पर शत्रु का नाश होता है और राजा (शीर्ष अधिकारी) वश में हो जाते हैं। दूधवाली गुडुची के हवन से अपमृत्यु एवं दूर्वा से हवन करने पर दीर्घायु की प्राप्ति होती है। पलाश के फूलों से हवन करने पर वाक् सिद्धि तथा बने हुए चावल (भात) से हवन करने पर अन्न का प्रचूरता होगी। दूध, दही एवं लाजा से हवन करने पर रोग का नाश होता है। बीज मंत्र और उनके प्रयोग वाग्बीज--  ऐं ध्यान विद्याक्षमालासु कपालमुद्रा राजत्करां कुंदसमान कांतिम्। मुक्ताफलालंकृति शोभितांगीं बालां स्मरेद् वांगमयसिद्धिहेतो:।। विधि--  श्वेत चंदन लगाकर, मुक्तानिर्मित आभूषण धारण कर एवं श्वेत वस्त्र पहन कर तीन लाख वाग्बीज मंत्र जप करने के उपरांत मधुमिश्रित नवीन पलाश के फूलों से दशांश हवन करने पर श्रेष्ठ कवि बनकर महिलाओं में प्रिय होता है। कामबीज-- क्लीं विधि-- रक्त चंदन लगाकर, लाल आभूषण एवं वस्त्र पहन कर तीन लाख जप करने के उपरांत कर्पूर व लाल चंदन मिश्रित मालती के फूलों से दशांश हवन करने पर समस्त जीवों का वशीकरण होता है। तृतीय बीजं-- सौ: विधि-- श्वेत चंदन लगाकर एवं श्वेत वस्त्र पहन कर स्वयं को देवतामय मानते हुए मंत्र का तीन लाख जप करने के उपरांत श्वेत चंदन मिश्रित मालती के फूलों से दशांश हवन करने पर लक्ष्मीवान, विद्यापति एवं कीर्तिमान होवें। शापोद्धार उक्त मंत्र अत्यंत तेजी से फल देने वाले हैं लेकिन कीलित होने से बिना शापोद्धार के इसे न करें। शापोद्धार की प्रक्रिया सरल है। 1-ह्स्रौ हस्कलरीम् ह्स्रौ-- सौ बार मंत्र का जप करें। 2-ह्सौ हस्कलरीम् ह्सौ-- सौ बार मंत्र का जप करें। 3-ऐं ऐं सौ: क्लीं क्लीं ऐं सौ: सौ: क्लीं-- सौ बार मंत्र का जप करें। 4-हस्रौ हस्क्लरीं हस्रौ:-- सौ बार मंत्र का जप करें। 5-हसौं हस्क्ल्रीं ह्सौं-- सौ बार मंत्र का जप करें। उत्कीलनम् चेतनी एवं आह्लादिनी मंत्र के जप से उत्कीलन हो जाता है। 1-चेतनी मंत्र-- ऊं ऐं ई औं 2- आह्लादिनी मंत्र-- ऊं क्लीं नम: उद्दीपनम् उद्दीपन मंत्र करने से विद्या जागृत होती है और बिना बाधा के शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। बाला त्रिपुरा मंत्र—ऐं क्लीं सौ: के साथ निम्नलिखित मंत्रों को सात-सात बार करने से विद्या जागृत होती है। 1-वद वद वाग्वादिनी ऐं। 2-क्लिन्ने क्लेदिनि महाक्षोभं कुरू। 3-ऊं मोक्ष कुरू। विविध कामना मंत्र उक्त मंत्रों के पुरश्चरण के बाद श्रीविद्या के मंत्रों का विविध कामना के लिए आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। 1-ऐं क्लीं सौ:-- मंत्र जप से शत्रुनाश होता है। 2-क्लीं ऐं सौ:-- इस मंत्र के जप से जगत का वशीकरण होता है। 3-क्लीं सौ: ऐं–- मुक्ति प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप अत्यंत उपयोगी है। 4-ह्रीं क्लीं हसौ:-- सर्वसिद्धि के लिए। Kishor Jha at 9:20:00 am साझा करें ‹ › मुख्यपृष्ठ वेब वर्शन देखें मेरे बारे में Kishor Jha मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें Blogger द्वारा संचालित.

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