Wednesday, 25 October 2017
कलयुग में अमृत की तरह है गायत्री मंत्र
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इसीलिए कलयुग में अमृत की तरह है गायत्री मंत्र
Updated: Wed, 27 May 2015 02:48 PM (IST)
आत्म- प्राप्ति करने की दिव्य दृष्टि जिस बुद्धि से प्राप्त होती है, उसकी प्रेरणा गायत्री द्वारा होती है।
पंडित विशाल दयानंद शास्त्री
हमारे संत, महात्माओं और ऋर्षियों ने मां गायत्री देवी के मंत्र यानी गायत्री मंत्र को बहुत ही दुर्लभ बताया है। जिसे लगभग सभी सम्प्रदाय एक मत में स्वीकार करते हैं। अथर्ववेद 19-71 में गायत्री मां की स्तुति की गई है, जिसमें उन्हें आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।
ऋर्षियों की वाणी से...
देवर्षि नारदजी का कथन है, 'गायत्री भक्ति का ही स्वरूप है। जहां भक्ति रूपी गायत्री है, वहां श्रीनारायण का निवास होने में कोई संदेह नहीं करना चाहिए।'
चरक ऋषि: 'जो ब्रह्मचर्य गायत्री देवी की उपासना करता है और आंवले के ताजे फलों का सेवन करता है, वह दीर्घजीवी होता है।'
ऋषि विश्वामित्र: 'ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई मंत्र नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से तीन वर्ष तक गायत्री जाप करता है, वह ईश्वर को प्राप्त करता है। जो द्विज दोनों संध्याओं में गायत्री जपता है, वह वेद पढ़ने के फल को प्राप्त करता है। अन्य कोई साधना करे या न करे, केवल गायत्री जप से भी सिद्धि पा सकता है। नित्य एक हजार जप करने वाला पापों से वैसे ही छूट जाता है, जैसे केंचुली से सांप छूट जाता है।'
ऋषि शंख : 'नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाला गायत्री मंत्र ही है। उससे उत्तम वस्तु स्वर्ग और पृथ्वी पर कोई नहीं है। गायत्री का ज्ञाता निस्संदेह स्वर्ग को प्राप्त करता है।'
ऋषि पाराशर: 'समस्त जप सूक्तों तथा वेद मंत्रों में गायत्री मंत्र परम श्रेष्ठ है। वेद और गायत्री की तुलना में गायत्री का पलड़ा भारी है। भक्तिपूर्वक गायत्री का जप करने वाला मुक्त होकर पवित्र बन जाता है। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास पढ़ लेने पर भी जो गायत्री से हीन है, उसे ब्राह्मण नहीं समझना चाहिए।'
पढ़ें : गायत्री मंत्र जैसा ही इस्लाम धर्म में सूरह फातेह
महर्षि व्यास: 'जिस तरह पुष्प का सार शहद, दूध का सार घृत है, उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है सिद्ध की हुई गायत्री कामधेनु के समान है।गंगा शरीर के पापों को निर्मल करती है, गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र होती है। जो गायत्री छोड़कर अन्य उपासनाएं करता है, वह पकवान छोड़कर भिक्षा मांगने वाले के समान मूर्ख हैं।
महापुरुषों की वाणी से...
महात्मा गांधी: 'गायत्री मंत्र निरंतर जप रोगियों को अच्छा करने और आत्मा की उन्नति के लिये उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल में संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।
लोकमान्य तिलक : 'जिस बहुमुखी दासता के बंधनों में भारतीय प्रजा जकड़ी हुई है, उसके लिये आत्मा के अन्दर प्रकाश उत्पन्न होना चाहिये, जिससे सत् और असत् का विवेक हो, कुमार्ग को छोड़कर श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले।'
महामना मदनमोहन मालवीय : 'ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमें दिए हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री मंत्र है। गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है। ईश्वर का प्रकाश आत्मा में आता है। इस प्रकाश में असंख्य आत्माओं को भव- बंधन से त्राण मिला है। गायत्री में ईश्वर परायणता के भाव उत्पन्न करने की शक्ति है। साथ ही वह भौतिक अभावों को दूर करती है। गायत्री की उपासना ब्राह्मणों के लिये तो अत्यन्त आवश्यक है। जो ब्राह्मण गायत्री जप नहीं करता, वह अपने कर्तव्य धर्म को छोड़ने का अपराधी होता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर: 'भारतवर्ष को जगाने वाला जो मंत्र है, वह इतना सरल है कि एक ही श्वास में उसका उच्चारण किया जा सकता है। वह है गायत्री मंत्र, इस पुनीत मंत्र का अभ्यास करने में किसी प्रकार के तार्किक ऊहापोह, किसी प्रकार के मतभेद अथवा किसी प्रकार के बखेड़े की गुंजाइश नहीं है।'
स्वामी रामकृष्ण परमहंस : 'मैं लोगों से कहता हूं कि लम्बी साधना करने की उतनी आवश्यकता नहीं है। इस छोटी- सी गायत्री की साधना करके देखो। गायत्री का जप करने से बड़ी- बड़ी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति बड़ी भारी है।'
पढ़ें : गायत्री मंत्र के जप से मिलते हैं ये लाभ
स्वामी विवेकानन्द: 'राजा से वही वस्तु मांगी जानी चाहिये, जो उसके गौरव के अनुकूल हो। परमात्मा से मांगने योग्य वस्तु सद्बुद्धि है। जिस पर परमात्मा प्रसन्न होते हैं, उसे सद्बुद्धि प्रदान करते हैं। सद्बुद्धि से सत् मार्ग पर प्रगति होती है और सत् कर्म से सब प्रकार के सुख मिलते हैं।
जगद्गुरु शंकराचार्य: 'गायत्री की महिमा का वर्णन करना मनुष्य की सार्मथ्य के बाहर है। बुद्धि का होना इतना बड़ा कार्य है, जिसकी समता संसार के और किसी काम से नहीं हो सकती। आत्म- प्राप्ति करने की दिव्य दृष्टि जिस बुद्धि से प्राप्त होती है, उसकी प्रेरणा गायत्री द्वारा होती है।'
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