Wednesday, 25 October 2017

बृहस्पते प्रथमं वाचो अग्नं (ऋग्वेद 10.71.1) Read more at Aryamantavya: आदि सृष्टि के मनुष्यो की भाषा क्या थी और भाषा का विस्तार कैसे हुआ ? http://wp.me/p6VtLM-1VP

Aryamantavya Search PRIMARY MENUSKIP TO CONTENT आर्य समाज, पाखण्ड खंडिनी, महर्षि दयानंद सरस्वती, वेद, वैदिक धर्म, वैदिक विज्ञानं, शंका समाधान आदि सृष्टि के मनुष्यो की भाषा क्या थी और भाषा का विस्तार कैसे हुआ ? JUNE 30, 2015 RAJNEESH 13 COMMENTS भाषा की उत्पत्ति : मानव जिस समय पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ उस समय बोलने और समझने की शक्ति समपन्न अवस्था थी – यह निर्देश पहले भी किया जा चुका है की आदि सृष्टि के मनुष्य युवा अवस्था के उत्पन्न होते हैं – इसलिए उनमे बोलने की शक्ति थी तो यह भी मानना होगा की वर्ण भी थे जिनके द्वारा वह अपनी वाणी को प्रकट कर सके। यदि कोई यह माने की वर्ण नहीं थे तो उसके साथ यह भी स्वीकार करना ही पड़ेगा की मनुष्य आदिम अवस्था में गूंगा उत्पन्न हुआ। यदि गूंगा उत्पन्न हुआ तो फिर वह किसी भी हालत में बोलने वाला नहीं हो सकता। इसलिए निष्कर्ष यही निकलेगा की उसमे बोलने की शक्ति थी और जब बोलने की शक्ति थी तो ये भी तथ्यात्मक है की जो भाषा वो बोले उनके वर्ण भी होने चाहिए। जो लोग कहते हैं की सेमिटिक भाषाए, हीब्रू अथवा अरबी आदि आर्य भाषाओ से स्वतंत्र हैं वह गलती पर हैं, कारण की मनुष्य किसी नवीन भाषा को तो कभी बना ही नहीं सकता ? क्योंकि मैथुनी (सेक्स) सृष्टि के लोगो की भाषा सदैव उनके मातापिता तथा गुरु की भाषा होती है। लेकिन आदि मनुष्यो की भाषा पूर्ण (संस्कृत) भाषा ही थी ऐसा नियम इसलिए मान्य है क्योंकि आदि मनुष्यो का माता पिता और गुरु ईश्वर के अतिरिक्त और कोई थे ही नहीं। तो ऐसी स्थति में और कोई देशीय भाषा विरासत में मिलना असंभव है – तो साफ़ है उनकी केवल वही भाषा होगी जो सृष्टि के पदार्थो में विद्यमान हो – परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर प्रकट किये जाने वाले ज्ञान के पूर्ण माध्यम होने की उस भाषा में क्षमता हो और वह ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सदा प्रत्येक कल्प में एक सी रहती हो तथा आगे बोल चाल की समस्त भाषाओ को उत्पन्न करने में सक्षम हो। विशेष बात यह है की वो किसी देश विदेश की भाषा न हो और न उससे पूर्व कोई ज्ञान वा भाषा पृथ्वी पर कहीं मौजूद हो बस यही बात है जो विशेष वर्णन के योग्य है की परमेश्वर ने मानव के पृथ्वी पर आने के साथ ही साथ वेद ज्ञान की प्रेरणा मनुष्य में दी – और वह वेद की भाषा “संस्कृत” में ईश्वरीय ज्ञान मानव को मिला जो आदि ज्ञान और आदि भाषा – दोनों था। वाणी भाषाओ का विस्तार – ऊपर जो कुछ दर्शाया गया है उसका भाव यह है की आदि अमैथुनी सृष्टि के मनुष्यो के शरीर तथा शरीर के सब अंग आदि आदर्श रुपी थे, जैसे वो आदि सृष्टि के मनुष्य मैथुनी सृष्टि के मनुष्यो के लिए साँचे रुपी थे अर्थात मनुष्य समाज के प्रवर्तक थे वैसे ही आदि भाषा भी साँचा रुपी और सभी भाषाओ की प्रवर्तक होनी चाहिए। इसीलिए उस आदि भाषा का नाम संस्कृत है। संस्कृत का अर्थ होगा पूर्ण भाषा यानी जो पूर्ण भाषा हो वो संस्कृत कहलाएगी। इसी प्रकार अपूर्ण भाषाए जो वेद भाषा से संकोच, अपभ्रंश और मलेच्छित आदि होकर मनुष्य के बोल चाल की भाषाए बनती हैं। क्योंकि संस्कृत भाषा के दो भाग हैं – 1. वैदिक संस्कृत 2. लौकिक संस्कृत प्राय सभी पश्चिमी विद्वान और अनेक भारतीय अनुसन्धानी भी संस्कृत को ही सभी भाषाओ का मूल मानते हैं – पर ध्यान देने वाली बात है की लौकिक संस्कृत की जन्मदात्री वैदिक संस्कृत है। वैदिक संस्कृत ही आदि भाषा है क्योंकि वैदिक संस्कृत अर्थात वेद की भाषा कभी भी किसी भी देश वा किसी जाती की अपने बोलचाल की भाषा नहीं रही है – क्योंकि वेदो में वाक्, वाणी आदि पदो का प्रयोग देखा जाता है भाषा का नहीं। अब हम समझते हैं भाषा का विस्तार किस प्रकार हुआ – देखिये वेद में वैदिकी वाणी को नित्य कहा है – तस्मै नूनमभिद्यवे वाचा विरूप नित्यया। (ऋग्वेद 8.75.6) नित्यया वाचा – अर्थात नित्य वेदरूप वाणी – यानी की वैदिक संस्कृत यह सब वाणियों (भाषाओ) की अग्र और प्रथम है – बृहस्पते प्रथमं वाचो अग्नं (ऋग्वेद 10.71.1) प्रभु से दी गयी वेदवाणी ही इस सृष्टि के प्रारंभिक शब्द थे। ईश्वर की प्रेरणा से यह वाणी सृष्टि के प्रारम्भ में ऋषियों पर प्रकट होती है। यज्ञेन वाचः पदवीयमायणतामानवविन्दन्नृषिषु प्रविष्टाम्। (ऋग्वेद 10.71.3) प्रभु अग्नि आदि को वेदज्ञान देते हैं इससे अन्य यज्ञीय वृत्तिवाले ऋषियों को यह प्राप्त होती है – इसी मन्त्र में आगे लिखा है – इस ही प्रथम, निर्दोष और अग्र वाणी को लेकर लोग बोलने की भाषा का विस्तार करते हैं। तामाभृत्या व्यदधुः पुरूत्रा तां सप्त रेभा अभी सं नवंते।। (ऋग्वेद 10.71.3) इस वाणी को ऋषि मानव समाज में प्रचारित करते हैं। यह वेदवाणी सात छन्दो से युक्त है अर्थात २ कान – २ नाक – २ आँख और एक मुख ये सात स्तोता बनकर इसे प्राप्त करते हैं – उपरोक्त प्रमाणों और तथ्यों से सिद्ध होता है की मनुष्य की एक ही भाषा थी – और मनुष्यो ने इसी वेद वाणी से अर्थात प्रथम व पूर्ण भाषा संस्कृत से – अपूर्ण भाषाए – अर्थात जितनी भाषाए आज प्रचलित हैं उनका निर्माण किया – लेकिन वैदिक संस्कृत में आज भी कोई फेर बदल नहीं हो सका – क्योंकि वैदिक संस्कृत पूर्ण भाषा है – कृपया सत्य को जानिये – वेद की और लौटिए — SHARE THIS: TwitterFacebookGoogleEmailPrint Related अमैथुनी सृष्टि के मनुष्यों की आयुः- - राजेन्द्र जिज्ञासु September 23, 2015 In "वैदिक धर्म" ‘वेदाविर्भाव और वेदाध्ययन की परम्परा पर विचार’ January 20, 2015 In "वेद विशेष" सृष्टि-प्रसंग में विरोध कहने वालों का समाधान: पण्डित भीमसेन शर्मा February 23, 2017 In "IMP" Post navigation PREVIOUS POST वेद, विज्ञानं, और सृष्टि उत्पति के युवा मनुष्य NEXT POST क्या विवाह के समय श्री राम की आयु १६ वर्ष और माता सीता की आयु ६ वर्ष थी ? 13 THOUGHTS ON “आदि सृष्टि के मनुष्यो की भाषा क्या थी और भाषा का विस्तार कैसे हुआ ?” sarwesh kumar NOVEMBER 29, 2015 AT 7:12 PM Can you please tell me about Darwin’s theory or the theory of evolution.it is said that humans are created through apes.but our religion tells that god created human.can you contradict the theory.requesting for an article on it or just reply. That theory alone have made many people atheist and i dont want to become atheist…..so please contradict that theory.thankyou REPLY Rishwa Arya NOVEMBER 30, 2015 AT 5:00 AM Darwin’s theory has been already contradicted. TO know about Vedic response Please refer “Vedic Sampatti” by Pandit Raghunandan sharma REPLY sarwesh kumar NOVEMBER 30, 2015 AT 11:56 AM By whom scientists or our religion.where should i found vadic sampatti any link. REPLY Rishwa Arya NOVEMBER 30, 2015 AT 12:08 PM You may get it from M/s Govind Ram Hasananad http://vedicbooks.com/ or any other book seller REPLY sarwesh kumar DECEMBER 1, 2015 AT 9:19 PM Any direct link to download that ? REPLY Rishwa Arya DECEMBER 2, 2015 AT 2:17 AM We are improving download section it will be available soon REPLY sarwesh kumar DECEMBER 1, 2015 AT 9:24 PM From your site it have been removed but it is ok.i have satyarth prakash….enough REPLY Rishwa Arya DECEMBER 2, 2015 AT 2:17 AM We will provide it soon REPLY sarwesh kumar DECEMBER 3, 2015 AT 6:57 PM Thank you…… for that much effort.but a question…… from your works we came to know that both bible and quran are unscientific but why many pople than also follow them?…………………… i think our sanatan dharma have to be made popular in their country……..but it give pain when i see the popularity of aryasamaj.it has to be popular……….. a lots of work has to be done on it. Don’t you think ? REPLY Rishwa Arya DECEMBER 4, 2015 AT 3:14 AM problem is that people only feel pain but to don’t cure for the reason of pain. YOu have also feel pain I hope that you will do something to cure pain REPLY sarwesh kumar DECEMBER 3, 2015 AT 7:03 PM Due to unscientific nature of bible a lot of people has started disbelieving god.we must have to tell them about our religion which is indeed scientific……. but how?someone has to make it popular on their country…… as well as in our Ccountry. REPLY sarwesh kumar DECEMBER 5, 2015 AT 5:13 PM What is the cure?no one care about religion.every one(90%)has been fully westernised.they hate their languages in terms of English.. etc.what can anyone do in that type of country.if they do something like converting muslim to hindu then media as well as groups of idiots come in their path.so what anyone can do…..know any work.? REPLY Rishwa Arya DECEMBER 6, 2015 AT 4:24 AM We do agree about your concern. same situation was existed when British & Mugals dominated us. but our ancestors struggled and result you know. it’s not a time to leave the hope but to fight for the cause. why do u expect that other’s will do why dont u think that we will do. decide your goal in particular field and get the result REPLY LEAVE A REPLY Your email address will not be published. Required fields are marked * Comment Name * Email * Website POST COMMENT SUBSCRIBE TO BLOG VIA EMAIL Enter your email address to subscribe to this blog and receive notifications of new posts by email. Email address: Your email address SUBSCRIBE VEDIC QUOTES Even if one flies beyond the sky, one is not free from the clutches of the realm of Varuna. His spies move about everywhere. Thousand- eyed, they scan beyond the earth. — Veda Next quote » DAYANAND SAGAR RECENT COMMENTS प्रेम आर्य on अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद: प्रेम आर्य on अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद: Power of the Shourya on अवतारवाद अर्थात् नपुंसकवाद: प्रेम आर्य on मलाई दयानन्द किन प्रिय छन्? प्रेम आर्य on मलाई दयानन्द किन प्रिय छन्? 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