Thursday, 9 November 2017
शंकरचार्य के पुत्र महर्षि शांडिल्य
BHIRGUVANSHI
Saturday, June 6, 2015
-डकोत ब्राह्मणो की वंशावली ::::::-
-डकोत ब्राह्मणो की वंशावली ::::::-
सृस्टी के रचिता भाग्य विधाता ब्रह्मा जी ने जब सृस्टी रचने का मन में विचार किया तो सबसे पहले उन्होंने अपने मानस पुत्रो को उत्प्न किया , जिसमे महर्षि भर्गु जी का नाम स्वर्ण अक्षरो में आता है. '। महर्षि भरगुजी की उत्पत्ति के संबंध में शोधकर्ताओं के अनेक मत है परन्तु शास्त्रो में इन्हे ब्रह्मा जी का मानस पुत्र ही माना जाता है , कुछ भी हो परन्तु भरगु जी को ब्रह्मा जी के मानस पुत्र होने से इंकार नही किया जा सकता ।
महऋषि भरगु जी ने कठिन तपस्या करके ब्रह्म ज्ञान प्राप्त किया, वे ,ज्योतिष, आयुर्वेद,शिल्प विज्ञानं ,दर्शन शास्त्र आदि विषयो के उच्च कोटि के ज्ञाता रहे, उनके रचित कुछ ग्रन्थ "भरगु स्मृति "(आधुनिक मनु स्मृति ),भर्गु संगहिता (ज्योतिष) भरगु संगहिता (शिल्प) भरगु शुत्र ,भर्गु उपनिषद ,भरगु गीता आदि आदि जग विख्यात है. । भर्गु जी एक महान ज्योत्षी व् त्रिकाल दर्शी थे ,तथा अपनी ज्योतिष विद्या के कारण वे वैदिक काल से ही प्रसिद्ध है , उनके द्वारा लिखी गई "भरगु संगहिता आज भी सभी ब्राह्मण वर्ग के लिए आजीवका का एक मात्र साधन है ,इसमें कोई नाममात्र भी सन्देह नहीं ।
महृषि भर्गु जी के दो पुत्रो का प्रमुख स्थान रहा है,जिनके नाम भरगु जी की पत्नी दिव्या के पुत्र शुक्र (उशना ), काव्य जो अशुरों के गुरु शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए ,तथा कठिन तपश्या करके देवो केदेव महादेव शिव भोले से मंर्त संजीवनी विद्या हासिल करके सफलता हाशिल कि, दूसरे पुत्र च्यवन जिनकी माता का नाम पुलोमी था , वैसे भर्गु जी के सात पुत्र होने का उल्लेख मिलता है.
( महर्षि शुक्राचार्य ) :::: अशुरों के गुरु शुक्राचार्य (भरगुवांशि डकोत ब्राह्मणो के वट - वृक्ष )जिनकी दो पत्नियों
का उल्लेख मिलता है ,इनकी एक पत्नी इन्दर की पुत्री जयन्ती ,जिसके गर्भ से देवयानी ने जन्म लिया, देवयानी का विवाह चंदरवंशीय राजा (ययाति) से हुआ ,उनके पुत्र प्रमुख यदु , मर्क व् तुर्वशु हुए । शुक्राचार्य जी की दूसरी पत्नी (गोधा) जिसके गर्भ से (शंड ) जिन्हे षंडाचार्य के नाम से भी जाना जाता है हुए ,षंड के पुत्र महर्षि शंकराचार्य हुए । शंकरचार्य के पुत्र महर्षि शांडिल्य हुए ,जिन्होंने शांडिल्य स्मृति ग्रन्थ की रचना की,शांडिल्य के पुत्र डामराचार्य हुए ,जिन्होंने डामर संघ्हिता ग्रन्थ की रचना की , ड़क मुनि ,(डंकनाथ) ड़क ऋषि इन्ही के नामों से जाना जाता है ।
महर्षि डामराचार्य (डक ऋषि ) के पांच पुत्र हुए ,जिनमे (सुषेण) जो की रावण के दरबार में चिकित्स्क थे , तथा राम-रावण युद्ध में राम के भ्राता लछमन को मूर्छित होने पर उनका इलाज किया था । भृगुवंशी (डक ) ऋषि से ही डकोत ब्राह्मणो का वट -वृक्ष आगे बढ़ा ।
डकोत ब्राह्मण वट वृक्ष :::::::::::::: (महर्षि भरगु )
शुक्राचार्य च्यवन
(शंड )
(शंकराचार्य)
(शांडल्य )
(डामराचार्य ) डंक नाथ (जिन्हे डंक मुनि )भी कहा जाता है
( ड़क ऋषि ) के बारे में शोध कर्ताओ द्वरा कई प्रकार की किवदंतियां (दंत कथाएँ ) प्रचलित है
किन्तु यह तो माना ही जाता है की वह एक ब्राह्मण व् उच्च कोटि के ज्योत्षी थे ,ठीक उसी प्रकार उनकी पत्नी के बारे में भी कई प्रकार की दंत कथाएँ (किवदंतियां) पढ़ने को मिलती है ,उनकी पत्नी (भड्डरी ) भड़ली के बारे में कहा जाता है की वह एक शूद्र परिवार की बेटी थी , परन्तु यह कथन किसी हद तक मनघडंत लगता है ,क्योकि डक ऋषि एक उच्कोटी के ब्राह्मण माने जाते है । उनकी पत्नी (भड्डरी ) के बारे में लिखा है की वह राजा कश्मीर की लड़की थी , भड्डरी एक विद्वान लड़की थी । भड्डरी की शर्त थी की जो व्यक्ति उसके प्रश्नो का उत्तर देगा वह उसी के साथ शादी करेगी , स्वयम्बर में महर्षि डक ने उसके सभी प्रश्नो का उत्तर दिया , और भड्डरी ने स्वयम्बर में महर्षि ड़क को अपना पति चुना , और इस प्रकार (भड्डरी ) को महर्षि डक की पत्नी कहलाने का अधिकार मिला । किवदंतियां ,दंत कथाएँ कुछ भी हो ,परन्तु यह तो शोध कर्ता मानते है की (डक ऋषि) एक ब्राह्मण और महा विद्वान थे ,उनकी पत्नी ((भड्डरी ) भी विद्वान थी ,जिसने स्वयम्बर
में डक ऋषि को अपना पति चुना,क्योकि कहा जाता है की पति -पत्नी का जोड़ा ईश्वर ऊपर से ही तय करके भेजता है । दंत कथाओ का न तो कोई अंत होता है न ही कोई औचित्य ,क्योकि (डक ऋषि) में वे सभी गुण मौजूद थे जो एक उच्च कोटि के ब्राह्मण में होने चाहिए , इसी लिए उसे एक सर्व गुण सम्पण डकोत नाम की संज्ञा दी गई , डकोत का अभिप्राय अंग्रेजी में इस प्रकार कहना चाहूंगा । DAKOT describe as under :-
D--- Dedicate ..( डकोत अपने काम के प्रति समर्पण की भावना रखते है.)
A--- Active.......( ये लोग अपने काम में फुर्तीले होते है. । )
K---- Kind ..... ( ये लोग दयालु भी होते है और अपने (दानदाता) का कम दान देने पर भी
भला चाहते है. ।)
O---Obedient...( ये लोग आज्ञाकारी भी होते है. )
T...Tactful .......( इस शब्द में इनके सभी गुण छिपे होते है अत: ये चतुर एवं चालाक भी होते है )
इस जाति के इतिहास पर नजर डाली जाये तो शोध कर्ताओ एवं ब्राह्मणो की दन्त कथाएँ एवं किवदंतियों ने इन लोगो को आत्मगिलानी का शिकार बना दिया ,क्योकि इस जाति के लोग शनि ,राहु, केतु का दान ग्रहण करते है, दूसरे वर्ग के ब्राह्मण भी करते है परन्तु (scapegoat) इनको बना दिया गया , आजीवका का साधन न होने के कारण भूतकाल में ऐसा करना पड़ा होगा ,इसमें कोई संदेह नहीं, वर्तमान में डकोत ब्राह्मणो के बच्चों ने नौकरी व् अपना दूसरा कारोबार करना चालू कर दिया है ,इस प्रकार इस समाज के लोग /बच्चे दान लेने से परहेज करते है. ।
प्राय देखा जाये तो वर्तमान में दूसरी जाति के लोग या दूसरे ब्राह्मण वर्ग शनि,राहु,केतु का दान लेते देखे गए है ,शनि मंदिरो में यदि सर्वे किया जाये तो शनि मंदिरो में दान लेने वाले डकोत ब्राह्मण की जगह दूसरे वर्ग के ब्राह्मण या किसी दूसरी जाति के लोग मिलेंगे ,। एक सर्वे के अनुसार डकोत ब्राह्मणो की जनसंख्या केवल एक लाख के करीब बताई गई है ,तथा इनको कई नमो से जाना जाता है. जैसे :- Agnikula,Bujru,Dakot,Deshantri, jyotish, Panchgaur, Ranasahab,Ardpop,Bhojru, Dakaut,Dakotra,Dugduga,Panch dravida,ransahab,. Shani.etc.-----
डकोत ब्राह्मणो में एक वर्ग ( Swanis के नाम से भी जाना जाता है. । एक शोध करता के अनुसार इनके
३६ - शासन (गोत्र) बताये गए है । जिनमे से (नाभा ) में ३० गोत्र पाये जाते है । नाभा में डकोत ब्राह्मणो को जोतगी कहा जाता है ,और दूसरे ६ गोत्र में (sub caste ) के तोर पर (Purbiya) or Eastern Dakot कहा जाता है
(those are inferior branch )....कश्मीर में इनको (BOJRU) के नाम से जाना जाता है ।
( पेशावर एवं कोहट : पंड़िर एवं माधो
( डेरा इस्माइल खा ::: स्वानी
( लाहोर ::: डकोत …। ( कांगड़ा हिल में डकोत को (बोजरू ) के नाम से जाना जाता है । काँगड़ा बोजरू नाम के डाकोत ३६ गोत्र के पाये जाते है. , जो इस प्रकार है. ।
( पालनपुर तहसील ) … १. Subachh 2.Parasher 3. Bachh 4. Gol ..5.Panus 6.Nagas 7. Tanus..
(कांगड़ा तहसील ) । १. Shakartari 2.Bawalia .3. Machh.4.Nagas..Mallian .& Bhuchal..
( (हमीरपुर तहसील ). १. शकरतारी , ललियन , गोर …
* मियांवाली में (डकोत ) को वशिस्ठ गोत्र से जाना जाता है ।
* पंजाब में ( बोजरु ) को तेली राजा कहा जाता है ,क्योकि ये वर्ग अपने शरीर पर तेल की मालिश करते है.
( उपरोक्त के इलावा डकोत ब्राह्मणो के (३६) गोत्र कहे जाते है, जो इस प्रकार है.|
१. गोशिल। २. गोरुढ। ३. रावेल ४. ढाकरी ५. भरद। . ६। बावल ७. लालयन। ८. गयंद ९. गोरियल
१० गंगवेर। ११ अर्गल १२. तपशील। १३. प्रवोशी। १४। वामन। १५. परियाल। १६ भूकर्ण १७. ढापेल
१८. शुक्रवाल १९. ब्रह्मपाल २०. मोहरी २१. बड़ गुर्ज। २२ शिवलयन २३. चर्वण २४. खनतत्र। २५। लोधर
२६। भारद् २७. भटटनग २८ कोस्थ्म। २९. माललया ३०. कछप। ३१. गोशल। ३२. गुरदर ३३. लोहरी
३४। सुरध्वज। ३५ . छाँडुल्य ३६। भोरज। . (उपरोक्त। ३६। गोत्र। । ब्राह्मण महत्व नामक पुस्तक से जो की स्वर्गीय ड़क वंश भूषण पंडित लालचंद द्वारा लिखित है , लिए गए है. ।
नोट :- डकोत ब्राह्मण ( देशांतरी ) के नाम से भी जाने जाते है । देशांतरी को (saoni) जिला जैसलमेर
राजस्थान में कहा जाता है । भारत से लगे पाकिस्तान बॉर्डर के भाग में यह वर्ग पाया जाता है , रहते है ।
जोधपुर में जोधकी जी कहा जाता है । राजस्थान के कुछ हिसो में इनकी आर्थिक हालत अच्छी नही बताई गई है । दूसरे ब्राह्मण वर्ग ,उच्च वर्ग इन्हे ( degrade- Brahman ) कहते है ।
वर्तमान में देखा गया है की डकोत ब्राह्मण वर्ग भी दूसरी जाति व् ब्राह्मणो की तरह अपने नाम के
पीछे तरह तरह के सरनेम लगाने लगे है , उदाहरणत: शर्मा ,जोशी,भार्गव इत्यादि ,इत्यादि । कई प्रांतो में यह वर्ग जाति (OBC} class में आती है , परन्तु शायद इनको उसका कोई फायदा नहीं मिलता दिखाई देता है
क्योकि ,इस जाति के बच्चे किसी उँची पोस्ट पर नही देखे गए, न ही इनका कोई (Representative) vidhan sabha ya Sansad ) में पहुंच पाया , इसी कारण ये वर्ग उन्नति नहीं कर पाये । यह भी देखा गया है की ऐसे बहुत कम लोग है की जो अपनी (Identification) dakot Brahman बताने में संकोच नही करते ,अधिकतर लोग शर्मा, भार्गव , जोशी , इत्यादि बताकर अपने आपको प्रस्तुत करते है । यदि देखा जाये और गोर किया जाये तो वर्तमान पीढ़ी के डकोत ब्राह्मणो के बच्चोँ का ध्यान इधर उधर जाता ही नही की वो कौन है ,कौन से ब्राह्मण है ,कुछ बच्चों को तो यह भी नही मालूम की डकोत क्या होते है ,वे किसके वंसज है ,। यदि इन
बच्चों की (Progress) ke बारे में गोर किया जाये तो कुछ परिवारो के बच्चों ने काफी सफलता प्राप्त की है ,
(A class Officer ) तक भी पहुंच गए है ,कुछ बच्चे अपनी शादिया भी अपनी पसंद से करने लगे है , लडकिया भी किसी तरह से पीछे नही है ,जहा तक स्टेटस का सवाल है , काफी बदलाव नजर आने लगा है ।
यह भी देखा गया है की बच्चों के संबंध भी दूसरी जाति के लोगो में होने लगे है,तथा दूसरी जाति या दूसरे वर्ग के लोग भी इनसे संबंध बनाने में हिचकिचाहट महसूस नही करते । कुल मिला कर देखा जाये तो (डकोत जाति एक दिन लुप्त हो जाएगी ,भविष्य में ऐसा होने का अंदेशा नजर आ रहा है ।
( B.S.Sharma) Sanyojak ,Akhil Bhartiya ,Bhirguvanshi
Brahman, Maha Sabha, Delhi.
( This article need some search about DAKOT, Dakota people.) Note :- please read this article also which relates to DAKOTA Peoples/Tribes. (Some Dakota and mixed blood people in Hennepin country prior to the U.S.Dakota war of 1862...)
He was raised as a traditional DAKOT youth in his father's village at lake calhoun, moved with his parents to Oak in 1839. He learned to read and ...
write in Dakota at the Pond mission school in oak grove. In 1853 he moved with his parents to the lower Sioux agency,where he become a farmer Indian around 1856 and farmed for subssistance . In the u.S. DAKOTA conflict he witnessed the battles of Fort Ridgely ,Birch coulee and wood Lake , He surrendered at camp release , but was not tried by the Military commission for participation in the war , He was sent to Fort sneeling for intertenment , and send to crow creek and the santee Reservation . In 1866 he became the leader of his father's band on the death of Chief travelling Hall moved to athe Big Siox river where he took up a home stead and farmed . Later lived near Flandreau SD.where he farmed and was a lay reader in the Episcopal Church . (Weston David (Seeing stone, .
Tunkarnwenyakap)Mh.4.. See. Resource section for Book titles and codes , Journal titles and Codes.
B S SHARMA at 5:00 AM
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