श्री सर्व ब्राहमीन महासभा , बीकानेर
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खाण्डल विप्रों के 50 गौत्र / ऋषि गोत्र एवं उनका विवरण
खाण्डल विप्रों के 50 गौत्र / ऋषि गोत्र एवं उनका विवरण वर्तमान में खाण्डल विप्र जाति समस्त भारतवर्ष में फैली हुई है, किन्तु उसका प्रारम्भिक निवास स्थान महाभारत काल के बाद का मत्स्य जनपद { लोहागर्ल तीर्थ से पूर्व में } और दशम शतक में स्थापित इक्कीसवीं शदी के प्रारम्भकाल तक का जयपुर राज्य तथा उसके बाद राजस्थान राज्य है| राजस्थान में भी विशेषत: जयपुर राज्य ही खाण्डल विप्र जाति का आवास स्थल है, जो महाभारतकालीन मत्स्य जनपद का एक भाग था| स्कन्द पुराण के चालीसवें अध्याय में खाण्डल विर्प्रों के पचास गोत्रों का क्रमवार उल्लेख इसप्रकार किया गया है| खाण्डल विप्रों के सभी पचास गोत्रों के ऋषि और प्रवर निम्नानुसार है: क्र.सं. गोत्र ऋषि गोत्र गोत्रों का क्रमवार { विवरण } 1. रिणवा गर्ग गोत्र यझनाशक दैत्य पुंगवों से युद्ध कर यझ की रक्षा करने वाला ऋषि रणोद्वाही { रणवाह या रिणवा } नाम से प्रसिद्ध हुआ | इससे आत्मरक्षार्थ शस्त्र गृह्रण करने की ऋषि परम्परा की पुष्टि होती है | 2. गोवला गर्ग गोत्र जो प्रेमपूर्वक धर्मपरायण होकर नित्य गौओँ का पालन करता था और जिसमे गौओँ का बल प्रधान था | वह द्विजों दुआवरा गोबल {गोवला} के नाम से विख्यात हुआ | 3. नवहाल अड़ी-गरस गोत्र जामुन की लकड़ी का नया हल बना कर यझ भूमि को जोतने वाला ब्राह्मण {नवहाल} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 4. डीडवानियाँ अड़ी-गरस गोत्र ड़मरु लेकर पृथ्वी पर विचरण करने वाला ब्राह्मण डिडिमवान {डिडवाणियां} के नाम से विख्यात हुआ | 5. गोरसियाँ अड़ी-गरस गोत्र जो नित्य केवल गोतक्र ( गाय के दूध की छाछ ) पिया करता था | इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार से अन्न नहीं खाता था | वह विप्र अपने व्रत के कारण गोरस {गोरसिया} के नाम से विख्यात हुआ | 6. बील जैमिनी गोत्र सिर, गले और भुजाओं में विल्व की मालाएँ धारण करते हुए विल्व वृक्ष के नीचे बैठने वाला ऋषि विल्व {बील} से प्रसिद्ध हुआ | 7. निटाणियां जैमिनी गोत्र जो ऋषि कुबेर से बहुत सा धन लाकर याचकों में बांटा करता था, वह निधानीय {निटाणिया) के के नाम से विख्यात हुआ | 8. पिपलवा पराशर गोत्र पीपल के पेड़ की जड़ों में बैठ कर, जो पीपल के ही फल खाया करता था, वह प्रियवर पिप्पलवान {पीपलवा} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 9. गोधला पराशर गोत्र जो महामति गोधूलि वेला में भोजन किया करता था, वह इस व्रत को नियमपूर्वक निभाने के कारण गोधूलि {गोधला} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 10. मूछ्वाल पराशर गोत्र जिसका मुख दाढ़ी -मुछों से ढका रहता था, वह ऋषि द्वीपों में श्मश्रुल {मूछ्वाल} के नाम से विख्यात हुआ | 11. सिंहोटा कृष्णात्रेय गोत्र जो बुद्धिमान ऋषि भगवती के प्रसाद से सिंह पर चढ. कर सर्वत्र घुमा करता था, वह विप्र सिंहोटक {सिंहोटिया} के नाम से विख्यात हुआ | 12. गुंजावडा कृष्णात्रेय गोत्र जो विधवानू गुंजो के लता कुंजों को वटवृक्ष पर चढ़ा कर उसके नीचे निवास किया करता था, वह गुन्जावार {गुन्जावड़ा} के नाम से विख्यात हुआ | 13. तिवारी कृष्णात्रेय गोत्र जो तिन द्वार का मकान बना कर उसमें गायत्री का जप करता था, वह इस लोक में त्रिवारी {तिवाड़ी} के नाम से विख्यात हुआ | 14. खडभडा (निठुरा) घ्रतकौशिक गोत्र मनुष्यों के समूह में कठोर वचन बोलने वाला ऋषि निष्ठुर {निठुर अथवा खडभडा} के नाम से विख्यात हुआ | 15. डावस्या घ्रतकौशिक गोत्र जो डाभ बिछा कर सोया करता था, वह दर्भशायी {डाभडा अथवा डावस्या} के नाम से विख्यात हुआ | 16. भूरटिया भरद्वाज गोत्र जो भरूंट घास को बिछा कर सोया करता था, वह धरणीतल पर भूभर्ट {भूरटिया} के नाम से विख्यात हुआ | 17. भाटीवाडा भरद्वाज गोत्र योद्धा का रूप धारण कर निरंतर युद्ध करने वाला पंडित भाटीवानू {भाटीवाडाः} के नाम से पृथ्वी पर विख्यात हुआ | 18. बीलवाल कौशिक गोत्र जो द्विजोत्तम यझ के लिए पके हुए विल्व फल लाया करता था, वह ब्राहमणों में विल्व्वानू {बीलवाल} नाम से विख्यात हुआ| 19. सोड़वा {शिवोवाह} कौशिक गोत्र कंठ में नित्य शिव को धारण करने वाला महामुनि शिवोद्वाही {सोडवा} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 20. दुगोलिया कौशिक गोत्र खगोल का अवलम्बन कर जिसने खगोल नक्षत्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया, वह झानियों में श्रेष्ट ऋषि धुगोल {धुगोलिया अथवा दुगोलिया} के नाम से विख्यात हुआ | 21. मंगलहारा गौतम गोत्र मन और वाणी से सबका भला चाहते हुए सबका मंगल करने वाला मंगलाहर {मंगलहारा} के नाम से विख्यात हुआ | 22. टंकहारी गौतम गोत्र जो नित्य चार माशा के ग्रास लेकर भोजन किया करता था, वह महऋषिओं द्वारा {टंकहारी} के नाम से विख्यात हुआ | 23. चोटिया वसिष्ठ गोत्र जिसके शारीर पर बड़ी भारी चोटी पड़ी रहती थी, वह ब्राह्मण पृथ्वी मंडल में चौल {चोटिया} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 24. पराशला (भूवाल) वसिष्ठ गोत्र समिधा संचय के लिए इधर - उधर से प्रयाप्त धन लाने वाला ऋषि, त्रिलोक में पराशल {पराशला} के नाम से विख्यात हुआ | 25. मण्डगिरा संस्कृति गोत्र दंतहीन होने के कारण प्रतिदिन चावलों का मांड पीने वाला द्विजश्रेष्ट पृथ्वी मंडल में मण्डगिल {मण्डगिरा} के नाम से विख्यात हुआ | 26. कुंजावड़ा संस्कृति गोत्र लतागृह में बैठ कर जिसने उत्कृष्ट जप किया, वह ब्रह्मवेत्ता ब्राहमण कूंजवाटू {कुन्जवाड़ा} नाम से विख्यात हुआ | 27. मांठोलिया जमदग्नि गोत्र मठ नमक स्थान में बठ कर जो जगदीश्वर का जप किया करता था, वह ब्राह्मण पृथ्वी पर मठालय {माठोलिया} नाम से विख्यात हुआ | 28. शकुनिया जमदग्नि गोत्र जो मुनि समस्त शकुनों का विचार करता हुआ विचरण करता था, वह इस लोक में शाकुनि {शाकुन्या} के नाम से विख्यात हुआ | 29. बांठोलिया व्याघ्रपद गोत्र यझ वेदी में रंग भरकर गायत्री मंत्र का जप करने वाले को लोग वांठोलिक {वांठोलिया} कहते थे , और वह वांठोलिया के नाम से विख्यात हुआ | 30. घाटवाल व्याघ्रपद गोत्र जो यझवेदी के किनारे बैठ कर सरस्वती का जप किया करता था, वह विप्र सर्वत्र घटूटवान {घाटवाल} के नाम से विख्यात हुआ | 31. व्यवहारी (बोहरा) व्याघ्रपद गोत्र व्यवहारप्रिय जो ऋषि संसार में लें दें का व्यवहार करता था, वह विप्र निरंतर व्यवहारी {बोहरा} के नाम से विख्यात हुआ | 32. बोचीवाल शाण्डिल्य गोत्र यझशाला में धार्मिक उपदेश देने वाला क्रान्तकर्मा धर्मात्मा ऋषि वोचीवानू {बोचीवाल} के नाम से विख्यात हुआ | 33. झुझंनोदिया शाण्डिल्य गोत्र यझ समाप्ति पर जो सस्वर सामवेद का गान करता था, वह झुनझुनाद {झुनझुनोदिया} के नाम से पुकारा जाने लगा | 34. जोशी भरद्वाज गोत्र ज्योतिविर्दो में जो विप्र यझ वेला का मुहूर्त देने वाला था, वह देव विप्र सभाओ में ज्योतिषी {जोशी} के नाम से विख्यात हुआ | 35. प्रवाल (परवाल) भरद्वाज गोत्र प्रवाल ( मूंगा ) के समान गौरवर्ण ऋषि जो प्रवाल से विभूषित ओंर प्रवाल मालाधारी था, वह प्रवाल {परवाल} के नाम से विख्यात हुआ | 36. सोती(क्षेत्रिय), लढानियां कश्यप गोत्र जो बुद्धिमान विप्र छहों अंगों सहित अध्यापन द्वारा ब्राहमणों को झान प्रदान करता था, वह श्रोत्रिय {सोती} नाम से प्रसिद्ध हुआ | 37. वाटणा (सठाणियां) कश्यप गोत्र जो समागत ब्राह्मण को देख कर उसे धन दिया करता था, वह विभाजी {वाटणां} के नाम से विख्यात हुआ | 38. सेवदा मृद्गल गोत्र जो ऋषियो की आज्ञानुसार यझीय धन की रक्षा किया करता था, वह ब्राह्मण पृथ्वी पर सेवधि {सेवदा} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 39. सामरा मृद्गल गोत्र जिस विप्र का लेन देन देवताओं के साथ रहा करता थां, वह स्वर्ग और पृथ्वी मंडल में {सामरा} नाम से विख्यात हुआ | 40. झखनाडिया वृहस्पति गोत्र जो बुद्धिमान ब्राह्मण मछलियों का नृत्य देखकर मन में आनंद का अनुभव करता था, वह झषनाट्य {झ्खानाड़ा} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 41. अजमेरिया वृहस्पति गोत्र अजन्मा ब्रह्म से बुद्धि जगा कर कर्म करने वाला ऋषि सर्वत्र पृथ्वी तल पर अजमेधा {अजमेरिया} के नाम से विख्यात हुआ | 42. वंशीवाल वत्स्य गोत्र जो सब जनों को वश में करके निवास करता था, वह उसी प्रभाव से पृथ्वी पर वशीवान् {वंशीवाल} के नाम से विख्यात हुआ | 43. हूचरिया वत्स्य गोत्र यझशाला में हु -हु नमक गंधर्व को बुला कर गान्धर्व वेद का गान कराने वाला द्विज हूचरा {हूचरिया} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 44. रूंथला कात्यायन गोत्र जो चरुस्थाली को हाथ में लेकर उतम मंत्र जपता हुआ अग्नि में आहुतियाँ दिया करता था, वह चरुस्थाली {रुंथाला} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | 45. भूभरा कात्यायन गोत्र पृथ्वी के गड्डों को पाट कर सबको सुख देने वाला द्विज भूभरा {भूभरा} के नाम से विख्यात हुआ | 46. बणासिया अत्री गोत्र वन में निवास करते हुए द्वादश अक्षरात्मक ( ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय: ) मंत्र का जाप करने वाला विप्र वनाश्रेय {वनसायिक अथवा वणसिया} के नाम से विख्यात हुआ | 47. वठोठिया अत्री गोत्र जो वृक्ष के निचे अपना नित्यकर्म करने वाला, ब्राह्मणों में वटोधा {वठोठिया} के नाम से विख्यात हुआ | 48. भुढाढरा कौण्डिन्य गोत्र बड़वंटे [ बरगद के फल ] का भोजन करने वाला ऋषि वटाहार नाम से प्रसिद्ध हुआ जो कालान्तर में परिवर्तित होते हुए {बढ़ाढरा} बन गया | 49. काछवाल अगस्त्य गोत्र वेदी के कोने में बैठ कर मंत्रोच्चारणपूर्वक आहुतियाँ देने वाला ऋषिश्रेष्ट कक्षावान् {काछवाल} के नाम से विख्यात हुआ | 50. सुन्दरिया काण्व गोत्र त्रिवली से सुशोभित तोंद [ पेट ] वाला ब्राह्मण पृथ्वी पर सुंदर {सुन्दरिया} के नाम से प्रसिद्ध हुआ | खाण्डल विप्र जाति की वैदिक शाखा माध्यनिदनी है; क्योकि यह सर्वविदित है कि नर्मदा नदी से उत्तर में सर्वत्र माध्यनिदनी शाखा ही प्रचलित है| अत: इतना लिखना ही प्रयाप्त है कि खाण्डल विप्र जाति माध्यनिदनी कि अनुयायिनी है |
Bahgwan shri parshuram द्वारा 23rd November 2013पोस्ट किया गया
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