Friday, 10 March 2017

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गुरु परम दैवतम........ Under Construction

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1. नारायणतत्व आत्मतत्व जागरण दीक्षा.

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गुरु परम दैवतम........ Under Construction

मैं तुम्हें नया धर्म दे रहा हूँ जहाँ बुद्ध का ध्यान हैंरामका शील हैंकृष्ण का प्रेम हैंमहावीर की अहिंसा हैंइस "गुरु धर्ममें मुस्कराहट हैंखिलखिलाहट हैंहंसी हैं और आनंद की हल्की-हल्की फुहार हैंतुम मेरेपास आओ मैं तुम्हें "गुरु धर्ममें दीक्षित करता हूँl

                                                                        

-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी.

 1.माताजी   


     1. कामाख्या का तांत्रिक सम्मलेन         1. गुरु पूर्णिमा      गुरु वाणी            16 कलाये

۞ सिद्धाश्रम-Know About It.

Contents

No headings.

मैं इस प्रकार का गुरु नहीं बनना चाहता जो तुम्हें ठूंठ बना दे! मैं इस प्रकार का भी गुरु नहीं बनना चाहता कि तुम्हें बेजान और बेस्वाद बना दू! मैं उस प्रकार का गुरु भी नहीं बनना चाहता कि तुम्हें बियाबान जंगल में भटकने के लिए खड़ा कर दूँ ....और मैं ऐसा भी तुम्हें शिष्य नहीं बनाना चाहता कि तुम उस तपते हुए रेगिस्तान में आँख मूंदकर समाधि की और अग्रसर हो जाओ! मैं तुम्हें खिलखिलाता हुआ शिष्य बनाना चाहता हूँ, मैं तुम्हें मुस्कुराता हुआ शिष्य बनाना चाहता हूँ, मैं तुम्हें आगे बढ़ने की क्रिया सिखाना चाहता हूँ, मैं तुम्हारे पुरे जीवन को आनंद और उत्स से भर देना चाहता हूँ!


-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी.

1. प्रेरक प्रसंग

Text Box

गुरु तत्व विमर्श...

 

☼     अपने हृदय में गुरु स्थापन करना समस्त देवताओं को स्थापन करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!!

-ऋग्वेद

☼     जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ की अपेक्षा गुरु-पूजन ही हैं!

-गुरौपनिषद

☼     चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष  की प्राप्ति केवल गुरु-पूजन के द्वारा संभव हैं!

-याज्ञवल्क्य

☼     जीवन की पवित्रता, दिव्यता, तेजस्विता एवं परम शांति केवल गुरु-पूजन के द्वारा ही संभव हैं!

-ऋषि विश्वामित्र

☼     “गुरु-पूजा से बढ़कर और कोई विधि या सार नहीं हैं!

-शंकराचार्य

☼     समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का आधार मात्र गुरु-पूजन हैं!

-आरण्यक

☼     जो प्रातःकाल गुरु-पूजन नहीं करता, उसका सारा समय, साधना एवं तपस्या व्यर्थ हो जाती हैं!

-रामकृष्ण

☼     गुरु-पूजा के द्वारा ही इष्ट के दर्शन संभव हैं!

-गोरखनाथ

☼     संसार का सार मनुष्य जीवन हैं, और मनुष्य जीवन का सार गुरु-धारण, गुरु स्मरण एवं गुरु-पूजन हैं!

-सिद्धाश्रम

 


ll करोमि त्वत्पूजाम सपदि सुखदो में भवविभो ll

("हे प्रभु निखिल एवं वन्दनीया माताजी! मैं अपनी पूजा का फल मात्र इतना ही चाहता हूँ कि आप के श्रीचरणों से कभी विलग न होऊं")

 

21 अप्रैल

संक्षिप्त परिचय 

डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली                                   

75 वाँ जन्मदिवस - 21 अप्रैल

गुरूजी के लैटर.                                                               अग्नि देश से आता हूँ मैं

शिविर प्रवचन 

चेतना.

अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार

उद्देश्य

 

 

 

    मेरे गुरुदेव!

Text Box

जय गुरुदेव!

क्या आप मंत्र, तंत्र, यन्त्र के नाम से घबराते हैं, क्या आप जानते हैं कि तंत्र हमारे देश की सर्वश्रेष्ठ विधा हैं, जिसका उपयोग जितने भी महापुरुष, ऋषि, आदि हुए हैं, सभी ने ही किया हैं.

चाहे वे श्री राम हो, श्री कृष्ण हो, बुद्ध, शंकराचार्य, गोरखनाथ, हर व्यक्तित्व ही तंत्र का जानकर था....

आइये जानते हैं कुछ खास बातों को....

सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंदजी महाराज (पूज्य सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी) के शब्दों में, जो हर क्षेत्र के अद्वितीय व्यक्तित्व हैं..

जिनका नाम ही हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं...

जानिए हमारी ऋषियों की संस्कृति को.

1. परिभाषाएं



 

 

                            शिष्यता के सात सूत्र

    भगवत्पाद शंकराचार्य ने शिष्य, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं,

    जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-

 

      अन्तेश्रियै वः  जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की

     कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|

 

      कर्तव्यं श्रियै नः  जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर

     पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|

     

      सेव्यं सतै दिवौं च  जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से

     गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|

 

      ज्ञानामृते वै श्रियं  जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान

     प्राप्त करता ही रहता हैं|

 

      हितं वै हृदं  जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता

     ही रहता हैं|

 

      गुरुर्वे गतिः  गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना

    ही अपना कर्तव्य समझता हो|

 

      इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|

                                -मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान

     अक्टो. 1998, पृष्ठ : 71

 

 

 

ऐसा न हों, कि अवसर चूक जायें.
ऐसा न हों, कि समय बीत जायें.
और हम टुकुर - टुकुर
ताकते ही रह जायें......                                       

ऐसा  न हों, कि विराटता ओझल हो जायें,                          
और हमारी पीढी हमें धिक्कारने लगें.
कि हम घटिया ओछे और न्यून थे.
कि हमारे सामने मानसरोवर था.
और हम तलैया का पानी ही पीते रहे.
हंस पंख फैलाये खडा था,
और हम बागुलो को ही सहलाते रहे.

जिंदगी कि धड़कन.......
साक्षात् शिव स्वरुप
हमारे सामने थे और हम
मिटटी के पुतलों के
सामने ही एडियाँ रगड़ते रहे......

-स्वामी ब्रह्मान्डेश्वरानंद
फर.१९९७ : ६.
(मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान. )

गुरु की महत्ता

प्रश्न : तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के होने पर भी हमें आखिर गुरु की आवश्यकता क्यूँ हैं?

जवाब :

क्यूंकि तैंतीस करोड़ देवी-देवता हमें सब कुछ दे सकते हैं. मगर जन्म-मरण के चक्र से सिर्फ गुरु ही मुक्त कर सकता हैं.

यह तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के द्वारा संभव नहीं हैं.

इसलिए ही तो राम और कृष्ण, शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, मेरे, कबीर, आदि... हर विशिष्ट व्यक्तित्व ने जीवन में गुरु को धारण किया और 

तब उनके जीवन में वे अमर हो सके.... 

..... आज भी इतिहास में, वेदों में, पुराणों ने उन्हें अमर कर दिया....

इसीलिए तो कहा गया हैं:

तीन लोक नव खण्ड में गुरु ते बड़ा न कोय!

करता करे न कर सकें , गुरु करे सो होय!!



गुरूजी का पता :

मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान

डॉ. श्रीमाली मार्ग, हाईकोर्ट कालोनी,

जोधपुर - 342 031 (राजस्थान)

फ़ोन : 0291-2432209, 2433623.

फैक्स : 0291 - 2432010.

ई-मेल : mtyv@siddhashram.org

वेबसाईट : www.siddhashram.org

Contact Us






Text Box

सर्वश्रेष्ठ एवं ऋषियों में भी परम वन्दनीय ऋषिगण निम्नवत हैं, जिनका उल्लेख कूर्म पुराण, वायु पुराण तथा विष्णु पुराण में भी प्राप्त होता है! इन ऋषियों ने समय-समय पर शास्त्र तथा सनातन धर्म की मर्यादा बनाये रखने के लिए सतत प्रयास किया हैं! अतः ये आज भी हम लोगों के लिए वन्दनीय हैं -

स्वयंभू,

मनु,

भारद्वाज,

वशिष्ठ,

वाचश्रवस नारायण,

कृष्ण द्वैपायन,

पाराशर,

गौतम,

वाल्मीकि,

सारस्वत,

यम,

आन्तरिक्ष धर्म,

वपृवा,

ऋषभ,

सोममुख्यायन,

विश्वामित्र,

मुद्गल,

निखिल (डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)

...

Subpages (8): ۞ सिद्धाश्रम-Know About It. 16 कलाये 1. कामाख्या का तांत्रिक सम्मलेन 1. गुरु पूर्णिमा 1. प्रेरक प्रसंग Contact Us HOLI PRAVACHAN. Latest शिविर सुचना

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मैं तुम्हें नया धर्म दे रहा हूँ जहाँ बुद्ध का ध्यान हैंरामका शील हैंकृष्ण का प्रेम हैंमहावीर की अहिंसा हैंइस "गुरु धर्ममें मुस्कराहट हैंखिलखिलाहट हैंहंसी हैं और आनंद की हल्की-हल्की फुहार हैंतुम मेरेपास आओ मैं तुम्हें "गुरु धर्ममें दीक्षित करता हूँl

                                                                        

-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी.

 1.माताजी   


     1. कामाख्या का तांत्रिक सम्मलेन         1. गुरु पूर्णिमा      गुरु वाणी            16 कलाये

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No headings.

मैं इस प्रकार का गुरु नहीं बनना चाहता जो तुम्हें ठूंठ बना दे! मैं इस प्रकार का भी गुरु नहीं बनना चाहता कि तुम्हें बेजान और बेस्वाद बना दू! मैं उस प्रकार का गुरु भी नहीं बनना चाहता कि तुम्हें बियाबान जंगल में भटकने के लिए खड़ा कर दूँ ....और मैं ऐसा भी तुम्हें शिष्य नहीं बनाना चाहता कि तुम उस तपते हुए रेगिस्तान में आँख मूंदकर समाधि की और अग्रसर हो जाओ! मैं तुम्हें खिलखिलाता हुआ शिष्य बनाना चाहता हूँ, मैं तुम्हें मुस्कुराता हुआ शिष्य बनाना चाहता हूँ, मैं तुम्हें आगे बढ़ने की क्रिया सिखाना चाहता हूँ, मैं तुम्हारे पुरे जीवन को आनंद और उत्स से भर देना चाहता हूँ!


-सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी.

1. प्रेरक प्रसंग

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गुरु तत्व विमर्श...

 

☼     अपने हृदय में गुरु स्थापन करना समस्त देवताओं को स्थापन करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं!!

-ऋग्वेद

☼     जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ की अपेक्षा गुरु-पूजन ही हैं!

-गुरौपनिषद

☼     चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष  की प्राप्ति केवल गुरु-पूजन के द्वारा संभव हैं!

-याज्ञवल्क्य

☼     जीवन की पवित्रता, दिव्यता, तेजस्विता एवं परम शांति केवल गुरु-पूजन के द्वारा ही संभव हैं!

-ऋषि विश्वामित्र

☼     “गुरु-पूजा से बढ़कर और कोई विधि या सार नहीं हैं!

-शंकराचार्य

☼     समस्त भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का आधार मात्र गुरु-पूजन हैं!

-आरण्यक

☼     जो प्रातःकाल गुरु-पूजन नहीं करता, उसका सारा समय, साधना एवं तपस्या व्यर्थ हो जाती हैं!

-रामकृष्ण

☼     गुरु-पूजा के द्वारा ही इष्ट के दर्शन संभव हैं!

-गोरखनाथ

☼     संसार का सार मनुष्य जीवन हैं, और मनुष्य जीवन का सार गुरु-धारण, गुरु स्मरण एवं गुरु-पूजन हैं!

-सिद्धाश्रम

 


ll करोमि त्वत्पूजाम सपदि सुखदो में भवविभो ll

("हे प्रभु निखिल एवं वन्दनीया माताजी! मैं अपनी पूजा का फल मात्र इतना ही चाहता हूँ कि आप के श्रीचरणों से कभी विलग न होऊं")

 

21 अप्रैल

संक्षिप्त परिचय 

डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली                                   

75 वाँ जन्मदिवस - 21 अप्रैल

गुरूजी के लैटर.                                                               अग्नि देश से आता हूँ मैं

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    मेरे गुरुदेव!

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जय गुरुदेव!

क्या आप मंत्र, तंत्र, यन्त्र के नाम से घबराते हैं, क्या आप जानते हैं कि तंत्र हमारे देश की सर्वश्रेष्ठ विधा हैं, जिसका उपयोग जितने भी महापुरुष, ऋषि, आदि हुए हैं, सभी ने ही किया हैं.

चाहे वे श्री राम हो, श्री कृष्ण हो, बुद्ध, शंकराचार्य, गोरखनाथ, हर व्यक्तित्व ही तंत्र का जानकर था....

आइये जानते हैं कुछ खास बातों को....

सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंदजी महाराज (पूज्य सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी) के शब्दों में, जो हर क्षेत्र के अद्वितीय व्यक्तित्व हैं..

जिनका नाम ही हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं...

जानिए हमारी ऋषियों की संस्कृति को.

1. परिभाषाएं



 

 

                            शिष्यता के सात सूत्र

    भगवत्पाद शंकराचार्य ने शिष्य, और सही मायने में कसौटी पर खरे उतरने वाले शिष्य के सात सूत्र बताए हैं,

    जो निम्न हैं| आप स्वयं ही मनन कर निर्णय करें, कि आपके जीवन में ये कितने संग्रहित हैं :-

 

      अन्तेश्रियै वः  जो आत्मा से, प्राणों से, हृदय से अपने गुरुदेव से जुड़ा हो, जो गुरु से अलग होने की

     कल्पना करते ही भाव विह्वल हो जाता हो|

 

      कर्तव्यं श्रियै नः  जो अपनी मर्यादा जानता हो, गुरु के सामने अभद्रता, अशिष्टता का प्रदर्शन न कर

     पूर्ण विनीत नम्र पूर्ण आदर्श रूप में उपस्थित होता हो|

     

      सेव्यं सतै दिवौं च  जिसने गुरु सेवा को ही अपने जीवन का आदर्श मान लिया हो और प्राण प्रण से

     गुरु की तन-मन-धन से सेवा करना ही जीवन का उद्देश्य रखता हो|

 

      ज्ञानामृते वै श्रियं  जो ज्ञान रुपी अमृत का नित्य पान करता रहता हैं और अपने गुरु से निरंतर ज्ञान

     प्राप्त करता ही रहता हैं|

 

      हितं वै हृदं  जो साधनाओं को सिद्ध कर लोगों का हित करता हो और गुरु से निरंतर ज्ञान प्राप्त करता

     ही रहता हैं|

 

      गुरुर्वे गतिः  गुरु ही जिसकी गति, मति हो, गुरुदेव जो आज्ञा दे, बिना विचार किए उसका पालन करना

    ही अपना कर्तव्य समझता हो|

 

      इष्टौ गुरुर्वे गुरु: - जिस शिष्य का इष्ट ही गुरु हो, जो अपना सर्वस्व गुरु को ही समझता हो|

                                -मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान

     अक्टो. 1998, पृष्ठ : 71

 

 

 

ऐसा न हों, कि अवसर चूक जायें.
ऐसा न हों, कि समय बीत जायें.
और हम टुकुर - टुकुर
ताकते ही रह जायें......                                       

ऐसा  न हों, कि विराटता ओझल हो जायें,                          
और हमारी पीढी हमें धिक्कारने लगें.
कि हम घटिया ओछे और न्यून थे.
कि हमारे सामने मानसरोवर था.
और हम तलैया का पानी ही पीते रहे.
हंस पंख फैलाये खडा था,
और हम बागुलो को ही सहलाते रहे.

जिंदगी कि धड़कन.......
साक्षात् शिव स्वरुप
हमारे सामने थे और हम
मिटटी के पुतलों के
सामने ही एडियाँ रगड़ते रहे......

-स्वामी ब्रह्मान्डेश्वरानंद
फर.१९९७ : ६.
(मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान. )

गुरु की महत्ता

प्रश्न : तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के होने पर भी हमें आखिर गुरु की आवश्यकता क्यूँ हैं?

जवाब :

क्यूंकि तैंतीस करोड़ देवी-देवता हमें सब कुछ दे सकते हैं. मगर जन्म-मरण के चक्र से सिर्फ गुरु ही मुक्त कर सकता हैं.

यह तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के द्वारा संभव नहीं हैं.

इसलिए ही तो राम और कृष्ण, शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, मेरे, कबीर, आदि... हर विशिष्ट व्यक्तित्व ने जीवन में गुरु को धारण किया और 

तब उनके जीवन में वे अमर हो सके.... 

..... आज भी इतिहास में, वेदों में, पुराणों ने उन्हें अमर कर दिया....

इसीलिए तो कहा गया हैं:

तीन लोक नव खण्ड में गुरु ते बड़ा न कोय!

करता करे न कर सकें , गुरु करे सो होय!!



गुरूजी का पता :

मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान

डॉ. श्रीमाली मार्ग, हाईकोर्ट कालोनी,

जोधपुर - 342 031 (राजस्थान)

फ़ोन : 0291-2432209, 2433623.

फैक्स : 0291 - 2432010.

ई-मेल : mtyv@siddhashram.org

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सर्वश्रेष्ठ एवं ऋषियों में भी परम वन्दनीय ऋषिगण निम्नवत हैं, जिनका उल्लेख कूर्म पुराण, वायु पुराण तथा विष्णु पुराण में भी प्राप्त होता है! इन ऋषियों ने समय-समय पर शास्त्र तथा सनातन धर्म की मर्यादा बनाये रखने के लिए सतत प्रयास किया हैं! अतः ये आज भी हम लोगों के लिए वन्दनीय हैं -

स्वयंभू,

मनु,

भारद्वाज,

वशिष्ठ,

वाचश्रवस नारायण,

कृष्ण द्वैपायन,

पाराशर,

गौतम,

वाल्मीकि,

सारस्वत,

यम,

आन्तरिक्ष धर्म,

वपृवा,

ऋषभ,

सोममुख्यायन,

विश्वामित्र,

मुद्गल,

निखिल (डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)

...

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