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आइये जाने क्या हें गोत्र का रहस्य एवं महत्त्व …???
ON JUNE 27, 2013 BY VASTUSHASTRI08
आइये जाने क्या हें गोत्र का रहस्य एवं महत्त्व …???
इन दिनों गोत्र शब्द की बहुत चर्चा है। इस ने समाज में बड़े झगड़े भी उत्पन्न किए हैं। यह कब से प्रचलन में है इसे ठीक से नहीं कहा जा सकता।
संस्कृत में यह शब्द नहीं मिलता है। वहाँ गोष्ठ शब्द तो मिलता है जो कि गोत्र का समानार्थक है।
गोत्र की परिभाषा :- गोत्र जिसका अर्थ वंश भी है । यह एक ऋषि के माध्यम से शुरू होता है और हमें हमारे पूर्वजों की याद दिलाता है और हमें हमारे कर्तव्यों के बारे में बताता है ।
आगे चलकर यही गोत्र वंश परिचय के रूप मैं समाज मैं प्रतिष्ठित हो गया.. एक सामान गोत्र वाले एक ही ऋषि परंपरा के प्रतिनिदी होने के कारन भाई-बहिन समझे जाने लगे… जो आज भी बदस्तूर जारी है…
प्रारंभ मैं सात गोत्र थे कालांतर मैं दुसरे ऋषियों के सानिध्य के कारन अन्य गोत्र अस्तित्व मैं आये !!
जातिवादी सामाजिक व्यवस्था की खासियत ही यही रही कि इसमें हर समूह को एक खास पहचान मिली। हिन्दुओं में गोत्र होता है जो किसी समूह के प्रवर्तक अथवा प्रमुख व्यक्ति के नाम पर चलता है। सामान्य रूप से गोत्र का मतलब कुल अथवा वंश परंपरा से है। गोत्र कोबहिर्विवाही समूह माना जाता है अर्थात ऐसा समूह जिससे दूसरे परिवार का रक्त संबंध न हो अर्थात एक गोत्र के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते पर दूसरे गोत्र में विवाह कर सकते, जबकि जाति एक अन्तर्विवाही समूह है यानी एक जाति के लोग समूह से बाहर विवाह संबंध नहीं कर सकते।
गोत्र मातृवंशीय भी हो सकता है और पितृवंशीय भी। ज़रूरी नहीं कि गोत्र किसी आदिपुरुष के नाम से चले। जनजातियों में विशिष्ट चिह्नों से भी गोत्र तय होते हैं जो वनस्पतियों से लेकर पशु-पक्षी तक हो सकते हैं। शेर, मगर, सूर्य, मछली, पीपल, बबूल आदि इसमें शामिल हैं। यह परम्परा आर्यों में भी रही है। हालांकि गोत्र प्रणाली काफी जटिल है पर उसे समझने के लिए ये मिसालें सहायक हो सकती हैं।देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लोकायत में लिखते हैं कि कोई ब्राह्मणकश्यप गोत्र का है और यह नाम कछुए अथवा कच्छप से बना है।
इसका अर्थ यह हुआ कि कश्यप गोत्र के सभी सदस्य एक ही मूल पूर्वज के वंशज हैं जो कश्यप था। इस गोत्र के ब्राह्मण के लिए दो बातें निषिद्ध हैं। एक तो उसे कभी कछुए का मांस नहीं खाना चाहिए और दूसरे उसे कश्यप गोत्र में विवाह नहीं करना चाहिए। आज समाज में विवाह के नाम पर आनर किलिंग का प्रचलन बढ़ रहा है उसके मूल में गोत्र संबंधी यही बहिर्विवाह संबंधी धारणा है।
मानव जीवन में जाति की तरह गोत्रों का बहुत महत्त्व है ,यह हमारे पूर्वजों का याद दिलाता है साथ ही हमारे संस्कार एवं कर्तव्यों को याद दिलाता रहता है । इससे व्यक्ति के वंशावली की पहचान होती है एवं इससे हर व्यक्ति अपने को गौरवान्वित महसूस करता है । हिन्दू धर्म की सभी जातियों में गोत्र पाए गए है । ये किसी न किसी गाँव, पेड़, जानवर, नदियों, व्यक्ति के नाम, ॠषियों के नाम, फूलों या कुलदेवी के नाम पर बनाए गए है । इनकी उत्पत्ति कैसे हुई इस सम्बंध में धार्मिक ग्रन्थों का आश्रय लेना पड़ेगा ।
धार्मिक आधार- महाभारत के शान्तिपर्व (२९६ -१७ , १८ ) में वर्णन है कि मूल चार गोत्र थे-
1-अंगिरा।
2- कश्यप।
3- वशिष्ठ
4- भृगु ।
बाद में आठ हो गए जब जमदन्गि, अत्रि, विश्वामित्र तथा अगस्त्य के नाम जुड़ गए । गोत्रों की प्रमुखता उस काल में बढी जब जाति व्यवस्था कठोर हो गई और लोगों को यह विश्वास हो गया कि सभी ऋषि ब्राह्मण थे ।
उस काल में ब्राह्मण ही अपनी उत्पत्ति उन ऋषियों से होने का दावा कर सकते थे । इस प्रकार किसी ब्राह्मण का अपना कोई परिवार, वंश या गोत्र नहीं होता था ।
एक क्षत्रिय या वैश्य यज्ञ के समय अपने पुरोहित के गोत्र के नाम का उच्चारण करता था । अत: सभी स्वर्ण जातियों के गोत्रों के नाम पुरोहितों तथा ब्राह्मणों के गोत्रों के नाम से प्रचलित हुए ।
शूद्रों को छोड़कर अन्य सभी जातियों जिनको यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था उनके गोत्र भी ब्राह्मणों के ही गोत्र होते थे । गोत्रों की समानता का यही मुख्य कारण है ।
शूद्र जिस ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवार का परम्परागत अनन्तकाल तक सेवा करते रहे उन्होंने भी उन्हीं ब्राह्मणों और क्षत्रियों के गोत्र अपना लिए । इसी कारण विभिन्न आर्य और अन्य जातियों तथा वर्णों के गोत्रों में समानता पाई जाती है ।
मनु स्मृति के अनुसार कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था बनाई गई थी । मनुष्यों में कोई छोटा या बड़ा नही होता । शरीर के सभी अंगों का अपनी-२ जगह महत्व है । वैसे तो संसार के सभी धर्म, सम्प्रदायों में जाति-पाति का थोड़ा बहुत भेद अवश्य मिलेगा किन्तु वह भेद अहंकार, घृणा और एक-दूसरे को नीचा दिखाने कि भावना से हुआ, क्योंकि धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सभी मनुष्य समान हैं ।
जाति व्यवस्था को मजबूत बनाया गया । जन्म से लेकर मृत्यु तक के सारे कार्य जाति में ही सम्पन्न होने का रिवाज बन गया । लोगों ने अपनी जाति के बाहर सोचना ही बन्द कर दिया ।
शूद्रों को छोड़कर अन्य सभी जातियों जिनको यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था उनके गोत्र भी ब्राह्मणों के ही गोत्र होते थे । गोत्रों की समानता का यही मुख्य कारण है ।
शूद्र जिस ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवार का परम्परागत अनन्तकाल तक सेवा करते रहे उन्होंने भी उन्हीं ब्राह्मणों और क्षत्रियों के गोत्र अपना लिए । इसी कारण विभिन्न आर्य और अन्य जातियों तथा वर्णों के गोत्रों में समानता पाई जाती है ।
चौहान राजपूतों, मालियों, आदि कई जातियों में मिलना सामान्य बात है । सारांश में पुरोहितों तथा क्षत्रियों के परिवारों की जिन जातियों ने पीढ़ि सेवा की उनके गोत्र भी पुरोहितों और क्षत्रियों के समान हो गए ।
राजघरानों के रसोई का कार्य करने वाले शुद्र तथा कपड़े धोने का कार्य करने वाले धोबियों एवं चमड़े का कार्य करनेवाले चर्मकार आदि व्यक्तियों के गोत्र इसी वजह से राजपूतों से मिलते हैं । लम्बे समय तक एक साथ रहने से भी जातियों के गोत्रों में समानता आई ।
ब्राह्मणों के विवाह में गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति ग्रंथों में बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए।
विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्ति की संतान ‘गौत्र” कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा।
भारत वैदिक काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है.. और कृषि मैं गाय का बड़ा महत्त्व रहा है.. वैदिक काल से ही आर्य ऋषियों के निकट रह कर पठान, पठान, इज्या, शासन, कृषि, प्रशासन, गोरक्षा और वाणिज्य के कार्यों द्वारा अपनी जीविका चलाते थे..
और चूँकि भारत की जलवायु कृषि के अनुकूल थी, इसी लिए आर्य जन कृषि विज्ञानं में पारंगत थे, और कृषि मैं गाय को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया.. वह भारतीय कृषि और जीवन की धुरी बन चुकी थी…
गोऊ माता परिवार की सम्रधि का पर्याय थी.. गौपालन एक सुनियोजित कर्म था, यद्यपि गायें पारिवारिक संपत्ति होती थी पर उनकी देख रेख, संरक्षण ऋषियों की देख-रेख मैं सामुदायिक परीके से होता था.. अपनी गायों की रक्षा मैं कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे … इस प्रकार गौपालन के प्रवर्तक ऋषि थे..
गौपालन करनेवाले अनेक वंशो के अलग-अलग कुल सुविधानुसार अलग-अलग ऋषियों की छत्र छाया मैं रहते थे,
लोग ऋषि के आश्रम के पास ग्राम बना कर गौपालन, कृषि और वाणिज्यिक कार्य करते थे.. इस प्रकार जो लोग किसी ऋषि के पास रह कर गौपालन करते थे वे उसी ऋषि के नाम के गोत्र के पहचाने जाने लगे..
जैसे कश्यप ऋषि के साथ रहने वाला रामचंद्र अपना परिचय इस प्रकार देता था:
“कश्यप गोत्रोत्पन्नोहम रामचंद्रसत्वामभीवादाये “”
मैं कश्यप गोत्र मैं पैदा हुआ रामचंद्र आपको प्रणाम करता हूँ…
जैसे कश्यप ऋषि के साथ रहने वाले सभी वर्णों के लोग कश्यप गोत्र के हो गए..
ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों की संख्या भी लाख-करोड़ मानी जाती है, परंतु सामान्यत: आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गौत्र ऋषि माने जाते हैं, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गौत्र बनाए गए। ‘महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गौत्र बताए गए हैं- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ। इनमें हर एक के अलग-अलग भेद बताए गए हैं-
जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायन, दर्भ कात्यायन, वल्कलिन, पाक्षिण, लोधाक्ष, लोहितायन (दिव्यावदन-331-12,14) विवाह निश्चित करते समय गौत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी है। प्रवर भी प्राचीन ऋषियों के नाम है तथापि अंतर यह है कि गौत्र का संबंध रक्त से है, जबकि प्रवर से आध्यात्मिक संबंध है। प्रवर की गणना गौत्रों के अंतर्गत की जाने से जाति से संगौत्र बहिर्विवाहकी धारणा प्रवरों के लिए भी लागू होने लगी।
वर-वधू का एक वर्ण होते हुए भी उनके भिन्न-भिन्न गौत्र और प्रवर होना आवश्यक है (मनुस्मृति- 3/5)। मत्स्यपुराण (4/2) में ब्राह्मण के साथ संगौत्रीय शतरूपा के विवाह पर आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है। गौतमधर्म सूत्र (4/2) में भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है। (असमान प्रवरैर्विगत) आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है- ‘संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्” (समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए)।
गोत्रों का महत्व :- जाति की तरह गोत्रों का भी अपना महत्व है ।
1. गोत्रों से व्यक्ति और वंश की पहचान होती है ।
2. गोत्रों से व्यक्ति के रिश्तों की पहचान होती है ।
3. रिश्ता तय करते समय गोत्रों को टालने में सुविधा रहती है ।
4. गोत्रों से निकटता स्थापित होती है और भाईचारा बढ़ता है ।
5. गोत्रों के इतिहास से व्यक्ति गौरवान्वित महसूस करता है और प्रेरणा लेता है ।
गोत्रों की उत्पत्ति- एक समय और एक स्थान पर गोत्रों की उत्पत्ति नहीं हुई है । हिन्दू धर्म की सभी जातियों में गोत्र पाए गए है । ये किसी न किसी गाँव, पेड़, जानवर, नदियों, व्यक्ति के नाम, ॠषियों के नाम, फूलों या कुलदेवी के नाम पर बनाए गए है । गोत्रों की उत्पत्ति कैसे हुई इस सम्बंध में धार्मिक ग्रन्थों एवं समाजशास्त्रियों के अध्ययन का सहारा लेना पड़ेगा ।
धार्मिक आधार- महाभारत के शान्तिपर्व (296-17, 18) में वर्णन है कि मूल चार गोत्र थे- अंग्रिश, कश्यप, वशिष्ठ तथा भृगु । बाद में आठ हो गए जब जमदन्गि, अत्रि, विश्वामित्र तथा अगस्त्य के नाम जुड़ गए । गोत्रों की प्रमुखता उस काल में बढी जब जाति व्यवस्था कठोर हो गई और लोगों को यह विश्वास हो गया कि सभी ऋषि ब्राह्मण थे । उस काल में ब्राह्मण ही अपनी उत्पत्ति उन ऋषियों से होने का दावा कर सकते थे । इस प्रकार किसी ब्राह्मण का अपना कोई परिवार, वंश या गोत्र नहीं होता था । एक क्षत्रिय या वैश्य यज्ञ के समय अपने पुरोहित के गोत्र के नाम का उच्चारण करता था ।
अत: सभी स्वर्ण जातियों के गोत्रों के नाम पुरोहितों तथा ब्राह्मणों के गोत्रों के नाम से प्रचलित हुए । शूद्रों को छोड़कर अन्य सभी जातियों जिनको यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था उनके गोत्र भी ब्राह्मणों के ही गोत्र होते थे । गोत्रों की समानता का यही मुख्य कारण है । शूद्र जिस ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवार का परम्परागत अनन्तकाल तक सेवा करते रहे उन्होंने भी उन्हीं ब्राह्मणों और क्षत्रियों के गोत्र अपना लिए । इसी कारण विभिन्न आर्य और अनार्य जातियों तथा वर्णों के गोत्रों में समानता पाई जाती है ।
भाटी, पंवार, परिहार, सोलंकी, सिसोदिया तथा चौहान राजपूतों, मालियों, सरगरों तथा मेघवालों आदि कई जातियों में मिलना सामान्य बात है । सारांश में पुरोहितों तथा क्षत्रियों के परिवारों की जिन जातियों ने पीढ़ि सेवा की उनके गोत्र भी पुरोहितों और क्षत्रियों के समान हो गए । राजघरानों के रसोई का कार्य करने वाले सूद तथा कपड़े धोने का कार्य करने वाले धोबियों के गोत्र इसी वजह से राजपूतों से मिलते हैं ।
लम्बे समय तक एक साथ रहने से भी जातियों के गोत्रों में समानता आई ।
समाजशास्त्रिय आधार- समाजशास्त्रियों ने सभी जातियों के गोत्रों की उत्पत्ति के निम्न आधार बताए हैं-
1. परिवार के मूल निवास स्थान के नाम से गोत्रों का नामकरण हुआ ।
2. कबीला के मुखिया के नाम से गोत्र बने ।
3. परिवार के इष्ट देव या देवी के नाम से गोत्र प्रचलित हुए ।
4. कबिलों के महत्वपूर्ण वृक्ष या पशु-पक्षियों के नाम से गोत्र बने ।
समाजशास्त्रियों द्वारा उपरोक्त बताए गए गोत्रों की उत्पत्ति के आधार बहुत ही महत्वपूर्ण है । सभी जातियों के गोत्रों की उत्पत्ति उपरोक्त आधारों पर ही हुई है ।(साभार–http://www.theraigarsamaj.com)
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गोत्र का महत्त्वगोत्र का रहस्यWHAT IS GOTR
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विवाह के समय इन आवश्यक बातो का रखें ध्यान—- एक ज्योतिषीय विश्लेष्ण—
6 thoughts on “आइये जाने क्या हें गोत्र का रहस्य एवं महत्त्व …???”
Harshadbhatt
गोत्रो के बारे मे जानने के लीये कोनशी पुस्तक लेना चाहिए ओर कहा मीलती है
SEPTEMBER 20, 2014 AT 12:02 PMREPLY
आदरणीय महोदय …
आपका..आभार…धन्यवाद….आपके सवाल / प्रश्न के लिए
श्रीमान जी,
में इस प्रकार की परामर्श सेवाओं द्वारा प्राप्त अपनी फ़ीस/दक्षिणा (धन या पैसे ) का प्रयोग वृन्दावन (मथुरा-उत्तरप्रदेश) में (सस्ंकृत छात्रावास के नाम से,अटल्ला चुंगी के पास )मेरे सहयोग द्वारा संचालित एक वेद विद्यालय के लिए करता हूँ जहाँ इस समय 322 बच्चे/विद्यार्थी निशुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं..
—देखें वेबसाईट—http://www.vedicshiksha.com/
–आप स्वयं समझदार हैं की कैसे उन सभी का खर्च चलता होगा..???
–उनकी किताबें,आवास,भोजन,चाय-नाश्ता,बिजली-पानी का बिल, किरणे का सामान,अध्यापकों का मासिक भुगतान आदि में कितना खर्च आता होगा…
–आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं..
—में तो अपने जीवन में लगभग 48 दफा रक्तदान कर चूका हूँ तथा अपनी आँखें-किडनी-हार्ट..आदि भी दान कर चूका हूँ…
–मुझे तो केवल अब तो मोक्ष चाहिए…
–अब आप ही बताइये की में अपनी फ़ीस/दक्षिणा लेकर गलत करता हूँ..???
जरा सोचिये और सहयोग कीजियेगा..
पुनः धन्यवाद..
आप का अपना ———
पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रिय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रिय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश) एवं 09024390067 (राजस्थान)
OCTOBER 2, 2014 AT 4:35 PMREPLY
Jeetendar Singh Gosain
Soan Gotra
Tell about
DECEMBER 7, 2014 AT 9:50 PMREPLY
hari pandeya
पुराणाें मे गाेत्रका प्रचलन अवश्य है । वैवाहिक कार्य में गाेत्रका विशेष ध्यान दिया जाता है यैसि मान्यता समाज मे स्थापित है , मगर सगाेत्र विवाहका प्रचलन भि है ।
JANUARY 29, 2016 AT 9:37 AMREPLY
Hanuman
Kya gunwal or gandwal gotr same h
SEPTEMBER 23, 2016 AT 12:22 PMREPLY
आपके प्रश्न का समय मिलने पर में स्वयं उत्तेर देने का प्रयास करूँगा…
यह सुविधा सशुल्क हें…
आप चाहे तो मुझसे फेसबुक./ऑरकुट पर भी संपर्क/ बातचीत कर सकते हे..
—-पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री मेरा कोंटेक्ट नंबर हे
—- MOB.—-
—-0091-09669290067(MADHYAPRADESH),
—–0091-09039390067(MADHYAPRADESH),
—————————————————
मेरा ईमेल एड्रेस हे..—-
– vastushastri08@gmail.com,
–vastushastri08@hotmail.com;
—————————————————
Consultation Fee—
सलाह/परामर्श शुल्क—
For Kundali-2100/- for 1 Person……..
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For Vastu 11000/-(1000 squre feet) + extra-travling,boarding/food..etc…
For Palm Reading/ Hastrekha–2500/-
——————————————
(A )MY BANK a/c. No. FOR- PUNJAB NATIONAL BANK- 4190000100154180 OF JHALRAPATAN (RA.). BRANCH IFSC CODE—PUNB0419000;;; MIRC CODE—325024002
======================================
(B )MY BANK a/c. No. FOR- BANK OF BARODA- a/c. NO. IS- 29960100003683 OF JHALRAPATAN (RA.). BRANCH IFSC CODE—BARBOJHALRA;;; MIRC CODE—326012101
————————————————————-
Pt. DAYANAND SHASTRI, LIG- 2/217,
INDRA NAGAR ( NEAR TEMPO STAND),
AGAR ROAD, UJJAIN –M.P.–456006 –
—- MOB.—-
—-0091-09669290067(MADHYAPRADESH),
—–0091-09039390067(MADHYAPRADESH),
SEPTEMBER 30, 2016 AT 12:14 AMREPLY
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