Wednesday, 18 October 2017

वज्रयान

मुख्य मेनू खोलें खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें वज्रयान वज्रयान (बांग्ला: বজযান; मलयाली: വജ്രയാന; उडिया: ବଜ୍ରଯାନ; तिब्बती: རྡོ་རྗེ་ཐེག་པ་, दोर्जे थेग प; मंगोल: Очирт хөлгөн, ओचिर्ट होल्गोन; चीनी: 密宗, मि ज़ोंग) को तांत्रिक बौद्ध धर्म, तंत्रयान, मंत्रयान, गुप्त मंत्र, गूढ़ बौद्ध धर्म और विषमकोण शैली या वज्र रास्ता भी कहा जाता है। वज्रयान बौद्ध दर्शन और अभ्यास की एक जटिल और बहुमुखी प्रणाली है जिसका विकास कई सदियों में हुआ।[1] बौद्ध धर्म की श्रेणी का हिस्सा बौद्ध धर्म का इतिहास · बौद्ध धर्म का कालक्रम · बौद्ध संस्कृति बुनियादी मनोभाव चार आर्य सत्य · आर्य अष्टांग मार्ग · निर्वाण · त्रिरत्न · पँचशील अहम व्यक्ति शाक्यमुनि बुध · गौतम बुद्ध · बोधिसत्व क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म · चीनी बौद्ध धर्म · तिब्बती बौद्ध धर्म · पश्चिमी बौद्ध धर्म बौद्ध साम्प्रदाय थेरावाद · महायान · वज्रयान बौद्ध साहित्य त्रिपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह · विनय · पाऴि सूत्र · महायान सूत्र · अभिधर्म · बौद्ध तंत्र वज्रयान संस्कृत शब्द, अर्थात हीरा या तड़ित का वाहन है, जो तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है तथा भारत व पड़ोसी देशों में, विशेषकर तिब्बत में बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण विकास समझा जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में वज्रयान का उल्लेख महायान के आनुमानिक चिंतन से व्यक्तिगत जीवन में बौद्ध विचारों के पालन तक की यात्रा के लिये किया गया है। वज्र ‘वज्र’ शब्द का प्रयोग मनुष्य द्वारा स्वयं अपने व अपनी प्रकृति के बारे में की गई कल्पनाओं के विपरीत मनुष्य में निहित वास्तविक एवं अविनाशी स्वरूप के लिये किया जाता है। यान ‘यान’ वास्तव में अंतिम मोक्ष और अविनाशी तत्त्व को प्राप्त करने की आध्यात्मिक यात्रा है। बौद्ध मत के अन्य नाम संपादित करें बौद्ध मत के इस स्वरूप के अन्य नाम हैं- मंत्रयान (मंत्र का वाहन) - जिसका अर्थ मंत्र के प्रभाव द्वारा मन को संसार के भ्रमों और उनमें विद्यमान शब्दाडंबरों में भटकने से रोकना तथा यथार्थ के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है। गुह्ममंत्रयान - जिसमें गुह्म (गुप्त) शब्द का भावार्थ कुछ छिपाकर रखना नहीं, बल्कि सत्य को जानने की प्रक्रिया कि दुर्बोधता और सुक्ष्मता को इंगित करना है। विशेषता दार्शनिक तौर पर वज्रयान में योगाचार साधना पद्धति, जिसमें मन की परम अवस्था (निर्वाण) पर बल दिया जाता है और माध्यमिक विचारदर्शन, जिसमें किसी आपेक्षिकीय सिद्धान्त को ही अंतिम मान लेने की चेष्ठा का विरोध किया जाता है, दोनों ही समाहित हैं। आंतरिक अनुभवों के बारे में वज्रयान ग्रंथों में अत्यंत प्रतीकात्मक भाषा प्रयोग की गई है। जिसका उद्देश्य इस पद्धति के साधकों को अपने भीतर ऐसे अनुभव प्राप्त करने में सहायता करना हैं, जो मनुष्य को उपलब्ध सर्वाधिक मूल्यवान अनुभूति समझे जाते हैं। इस प्रकार, वज्रयान गौतम बुद्ध के बोधिसत्त्व (ज्ञान का प्रकाश) प्राप्त करने के अनुभव को फिर से अनुभव करने की चेष्टा करता है। तांत्रिक दृष्टि के सिद्धांत तांत्रिक दृष्टि से ज्ञान का प्रकाश इस अनुभव से आता है कि विपरीत लगने वाले दो सिद्धांत वास्तव में एक ही हैं; शून्यता (रिक्तता) और प्रज्ञा (ज्ञान) की निष्क्रिय अवधारणाओं के साथ सक्रिय करुणा तथा उपाय (साधन) भी संकल्पित होने चाहिये। इस मूल ध्रुवता और इसके संकल्प को अकसर काम-वासना के प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। वज्रयान की ऐतिहासिक उत्पत्ति तो स्पष्ट नहीं है, केवल इतना ही पता चलता है कि यह बौद्धमत की बौद्धिक विचारधारा के विस्तार के साथ ही विकसित हुआ। यह छठी से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच फला-फूला और भारत के पड़ोसी देशों पर इसका स्थायी प्रभाव पड़ा। वज्रयान की संपन्न दृश्य कला पवित्र ‘मंडल’ के रूप में अपने उत्कर्ष तक पहुँच गई थी, जो ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्त्व करता है और साधना के माध्यम के रूप में प्रयुक्त होता है। इन्हें भी देखे संपादित करें महायान थेरवाद हीनयान तिब्बती बौद्ध धर्म दलित बौद्ध आंदोलन नवयान तंत्र साहित्य (भारतीय) सन्दर्भ संपादित करें ↑ Macmillan Publishing 2004, पृ॰ 875-876. स्रोत संपादित करें Akira, Hirakawa (1993), Paul Groner, ed., History of Indian Buddhism, translated by Paul Groner, Delhi: Motilal Banarsidass Publishers Banerjee, S. C. (1977), Tantra in Bengal: A Study in Its Origin, Development and Influence, Manohar, ISBN 81-85425-63-9 Datta, Amaresh (2006), The Encyclopaedia Of Indian Literature (Volume One (A To Devo), Volume 1, Sahitya Akademi publications, ISBN 978-81-260-1803-1 Harding, Sarah (1996), Creation and Completion - Essential Points of Tantric Meditation, Boston: Wisdom Publications Hawkins, Bradley K. (1999), Buddhism, Routledge, ISBN 0-415-21162-X Hua, Hsuan (2003), The Shurangama Sutra - Sutra Text and Supplements with Commentary by the Venerable Master Hsuan Hua, Burlingame, California: Buddhist Text Translation Society, ISBN 0-88139-949-3 Cite uses deprecated parameter |coauthors= (help) Kitagawa, Joseph Mitsuo (2002), The Religious Traditions of Asia: Religion, History, and Culture, Routledge, ISBN 0-7007-1762-5 Macmillan Publishing (2004), Macmillan Encyclopedia of Buddhism, Macmillan Publishing Mishra, Baba; Dandasena, P.K. (2011), Settlement and urbanization in ancient Orissa लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:Citation/CS1/Suggestions' not found। Ray, Reginald A (2001), Secret of the Vajra World: The Tantric Buddhism of Tibet, Boston: Shambhala Publications Schumann, Hans Wolfgang (1974), Buddhism: an outline of its teachings and schools, Theosophical Pub. House Snelling, John (1987), The Buddhist handbook. A Complete Guide to Buddhist Teaching and Practice, London: Century Paperbacks Wardner, A.K. (1999), Indian Buddhism, Delhi: Motilal Banarsidass Publishers Williams, Paul; Tribe, Anthony (2000), Buddhist Thought: A complete introduction to the Indian tradition, Routledge, ISBN 0-203-18593-5 बाहरी कड़ियाँ संपादित करें तिब्बत में तंत्र परंपरा तथा बज्रयान परंपरा का विकास RELATED PAGES श्रीलंका में बौद्ध धर्म श्रीलंका में बौद्ध धर्म कग्यु हिमालयी या तिब्बती बौद्ध धर्म के छ्हह मुख्य स्कूलोन मेइन से एक के रूप मेइन मान जात है, अन्य पान्छ न बौद्ध धर्म का कालक्रम Last edited 4 months ago by प्रसाद साळवे सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

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