Friday, 13 October 2017
गायत्री मंत्र सबसे श्रेष्ट
my Poems by Suresh Chand Kalhan
गायत्री मंत्र —gaytri mantra
 sckalhan
1 year ago
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गायत्री मंत्र और उसका इतिहास
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ॐ भूर, भुव , स्वः — ॐ तत सवितुर वरेण्यम
भर्गो देवस्य धीमहि –धियो योनः प्रचोदयात..
जहाँ तक गायत्री मंत्र के जाप शुरू होने के समय का सवाल है , वह समेत ज्ञात नहीं है पर इतना कह सकते हैं कि इसका समय वेदों के समय से ही है और या फिर इस सृष्टि के उत्पन होने के समय से है अर्थात आदि काल से है/ पराचीन हिन्दू धर्म ग्रन्थ बताते हैं कि किस प्रकार संत विश्वामित्र ने प्रभु से गायत्री मंत्र को काफी समय तक तपस्या के द्वारा परापत किया/ विश्वामित्र का असली नाम राजा विश्वरथ था ./राजा विश्वरथ जब अपने किसी अभियान से वापिस आ रहे थे तब थकान के कारन रास्ते में मुनि वशिष्ट के आश्रम में ठहरे और वहां पर कामधेनु नाम की गाये को देखा और उन्होंने संत वशिस्ट से वे गाये मांगी पर संत वशिष्ट ने देने मन कर दिया / इस पर राजा विश्वरथ ने वशिष्ट के साथ लड़ाई की पर वह हार गए. इस हार के कारन उनको बहुत हीन भावना हुई और वह अपना राजपथ छोड़ तपस्या करने चले गए, / इसी तपस्या के कारन वह संत वशिस्ट से आशीर्वाद परापत करके ब्रह्मऋषि कहलाये और इसी तपस्या के दौरान उन्होंने बहुत सूंदर कविता के रूप में अच्छी शब्दावली में गायत्री मंत्र की संरचना की जो बाद में एक अनोखी परार्थना बन गयी ./ इसी गायत्री मंत्र के कारन ही विश्वामित्र का नाम दुनिया में उच्चश्रेणी में कहलाया / यही है वह जो हमारा भारतीय पराचीन इतिहास संत विश्वामित्र के बारे में गायत्री मंत्र सम्बंधित कथा बताता है /
यूरोपियों और खास कर इंग्लैंड के इतिहासकारों ने इस भारतीय इतिहास को झूठा साबित करने की कोशिस की है /जबकि यह सर्वविदित है की भारत का प्राचीन इतिहास उतना ही पूरा है जितना इस संसार का उत्पन होना है /.. * यह बताया गया है कि एक बार अपनी सभा में आये सभी लोंगो के समक्ष आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि पराचीन भारत के लोग जंगल में नहीं रहते थे वह सभ्य समाज के नागरिक थे / उन लोंगो ने ही दुनिया में सभ्य समाज की सभ्यता को चारों और फैलाया ,हमारा इतिहास झूठा नहीं है हम दुनिया में अपनी पताका फ़ैलाने वालों में से थे और हैं / हमारा वैदिक इतिहास झूठा नहीं है./हमारे यहाँ श्री राम और श्री कृष्ण जैसी पवित्र आत्माओं ने जन्म लिया है/
यह बताया गया है कि यह गायत्री मंत्र हिन्दू ब्राह्मणों के अलावा सभी मनुष्यो और औरतों की पहुँच से बाहर था /परंतु यह कहना गलत है / हिंदुओं के सर्वउच्च मुनि द्वारा रचित मनु स्मृति के अनुसार गुरु की शिक्षा लेने के लिए सभी लड़के और लड़कियों को उपनयन संस्कार करवाना होता था, /. महाभारत के समय में माता सबसे बड़ी गुरु कहलाती थी/ औरत को सबसे अधिक इज़्ज़त दी जाती थी उनको उपनयन संस्कार करवाने पड़ते थे वह गायत्री मंत्र और चारों वेदों के ज्ञाता होती थी/फिर कैसे कहा जाता है कि औरतों को गायत्री मंत्र के जाप की मनाही थी/ यह बात गलत थी/ यह एक साधना है जो साधक के दिल को छु जाती है / इसके जाप से शांति मिलती है और प्रभु से मिलने का एक रास्ता है / इसके जाप से मनुष्य की कई मुश्किलें दूर होती हैं / गायत्री मंत्र का जाप प्रभु की पूजा है/.
वेदों के अनुसार इस संसार में कार्य करने के सात 7 क्षेत्र या जगह हैं जो एक दूसरे से आध्यात्मिक तौर पर बढ़ कर हैं ,/यह माना गया है कि इस आध्यात्मिक जागरूपता से हम अपनी तरक्की करते हुए उस परमपिता परमात्मा को पा सकते हैं/ बहुत से बुद्ध धर्म के मानने वाले इन् 7 कार्य करने वाले क्षेत्रों को मानते हैं /इस गायत्री मंत्र द्वारा हमको आध्यात्मिक शक्ति और रौशनी मिलती है. और हमसे एक दूसरे क्षेत्र से सम्बन्ध बनाये रखने में सहायक होती है यह भी कहा गया है कि जो इस गायत्री मंत्र की साधना–आराधना करता है वह व्यक्ति अपने भीतर अंतर्यामी शक्ति को महसूस करने लगता है जिससे उसके मन और मस्तिष्क को सर्वाधिक शांति मिलती है /
पराचीन समय के सन्तों ने इस गायत्री मंत्र को बहुत ध्यानपूर्वक शक्तिशाली शब्दों में बनाया है. /इस गायत्री शब्द को निम्न शब्दो से प्राप्त किया गया है/
गाये –अर्थात — ,महत्वपूर्ण ऊर्जा और
अत्रि –अर्थात –संभालना , रक्षा , मुक्ति दाता
मंत्र –अर्थात –आराधना और पराथना
गायत्री मंत्र -की महत्वता
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हम इस मंत्र को गायत्री मंत्र , सावित्री मंत्र और महामंत्र के नाम से भी जानते हैं / . इसको समझ ने के लिए हम इसको 5 भागों में बाँट सकते है
पहला : ॐ , भूर भव सवः — वह व्यक्ति जो इस का सत्ताधारी सर्व्वयापक .,बुद्धि देने वाला , सर्वशक्तिमान, और जीवन देने वाला है/ ॐ : वह प्रभु जो इस सृष्टि को बचाता है .
भूर: वह जो इस संसार का जीवन है =ब्रहम्म और हमको मुक्ति प्रदान करने वाला है /
भवः: वह जो तकलीफ से ऊपर सर्वशक्तिमान, सर्व्वयापक है और शांति प्रदान करने वाला है
स्वः : वह जो सर्व्वयापक है और इस संसार को खुशियां देने वाला है
तत्सवितुर वरेण्यम —इन् शब्दों के द्वारा उस सर्वशकितमान प्रभु की प्रशंशा की गई है —
भर्गो देवस्य धी महि — वह जो सभी प्रांणियों से सम्बन्ध रखता है
धियो यो नः प्रचोदयात — इसके द्वारा हम उस प्रभु से अपने लिए बुद्धि की कामना करना करते हैं
तत: वह जो हमारा पिता है
सवितुर : वह जो इस ब्रह्माण्ड का रचिता है और इसको जीवन देकर चलायमान रखता है
वरेण्यम : जो सबका विश्ववसनीय है
दूसरे == जब हमें तकलीफें और मुश्किल आती है तब यह परमात्मा हमें उनसे बचाता है
तीसरे” —यह मंत्र गुरु मंत्र है , जो हमें धर्म का पालन करने को कहता है और ठीक शिक्षा लेने को कहता है /
चौथे :यह मंत्र सविता शब्द से सम्बंधित है इसीलिए इस ब्रह्मांड को बनाने वाला ईश्वर कहते हैं /
इस सविता द्वारा इस ब्रह्माण्ड में जीवन सञ्चालन करने वाला कहते हैं/
पांचवे : इसको महामंत्र भी कहते हैं क्योंकि यह गायत्री मंत्र चारों वेदों से ऊपर है और पूजा करने के लिए उचित है /
गायत्री मंत्र सभी वैदिक मन्त्रों में सर्वउच्च है/. इसके द्वारा हम सूर्य की पूजा करते हैं ताकि हमारे सभी पाप ख़त्म हो जाएँ. /इससे हमें बुद्धि, स्वस्थ्य और लंबा जीवन मिलता है/ गायत्री मंत्र का बार आर जाप सूर्य उदय से पूर्व सुबह , दोपहर और सूर्य अस्त होने के समय संध्या को दिन में तीन बार करनी चाहिए / गायत्री मंत्र खुद एक वंदना है . एक आत्मस्वरूप है और सांसारिक वस्तुओं को चलायमान गति देता है. तथा हमें बुद्धिवान बनाता है/ इसीलिए यह हम पराणियों को प्रभु का उपहार है जिसके उच्चारण से हम शक्तिशाली प्रभु की और आकर्षित होते हैं/
इस मंत्र को भगवद गीता और चारो वेदों का सार कहा गया है/इस मंत्र की शब्दावली को बहुत ही खूबसूरती के साथ बनाया गया है/यह बहुत अच्छी परार्थना है जो सभी हिन्दू परिवार के लोग जाप करते हैं/यह संस्कृति में आज से 10000 से भी अधिक वर्ष पहले लिखी गयी है/बहुत समय से . यह पश्चमी लोंगो के लिए एक अलौकिक है / जिसके कारण वह इसकी खोज करके पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों इसको स्वयं जागरूकता का साधन माना गया है/ यह हम सब के लिए उपहार है और यह गायत्री सभी वेदों की माता है/
इसीलिए यह गायत्री मंत्र सभी वेदों का भाग है और इसको ऋग्वेद में से लिया गया है/ इसका एक एक शब्द प्रत्येक वेद का हिस्सा है/.इसको यजुर वेद का तैत्तरीय ब्रह्म कहा गया है/ इससे तीन प्रकार का ज्ञान मिलता है/ अर्थात रिग से अग्नि –यजुर से दिल और साम से दिल का आदित्य है./ इस अर उस शक्तिशाली परमात्मा ने हमें तीन प्रकार का ज्ञान रूपी प्रकाश दिया है/ . ,
यह पृथ्वी या भूलोक रिग की दें है — यजुर से अंतरिक्ष (भुव लोक –आकाश ) तथा सामवेद से देवलोक या सव: लोक मिला है/
तभी वेदों में इस प्रकार कहा गया है :
गायत्री मंत्र का जप या उच्चारण ——साधक को पवित्र करता है .
गायत्री मंत्र को सुनना ——————.सुनने वाले को पवित्र करता है
गायत्री मंत्र का जाप अपने आप में खुद व्यक्ति के लिए पवित्रता लाती है./यह जाप करने वाले को आत्मशक्ति प्रदान करती है और मनुष्य को सभी प्रकार की गलतियों और कष्टों से बचाती है /गायत्री मंत्र में महा शक्ति का भंडार है/ सभी मानव जाति के लिए उपनयन संस्कार उसकी जीवन शैली को बदलता है और वह इसकी बाद जिंदगी की नयी शुरुआत करता है./ यह उपनयन संस्कार गायत्री मंत्र के जाप से ही शुरू होता है,/ यह मंत्र सभी पराण धारियों के लिए एक आध्यात्मिक शक्ति है / यह मंत्र उस व्यक्ति को शांति, बुद्धि और अंतरात्मा द्वारा शांति और खुशियां प्रदान होती हैं जो व्यक्ति इसकी सच्चे दिल से आराधना करता है/
इस गायत्री मंत्र के जाप से हम आध्यात्मिक बुद्धि द्वारा वह सब कुछ पर्याप्त कर सकते हैं जिसकी हमें इस संसार में जरूरत है/ साधक इसके जाप से उस शक्तिशाली प्रभु से बुद्धि को पाते हैं // और हमें शुद्ध विचार रखने की शक्ति मिलती है / वेदों के अनुसार इस मंत्र का उच्चारण नित्यपूर्वक करना चाहिए ताकि आध्यात्मिक बुद्धि का विकास और आत्म -प्रतिरोध की शक्ति मिली है / जिससे साधक की जीवन शैली बदल जाती है. परंतु इसका जाप करने से सब कुछ नही मिलता जब तक इस मंत्र के सही अर्थ नहीं मालूम हों कि क्या उच्चारण कर रहे हैं/
बहुत से साधक हिंदुओं के लिए गायत्री एक दिव्य जागरूकता पैदा करता है/ जिसके द्वारा आत्मा की शुद्धि और इसके द्वारा प्राणी ब्रह्म की और अग्रसर होता है/
. गायत्री मंत्र द्वारा सूर्य उपासना , संध्या की उपासना होती है/ इसके द्वारा हमें बुद्धि रूपी रौशनी और सूर्य रूपी दिव्या प्रकाश मिलता है / इसके द्वारा ब्रह्म तक पहुँचने की शक्ति और सच्चा मार्ग प्राप्त होता है./ इसकी सच्ची महत्वता जानने के लिए हम संशिप्त में कह सकते है कि हम इस सृष्टि के करता से दिव्या शक्ति के लिए परार्थना करते है जिसने इस संसार को बनाया–वह पूजनीय है./–जो सच्ची आधयात्मिक रौशनी देता है/जो हमारे पापों और गलतियों को दूर करता है–हम परार्थना करते हैं कि वह हमें दिलों को सन-मार्ग और अच्छी बुद्धि की और लेजाए/
ॐ भूर, भुव , स्वः — ॐ तत सवितुर वरेण्यम
भर्गो देवस्य धीमहि –धियो योनः प्रचोदयात्
अगर आप गायत्री मंत्र का जाप करना चाहते हैं तो यह सबसे महत्वपूरण बात है कि इसका उच्चारण यही प्रकार से किया जाये और वह भी सच्चे मन से किया जाये/तात्पर्य यह है कि हमें मालूम होना चाहिए कि इस मंत्र के सही अर्थ क्या है/इस संस्कृत में लिखे गए मंत्र में अगर ठीक प्रकार और सच्चे दिल से जाप किया जाये तो इसमें भरपूर्व शक्ति है /
.आओ इस मंत्र के एक एक शब्द के क्या अर्थ है ;–
गायत्री मंत्र के अर्थ
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1 .ॐ का सही उच्चारण AUM ॐ है /हमने इस शब्द का उच्चारण हज़ार बार किया होगा /परंतु क्या आप को मालूम है यह ॐ शब्द क्या है/जिसको एक योगी बहुत ही दिल से जाप करता है/ ॐ शब्द की आवाज मनुष्य पराणियों की एक अपनी अलग भाषा है /
. ॐ आवाजों से मिला एक अपना साँचा है/ इसीलिए ॐ aum – एक ब्रहम्म और शक्तिशाली प्रभु है./ ॐ की आवाज सनातन है/ यह वह आवाज है जो ईश्वर ने पराकृत माता को पैदा करते समय आत्मा के रूप में दी थी./ॐ एक संस्कृत का शब्द है जो ऋषि मुनि अपनी साधना के समय इस्तेमाल करते हैं/ इस शब्द को समझाना अति मुश्किल है क्योंकि ॐ सबकुछ है और इस संसार की जननी है/
ॐ सभी आवाजों में मुख्य आवाज है/ ॐ ब्रह्म और सर्वउच्च है./ ॐ संतान धर्म के अनुसार श्री गणेश का शारीरिक स्वरूप है/ॐ का ऊपर का चंद्रमुख कर्व गणेश जी का सर का भाग है और ॐ का निचला हिस्सा गणेश जी की सूंड का प्रतीक है / ॐ शब्द परमात्मा का पहला नाम है जो तीन स्वरों से बना है/ जिसको बोलने से यह महसूस होता है कि यह इस सृश्टी का उत्पन करने वाला , संरक्षक , और समाप्त करने वाला परमात्मा है./
]
अ==ब्रह्माण्ड या इस सृश्टी का बनाने वाला प्रभु है/————-ब्रहम्मा
उ==इस ब्रह्माण्ड और सृष्टि का संरक्षक है/———————-विष्णु
म== इस सृश्टी या ब्रह्माण्ड का नाशक कहा गया है ———-शिव
अतः ॐ एक ऐसा शब्द है जो प्रभु के तीनों गुणो का दर्शता है और प्रभु के तीन आकर्ति ब्रह्मा विष्णु और शिव/महेश बताता है / इस मंत्र द्वारा हमें शांति, ख़ुशी/आनंद ., और आध्यात्मिक रौशनी मिलती है तभी इसको महामंत्र कहा गया है /
दूसरे शब्दों में अ से सृश्टी की शारीरिक रूप मानसिक रूप से उत्पत्ति और ब्रहम्म की परापति है और यह शब्द हिंदी शब्दावली का पहला अक्षर और सर्व है/ जब हम इसका उच्चारण करते हैं तो यह गले से होते हुए मुंह खुलता है/
उ -इसको बोलते समय होंठ थोड़ा तिरछा होते हुए जबान तक आता है./इससे इस सृश्टी में जिंदगी और संरक्षण का कार्य बताया है. इस सृश्टी में शक्ति का समायोजन और मष्तिष्क का कार्य करना बताया है. यह एक अंतर आत्म का रूप है. यह स्वप्न में लेजाने वाला सूक्षम स्थान तथा विष्णु है /
म- जब इस म को बोलते हैं तब हमारे होंठ बंद होने की प्रकिर्या दिखाते हैं – इसके द्वारा हम उस प्रभु को सर्वयापी संरक्षक और सन्मार्ग दिखने वाला समझते हैं/ इसकी साथ हम इसको सृश्टी का नाशक भी मानते हैं/ यह साधारण , स्वप्न रहित , नाशक , रूद्र और आनंदायी है /
इसकी चौथी स्थिति चुप रहने वाली है..अर्थात त्रिया और सृष्टि से ऊपर है और इसके बोलने में कम्पन होता है
इस प्रकार यह स्वयं आत्मा है इस पृथ्वी को बनाने वाला है /. जिसमे हवा पानी इत्यादि दीगई हैं / यह स्वयम ब्रहम्म का जनम से रहने का स्थान है /. प्रकृति रूप से ॐ के बोलने में अपनी अलग शैली है /
अर्थात अ=जागना उ – स्वप्न देखना– म –नींद में सोना
ॐ अपने आप में सर्वयापी .शक्तिशाली, और संरक्षण है / सर्वयापी का अर्थ है कि ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ वह मौजूद नहीं / वह सम्पूर्ण शक्ति वाला और शासक है /
अर्थात: हे सर्वयापक संरक्षक हमें आप धर्म की राह पर सन्मार्ग की और चलने का आशर्वाद देवे /.
2.भूर—-प्रथम भू; यह शब्द परमात्मा को इस संसार के उत्पन होने से पूर्व सर्वयापी होना और सर्वशक्तिमान होना बताता है./ नाश होने के बाद भी रहेगा क्योंकि वह परिवर्तनशील है /
दूसरे : यह पृथ्वी जहाँ हम पैदा हुए हैं दिव्यस्वरूप है./ भू जीवन देने वाली है हम पैदा हुए हैं तो मौत भी आनी है/ हम को ज़िंदा रखने के लिए उसने हमें वायु,पानी इत्यादि दिए हैं./वह इस ब्रह्माण्ड का सञ्चालन करता है.और जीवन देता है/
और अंत में भूर प्राण और जीवन देने वाला है/ जब उस प्रभु की इच्छा होती है वह हमें मौत दे सकता है./वह प्राणस्वरूप है और औरआध्यात्मिक शक्ति देता है ./(भू)
अर्थात: हे प्रभु आप जीवन देने वाले है और जिन्दा रखने के लिए शक्ति देते है इसीलिए आप यह शक्ति हमें प्रदान करें/
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3.भुवः —इस शब्द भुवः परमात्मा का इस संसार में होना दर्शाता है./जो इस ब्रह्माण्ड का चलायमान और सञ्चालन करता है./ इस शब्द का अर्थ है कि यह हमारे दुखों और तकलीफो जैसे भूचाल, बाढ़ इत्यादि को दूर करता है ,/ इसी कारन हम उस प्रभु के भक्त बनते हैं/यह ध्यान देने वाली बात है कि यह सब तकलीफे हमारे अपने मस्तिष्क की उपज हैं / जो हम सोचते हैं वैसा ही हो जाता है./
इसीलिए यह शब्द भवः परमात्मा और हम सांसारिक पराणियों का संपर्क करने वाला है./परमात्मा की महत्वता आकाश के होने ही जानी जा सकती है./
अर्थात: हे प्रभु खुशियों को देने वाले हम आप केऔर आप की शक्ति का अपने पास होने अंदाज़ा कर सकते हैं इसीलिए आप हमें तकलीफो और दुखों को दूर करने के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान करें
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4 :स्व ; यह बताता है कि परमात्मा सर्व-वयापी और सब जगह है इसीलिए वह प्रभु इस संसार से जिसको उसने बनाया है सम्बन्ध बनाये रखता है और अपने अधिकार रखता है ताकि वह इस ब्रह्मांड को ठीक प्रकार से चलायमान रख सकेऔर स्व; का शब्द परमात्मा के आशीर्वाद से भी सम्बंधित है/ हमारे पास दुःख और खुशियां है पर वह सब क्षणिक मात्र समय के लिए हैं / मगर हम ऐसा महसूस करते हैं कि हमारे दुःख अन्तकाल के लिए होते है / मनुष्य के पास खुशियां हैं वह भी कुछ समय तक के लिए हैं/ जबकि परमात्मा का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है/ परन्तु यह सब प्रकृतिक हैं/
वह मनुष्य जिसने परमात्मा के आशीर्वाद को प्राप्त कर लिया है और अपने आप को प्रभु के आश्रित करलिया है उसको दिव्य जयोति मिलती है और वह सुख स्वरूप कहलाता है/ परमात्मा के पास आध्यात्मिक ज्ञान का सागर है और वह परमात्मा इस ब्रह्माण्ड का संचालित करता है/
यह तीन शब्द अपने आप में निम्न बातों का उलेख करते हैं :
–भू : जीवन, पृथ्वी और खुद का इस संसार में मौजूद होने का अहसास /
–भुवः: आकाश और स्वम,/
–स्वः:- धयान, स्वर्ग , आराधना और खुशियां /
अर्थात: हे प्रभु खुशियों के देने वाले , आप के खुशियों का भंडार है,अमृत है / कृपया हमें इन सब में अपना भागीदार बनाये ताकि हमारे पास हमेशा खुशियां ही खुशियों हों /
तत्सवितुर्वरेण्यं
5 . तत—–इस शब्द को संस्कृत में इस्तेमाल किया गया है और इसको तीसरे व्यक्ति के लिए प्रयोग किया गया है
यह एक मनुष्य की विचारशक्ति है/ भगवद गीता में श्री कृष्ण ने स्वयम कहा है कि मनुष्य को स्वारथी नहीं होता चाहिए/ जब वह पूजा कर रहा हो या फिर वह कोई कार्य कर रहा हो तब इसको अपना कर्तव्य या धर्म समझ कर बिना किसी स्वार्थ के कर रहा होता है/
तत शब्द गायरी मंत्र में साधक द्वारा परमात्मा की पूजा से सम्बंधित है./ जिसमे वह बिना किसी प्रकार के लाभ के प्रभु के लिए अपनी आराधना कर रहा हो/ आत्म-विवेचन द्वारा मनुष्य परमात्मा को सर्वशक्तिमान मानता है जिसको वह मनुष्य जानता और समझता है.
अर्थात: हे प्रभु आपने इस सृश्टी को या ब्रह्माण्ड को उत्पन किया है/ और आप हमारे माता पिता हैं/ इसीलिए हम आप से सन्मार्ग की और जाने की शक्ति मांगते हैं./
6-सवितुर् ” :यह शब्द सविता शब्द का परारूप है जो प्रभु का दूसरा नाम है./इसीलिए गायत्री मंत्र का सावित्री मंत्र से भी जाना जाता है/ और यह प्रभु की उत्पन करने वाली और इस संसार को सब कुछ देने वाली शक्ति का स्रोत्र है/ इसी से प्रभु ने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है/इस के साथ साथ संरक्षक और नाश करने वाली शक्ति भी इसके द्वारा प्रभु के पास है/ प्रभु की दिव्या शक्ति ही इस ब्रह्माण्ड को जीवन देने वाली कही जा सकती है/ और प्रभु को मालूम है की किस समय इस सृश्टी का नाश किया जाना चाहिए/
सविता परमात्मा का हम मनुष्यों को उपहार है./ इसी उपहार द्वारा हम मनुष्यों के पास अपने लिए अविष्कार और कला करने की शक्ति मिली हुई है/ जो आविष्कार हमारे साइंटिस्ट्स ने किये हैं वह सब इस सविता के द्वारा दी गयी शक्ति का उपयोग है/ क्योंकि मनुष्य शांत नहीं बैठ सकता और कुछ ना कुछ अविष्कार करता रहता है/ / इसीलिए हम सविता को अपना माता और पिता कह सकते हैं/ इसी सविता से हमें अच्छे और बुरे की पहचान करनी आती है/
.सविता हमें स्वयम मार्ग दर्शन करके जीवन जीना सिख लाती है / इस सविता शब्द का मंत्र में इस्तेमाल हमें समझाता है कि हम कुछ अपने लिए परिश्रम करें क्योंकि प्रभु हमें तब तक कोई मदद नहीं करेगा जब तक हम खुद अपनी मदद ना करें/ यह सब सविता की आधयात्मिक शक्ति द्वारा ही संभव है/
सारांश में: सविता प्रभु का दूसरा नाम है जो संसार को उत्पन,संरक्षण , और नाश करने की शक्ति रखता है.और इस सविता द्वारा मनुष्य को अपनी तरक्की के लिए अविष्कार करना सिखलाता है./और अच्छे बुरे की पहचान करना सिख लाता है तभी यह हम मनुष्यों के लिए माता पिता कह लाता है/
7. वरेण्यम : इस शब्द से हमें परमात्मा का होना बताया गया है./वह प्रभु जो विश्वाश करने योग्य है /इसीलिए हम इस प्रभु को सर्वउच्च मानते हुएअपने आप को उसको समपर्ण करते है/इस संसार में हम हर किसी पर विश्वास नहीं कर सकते और जिस पर हम विश्वास करते हैं उस पर हम पूरी तरह से निर्भर हो जाते हैं/ क्योंकि हम हर एक पर विश्वास नहीं कर सकते इसीलिए हम उस प्रभु पर पूर्ण विश्वास करते हुए निर्भर हो जाते हैं और उसको अपना नेता या मार्ग दर्शक कहते हैं/ तथा उसको शक्तिमान मानते हुए उसकी आरधना करते हैं/ .इसी को हम वरेण्यम कहते हैं और विश्वास करते हैं /
सारांश में: हे प्रभु हम किसी और पर निर्भर ना रहते हुए आप पर विश्वास करते हुए निर्भर रह कर आप की आरधना करते हैं/ हमारे लिए वरेण्यम और माननीय हैं/.
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भर्गो देवस्य धीमहि
यह तीन शब्दों का मिलन परमात्मा की अच्छाईयों और उसके द्वारा किये कार्य बताता है/ उसके कार्य करने के तरीके बताता है जिसके द्वारा वह हमारे संपर्क में है /
भर्गो:
8. भर्ग: इसके अर्थ है कि वह परमात्मा जो शोभनीय और प्रकाश से भरपूर है और प्यार और शक्ति है जिसके द्वारा हमारे दुःख और तकलीफें दूर होती है / वह शक्तिशाली परमात्मा है जिसका प्रकाश सभी सूर्यों के प्रकाश से उच्चतम है और वह सबसे अधिक विद्वान् है/ वह उनके पाप नष्ट करता है जो उसके संपर्क में आते है/जब हम सोने को पिघलाते हैं तो वह सोना अपने आप में निखर जाता है उसी प्रकार हम मनुष्य भी परमात्मा के सम्पर्क मे आकर अपनी आत्मा को पवित्र करते हैं/ और उसको पूजा करके उससे दिव्या रौशनी प्राप्त करके अपने सांसारिक अंधकार को दूर करते हैं/
हमारी आत्मा पाप करने के कारण अपवित्र हो जाती है जबकी वह आत्मा खुद प्रकृति द्वारा दिव्या ज्योति वाली होती है/ और परमात्मा की दिव्य शक्ति से हमारी आत्मा अन्धकार को दूर करके पवित्र होती है/और हम स्वयं तेजस्वी हो जाये /
सारांश में: हे ईश्वर हम आपकी दिल से पूजा करते हैं ताकि आपके दिव्य तेज द्वारा हमारे भीतर की आत्मा भी अंधकार को दूर करके और गलत कार्यो को समाप्त करके पवित्र हो जाये/
देवस्य
9. देवस्य : पुरे भारत में देव शब्द पवित्र माना जाता है/ वह मनुष्य जो अच्छे आचरण वाला. अच्छे कार्य करने वाला और अच्छी आदतों वाला है वह देव माना जाता है/क्योंकि वह दूसरों से कोई गलत बात–वव्यहार नहीं करता/ इसिलए ऐसे देव पुरुष को परमात्मा के निकट होना कहा गया है/
देव शब्द अच्छे संस्कार और कार्यों के कारण देवता और देवी से सम्बंधित है क्योंकि उसके पास गुणों का भंडार है/ जैसे ब्रहम्म को सृष्टि करता., कामदेव को प्यार करने वाला इर्यादि/ भारत में बहुत से देवता और देवियों के नाम परमात्मा रूपी कार्यओं के अनुरूप रखे हैं / यहाँ तक हम भारत के लोग अपने माता पिता और आचार्य को भी देव तुल्य मानते हैं/ इस प्रकार देवता शब्द को परमात्मा के गुणों वाला कह सकते हैं/
यह देव शब्द गायत्री मंत्र में सविता देव के अनुरूप खुशियों वाला, सब जगह मौजूद रहने वाला जैसे गुणों को वाला होने के कारण इस्तेमाल किया गया है अर्थात उत्पन-करता, वरेण्यम और अच्छाई से भरपूर और आधयात्मिक रौशनी वाला कहते हैं/
सारांश में: पराकृति द्वारा अच्छे कार्य करने वाला ही देवता माना गया है./ दूसरों के लिए दिव्य शक्ति द्वारा अच्छे कार्य करने वाले को देवता स्वरुप मानते हैं./इसीलिए हम देवों के देव महादेव प्रभु का ध्यान करते हैं और परार्थना करते हैं कि वह हमारी आत्मा को दिव्य-रौशनी और हमें दिव्य- जीवन प्रदान करें /
धीमही
10. धीमही: इस शब्द से तात्पर्य है कि हम प्रभु की पूजा कर रहे हैं/जब हम दिल से पूजा करते हैं तब हमारा मन एक चित होना चाहिए ताकि हमारे मष्तिष्क में गंदे विचार ना आएं/ हम परमात्मा की पुरे तौर पर पवित्र आरधना नहीं कर सकते क्योंकि हमारे भीतर के सांसारिक विचार हमारे मष्तिष्क अपवित्र करते हैं/ इसीलिए हमारा कर्तव्य है कि हम बुरे विचार ना सोचे/
गायत्री मंत्र को समझ ने के लिए पूजा और साधना के लिए परमात्मा की दिव्यता को याद रखे/उस प्रभु से सम्बन्ध के लिए हमें खुद को भूल कर स्वार्थी भाव छोड़ना होगा/ तभी हम अपने दुःख दूर कर सकेंगे /
सारांश में:हे प्रभु हम आपकी पूजा करने के लिए आप ध्यान करते हुए परार्थना करते हैं कि आप हमें अपनी दिव्य ज्योति प्रदान करे /
धियो;
क्योंकि कुदरत के द्वारा हमारी आत्मा को दिव्या ज्योति पर्याप्त है ताकि हम अपने मस्तिष्क को पूर्ण रूप से नियंत्रण रख सके / इसीलिए हम प्रभु से पूजा करते हैं कि वह हमें पवित्र और सही मार्ग दिखलाये/ अगले चार शब्दों में हम अपनी बुद्धि को तेज करने के लिए प्रभु से परार्थना कर रहे हैं/
11. धीयो यह शब्द गायत्री मंत्र का मुख्य भाग है क्योंकि हम दिल से प्रभु के गुणो को समझ चुके हैं/ तब हम उस प्रभु से अपने मष्तिष्क और बुद्धि के लिए उसका प्रभाव पा सकें/ प्रभु का प्रभाव होने से हमारे दुःख और तकलीफे हमारे लिए कुछ भी कीमती नहीं हैं./. शारीरिक मूल्यों के अलावा बुद्धि हमारी तरक़्क़ी का साधन हैं/इसीलिए यह जरूरी है कि है हमारे पास बुद्धि होनी चाहिए वरना हमारा जीवन नरक समान है./ प्रभु द्वारा बनाये गए संसार में मनुष्य ही एक मात्र उत्पत्ति है जिसके पास मस्तिष्क है/
जब हम प्रभु को हर प्रकार से समझ चुके हैं तो हमारे पास केवल बुद्धि की कमी है जिसको हम प्रभु से नहीं ले सके क्योंकि उस बुद्धि के बिना हम बेकार हैं / इस गायत्री मंत्र के द्वारा हम प्रभु से सद-बुद्धि की आरधना करते हैं /
उपनिषद के अनुसार बुद्धि हमारे जीवन का आधार या सारथी है./ बुद्धि ही है इस जीवन की पतवार / इसीलिए हम प्रभु से गायत्री मंत्र के द्वारा परार्थना करते हैं वह हमें आध्यात्मिक बुद्धि या सद-बुद्धि प्रदान करें. .
सारांश में: हे ईश्वर हम आप के आरधना करते है कि आप हमें अपने प्रकाश द्वारा दिव्य -बुद्धि प्रदान करें
यो न: प्रचोदयात
12.योह ; अर्थात ईश्वर जिससे हम अपने लिए सद -बुद्धि और साध्वीक मष्तिष्क की कामना करते हैं
नाह ; अर्थात हमारा – जब हम गायत्री द्वारा प्रभु से परार्थना करते है तब हम सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि समस्त पराणियों के लिए करते हैं./ हम सभी मनुष्यों के लिए सद्बुद्धि की परार्थना करते हैं /
नाह का अर्थ हमारा है और निःसवार्थ पूर्ण से गायत्री मंत्र द्वारा खुद अपने नहीं समस्त संसार के लिए प्रभु से परार्थना है / इस तरह हम समस्त संसार के लिए परार्थना करते हैं जैसे यह संसार हमारा परिवार है/ इसके द्वारा हम अपने लिए नहीं बल्कि इस परिवार के प्रत्येक प्राणी के कल्याण हेतु उस प्रभु के प्यार के लिए परार्थना करते हैं /
प्रचोदयात:: यह गायत्री मंत्र का आखिरी शब्द है/ जो इस मंत्र का मूल है/इसके द्वारा हम ईश्वर से आखिरी परार्थना करते है/ अर्थात इस शब्द द्वारा हम प्रभु से उसकी दिव्या शक्ति की कामना करते हैं ताकि हम सन्मार्ग पर चल सके/ इसके द्वारा हम प्रभु से उसकी दिशा निर्देश को मांगते है ताकि हम सन्मार्ग पर चल सके./ क्योंकि इस बुद्धि द्वारा हम यह जान सकते हैं कि हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत है/ इसके द्वारा हम प्रभु से दिव्य और गुणो से भरपूर्व प्रकाश मांगते है (भर्गो ).ताकि हमारे जीवन का अन्धकार दूर हो सके./और दिव्य तथा सद्बुद्धि से हमें मानसिक शांति मिल सके/
सारांश में: हे शक्तिशाली प्रभु हम आप से अच्छे विचारों के लिए और जीवन में सन्मार्ग पर चलने के लिए सद्बुद्धि की कामना करते हैं ताकि हमारे जीवन का अंधकार दूर हो सके और हमारे मस्तिष्क में शुद्ध विचार आये और गलत विचार ना आये
इस मंत्र को संशिप्त में हम इस प्रकार कह सकते है
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ॐ भूर भवः सुवः :
हे प्रभु आप सर्वव्यपाक और संरक्षक है /आप हमें धर्म के सन्मार्ग की और चलने का मार्ग दर्शन करे / आप हमारे जीवन दाता और जीवन देने वाली ताकत हैं./आप हमें इस संसार में रहने के लिए शक्ति प्रदान करे,/ हे प्रभु आप हमें खुशियों को देने वाले है हम अपने अंदर आप को महसूस करते है और आप शक्ति को भी पहचानते हैं इसलिए हम आप से परार्थना करते हैं कि आप हमें अपनी दुःख और तकलीफो को दूर करने का आर्शीवाद देवे./ आप के पास खुशिओं और अमृत का भंडार है / आप हमें अपना सहभागी बना कर यह खुशियां प्रदान करे ताकि आप तक पहुँचने के लिए सच्चा और सन्मार्ग पर चले/
तत्सवितुर वरेण्यम :: ओह प्रभु इस ब्रहम्माण्ड और सृश्टी के करता आप हमारे माता और पिता हैं/. हम आप से सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्ग दर्शन करे / आप हमारे विश्वसनीय हैं. और आप पर निर्भर होने के लिए आप से अच्छा और कोई नहीं है / आप हमारे वरेण्यम हैं .
भर्गो देवस्य धीमहि :: हे ईश्वर आप से दिल से परार्थना करते है आप हमें दिव्यप्रकाश द्वारा अपनी आत्मा में अन्धकार को दूर करने की शक्ति देवे ताकि हम गलत किये गए काम को खत्म करके आत्मशुद्धि प्राप्त करे/हे देवों के देवता महादेव हम आप का ध्यान करते हैं ताकि हमारे आत्मा में दिव्यप्रकाश हो और हमारा दिव्यपूर्ण जीवन हो/ इन सबके लिए हम आप से परार्थना करते हैं /.
धियो यो नः पर्च्दायात :हे प्रभु हम आप का ध्यान और परार्थना करते हैं ताकि आप आध्यात्मिकता द्वारा हमें प्रकाशमयी बुद्धि प्रदान करे / अच्छे विचार प्रदान करे / और आप हमें सन्मार्ग की और जाने के लिए सद्बुद्धि देवे ताकि हमारे मस्तिष्क में गलत विचार और गलत कार्य ना पैदा हों./
गायत्री मंत्र के फायदे/लाभ और उसका हमारे इंसानी शरीर पर असर
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ऋषि और मुन्नियों ने अपने अनुभवो द्वारा इस शरीर में विशाल संवेदनशील जगहों जैसे चक्र , उपचक्र , ग्रंथि , कोष और नाड़ियां नसें पर गायत्रीमंत्र के लगातार जाप का इस इंसानी शरीर और मस्तिष्क पर प्रभावी असर महसूस किया है./ हमारा मस्तिष्क तेज प्रकृति वाला और दिल विशाल है./गायत्री मंत्र का संवेदनशील असर हम पर होता है और इस सब का हमारे शरीर प्राण पर अलौकिक असर होता है/. भारतीय प्राचीन ऋषियों ने गायत्री मंत्र में चुने हुए शब्दों का प्रयोग किया है/ जो अपना अर्थ भी बताते हैं और हमारे शरीर में कम्पन पैदा करते हुए साधक को शक्ति देते हैं./ हिन्दू वैदिक संतों ने बहुत सालों तक तपस्या करके इस मंत्र द्वारा सिद्धि पायी है/ यह मान्यता है कि इस गायत्री का साधक अपने मस्तिष्क में एक आध्यात्मिक शक्ति और दिव्य शक्ति और शांति का अनुभव करता है/
गायत्री मंत्र का विशेष प्रकृतिक असर हमारे सांसारिक शरीर पर महत्वपूर्ण होता है/ इस मंत्र का चक्रधारी उच्चारण हमारे भौतिक शरीर पर असाधारण शक्तिशाली होता है / जबान , होंठ उच्चारण का तरीका इत्यादि हमारे दिमाग और भौतिक शरीर पर असर होता है / . इसकी संगीतमयी ध्वनि का भी असर होता है./यह सब साधक को चुम्बकीय ताकत द्वारा साधक को आकर्षित करता हुआ गायत्री शक्ति का प्रभाव छोड़ता है. \ इस मंत्र का लगातार उच्चारण साधक के मस्तिष्क पर चुम्बकीय जैसी दिव्यशक्ति देता है/
इस गायत्री मंत्र को सुना, बोलना और सोचा जा सकता है./ इन तीनो में इसकी अद्भुत शक्ति है और आप जो भी आप के लिए उचित और अच्छी है उसको चुन सकते है /
.भारत के उच्च विद्वान व्यक्तियों द्वारा गायत्री की महत्वता और शक्ति का गुणगान :
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ब्रह्मा ऋषि मुनि और अनेक विद्वान मनुष्यो ने इस गायत्री की महिमा को समझा है/ संसार के हर हिन्दू परिवार में इस मंत्र का जाप पूजा के लिए होता है.इस मंत्र के अलावा और कोई मंत्र नहीं है जिसका इसके तुल्य उच्चारण होता हो./ इसका लाभ उसी को महसूस होगा जो इसका नियमपूर्वक जाप करता है. /चारों वेदों में इस मंत्र के समक्ष कोई नहीं है./ कोई यज्ञ . दानपुण्य और धार्मिक कार्य इसके बिना पुरे नहीं किये जाते/ कभी कभी यह भी कहा जाता है कि जिस ब्राह्मण परिवार में इस मंत्र का तीन पीढ़ियों तक उच्चारण नहीं होता वह परिवार ब्राह्मण नहीं कहलाता/
हिन्दू धर्म के सर्वउच्च विद्वान मनु के अनुसार ब्रह्मा ने इस गायत्री मंत्र में तीन वेदों का सारांश दिया है./गायत्री मंत्र के अलावा कोई दूसरा पवित्र मंत्र नहीं है/ तीन साल तक नियम्पूर्व जाप करने वाला व्यक्ति प्रभु को महसूस कर सकता है. / ऋषि पराशर के अनुसार गायत्री मंत्र सबसे श्रेष्ट है./ वेदों और गायत्री में से गायत्री महान है/जो इस मंत्र का जाप सच्चे मन से करता है वह इस संसार में पवित्रता को पाता है और सुखी होजाता है./
महर्षि व्यास ने इस गायत्री को वेदों का सारांश कहा है और इसकी तुलना फूलों के शहद , दूध से मख्खन से की है./गायत्री कामधेनु के सामान है जिसके द्वारा पवित्रता पायी जाती है./गंगा सांसारिक शरीर के पापों को धोती है तो गायत्री जो ब्रह्मगंगा का रूप है, हमारी आत्मा को पवित्र करती है/ ऋषि भारद्वाज कहते हैं कि प्रभु ब्रह्मा भी इस मंत्र का जाप करते है ./इसके द्वारा प्रभु को और निःस्वार्थ भाव से पाया जा सकता है /ऋषि वशिष्ट के अनुसार गायत्री जाप से पवित्रता और स्वयंभू प्रप्ति होती है /
आदि शंकराचार्य ने कहा है कि इस गायत्री के महत्त्व को बताना मनुष्य की शक्ति के बाहर है/. इस संसार में इस से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई नहीं है/ दिव्य- स्वरुप गायत्री द्वारा ही मनुष्य स्वयंभू और बुद्धिमत्ता को पाता है./ स्वामी विवेकानंद ने इस गायत्री मंत्र को बुद्धिमत्ता की पराप्ति का साधन बताया है / और मन्त्रों में एक हीरा कहा है/
स्वामी विरजानंद ने ५ साल की आयु में अपनी आँखे खो दी थी / उन्होंने कोई किसी प्रकार की स्कूल की पढ़ाई नहीं की थी / और घर छोड़ने के बाद तीन साल तक ऋषिकेश में गंगा में खड़े हो कर गायत्री का जाप किया/एक रात को स्वप्न में उनको दिव्यप्रकाश की प्राप्ति हुए/ उसी समय उन्होंने सन्यास आश्रम में प्रवेश किया./ यह अपने आप में एक अद्भुत स्वप्न था./
स्वामी विरजानन्द एक दूरदर्शी व्यक्ति थे / अपने गुरु स्वामी विरजानंद की मृत्यु पर स्वामी दयानंद ने कहा था कि एक सूर्य अस्त हो गया है./
विशेष विवरण के तौर पर कहने के लिए ;;स्वामी विरजानंद एक बार यमुना के किनारे बैठे थे जब उन्होंने दक्षणी ब्राह्मण द्वारा अष्टाधायी का पाठ सुना तब उन्होंने उस ब्राह्मण को बुला कर अष्टाधायी का गुणगान सुना तो उसको सुन कर स्वामी जी ने खुद उसका पाठ बिना किसी गलती के सुना दिया /कहते हैं यह सब उन्होंने गायत्री मंत्र की शक्ति और परताप से किया था./
उन्ही के शिष्य स्वामी दयानंद ने इस संसार में वैदिक धर्म को जागरूकता दी , और उन्होंने ॐ शब्द को परमात्मा का स्वरुप बताया और उस ॐ की महत्वता को संसार को समझाया. उन्होंने ॐ शब्द के हर अक्षर में परमात्मा का रूप है और परमात्मा के अनेक नाम नहीं हैं./ एक ब्राह्मण इस शब्द ॐ इतना प्यार से बोलता है जैसे एक पिता अपने बच्चे को प्यार करता है /
मैंने (सुरेश कल्हण )स्वयं इसको परखा है जिसके द्वारा मैंने महसूस किया है कि इसका आत्म रूपी असर होता है और इसके द्वारा हमारी तकलीफें दूर होती है/ अगर सम्पूर्ण तकलीफे नहीं दूर हो तो कम से कम कुछ हद तक उनमे कमी जरूर आ जाती है/
जय हिन्द मेरा भारत महान ,
सुरेश चन्द कल्हण द्वारा संगृहीत
देहरादून 11/10/2016
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