Saturday, 21 October 2017
धर्म (पंथ)
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धर्म (पंथ)
(पंथ से अनुप्रेषित)
अनेक धर्म का चिह्न
संसार के विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख धर्म.
धर्म (या मज़हब) किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है।
इस संबंध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है।
मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था।
धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषार्थवादी-मार्ग के मुख्य-द्वार पर ताला लगा दिया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा।
आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है।
धर्म की अवधारणा
हिन्दू धर्म
मुख्य लेख : हिन्दू धर्म
हिन्दू धर्म समूह का मानना है कि सारे संसार में धर्म केवल एक ही है , शाश्वत सनातन हिन्दू धर्म। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जो धर्म चला आ रहा है , उसी का नाम हिन्दू धर्म है। इसके अतिरिक्त सब पन्थ , मजहब , रिलिजन मात्र है।
इस्लाम धर्म
मुख्य लेख : इस्लाम धर्म
इस्लाम धर्म क़ुरान पर आधारित है। इसके अनुयाइयों को मुसल्मान कहा जाता है। इस्लाम केवल एक ही ईश्वर को मानता है, जिसे मुसल्मान अल्लाह कहते है। हज़रत मुहम्मद अल्लाह के अन्तिम और सबसे महान सन्देशवाहक (पैग़म्बर या रसूल) माने जाते हैं। इस्लाम में देवताओं की और मूर्तियों की पूजा करना मना है।
इस्लाम शब्द अरबी भाषा का (सल्म) से उच्चारण है| इसका मतलब शान्त होना है| एक दूसरा माना (सर्मपण) होना है-परिभाषा;व्यक्ति ईश्वर कै प्रति समर्पित होकर ही वास्तविक शान्ति प्राप्त करता हय |इस्लामी विचारों के अनुसार - ईश्वर द्वारा प्रथम मानव (आदम) की रचनाकर इस धरती पर अवतरित किया और उन्हीं से उनका जोड़ा बनाया जिससे सन्तानुत्पत्ती का क्रमारम्भ हुआ, यह सन्तान्नोत्पत्ति निर्बाध जारी है। आदम (उन पर शान्ति हो) को ईश्वर (अल्लाह) ने जीवन व्यतीत करने हेतु विधि-विधान (दीन, धर्म) से सीधे अवगत कर दिया, उन्हे मानवजाति इस्लाम शब्द अरबी भाषा का (सल्म) से उच्चारण है| इसका मतलब शान्त होना है| एक दूसरा माना (सर्मपण) होना है-परिभाषा;व्यक्ति ईश्वर कै प्रति समर्पित होकर ही वास्तविक शान्ति प्राप्त करता हय |इस्लामी विचारों के अनुसार - ईश्वर द्वारा प्रथम मानव (आदम) की रचनाकर इस धरती पर अवतरित किया और उन्हीं से उनका जोड़ा बनाया जिससे सन्तानुत्पत्ती का क्रमारम्भ हुआ, यह सन्तान्नोत्पत्ति निर्बाध जारी है। आदम (उन पर शान्ति हो) को ईश्वर (अल्लाह) ने जीवन व्यतीत करने हेतु विधि-विधान (दीन, धर्म) से सीधे अवगत कर दिया, उन्हे मानवजाति के प्रथम ईश्चरीय दूत के पद (पेगम्बर) पर भी आसीन किया। आदम की प्रारम्भिक सन्ताने धर्म के मौलिक सिद्दान्तो पर -एक ईश्वर पर विश्वास, म्रत्यु पश्चात पुन;जीवन पर विश्चास, स्वर्ग के होने पर, नरक के होने पर, फरिश्तौ (देवताओ) पर विश्वास, ईशग्रन्थो पर विश्वास, ईशदूतो पर विश्चास, कर्म के आधार पर दन्ड और पुरष्कार पर विश्वास, इन मौलिक सिद्दन्तो पर सशक्त विश्वास करते थे ऍवम अपनी सन्तती को भी इन मौलिक विचारो का उपदेश अपने वातावरण, सीमित साधनो, सीमित भाषाओ, सन्साधनो के अनुसार हस्तान्तरित करते थै। कालान्तर मे जब मनुष्य जाति का विस्तार होता चला गया और वह अपनी आजीविका की खोज मे, प्रथक-प्रथक एवम जनसमूह के साथ सुदूरपूर्व तक चारो ओर दूरदूर तक आबाद होते रहे। इस प्रकार परिस्थितीवश उनका सम्पर्क लगभग समाप्त प्राय होता रहा। उन्होने अपने मौलिक ज्ञान को विस्म्रत करना तथा विषेश सिद्दन्तो को जो अटल थे, अपनी सुविधानुसार और अपनी पाश्विक प्रव्रत्तियो के कारण अनुमान और अटकल द्वारा परिवर्तित करना प्रचलित कर दिया । इस प्रकार अपनी धारणाऔ के अनुसार मानवजाति प्रमुख दो भागो मे विभक्त हो गऐ। एक समूह ईश्वरीय दूतो के बताए हुए सिद्दन्तो (ज्ञान) के द्वारा अपना जीवन समर्पित (मुस्लिम) होकर सन्चालित करते। दूसरा समूह जो अपने सीमित ज्ञान (अटकल, अनुमान) की प्रव्रत्ती ग्रहण करके ईश्वरीय दूतो से विमुख (काफिर) होने की नीति अपनाकर जीवन व्यतीत करते। एक प्रमुख वचन प्रथम पेगम्बर (आदम, एडम) के द्वारा उद्दघोषित कियाजाता रहा (जो ईश्वरीय आदेशानुसार) था!
ईसाई धर्म
मुख्य लेख : ईसाई धर्म
ईसाई धर्म बाइबिल पर आधारित है। ईसाई एक ही ईश्वर को मानते हैं, पर उसे त्रिएक के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।
सिख धर्म
मुख्य लेख : सिख धर्म
सिख धर्म सिख एक ही ईश्वर को मानते हैं, बराबरी, सहनशीलता, बलिदान, निडरता के नियमों पर चलते हुए एक निराले व्यक्तित्व के साथ जीते हुए उस ईश्वर में लीन हो जाना सिख का जीवन उद्देश्य है। इनका धर्मग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब है।
बौद्ध धर्म
मुख्य लेख : बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म काल्पनिक ईश्वर के अस्तित्व को नकारता और इस धर्म का केंद्रबिंदू मानव है। बौद्ध धर्म और कर्म के सिद्धान्तों को मानते है, जिनको तथागत गौतम बुद्ध ने प्रचारित किया था। बौद्ध गौतम बुद्ध को नमन करते हैं। त्रिपीटक बौद्ध धर्म ग्रंथ है।
जैन धर्म
मुख्य लेख : जैन धर्म
पंथ और संप्रदाय
पंथ और संप्रदाय में अंतर करते हुए आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र मानते हैं कि पंथ वह है जिसमें विचार भले ही प्राचीन हों किन्तु आचार नया हो। भक्तिकालीन संतों की शिक्षाओं को आचार से जोड़ते हुए पंथ निर्माण की आरंभिक अवस्था का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं कि, "ये संत बातें तो वे ही कहते थे जो प्राचीन शास्त्रों में पहले ही कही जा चुकीं हैं, किंतु पद्धति अवश्य विलक्षण थी। केवल आचार की नूतनता के कारण ही ये पंथ कहलाते हैं, संप्रदाय नहीं।"[1] पंथ की स्थापना के लिए कुछ नियम उपनियम बनाये जाने भी आवश्यक होते हैं।[2]
इन्हें भी देखें
धर्म - अपने मूल अर्थ में भारतीय धर्म
सम्प्रदाय
सन्दर्भ
↑ वांग्मय विमर्श, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, वाणी प्रकाशन, संवत २0३५, पृष्ठ- २४२-४३
↑ कबीर और कबीर पंथ, डॉ॰ केदार नाथ द्विवेदी, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, प्रथम संस्करण, १९६५, पृष्ठ- १६१
बाहरी कड़ियाँ
धर्म के आंकड़े यूसीबी ग्रंधालय से.
मुक्त निर्देशिका परियोजना पर धर्म (पंथ)
Major Religions of the World Ranked by Number of Adherents by Adherents.com August 2005
IACSR - International Association for the Cognitive Science of Religion
अंतिम बार 26 अगस्त 2017 को 08:23 बजे संपादित किया गया
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