Thursday, 19 October 2017

श्रीपाद श्रीवल्लभ

Skip to content Menu Menu बालसंस्कार हिंदी > इतिहासके सुनहरे पृष्ठ ! > संत > श्रीपाद श्रीवल्लभ श्रीपाद श्रीवल्लभ May 30, 2013 भगवानदत्तात्रेय के प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभके विषयमें अत्यल्प बातें ज्ञात हैं । इस पार्श्वभूमिपर गणेश चतुर्थीके अवसरपर श्रीपाद श्रीवल्लभके अलौकिक कार्य तथा उनके इस जन्मक्षेत्र पीठापुरमके संदर्भमें संक्षिप्त ब्यौरा । चौदह विद्या एवं चौंसठ कलाओंके अधिपति श्रीगणेश एवं भगवान दत्तात्रेयके आद्य अवतार श्रीपाद श्रीवल्लभ इन दोनोंका जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीके दिनका ही है । उत्पत्ति, स्थिति एवं लय इन तीनों शक्तियोंके सार्मथ्यके परे विशिष्ट चतुर्थतत्व जिन्हें ज्ञात है ऐसे ‘‘परमात्मा'' के नामसे इन दोनोंका उल्लेख किया जाता है । गणपति अथर्वशीर्षमें सत्व, रज तथा तम इन तीन गुणोंके परे स्थूल सूक्ष्म एवं आनंद इन तीन देहोंके परे तथा भूत, वर्तमान एवं भविष्य इन तीन कालोंके परे श्रीगणेशका वर्णन किया गया है । श्रीपाद श्रीवल्लभ श्रीगणेशस्वरूप होनेसे उनके लिए भी यही वर्णन उचित होगा । भगवान श्री दत्तात्रेय जगदोद्धारके लिए इ. स. १३२० में आंध्र प्रदेशके पूर्व गोदावरी जनपदमें पीठापुरम क्षेत्रमें अप्पल राज शर्मा एवं सुमतिके पुण्य दाम्पत्यकी कोखसे श्रीपाद श्रीवल्लभके नामसे प्रकट हुए । सरस्वती गंगाधर रचित 'श्रीगुरुचरित्र' नामक मराठी ग्रंथमें उनके विषयमें बहुत अल्प जानकारी उपलब्ध है । दत्तभक्त तथा सामान्य लोगोंको कारंजा क्षेत्रके श्री नृसिंह सरस्वती तथा अक्कलकोट क्षेत्रके स्वामी समर्थ दत्तगुरुके ये दो अवतार ज्ञात हैं । परंतु प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभके विषयमें बहुत अल्प ज्ञात है । इस पार्श्वभूमिपर संक्षेपमें लिया गया यह ब्यौरा उद्बोधक तथा अनेक व्यक्तियोंके ज्ञानमें वृदि्ध करनेवाला होगा, ऐसी अपेक्षा है । अप्पल राजन तथा सुमति नामक दत्तभक्त दंपतिको चार बच्चे थे । परंतु उनमेंसे दो बच्चोंकी मृत्यु हो गई थी । शेष दो बच्चोंमेंसे एक अंधा तथा एक अपंग था । दुर्भाग्यके इस दशावराता संसारमें एक दिन भरी दोपहरमें घरके समक्ष एक अतिथि आकर भीक्षा मांगने लगे । उस दिन उस दंपतिके घर श्राद्ध था । सुमति घरमें अकेली थी । ‘माते भिक्षा दो' ऐसी आवाज सुनकर वह बाहर आई । वास्तविक श्राद्धके दिन ब्राह्मणभोजसे पूर्व भोजन नहीं परोसते थे पूर्वापार ऐसी रूढि थी । परंतु अतिथि भिक्षुकका तेज:पुंज रूप देखकर सुमति सबकुछ भूल गई तथा उसने भीक्षा दी । अतिथिने प्रसन्न होकर जो चाहिए उसे मांगनेका आशीर्वाद दिया । अपने दोनों पुत्रोंकी अवस्थासे दुखी सुमतिने ‘आपके जैसे तेजोमय पुत्रकी मैं अपेक्षा करती हूं,’’ ऐसी विनती की । यति वेषमें आए ‘‘श्री दत्तात्रेयने'' माते मैं ही आपकी कोखसे जन्म लूंगा' ऐसा कहा । दिए हुए आश्वासनके अनुसार जन्म लिया बालक अर्थात दत्तअवतारी श्रीपाद श्रीवल्लभ था । पीठापुरममें १६ तथा कुरवपुर में १४ वर्ष इसप्रकार केवल ३० वर्षकी अवधिमें अद्भूत लीलाचरित्र दिखाकर उन्होंने इह-पर लोकके सभीको शाश्वत सुख प्रदान किया । उनकी बाललीलाएं प्रत्यक्ष भगवान बालकृष्णकी लीला जैसी अत्यंत मधुर तथा अद्भूत हैं । आगे जप, तप, ध्यान, तपस्या इन सभीका फल स्वयं न लेकर सृषि्टको देते हुए अपने भक्तोंकी आश्वीव्याप्तिसे बाहर निकलनेके लिए उन्होंने अपना तपोबल सहस्त्रगुना बढाया । अपने दिव्य अगम्य तथा मानवकी दृष्टिसे अनाकलनीय लीलाओंद्वारा जनता जनर्दानके उद्धारके लिए उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया । पानीके ऊपर चलना, अपंग व्यक्तिकी अपंगता दूर करना, उपस्थित व्यक्तियोंके लिए बनाया भोजन अल्प होकर भी वह सभीके लिए पर्याप्त होकर शेष रहना, लंबी यात्रामें भी दूध, दही, मक्खन खराब न होकर अच्छा रहना, अंधे व्यक्तिको दृष्टि प्राप्त होना, मृत जीवको जीवनदान देना ऐसे कितने ही प्रकारकी चमत्कारी लीलाओंसे उनका जीवन भरा हुआ दिखाई देता है । इन दिव्य लीलाओंमें प्रमुखतासे संत-सज्जनोंका संरक्षण, कर्ममार्गका आचरण, गर्वहरण, दृष्टाओंका निर्दालन, अस्पृश्यता निवारण, सत्कर्मका प्रचारण, भूदान तथा अन्नदानका महत्व, नामस्मरणकी महिमा, भूत-पिशाचकी बाधाओंका निर्मूलन आदि अनेक बातोंका संदेश उन्होंने तत्कालीन समाजको दिया । छहसौ नब्बे वर्षपूर्व आंध्र प्रदेशके पीठापुरममें इस दिव्य बालकने बालआयु अर्थात सोलहवें वर्षमें सकल शास्त्रमें विशेषत: वेदान्तमें प्रवीणता प्राप्त की । उसके उपरांत समस्त मानवजातिके कल्याणके लिए भारत भ्रमण किया । गोकर्ण महाबळेश्वर बद्रीनाथ श्रीशैल्य, ऐसा घूमते हुए तथा ब्रह्माविद्याका प्रचार करते हुए वे कुरवपुर आए एवं वहां तपश्चर्या की । पीठापुरमके मंदिरमें श्रीपाद श्रीवल्लभकी सुंदर मूर्तियोंके पवित्र दर्शनसे भक्तोंके नेत्रोंको तृप्त किया । वहां भक्त अभिषेक कर सकते हैं । मंदिरके प्रांगणमें औदुंबर वृक्ष हैं जहां दत्त भगवानकी पादुकाएं हैं । पीठापुरमके पवित्र तीर्थक्षेत्रमें अत्यंत प्राचीन कुक्कुटेश्वरका पत्थरका मंदिर है । उसके सामने एक तालाब है । गांवके बाहर ऊंची पहाडीपर अन्नवरममें श्री सत्यनारायण मंदिर तथा अनधालक्ष्मी मंदिर दोनों ही प्रेक्षणीय हैं । श्रीपाद श्रीवल्लभ आशि्वन वद्य द्वादशीको देहसमाप्तिके पश्चात कुरवपुरमें कृष्णामाईके पाटमें अदृश्य हो गए । पीठापुरम पूर्वकालसे ही सिद्ध क्षेत्र है ! गयासुरकी देहपर देवताओंने यज्ञ किया उस समय उसका मस्तक गयामें था तथा पैर पीठापुरमें थे । इसलिए इस क्षेत्रको पादगया भी कहते हैं । संपूर्ण भारत देशमें काशीमें बिंदू-माधव, प्रयागमें वेणी-माधव, रामेश्वरमें सेतु- माधव, ति्रवेंद्रममें सुंदर-माधव तथा पठापुरममें कुंती -माधव ऐसे माधवके पांच मंदिर हैं । पांडव माता कुंतीने यहां माधवकी पूजा की । वही यह स्थान है । इस स्थानको दक्षिण काशी भी कहते हैं । पीठापुरम कैसे जाएंगे ? श्रीपाद श्रीवल्लभके जन्मस्थानके रूपमें पीठापुरम क्षेत्रका महत्व अनन्य साधारण है । यह स्थान आंध्रमें है । मुंबई-पुणेसे जानेवालोंके लिए कोणार्क एक्स्सप्रेस, यह गाडी अधिक सुविधाजनक है । सामलकोट स्टेशनपर उतरें । वहांसे रिक्शासे आधे घंटेमें पीठापुरम जा सकते हैं । दूसरा मार्ग है-प्रथम हैदराबाद जाएं । वहांसे गोदावरी एक्स्प्रेससे पीठापुरम जा सकते हैं । इंदौर, भोपाल तथा नागपुरसे जानेवाला मार्ग अर्थात मद्रासकी ओर जानेवाली गाडीसे प्रथम विजयवाडा उतरें । वहांसे वॉल्टेयरकी ओर जानेवाली गाडीसे सामलकोट तथा पीठापुरम इन दोनों स्थानोंपर जा सकते हैं । Categories संत Post navigation गोवर्धन पर्वत भगवान श्रीराम भवसागर पार करानेवाले खेवनहार ! 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