Friday, 13 October 2017

वेदों का रचना काल:

शुक्रवार, अक्टूबर 13, 2017 Latest: मध्य प्रदेश प्रश्नोत्तरी सेट -1 (for MPPSC and MPPolice ) चंद्रमा से संबंधित 25 महत्वपूर्ण परीक्षापयोगी तथ्य करंट अफेयर्स टुडे – 8 & 9 अगस्त 2017 करंट अफेयर्स टुडे – 6 & 7 अगस्त 2017 मध्य प्रदेश प्रश्नोत्तरी सेट -2 (for MPPSC and MPPolice ) Notesbanao । MPPSC । Vyapam । UPSC। SSC । Railways Exams & Other Competitive Exams। वेदों का रचना काल: ( ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद ) 297 total views, 1 views today 1. ऋग्वेद  ऋग्वेद सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का स्रोत है । इसमें 1028 सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है। इस ग्रंथ में देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को दुनिया के सभी इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सबसे पहली रचना मानते हैं। ये दुनिया के सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को ‘सूक्त’ कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है। प्रमुख तथ्य ऋग्वेद में नदियों का उल्लेख – ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण नदी सिन्धु नदी है, जिसका वर्णन कई बार आया है। यह सप्त सैन्धव क्षेत्र की पश्चिमी सीमा थी। क्रुमु (कुरुम),गोमती (गोमल), कुभा (काबुल) और सुवास्तु (स्वात) नामक नदियां पश्चिम किनारे में सिन्धु की सहायक नदी थीं। पूर्वी किनारे पर सिन्धु की सहायक नदियों में वितास्ता (झेलम) आस्किनी (चेनाब), परुष्णी (रावी), शतुद्र (सतलज), विपासा (व्यास) प्रमुख थी। विपास (व्यास) नदी के तट पर ही इन्द्र ने उषा को पराजित किया और उसके रथ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। सिन्धु नदी को उसके आर्थिक महत्व के कारण हिरण्यनी कहा गया है। सिन्धु नदी द्वार ऊनी वस्त्रों के व्यवसाय होने का कारण इसे सुवासा और ऊर्पावर्ती भी कहा गया है। ऋग्वेद में सिन्धु नदी की चर्चा सर्वाधिक बार हुयी है।   ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है- यह सबसे प्राचीनतम वेद माना जाता है। ऋग्वेद के कई सूक्तों में विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने वाले मंत्र हैं, यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है। ऋग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1028 सूक्त हैं और कुल 10,580 ऋचाएँ हैं। इसके दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं। प्रथम और अन्तिम मण्डल, दोनों ही समान रूप से बड़े हैं। उनमें सूक्तों की संख्या भी 191 है। दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है, उसका हृदय है। आठवें मण्डल और प्रथम मण्डल के प्रारम्भिक पचास सूक्तों में समानता है। ऋक्ष शब्द ऋग्वेद में एक बार तथा परवर्ती वैदिक साहित्य में कदाचित ही प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद में यातुधानों को यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुँचाने वाला कहा गया है। नवाँ मण्डल सोम से सम्बन्धित होने से पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। यह नवाँ मण्डल आठ मण्डलों में सम्मिलित सोम सम्बन्धी सूक्तों का संग्रह है, इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है। दसवें मण्डल में प्रथम मण्डल की सूक्त संख्याओं को ही बनाये रखा गया है। पर इस मण्डल का विषय, कथा, भाषा आदि सभी परिवर्तीकरण की रचनाएँ हैं। ऋग्वेद के मन्त्रों या ऋचाओं की रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की, अपितु विभिन्न काल में विभिन्न ऋषियों द्वारा ये रची और संकलित की गयीं। ऋग्वेद के मन्त्र स्तुति मन्त्र होने से ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व अधिक है। चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन वेद ऋग्वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद अर्थात ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो। विभाग ऋग्वेद में दो प्रकार के विभाग मिलते हैं- अष्टक क्रम – इसमें समस्त ग्रंथ आठ अष्टकों तथा प्रत्येक अष्टक आठ अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय वर्गो में विभक्त है। समस्त वर्गो की संख्या 2006 है। मण्डलक्रम – इस क्रम में समस्त ग्रन्थ 10 मण्डलों में विभाजित है। मण्डल अनुवाक, अनुवाक सूक्त तथा सूक्त मंत्र या ॠचाओं में विभाजित है। दशों मण्डलों में 85 अनुवाक, 1028 सूक्त हैं। इनके अतिरिक्त 11 बालखिल्य सूक्त हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है। सूक्तों के पुरुष रचयिताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वसिष्ठ तथा स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, विश्वरा, सिकता, शचीपौलोमी और कक्षावृत्तिप्रमुख है। इनमें लोपामुद्रा प्रमुख थी। वह क्षत्रीय वर्ण की थी किन्तु उनकी शादी अगस्त्य ऋषि से हुयी थी। ऋग्वेद के दूसरे एवं सातवें मण्डल की ऋचायें सर्वाधिक प्राचीन हैं, जबकि पहला एवं दसवां मण्डल अन्त में जोड़ा गया है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल में मिली हस्तलिखित प्रतियों के परिशिष्ट को ‘खिल‘ कहा गया है। ऋग्वेद के मण्डल एवं उसके रचयिता  मण्डल  रचयिता 1- प्रथम मण्डल अनेक ऋषि 2- द्वितीय मण्डल गृत्समय 3- तृतीय मण्डल विश्वासमित्र 4- चतुर्थ मण्डल वामदेव 5- पंचम मण्डल अत्रि 6- षष्ठम् मण्डल भारद्वाज 7- सप्तम मण्डल वशिष्ट 8-अष्ठम मण्डल कण्व व अंगिरा 9- नवम् मण्डल (पावमान मण्डल) अनेक ऋषि 10- दशम मण्डल अनेक ऋषि   प्राचीन रचना ऋग्वेद भारत की ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम रचना है। इसकी तिथि 1500 से 1000 ई.पू. मानी जाती है। सम्भवतः इसकी रचना सप्त-सैंधव प्रदेश में हुयी थी। ऋग्वेद और ईरानी ग्रन्थ ‘जेंद अवेस्ता’ में समानता पाई जाती है। ऋग्वेद के अधिकांश भाग में देवताओं की स्तुतिपरक ऋचाएं हैं, यद्यपि उनमें ठोस ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है, फिर भी इसके कुछ मन्त्र ठोस ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध करते हैं। जैसे एक स्थान ‘दाशराज्ञ युद्ध‘ जो भरत कबीले के राजा सुदास एवं पुरू कबीले के मध्य हुआ था, का वर्णन किया गया है। भरत जन के नेता सुदास के मुख्य पुरोहित वसिष्ठ थे, जब कि इनके विरोधी दस जनों (आर्य और अनार्य) के संघ के पुरोहित विश्वामित्र थे। दस जनों के संघ में- पांच जनो के अतिरिक्त- अलिन, पक्थ, भलनसु, शिव तथ विज्ञाषिन के राजा सम्मिलित थे। भरत जन का राजवंश त्रित्सुजन मालूम पड़ता है, जिसके प्रतिनिधि देवदास एवं सुदास थे। भरत जन के नेता सुदास ने रावी (परुष्णी) नदी के तट पर उस राजाओं के संघ को पराजित कर ऋग्वैदिक भारत के चक्रवर्ती शासक के पद पर अधिष्ठित हुए। ऋग्वेद में, यदु, द्रुह्यु, तुर्वश, पुरू और अनु पांच जनों का वर्णन मिलता है। शाखाएँ ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण यज्ञों के अवसर पर ‘होतृ ऋषियों’ द्वारा किया जाता था। ऋग्वेद की अनेक संहिताओं में ‘संप्रति संहिता‘ ही उपलब्ध है। संहिता का अर्थ संकलन होता है। ऋग्वेद की पांच शाखायें हैं- शाकल, वाष्कल, आश्वलायन, शांखायन मांडूकायन ऋग्वेद के कुल मंत्रों की संख्या लगभग 10600 है। बाद में जोड़ गये दशम मंडल, जिसे ‘पुरुषसूक्त‘ के नाम से जाना जाता है, में सर्वप्रथम शूद्रों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त नासदीय सूक्त (सृष्टि विषयक जानकारी, निर्गुण ब्रह्म की जानकारी), विवाह सूक्त (ऋषि दीर्घमाह द्वारा रचित), नदि सूक्त (वर्णित सबसे अन्तिम नदी गोमल), देवी सूक्त आदि का वर्णन इसी मण्डल में है। इसी सूक्त में दर्शन की अद्वैत धारा के प्रस्फुटन का भी आभास होता है। सोम का उल्लेख नवें मण्डल में है। ‘मैं कवि हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, माता अन्नी पीसनें वाली है। यह कथन इसी मण्डल में है। लोकप्रिय ‘गायत्री मंत्र’ (सावित्री) का उल्लेख भी ऋग्वेद के 7वें मण्डल में किया गया है। इस मण्डल के रचयिता वसिष्ठ थे। यह मण्डल वरुण देवता को समर्पित है। त्रित देवता की कथा त्रित प्राचीन देवताओं में से थे। त्रित सोम बनाया था तथा इंद्रादि अनेक देवताओं की स्तुतियाँ समय-समय पर की थीं। त्रित ने बल के दुर्ग को नष्ट किया था। युद्ध के समय मरुतों ने त्रित की शक्ति की रक्षा की थी। 2. यजुर्वेद ‘यजुष’ शब्द का अर्थ है- ‘यज्ञ’। यर्जुवेद मूलतः कर्मकाण्ड ग्रन्थ है। इसकी रचना कुरुक्षेत्र में मानी जाती है। यजुर्वेद में आर्यो की धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झांकी मिलती है। इस ग्रन्थ से पता चलता है कि आर्य ‘सप्त सैंधव’ से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे। यर्जुवेद के मंत्रों का उच्चारण ‘अध्वुर्य’ नामक पुरोहित करता था। इस वेद में अनेक प्रकार के यज्ञों को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह गद्य तथा पद्य दोनों में लिखा गया है। गद्य को ‘यजुष’ कहा गया है। यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय ईशावास्य उपनिषयद है, जिसका सम्बन्ध आध्यात्मिक चिन्तन से है। उपनिषदों में यह लघु उपनिषद आदिम माना जाता है क्योंकि इसे छोड़कर कोई भी अन्य उपनिषद संहिता का भाग नहीं है। यजुर्वेद के दो मुख्य भाग है- शुक्ल यजुर्वेद कृष्ण यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद इसमें केवल ‘दर्शपौर्मासादि’ अनुष्ठानों के लिए आवश्यक मंत्रों का संकलन है। इसकी मुख्य शाखायें है- माध्यन्दिन काण्व इसकी संहिताओं को ‘वाजसनेय’ भी कहा गया है क्योंकि ‘वाजसनि’ के पुत्र याज्ञवल्क्य वाजसनेय इसके दृष्टा थे। इसमें कुल 40 अध्याय हैं। कृष्ण यजुर्वेद इसमें मंत्रों के साथ-साथ ‘तन्त्रियोजक ब्राह्मणों’ का भी सम्मिश्रण है। वास्तव में मंत्र तथा ब्राह्मण का एकत्र मिश्रण ही ‘कृष्ण यजुः’ के कृष्णत्त्व का कारण है तथा मंत्रों का विशुद्ध एवं अमिश्रित रूप ही ‘शुक्त यजुष्’ के शुक्लत्व का कारण है। इसकी मुख्य शाखायें हैं- तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल तैत्तरीय संहिता (कृष्ण यजुर्वेद की शाखा) को ‘आपस्तम्ब संहिता’ भी कहते हैं। महर्षि पंतजलि द्वारा उल्लिखित यजुर्वेद की 101 शाखाओं में इस समय केवल उपरोक्त पाँच वाजसनेय, तैत्तिरीय, कठ, कपिष्ठल और मैत्रायणी ही उपलब्ध हैं। यजुर्वेद से उत्तरवैदिक युग की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती हैं। इन दोनों शाखाओं में अंतर यह है कि शुक्ल यजुर्वेद पद्य (संहिताओं) को विवेचनात्मक सामग्री (ब्राह्मण) से अलग करता है, जबकि कृष्ण यजुर्वेद में दोनों ही उपस्थित हैं। यजुर्वेद में वैदिक अनुष्ठान की प्रकृति पर विस्तृत चिंतन है और इसमें यज्ञ संपन्न कराने वाले प्राथमिक ब्राह्मण व आहुति देने के दौरान प्रयुक्त मंत्रों पर गीति पुस्तिका भी शामिल है। इस प्रकार यजुर्वेद यज्ञों के आधारभूत तत्त्वों से सर्वाधिक निकटता रखने वाला वेद है। यजुर्वेद संहिताएँ संभवतः अंतिम रचित संहिताएँ थीं, जो ई. पू. दूसरी सहस्त्राब्दी के अंत से लेकर पहली सहस्त्राब्दी की आरंभिक शताब्दियों के बीच की हैं। यजुर्वेद की अन्य विशेषताएँ यजुर्वेद गद्यात्मक हैं। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ऋग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है। इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं। यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है। यदि ऋग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी तो यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी। इस ग्रन्थ से आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है। वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है। यजुर्वेद में यज्ञों और कर्मकाण्ड का प्रधान है। निम्नलिखित उपनिषद् भी यजुर्वेद से सम्बद्ध हैं:- श्वेताश्वतर बृहदारण्यक ईश प्रश्न मुण्डक माण्डूक्य 3. सामवेद ‘साम‘ शब्द का अर्थ है ‘गान‘। सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था। सामवेद में कुल 1875 ऋचायें हैं। जिनमें 75 से अतिरिक्त शेष ऋग्वेद से ली गयी हैं। इन ऋचाओं का गान सोमयज्ञ के समय ‘उदगाता‘ करते थे। सामदेव की तीन महत्त्वपूर्ण शाखायें हैं- कौथुमीय, जैमिनीय एवं राणायनीय। देवता विषयक विवेचन की दृष्ठि से सामवेद का प्रमुख देवता ‘सविता‘ या ‘सूर्य‘ है, इसमें मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मंत्र हैं किन्तु इंद्र सोम का भी इसमें पर्याप्त वर्णन है। भारतीय संगीत के इतिहास के क्षेत्र में सामवेद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जा सकता है। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनि को माना जाता है। सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रन्थ जिसके मन्त्र गाये जा सकते हैं और जो संगीतमय हों। यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ये मन्त्र गाये जाते हैं। सामवेद में मूल रूप से 99 मन्त्र हैं और शेष ऋग्वेद से लिये गये हैं। इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृवर्ग के उपयोगी मन्त्रों का संकलन है। इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मन्त्र ही हैं। इसके अधिकांश मन्त्र ऋग्वेद में उपलब्ध होते हैं, कुछ मन्त्र स्वतन्त्र भी हैं। सामवेद में ऋग्वेद की कुछ ॠचाएं आकलित है। वेद के उद्गाता, गायन करने वाले जो कि सामग (साम गान करने वाले) कहलाते थे। उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं। सामगान व्यावहारिक संगीत था। उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं। वैदिक काल में बहुविध वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है जिनमें से तंतु वाद्यों में कन्नड़ वीणा, कर्करी और वीणा, घन वाद्य यंत्र के अंतर्गत दुंदुभि, आडंबर, वनस्पति तथा सुषिर यंत्र के अंतर्गतः तुरभ, नादी तथा  बंकुरा आदि यंत्र विशेष उल्लेखनीय हैं। 4. अथर्ववेद  अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई थी। अथर्ववेद के दो पाठों, शौनक और पैप्पलद, में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ऋग्वेद के स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है। अथर्ववेद दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर ऋग्वेद के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान देवों को महिमामंडित करता है और सोम के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है रचना काल यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था। इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला। इसकी भाषा ऋग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है। अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है। इसकी रचना ‘अथवर्ण’ तथा ‘आंगिरस’ ऋषियों द्वारा की गयी है। इसीलिए अथर्ववेद को ‘अथर्वांगिरस वेद’ भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अथर्ववेद को अन्य नामों से भी जाना जाता है- गोपथ ब्राह्मण में इसे ‘अथर्वांगिरस’ वेद कहा गया है। ब्रह्म विषय होने के कारण इसे ‘ब्रह्मवेद’ भी कहा गया है। आयुर्वेद, चिकित्सा, औषधियों आदि के वर्णन होने के कारण ‘भैषज्य वेद’ भी कहा जाता है । ‘पृथ्वीसूक्त’ इस वेद का अति महत्त्वपूर्ण सूक्त है। इस कारण इसे ‘महीवेद’ भी कहते हैं। विषय अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त एवं 5987 मंत्र हैं। इस वेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं- ब्रह्मज्ञान औषधि प्रयोग रोग निवारण जन्त्र-तन्त्र टोना-टोटका आदि। विवरण अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा इसमें कुरू देश की समृद्वि का अच्छा विवरण मिलता है। इस वेद में आर्य एवं अनार्य विचार-धाराओं का समन्वय है। उत्तर वैदिक काल में इस वेद का विशेष महत्त्व है। ऋग्वेद के दार्शनिक विचारों का प्रौढ़रूप इसी वेद से प्राप्त हुआ है। शान्ति और पौष्टिक कर्मा का सम्पादन भी इसी वेद में मिलता है। अथर्ववेद में सर्वाधिक उल्लेखनीय विषय ‘आयुर्विज्ञान’ है। इसके अतिरिक्त ‘जीवाणु विज्ञान’ तथा ‘औषधियों’ आदि के विषय में जानकारी इसी वेद से होती है। भूमि सूक्त के द्वारा राष्ट्रीय भावना का सुदृढ़ प्रतिपादन सर्वप्रथम इसी वेद में हुआ है। इस वेद की दो अन्य शाखायें हैं- पिप्पलाद शौनक अथर्ववेद में 20 कांड हैं, जिनमें 598 सूक्त और गद्य परिच्छेद हैं। जिनका विवरण निम्न हैः- पहले से लेकर सातवें कांड में विशिष्ट उद्देश्यों के लिए तंत्र-मंत्र संबंधी प्राथनाएं हैं- लंबे जीवन के लिए मंत्र, उपचार, श्राप, प्रेम मंत्र, समृद्धि के लिए प्रार्थना, ब्राह्मण के ज्ञाताओं से घनिष्ठता, वेद अध्ययन में सफलता, राजा बनने के लिए मंत्र और पाप का प्रायश्चित। आठवें से बारहवें कांड में इसी तरह के पाठ हैं, लेकिन इसमें ब्रह्मांडीय सूक्त भी शामिल हैं, जो ऋग्वेद के सूक्तों को ही जारी रखते हैं और उपनिषदों के अधिक जटिल चिंतन की ओर ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, उपनिषदों के लिए अत्यंत अर्थवान श्वास या प्राणवायु के महत्त्व की संकल्पना और सार्वभौम अस्तित्व से जुड़े आत्म पर चिंतन सबसे पहले अथर्ववेद में ही पाए गए थे। 13 से 20 तक कांड में ब्रह्मांडीय सिद्धांत (13 कांड), विवाह प्राथनाएं (कांड 14), अंतिम संस्कार के मंत्र (कांड 18) और अन्य जादुई व अनुष्ठानिक मंत्र हैं। 15 वां कांड रोचक है, जिसमें व्रत्य का महिमामंडन किया गया है, जो वेदपाठ न करने वाला एक अरूढ़िबद्ध आर्य समूह था, लेकिन इसके बावजूद सम्मानजनक आनुष्ठानिक व चिंतन परंपराएं रखता था। यही नहीं, व्रत्य स्वामिस्वरूप हैं और एक राजा का आतिथ्य ग्रहण करने की स्थति में उन्हें राजा को आशीर्वाद देने योग्य माना गया है। अथर्ववेद के इस भाग के साथ-साथ अन्य यजुर्वेद परिच्छेदों में वैदिक रचना के प्राथमिक संगठनात्मक सिद्धांतों और बाद के भारतीय अनुष्ठानों में से एक, अतिथि सत्कार के मह्त्व का वर्णन किया गया है। अन्य सूक्त अथर्ववेद का एक अन्य सूक्त मानव शरीर की रचना का वर्णन व प्रशंसा करता है। इस सूक्त व उपचार से जुड़े सामन्य अथर्ववेदी चिंतन के कारण शास्त्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली, आयुर्वेद अपनी उत्पत्ति अथर्ववेद से मानता है। किंतु शास्त्रों द्वारा इस दावें को समर्थन नहीं मिलता और न तो आयुर्वेद के सिद्धांत वेदों में और न ही अथर्ववेद के तांत्रिक या आनुष्ठानिक उपचार आयुर्वेद में पाए जाते हैं। फिर भी चिकित्सकीय उपचारों को प्रणालीबद्ध करने व उन्हें वर्गीकृत किए जाने के काम की शुरुआत अथर्ववेद से मानी जा सकती है। विशेषताएँ इसमें ऋग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिये गये हैं। जादू से सम्बन्धित मन्त्र-तन्त्र, राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं। इसमें भूत-प्रेत, जादू-टोने आदि के मन्त्र हैं। ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को इस वेद में गौण स्थान प्राप्त हुआ है। धर्म के इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों का बड़ा ही मूल्य है। अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति की पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था। उपवेद और वेदांग    उपवेद   अर्थवेद (ॠग्वेद) कामन्दक सूत्र · कौटिल्य अर्थशास्त्र · चाणक्य सूत्र · नीतिवाक्यमृतसूत्र · बृहस्पतेय अर्थाधिकारकम् · शुक्रनीति   धनुर्वेद (दोनों यजुर्वेदों के लिए मुक्ति कल्पतरू · वृद्ध शारंगधर · वैशम्पायन नीति-प्रकाशिका · समरांगण सूत्रधार   गान्धर्ववेद (सामवेद) दत्तिलम · भरत नाट्यशास्त्र · मल्लिनाथ रत्नाकर · संगीत दर्पण · संगीत रत्नाकर   आयुर्वेद (अथर्ववेद) अग्निग्रहसूत्रराज · अश्विनीकुमार संहिता · अष्टांगहृदय · इन्द्रसूत्र · चरक संहिता · जाबालिसूत्र · दाल्भ्य सूत्र · देवल सूत्र · धन्वन्तरि सूत्र ·धातुवेद · ब्रह्मन संहिता · भेल संहिता · मानसूत्र · शब्द कौतूहल · सुश्रुत संहिता · सूप सूत्र · सौवारि सूत्र     वेदांग      कल्प गृह्यसूत्र (रीति-रिवाजों, प्रथाओं हेतु) · धर्मसूत्र (शासकों हेतु) · श्रौतसूत्र (यज्ञ हेतु)   शिक्षा गौतमी शिक्षा (सामवेद) · नारदीय शिक्षा· पाणिनीय शिक्षा (ऋग्वेद) · बाह्य शिक्षा (कृष्ण यजुर्वेद) · माण्ड्की शिक्षा (अथर्ववेद) · याज्ञवल्क्य शिक्षा (शुक्ल यजुर्वेद) · लोमशीय शिक्षा   व्याकरण कल्प व्याकरण · कामधेनु व्याकरण · पाणिनि व्याकरण · प्रकृति प्रकाश · प्रकृति व्याकरण · मुग्धबोध व्याकरण · शाक्टायन व्याकरण · सारस्वत व्याकरण · हेमचन्द्र व्याकरण   निरुक्त्त मुक्ति कल्पतरू · वृद्ध शारंगधर · वैशम्पायन नीति-प्रकाशिका · समरांगण सूत्रधार   छन्द गार्ग्यप्रोक्त उपनिदान सूत्र · छन्द मंजरी · छन्दसूत्र · छन्दोविचित छन्द सूत्र · छन्दोऽनुक्रमणी · छलापुध वृत्ति · जयदेव छन्द · जानाश्रमां छन्दोविचित · वृत्तरत्नाकर · वेंकटमाधव छन्दोऽनुक्रमणी · श्रुतवेक   ज्योतिष आर्यभट्टीय ज्योतिष · नारदीय ज्योतिष · पराशर ज्योतिष · ब्रह्मगुप्त ज्योतिष · भास्कराचार्य ज्योतिष · वराहमिहिर ज्योतिष · वासिष्ठ ज्योतिष · वेदांग ज्योतिष                                                                                                     उपनिषद ॠग्वेदीय उपनिषद ऐतरेय उपनिषद · आत्मबोध उपनिषद · कौषीतकि उपनिषद · निर्वाण उपनिषद · नादबिन्दुपनिषद ·  सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद · अक्षमालिक उपनिषद ·भवऋचा उपनिषद · मुदगल उपनिषद · त्रिपुरा उपनिषद ·  बहवृचोपनिषद · मृदगलोपनिषद · राधोपनिषद   यजुर्वेदीय उपनिषद   शुक्ल यजुर्वेदीय अध्यात्मोपनिषद · आद्यैतारक उपनिषद · भिक्षुकोपनिषद · बृहदारण्यकोपनिषद · ईशावास्योपनिषद · हंसोपनिषद ·  जाबालोपनिषद ·मंडल ब्राह्मण उपनिषद · मन्त्रिकोपनिषद · मुक्तिका उपनिषद · निरालम्बोपनिषद · पैंगलोपनिषद · परमहंसोपनिषद · सत्यायनी उपनिषद · सुबालोपनिषद · तारासार उपनिषद · त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद · तुरीयातीतोपनिषद · अद्वयतारकोपनिषद · याज्ञवल्क्योपनिषद  ·शाट्यायनीयोपनिषद · शिवसंकल्पोपनिषद   कृष्ण यजुर्वेदीय अक्षि उपनिषद · अमृतबिन्दु उपनिषद · अमृतनादोपनिषद · अवधूत उपनिषद · ब्रह्म उपनिषद · ब्रह्मविद्या उपनिषद · दक्षिणामूर्ति उपनिषद · ध्यानबिन्दु उपनिषद · एकाक्षर उपनिषद · गर्भ उपनिषद · कैवल्योपनिषद · कालाग्निरुद्रोपनिषद · कर उपनिषद · कठोपनिषद ·कठरुद्रोपनिषद · क्षुरिकोपनिषद · नारायणो · पंचब्रह्म · प्राणाग्निहोत्र उपनिषद ·  रुद्रहृदय · सरस्वतीरहस्य उपनिषद · सर्वासार उपनिषद ·शारीरिकोपनिषद · स्कन्द उपनिषद · शुकरहस्योपनिषद · श्वेताश्वतरोपनिषद · तैत्तिरीयोपनिषद · तेजोबिन्दु उपनिषद ·  वराहोपनिषद ·योगकुण्डलिनी उपनिषद · योगशिखा उपनिषद · योगतत्त्व उपनिषद ·  कलिसन्तरणोपनिषद · चाक्षुषोपनिषद     सामवेदीय उपनिषद आरुणकोपनिषद · दर्शनोपनिषद · जाबालदर्शनोपनिषद · जाबालि उपनिषद · केनोपनिषद · महात्संन्यासोपनिषद ·  मैत्रेयीउपनिषद · मैत्रायणी उपनिषद · अव्यक्तोपनिषद · छान्दोग्य उपनिषद · रुद्राक्षजाबालोपनिषद · सावित्र्युपनिषद · संन्यासोपनिषद · वज्रसूचिकोपनिषद · वासुदेवोपनिषद · चूड़ामणि उपनिषद · कुण्डिकोपनिषद · जाबाल्युपनिषद · महोपनिषद · मैत्रेय्युग्पनिषद · योगचूडाण्युपनिषद   अथर्ववेदीय उपनिषद अन्नपूर्णा उपनिषद · अथर्वशिर उपनिषद · अथर्वशिखा उपनिषद · आत्मोपनिरुषद · भावनोपनिषद · भस्मोपनिषद · बृहज्जाबालोपनिषद · देवी उपनिषद · दत्तात्रेय उपनिषद · गणपति उपनिषद · गरुडोपनिषद · गोपालपूर्वतापनीयोपनिषद · ह्यग्रीव उपनिषद · कृष्ण उपनिषद · महानारायण उपनिषद ·माण्डूक्योपनिषद · महावाक्योपनिषद · मुण्डकोपनिषद · नारदपरिव्राजकोपनिषद · नृसिंहोत्तरतापनीयोपनिषद ·  परब्रह्मोपनिषद · प्रश्नोपनिषद · परमहंस परिव्राजक उपनिषद · पशुपत उपनिषद · श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद ·  शाण्डिल्योपनिषद · शरभ उपनिषद · सूर्योपनिषद · सीता उपनिषद · राम-रहस्य उपनिषद · त्रिपुरातापिन्युपनिषद                                                                                        ब्राह्मण ग्रन्थ   ॠग्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण · कौषीतकि ब्राह्मण · शांखायन ब्राह्मण   यजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ   शुक्ल यजुर्वेदीय शतपथब्राह्मण(काण्वब्राह्मण) · शतपथ (माध्यन्दिन) ब्राह्मण   कृष्ण यजुर्वेदीय तैत्तिरीय ब्राह्मण · मध्यवर्ती ब्राह्मण     सामवेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ ताण्ड्य ब्राह्मण · षडविंश ब्राह्मण · सामविधान ब्राह्मण · आर्षेय ब्राह्मण · मन्त्र ब्राह्मण · देवताध्यानम् ब्राह्मण · वंश ब्राह्मण · संहितोपनिषद ब्राह्मण ·जैमिनीय ब्राह्मण · जैमिनीयार्षेय ब्राह्मण · जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण   अथर्ववेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ गोपथ ब्राह्मण सूत्र-ग्रन्थ   ॠग्वेदीय सूत्र-ग्रन्थ आश्वलायन श्रौतसूत्र · शांखायन श्रौतसूत्र · आश्वलायन गृह्यसूत्र · शांखायन गृह्यसूत्र · वासिष्ठ धर्मसूत्र   यजुर्वेदीय सूत्र-ग्रन्थ   शुक्ल यजुर्वेदीय कात्यायन श्रौतसूत्र · पारस्कर श्रौतसूत्र · विष्णु धर्मसूत्र · पारस्कर गृह्यसूत्र   कृष्ण यजुर्वेदीय आपस्तम्ब श्रौतसूत्र · आपस्तम्बगृह्यसूत्र · हिरण्यकेशि श्रौतसूत्र · बौधायन गृह्यसूत्र · बौधायन श्रौतसूत्र · वैखानस गृह्यसूत्र · भारद्वाज श्रौतसूत्र · हिरण्यकेशीय गृह्यसूत्र · वैखानस श्रौतसूत्र · मानव धर्म-सूत्र · बाधूल श्रौतसूत्र · काठक धर्मसूत्र · आपस्तम्ब धर्मसूत्र · वराह श्रौतसूत्र · बौधायन धर्मसूत्र · मानव गृह्यसूत्र · वैखानस धर्मसूत्र · काठक गृह्यसूत्र · हिरण्यकेशीय धर्मसूत्र     सामवेदीय सूत्र-ग्रन्थ मसकसूत्र · लाट्यायन सूत्र · खदिर श्रौतसूत्र · जैमिनीय गृह्यसूत्र · गोभिल गृह्यसूत्र · खदिर गृह्यसूत्र · गौतम धर्मसूत्र · द्राह्यायण गृह्यसूत्र · द्राह्यायण धर्मसूत्र   अथर्ववेदीय सूत्र-ग्रन्थ वैतान श्रौतसूत्र · कौशिक गृह्यसूत्र · वराह गृह्यसूत्र · वैखानस गृह्यसूत्र शाखा   शाखा शाकल ॠग्वेदीय शाखा · काण्व शुक्ल यजुर्वेदीय · माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेदीय · तैत्तिरीय कृष्ण यजुर्वेदीय · मैत्रायणी कृष्ण यजुर्वेदीय · कठ कृष्ण यजुर्वेदीय · कपिष्ठल कृष्ण यजुर्वेदीय · श्वेताश्वतर कृष्ण यजुर्वेदीय · कौथुमी सामवेदीय शाखा · जैमिनीय सामवेदीय शाखा · राणायनीय सामवेदीय शाखा · पैप्पलाद अथर्ववेदीय शाखा · शौनकीय अथर्ववेदीय शाखा   मन्त्र-संहिता ॠग्वेद मन्त्र-संहिता · शुक्ल यजुर्वेद मन्त्र- संहिता · सामवेद मन्त्र-संहिता · अथर्ववेद मन्त्र-संहिता   आरण्यक ऐतरेय ॠग्वेदीय आरण्यक · शांखायन ॠग्वेदीय आरण्यक · कौषीतकि ॠग्वेदीय आरण्यक · बृहद शुक्ल यजुर्वेदीय आरण्यक · तैत्तिरीय कृष्ण यजुर्वेदीय आरण्यक · कठ कृष्ण यजुर्वेदीय आरण्यक · मैत्रायणीय कृष्ण यजुर्वेदीय आरण्यक · तलवकार सामवेदीय आरण्यक प्रातिसाख्य एवं अनुक्रमणिका ॠग्वेदीय प्रातिसाख्य शांखायन प्रातिशाख्य · बृहद प्रातिशाख्य · आर्षानुक्रमणिका · आश्वलायन प्रातिशाख्य · छन्दोनुक्रमणिका · ऋग्प्रातिशाख्य · देवतानुक्रमणिका ·सर्वानुक्रमणिका · अनुवाकानुक्रमणिका · बृहद्वातानुक्रमणिका · ऋग् विज्ञान यजुर्वेदीय प्रातिसाख्य शुक्ल यजुर्वेदीय कात्यायन शुल्वसूत्र · कात्यायनुक्रमणिका · वाजसनेयि प्रातिशाख्य   कृष्ण यजुर्वेदीय तैत्तिरीय प्रातिशाख्य     सामवेदीय प्रातिसाख्य शौनकीया चतुर्ध्यापिका स्मृति साहित्य   स्मृतिग्रन्थ अंगिरसस्मृति · आपस्तम्बस्मृति· ऐतरेयस्मृति · कात्यायनस्मृति · दक्षस्मृति · पाराशरस्मृति · प्रजापतिस्मृति · बृहस्पतिस्मृति · मनुस्मृति · मार्कण्डेयस्मृति ·यमस्मृति · याज्ञवल्क्यस्मृति · लिखितस्मृति · वसिष्ठस्मृति · विष्णुस्मृति · व्यासस्मृति · शंखस्मृति · शातातपस्मृति · सामवर्तस्मृति · हारीतिस्मृति   पुराण अग्नि · कूर्म· गरुड़ · नारद · पद्म · ब्रह्म · ब्रह्मवैवर्तपुराण · ब्रह्मांड · भविष्य · भागवत · मत्स्य · मार्कण्डेय · लिंग · वराह · वामन · विष्णु · शिवपुराण (वायुपुराण) · स्कन्द   महाकाव्य रामायण (वाल्मीकि) – योगवासिष्ठ · महाभारत (व्यास) – भगवद्गीता   दर्शन न्याय दर्शन · पूर्व मीमांसा · योग · उत्तर मीमांसा · वैशेषिक · सांख्य   निबन्ध जीमूतवाहन कृत : दयाभाग · कालविवेक · व्यवहार मातृका · अनिरुद्ध कृत : पितृदायिता · हारलता · बल्लालसेन कृत :आचारसागर · प्रतिष्ठासागर ·अद्भुतसागर · श्रीधर उपाध्याय कृत : कालमाधव · दत्तकमीमांसा · पराशरमाधव · गोत्र-प्रवर निर्णय · मुहूर्तमाधव · स्मृतिसंग्रह · व्रात्यस्तोम-पद्धति ·नन्दपण्डित कृत : श्राद्ध-कल्पलता · शुद्धि-चन्द्रिका · तत्त्वमुक्तावली · दत्तक मीमांसा · · नारायणभटट कृत : त्रिस्थली-सेतु · अन्त्येष्टि-पद्धति · प्रयोग रत्नाकर ·कमलाकर भट्ट कृत: निर्णयसिन्धु · शूद्रकमलाकर · दानकमलाकर · पूर्तकमलाकर · वेदरत्न · प्रायश्चित्तरत्न · विवाद ताण्डव · काशीनाथ उपाध्याय कृत :धर्मसिन्धु · निर्णयामृत · पुरुषार्थ-चिन्तामणि · शूलपाणि कृत : स्मृति-विवेक (अपूर्ण) · रघुनन्दन कृत : स्मृति-तत्त्व · चण्डेश्वर कृत : स्मृति-रत्नाकर · वाचस्पति मिश्र : विवाद-चिन्तामणि · देवण भटट कृत : स्मृति-चन्द्रिका · हेमाद्रि कृत : चतुर्वर्ग-चिन्तामणि · नीलकण्डभटट कृत : भगवन्त भास्कर · मित्रमिश्र कृत:वीर-मित्रोदय · लक्ष्मीधर कृत : कृत्य-कल्पतरु · जगन्नाथ तर्कपंचानन कृत : विवादार्णव   आगम   वैष्णवागम अहिर्बुध्न्य-संहिता · ईश्वर-संहिता · कपिलाजंलि-संहिता · जयाख्य-संहिता · पद्मतंत्र-संहिता · पाराशर-संहिता · बृहद्ब्रह्म-संहिता · भरद्वाज-संहिता · लक्ष्मी-संहिता · विष्णुतिलक-संहिता · विष्णु-संहिता · श्रीप्रश्न-संहिता · सात्त्वत-संहिता   शैवागम तत्त्वत्रय · तत्त्वप्रकाशिका · तत्त्वसंग्रह · तात्पर्य संग्रह · नरेश्वर परीक्षा · नादकारिका · परमोक्ष-निराशकारिका · पाशुपत सूत्र · भोगकारिका ·मोक्षकारिका · रत्नत्रय · श्रुतिसूक्तिमाला · सूत-संहिता   शाक्तागम   वामागम अद्वैतभावोपनिषद · अरुणोपनिषद · कालिकोपनिषद · कौलोपनिषद · तारोपनिषद · त्रिपुरोपनिषद · ब्रहिचोपनिषद ·भावनोपनिषद   मिश्रमार्ग कलानिधि · कुलार्णव · कुलेश्वरी · चन्द्रक · ज्योत्स्रावती · दुर्वासस · बार्हस्पत्य · भुवनेश्वरी   समयाचार वसिष्ठसंहिता · शुक्रसंहिता · सनकसंहिता · सनत्कुमारसंहिता · सनन्दनसंहिता   तान्त्रिक साधना कालीविलास · कुलार्णव · कूल-चूड़ामणि · ज्ञानार्णव · तन्त्रराज · त्रिपुरा-रहस्य · दक्षिणामूर्ति-संहिता · नामकेश्वर ·प्रपंचसार · मन्त्र-महार्णव · महानिर्वाण · रुद्रयामल · शक्तिसंगम-तन्त्र · शारदा-तिलक share your Love with us Latest Update Latest Update नोट्स बैंक वर्ल्ड जीके  चंद्रमा से संबंधित 25 महत्वपूर्ण परीक्षापयोगी तथ्य अगस्त 17, 2017 Expert Guru 0 33,942 total views, 214 views today 33,942 total views, 214 views today हम चाँद के इतने करीब होते के बावजूद भी इसके बारे में बहुत सी बाते नहीं करंट अफेयर्स टुडे – 8 & 9 अगस्त 2017 अगस्त 9, 2017 0 मध्‍यप्रदेश की सभी ग्राम पंचायत इंटरनेट से जुड़ेंगी अगस्त 6, 2017 0 करंट अफेयर्स टुडे – 5 अगस्त 2017 अगस्त 5, 2017 0 Calendar अक्टूबर 2017 रवि सोम मंगल बुध गुरु शुक्र शनि « अगस्त     1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 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