Thursday, 12 October 2017

गायत्री मंत्र कैसे जपें?

brijeshverma10 Search this site ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।‎ > ‎ गायत्री मंत्र कैसे जपें?     मात्र अक्षर दोहरा लेने से तो स्कूली बच्चे प्रथम कक्षा में ही बने रहते हैं। उन्हें प्रशिक्षित बनने के लिए वर्णमाला, गिनती जैसे प्रथम चरणों से आगे बढ़ना पड़ता है। इसी प्रकार गायत्री मंत्र के साथ जो  विभूतियाँ अविच्छिन्न रूप से आबद्ध हैं, मात्र थोड़े से अक्षरों को याद कर लेने या दोहरा देने से उनमें वर्णित विशेषताओं को उपलब्ध करना नहीं माना जा सकता। उनमें सन्निहित तत्त्वज्ञान पर भी गहरी दृष्टि डालनी होगी। इतना ही नहीं, उसे हृदयंगम भी करना होगा और जीवनचर्या में नवनीत को इस प्रकार समाविष्ट करना होगा कि मलीनता का निराकरण तथा शालीनता  का अनुभव संभव बन सके।        तत्त्वज्ञान मान्यताओं एवं भावनाओं को प्रभावित करता है। इन्हीं का मोटा स्वरूप चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार है। गायत्री का तत्त्वज्ञान इस स्तर की उत्कृष्टता अपनाने के लिए सद्विषयक विश्वासों को अपनाने के लिए प्रेरणा देता है।        गायत्री को त्रिपदा कहा गया है। उसके तीन चरण हैं। उद्गम एक होते हुए भी उसके साथ तीन दिशाधाराएँ जुड़ती हैं:-       (१) सविता के भर्ग-तेजस् का वरण अर्थात् जीवन में ऊर्जा एवं आभा का बाहुल्य। अवांछनीयताओं  से अंत:ऊर्जा का टकराव। परिष्कृत प्रतिभा एवं शौर्य-साहस इसी का नाम है। गायत्री के नैष्ठिक साधक में यह प्रखर प्रतिभा इस स्तर की होनी चाहिए कि अनीति के आगे न सिर झुकाए और न झुककर कायरता के दबाव में कोई समझौता करे।        (२) दूसरा चरण- देवत्व का वरण अर्थात् शालीनता को अपनाते हुए उदारचेता बने रहना; लेने की अपेक्षा देने की प्रवृत्ति का परिपोषण करना; उस स्तर के व्यक्तित्व से जुड़ने वाली गौरव-गरिमा की अंतराल में अवधारणा करना। यही है ‘देवस्य धीमहि।’       (३) तीसरा सोपान है-धियो यो न: प्रचोदयात्’ मात्र अपनी ही नहीं, अपने समूह, समाज व संसार में सद्बुद्धि की प्रेरणा उभारना- मेधा, प्रज्ञा, दूरदर्शी विवेकशीलता, नीर-क्षीर विवेक में निरत बुद्धिमत्ता।       गायत्री का तत्त्वज्ञान समझने और स्वीकारने वाले में ये तीनों ही विशेषताएँ न केवल पाई जानी चाहिए वरन् उनका अनुपात निरंतर बढ़ते रहना चाहिए। इस आस्था को स्वीकारने के उपरांत संकीर्णता व कृपणता से अनुबंधित ऐसी स्वार्थपरता के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह जाती कि उससे प्रभावित होकर कोई दूसरों के अधिकारों का हनन करके अपने लिए अनुचित स्तर का लाभ बटोर सके-अपराधी या आततायी कहलाने के पतन-पराभव अपना सके।        इस आधार पर इसे ईश्वरीय निर्देश, शास्त्र-वचन एवं आप्तजन-कथन के रूप में अपनाया जा सकता है। गायत्री के विषय में गीता का वाक्य है-गायत्री छंदसामहम्’। भगवान् कृष्ण ने कहा है कि ‘छंदों में गायत्री में स्वयं हूँ,’ जो विद्या-विभूति के रूप में गायत्री की व्याख्या करते हुए विभूति योग में प्रकट हुई है। - आद्यशक्ति गायत्री की समर्थ साधना       नाम-जप का तात्पर्य है-जिस परमेश्वर को, उसके विधान को आमतौर से हम भूले रहते हैं, उसको बार-बार स्मृति-पटल पर अंकित करें, विस्मरण की भूल न होने दें। सुरदुर्लभ मनुष्य-जीवन की महती अनुकंपा और उसके साथ जुड़ी हुई स्रष्टा की आकांक्षा  को समझने, अपनाने की मानसिकता बनाए रहने का नित्य प्रयत्न करना ही नाम-जप का महत्त्व और माहात्म्य है। साबुन रगड़ने से शरीर और कपड़ा स्वच्छ होता है। घिसाई-रंगाई करने से निशान पड़ने और चमकने का अवसर मिलता है। जप करने वाले व्यक्तित्व को इसी आधार पर विकसित करें। - जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र       आप ऐसे कीजिए कि मन्त्र के साथ-साथ में आपने पढ़ा होगा-योगशास्त्र में लिखा है-क्या लिखा है? मन्त्र को अर्थ समेत जपना चाहिए। अर्थ समेत आप कहाँ जपते हैं? ये गलत बात है। गायत्री मन्त्र की जिस प्रकार से बोलने की स्पीड है, उस तरह से विचार की स्पीड नहीं हो सकती। ‘भू’ का अर्थ ये है, ‘भुव:’ का अर्थ ये है, तत् का अर्थ ये है। इस प्रकार से अर्थ चिन्तन के साथ जप का समन्वय सम्भव नहीं और देखें जुबान कितनी तेजी से चलती है। अर्थ का चिंतन कितने धीमे से होता है? जप के साथ चिंतन नहीं हो सकता। गलत कहा है-गलत या तो गलत लिखा है या आपने गलत समझा है। गलत क्या बात है? इसका अर्थ ये है- कोई आप कृत्य करते हैं। प्रत्येक कृत्य को पीछे  ये पता चलाना पड़ेगा। क्या पता चलाना पड़ेगा कि इसके पीछे प्रेरणा क्या है? शिक्षा क्या है? स्थूल शरीर से आप प्रतीकों का पूजन करेंगे, चावल चढ़ाएँ हाथ जोड़ें, नमस्कार करें, माला घुमाएँ, मन्त्र का उच्चारण करें। ये स्थूल शरीर की क्रियाएँ हैं। इतने से काम बनने वाला नहीं फिर क्या करना चाहिए? आदमी को ये करना चाहिए कि प्रत्येक कर्मकाण्ड के पीछे की विचारणाएँ, प्रेरणाएँ समझें। विचारणाएँ क्या हैं? प्रत्येक कर्मकाण्ड हमको कुछ शिक्षा देता है, कुछ नसीहत देता है, कुछ उम्मीदें कराता है। आपने उपासना की है, कर्मकाण्ड किया है, तो इस कर्मकाण्ड के माध्यम से जो आपको अपने जीवन में हेर-फेर करने चाहिए, विचारों में परिवर्तन करने चाहिए, उस परिवर्तन के लिए आप विचारमग्न हों और विचार करें कि आखिर ये क्यों किया जाए? आप तो कर्मकाण्ड करते रहते हैं और ये विचार तक नहीं करते कि क्यों करते हैं? वेदान्त का, फिलॉसफी का पहला वाला सूत्र है, क्या सूत्र है? ब्रह्म-जिज्ञासा पहला काम ये है कि आप जानिए। ये क्या चक्कर है? गायत्री माता की मूर्ति हो, तो आप ये पूछिए कि क्या बात है साहब! हमने तो मूर्ति रख दी और दंड लगा रहे हैं। दण्ड लगाइये मत। पहला काम ये है कि समझो।       क्यों और क्या? पहले यहाँ से चल। भजन पीछे करना। ये क्या चक्कर है? पहले ये पूछना, फिर इसके बाद शुरू करना। ये आपकी क्या है? जिज्ञासा है। प्रत्येक कर्मकाण्ड देखने से खिलवाड़ मालूम पड़ते हैं-बच्चों जैसे। खिलवाड़ मालूम पड़ते हैं। चावल चढ़ा दिया गणेश जी पर। काहे के लिए चढ़ा गणेश जी पर? गणेश जी कच्चा चावल खाएँगे क्या? - पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी  Comments View as Desktop My Sites Powered By Google Sites

No comments:

Post a Comment