Thursday, 12 October 2017

दुनिया का प्रथम चमत्कारिक मंत्र...

हिन्दी / Hindi खबर-संसारज्योतिषबॉलीवुडदीपावलीधर्म-संसारक्रिकेटवीडियोसामयिकफोटो गैलरीअन्यProfessional Courses यह है दुनिया का प्रथम चमत्कारिक मंत्र... FILE दुनिया का एकमात्र ऐसा मंत्र है, जो ईश्वर के प्रति, ईश्वर का साक्षी और ईश्वर के लिए है। यह मंत्रों का मंत्र सभी हिन्दू शास्त्रों में प्रथम और महामंत्र कहा गया है। प्राचीनकाल में हमारे ऋषि-मुनियों ने इसी मंत्र के माध्यम से सिद्धियां और मोक्ष पाया और महाभारत काल में इसी मंत्र के माध्यम से अस्त्रों का निर्माण होता था। वेद, पुराण, स्मृति और संहिताओं में इस मंत्र की महिमा का वर्णन मिलता है। हर समस्या का बस एक उपाय हम आपको बताएंगे कि वह कौन-सा मंत्र है और उसके क्या चमत्कार है? यह भी कि इस मंत्र का जाप कैसे किया जाए और इस मंत्र का जप करने से क्या-क्या लाभ मिलते हैं?   जानिए अगले पन्ने पर कौन-सा है ये मंत्र...   ; FILE सभी हिन्दू शास्त्रों में लिखा है कि मंत्रों का मंत्र महामंत्र है गायत्री मंत्र। यह प्रथम इसलिए कि विश्व की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद की शुरुआत ही इस मंत्र से होती है। माना जाता है कि भृगु ऋषि ने इस मंत्र की रचना की है। यह मंत्र इस प्रकार है-ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। गायत्री मंत्र का अर्थ :सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे। दूसरा अर्थ :उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। तीसरा अर्थ :ॐ : सर्वरक्षक परमात्मा, भू : प्राणों से प्यारा, भुव : दुख विनाशक, स्व : सुखस्वरूप है, तत् : उस, सवितु : उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक, वरेण्य : वरने योग्य, भर्गो : शुद्ध विज्ञान स्वरूप का, देवस्य : देव के, धीमहि : हम ध्यान करें, धियो : बुद्धि को, यो : जो, न : हमारी, प्रचोदयात् : शुभ कार्यों में प्रेरित करें। अर्थात :स्वामी विवेकानंद कहते हैं इस मंत्र के बारे में कि हमें उसकी महिमा का ध्यान करना चाहिए जिसने यह सृष्टि बनाई। मंत्र की महिमा और चमत्कार का शास्त्र प्रमाण अगले पन्ने पर... शास्त्रकारों ने गायत्री की सर्वोपरि शक्ति, स्थिति और उपयोगिता को एक स्वर से स्वीकार किया है। इस संदर्भ में पाए जाने वाले अगणित प्रमाणों में से कुछ नीचे प्रस्तुत हैं:- सर्वेषां जपसूक्तानां ऋचांश्च यजुषां तथा। साम्नां चौकक्षरादीनां गायत्री परमो जप:।। -वृहत् पाराशर स्मृति। अर्थ : समस्त जप सूत्रों में समस्त वेद मंत्रों में, एकाक्षर बीज मंत्रों में गायत्री ही सर्वश्रेष्ठ है। इति वेद पवित्राण्य भिहितानि एभ्य सावित्री विशिष्यते। -शंख स्मृति अर्थ : यों सभी वेद के मंत्र पवित्र हैं, पर इन सब में गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है। सप्त कोटि महामंत्रा, गायत्री नायिका स्मृता। आदि देवा ह्मुपासन्ते गायत्री वेद मातरम्।। -कूर्म पुराण अर्थ : गायत्री सर्वोपरि सेनानायक के समान है। देवता इसी की उपासना करते हैं। यही चारों वेदों की माता है। तदित्पृचा समो नास्ति मंत्रों वेदचतुष्टये। सर्ववेदाश्च यज्ञाश्च दानानि च तपांसि च।। समानि कलपा प्राहुर्मुनयो न तदित्यृक्।। -याज्ञवल्क्य अर्थ : गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। समस्त वेद, यज्ञ, दान, तप मिलकर भी एक कला के बराबर भी नहीं हो सकते, ऐसा ऋषियों ने कहा है- दुर्लभा सर्वमंत्रेषु गायत्री प्रणवान्विता। न गायत्र्यधिंक किचित् त्रयीषुपरिगीयते।। -हारीत अर्थ : इस संसार में गायत्री के समान परम समर्थ और दुर्लभ मंत्र कोई नहीं है। वेदों में गायत्री से श्रेष्ठ कुछ और नहीं है। नास्ति गंगा, समं तीर्थ, न देव: केशवात्पर:। गायत्र्यास्तु परं जाप्यं न भूतं न भविष्यति। -अत्रि ऋषि अर्थ : गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव के समान कोई देवता नहीं और गायत्री से श्रेष्ठ कोई जप न कभी हुआ है और न कभी होगा। गायत्री सर्वमंत्रणां शिरोमणिस्तथा स्थिता। विद्यानामपि तेनैतां साधने सर्वसिद्धये।। त्रिव्याहृतियुतां देवीमोंकारयुगसम्पुटाम्।। उपास्यचतुरो वर्गान्साधयेद्यो न सोsन्धधी:।। देव्या द्विजत्वमासाद्य श्रेयसेsन्यरतास्तु ये। ते रत्नानिवां‍छन्ति हित्वा चिंतामणि करात्। -महा वार्तिक अर्थ : गायत्री सब मंत्रों तथा सब विद्याओं में शिरोमणि है। उससे इंद्रियों की साधना होती है। जो व्यक्ति इस उपासना के द्वारा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पदार्थों को प्राप्त करने से चूकते हैं, वे मंदबुद्धि हैं। जो द्विज गायत्री मंत्र के होते हुए भी अन्य मंत्रों की साधना करते हैं वे ऐसे ही हतभागी हैं, जैसे कि चिंतामणि को फेंककर छोटे-छोटे चमकीले पत्थर ढूंढने वाले हैं। यथा कथं च जप्तैषा त्रिपदा परम पावनी। सर्वकामप्रदा प्रोक्ता विधिना किं पुनर्नृय।। अर्थ : हे राजन! जैसे-तैसे उपासना करने वाले की भी गायत्री माता कामना पूर्ण करती है, फिर विधिवत साधना करने के सत्परिणामों का तो कहना ही क्या? कामान्दुग्धे विप्रकर्षत्वलक्ष्मी, पुण्यं सुते दुष्कृतं च हिनस्ति। शुद्धां शान्तां मातरं मंगलाना, धेनुं धीरां गायत्रीमंत्रमाहु:।। -वशिष्ठ अर्थ : गायत्री कामधेनु के समान मनोकामनाओं को पूर्ण करती है, दुर्भाग्य, दरिद्रता आदि कष्टों को दूर करती है, पुण्य को बढ़ाती है, पाप का नाश करती है। ऐसी परम शुद्ध शांतिदायिनी, कल्याणकारिणी महाशक्ति को ऋषि लोग गायत्री कहते हैं। प्राचीनकाल में महर्षियों ने बड़ी-बड़ी तपस्याएं और योग-साधनाएं करके अणिमा-महिमा आदि ऋद्धि-सिद्धियां प्राप्त की थीं। इनकी चमत्कारी शक्तियों के वर्णन से इतिहास-पुराण भरे पड़े हैं। वह तपस्या थी ‍इसलिए महर्षियों ने प्रत्येक भारतीय के लिए गायत्री की नित्य उपासना करने का निर्देश दिया था। चत्वारिश्रंगा त्रयो अस्य पादा, द्वे शीर्षे सप्त हस्तासोsअस्य। त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति, महादेवो मर्त्यां अविवेश।। -यजुर्वेद 17/19 अर्थात : चार सींग वाला, तीन पैर वाला, दो सिर वाला, सात हाथों वाला, तीन जगह बंधा हुआ, यह गायत्री महामंत्ररूपी वृषभ जब दहाड़ता है, तब महान देव बन जाता है और अपने सेवक का कल्याण करता है। चार सींग :चार वेद। तीन पैर :आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण। दो सिर :ज्ञान और विज्ञान। सात हाथ :सात व्याहृतियां जिनके द्वारा सात विभूतियां मिलती हैं। तीन जगह बंधा हुआ :ज्ञान, कर्म, उपासना से। अंत में :जब यह वृषभ दहाड़ता है, तब देवत्व की दिव्य परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं जिसके सान्निध्य में रहकर सब कुछ पाया जा सकता है। देवी भागवत पुराण के अश्वपति उपाख्यान में अनुदान का वर्णन इस प्रकार आता है- तत: सावित्र्युपाख्यानं तन्मे व्याख्यातुमर्हसि। पुरा केन समुद्‍भूता सा श्रुता च श्रुते: प्रसू:।। केन वा पूजिता लोके प्रथमे कैश्च वा परे।। ब्राह्मणा वेदजननी प्रथमे पूजिवा मुने। द्वितीये च वेदगणैस्तत्पश्चाद्विदुषां गणै:।। तदा चाश्वपतिर्भूप: पूजयामास भारत। तत्पश्चात्पूजयामासुवर्णाश्‍चत्वार एव च।। -देवी भागवत (सावित्री उपाख्‍यान) नारदजी ने भगवान से पूछा-प्रख्‍यात हैं कि श्रुतियां गायत्री से उत्पन्न हुई हैं, कृपा करके उस गायत्री की उत्पत्ति बताइए। भगवान ने कहा-देव जननी गायत्री की उपासना सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने की, फिर देवता उनकी आराधना करने लगे, फिर विद्वान, ज्ञानी-तपस्वी उसकी साधना करने लगे। राजा अश्वपति ने विशेष रूप से उसकी तपश्चर्या की और फिर तो चारों वर्ण (रंग) उस गायत्री की उपासना में तत्पर हो गए। कैसे करें गायत्री मंत्र का जप, अगले पन्ने पर... आप भी गायत्री मंत्र की शक्ति और शुभ प्रभाव से सफलता चाहते हैं, तो गायत्री मंत्र जप से जुड़े नियमों का ध्यान जरूर रखें- * गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें, किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से तन पोंछ लें। * साफ और सूती वस्त्र पहनें। * तुलसी या चंदन की माला का उपयोग करें। * पशु की खाल का आसन निषेध है। कुश या चटाई का आसन बिछाएं। * गायत्री मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समयों को संध्याकाल भी कहा जाता है। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है- प्रात:काल। सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। * मंत्र जप के लिए दूसरा समय है-दोपहर मध्याह्न का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है- शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले। मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। * सुबह पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें। * इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है। * गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। * शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जप करें, बाकी मंत्र जप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही एक से अधिक माला कर जप बाधा दोष का शमन करें। गायत्री मंत्र के लाभ, जानिए अगले पन्ने पर... जीवन में किसी भी प्रकार का दुख हो या भय इस मंत्र का जाप करने से दूर हो जाते हैं। किसी भी प्रकार का संकट हो या कोई भूत बाधा हो तो यह मंत्र जपते ही पल में ही दूर हो जाती है। यदि आपको सिद्धियां प्राप्त करना हो या मोक्ष तो इस मंत्र का जाप करते रहने से यह इच्छा भी पूरी हो जाती है, लेकिन शर्त यह है कि इसके जाप के पहले व्यक्ति को द्विज बनना पड़ता है। हर तरह के व्यसन छोड़ना पड़ते हैं। मंत्र के अन्य लाभों को जानने के लिए प्रथम पेज पर दी गई लिंक पर क्लिक करें। साभार :अखंड ज्योति (पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य') विज्ञापन विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? 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