Thursday, 12 October 2017

सफल जीवन की तीन मूल्यवान बातें 

 महापंडित रावण ने लक्ष्मण को तीन बातें बताईं जो जीवन में सफलता की कुंजी है By: Gulneet Kaur  दैत्य रावण हम जब तक सामाजिक रूप से प्रमाणित अच्छे कार्य करते जाते हैं, तब तक समाज भी हमारी प्रशंसा करता है, लेकिन जैसे ही समाज के विरुद्ध एक बुरा काम किया नहीं कि हम सदा के लिए बुराई का पात्र बन जाते हैं। लंकापति रावण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ...  केवल एक बुराई... हम यह नहीं कहते कि रावण ने जो कुछ भी किया वह गलत था, परन्तु सीताजी का अपहरण करना ही उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी। यदि वो सीता जी का हरण ना करता तो कभी श्रीराम अपनी अर्धांगिनी को बचाने लंका ना आते और ना ही दैत्य रावण का अंत होता। यदि रावण सीता जी का हरण ना करता तो उसकी ज़िंदगी ही कुछ और होती... शायद वह भी आज देवता के समान पूजा जाता।  महापंडित रावण हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि रावण, जिसे पूरा विश्व राक्षस राजा के नाम से जानता है, वह एक महापंडित था। उसके तप में जो कठोरता थी, जो अग्नि थी वह शायद ही उस काल के किसी अन्य ऋषि-मुनि एवं पंडित में थी। कठोर तपस्या के मार्ग से ही रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न किया।  रावण का स्वार्थ शिवजी जानते थे कि रावण एक राक्षस है और अपने सवार्थ के लिए ही तप कर रहा है, लेकिन रावण की भक्तिपूर्ण तपस्या को वे भी दरकिनार ना कर सके और विवश होकर उन्हें रावण को वरदान देना ही पड़ा.... जिसके बाद रावण अत्यंत शक्तिशाली हो गया था।  पिता ऋषि थे शायद यह बात काफी कम लोग जानते हैं कि रावण के पिता एक ऋषि और माता एक असुर कन्या थी। इसलिए माता के गुणों के कारण ही रावण में असुरों के गुण आ गए... लेकिन पिता से मिला तपस्या का गुण ही रावण के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित हुआ।  तपस्या का मार्ग दुनिया पर राज करने के लिए रावण ने तपस्या का मार्ग चुना, दिन-रात शिव जी का जाप किया। आखिरकार वर्षों की तापस्या पूर्ण करके रावण ने शिवजी का वरदान पाया। लेकिन वो कहते हैं ना यदि भगवान विवश होकर बुराई को भी वरदान देते हैं तो उसके अंत के लिए भी पहले से ही मार्ग चुन लेते हैं।  भगवान शिव का वरदान कहते हैं कि जैसे ही भगवान शिव ने रावण को वरदान दिया था, उसी के साथ भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम के जन्म का फैसला कर लिया गया था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार माता कैकेयी की इच्छा के मुताबिक श्रीराम, उनकी पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण को 14 वर्षों के वनवास के लिए अयोध्या छोड़कर जाना पड़ा।  सीता हरण वनवास के कुछ वर्ष बीत गए थे कि अचानक राक्षस रावण की बहन शूर्पणखा ने वन में लक्ष्मण को देखा और देखकर मोहित हो गई। लेकिन लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटकर उसे वहां से भगा दिया, परन्तु जाते-जाते शूर्पणखा ने सुंदर सीता को देख लिया था। लंका जाते ही उसने अपने भाई रावण को सीता के बारे में बताया और षडयंत्र रचा ताकि रावण सीता का हरण कर उसे लंका ले आए।  वनवास वन में अचानक एक सुनहरे हिरण को देख सीता ने श्रीराम से उसे लेकर आने को कहा, परिणाम स्वरूप राम घने जंगल की ओर निकल पड़े। कुछ देर बाद श्रीराम की मदद की पुकार सुन लक्ष्मण भी उन्हें बचाने वन में निकल गए लेकिन सीताजी की रक्षा के लिए कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच गए जिसे सीता के सिवा कोई पार नहीं कर सकता था।  सीता हरण कुछ देर बाद रावण ऋषि का रूप धारण करके आया और सीता को लक्ष्मण रेखा पार कर भीक्षा देने को कहा। कुछ झिझकने के बाद सीता ने बाहर आकर जैसे ही भीक्षा देना चाहा रावण अपने असली रूप में आ गया और सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया। बस यहीं से रावण का बुरा समय आरंभ हो गया....  खोज निकाला सीता को श्रीराम नहीं जानते थे कि सीता कहां हैं.... लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें मालूम हुआ कि लंकापति रावण उन्हें ले गया है। लंका का रास्ता खोजने में हनुमानजी और वानर सेना ने उनकी सहायता की। आखिरकार वे लोग पत्थरों का पुल बनाकर लंका पहुंचे...  शांति संदेश भिजवाया आरंभ में श्रीराम ने रावण को कुछ शांति संदेश भिजवाए और कहा कि वो सीता को छोड़ दे। लेकिन रावण ने अहंकारवश उसे स्वीकार नहीं किया।  आरंभ हुआ युद्ध और फिर हुआ भीषण युद्ध... एक ओर वानर सेना और दूसरी ओर राक्षसी सेना। युद्ध के कुछ दिनों में ही रावण के पुत्र, भाई कुम्भकर्ण और अन्य राक्षस मारे गए। इधर वानर सेना का भी भारी नुकसान हुआ.... लेकिन आखिरी दिन वह था जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हुआ।  श्रीराम की जीत हुई वो कहते हैं ना कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो, अच्छाई के सामने छोटी ही पड़ जाती है। रावण ने अपनी दैत्य शक्तियों का भरपूर उपयोग किया लेकिन श्रीराम के वार को वह सह ना सका और अंत में अपना आखिरी श्वास लेता हुआ धरती पर जा गिरा।  वह पल जब... यह वह समय था जब रावण भूमि पर लेटे हुए अपनी अंतिम सांस का इंतजार कर रहा था। तब श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण को बुलाया और कहा, “जाओ, रावण के पास जाओ और उससे सफल जीवन के अनमोल मंत्र ले लो”।  श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण से कहा यह बात सुनकर पहले तो अनुज लक्ष्मण को श्रीराम की बात पर कुछ संदेह हुआ... वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिरकार एक दुश्मन से सफलता का क्या पाठ मिलेगा। लेकिन ज्येष्ठ भ्राता के आदेश को लक्ष्मण नकार नहीं सकते थे और आखिरकार वे रावण के सिर के पास जाकर खड़े हो गए।  रावण रावण काफी कठिन हालत में श्वास ले रहा था और सिर के पास खड़ा लक्ष्मण उसे काफी ध्यान से देख रहा था और प्रतीक्षा कर रहा था कि कब वह कुछ बोले। लेकिन रावण ने अपने मुख से एक शब्द ना कहा और निराश होकर लक्ष्मण अपने भाई श्रीराम के पास लौटा और कहा कि ‘रावण तो कुछ कह ही नहीं रहे’।  श्रीराम ने समझाया तब श्रीराम मुस्कुराए और बोले, “जब हमें किसी से शीक्षा प्राप्त करनी हो तो कभी भी उसके सिर के पास खड़े नहीं होना चाहिए। जाओ, रावण के चरणों के पास जाकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करो, वे तुम्हे सफलता की कुंजी अवश्य प्रदान करेंगे।“  लक्ष्मण गए रावण के पास श्रीराम के यह वचन सुनकर लक्ष्मण को अचंभा हुआ लेकिन आज्ञानुसार उसने ठीक वैसा ही किया जैसा प्रभु चाहते थे। वह राक्षस राजा रावण के चरणों के समीप गया, हाथ जोड़े और आग्रह किया कि रावण उन्हें सफल जीवन के मंत्र प्रदान करें।  वह तीन बातें उस समय रावण ने अपने मुख से कुछ वचन बोले और उन्हें सफल जीवन की तीन मूल्यवान बातें बताईं... जिन्हें आप आगे की स्लाइड्स में जान सकते हैं...  पहली बात पहली बात जो रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी ‘शुभस्य शीघ्रम्’। रावण ने लक्ष्मण को बताया, ‘मैं श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई’।  दूसरी बात इसके बाद रावण ने लक्ष्मण को जो दूसरी बात बताई वह और भी हैरान कर देने वाली थी। उसने कहा, “अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, वह आपसे भी अधिक बलशालि हो सकता है। मैंने श्रीराम को तुच्छ मनुष्य समझा और सोचा कि उन्हें हराना मेरे लिए काफी आसान होगा, लेकिन यही मेरी सबसे बड़े भूल थी।“  रावण की भूल रावण ने आगे कहा, “मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। यही मेरी गलती थी।“  तीसरी बात रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बताई कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था, अगर उसे मैं यह ना बताता तो शायद आज मेरी यह हालत ना होती।“     Recommended section  मृत्यु से पहले कर लें ये 4 काम  सफलता के लिए इन्हें करें ज़िंदगी से बाहर  786 अंक क्यों शुभ माने जाते हैं इस्लाम में?  हमें प्रभु के और करीब लाता है संगीत और मंत्रजाप  दरिद्रता और बदहाली लाता है शनि-चंद्र से बना विष योग Popular section  पेट होगा अंदर, कमर होगी छरहरी अगर अपनायेंगे ये सिंपल नुस्खे  एक ऋषि की रहस्यमय कहानी जिसने किसी स्त्री को नहीं देखा, किंतु जब देखा तो...  किन्नरों की शव यात्रा के बारे मे जानकर हैरान हो जायेंगे आप  कामशास्त्र के अनुसार अगर आपकी पत्नी में हैं ये 11 लक्षण तो आप वाकई सौभाग्यशाली हैं  ये चार 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