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सोमवार, 23 दिसंबर 2013
दर्शन -पूजा विधि
दर्शन-पूजा विधि
सहधर्मी भाइयो बहिनो
जैजिनेंद्र देव की ,पंचपरमेष्ठी भगवान् कि जय! विश्व धर्म 'शाश्वत जैन धर्म की जय !
पंचमी, से चतुर्दशी चैत्रशुक्ल,२५४२ ( ११-२० अप्रैल ,२०१६)-पर्यूषणपर्व/दसलक्षण पर्व चलेगा,जिसमे हम देव,शास्त्र और गुरु के दर्शन/पूजा द्वारा अपनी आत्मा की शुद्धि में अभिवृद्धि कर सकते है! हमारी युवा पीढ़ी में से अधिकांशत: को देवादि दर्शन करने की विधि नहीं मालूम होती अथवा पूजाओं के अर्थों ओर भावों का ज्ञान नहीं होता,इसलिए उन्हें ये समस्त क्रियाये अरुचिकर लगती है,वे इन्हे मात्र एक कोरम की पूर्ती हेतु अपने अभिवाकों के दबाव में अथवा किसी अंध विश्वास में,अपनी वांछाओं की पूर्ती के लिए अज्ञानता वश करते है, स्वात्मकल्याण हेतु नहीं कर पाते!देवदर्शन,पूजन आदि की विधि ऐसे ही युवक/युवतियों के लिए प्रस्तुत है जिससे भविष्य में वे आनंद पूर्वक नित्य मंदिर जी में मन,वचन,काय से जाकर इस का आनंद लेकर लाभान्वित हो सके !हमें विधिवत ज्ञानपूर्वक दर्शन करना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा जैन धर्म के संस्कार से वंचित रह जायेंगे और जैन धर्म का विकास रुक जाएगा! इसलिए दर्शनविधि का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है !
दर्शन विधि
१-जैनियों में कुलाचार-जैनियों का मूल आचरण,व्यक्ति विशेष के जैनत्त्व के सूचक !हमारे कुलालाचार तीन है-
१-नित्य देवदर्शन करना,
२-छने जल का सेवन करना और
३-रात्रि में भोजन का त्याग करना!इस प्रकार के आचरण से युक्त व्यक्ति के सरलता से जैन होने की पुष्टि हो जाती है!
२- मंदिर जी में ही देवदर्शन का महत्व-
१-अरिहंत भगवन के बिम्ब(प्रतिमा) के मंदिर जी में नित्य दर्शन करने से ,हमे उन जैसे बनने की प्रेरणा मिलती है,जो कि जीवन का हमारा मुख्य लक्ष्य है!जिनबिम्ब की छाप हमारे हृदय पर अंकित होती है! देवदर्शन के लिए मंदिर जाना उसी प्रकार आवश्यक है,जैसे किसी विद्यार्थी को शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय अथवा व्यापार के लिए अपने प्रतिष्ठानस्थल पर जाना आवश्यक है क्योकि वहाँ पर उन कार्यों की पूर्ती के लिए समुचित वातावरण उपलब्ध होता है!मंदिर में प्रवेश करते ही हृदय प्रसन्नता और आनंद की प्रकाष्ठा से प्रफुल्लित होता है क्योकि वहाँ उपस्थित समस्त भक्तगण,पूजनादि के छंद एवं श्लोको के उच्चारण से वातावरण को हृदयस्पर्शी एवं पवित्र बनाते है!घर में पूजा करने पर हमें इस प्रकार का यथायोग्य वातावरण उपलब्ध नहीं होता !
३-देव दर्शन कि महिमा -आचार्यों ने लिखा है कि-
१-आत्मा से बंधे निधत्ति और निकाचित कर्मों (अधिकतम कड़े कर्म, जिन की निर्जरा सरलता से नहीं होती) की निर्जरा भी मात्र देवदर्शन से हो जाती है!उनका निधत्तित्व एवं निकाचितत्व टूट जाता है, मन प्रसन्न होता है
२-दर्शनं देवदेवस्य,दर्शनं पाप नाशनम्! दर्शनं स्वर्गसोपानं,दर्शनं मोक्षसाधनम्!!
अर्थात देव और देवादि का दर्शन;पापों को नष्ट करने वाला है,स्वर्ग के लिए सीड़ी है,वहाँ पहुचने वाला है,और मोक्ष का साधन है!जो मंदिरजी,माता पिता की आज्ञावश अथवा केवल कोरम पूर्ती के लिए जाते है तो देवदर्शन से उनके पापों का नाश नही होता है!जिन्होंने विधि पूर्वक मन लगाकर दर्शन किये उनके लिए स्वर्ग पहुचाने वाला है!जिनके देव दर्शन से,उन जैसे बनने के भाव उत्पन्न होते है उनके लिए यह मोक्ष प्राप्ति का साधन है!
४-मंदिर जी में प्रवेश करते समय ध्यान रखने योग्य बाते -
१-सबसे पहिले मंदिर जी के परिसर में पहुँच कर पैर धोये,मुख की शुद्धि ठन्डे जल से करे!मंदिर जी में प्रवेश कर मुख्य द्वार के दरवाजे/दहलीज को हाथ से स्पर्श कर,हाथ से अपने मस्तक को स्पर्श करे क्योकि मंदिर जी भी जैनियों के पूजनीय नवदेवताओं में,एक देवता-(जिनचैत्यलय) है! फिर तीन बार निसहि: का उच्चारण करे !
१-निसहि: का अर्थ है कि,मैं समस्त सांसारिक विकल्पों का त्याग कर मंदिर जी में प्रवेश कर रहा हूँ !
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