Select Language Sanatan Sanstha Hindi Home > हिन्दू धर्म > हिन्दू देवता > दत्त > भगवान दत्तात्रेयके जन्मका इतिहास एवं कुछ नाम भगवान दत्तात्रेयके जन्मका इतिहास एवं कुछ नाम December 5, 2014दत्त  सारिणी १. भगवान दत्तात्रेय २. भगवान दत्तात्रेयके कुछ नाम ३. जन्मका इतिहास १. भगवान दत्तात्रेय दत्त अर्थात वह जिसने निर्गुणकी अनुभूति प्राप्त की है; वह जिसे यह अनुभूति प्रदान की गई है कि ‘मैं ब्रह्म ही हूं, मुक्त ही हूं, आत्मा ही हूं ।’ २. भगवान दत्तात्रेयके कुछ नाम २ अ. अवधूत : भगवान दत्तात्रेयका एक नाम ‘अवधूत’ भी है । ‘अवधूत’ शब्दकी कुछ व्युत्पत्तियां एवं अर्थ निम्नानुसार हैं । अ · आनंदे वर्तते नित्यम् । (अर्थ : सदैव आनंदमय ही रहनेवाला) व · वर्तमानेन वर्तते । (अर्थ : प्रत्येक क्षण वर्तमानकालमें रहनेवाला) धू · ज्ञाननिर्धूत कल्याणः । (अर्थ : वह जिसका अज्ञान ज्ञानद्वारा पूर्णतः धुल गया हो अर्थात वह जो कल्याणकारी है ।) त · तत्त्वचिन्तनधूत येन । (अर्थ : वह जिसने तत्त्वचिंतनद्वारा अपने अज्ञानको नष्ट कर दिया है ।) २ अ १. अवधूतोपनिषद्में ‘अवधूत’ शब्दका अर्थ इस प्रकार है अ · अक्षरत्व । अवधूत वह है जिसे अक्षरब्रह्मका साक्षात्कार हुआ है । अक्षरत्व अर्थात कार्यस्थिति भी । व · यह ‘वरेण्यत्व’का प्रतीक है । इसका अर्थ है – श्रेष्ठत्वकी, पूर्णत्वकी चरमसीमा । धू · सर्व प्रकारके बंधनोंसे मुक्त, जो किसी भी उपाधि एवं आवरणसे मर्यादित नहीं होता । त · ‘तत्त्वमसि’ महावाक्यका बोधक है । तात्पर्य यह कि स्वरूपमें अखंड भावनासहित विचरनेवाले महापुरुषको ‘अवधूत’की संज्ञा देते हैं । २ अ २. सर्वान् प्रकृतिविकारान् अवधुनोतीत्यवधूतः । (जो सर्व प्रकृतिविकारोंको धो डालता है, नष्ट कर देता है; वह है अवधूत ।) ऐसी उसकी ‘सिद्धसिद्धांतपद्धति’ (६.१) अनुसार व्याख्या है । २ आ. दत्तात्रेय देवताके भक्त ‘अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त ।’ का जयघोष करते हैं । अवधूत अर्थात भक्त । भक्तोंका चिंतन करनेवाले अर्थात भक्तोंके शुभचिंतक श्री गुरुदेव दत्त हैं । २ इ. दत्तात्रेय यह शब्द दत्त+अत्रेयकी संधिसे बना है । दत्तका अर्थ ऊपर दिया ही है । अत्रेय अर्थात अत्रिऋषिके पुत्र । ३. जन्मका इतिहास अत्रि ऋषिकी पत्नी अनसूयाकी पवित्रताकी परीक्षा लेने हेतु ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेश गए । अनसूयाकी पतिव्रताके कारण ब्रह्मा, श्रीविष्णु एवं महेशके अंशोंसे तीन छोटे बालकोंका जन्म हुआ । श्रीविष्णुके अंशसे भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ । यह रूपकात्मक पुराणकथा लोकप्रिय है । उसका अध्यात्मशास्त्रानुसार भावार्थ इस प्रकार है । अ अर्थात नहीं (अ नकारार्थक अव्यय है) एवं त्रि अर्थात त्रिपुटी; अतः अत्रि अर्थात वह जिसमें जागृति -स्वप्न – सुषुप्ति, सत्त्व – रज – तम एवं ध्याता – ध्येय – ध्यानकी त्रिपुटी नहीं है । ऐसे अत्रिकी बुद्धि असूयारहित अर्थात काम-क्रोधरहित, षट्कर्मरहित शुद्ध होती है । उसीको ‘अनसूया’ कहा गया है । ऐसी बुद्धिको ‘अनसूया’ कहा गया है । इस शुद्ध बुद्धिके संकल्पसे ही भगवान दत्तात्रेयका जन्म हुआ । संदर्भ : सनातन-निर्मित लघुग्रंथ ‘दत्त’ Share this on WhatsApp संबंधित लेख भगवान दत्तात्रेयके गुरु एवं उपगुरुदत्तके कार्य एवं विशेषताएंदत्तात्रेय देवताका सात्त्विक चित्रसनातन-निर्मित ‘दत्तात्रेयकी सात्त्विक नामजप-पट्टी’भगवान दत्तात्रेयदत्तात्रेयके नामजपद्वारा पूर्वजोंके कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ? संबंधित ग्रंथ  भगवान दत्तात्रेय प्रमुख तीर्थक्षेत्र कौनसे हैं ?, भगवान दत्तात्रेयके २४ गुरु कौन हैं ?, भगवान दत्तात्रेयके अवतार कौन हैं ? ऑनलाईन ग्रंथ क्रय करने हेतु भेट दें :Sanatanshop.com इस ग्रंथको क्रय करने हेतु ग्रंथपर 'क्लिक' करे ।   Categories Categories  आॅनलार्इन क्रय करें !      Subscribe To Newsletter Subscribe to our mailing list email address  Subscribe Disclaimer l Terms of use l Contact Us l Other Websites l Spiritual Terminology l Sanatan Shop © Sanatan Sanstha - All Rights Reserved Top
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