Search Deepawali Divine Light of Information in Hindi आईफ़ोन 8 की रिलीज़ तारीख कीमत और फीचर | I Phone 8 Release Date Price and Features in hindi राजा विक्रमादित्य का इतिहास | Maharaja Vikramaditya history in hindi Karnika March 16, 2017 कहानिया, लेख Leave a comment tweet   Maharaja Vikramaditya history in hindi राजा विक्रमादित्य भारत के महान शासकों में एक थे. उन्हें एक आदर्श राजा रूप में देखा जाता है. अपनी बुद्धि, अपने पराक्रम, अपने जूनून से इन्होने आर्यावर्त के इतिहास में अपना नाम अमर किया है. इनके पराक्रम की सैकड़ों कहानिया हैं जिसे सुनकर कड़े समय में लोगों को हौसला मिलता है. इन कहानियों के अलावा में दो और रोचक प्रसंग हैं बैताल पच्चीसी और सिंघासन बत्तीसी. इस कहानियों में कई अलौकिक प्रसंग देखने मिलते हैं, जिसपर दौरे- हाज़िर में यक़ीन करना नामुमकिन सा लगता है, परन्तु इन कहानियों का मूल उद्देश्य है जीवन में सफलता और सच्चाई का मार्ग ढूंढना. ये एक ऐसे राजा हुए, जिन्होंने अपने समय को अपने नाम से परिभाषित किया और आज भी इनके नाम से विक्रमी संवत मनाया जाता है. ये एक न्यायप्रिय शासक थे.   राजा विक्रमादित्य का इतिहास Maharaja Vikramaditya history in hindi राजा विक्रमादित्य का जन्म और जीवन (Life history of Raja Vikramaditya)  महाराजा विक्रमादित्य के जन्म को लेकर अलग – अलग इतिहासकारों की अलग- अलग मान्यताएं हैं. फिर भी ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 102 ई पू के आस पास हुआ था. महेसरा सूरी नामक एक जैनी साधू के अनुसार उज्जैन के एक बहुत बड़े शासक गर्दाभिल्ला ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके एक सन्यासिनी का अपहरण कर लिया था, जिसका नाम सरस्वती था. संयासिनी के भाई ने मदद की गुहार लगाने एक शक शासक के दरबार में गया. शक शासक ने उसकी मदद की और युद्ध में गर्दाभिल्ला से उस सन्यासिनी को रिहा कराया. कुछ समय के बाद गर्दाभिल्ला को एक जंगल में छोड़ दिया गया, जहाँ पर वह जंगली जानवरों का शिकार हो गया. राजा विक्रमादित्य इसी गर्दाभिल्ला के पुत्र थे. अपने पिता के साथ हुए दुर्व्यवहार को देखते हुए राजा विक्रमादित्य ने बदला लेने की ठानी. इधर शक शासकों को अपनी शक्ति का अंदाजा हो गया. वो उत्तरी- पश्चिमी भारत में अपना राज्य फैलाने लगे और हिन्दुओं पर अत्याचार करने लगे. शक शासकों की क्रूरता बढती गयी. सन 78 के आस- पास राजा विक्रमादित्य ने शक शासक को पराजित किया और करुर नाम के एक स्थान पर उस शासक की हत्या कर दी. करूर वर्तमान के मुल्तान और लोनी के आस- पास पड़ता है. कई ज्योतिषी और आम लोगों ने इस घटना पर महाराजा को शकारि की ऊपधि दी और विक्रमी संवत की शुरुआत हुई. विक्रम संवत 2073 का इतिहास के बारे में पढ़ें.  इसके साथ एक और प्रसंग जुड़ा है. एक जैन ऋषि के अनुसार शकों को हारने के बाद राजा विक्रमादित्य स्वयं शालिवाहन नामक एक राजा से हार गये थे, और इन्होने 78 ई की स्थापना की, परन्तु ऐसा माना गया है कि दोनों कालों के बीच लगभग 135 साल का अंतर है, अतः दोनों राजा समकालीन नहीं हो सकते. राजा विक्रमादित्य की गौरव गाथाएं (Raja Vikramaditya Story) बृहत्कथा – बृहतकथाओं में इनकी काफ़ी गौरव गाथाएं संगृहीत हैं. ये दसवीं से बारहवीं सदी के बीच रचित ग्रन्थ है. इसमें प्रथम महान गाथा विक्रमादित्य और परिष्ठाना के राजा के बीच की दुश्मनी की है. इसमें राजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन की जगह पाटलिपुत्र दी गयी है. एक कथा के अनुसार राजा विक्रमादित्य बहुत ही न्यायप्रिय राजा थे. उनकी न्यायप्रियता और अन्य करने की बुद्धि से स्वर्ग के राजा इंद्र ने उन्हें स्वर्ग बुलाया था. उन्होंने अपनी एक न्याय प्रणाली में राजा विक्रमादित्य से राय ली थी. स्वर्ग के राजा इन्द्र ने उन्हें स्वर्ग में हो रही एक सभा में भेजा, वहाँ पर दो अप्सराओं के बीच नृत्य की प्रतियोगिता थी. ये दो अप्साराएँ थीं रम्भा और उर्वशी. भगवन इंद्र ने राजा विक्रमादित्य से पूछा कि उन्हें कौन सी अप्सरा बेहतर नर्तकी लगती है. राजा को एक तरकीब सूझी उन्होंने दोनों अप्साराओं के हाथ में एक –एक फूल का गुच्छा दिया और उसपर एक एक बिच्छु भी रख दिया. राजा ने दोनों नर्तकियों को कहा कि नृत्य के दौरान ये फूल के गुच्छे यूँ ही खड़े रहने चाहिए. रम्भा ने जैसे ही नाचना शुरू किया उसे बिच्छु ने काट लिया. रम्भा ने फूल का गुच्छा हाथ से फेंक कर नाचना बंद कर दिया. वहीँ दूसरी तरफ़ जब उर्वशी ने नाचना शुरू किया तो वह बहुत ही अच्छी तरह अति सुन्दर मुद्राओं में नाची. फूल पर रखे बिच्छु को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी, जो बहुत आराम से सो गया और उर्वशी को बिच्छु का डंक नहीं सहना पड़ा. राजा विक्रमादित्य ने कहा कि उर्वशी ही बहुत काबिल और रम्भा से बेहतर नर्तकी है. न्याय की इस बुद्धि और विवेकशीलता को देख कर भगवान् इंद्र उनसे बहुत ही प्रसन्न और आश्चर्यचकित हुए. उन्होंने राजा विक्रमादित्य को 32 बोलने वाली मूर्तियाँ भेंट की. ये मुर्तिया अभिशप्त थीं और इनका शाप किसी चक्रवर्ती राजा के न्याय से ही कट सकता था. इन 32 मूर्तियों के अपने नाम थे. इनके नाम क्रमशः रत्नमंजरी, चित्रलेखा, चन्द्रकला, कामकंदला, लीलावती, रविभामा, कौमुधे, पुष्पवती, मधुमालती, प्रभावती, त्रिलोचना, पद्मावती, कीत्रिमती, सुनैना, सुन्दरवती सत्यवती, विध्यति, तारावती, रूप रेखा, ज्ञानवती, चन्द्रज्योति, अनुरोधवती, धर्मवती, करुणावती, त्रिनेत्र, मृगनयनी, वैदेही, मानवती, जयलक्ष्मी, कौशल्या, रानी रूपवती थे, इन प्रतिमाओं की सुन्दरता का वर्णन समस्त ब्रम्हाण्ड में विख्यात था.  राजा विक्रमादित्य की गाथाएं संस्कृत के साथ कई अन्य भाषाओँ की कहानियों में भी देखने मिलते हैं. उनके नाम कई महागाथाओं और कई ऐतिहासिक मीनारों में देखने मिलते हैं, जिनका ऐतिहासिक विवरण तक नहीं मिल पाता है. इन कहानियों मे विक्रम बैताल और सिहासन बत्तीसी की कहानियाँ अति रोचक महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक है. इन काहनियो में कहीं कहीं अलौकिक घटनाएँ भी देखने मिलती हैं. इन घटनों पर हालाँकि 21 वीं सदी में विश्वास करना कुछ नामुमकिन सा लगता है, लेकिन इन कहानियों का मूल सरोकार न्याय की स्थापना से था. बैताल पच्चीसी में कुल 25 कहानियाँ हैं और सिंहासन बत्तीसी में कुल बत्तीस न्यायपूर्ण कहानियां हैं. बैताल पच्चीसी – बैताल पच्चीसी में एक बैताल की कहानी है. एक साधू राजा विक्रमादित्य को उस बैताल को बिना एक शब्द कहे पेड़ से उतार कर लाने को कहता है. राजा उस बैताल की तलाश में जाते हैं और उसे ढूंढ भी लेते हैं. बैताल रास्ते में हर बार एक कहानी सुनाता है और उस कहानी के बीच से एक न्यायपूर्ण सवाल पूछता है, साथ ही विक्रम को ये श्राप देता है कि जवाब जानते हुए भी न बताने पर उसका सर फट जाएगा. राजा विक्रमादित्य न चाहते हुए भी उसके सवाल का जवाब देते हैं. साधू का विक्रम द्वारा एक शब्द भी न कह कर विक्रम को लाने का प्रण टूट जाता है, और बैताल वापिस उसी पेड़ पर रहने चल जाता है. इस तरह से इस माध्यम से पच्चीस कहानियाँ वहाँ पर मौजूद हैं. सिंहासन बत्तीसी – इसी तरह सिंहासन बत्तीसी में राजा विक्रमादित्य के राज्य को जीतने की कहानी है. एक बार राजा विक्रमादित्य अपना राज्य हार जाते हैं. उनकी वह बत्तीस बोलने वाली मूर्तियाँ उनके राज्य में तब भी रहती हैं. वह मूर्तियाँ राजा भोज से अलग- अलग कहानियाँ सुनाकर सवाल करती हैं और राजा भोज को सिंहासन पर बैठने से रोकती हैं. राजा इस तरह बत्तीस कहानियों से निकले सवालों का जवाब देता है और अंततः सिंहासन जीतने में सफ़ल हो जाता है. नवरत्न – राजा विक्रमादित्य के दरबार में नौ बहुत महान विद्वान् थे, जोकि धन्वन्तरी, क्षपंका, अमर्सिम्हा, शंखु, खाताकर्पारा, कालिदास, भट्टी, वररुचि, वराहमिहिर थे. ये सभी अपने अपने क्षेत्र के महान विद्वान् थे. वराहमिहिर आयुर्वेद के महान ज्ञाता थे, कालिदास महान कवि, वररुचि वैदिक ग्रंथों के ज्ञाता, भट्टी राज्नीत्विद थे. भविष्यत् पुराण की मान्यताओं के आधार पर भगवान शिव ने विक्रमादित्य को पृथ्वी पर भेजा था. शिव की पत्नी पार्वती ने बेताल को उनकी रक्षा के लिए और उनके सलाहकार के रूप में भेजा. बैताल की कहानियों को सुनकर राजा ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया, उस यज्ञ के बाद उस घोड़े को विचरने के लिए छोड़ दिया गया, जहाँ जहाँ वह घोड़ा गया राजा का राज्य वहाँ तक फ़ैल गया. पश्चिम में सिन्धु नदी, उत्तर में बद्रीनाथ, पूर्व में कपिल और दक्षिण मे रामेश्वरम तक इस राजा का राज्य फ़ैल गया. राजा ने उस समय के चार अग्निवंशी राजाओं की राजकुमारियों से विवाह कर अपने राज्य को और मजबूत कर लिया. राजा विक्रमादित्य द्वारा स्थापित राज्य में कुल 18 राज्य थे. विक्रमादित्य की इस सफलता पर सभी सूर्यवंशी खुश थे और चंद्रवंशी राज्यों में कोई ख़ुशी नहीं थी. इसके बाद राजा ने स्वर्ग का रुख किया. ऐसा माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य कलियुग के आरम्भ में कैलाश की ओर से पृथ्वी पर आये थे. उन्होंने महान साधुओं का एक दल बनाया जो पुराण और उप पुराण का पाठ किया करते थे. इन साधुओं में गोरखनाथ, भर्तृहरि, लोमहर्सन, सौनाका आदि प्रमुख थे. इस तरह न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य ने अपने पराक्रम से लोगों की रक्षा भी की और साथ ही सदा धर्म स्थापना के कार्य में लगे रहे. अन्य पढ़ें – भारत के प्रमुख व्रत पर्व व् त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के महीनों के नाम व् उनका महत्व कार्तिक मास महत्व व्रत कथा एवं पूजा विधि  About Latest Posts  Karnika कर्णिका दीपावली की एडिटर हैं इनकी रूचि हिंदी भाषा में हैं| यह दीपावली के लिए बहुत से विषयों पर लिखती हैं |यह दीपावली की SEO एक्सपर्ट हैं,इनके प्रयासों के कारण दीपावली एक सफल हिंदी वेबसाइट बनी हैं tweet  Previous यूट्यूब और उससे पैसे कमाने का तरीका | How to Earn Money From Youtube in hindi Next मनोज सिन्हा का जीवन परिचय | Manoj Sinha biography in hindi Related Articles  1942 भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण | Causes of Quit India Movement in hindi | Bharat Chhodo Andolan Ke Karan 3 weeks ago  धृतराष्ट्र पांडू और विदुर का जन्म और उनके विवाह | Dhritarashtra Pandu Vidura birth and marrige in hindi July 26, 2017  पृथ्वी दिवस का महत्व | Earth Day Importance in hindi June 9, 2017 Leave a Reply Your email address will not be published. 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