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गायत्री साधना के जरिए जगाएं अपनी आंतरिक शक्ति को, जानें विधि
9 months ago
मां गायत्री, परमात्मा की वह इच्छा शक्ति हैं, जिसके कारण सारी सृष्टि चल रही है। छोटे से परमाणु से लेकर पूरे विश्व-ब्रह्मण्ड तक व नदी-पर्वतों से लेकर पृथ्वी, चांद व सूर्य तक सभी उसी की शक्ति के प्रभाव से गतिशील हैं। आमतौर पर यह परम शक्ति मनुष्य के दिल-दिमाग की गहराइयों में सोई रहती हैं। इसको जिस विधि से जगाया जाता है, उसको ही 'गायत्री साधना' कहते हैं। इसके जागने पर मनुष्य का संबंध ईश्वरीय शक्ति से जुड़ जाता है।
प्रतीकात्मक चित्र
अगर आप भी मां गायत्री की शक्ति को जाग्रत करना चाहते हैं तो नि:संदेह आपको गायत्री साधना की ओर बढ़ना होगा। गायत्री साधना शुरू करने वालों के लिए कुछ आवश्यक जानकारियां दी जा रही है :
गायत्री साधना के लिए प्रात:काल का समय सर्वोत्तम है। सूर्योदय से 1 घंटा पूर्व से लेकर 1 घंटा बाद तक के दो घंटे उपवास के लिए सर्वोत्तम हैं।शरीर को शुद्ध करके साधना पर बैठना चाहिए। स्नान करना सबसे उपयुक्त है किन्तु स्वास्थ्य कारणों या यात्रा में होने पर शरीर को गीले कपड़े से पोंछकर भी साधना में बैठा जा सकता है।साधना के लिए एकांत, शांतिमय और शुद्ध हवा मिले, ऐसा स्थान ढूंढना चाहिए।कुश, खजूर, बेल आदि बनस्पतियों के बने हुए आसन उत्तम माने गये हैं।गायत्री जप के लिए तुलसी या चंदन की माला का प्रयोग करें।आसन पर रीढ़ की हड्डी को सीधी रखकर पद्मासन अवस्था में बैठें।प्रात:काल की साधना पूर्व की और और सायंकाल की साधना के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। पास में जल का भरा हुआ पात्र रख लें और आरंभ में ब्रह्म-संध्या करें।
गायत्री साधना से पहले ब्रह्म-संध्या ऐसे करें
पवित्रीकरण : बाएं हाथ में हल लेकर उसे दाहिने हाथ में लें। गायत्री मंत्र पढ़कर उस जल को सारे शरीर पर छिड़कें।
आचमन : जल भरे हुए पात्र में से दाहिने हाथ की हथेली पर जल लेकर उसका तीन बार आचमन करें। आचमन के समय गायत्री मंत्र पढ़ें। तीन आचमन का तात्पर्य गायत्री की ह्रीं - सत्व प्रधान, श्रीं - समृद्धि प्रधान और क्लीं - बल प्रधान शक्तियों का मातृ दुग्ध की तरह पान करना है।
शिखा बंधन : आचमन के बाद शिखा को जल से गीला करके इसमें ऐसी गांठ लगानी चाहिए जो सिरा खींचने से खुल जाए। इसे आधी गांठ कहते हैं। गांठ लगाते समय गायत्री मंत्र का उच्चारण करते जाना चाहिए। शिखा बंधन का उच्चारण प्रयोजन ब्रह्मरंध्र में स्थित शतदल चक्र की सूक्ष्म शक्तियों का जागरण करना है।
प्राणायाम :
स्वस्थचित्त से बैठिए, मुख को बंद कर लीजिए, नेत्रों को बंद या अधखुला रखिए, अब सांस को धीरे-धीरे नाक द्वारा भीतर खींचना आरम्भ कीजिए और 'ॐ भूर्भुव:स्व' इस मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते चलिए और भावना कीजिए कि 'विश्वव्यापी, दु:ख-नाशक, सुख स्वरूप ब्रह्म की चैतन्य प्राणशक्ति को मैं नासिका द्वारा आकर्षित कर रहा हूं।' इस भावना को इस मंत्र के साथ धीरे-धीरे सांस खींचिए और जितनी अधिक वायु भीतर भर सकें भर लीजिए।अब वायु को भीतर रोकिए और ''तत्सवितुर्वरेण्यं'' इस भाग का जप कीजिए साथ ही भावना कीजिए कि ''नासिका द्वारा खींचा हुआ वह प्राण श्रेष्ठ है। सूर्य के समान तेजस्वी है। इसका तेज मेरे अंग-प्रत्यंग में, रोम-रोम में भरा जा रहा है।'' इस भावना के साथ पूरक की अपेक्षा आधे समय तक वायु को रोक रखें।अब नासिका द्वारा वायु को धीरे-धीरे निकालना आरंभ कीजिए और ''भर्गो देवस्य धीमहि'' इस मंत्र भाग को जपिये तथा भावना किजिए कि ''यह दिव्य प्राण मेरे पापों को नाश करता हुआ विदा हो रहा है।'' वायु को निकालने में प्राय: उतना समय लगाना चाहिए जितना कि वायु खींचने में लगा था।जब भीतर वायु बाहर निकल जावे तो जितनी देर वायु को भीतर रोक रखा था उतनी ही देर बाहर रोक रखें अर्थात् बिना सांस लिए रहें और ''धियो योन: प्रचोदयात्'' इस मंत्र को जपते रहें। साथ ही भावना करें कि ''भगवती वेदमाता आद्यशक्ति गायत्री हमारी सद्बुद्धि को जाग्रत कर रही हैं।''
यह एक प्राणायाम हुआ। अब इसी प्रकार पुन: इन क्रियाओं की पुनरुक्ति करते हुए दूसरा प्राणायाम करें। सन्ध्या में यह पांच प्राणायाम करने चाहिए, जिनमें शरीर स्थिर प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान नामक पांचों प्राणों का व्यायाम, प्रस्फुरण और परिमार्जन हो जाता है।
न्यास : बाएं हाथ की हथेली पर जल लेकर दाहिने हाथ की पांचों उंगलियां इकट्ठी कर उन्हें जल में डुबाकर निम्न प्रकार अंग स्पर्श करें।
ॐ भूर्भुव: स्व: - भूर्घायैतत्सवितु - नेत्राभ्यांवरेण्यं - कर्णाभ्यांभर्गो - मुखायदेवस्य - कंठायधीमहि - हृदयायधियो योन: नाभ्यैप्रचोदयात - हस्त पादाभ्यांयह पंच कर्म पवित्रीकरण, आचमन, शिखाबंधन, प्राणायाम, न्यास को पूरा करने के पश्चात् माता गायत्री और पिता आचार्य को ध्यान द्वारा मानसिक प्रणाम करना चाहिए। यदि दोनों चित्र हों तो केवल प्राणायाम करके अथवा धूप, अक्षत, नैवेद्य, पुष्प, चंदन आदि मांगलिक द्रव्यों से पूजन करके जप आरंभ कर देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्रों की एक माला तो जपनी चाहिए। इससे अधिक सुविधानुसार जितना हो सके उत्तम है।
आप देख सकते हैं भगवती की मुस्कुराती छवि
जपकाल में ध्यान मुद्रा रखते हुए नेत्र अर्ध खुले रहने चाहिए। मस्तिष्क के मध्य में दीपक की लौ के समान तेज स्वरूप दिव्य शक्ति गायत्री का ध्यान करना चाहिए। इस तेज स्वरूप ज्योति के मध्य में कभी-कभी भगवती की मुस्कराती दिव्य मुखकृति साधक को दिखाई पड़ती है।
देवी को करें विदा
जप पूरा हो जाने पर भगवती को प्रणाम करके उनसे विसर्जित होने की प्रार्थना करनी चाहिए और उठकर उस समय सूर्य जिस दिशा में हो उस दिशा में जल का अर्घ दे देना चाहिए। यह नित्यप्रति की सर्व सुलभ साधना है।
इसमें किसी विशेष प्रकार का प्रतिबंध नहीं है पर जहां तक बन पड़े सात्विक आहार बिहार रखना ही उचित है, क्योंकि माता सतोगुणी बालकों से ही प्रसन्न रहती हैं।
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