Friday, 18 August 2017

अमरकथा तोते वाली

अमरकथा तोते वाली - Amar Nath Ki Amar Katha होम अमर कथा महाशिवरात्री 2018 सम्पूर्ण प्रदोष व्रत  अमरकथा यह अमर कथा माता पार्वती तथा भगवान शंकर का सम्वाद है। स्वयं श्री सदाशिव इस कथा को कहने वाले हैं। यह प्राचीन धर्म ग्रंथों से ली गई है, जिनमें भृंगु संहिता, निलमत पुराण और लावनी-ब्रह्मज्ञान उल्लेखनीय हैं। यह लोक व परलोक का सुख देनेवाली मानी गई है। स्वयं शिवजी द्वारा दिये गये वरदान के अनुसार इस कथा को श्रद्धापूर्वक पढ़ने या सुनने वाला मनुष्य शिवलोक को प्राप्त करता है। श्री अमरनाथ की गुफा का रहस्य माता पार्वती को अमरकथा सुनाने के लिये, श्री शंकर जी ने अमरनाथ की गुफा को हीं क्यों चुना ? युगों पहले, जब पार्वती के मन में यह शंका उत्पन्न हुई कि शंकर जी ने अपने गले में मुण्डमाला क्यों और कब धारण की है, तो शंकर जी ने उत्तर दिया कि – हे पार्वती ! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ उतने ही मुण्ड मैंनें धारण कर लिए। इस पर पार्वती जी बोलीं कि मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप अमर हैं, इसका कारण बताने की कृपा करें। भगवान शिव ने रहस्यमयी मुस्कान भरकर कहा- यह तो अमरकथा के कारण है। ऐसा सुनकर पार्वती के मन में भी अमरत्व प्राप्त कर लेने की इच्छा जागृत हो उठी और वह अमर कथा सुनाने का आग्रह करने लगीं। कितने ही वर्षों तक शिवजी इसको टालने का प्रयत्न करते रहे, परंतु पार्वती के लगातार हठ के कारण उन्हें अमरकथा को सुनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। परन्तु समस्या यह थी कि कोई अन्य जीव उस कथा को ना सुने। अत: किसी एकांत व निर्जन स्थान की खोज करते हुए श्री शंकर जी पार्वती सहित, अमरनाथ की इस पर्वत मालाओं में पहुँच गये। इस “ अमर-कथा ” को सुनाने से पहले भगवान शंकर यह सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि कथा निर्विघ्न पूरी की जा सके, कोई बाधा ना हो तथा पार्वती के अतिरिक्त अन्य कोई प्राणी उसे न सुन सके। उचित एवं निर्जन-स्थान की तलाश करते हुए वे सर्वप्रथम “पहलगाम” पहुँचे, जहाँ उन्होंने अपने नंन्दी (बैल) का परित्याग किया। वास्तव में इस स्थान का प्राचीन नाम बैल-गाँव था, जो कालांतर में बिगड़कर तथा क्षेत्रीय भाषा के उच्चारण से पहलगाम बन गया।  तत्पश्चात् “ चदंनबाड़ी ” में भगवान शिव ने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। “ शेषनाग” नामक झील पर पहुँचे कर उन्होंने, अपने गले से सर्पों की मालाओं को भी उतार दिया। इसी कथा के आधारभूत शेषनाग-पर्वत पर नागों की अकृतियाँ विद्यमान हैं। हाथी के सिर व सूंड वाले प्रिया –पुत्र, श्री गणेश जी को भी उन्होंने “ महगुनस-पर्वत” पर छोड़ देने का निश्चय किया। जिस स्थान का प्राचीन एवं शुद्ध उच्चारण महा-गणेश था, जो धीरे-धीरे, सम्भवत: काश्मीरी भाषा के प्रभाव से, महागुनस हो गया। फिर- “पंचरत्नी” नामक स्थान पर पहुँच कर शिव ने पंच-तत्वों (पृथवी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का परित्याग कर दिया । भगवान् शिव इन्हीं पंच-तत्वों के स्वामी माने जाते हैं जिनको उन्होंने श्री अमरनाथ गुफा में प्रवेश से पहले छोड़ दिया था। इसके पश्चात् शिव-पार्वती ने इस पर्वत – श्रृंखला में ताण्डव – नृत्य किया था। ताण्डव – नृत्य वास्तव में सृष्टि के त्याग का प्रतीक माना गया। सब कुछ छोड़छाड़ कर, अंत में भगवान शिव ने श्री अमरनाथ की इस गुफा में, पार्वती सहित प्रवेश किया और मृगछाला बिछाकर पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाने के लिये ध्यान मग्न होकर बैठ गये। लेकिन इससे पहले उन्होंने कलाग्नि नामक रुद्र को प्रकट किया और आज्ञा दी- “ चहुँ ओर ऐसी प्रचण्ड - अग्नि प्रकट करो, जिसमें समस्त जीवधारी जल कर भस्म हो सकें ”कलाग्नि ने ऐसा हीं किया। अब संतुष्ट होकर सिव ने अमरकथा कहनी शुरु की, परंतु उनकी मृगछाला के नीचे, तोते का एक अण्डा ( अण्डा भस्म नहीं हुआ : इसके दो कारण थे। एक तो मृगछाला के नीचे होने से शिव की शरण पाने के कारण और दूसरा अण्डा जीवधारियों के श्रेणी में नहीं आता) फिर भी बच गया था, जिसने अण्डे से बाहर आकर अमरकथा को सुन लिया।  अमर कथा प्रारम्भ Next......⇒.....आगे  क्या हुआ जब रावण ने भोलेनाथ से पार्वती माता को माँगा ? ⇒. Contact Sitemap © 2016 , HTTP://AMARKATHA.IN , ALL RIGHTS RESERVED

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