Thursday, 17 August 2017

शब्द के सही अर्थ और संदर्भित भाव को लेना आव्श्यक ह

शब्द के सही अर्थ और संदर्भित भाव को लेना आव्श्यक है  अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है ।

वैसे भी घटीया दिमाग घुटनों के उपर और कमर के नीचे ही अटका होता है । उपर आ ही नही पाता । ऐसे दिमाग वाले लोगों मां को कहते हैं की मेरे बाप के साथ बिस्तर पर सोने वाली महीला जिसके कारण मे दुनिया में आया हुं ।

या कभी ये घटीया दिमाग वाले लोग अपनी बेटी की शादी करेंगे तो कहेंगे की

"मेने एक लड़के के बिस्तर के लिये अपनी पैदा की हुई लड़्की पेश की है खुब खाना खिलाउंगा ढोल ढमाके बजवाउंगा सब लोग आना खुब मजे करना. ।
:) :)  "

शब्द का सही संदर्भित अर्थ करने की क्षमता ही एक व्यक्ती को विज्ञ या ब्राह्मण बनाती न की सिर्फ अर्थ करने वाली क्षमता ।

पोस्टकर्ता से वितनी है की ..ये ऐसी बकवास न करें शब्द को सही संदर्भ में समझें और उसे वैसा ही प्रसारित करें नही तो शादी और जायज वैश्यावृत्ती में कोइ अंतर नही है ।
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श्रीमद भगवदगीता के  १८ वाँ अध्याय के  एक श्लोक से लिए एक  शब्द पर
चर्चा

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना |  करणं कर्म कर्तेति
त्रिविध :कर्मसंग्रह:||१८ ||

अर्थ - कार्य का ज्ञान ,ज्ञान  का विषय (ज्ञेय) और ज्ञाता --- ये तीन
कर्म की प्रेरणा हैं तथा करण अथार्त इन्द्रियाँ ,क्रिया और कर्ता अथार्त
प्रक्रति के तीनो गुण ---ये तीन कर्म के अंग हैं .

श्रीमद भगवद्गीता के १८ वें अध्याय के इस श्लोक में जो शब्द कर्मचोदना
आया है वो कर्म और चोदना से मिलकर बना है .चोदना शब्द संस्कृत के शब्कोष में देखा तो पता चला की 'चुद' इसका मूल धातु है . इस शब्द का सही अर्थ है अभिप्रेरणा .मेरे मन में एक जिज्ञासा आई कि आज के समाज में ' चोदना' शब्द का जो  अर्थ है वो कहाँ से आया ? और गीता में इस शब्द के आगे कर्म लगा है जिसका अर्थ है कर्म की अभिप्रेरणा .

बिलकुल सही है। चोदने का अर्थ प्रेरणा है.. गायत्री मंत्र में भी इसी अर्थ में
आता है..

लेकिन चुद्‍ धातु के और भी अर्थ हैं- निर्देश देना, आगे फेंकना,  हाँकना,
धकेलना, ठेलना, स्फूर्ति देना, उकसाना, मार्ग प्रदर्शित करना, शीघ्रता करना,
इसके अलावा पूछना और प्रस्तुत करना भी इसके अर्थ के रूप में आप्टे जी ने दिया है। गालियों में आने से पहले इसे प्रजनन के अर्थ में देखिये.. गर्भ धारण के लिए प्रेरित करना या बीज को आगे फेंकना, या धकेलना।

गुप्त गतिविधियों के साथ हमेशा ऐसा हे होता है, एक पीढ़ी उसके लिए एक शालीन शब्द लेकर आती है ताकि कोई 'गन्दा' भाव मन में आने पाए लेकिन अगली पीढ़ी तक आते-आते वही शब्द गन्दगी का प्रतीक बन जाता है। 'चोदना' एक ऐसा शब्द है ही जो कभी ऐसा शास्त्रीय शब्द होता था कि जिसे गीता और गायत्री मंत्र में प्रयोग किया गया और दूसरा ऐसा शब्द 'टट्टी'.. जिसका मूल अर्थ बाँस की खपच्ची है। इन्ही खपच्चियों को, टट्टियों को अंग्रेज़ लोग गाँव-क़स्बों आदि में, जहाँ उनके लिए बनाए गए स्थायी शौचालय उपलब्ध नहीं थे,  अपने मलत्याग करने हेतु बनाए गए अस्थायी कमोड के चारो ओर लगवाया करते थे। आज भी टट्टी का दूसरा अर्थ शेष है खस की टट्टी आदि जैसे प्रयोगों में। उसी टट्टी की आड़ मलत्याग के उस पूरे कर्म की आड़ बन कर विकसित हुई लेकिन अब एक गन्दा शब्द बन चुकी है।

https://groups.google.com/forum/#!topic/shabdcharcha/gqNvUykbseY

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