site-name .wikidot.com Share on       Explore » ज्योतिष सीखिये Vedic-Astrology Horery-Astrology  Search this site Search Create account or Sign in   You can ask your question through Astrobhadauria or you can ask through email astrobhadauria@gmail.com भविष्यफ़ल 2012 मूक प्रश्न विचार विवाह मुहूर्त नाडी ज्योतिष संक्षेप में मंत्रात्मक-सप्तशती वैदिक शिव-पूजा कुंडली बनाना और फ़लादेश करना लालकिताब की आचार संहिता श्रीगणेश वन्दना मास अयन योग करण पितृदोष और उसके उपाय नजर-दोष (शैतानीं-आंख समस्या का समाधान बुधशनि का सुख धन आने का समय शक्तिशाली यंत्र मुहूर्त विचार व्यवसाय नौकरी गुरु का राशि-परिवर्तन ज्योतिष का जादू अपनी जन्म पत्री बनाइये तलिस्मान रामेश्वरम यात्रा दुर्गा-पूजा विधान महामृत्युंजय मंत्र गर्भाधान का निश्चित समय ब्रह्माण्ड विवेचन ईश्वरीय शक्ति से धन राहु का नशा विवाह-मुहूर्त बक्री बुध बक्री शनि चुनाव जीतने का फ़ार्मूला भारत की राजनीति लक्ष्मी पूजा (दीपावली) विवाह-योग ज्योतिष में भाव से भाव तक कोर्ट-केश और ज्योतिष नामराशि का प्रभाव जन्म समय हाथ पर लिखा है ज्योतिष से खोयी वस्तु खोजें दैविक कार्य और कलश स्थापना विवाह और सातवां भाव केतु की औकात आस्ट्रो-मैरिज-ब्यूरो देवी ऋण की व्याख्या श्राद्ध विवेचन प्रश्न और उत्तर धन प्राप्ति के लिये कुबेर साधना मनपसन्द सन्तान की प्राप्ति ग्रह और बीमारियाँ व्यवसाय में फ़लदायी मंत्र मंत्र चिकित्सा से लाभ नागदेवता का प्रभाव शुक्र का असर भरपूर वास्तु और सुखीजीवन शनि देव के जाप और मंत्र सम्पूर्ण जन्म कुन्डली की विवेचना नारद पुराण कृत वास्तु केरलीय रीति से प्रश्न विचार लक्ष्मी का कारक शुक्र सूर्य राज्य का कारक राहु यानी रूह ही रोके राह मंगली दोष की सीमा नाडी ज्योतिष में नाडियों के अंश ज्योतिष से धन भारत के प्रति भविष्य वाणी अपना भविष्य जानिये ज्योतिष से ग्रह उपचार जन्म समय से विवेचन जन्म कुन्डली आस्ट्रोभदौरिया के बारे में यन्त्रों से ज्योतिषीय उपचार लालकिताब एक उत्तम ग्रहों का उपचार लालकिताब के सिद्धान्त लालकिताब के भाव लालकिताब से ग्रह उपचार लालकिताब के मुख्य बिन्दु लालकिताब से जन्म कुन्डली का विवेचन लालकिताब से ग्रह प्रकृति लालकिताब से योग द्रिष्टि लालकिताब से ग्रह और भाव विचार लालकिताब हिन्दी में डाउनलोड करें वेदेश में व्यापार मेष राशि और व्यवसाय वृष राशि और व्यवसाय मिथुन राशि और व्यवसाय कर्क राशि और व्यवसाय सिंह राशि और व्यवसाय कन्या राशि और व्यवसाय तुला राशि और व्यवसाय वृश्चिक राशि और व्यवसाय धनु राशि और व्यवसाय मकर राशि और व्यवसाय कुम्भ राशि और व्यवसाय मीन राशि और व्यवसाय शनि और प्रभाव गुरु के ज्योतिषीय उपचार राहु परेशानियों का कारक प्रश्नो के उत्तर गोचर से ग्रह-फ़ल वर्ष कुण्डली से गोचर-फ़ल पुरुष कुण्डली में ग्रह-फ़ल स्त्री कुण्डली में ग्रह-फ़ल जन्म लगन निर्णय चौघडियां मुहूर्त ज्योतिष सीखिये रामशलाका प्रश्नावली रामचरितमानस के मंत्र कालसर्प दोष निवारण भगवान दत्तात्रेय की उपासना कुन्डली विवेचन के सौ तरीके मूल नक्षत्र और मूल शांति के उपाय राहुदेव की करामात सही जन्म और घटना मंगल देता है सजा हत्यारा बनाने वाले ग्रह पितर पूजा से शुरु हुआ धर्म राहु की दशा हीन भावना इच्छाशक्ति पुरुष धनात्मक स्त्री ऋणात्मक विश्वास से मिलने वाली सहायता हनुमान पूजा और वैज्ञानिक तथ्य अजपा जाप मंगल से नही है अमंगल मूक प्रश्न विचार बालारिष्ट योग शरीर से चरित्र की जानकारी ऊँ और स्वास्तिक का महत्व सूर्य साधना इस साइट से कोई भी लेख कापी करना,किसी दूसरे स्थान पर छापना,कानूनी अपराध है,दोषी पाये जाने पर समस्त हर्जे खर्चे का भुगतान देना होगा,समस्त विषयों के लिये न्याय क्षेत्र जयपुर होगा. Site Manager edit this panel Reading Charges  सर्व सम्पत्ति और सुख प्रदान करता "श्री दत्तात्रेय" श्री दत्तात्रेय उपासना  भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है,और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफ़ल और जल्दी से फ़ल देने वाली है,महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे,वे सर्वव्यापी है,और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है,अगर मानसिक,या कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो भक्त किसी भी कठिनाई से बहुत जल्दी दूर हो जाते है. श्री दत्तात्रेय की उपासना विधि श्री दत्तात्रेय जी की प्रतिमा,चित्र या यंत्र को लाकर लाल कपडे पर स्थापित करने के बाद चन्दन लगाकर,फ़ूल चढाकर,धूप की धूनी देकर,नैवेद्य चढाकर दीपक से आरती उतारकर पूजा की जाती है,पूजा के समय में उनके लिये पहले स्तोत्र को ध्यान से पढा जाता है,फ़िर मन्त्र का जाप किया आता है,उनकी उपासना तुरत प्रभावी हो जाती है,और शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है,साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा,दिव्य प्रकाश के द्वारा,या साक्षात उनके दर्शन से होता है,साधना के समय अचानक स्फ़ूर्ति आना भी उनकी उपस्थिति का आभास देती है,भगवान दत्तात्रेय बडे दयालो और आशुतोष है,वे कहीं भी कभी भी किसी भी भक्त को उनको पुकारने पर सहायता के लिये अपनी शक्ति को भेजते है. श्री दत्तात्रेय की उपासना में विनियोग विधि  पूजा करने के आरम्भ में भगवान श्री दत्तात्रेय के लिय आवाहन किया जाता है,एक साफ़ बर्तन में पानी लेकर पास में रखना चाहिये,बायें हाथ में एक फ़ूल और चावल के दाने लेकर इस प्रकार से विनियोग करना चाहिये- "ऊँ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषि: अनुष्टुप छन्द:,श्री दत्त परमात्मा देवता:, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोग:",इतना कहकर दाहिने हाथ से फ़ूल और चावल लेकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा,चित्र या यंत्र पर सिर को झुकाकर चढाने चाहिये,फ़ूल और चावल को चढाने के बाद हाथों को पानी से साफ़ कर लेना चाहिये,और दोनों हाथों को जोडकर प्रणाम मुद्रा में उनके लिये जप स्तुति को करना चाहिये,जप स्तुति इस प्रकार से है:-"जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम। सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥" श्री दत्तात्रेयजी का जाप करने वाला मंत्र पूजा करने में फ़ूल और नैवेद्य चढाने के बाद आरती करनी चाहिये और आरती करने के समय यह स्तोत्र पढना चाहिये:- जगदुत्पति कर्त्रै च स्थिति संहार हेतवे। भव पाश विमुक्ताय दत्तात्रेय नमो॓ऽस्तुते॥ जराजन्म विनाशाय देह शुद्धि कराय च। दिगम्बर दयामूर्ति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ कर्पूरकान्ति देहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च। वेदशास्त्रं परिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ ह्रस्व दीर्घ कृशस्थूलं नामगोत्रा विवर्जित। पंचभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ यज्ञभोक्त्रे च यज्ञाय यशरूपाय तथा च वै। यज्ञ प्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णु: अन्ते देव: सदाशिव:। मूर्तिमय स्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ भोगलयाय भोगाय भोग योग्याय धारिणे। जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूप धराय च। सदोदित प्रब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ जम्बूद्वीपे महाक्षेत्रे मातापुर निवासिने। जयमान सता देवं दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ भिक्षाटनं गृहे ग्रामं पात्रं हेममयं करे। नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वक्त्रो चाकाश भूतले। प्रज्ञानधन बोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ अवधूत सदानन्द परब्रह्म स्वरूपिणे। विदेह देह रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ सत्यरूप सदाचार सत्यधर्म परायण। सत्याश्रम परोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ शूल हस्ताय गदापाणे वनमाला सुकंधर। यज्ञसूत्रधर ब्रह्मान दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ क्षराक्षरस्वरूपाय परात्पर पराय च। दत्तमुक्ति परस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ दत्तविद्याठ्य लक्ष्मीशं दत्तस्वात्म स्वरूपिणे। गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ शत्रु नाश करं स्तोत्रं ज्ञान विज्ञान दायकम।सर्वपाप शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ इस स्तोत्र को पढने के बाद एक सौ आठबार "ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां ऊँ द्रां " का जाप मानसिक रूप से करना चाहिये.इसके बाद दस माला का जाप नित्य इस मंत्र से करना चाहिये " ऊँ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा"। दत्त स्वरूप चिंता ब्रह्मा विष्णु और महेश की आभा में दत्तात्रेय जी का ध्यान सदा कल्याण कारी माना जाता है। गुरु दत्त के रूप में ब्रह्मा दत्त के रूप में विष्णु और शिवदत्त के रूप में भगवान शिव की आराधना करनी अति उत्तम रहती है। काशी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था,उसने स्वप्न में देखा कि भगवान शिव के तीन सिर है,और तीनों सिरों से वे बात कर रहे है,एक सिर कुछ कह रहा है दूसरा सिर उसे सुन रहा है और तीसरा सिर उस कही हुयी बात को चारों तरफ़ प्रसारित कर रहा है,जब उसने मनीषियों से इस बात का जिक्र किया तो उन्होने भगवान दत्तात्रेय जी के बारे में उसे बताया। दत्तात्रेयजी का कहीं भी प्रकट होना भी माना जाता है,उनके उपासक गुरु के रूप में उन्हे मानते है,स्वामी समर्थ आदि कितने ही गुरु के अनुगामी साधक इस धरती पर पैदा हुये और अपनी अपनी भक्ति से भगवान दत्तात्रेय जी के प्रति अपनी अपनी श्रद्धा प्रकट करने के बाद अपने अपने धाम को चले गये है। दत्तात्रेय की गाथा एक बार वैदिक कर्मों का, धर्म का तथा वर्णव्यवस्था का लोप हो गया था। उस समय दत्तात्रेय ने इन सबका पुनरूद्धार किया था। हैहयराज अर्जुन ने अपनी सेवाओं से उन्हें प्रसन्न करके चार वर प्राप्त किये थे: 1. बलवान, सत्यवादी, मनस्वी, अदोषदर्शी तथा सहस्त्र भुजाओं वाला बनने का 2. जरायुज तथा अंडज जीवों के साथ-साथ समस्त चराचर जगत का शासन करने के सामर्थ्य का। 3. देवता, ऋषियों, ब्राह्मणों आदि का यजन करने तथा शत्रुओं का संहार कर पाने का तथा 4. इहलोक, स्वर्गलोक और परलोक विख्यात अनुपम पुरुष के हाथों मारे जाने का। * कार्तवीर्य अर्जुन (कृतवीर्य का ज्येष्ठ पुत्र) के द्वारा दत्तात्रेय ने लाखों वर्षों तक लोक कल्याण करवाया। कार्तवीर्य अर्जुन, पुण्यात्मा, प्रजा का रक्षक तथा पालक था। जब वह समुद्र में चलता था तब उसके कपड़े भीगते नहीं थे। उत्तरोत्तर वीरता के प्रमाद से उसका पतन हुआ तथा उसका संहार परशुराम-रूपी अवतार ने किया। * कृतवीर्य हैहयराज की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र अर्जुन का राज्याभिषेक होने का अवसर आया तो अर्जुन ने राज्यभार ग्रहण करने के प्रति उदासीनता व्यक्त की। उसने कहा कि प्रजा का हर व्यक्ति अपनी आय का बारहवां भाग इसलिए राजा को देता है कि राजा उसकी सुरक्षा करे। किंतु अनेक बार उसे अपनी सुरक्षा के लिए और उपायों का प्रयोग भी करना पड़ता हैं, अत: राजा का नरक में जाना अवश्यंभावी हो जाता है। ऐसे राज्य को ग्रहण करने से क्या लाभ? उनकी बात सुनकर गर्ग मुनि ने कहा-'तुम्हें दत्तात्रेय का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि उनके रूप में विष्णु ने अवतार लिया है। * एक बार देवता गण दैत्यों से हारकर बृहस्पति की शरण में गये। बृहस्पति ने उन्हें गर्ग के पास भेजा। वे लक्ष्मी (अपनी पत्नी) सहित आश्रम में विराजमान थे। उन्होंने दानवों को वहां जाने के लिए कहा। देवताओं ने दानवों को युद्ध के लिए ललकारा, फिर दत्तात्रेय के आश्रम में शरण ली। जब दैत्य आश्रम में पहुंचे तो लक्ष्मी का सौंदर्य देखकर आसक्त हो गये। युद्ध की बात भुलाकर वे लोग लक्ष्मी को पालकी में बैठाकर अपने मस्तक से उनका वहन करते हुए चल दिये। पर नारी का स्पर्श करने के कारण उनका तेज नष्ट हो गया। दत्तात्रेय की प्रेरणा से देवताओं ने युद्ध करके उन्हें हरा दिया। दत्तात्रेय की पत्नी, लक्ष्मी पुन: उनके पास पहुंच गयी।' अर्जुन ने उनके प्रभाव विषयक कथा सुनी तो दत्तात्रेय के आश्रम में गये। अपनी सेवा से प्रसन्न कर उन्होंने अनेक वर प्राप्त किये। मुख्य रूप से उन्होंने प्रजा का न्यायपूर्वक पालन तथा युद्धक्षेत्र में एक सहस्त्र हाथ मांगे। साथ ही यह वर भी प्राप्त किया कि कुमार्ग पर चलते ही उन्हें सदैव कोई उपदेशक मिलेगा। तदनंतर अर्जुन का राज्याभिषेक हुआ तथा उसने चिरकाल तक न्यायपूर्वक राज्य-कार्य संपन्न किया। अपमानआठवांभावआफ़तेंकन्याकर्ककर्जाकार्यकार्यक्षेत्रकालसर्पकुम्भकुंडलीकेतुगुरुग्यारहवांभावग्रहघरचन्द्रचौथाभावछठाभावजीवनसाथीजुँआजोखिमज्योतिषतीसराभावतुलादसवांभावदुश्मनीदूसराभावधनधनुधर्मनवांभावनाडीज्योतिषपहलाभावपांचवांभावपिताफ़ैसनबारहवांभावबीमारीबुधबृहस्पतिभाग्यभावमकरमिथुनमीनमेषमौतमंगलराशिराहुलगनलाटरीलाभलालकिताबविवाहवृश्चिकवृषवेदोक्तशनिशादीशिक्षाशुक्रशेयरसट्टासातंवाभावसिंहसूर्यहानि Help | Terms of Service | Privacy | Report a bug | Flag as objectionable Powered by Wikidot.com Unless otherwise stated, the content of this page is licensed under Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 License
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