Tuesday, 22 August 2017

पाणिनीय व्याकरण के माहेश्वर सूत्र

मेनू  खोजें हिन्दी तथा कुछ और भी हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की दशा पर फुटकर टिप्पणियां ।  ► पाणिनीय व्याकरण के माहेश्वर सूत्र संस्कृत भाषा विशुद्ध रूप से ध्वन्यात्मक है । इस भाषा के लिए जो लिपि विकसित की गयी उसके मूल में इस बात को महत्त्व दिया गया है कि हर ध्वनि के लिए ऐसा चिह्न हो जो एक और मात्र एक ध्वनि को असंदिग्ध रूप से निरूपित करे । (आज यह देवनागरी है जो कदाचित् किसी मूल – ब्राह्मी अथवा उससे भी पूर्ववर्ती – लिपि के निरंतर परिवर्तन के बाद अंततः प्रतिष्ठित लिपि है ।) इस भाषा का व्याकरण उसकी ध्वनियों को केंद्र में रखते हुए विकसित हुआ है । संस्कृत का मान्य व्याकरण महर्षि पाणिनि के सूत्रबद्ध नियमों पर आधारित है । इन सूत्रों में व्याकरण की सभी बारीकियां संक्षिप्त रूप से निहित हैं । विभिन्न स्वर एवं व्यंजन ध्वनियों को सूत्रों में संक्षिप्त तौर पर इंगित करने के लिए महर्षि पाणिनि ने इन ध्वनियों को वर्गीकृत करते हुए 14 मौलिक सूत्रों की रचना की है, जिन्हें ‘माहेश्वर सूत्र’ कहा गया है । इन्हें अधोलिखित तालिका में संकलित किया गया है:  इन सूत्रों के बारे में यह कथा प्रचलित है कि महर्षि पाणिनि को इनका ज्ञान भगवान् महेश्वर (शिव) से प्राप्त हुआ था । महर्षि के सम्मुख महादेव ने नृत्य किया जिसके समापन के समय उनके डमरू से उपरिलिखित सूत्रों की ध्वनि निकली और वे ही उनके द्वारा प्रस्तुत सूत्रबद्ध संस्कृत व्याकरण का आधार बने । इस बारे में यह श्लोक प्रचलित हैः नृत्यावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम् । उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥ (सनक आदि ऋषियों के भले के लिए नर्तक-शिरोमणि ‘नटराज’ ने डमरू को नौ+पांच बार बजाया जिससे शिवसूत्र-समुच्चय [collection] उपलब्ध हुआ ।) इन 14 सूत्रों के अंत में क्रमशः विद्यमान् ‘ण्, क्, ङ्, …’ को ‘इत्’ कहा जाता है । ये स्वयं उन ध्वनियों में शामिल नहीं रहते, जिनको से सूत्र इंगित करते हैं । इस प्रकार ‘अइउण्’ तीन स्वर ध्वनियों – ‘अ’, ‘इ’ एवं ‘उ’ के लिए प्रयुक्त सामूहिक संकेत है । इत् का भी अवश्य कुछ महत्त्व है । ध्यान दें कि उक्त तालिका की पहली पंक्ति में स्वर ध्वनियां हैं, जब कि शेष तीन में व्यंजन ध्वनियां सूत्रबद्ध हैं । चूंकि व्यंजनों का स्वतंत्र तथा शुद्ध उच्चारण असंभव-सा होता है, अतः इन सूत्रों में वे स्वर ‘अ’ से संयोजित रूप में लिखे गये हैं । ताकि उन्हें सरलता से बोला जा सके । किंतु सूत्रों का प्रयोजन वस्तुतः व्यंजनों के शुद्ध उच्चारण को दर्शाना है । उदाहरणार्थ ‘हयवरट्’ वास्तव में क्रमशः ‘ह्’, ‘य्’, ‘व्’ एवं ‘र्’ की सम्मिलित ध्वनियों का द्योतक है । (यानी ‘अ’ की ध्वनियों तथा इत् ‘ट्’ हटाकर जो बचता है ।) यदि इन सूत्रों में मौजूद ‘इतों’ को हटा दिया जाए और शेष वर्णों को यथाक्रम लिखा जाए तो हमें वर्णों की आगे प्रस्तुत की गई तालिका मिलती है ।  इस तालिका में वर्णों का क्रम ठीक वही नहीं है, जिसे (जिस वर्णमाला को) भाषा सीखने के आरंभ में पढ़ा जाता है । लेकिन इन सूत्रों में निहित क्रम निराधार अथवा यादृच्छिक (random) नहीं हैं । उन्हें ध्वनियों के उच्चारण संबंधी किंचित् समानताओं के आधार पर समुच्चयों में निबद्ध लिखा गया है । उदाहरणार्थ (एक पंक्ति में लिखित) ‘ञ म ङ ण न’, सभी, अनुनासिक (nasal) हैं, जब कि (एक स्तंभ, column में लिखित) ‘ञ झ ज छ च’, सभी तालव्य हैं । यह असल में विपरीत क्रम में लिखित वर्णमाला का ‘चवर्ग’ है । संस्कृत भाषा की विशिष्टता यह है कि इसमें वही ध्वनियां शामिल हैं जिनको परस्पर समानता एवं विषमता के आधार वर्गीकृत किया जा सके । इस प्रकार का अनूठा वर्गीकरण विश्व की किसी भी अन्य भाषा में कदाचित् नहीं है । ध्यान दें कि माहेश्वर सूत्रों के उच्चारण में जो ध्वनियां बोली जाती हैं, लिपिबद्ध निरूपण में विभिन्न ‘वर्ण’ उनके ही संकेतों के तौर पर लिखे गये हैं । ऊपर चर्चा में आया ‘इत्’ सूत्रों के उच्चारण में सहायक होता है । इसके अतिरिक्त यह एक या अधिक ध्वनियों के क्रमबद्ध समुच्चय को संक्षेप में दर्शाने में अहम भूमिका निभाता है । यह योजना काफी रोचक एवं वैज्ञानिक है । सूत्रों की क्रमिकता को बनाये रखते हुए कोई एक ध्वनि और उसके पश्चात् के किसी इत् को मिलाकर संक्षिप्त सूत्र की रचना की जा सकती है जो उन समस्त ध्वनियों को इंगित करता है जो अमुक ध्वनि से अमुक इत् के पूर्व तक हों । दृष्टांत ये हैं: अण् = अ, इ, उ; इण् = इ, उ; इक् = इ, उ, ऋ, ऌ,; अच् = अ, इ, उ, ऋ, ऌ, ए, ओ, ऐ, औ; (सभी स्वर) यण् = य, व, र, ल; झञ् = झ, भ; झष् = झ, भ, घ, ढ, ध; चय् = च, ट, त, क, प; इत्यादि इसी संदर्भ में ‘हल्’ का उल्लेख समीचीन होगा । ‘ह’ प्रथम व्यंजन सूत्र (हयवरट्) में है और साथ ही अंतिम सूत्र (हल्) में भी – दो बार उल्लिखित । जब भी ‘हलन्त’ शब्दों की चर्चा की जाती है तो उसका मतलब होता है कि उनके अंत में स्वरविहीन व्यंजनों (क्, ख्, ग् … ) में से कोई एक मौजूद रहता है । अर्थात् शब्द का अंत ‘हल्’ से होता है । यहां पर ‘हल्’ उक्त माहेश्वर सूत्रों के प्रथम ‘ह’ से लेकर बाद के समस्त व्यंजनों को सामूहिक रूप से इंगित करता है । दूसरी तरफ अंतिम सूत्र के अनुसार ‘हल्’ अकेले ‘ह’ को भी व्यक्त कर सकता है । स्पष्ट है कि ‘हल्’ का कब क्या अर्थ स्वीकार्य होगा यह प्रसंग पर निर्भर करेगा । स्वरों के संदर्भ में यह भी ज्ञातव्य है कि ‘अक्’ से इंगित सभी स्वर (अ, इ, उ, ऋ, ऌ,) ह्रस्व अथवा दीर्घ, दोनों प्रकार से, प्रयुक्त होते हैं । पाणिनि व्याकरण में ह्रस्व/दीर्घ का यथोचित उल्लेख किया जाता है, किंतु दोनों को एक ही लिपिचिह्न से व्यक्त किया है । अन्य स्वर (ए, ओ, ऐ, औ) केवल दीर्घ होते हैं । संस्कृत में ‘प्लुत’ का भी प्राविधान है । जब स्वरोच्चारण को अतिरिक्त लंबा खींचा जाता है, जैसा कि संगीत में होता है, तब उन्हें प्लुत कहा जाता है । आम तौर उन्हें व्याकरण के नियमों से मुक्त रखा गया है । अंत में इतना और कि स्वरों-व्यंजनों के अलावा संस्कृत में दो विशिष्ट घ्वनियों का भी भरपूर प्रयोग होता है । ये हैं अनुस्वार (वर्णों के ऊपर लिखित बिंदी) और विसर्ग (स्वरों एवं स्वरमात्रा-युक्त व्यंजनों के दायें बगल लिखित कोलन-सदृश,:, चिह्न) । इनसे संबद्ध घ्वनियां क्या हैं और कैसे पैदा होती हैं इन सवालों का उत्तर घ्वनियों के उच्चारण संबंधी प्रयत्नों की व्यापक चर्चा के समय मिल सकता है । यह चर्चा अन्यत्र की जाएगी । – योगेन्द्र जोशी संदर्भ ग्रंथ: श्रीमद्वरदराजाचार्यप्रणीता लघुसिद्धान्तकौमुदी, (गीताप्रेस, गोरखपुर, द्वारा प्रकाशित) इसे साझा करें: Facebook10TwitterGoogle  एक उत्तर दें prasaant के तौर पर लॉगिन हैं. लॉग आउट करें? टिप्पणी  टिप्पणी करे  Notify me of new comments via email. दिवाकर मणि पर फ़रवरी 23, 2011 को 12:10 अपराह्न माहेश्वर सूत्रों को लेकर सरल शब्दों में प्रस्तुत विवेचना हेतु आपका हार्दिक आभार. मेरे विचार में “नृत्यावसाने” की जगह “नृत्तावसाने” सही पद है. “नृत्तावसाने” सही है । – योगेन्द्र जोशी प्रतिक्रिया Gulab Mishra पर दिसम्बर 7, 2011 को 9:44 पूर्वाह्न maharshi panini प्रतिक्रिया shyam पर दिसम्बर 13, 2011 को 10:24 अपराह्न bahut acha pryas he. प्रतिक्रिया मनीष पाण्डेय पर अगस्त 11, 2015 को 5:09 अपराह्न महर्षी पाणिनीय के नाम पर उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में संचालित है जिसका नाम श्री पाणिनीय गुरूकुल महाविधालय है। प्रतिक्रिया RAAJ पर मई 25, 2017 को 8:45 अपराह्न सर माहेश्वर सूत्रों में यह ‘ह’ वर्ण दो बार क्यों आता है ? कृपया कोई जवाब दें। प्रतिक्रिया योगेन्द्र जोशी पर जून 16, 2017 को 12:32 अपराह्न सटीक उत्तर शायद मैं न दे सकूं। फिर भी जो मेरे समझ में आता है उसे लिखने का प्रयास करूंगा परंतु समय मिलने पर। आपको सूचित करूंगा। प्रतिक्रिया pankajkumar पर अगस्त 12, 2017 को 4:54 अपराह्न शोभनम प्रतिक्रिया योगेन्द्र जोशी पर अगस्त 12, 2017 को 9:41 अपराह्न मेरी समझ में संस्क्रुत की लिपि पूर्णतः ध्वन्यात्मक है। कितने संस्कृतज्ञ मेरी बात से सहमत होंगे कह नहीं सकता हूं। लेकिन संस्कृत छात्रों-पंडितों के मुख से सही उच्चारण मैंने कम ही सुना है। वे हिन्दी की तर्ज पर “हे राम” को “हे राम्” (म हलंत) उच्चारित करते हैं। रामः को रामह (हलंत ह) बोलते हैं और ज्ञान को ग्यान कहते हैं। दक्षिण भारतीय भाषाभाषी अंग्रेजी में ‘ज्ञ’ को ‘jna’ लिखते हैं क्योंकि अंग्रेजी में ‘ञ’ को `na’से ही व्यक्त किया जाता है। बोलते क्या हैं यह मैंने कभी सुना नहीं। इन शंकाओं पर विचार करें। प्रतिक्रिया  खोजें     पुरालेख पुरालेख पिछ्ले नवीनतम लेख “सरकार का काम” – कविता : एक प्रयोग उनकी हिन्दी बनाम मेरी हिन्दी अंग्रेजी सर्वत्र नहीं चलती (3) – कनाडा प्रवास के दौरान शहर क्यूबेक में प्राप्त अनुभव अंग्रेजी सर्वत्र नहीं चलती (२)- कनाडा प्रवास के दौरान शहर मॉंट्रियाल में प्राप्त अनुभव कनाडा प्रवास के दौरान का अनुभव – (१) अंग्रेजी सर्वत्र नहीं चलती, कनाडा में भी नहीं! प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश – मंत्रालय क्षेत्रीय भाषाओं में वेबसाइटें बनाएं नमस्ते से “गुड मॉर्निंग” तक की यात्रा श्रेणी श्रेणी Blogroll इंडिया बनाम भारत जिंदगी बस यही है विचार संकलन WordPress.com WordPress.org मेटा लॉग आउट प्रविष्टियां आरएसएस टिप्पणियाँ आरएसएस WordPress.com  लधुकथाएं इंडियामाता की जय (स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर) शक-शुबहा की गुंजाइश हो तो? अपूरित कामना सवाल “भारत” के वजूद का “वसुधैव कुटुम्बकम् …” – पंचतंत्र ग्रंथ में मूर्ख पंडितों की कथा  देश-विदेश से संबंधित Why one should opt for NOTA : Its importance in Elections “सरकार का काम” – कविता : एक प्रयोग 11 जुलाई, विश्व जनसंख्या दिवस – भारत की विकट समस्या, जनसंख्या “अहिंसा परमो धर्मः …” – महाभारत में अहिंसा संबंधी नीति वचन (1) India’s Population Surpasses China’s by 2024 – Should we Rejoice or Regret? View Full Site वर्डप्रेस (WordPress.com) पर एक स्वतंत्र वेबसाइट या ब्लॉग बनाएँ . Following Skip to toolbar My Site Create Site Reader Streams Followed Sites Manage Discover Search My Likes    prasaant @prasaant Sign Out Profile My Profile Account Settings Manage Purchases Security Notifications Special Get Apps Next Steps Help Log Out

No comments:

Post a Comment