Thursday, 10 August 2017

भारतीय संस्कृति का मूल—गायत्री महामंत्र

WhatsAppFacebookFacebook MessengerTwitterGoogle+TelegramShare भारतीय संस्कृति का मूल—गायत्री महामंत्र  गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ— ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। देवियो! भाइयो!! आपसे मैं यह निवेदन कर रहा था कि इस दुनिया में जो सबसे बड़ा देवता दिखाई पड़ता है, उसका नाम माता है। ‘‘मातृदेवोभव, पितृदेवोभव, आचार्यदेवोभव’’—माता की बराबरी किसी से भी नहीं की जा सकती है। वह नौ महीने बच्चे को अपने पेट में रखती है, अपने रक्त से हमारा पालन-पोषण अपने पेट में करती है। जन्म लेने के बाद अपने लाल खून को सफेद दूध में परिवर्तित करके हमें पिला देती है और हमारे शरीर का पोषण करके हमें बड़ा बना देती है। माता का प्यार, दुलार, दूध तथा पोषण जिनको नहीं मिलता है, वह अपूर्ण होता है। एक और माँ है जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं। जो शरीर का नहीं, बल्कि आत्मा का पोषण करती है। उसका नाम कामधेनु है। यह स्वर्ग में रहती है, जिसका दूध पीकर देवता दिव्य बन जाते हैं, सुन्दर बन जाते हैं, अजर-अमर बन जाते हैं, दूसरों की सेवा करने में समर्थ होते हैं। स्वयं तृप्त रहते हैं। सुना है कि कामधेनु स्वर्ग में रहती है। स्वर्ग में मैं गया भी नहीं हूँ, उसके बावत में कैसे कह सकता हूँ, परन्तु एक कामधेनु की बावत हम बतलाना चाहते हैं कि जो स्वर्ग में लोगों को फायदा पहुँचा सकती है, वह धरती के लोगों को भी फायदा पहुँचा सकती है। उसका नाम गायत्री है। उसी का नाम ऋतम्भरा प्रज्ञा है, दूरदर्शिता, विवेकशीलता, विचारशीलता भी है, जिसको हम भारतीय संस्कृति की आत्मा कह सकते हैं। बीज छोटा-सा होता है, परन्तु फलों का, फूलों का, सभी का गुण उस छोटे-से बीज में सन्निहित होता है। छोटे-से शुक्राणु में बाप, दादा का पीढ़ियों का गुण समाया रहता है। इसी तरह जो भी इस संसार का दिव्य ज्ञान-विज्ञान है, वह इस छोटे-से गायत्री मंत्र के अन्दर समाविष्ट है। २४ अक्षरों वाले बीज में विद्यमान है। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि के निर्माण की योजना बनायी तो उन्होंने सोचा कि ज्ञान एवं विज्ञान के बिना इस सृष्टि का निर्माण कैसे हो सकता है? उन दोनों को प्राप्त करने के लिये कमल के फूल पर बैठकर बतलाते हैं कि उन्होंने हजार वर्ष तक तप किया। वह कौन-सी साधना थी? वह गायत्री मंत्र की उपासना एवं साधना थी। जो सफलता एवं सामर्थ्य उन्हें प्राप्त हुई वह कौन-सी थी? वह मित्रो! गायत्री मंत्र की थी जो उन्होंने प्राप्त किया था। ब्रह्माजी ने उस गायत्री मंत्र को चार टुकड़ों में बाँटकर चार वेदों का निर्माण कर दिया। ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ से ऋग्वेद बनाया गया। ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ से यजुर्वेद बनाया गया। ‘भर्गो देवस्य धीमहि’ से सामवेद बनाया गया। ‘धियो यो नः प्रचोदयात्’ से अथर्ववेद बनाया गया। वे वेद जो हमारे सारे के सारे धर्म एवं संस्कृति के बीज हैं। इन चारों के चारों वेदों में वेदमाता गायत्री का ही वर्णन है। वेद उनसे ही पनपे हैं, उसी गायत्री मंत्र का जिसका हम प्रचार करते हैं। जिसके लिये हमने अपना जीवन समर्पित कर दिया। वह शानदार बीज मंत्र है। ब्रह्मा जी ने तप करके इसके द्वारा सृष्टि को बनाया। इसका तत्त्वदर्शन एवं व्याख्यान सर्वसाधारण की समझ में नहीं आयेगा, यह समझकर ऋषियों ने गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से भगवान् के अवतारों की तुलना की। एक-एक अवतार-गायत्री मंत्र के एक-एक अक्षर की व्याख्या है। गायत्री मंत्र का स्वरूप-सामर्थ्य क्या है? उसका जीवन में उपयोग किस परिस्थिति में हम किस तरह करें? यह जानकारी देने के लिये ऋषियों ने 24 अवतारों की रचना की तथा 24 पुराणों का निर्माण किया। भगवान् दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। यह गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों से ही उनको ज्ञान मिला था। महर्षि बाल्मीकि की बाल्मीकि रामायण में 24000 श्लोक हैं, उसमें उन्होंने गायत्री मंत्र के एक-एक अक्षर का सम्पुट लगाकर व्याख्या की है। श्रीमद्भागवत् में भी इसी गायत्री मंत्र के सम्पुट लगा करके श्लोक बनाये गये। ‘परम धीमहि’ यानि कि इसमें ‘धीमहि’ की ही व्याख्या है। देवी भागवत् पूर्ण रूप से गायत्री मंत्र की ही व्याख्या है। भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत आपको जो भी दिखाई पड़ता है, वह वास्तव में विशुद्ध रूप से गायत्री मंत्र का ही वर्णन है। यह बहुत शानदार है। ऋषियों ने इसकी महत्ता-उपयोगिता समझी तथा उन्होंने सभी लोगों से कहा कि आप सब भूल जाना, परन्तु इस माता को मत भूलना। माँ को हम किसी तरह न भूलें। इनसान का एक और शरीर है—‘विचारणा’—विचार की भूमिका के रूप में, मस्तिष्क के ऊपर शिखा के रूप में, अंकुश के रूप में गायत्री मंत्र विद्यमान है। हर इनसान जब अपने सिर पर हाथ फेरता है तो उसे माँ की याद आ जाती है। यह चिद्रूपिणी है, महामाया है। एक अंकुश हाथी के ऊपर होता है, मनुष्य के मन पर, विचारणा के ऊपर भी अंकुश होना चाहिए। यह गायत्री माता अंकुश के रूप में सिर के ऊपर विद्यमान है। मनुष्य के ऊपर ऋषियों ने गायत्री के रूप में शिखा की स्थापना करके यह बतलाया कि आप हमेशा विचार करते समय, बोलते समय, यह ख्याल रखना कि हमारे ऊपर अंकुश लगा हुआ है। हमें मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। यज्ञोपवीत हिन्दू धर्म का मुख्य संस्कार है। शिखा मस्तिष्क पर तथा कन्धे पर जनेऊ, ये दोनों ही गायत्री के प्रतीक हैं। गायत्री की तीन व्याहृतियाँ-जनेऊ की तीन लड़ें हैं। 9 धागे गायत्री मंत्र के 9 शब्द हैं। इसका मतलब है—सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए तथा मर्यादा में रहना चाहिए। हर हिन्दू के लिये ये दो चीजें अनिवार्य मानी गयी हैं। यह क्या है? यह है गायत्री मंत्र। हमें दो बार संध्या करनी चाहिए। मुसलमान पाँच बार नमाज पढ़ते हैं। आप मनमर्जी नहीं कर सकते। आपको इस मंत्र का दो बार अवश्य जप करना चाहिए, इसे गुरुमंत्र कहा गया है। गुरुमंत्र कैसा? प्रारम्भ में जब गुरु किसी बच्चे को शिक्षण करता था तो वह उसकी सादी स्लेट में इसी मंत्र को लिखकर उसके ऊपर बच्चों को हाथ फेरने के लिये कहते थे, साथ ही साथ उसका उच्चारण भी कराया जाता था। इसीलिये इसे गुरुमंत्र कहा गया। हिन्दुओं का गुरुमंत्र एक है। मुसलमानों का गुरुमंत्र एक है, जिसे हम कलमा कहते हैं। ईसाई का गुरुमंत्र एक है, जिसे बपतिस्मा कहते हैं। उस अंधकार युग को क्या कहें, जिसमें हमने आर्थिक क्षेत्र, राजनैतिक आजादी, कला, वैभव, सब कुछ खो दिया। इतना ही नहीं हमने अपने माता की पहचान खो दी। माता की पहचान जिन बच्चों को नहीं होती है तो उन बच्चों की मिट्टी पलीद हो गई? हमारी बहुत मिट्टी पलीद हो गई। हमें जिससे आत्मा का परिपोषण, प्यार मिलता था, उस माँ को हम भूल गये। उसे ग्रहण करके हम देवमानव कहलाते थे। हम समर्थ, प्रतिभाशाली थे तथा विश्व के सिरमौर थे। हम सुसंस्कृत कहलाते थे और उसे हम सारे विश्व में बाँटते रहते थे। अमेरिका से लेकर पेरू तक न जाने कहाँ-कहाँ सारे विश्व में बाँटते रहते थे। अमेरिका कोलम्बस का, निग्रोज का, आदिवासियों, रेडइण्डियन का बसाया हुआ नहीं है, बल्कि यह भारतीयों का बसाया हुआ था। वहाँ सूर्य मंदिर पाया गया है, जिसका अर्थ यह है कि वे गायत्री उपासक थे। वहाँ भारतीय कैलेण्डर इतना सुन्दर पाया गया है, जितना सुन्दर कैलेण्डर भारत में भी पाया नहीं जा सकता। यह क्या है? भारतीय सभ्यता थी। ऐसी संस्कृति थी भारत की, जिसका मूल था गायत्री मंत्र, गायत्री माता जिसे हम भूल गये। अन्धकार के समय क्या होता है? चोर, उचक्के, उल्लू, साँप, बिच्छू, चमगादड़ चलते हैं। सब कुछ रात के समय होता है। झाड़ियाँ रात में डरावनी बन जाती हैं। रात के समय हम रास्ते पर चलते हैं तो हमें ठोकरें लग जाती हैं। हम दो हजार वर्ष तक अन्धकार में भटकते रहे तथा हमने माँ को भी त्याग दिया। किसकी बतलाएँ कि उसने कहा—इस माँ को त्यागने के लिये? गायत्री मंत्र जो सूर्य की तरह, धरती और हवा की तरह है, जो सबका है। पहाड़ सबका है, लेकिन हमें लोगों ने बतलाया कि मनुष्यों के चार वर्ण होते हैं। उसमें से एक वर्ण को ही इसका अधिकार है अर्थात् तीन-चौथाई इससे वंचित रह गये। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया कि इसके लिए महिलाओं का अधिकार नहीं है अर्थात् 1/8 भाग का ही गायत्री मंत्र है। इसके बाद एक और स्वामीजी आये। उन्होंने कहा गायत्री मंत्र पर ब्रह्माजी का शाप लगा है, इसे कलियुग में नहीं जपा जा सकता है। एक और पंडित जी आये और उन्होंने कहा कि विश्वामित्र और वशिष्ठ ने शाप दे दिया है और गायत्री मंत्र को कीलित कर दिया है। हमने पूछा कि ब्रह्माजी जिन्होंने एक हजार वर्ष तक तप किया, वे कैसे शाप दे सकते हैं? हमने पूछा कि विश्वामित्र वे ऋषि हैं, जिन्होंने गायत्री के ऊपर पी. एच. डी. की, उसे वह शाप दे सकते हैं? एक आदमी हमारे ऊपर भी पी. एच. डी. कर रहा है, इस समय विदेश गया हुआ है, वह जबलपुर यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर है। एक पंडित जी हमारे पास आये, उन्होंने कहा कि यह गायत्री मंत्र कान में कहने का मंत्र है। हमने कहा कि अच्छी बातें तो खुलेआम बतलायी जाती हैं। अगर चोरी, बेईमानी, लंपटगीरी की बात हो तो कान में कही जाती है। इस तरह अन्धकार के युग में न जाने क्या-क्या होता रहा? चालाक बाबाजी अपने-अपने नाम के मजहब, पंथ बनाते चले गये। इस प्रकार लोग भ्रमित होते चले गये और इस प्रकार भारतीय संस्कृति का मूल नष्ट हो गया, छिन्न-भिन्न हो गया। हर जगह अलगाव की स्थिति, विपन्नता की स्थिति बन गई। आज ईसाइयों में, मुसलमानों में, सिक्खों में एकरूपता अभी भी है, परन्तु टुकड़ों में कर दिया लोगों ने हिन्दू समाज को, इतना ही नहीं तहस-नहस कर दी भारतीय परम्परा को। इस समय सब बिखर गया है। परन्तु अब अन्धकार समाप्त होने जा रहा है। सूर्य उदय होने जा रहा है। सूर्य निकलने के समय चिड़ियाँ चहचहाने लगती हैं। मोर नाचते हैं। कमल का फूल खिलने लगता है, फूलों में खुशी मालूम पड़ती है। हवा ठंडी चलने लगती है। हर आदमी में एक जोश मालूम पड़ता है। रात की नींद खत्म हो जाती है। चोर, बिच्छू, साँप, चमगादड़ भाग जाते हैं। हमें विश्वास है कि अब हमारे मुल्क का, भाग्य का, संस्कृति का पुनः सूर्य उदय होने वाला है। गायत्री मंत्र को पुनः घर-घर पहुँचाना सम्भव हो सकेगा। वह जो हमारी रीढ़ की हड्डी थी, उसे पुनः जोड़ देने का काम होने वाला है। दिल्ली में एक बार महात्मा गाँधी ने जामियामिलियाँ यूनीवर्सिटी में आधा घंटे का भाषण दिया। उसमें उन्होंने केवल गायत्री मंत्र पर ही व्याख्यान दिये। उसके समापन पर सारे मुसलमान गाँधी जी पर नाराज हो गये तथा यह कहा कि यह तो हिन्दुओं का मंत्र है, यहाँ पर तो आपको और बात करनी थी। गाँधी जी ने कहा कि यह हिन्दुओं का नहीं, बल्कि विश्वमानव का मंत्र है। यह पादरी का मंत्र नहीं है। यह ऋतम्भरा प्रज्ञा, दूरदर्शिता, विवेकशीलता का मंत्र है। यह भीतर के सोई हुई मानवता को जगाने का मंत्र है। हम भी ऐसा ही मानते हैं। हमें ऐसा मालूम पड़ता है कि हमने खोयी हुई संस्कृति को पुनः पा लिया है। ऐसा लगता है कि साँप की मणि जो खो गयी थी, उसे पा लिया है। हमने सुना है कि किसी हाथी के सिर पर गजमुक्ता रहता है। जब तक वह हाथी के ऊपर रहता है तो वह मस्त रहता है, परन्तु जैसे ही वह खो जाता है या चला जाता है तो हाथी पागलों की तरह हो जाता है। हाथी की बात, साँप की बात तो मैं नहीं कह सकता हूँ, परन्तु मनुष्य की, भारतीय संस्कृति की बात कह सकता हूँ, जिसके भीतर कामधेनु जैसी शक्ति थी। उसे भुला दिया गया तथा आज साँप तथा हाथी की तरह से हम मणिहीन व कमजोर हो गये तथा दीन-हीन हो गये। हम फिर से उस प्रातःकालीन सूर्य को नमस्कार करते हैं, जो हमारी चीजों को दिखाता है। हमने अपने संस्कृति के स्वरूप को फिर से समझने की कोशिश की है। गायत्री मंत्र एक फिलॉसफी है। इसे हम जीवन जीने की कला कह सकते हैं। यह सोचने का एक तरीका है, जीवन-यापन करने की पद्धति है, समाज के गठन का तरीका है, विश्व की शांति का एक मूल मंत्र है। अगर हम इसे अपनाकर चलेंगे तो हम अच्छी दुनिया की कल्पना कर सकते हैं। अच्छी दुनिया हमें फिर देखने को मिल सकता है, जैसा कि प्राचीनकाल में देखने को मिलता था। गायत्री एक दिव्य ज्ञान है। इसे देवमाता कहते हैं। इसकी उपासना से मनुष्य देवता बन जाता है। इसको विश्वमाता भी कहते हैं। मित्रो! यह हम गायत्री के फिलॉसफी की व्याख्या कर रहे हैं, जिसे आपको जानना चाहिए। अगर इसे हम समझ गये तथा उस रास्ते पर हम चलने का प्रयास कर सके तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है। मित्रो! एक और चीज हम आपको बतलाना चाहते हैं, जो गायत्री की फिलॉसफी नहीं है, वह गायत्री का साइन्स है। हमारे भीतर ऐसी-ऐसी शक्तियाँ भरी पड़ी हैं, अगर उसे हम जगा सकें तो सारी महत्त्वपूर्ण चीजों को हम प्राप्त कर सकते हैं। अगर एक को भी जगाया जा सके तो साधारण इनसान भी देवता बन सकते हैं। इनसान ही देवता, भगवान होते रहते हैं। श्रीकृष्ण, भगवान रामचन्द्र जी इनसान के रूप में पैदा हुए एवं भगवान बन गये। इनसान उसे कहते हैं जो जन्म लेता है तथा मरता है। श्रीरामचन्द्र जी रामनवमी को जन्म लिये फिर मारे भी गये। ये इनसान से देवता और भगवान बने। आप भी बन सकते हैं अगर अपनी सोई हुई शक्ति को आप जगा लें। इनसान के भीतर ऐसी-ऐसी शक्ति भरी पड़ी है, अगर आप उसे जगा सकते हैं तो आप ऋषि हो सकते हैं, महामानव हो सकते हैं। जार्ज वाशिंगटन हो सकते हैं, गाँधी हो सकते हैं, नैपोलियन, विवेकानन्द हो सकते हैं। गायत्री मंत्र की इसी महानता के कारण हमने गायत्री उपासना के द्वारा गायत्री की फिलॉसफी को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। यह गायत्री की साइन्स है। हमने अपने जीवन में गायत्री की फिलॉसफी तथा गायत्री का साइन्स दोनों को समझाने का प्रयास किया है और प्रयास में सफलता प्राप्त की है। उसके बाद आप लोगों के सामने हाजिर हुआ हूँ, ताकि आप लोगों को भी उसकी फिलॉसफी तथा साइन्स को बतलावें। अगर इस रास्ते पर आप चलेंगे तो आप अपना भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों के दोनों जीवन बड़े शानदार बना सकते हैं। दोनों ही जीवन हमारे लिए आवश्यक है। आध्यात्मिक जीवन हमारा प्राण है तथा भौतिक जीवन हमारा शरीर है। इन दोनों का महत्त्व है। अगर दोनों अलग हो जाएँगे तो हम मृत बन जाएँगे। अतः हमें दोनों को मिलाकर चलना होगा। गायत्री मंत्र वह महामंत्र है, जो मनुष्य की दोनों तरह की उन्नति करने में समर्थ है। मैं चाहता था कि आप लोगों को भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति करने का मौका मिल जाए। साथियो! गायत्री मंत्र के बारे में हमने सब कुछ बतला दिया है। गायत्री मंत्र की उपासना, अनुष्ठान सब बातें बतला दी हैं। इस प्रकार हमने सब बतला दिया है, लेकिन जो वजनदार चीजें अभी तक आपको नहीं बतला पाया हूँ, वह है गायत्री माता की विशेषता। वह क्या विशेषता है? बच्चे को कीमती चीजें माँ नहीं देना चाहती है, क्योंकि उसकी पात्रता नहीं है। बच्चे को वह छोटी चीजें ही देती है। उनको छोटी चीजें दी जाती हैं। बच्चा कहता है कि पिताजी हमें बहू मँगा दीजिये। पाँच साल के गणेश को उसके पिता खिलौना वाली बहू लाकर दे देते हैं। बहू कब आती है, जब गणेश 25 साल का हो जाता है। उसकी योग्यता-क्षमता जब हो जाती है। वह जब वयस्क हो जाता है, अपनी पत्नी का भार उठा सकता है, उसे खाना खिला सकता है तो विवाह होता है। जिम्मेदारी का भार उठाने लायक हो जाता है, तो उसकी शादी हो जाती है। रमेश अपने पापा से आलमारी की चाबी माँगता है तो उसके पापा कहते हैं कि क्या करेगा चाबी का? तो वह कहता है कि टॉफी लाऊँगा तथा सभी को बाँटने का प्रयास करूँगा। अच्छा तू टॉफी जायेगा। रमेश की माँ जरा चाबी को सँभालकर रख, नहीं तो यह पैसे का कबाड़ा कर देगा। रमेश को बहुत प्यार करते थे उसके माँ-बाप, परन्तु वह तब तक जिम्मेदार नहीं बना था, इस कारण से उसे लोग चाबी नहीं दे रहे थे। मैं चाहता हूँ कि आप लोग भी जिम्मेदार-मैच्योर हो जाएँ। जब हमने इस स्थिति को प्राप्त कर लिया तो हमारे गुरु ने सब चीजें दे दीं। आप जरा मैच्योर हो जाएँ। देवता उसे ही देते हैं, जो मैच्योर हो जाते हैं। आपकी पात्रता, योग्यता पर विचार करते हैं। एक दिन रमेश ने अपने पिताजी से कहा कि जो पिस्तौल रखे हैं, वह आप मुझे दे दें। पिताजी ने पूछा कि तू क्या करेगा, तो उसने कहा कि हम स्कूल ले जाएँगे तथा जो हमें चिढ़ायेगा उसे बारी-बारी से पिस्तौल से निशाना बना देंगे। अच्छा तू सब बच्चों को मार देगा। रमेश की माँ जरा इसे ठीक से रख। अरे यह रमेश की बात नहीं है, आपके बावत कह रहा हूँ। अगर यह चीज आपको मिल जाएगी तो उसे आप करेंगे क्या? इसका जवाब हमें दीजिये। देवताओं का वरदान ऐय्याशी के लिए, मजा उड़ाने के लिए नहीं है। शराबखोरी के लिए नहीं है। यह किसी खास काम के लिए मिलता है। अगर आपको देवताओं से वरदान प्राप्त करना है तो आप उनकी बिरादरी का बनें। अध्यात्म के रास्ते पर चलना चाहते हैं, देवताओं से कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको मैच्योर होना पड़ेगा उसके बिना काम नहीं बनेगा। मैच्योर किसे कहते हैं? जो अपनी जिम्मेदारी को समझता है। पहले रमेश नंगा हो जाता था। अब वह बड़ा हो गया है। 25 साल का हो गया है। धोती के अन्दर अण्डरवीयर पहनता है। आप अपनी जिम्मेदारी समझते हैं या नहीं? आप इनसान की जिम्मेदारी समझते हैं या नहीं? आप अगर जिम्मेदारी समझते हैं तो आपको चरित्रवान होना चाहिए, अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। चिन्तनशील होना चाहिए तब आप मैच्योर कहे जाएँगे। पहले रमेश को आठ आने पैसे मिलते थे। वह बाजार में जाकर रबड़ी चाटकर फेंक देता था। अब रमेश को 600/-रुपये पेमेंट मिलता है। उसकी शादी हो गई है, वह पैसे फेंकना नहीं चाहता है। वह यह सोचता है कि हम अपनी औरत की साड़ी कैसे ला सकते हैं? घर की व्यवस्था कैसे ठीक कर सकते हैं? कहने का मतलब यह कि अब वह मैच्योर हो गया है। पहले वह आठ आने की रबड़ी खाता था। अब वह एक चम्मच केवल चाय में दूध डालकर संतोष कर लेता है। उसे मालूम है कि हमारे बच्चे हो गए हैं। वह अगर अपने बच्चे को पीने को मिल जाए तो बच्चों का स्वास्थ्य ठीक हो सकता है, क्योंकि हमारे बच्चे अगर आज कमजोर हो गये तो आगे काम नहीं कर पायेंगे। इसलिए इन्हें दूध आवश्यक है। मित्रो! रमेश मैच्योर हो चुका है, उसे अपनी जिम्मेदारी महसूस होने लगी है। माँ-बाप, बच्चे, बहिन, भाई सबकी वह व्यवस्था बनाता है। रमेश बहुत किफायत से रहता है। धोबी के पैसा बचाता है। उसने फिजूलखर्ची बन्द कर दिया है। यानि वह मैच्योर हो गया है। आप भी जिस दिन मैच्योर हो जाएँगे अपनी जिम्मेदारी समझने लगेंगे अर्थात् यह मानवीय जिम्मेदारी होगी। आपके साथ इनसानियत के फर्ज जुड़े हुए हैं। अतः आपको एक अच्छा नागरिक होना चाहिए। आपको चिन्तनशील होना चाहिए। आपको अपने फर्ज एवं कर्तव्यों से जुड़ा हुआ होना चाहिए। आप जब सज्जन, शरीफ होंगे तभी ही आप अध्यात्मवादी बन सकते हैं। नाबालिग वे हैं, जो सिनेमा देखते हैं, शराब पीते हैं तथा अनाप-सनाप पैसे इधर-उधर लगाते रहते हैं। मैच्योर वे हैं जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं तथा फिजूलखर्ची नहीं करते हैं। आध्यात्मिक जीवन जीने की शैली का नाम है। जादूगरी का नाम नहीं है जैसा कि आप समझते हैं। अगर जादूगरी सही होती तो इसे दिखाने वाले रास्ते पर भीख नहीं माँगते, वह तो करोड़पति हो जाते। अध्यात्मवादी वह है जो यह समझता है कि हमें प्राप्त चीजों को कहाँ खर्च करना है, किस प्रकार खर्च करना है? यह गायत्री मंत्र की विशेषता है, जिसके आधार पर हमारे मंत्र सफल होते चले गये तथा हम भी प्रगति की ओर बढ़ते चले गये। हमने गायत्री मंत्र की उपासना पूरी श्रद्धा-निष्ठा के साथ 24 साल केवल जौ की रोटी एवं छाछ खाकर की है। हमने इन दिनों में यह नहीं जाना कि गेहूँ किसे कहते हैं, नमक एवं शक्कर किसे कहते हैं? हमने गायत्री मंत्र की उपासना अवश्य की है, परन्तु हमारे बॉस तथा हमारे बीच एक एग्रीमेण्ट है। क्या एग्रीमेण्ट है? पहला यह कि आप नेक इनसान की तरह जीवन जीने का प्रयास करेंगे। हमने नेकी तथा शराफत के आधार पर जीवन जीने का प्रयास किया है। हमने ब्राह्मण तथा संत की तरह जीवन जीने का प्रयास किया है। ब्राह्मण किसे कहते हैं? जो किफायतसारी जीवन जीता है। संत किसे कहते हैं? जो दयालु होता है। जिसके हृदय में करुणा एवं दया होती है। जो दूसरे के दुःखों को समझते हैं। दूसरों के दुःखों को मिटाने के लिये जिसके मन में से उमंगें उठती हैं। उसे संत कहते हैं। ब्राह्मण एवं संत भगवान से बड़े होते हैं। नारद भगवान से बड़े थे। उनको बहुत अधिकार प्राप्त थे। महर्षि शृंगी ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था। उसके कारण चार भगवान् राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पैदा हुए थे। संत, ब्राह्मण की शक्ति बहुत महान् होती है। वह भगवान् से बड़े होते हैं। राजा परीक्षित को एक ब्राह्मण ने शाप दिया था कि यही साँप आज से सातवें दिन आपको काट खायेगा। मित्रो! आप समझते नहीं हैं कि मैच्योर होना किसे कहते हैं? इसे ब्राह्मण जीवन एवं संत जीवन कहते हैं अर्थात् चरित्रवान जीवन एवं उदार जीवन। आप ब्राह्मण हैं कि नहीं, यह मैं नहीं जानता हूँ। बहुत-से जाति के ब्राह्मण हैं, परन्तु वे जूते का व्यापार करते हैं। हम किसी को जाति से ब्राह्मण नहीं मानते हैं। आपका कर्म, रहन-सहन ब्राह्मण का है या नहीं, यह मैं जानना चाहता हूँ। व्यक्ति वंश, वेश से ब्राह्मण एवं संत नहीं हो जाता है। अगर आपका जीवन उदार है, दूसरों के दुःखों को देखकर आपका मन द्रवित होता है तो आप ब्राह्मण एवं संत हैं। गायत्री मंत्र की उपासना बीज लगाने के बराबर है। परन्तु बीज लगाने के बाद उसमें पानी डालना पड़ता है। बिना इसके वह फलेगा-फूलेगा नहीं। आप किसान हैं तो बीज लगाइये, खाद डालिये एवं पानी लगाइये। आप मनुष्य हैं तो आपको भोजन के साथ पानी एवं हवा भी चाहिए, इसके बिना आप जिन्दा नहीं रह सकते हैं। भजन आप करते हैं तो इसके साथ दो चीजें जुड़ी हैं—(1) चरित्रवान् जीवन-ब्राह्मण, (2) संत जीवन-जो खाता नहीं खिला देता है। झरना पानी देता रहता है और ऊपर से उसे पहाड़ों से पानी मिलता रहता है। बादल बरसते रहते हैं, पुनः धरती से उड़कर बादल बनते रहते हैं। नदियाँ अपना पानी समुद्र को देती हैं, उससे बादल बनते हैं और वह धरती को देता है। धरती नदी को, नदी समुद्र को देती है। यह क्रम चलता रहता है, इसे कोई तोड़ नहीं सकता है। गायत्री उपासना के तीन चरण होते हैं यानि कि तीन फायदे हैं। हमने तीनों फायदे उठाये हैं। (1) आत्म-संतोष—आत्मा हमारी बहुत प्रशंसा करती रहती है। दुनिया आपकी प्रशंसा करे तो आपको क्या फायदा है? जीवात्मा अगर प्रशंसा करे तो आपको फायदा होगा। इसी का नाम आत्मसंतोष है। आत्मा अगर यह कहती है कि आप बहुत सुन्दर हैं, सुन्दर काम कर रहे हैं तो यह प्रसन्नता की बात होगी। हमारे से ज्यादा खुश इस दुनिया में शायद ही कोई मिलेगा। हमारे देवता हमारे चेहरे पर छाये रहते हैं। मनहूस वह आदमी है, जो जलते रहते हैं तथा जलाते रहते हैं। भूत वह होते हैं जो जलती हुई जिन्दगी, जलाती हुई जिन्दगी जीते हैं। उल्टे काम करती हुई जिन्दगी, हैरान होती जिन्दगी जो जीते हैं, वह बेकार के आदमी होते हैं। आपको खुशी की जिन्दगी, मस्ती की जिन्दगी जीना चाहिए। हम चाहते हैं कि आप वेदमाता का दूध पिएँ तथा हँसती-हँसाती हुई जिन्दगी, मस्ती की जिन्दगी, प्रकाशवान जिन्दगी जीएँ। आपका रास्ता खुला है। एक रास्ता सिद्धि का है एवं सम्मान का है। अगर आपने सेवा करते हुए सम्मान पाया है तो आपको सहयोग भी मिलेगा। हर जगह जाते हैं तो हर जगह सहयोग भी पाते हैं तथा सम्मान भी पाते हैं। आप भी पा सकते हैं। गाँधीजी ने सहयोग भी पाया था, सम्मान भी पाया था। विनोबा ने भी दोनों चीजें पायीं। जनता जिनको सम्मान देती हैं, उनको सहयोग भी देती है। आपको अपनी बीबी ने, बच्चों ने भी सहयोग नहीं दिया है। हमें तो उन लोगों ने सहयोग दिये हैं जो न हमारे मित्र हैं, न बेटे हैं, न रिश्तेदार हैं। क्यों बरसता है यह सब? क्योंकि हमने अध्यात्म को अपने जीवन में अपनाया है। हम एकनिष्ठ हैं। हमने एक इष्ट बनाकर रखा है, पर आपने तो शंकर जी, गणेश जी न जाने कितनों को इकट्ठा कर लिया, पर अपना इष्ट एक भी न बना सके। हमारा सहयोग जनता ने दिया, हमारा सहयोग जीवात्मा ने दिया जो अन्दर बैठा है। हमको संतोष मिला। देवताओं ने हमें अनुग्रह दिया है। हमने एक किलो कमाया है तो वह देवताओं का अनुग्रह है। हमारे बॉस, हमारे गुरु, हमारे भगवान ने दिया है। हमने कितने लोगों की आँखों के आँसुओं को पोंछा है। मालूम है उसमें कितना तप खर्च होता है? यह हमें हमारे बॉस भगवान से, बैंक से मिलता है एवं हम खर्च करते रहते हैं। हमारा भगवान हमारे साथ पायलट की तरह से चलता है, हमारा भगवान हमारे साथ बाडीगार्ड की तरह से चलता है। हमारा भगवान हमारा रथ चलाता है। हमारा भगवान बहुत अनुग्रह करता है, कृपा देता रहता है। हमारा भगवान हमारे हाथ-पैर के रूप में चलता है। हम बहुत हिम्मत एवं साहस के साथ चलते हैं। मस्ती के साथ चलते हैं। आप भी चल सकते हैं। गायत्री माता आपको भी रास्ता दिखाती रहेगी। हम जिस रास्ते पर चले हैं, वह बहुत शानदार एवं सुन्दर है। भगवान करें आप भी उस रास्ते पर चलें। भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत एक ही उपासना है और वह है गायत्री मंत्र की। जिसकी उपासना हमारे पूर्वजों ने, ऋषियों ने की थी उसे हमने फिर से प्रारंभ किया है। हमने जगह-जगह शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों के माध्यम से इसी मंत्र को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। उसका उद्घाटन करने हम जा रहे हैं। हमें 2-4 वर्ष और जीना है, इस बीच हम जन-जन तक इस मंत्र को पहुँचा देना चाहते हैं। आज की बात समाप्त। ॥ॐ शान्तिः॥ Copied! महत्त्वपूर्ण लिंक: अपने अंग अवयवों से | हमारा युग निर्माण सत्संकल्प | विचार क्रान्ति के बीजों से | महाकाल के तेवर समझें | मेरा चौथा स्थान उगता हुआ सूर्य होगा | करिष्ये वचनम् तव | क्रान्तिधर्मी साहित्य की महत्ता इक्कीसवीं सदी - उज्ज्वल भविष्य

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