इस ब्लॉग का उद्देश्य पंचकोश साधना में रूचि कहने वाले सभी मित्रों के साथ साधना सम्बन्धी चर्चा करना एवम इस महान साधना का विश्व के प्रत्येक कोने तक प्रसार करना है। यह साधना पूर्णतः निःशुल्क और जाति धर्म उम्र की परिधि से ऊपर उठकर मनुष्य में देवत्व का अवतरण करती है।
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साधना -परिचय
पंचकोश साधना एक परिचय : पंचकोश साधना उच्चतम भारतीय मनीषा की वह अद्भुत देन है जो मानवीय चेतना के समग्र पहलुओं को परिष्कृत करने की एकमात्र कुंजी है । आज जिस योगासन और ध्यान की चर्चा पुरे विश्व में बड़े जोरशोर से हो रही है वो इस पंचकोश साधना का एक पड़ाव मात्र ही है । यह साधन एक विशुद्ध विज्ञानं है जिसके प्रत्येक एक में ऐसे ऐसे अप्रतिम खजानें और उपलब्धियों के अम्बार भरे पड़े है जिसका लाभ एक बच्चे से लेकर वृद्ध तक सभी आयु के , सभी जाति , प्रान्त और धर्म के व्यक्ति ले सकते है ।
पंचकोश साधना कितनी प्राचीन है इसके बारे में यही बात ज्ञात है की इस महाविद्या के प्रथम आचार्य स्वयं भगवान् शिव है और प्रथम शिष्या “माँ पार्वती” है । विश्वामित्र , याज्ञवल्लक्य , भृगु , पिप्पलाद आदि अनेक ऋषियों ने इस महाविज्ञान की साधना समय समय पर जनसामान्य तक पहुँचायी है , कालांतर में देश की विषम परिस्थितयों के चलते ये विद्या जनसुलभ नहीं रह पायी परन्तु ईश्वर के उस महान चेतना ने हमारें युग के युगऋषि परमपूज्य श्रीराम शर्मा आचार्य के द्वारा इस महाविद्या को अपना खोया हुआ गौरव पुनः दिलवाया है ।
पंचकोश साधना किसी एकांत कोने में बैठकर १ या २ घंटे में संपन्न करने जैसी कोई विशेष प्रक्रिया नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षण में चलने वाली समग्र जीवन की परिष्कृत शैली है । इस विज्ञानं का साधक भौतिक , मानसिक , आत्मिक और पराचेतन स्तर के वो अद्बुत एवं अवर्णनीय लाभ प्राप्त करता है जो उसे मानव से महा-मानव की और गति देते है ।
पंचकोश साधना सम्पूर्ण रूप से निरापद और धर्म निरपेक्ष साधना है जिसे कोई भी साधक अपने गुरु या इष्ट के मार्ग को छोड़े बिना भी अपना सकता है । आज की वैज्ञानिक और तीक्ष्ण बुद्धिवादी लोगो के लिए बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वयं के भीतर ही देवत्व की अनुभूति करवानें वाली यह आनंदमयी और सरलतम साधना है ।
पूज्य गुरुदेव द्वारा निर्मित पंचकोश ध्यान एवम धारणा वीडियो :
1 comment:
Reeta SinghNovember 13, 2016 at 1:52 PM
हमेशा कैसे की जाए यह साधना
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इस ब्लॉग का उद्देश्य पंचकोश साधना में रूचि कहने वाले सभी मित्रों के साथ साधना सम्बन्धी चर्चा करना एवम इस महान साधना का विश्व के प्रत्येक कोने तक प्रसार करना है। यह साधना पूर्णतः निःशुल्क और जाति धर्म उम्र की परिधि से ऊपर उठकर मनुष्य में देवत्व का अवतरण करती है।
शिक्षक
इस ब्लॉग का उद्देश्य पंचकोश साधना में रूचि कहने वाले सभी मित्रों के साथ साधना सम्बन्धी चर्चा करना एवम इस महान साधना का विश्व के प्रत्येक कोने तक प्रसार करना है। यह साधना पूर्णतः निःशुल्क और जाति धर्म उम्र की परिधि से ऊपर उठकर मनुष्य में देवत्व का अवतरण करती है।
साधना-सूचनाये
- साधना का स्वर्णिम सूत्र : सयंम और स्वाध्याय , स्मरण रखे ही साधना की सिद्धि किसी और पर निर्भर नहीं , गुरुदेव ने हमें सयंम का महान सूत्र दिया है , बिना धैर्य खोये साधना पर चलने वाले कभी निराश नहीं होंगे और अपना अभीष्ट प्राप्त अवश्य करेंगे । साधना के दौरान स्वाध्याय की नियमितता आपको सदैव अपने लक्ष्य के प्रति गतिशील रखेगी । गुरुदेव के विचारों में ऋतम्भरा प्रज्ञा के महान बाहुल्य से आप अपना चिंतन प्रखर कर सकेंगे जो को आपकी सफलता को निश्चित करेगा ।
- सिद्धियों और चमत्कारों का मोह त्यागे : पंचकोश साधना के फल के रूप में अगर आप भविष्य दर्शन , आकाश-गमन, अदृश्य दर्शन जैसे सिद्धियों के मोह में पड़े है तो आप गलत दिशा में जा रहे है , याद रखें सच्ची सिद्धियाँ ये नहीं, बल्कि आत्म-संतोष, आत्मबोध , आनंदमयता , ओज , तेज , वर्चस एवं सत्य है जो आपकी साधना की प्रगाढ़ता के होते है आपके पास स्वतः उपहार स्वरुप आते जायेगे अतः व्यर्थ चमत्कारों की आशा छोड़ कर स्वयं को सच्चे साधक के रूप में प्रशिक्षित करे ।
- मन की नहीं , गुरु की सुने : पंचकोश साधना जहाँ स्वयं में अतिप्रभावशाली एवं प्रत्यक्ष फलदायी साधना है इसके नीति नियमो में , विधियों - निषेधों में किसी प्रकार ही मनमानी न करे । पूज्यगुरुदेव ने अपने वाङ्ग्मयों में इस साधना को बहुत सुन्दर और सरल रीती से समझाया है अतः स्वाध्याय - मार्गदर्शन के सानिध्य में ही साधना को गति दे, शंका -कुशंका , प्रश्न जो परेशान कर रहे हो उसे वरिष्ठ साधकों या बाबूजी से मिलकर सुलझाया जाये ।
- अहंता को पास न फटकने दे : साधना का सबसे बड़ा विघ्न है “अहंकार” , अपने आप को महान , श्रेष्ठ और लोगो से गुरुतर समझना और वैसा प्रदर्शन करना आपको साधना के मार्ग से दूर कर देगा , अतः स्वयं में विनम्रता का गुण बनाये और बढ़ाये रखे ।
- जब कभी संभव हो तीर्थ सेवन करे : तीर्थ स्वयं में एक चैतन्य वातावरण का क्षेत्र है ,वहाँ की ऊर्जा आपकी साधना को गति देने में सहायक होती है , अतःएव जब भी संभव हो युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज हरिद्वार जाकर वहाँ का चैतन्य ग्रहण करे , प्रज्ञा-कुञ्ज संसाराम बिहार की स्थापना भी साधकों की ऊर्जा को विशेष गति देने के उद्देश्य से ही की गयी है , वहाँ की गयी आपकी साधना अपने गृहनिवास पर की गयी साधना की तुलना में बहुत शक्तिशाली अनुभव होंगी ।
- आहार शुद्धि और इंद्रिय शुद्धि का पालन करे : आपका आहार आपके मन का निर्माण करता है और आपका विहार ( आचरण) आपके संस्कारों का । अतः साधकों से हमारा निवेदन है की अपना आहार और आचरण यथासम्भव सात्विक बनाने का प्रत्यत्न साधना काल में करते रहें ।
- मन को प्रसन्न और हल्का बनाये रखे : साधना करने का अर्थ ये कतई नहीं की आप अपने स्वभाव को गुरुगंभीर और शुष्क बना ले , साधना को हँसते , खेलतें एक खेल समझ कर करे । आपकी मंजिल आनंदमय कोष है और उस अपार आनंद के प्रति आपको अभी से खुलें रहना होगा ।
- तुलना करने से बचे : अध्यात्म का मार्ग एकांगी और सर्वथा वैयक्तिक है , किसी और की साधना और सफलता से खुद को प्रेरित तो किया जा सकता है परन्तु देखादेखि परिणाम प्राप्त करने अथवा तुलना करके की आदत आपको निराशा के आलावा कुछ नहीं देगी। इससे सदैव बचे ।
- श्रद्धा का कोई विकल्प नहीं है : पथिक अगर अपने मार्ग पर शंका करने लगे तो गंतव्य तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है , इसलिए दृढ़विश्वास के साथ साधना-पथ पर चलते रहें ।
- अन्य धर्मों और साधनाओं का भी सम्मान करे : ईश्वर तक जाने के अनेकों अनगिनत रास्ते मौजूद है , मेरा रास्ता ही सही है ऐसा दुराग्रह और वंचना न करे , सभी पंथों के प्रती सम्मान और आदर की भावना रखते हुए आलोचना से स्वयं को दूर रखे ।
- बाबूजी द्वारा आयोजित सभी साधना शिविर निःशुल्क होते है , साधकों से कोई प्रशिक्षण शुल्क नहीं लिया जाता है , परन्तु खान-पान, रहने तथा अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के लिए स्थानीय संयोजकों से व्यवस्था सहियोग राशी के बारें में अवश्य पता कर ले अथवा प्रज्ञाकुञ्ज व्यवस्थापन समिति , पुणे महाराष्ट्र से इस सम्बन्ध में जानकारी ली जा सकती है ।
- सादगी और तितिक्षा पंचकोश शिविरों के मुख्य बिंदु है , अतः साधनास्थल पर प्रचुर भौतिक सुखसुविधाओं की व्यवस्था नहीं की जाती है ।
- भोजन पूर्णतः सात्विक और सदा रखा जाता है।
- किसी लम्बी बीमारी या शारीरिक समस्या के बारे में शिविर में आने के पहले ही व्यवस्थापक समिति को बता दिया जाये एवं उनकी सहमति के बाद ही शिविर में आने का कष्ट करें ।
- पंचकोशी योग साधना शिविर के दौरान के दौरान मद्यपान, अथवा तम्बाखू सेवन पूर्णतः वर्जित है ।
- सभी प्रतिभागियों के लिए पंचकोशी योग साधना शिविर के दौरान में व्यवस्थापकों द्वारा निर्धारित दिनचर्या ही मान्य एवं लागू होगी ।
- १० वर्ष से कम उम्र के बच्चों को साथ नहीं लायें ताकि आपको एवं अन्य मित्रों को असुविधा न हों ।
- शिविर में बिस्तर और दैनिक उपयोग की वस्तुओं की उपलब्धता आयोजकों से पंजीयन के समय ही तय कर ले ताकि बाद में असुविधा न हो ।
- शिविर साधनायें केवल आत्मिक उन्नति को केंद्र में रख कर की जायेंगी , अतः किसी प्रकार की आर्थिक , भौतिक समस्या से मुक्ति पाने की लालसा में पंचकोशी योग साधना शिविर के दौरान में सम्मिलित न हों ।
- पंचकोशी योग साधना शिविर में सभी धर्मों , सम्प्रदायों और विचारधाराओं को मानने और पालन करने वाले व्यक्ति एवं नास्तिक भी सम्मिलित हो सकतें है ।
- साधना के दौरान अपने साथ नोटबुक अथवा डॉयरी जरूर लायें इससें आपको अपने दैनिक अनुभवों और प्रश्नों के उत्तर सहेजनें में सहायता होगी ।
- अपने आगमन और प्रस्थान का समय शिविर प्रारंभ होने के पहले एवं समाप्ति के बाद ही रखें ताकि शिविर का पूरा लाभ प्राप्त हो ।
- शिविर में आने के पहले परमपूज्य गुरुदेव युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा रचित पंचकोश साधना संबंधित “गायत्री महाविज्ञान” एवं “गायत्री की पंचकोशी साधना एवं उपलब्धियाँ” (वांग्मय १३ ) का स्वाध्याय अथवा www.panchkosh.blogspot.coomपर प्रस्तुत सामग्री या विडियोज़ को देखना बहुत सहायक सिद्ध होगा ।
इस ब्लॉग का उद्देश्य पंचकोश साधना में रूचि कहने वाले सभी मित्रों के साथ साधना सम्बन्धी चर्चा करना एवम इस महान साधना का विश्व के प्रत्येक कोने तक प्रसार करना है। यह साधना पूर्णतः निःशुल्क और जाति धर्म उम्र की परिधि से ऊपर उठकर मनुष्य में देवत्व का अवतरण करती है।
1 अन्नमय कोश
1 comment:
परमपूज्य गुरुदेव की यह पँचकोशिय साधना अत्यंत प्रभावकारी, सरल एवं हानिरहित है। इसलिए सभी साधनाओं में इसका स्थान शास्त्रों में सर्वोपरि माना गया है।
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अतः जिसे सच्चा ब्राह्मण कहलाने का पूर्णत्व प्राप्त करना हो, उसे यह कर्तव्य है कि वह इस साधना में जरूर सहभागी हो।
मेरी तो पिछले कई दिनों महीनों से आदरणीय बाबूजी के सानिध्य में यह साधना करने की तीव्र इच्छा है। इसबार तो संकल्प पूर्ण करना ही है।
जय गुरुदेव.
Kamta Prasad Dube, Mumbai.
हे मालिक तेरे बन्दे हम |
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