Monday, 21 August 2017

ओ३म् ध्वज गीत )

aryayuva learn' Blogs Friday, 5 August 2016 डी.ए.वी.पब्लिक स्कूल द्वारका नई दिल्ली कक्षा –अष्टमी विषय -धर्म शिक्षा पाठ -1 (ओ३म् ध्वज गीत ) प्रश्न -1 “ जयति ओ३म् ध्वज व्योमविहारी ” गीत किस झण्डे के फहराने पर बोला जाता है ? उत्तर-1 “ जयति ओ३म् ध्वज व्योम विहारी “ गीत ओ३म् के झण्डे को फहराने पर बोला जाता है | प्रश्न - 2 साम्य सुमन विकसाने वाला “ का क्या तात्पर्य है ? उत्तर -2 “ साम्य सुमन विकसाने वाला ” का तात्पर्य है कि – समानता रुपी पुष्पों को विकसाने वाला अर्थात् परमात्मा | परमात्मा से तात्पर्य ओ३म् | परमात्मा की नजरों में सब समान हैं | “ साम्य सुमन विकसाने वाला विश्व विमोहक भवभय हारी........... ” | प्रश्न-3 “ इसके ”शब्द का अर्थ यहाँ क्या है | उत्तर 3 “ इसके “ शब्द का अर्थ यहाँ ओ३म् है | ” इसके नीचे बढे अभय मन.......” | प्रश्न -4 वेद ज्ञान के घर-घर में भर जाने से क्या लाभ होगा ? उत्तर -4 वेद ज्ञान के घर-घर में भर जाने से यह लाभ होगा कि – सारे संसार के घरों से अविद्या रुपी= अज्ञानता का अन्धकार मिट जाएगा और कल्याण करने वाली शान्ति फैलेगी | सबका कल्याण होगा | प्रश्न -5 आर्य जनों का अटल निश्चय क्या होना चाहिए ? उत्तर -5 आर्य जनों का अटल निश्चय सारी पृथ्वी के लोगों को आर्य बनाना होना चाहिए | आर्य= अर्थात् श्रेष्ठ या उत्तम समाज का निर्माण करना | “ आर्य जनों का ध्रुव निश्चय हो -आर्य बनावें वसुधा सारी ” पाठ संख्या-2 (ओ३म् की महिमा ) प्रश्न -1 भगवान् का सर्वश्रेष्ठ नाम क्या है ? उत्तर-1 भगवान् का सर्वश्रेष्ठ नाम ओ३म् है |”है यही अनादी नाद निर्विकल्प निर्विवाद “| प्रश्न-2 वाणी में पवित्रता किसके जाप से आती है ? उत्तर-2 वाणी में पवित्रता ओ३म् नाम के जाप से आती है | प्रश्न-3 जगत का अनुपम आधार कौन है ? उत्तर-3 जगत का अनुपम आधार ओ३म् है | प्रश्न-4 मन मन्दिर की ज्योति का प्रकाश पुंज कौन है ? उत्तर-4 मन मन्दिर की ज्योति का प्रकाश पुंज ओ३म् है | प्रश्न-5 ओ३म् नाम को प्राप्त कर लेने पर मनुष्य की कैसी निष्ठा बन जाती है ?मगन हो जाता है | उत्तर--5 ओ३म् नाम को प्राप्त कर लेने पर मनुष्य की एसी निष्ठा बन जाती है कि-वह लाख को छोड़ कर ओ३म् नाम के जाप में मगन हो जाता है | प्रश्न -6 ओ३म् शब्द की व्याख्या कीजिए उत्तर-6 ओ३म् नाम सबसे बड़ा इससे बड़ा ना कोय | जो इसका सुमिरन करे शुद्ध आत्मा होय || ईश्वर नें सारी सृष्टि को बनाया है | वही इसका पालन करता है और अन्त में समेट लेता है | ओ३म् शब्द में तीन अक्षर है अ उ और म | ये तीन अक्षर ही तो सृष्टि के आदि मध्य और अन्त के द्योतक हैं | यही ओम् सबका प्राण है | सृष्टि का सबसे पहला नाद ओ३म् था | मानव का यही आदि मध्य अन्त है | यही परमेश्वर का उसका अपना निज नाम और सर्वोत्तम नाम है | प्रश्न -7 गुरु नानकदेव जी नें ओम् के विषय में क्या कहा है ? उत्तर-7 श्री गुरू नानक देव नें ओम् के विषय में कहा है कि- “ एक ओंकार सत् नाम कर्ता पुरख “ = अर्थात् ओम् और ओंकार दोनों का तात्पर्य एक है | प्रश्न-8 ओ३म् नाम का महत्व स्पष्ट कीजिए ? उत्तर-8 ओ३म् नाम सर्वानन्द निधान करते वेद बखान | ओ३म् नाम के जाप से मनुष्य धर्म अर्थ काम और मोक्ष का स्वामी बन जाता है | वाणी में पवित्रता आती है | ओम् के जाप से मनुष्य की सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती है | ओम् ही तो सारे जगत का आधार है | ओम् नाम के जाप से रसना रसीली हो जाती है | ओम् नाम का जाप करने वाला मनुष्य जीवन में कभी भी निराश नहीं होता है | निश्चित रूप से ओ३म् का मानसिक जाप हृदय में ज्योति प्रकट करता है | कहा भी गया है –“ जबहिं नाम हृदय धर् यो भयो पापको नाश जैसे चिनगी आग की पड़ी पुरानी घास ” || पाठ संख्या -3 ( आत्म बोध कविता ) प्रश्न-1 अनादि नाद कौन सा है जिसके बारे में विवाद नहीं ? उत्तर-1 अनादि नाद ओम् है जिसके बारे में विवाद नहीं | प्रश्न-2 इस अनादि नाद को कौन नहीं भूलते ? | उत्तर-2 वीतराग ,योगी ,एवं पूज्यनीय लोग नही भूलते | प्रश्न-3 वेद को प्रमाण मानने वाले किसका गान करते हैं ? उत्तर-3 वेद को प्रमाण मानने वाले ओ३म् का गान करते हैं | प्रश्न-4 उस नाद का त्याग कौन करते हैं ? उत्तर-4 उस नाद का त्याग पापी,रोगी, कमजोर व्यक्ति , एवं आलसी करतें हैं | प्रश्न-5 मुक्ति पाने का साधन यहाँ क्या बतलाया गया है ? उत्तर-5 मुक्ति पाने का साधन यहाँ ओ३म् नाम का जाप आदि करना , शंकर आदि पवित्र नामों का नित्य जाप करना बतलाया गया है | “शंकर आदि नित्य नाम जो ------“ | प्रश्न -6 ओ३म् का जप ध्यान आदि कौन करतें हैं ? उत्तर-6ओ३म् का जप ध्यान आदि साधू,सन्यासी, विरक्त-सुभक्त लोग नित्यप्रति करते है | “ध्यान में धरें विरक्त भाव से --------ओ३म् अनेक --------“ | ध्यान देने योग्य: –इस पाठ के उत्तर लिखते समय कोटेशन अवश्य लिखें | पाठ संख्या -4 ( प्रार्थना ) 1. पूर्ण वाक्य लिखते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति करें - 1.अंकु र 2. पीयूष 3. सन्मार्ग 4. एकता 5. हृदयों 6. अधिकार 7. फिर , 8. भूत 9.ज्योति 10. द्वार पाठ संख्या -5 ( गायत्री जप का प्रभाव ) प्रश्न-1 गायत्री मन्त्र लिखें ? उत्तर-1 ओ३म् - भूर्भुवः स्वः | तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात् || वेद भगवान् || प्रश्न-2 गायत्री मन्त्र का अर्थ लिखें ? उत्तर-2 ओ३म् -यह परमेश्वर का उसका अपना मुख्य निज नाम है | भू: = प्राणों का भी प्राण | धीमहि=धारण करें भुवः= दु:खों से छुड़ाने हारा धियो=बुद्धियों को स्व:= स्वयं सु:ख स्वरुप और अपने उपासकों को भी सु:ख की प्राप्ति करने हारा यो=जो तत् =उस ( ईश्वर को ) न := हमारी ओर सवितुर = सकल जगत के उत्पादक,समग्र एश्वर्यो के दाता स्वामी परमात्मा प्रचोदयात् = सन्मार्ग की ओर प्रेरणा करें . वरेण्यं=अपनाने योग्य तेज को भर्गो =सब क्लेशों के भस्म करने हारा ईश्वर देवस्य=कामना करने योग्य प्रश्न-3 गायत्री मन्त्र की महिमा लिखिए ? उत्तर-3 ओ३म् - भूर्भुवः स्वः | तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि | धियो यो न: प्रचोदयात् || वेद भगवान् || इस गायत्री मन्त्र को सावित्री मन्त्र, गुरूमन्त्र वेदमाता मन्त्र ,महा मन्त्र आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है | गायत्री मन्त्र की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि- “ समस्त दु:खों के अपार सागर से पार लगानें वाली गायत्री है “| इसीलिए इसे पाप निवारनी दु:ख हारिणी और त्रिलोक तारिणी आदि भी कहते है | प्रश्न-4 सविता शक्ति द्वारा मानवीय पुरूषार्थ के विषय में लिखें ? उत्तर-4 जिस प्रकार परमात्मा अपनी सविता शक्ति द्वारा सुप्त प्रकृति को रच देता है ठीक इसी प्रकार परमात्मा को सविता नाम से पुकारने वाले साधक का भी कर्तव्य हो जाता है कि-वह भी अपने आप को अज्ञान की निंद्रा से दूर करे और सब मनुष्यों को ईश्वर भक्त ,वेद भक्त तथा जनता जनार्दन बनाने का यत्न करे | ( pg.17 पर 2 nd last para full ) प्रश्न-5 गायत्री मन्त्र के जप की विधि,समय एवं जाप के स्थान के बारे में लिखें ? उत्तर-5 गायत्री जाप की विधि गायत्री जाप का समय गायत्री जाप का स्थान प्रातः एवं सायं शुद्ध पवित्र होकर सु:खासन या अन्य किसी आसन पर बैठकर प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए | गायत्री मन्त्र का जाप प्रातःकाल एवं सायंकाल करना चाहिए गायत्री मन्त्र का जाप करने का स्थान साफ़,शुद्ध एवं पवित्र होना चाहिए |बाग़ बगीचा या नदी का किनारा आदि आदि | गायत्री का जप प्रातः एवं सायं काल करता है वह प्रभु का साक्षात्कार कर सकता है अतः हमें प्रभु की उपासना करनी चाहिए | प्रभु से विद्या,बुद्धि ,यश ,बल ,कीर्ति की याचना करनी चाहिए | प्रश्न-6 महात्मा गांधी के गायत्री के विषय में विचार लिखिए ? उत्तर-6 महात्मा गांधी जी ने एक लेख में लिखा है कि-“ गायत्री मन्त्र का स्थिरचित्त एवं शांत हृदय से किया गया जाप आपातकाल के संकटों से दूर रखनें का सामर्थ्य रखता है और आत्मोन्नति के लिए उपयोगी है |” अतः हम सबको भी गायत्री जाप करना चाहिए | प्रश्न-7 स्वामी विरजा नन्द और महात्मा आनंद स्वामी को प्राप्त हुए गायत्री जाप के फल का उल्लेख कीजिए ? उत्तर-7 महर्षि दयानन्द के गुरु स्वामी विरजानन्द जी को गायत्री के जाप से सिद्धि प्राप्त हुई थी और इतना ही नहीं गायत्री जाप से ही मनुष्य ब्रह्म तक का साक्षात्कार भी कर सकता है अतः हमें गायत्री की उपासना करनी चाहिए | + महात्मा आनंद स्वामी ने ---------आगे ही बढ़ते गये | + अतः श्रध्दा और विश्वासपूर्वक ,एकाग्र मन से अर्थ चिंतन सहित गायत्री मन्त्र का जाप किया करें | ( pg.17 पर last para 3rd line) पाठ संख्या 6 ( संस्कॄत भाषा ) प्रश्न-1 संस्कृत साहित्य किस भाषा में लिखा गया है ? उत्तर-1 हमारा प्राचीनतम साहित्य जिस भाषा में लिखा गया है उसे संस्कृतभाषा , देववाणी या सुर भारती के नाम से जाना जाता है । ( page no.19 पर 1st line se) प्रश्न-2 संसार की समस्त परिष्कृत भाषाओँ में कौनसी भाषा परिष्कृत है ? उत्तर-2 संसार भर की समस्त परिष्कृत भाषाओं में संस्कृत भाषा ही प्राचीनतम है | संस्कृत लिखने और बोलने वालों नें संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण किया है | भारत की अन्य अनेक भाषाएँ संस्कृत से ही निकली हैं | (page no.19 पर 1st para se ) प्रश्न-3 संस्कृत का मौलिक अर्थ क्या है ? उत्तर-3 संस्कृत भाषा का मौलिक अर्थ = संस्कार की गई भाषा |संस्कृत भाषा का पहला प्रयोग वाल्मीकीय रामायण में देखने को मिलता है | जब भाषा का सर्व साधारण में प्रयोग कम होने लगा तब पालि एवं प्राकृत भाषाएँ बोलचाल की भाषाएँ बन गईं | तब विद्वान् लोंगों नें प्राकृत भाषा से भेद दिखलाने की दृष्टि से संस्कृत नाम दे दिया | ( page 19 पर 2nd para से full para) प्रश्न-4 संस्कृत भाषा और भारतवासियों का माता और पुत्र का सम्बन्ध किस प्रकार का है ? उत्तर-4 संस्कृत और भारतवासियों का सम्बब्ध माता –पुत्र का है | संस्कृत सब भाषाओं से प्राचीन है |अत एव संस्कृत सब भाषाओं की जननी है |इसके सामान मृदुलता,मधुरता , व्यापकता और किसी भाषा में नहीं है |अतः हम सबको संस्कृत का अध्ययन अवश्य करना चाहिए | अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भी संस्कृत को पढना चाहिए | (pg.19 पर 3rd para ) प्रश्न-5 संस्कृत साहित्य के किन्ही दो ग्रन्थ और लेखकों के नाम लिखिए ? कालिदास लिखित वेदव्यास लिखित भर्तृहरि लिखित कौटिल्य लिखित मेघदूत गीता एवं महाभारत नीतिशास्त्र अर्थशास्त्र प्रश्न संख्या -6 (उत्तर सहित ) अर्थ शास्त्र के लेखक कौटिल्य जी हैं | प्रश्न संख्या -7 गुरु गोबिंद सिंह जी ने संस्कृत के लिए क्या किया | उत्तर-7 गुरु गोबिंद सिंह जी संस्कृत के बहुत बड़े भक्त थे | इन्होनें अपने शिष्यों को संस्कृत पढने काशी भेजा था | इनके संस्कृत प्रेम के कारण ही सिख रियासत में निःशुल्क पाठशालाएं चलती थीं | (page 20 पर 3 rd para full ) प्रश्न संख्या -8 हमें संस्कृत भाषा का अध्ययन क्यों करना चाहिए ? उत्तर-संख्या -8 हमें संस्कृत भाषा का अध्ययन अवश्य करना चाहिए क्योंकि- 1. संस्कृत भाषा= नियमों में चलने के कारण सीखने में किसी दूसरी भाषा की अपेक्षा अधिक सरल है | 2. इसके जैसी =सरलता, मधुरता,सरसता एवं भावों के आदानप्रदान की क्षमता अन्य किसी भाषा में नहीं दिखाई देती | 3. वैदिक साहित्य =और धार्मिक ग्रन्थ आदि भी इसी भाषा में लिखे गए हैं | 4. संस्कृत लिखने= और बोलने वालों नें संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण किया है | 5. भारत की अन्य= अनेक भाषाएँ आदि भी संस्कृत से ही निकली हैं | अत: हम सभी को संस्कृत अवश्य पढनी चाहिए | प्रश्न संख्या -9 संस्कृत किनकी भाषा है ? उत्तर-9 संस्कृत केवल हिन्दुओं की भाषा है या हिन्दू साहित्य है ऐसा कहना गलत है | संस्कृत मानव मात्र की भाषा है और संस्कृत को पढने का मानव मात्र को अधिकार है | इस भाषा के समान मृदुलता मधुरता और व्यापकता किसी भाषा में नहीं है | संस्कृत में ज्ञान-विज्ञान एवं अध्यात्म विद्या का विशेष उल्लेख मिलता है | (page 21 पर last para ) प्रश्न-संख्या -10 क्या संस्कृत विश्व भाषा बन सकती है | उत्तर-संख्या -10 हाँ | संस्कृत विश्व भाषा बन सकती है | आज संसार के विद्वान मानने लगे हैं कि- कम्प्युटर के लिए सबसे सरल और उपयुक्त भाषा संस्कृत है | यदि ऐसा हो जाए तो आज भी संस्कृत विश्वभाषा बन सकती है | पाठ संख्या -7 ( राष्ट्र भाषा हिन्दी ) प्रश्न संख्या -1 राजर्षि टन्डन अंग्रेजी को 15 वर्ष की छूट दिये जाने के पक्ष में नहीं थे | उत्तर-1 उन दिनों कांग्रेस पर हिन्दी के विद्वान् श्री राजर्षि पुरषोत्तम दास टंडन जी की पकड़ पंडित जवाहरलाल नेहरूजी से अधिक थी | नेहरू जी 10 वर्ष तक अंग्रेजी बनी रहने का हठ करने लगे किन्तु टन्डन जी ऐसा करने को बिलकुल राजी नहीं थे | ऐसे में सेठ गोबिन्द दास एवं पंडित बाल कृष्ण शर्मा नवीन ने अनुनय –विनय करके , नेहरूजी के पक्ष में टन्डन जी को राजी कर लिया और नेहरूजी द्वारा हिंदी को 15 वर्ष की छूट दे दी गई किन्तु हुआ वही जिसकी राजर्षि टंडन जी को आशंका थी | ये 15 वर्ष पूरे होते उससे पहले ही टन्डन जी स्वर्ग वासी हो गए और फिर से हिंदी की अवहेलना करके अंग्रेजी को प्रचारित प्रसारित किया गया जो की हिन्दी के लिए पूर्णतया दुर्भाग्य था | यही कारण है कि- जो स्थान आज हिन्दी को प्राप्त है वह बहुत चिन्ता जनक है | प्रश्न संख्या -2 आज देश में हिन्दी को जो स्थान प्राप्त है ? समीक्षा कीजिए उत्तर-2 किसी राष्ट्र के समस्त देशवासियों में सच्चा प्रेम ,संगठन और एकता की भावना भरने के लिए एक राष्ट्र भाषा का होना आवश्यक है ,इस बात से कोई बुद्धिमान व्यक्ति इनकार नही कर सकता | हांलाकि आज कहने को तो हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है किन्तु उसे वह अधिकार नहीं मिल पा रहा है जिसकी आधिकारिणी है | वास्तव में हिन्दी भारतीयों की भावात्मक अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन है | इसके अभाव में भारतीयता की अभिव्यक्ति हो ही नही सकती | यह भारत की आत्मा है | प्रश्न संख्या -3 गुरु गोबिन्द सिंह जी ने हिन्दी के लिए क्या किया ? उत्तर-3 संत सिपाही दशमेश गुरू गोबिंद सिंह जी सारे देश की स्वतन्त्रता एवं अखंडता का स्वप्न संजोये हुए थे | वे इसी निमित्त शिवाजी के पुत्र शम्भा से मिलने दक्षिण भारत गए थे | गुरू जी ने खालसा पंथ में दीक्षित होने वाले अनुयायियों को जो जयघोष प्रदान किया वह भी सारे देश के विचार से हिन्दी में ही था और आज भी हिन्दी में ही बोला जाता है – “ वाहे गुरू जी का खालसा वाहे गुरू जी की फतेह “ | गुरू जी का दशम ग्रन्थ (जफरनामा ) छोड़कर हिंदी में ही है | प्रश्न संख्या -4 स्वामी दयानन्द जी से हिन्दी अपनाने का आग्रह किसने किया ? उत्तर-4 महर्षि स्वामी दयानन्द जी से हिंदी में बोलने का अनुरोध बंगाल की राजधानी कलकत्ता में ब्रह्म समाज के नेता केशब चन्द्र सेन ने किया था | स्वामीजी गुजराती होते हुए भी उस समय तक संस्कृत में ही बोला करते थे | बाद में आग्रह को स्वीकार करते हुए स्वामी जी ने राष्ट्रभाषा हिन्दी में बोलना शुरू कर दिया था | प्रश्न संख्या -5 महात्मा गांधी ने बी.बी.सी.के अधिकारीयों को भारत के आजाद होने पर सन्देश देने से मना क्यों कर दिया ? उत्तर-5 देश के आज़ाद होने पर बी.बी.सी.लन्दन के अधिकारी महात्मा गांधी जी से ऐसा सन्देश लेने के लिए पहुंचे जिसे वे रेडियो पर सुना सकें | उन दिनों बी.बी.सी. से हिन्दी में प्रसारण नहीं होते थे | परिणाम यह हुआ कि- महात्मा गांधी जी नें कोई सन्देश नहीं दिया | और आधिकारियों को यह कहकर वापस लौटा दिया कि- “ दुनिया को भूल जाना चाहिये कि- गान्धी भी अंग्रेजी जानता है “ | गांधीजी कहा करते थे यदि मेरे हाथ में देश की बागडोर होती तो आज ही विदेशी भाषा का दिया जाना बन्द करवा देता और सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाओं को अपनाने के लिए मजबूर कर देता | पाठ संख्या -08 (पांच महायज्ञ ) प्रश्न -1.चार प्रकार के कर्म कौन-कौन से हैं ? उनके नाम और स्वरुप भी बताएँ | उत्तर-1 शास्त्रों में चार प्रकार के कर्म बताये गए हैं | 1. नित्यकर्म =प्रतिदिन किये जाने वाले कर्म को नित्य कर्म कहा जाता है | 2.नैमितिक कर्म = किसी निमित्त या कारण से किये जाने वाले कर्म को नैमित्तिक कर्म कहा जाता है | जैसे –होली, दिवाली ,उत्सव एवं जन्म दिन आदि के अवसर पर किये जाने वाले कर्म को नैमितिक कर्म कहा है | 3. काम्यकर्म = किसी कामना या उद्देश्य की पूर्ति से किये जाने वाले कर्म को काम्य कर्म कहा जाता है |जैसे पुत्रेष्टि वर्शेष्टि यज्ञ आदि | 4.निषिद्ध कर्म = यह कर्म अशुभ कर्म की श्रेणी में आता है | हमें निन्दित कर्म नहीं करने चाहिए जैसे – गाली देना, चोरी मक्कारी करना , देश के साथ धोखा करना , विश्वासघात एवं गौह्त्या जैसे काम नहीं करने चाहिए | प्रश्न-2.पांच महायज्ञ कौन से हैं ? इनका सम्बन्ध किस प्रकार के कर्म से है ? उत्तर –पांच महा यज्ञ निम्नलिखित हैं – ब्रह्मयज्ञ , देवयज्ञ , पितृयज्ञ अतिथि यज्ञ , और पांचवां बलिवैश्वदेवयज्ञ | वेद के अनुसार इन सबका सम्बन्ध हम सबके जीवन में नित्यकर्म के रूप में है अर्थात् इन पांच महा यज्ञों को हमें प्रतिदिन करना चाहिए | प्रश्न-3 ब्रह्म यज्ञ से अभिप्राय है ? इस यज्ञ को कैसे किया जाता है ? उत्तर- ब्रह्म यज्ञ का अर्थ है – संध्या प्रार्थना | ब्रह्म से तात्पर्य यहाँ सृष्टि के रचयिता अर्थात् परमपिता परमात्मा से है | इस यज्ञ के द्वारा हमें – @ आत्मा -परमात्मा का चिन्तन करना चाहिए | @ ध्यान मग्न होकर ईश्वर के ओ३म् नाम का जाप आदि करना चाहिए | @ इस यज्ञ को प्रातःकाल सूर्योदय के समय , और सायंकाल सूर्यास्त के समय करना चाहिए | इस यज्ञ के करने से बहुत लाभ होता है | प्रश्न- देव यज्ञ में अग्नि के कितने रूप हो जाते हैं ? उत्तर- देव यज्ञ में अग्नि के तीन रूप हो जाते हैं | 1. एक रूप तो वह राख है जो जली हुई अग्नि के शान्त हो जाने के पश्चात् हवन कुण्ड में रह जाती है | 2. दूसरा रूप - इसकी सुगंध और उन वस्तुओं के गुण जो हवंन कुण्ड में डाली गईं |देव यज्ञ का यह रूप सूक्षम होकर सारे वायु मंडल में फ़ैल जाता है और अग्नि ,जल,वायु,आकाश ,वनस्पति ,चंद्रमा, सूर्य ,पृथ्वी ,नक्षत्र तक सभी देवताओँ को शक्ति मिलती है | अपनी अपनी आवश्यकता के गुण वे ग्रहण कर लेते है और हजार गुना ,लाख गुना करके संसार को वापस कर देते हैं | 3. तीसरा रूप – आहुति का तीसरा रूप इससे भी सूक्ष्म हो जाता है | यज्ञ का यह रूप यज्ञ करने वाले के हृदय में जाकर उसके सूक्ष्म शरीर से लिपट जाता है जो ( सूक्ष्म शरीर ) आत्मा के साथ लिपटा हुआ है और यह आत्मा जब स्थूल शरीर को छोडती है , तो सूक्ष्म शरीर भी आत्मा के साथ चला जाता है और इस सूक्ष्म शरीर से लिपट कर यह आहुतियाँ श्रद्धा और विश्वास बनकर आत्मा को सुंदर और सुख देने वाले लोकों में ले जातीं हैं | प्रश्न-5 देव यज्ञ पर्यावरण से किस प्रकार सम्बंधित है ? उत्तर-5 निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि- देव यज्ञ के करनें से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है | वेद मन्त्रों के उचारण , अग्नि, और आहुतियों का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है|देव यज्ञ करने से वृष्टि ,वर्षा तथा जल की शुद्धि होकर वर्षा होती है और अन्न , फल आदि की वृद्धि होकर संसार को सुख और आरोग्य प्राप्त होता है | प्रश्न-6 अभिवादनशील को किन चार वस्तुओं की प्राप्ति होती है ? उत्तर-6 जो अभिवादनशील है और वृद्धों की नित्य सेवा करता है , उसके आयु , विद्या , यश और बल ये चार चीजें बढती है | महाभारत के यक्ष -युधिष्ठर संवाद में युधिष्ठर ने कहा है कि- “ वृद्धों की सेवा करने से मनुष्य आर्य बुद्धि वाला होता है “ | अभिवादनं शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः | चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् || प्रश्न-7 पितृ यज्ञ किस प्रकार किया जाता है ? उत्तर-7 तीसरा महायज्ञ पितृ यज्ञ है |यह भी नित्यकर्म है | इसका अर्थ है माता-पिता , सास-ससुर , साधु-महात्मा , गुरुजनों एवं वृद्धजनों की सेवा करना | इस सेवा से हमें उनका आशीर्वाद मिलता है और आशीर्वाद से सुख एवं उन्नति की प्राप्ति होती है | मनुस्मृति में भी लिखा है की : अभिवादनं शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः | चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् || प्रश्न-8 अतिथि यज्ञ और बलि वेश्वदेव यज्ञ की विधिओं का उल्लेख लिखें | उत्तर- 8 चौथा महा यज्ञ कहा जाने वाला नित्यकर्म अतिथि यज्ञ है |इसका तात्पर्य है कि- कोई भी व्यक्ति या अन्य साधू,सन्त,महत्मा ,विद्वान बिना बुलाए , बिना सूचना दिए घर में आ जाए तो उस समय उसका स्वागत और सत्कार करना चाहिए ,उसे खाने-पीने को देना अतिथि यज्ञ कहा जाता है | यह यज्ञ हमारी संस्कृति का उज्ज्वलतम चिह्न है और आज भी देश के कई भागों में अतिथि यज्ञ की भावना विद्यमान है | ’’अतिथि यज्ञ के आदर्श –राजा रन्ति देव को समझा जाता है’’ बलिवैश्व देव यज्ञ :- अतिथि यज्ञ के पश्चात् पांचवां महा यज्ञ कहा जाने वाला बलिवैश्व देव यज्ञ है | यह यज्ञ भी नित्य कर्म के अंतर्गत आता है | इस यज्ञ में धरती पर रहनें वाले समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयत्न करना और प्रभु से प्रार्थना करना , स्वयं भोजन करने से पूर्व यज्ञ की अग्नि में या रसोई की अग्नि में नमकीन वस्तुओं को छोड़कर मीठा मिले हुए अन्न की उन सब प्राणियों के लिए आहुति देना जो इस विशाल संसार में रहते हैं | चीटियों को चुग्गा पानी आदि देकर सुखी बनाने का प्रयत्न इसी यज्ञ के अंतर्गत आता है | इस प्रकार ये पञ्च महायज्ञ है जो हम सबको प्रतिदिन करने चाहिए | पाठ- 9 (डी.ए.वी.गान) प्रश्न-1 गीत के प्रथम पद्य में डीएवी के लिए किन-किन विशेषताओं का प्रयोग किया गया है ? उत्तर- गीत के प्रथम पद्य में डीएवी के लिए अविरल, निर्मल, सलिल, सदय, और ज्ञानप्रदायिनी, ज्योतिर्मय जैसी विशेषताओं का प्रयोग किया गया है ? प्रश्न-2 गायक चारों दिशाओं में किस उद् घोष की कामना करता है ? उत्तर-2 गायक चारों दिशाओं में डीएवी रुपी जयघोष के उद् घोष की कामना करता है | प्रश्न-3 इस गीत में डी,ए,वी की धारा को परम पुनीता क्यों कहा गया है ? उत्तर-3 इस गीतमें डीएवी की धारा को परमपुनीता इसलिए कहा गया है क्योंकि इस धारा को पवित्र वेदज्ञान से बनाया गया है | “वेदप्रणीता परमपुनीता यह धारा अक्षय डीएवी की जय जय जय “ प्रश्न-4 डीएवी के साथ दयानन्द जी और हंसराजजी का क्या सम्बन्ध है ? उत्तर-4 डीएवी के साथ दयानन्दजी का प्रेम की भक्ति का सम्बन्ध बताया गया है और हंसराज जी का त्याग की शक्ति का सम्बन्ध बताया गया है | दयानन्द से प्रेमभक्ति ले, हंसराज से त्यागशक्ति ले | धर्मभक्ति का राष्ट्रशक्ति का हो दिनमान उदय | प्रश्न-5 गायक कैसे दिनमान का उदय चाहता है ? उत्तर-5 गायक यहाँ पर डीएवी के रूप में एक प्रखर, तेजस्वी, ओजस्वी एवं गतिमान, प्रकाशवान, ज्ञानवान दिनमान = का उदय चाहता है |धर्म एवं राष्ट्र की उन्नति रुपी सूर्योदय करना चाहता है, अर्थात् सबका विकास चाहता है, सबकी उन्नति चाहता है | नोट:- दिनमान से तात्पर्य यहाँ सूर्य से है | प्रश्न-6 ( उत्तरसहित ) इस गीतिका को सस्वर कंठस्थ करें अर्थात् याद कीजिए | पाठ – 10 ( योग की पहली सीडी –यम ) प्रश्न-1 योग के आठों अंगों के नाम लिखो | उत्तर-1 योग के आठ अंग इस प्रकार हैं – यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि | प्रश्न-2 यम कितने है ? प्रत्येक का नाम लिखकर अर्थ बताएं | उत्तर-2 यम पांच है –“अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह यमा:”| अहिंसा= किसी प्राणी को मन वचन एवं कर्म से दु:ख न देना अहिंसा है | सत्य= सच्चाई का साथ देना, प्रिय एवं हितकारी बोलना सत्य कहाता है | “सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् मा ब्रुयात्सत्यमप्रियं “ अस्तेय= चोरी आदि न करना, जो परिश्रम से नहीं कमाया, जो अपना धन नहीं है उसे प्राप्त करने का प्रयास न करना आदि अस्तेय कहलाता है | ब्रह्मचर्य= परमात्मा में ध्यान लगाना , अपनी इन्द्रियों को वश में रखना , शारीरिक मानसिक शक्तियों का बढ़ाना अथवा संचय करना ब्रह्मचर्य कहलाता है |हमें ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए | अपरिग्रह= आवश्यकता से अधिक धन को जमा न करना आदि अपरिग्रह कहलाता है |यह दु:खदायी होता है अत: इससे हमें बचना चाहिए | इस प्रकार ये पांच यम हैं इनका पालन करना सीखना चाहिए | प्रश्न-3 अहिंसा का सम्बन्ध मनोवृत्ति से है , क्रिया से नहीं | उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें | उत्तर-3 अहिंसा का सम्बन्ध मनोवृत्ति से है , क्रिया से नहीं है |वास्तव में हिंसा का अर्थ केवल किसी को “मारना” भर नहीं है अपितु हिंसा मन में आये विचारों से भी हो सकती है |इसे एक उदाहरण द्वारा भी समझा जा सकता है –एक कुशल डाक्टर अपने रोगी बचाने के लिए आपरेशन करता है इस दौरान रोगी को भयंकर पीड़ा होती है तो क्या यह हिंसा है ? नहीं | क्योंकि –यह सारा काम मन, वचन ,कर्म, एवं सात्विक वृत्ति से हो रहा होता है अतः यह हिंसा नहीं कही जा सकती | इसी प्रकार एक सैनिक युद्ध के मैदान में देश की रक्षा के किये दुश्मन को मारता है तो क्या यह हिंसा है ? नहीं | क्योंकि यह अपने कर्तव्य का पालन कर रहा होता है | प्रश्न-4 अस्तेय तथा अपरिग्रह का क्या सम्बन्ध है ? उत्तर- स्तेय चोरी को कहते है और अस्तेय चोरी न करने को कहते हैं | संसार में बहुत प्रकार की चोरियां होती हैं | दुसरे की वस्तु को बिना मूल्य दिए लेना ही चोरी नहीं अपितु घटिया माल को बढ़िया बताकर बेचना और कम तोलना भी चोरी है |अपने काम को लगन से न करना भी चोरी है | अन्याय से किसी की संपत्ति ,राज्य,धन या अधिकार को छीन लेना भी चोरी है | मजदूरों को कम मजदूरी देना , अनाज जमा करके मंहगा बेचना ,गरीबों का रक्त चूसना आदि भी चोरी के ही रूप हैं | ये व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों ही तरह से हानिकारक है |और अपरिग्रह= का अर्थ है गलत संग्रह न करना | वास्तव में यदि हम सब सु:ख और शान्ति चाहते हैं तो हमें आवश्यकताओं से अधिक वस्तुओं का संग्रह नहीं करना चाहिए | हमारी आवश्यकताएं जितनी बढेंगी उतनी ही समाज में अशांति फैलेगी | क्योंकि अनावश्यक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उल्टा-सीधा कमाना पड़ेगा जो कि-पाप का कारण भी हो सकता है, दूसरों के साथ कई बार दुर्व्यवहार भी करना पड़ सकता है | अत: हमें अस्तेय और अपरिग्रह का जीवन में ध्यान रखना चाहिए | इससे जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान हो पायेगा और व्यक्तिगत एवं सामाजिक उन्नति भी हो पायेगी | प्रश्न-5 ब्रहमचर्य का क्या महत्व है ? उत्तर-5 आँख ,कान,नाक,जिह्वा ,त्वचा,मन बुद्धि आदि इन्द्रियों पर नियंत्रण करना ब्रह्मचर्य कहलाता है | वास्तव में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति अपनी शारीरिक आत्मिक मानसिक उन्नति को प्राप्त करनें में समर्थ होता है | ऐसा व्यक्ति समाज को अपनी सोच और व्यवहार के अनुकूल बना लेता है | समाज में संयम बना रहता है | विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य का बहुत महत्त्व है क्योंकि ब्रह्मचर्य का पालन करने से शरीर सुन्दर और स्वस्थ बनता है | बुद्धि तीव्र एवं प्रखर बनती है | आत्मा बलवान होती है | अत: ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए | डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल द्वारका कक्षा –आठवीं विषय- धर्म शिक्षा पाठ संख्या -11 ( योग की द्वितीय सीडी –नियम ) प्रश्न-1 नियम कितनें हैं ? और कौन-कौन से हैं ? शौच संतोष तप स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधान  उत्तर-1 नियम पांच हैं “शौच सन्तोषतप:स्वाध्यायेश्वर प्रणिधाननानि नियमा :” प्रश्न-2 शौच नामक नियम का क्या अभिप्राय है ? उत्तर-2 शौच =पवित्रता रखना | शुद्धि , स्वच्छता ,शारीरिक मानसिक पवित्रता को शौच कहते हैं | जीवन को सु:खी स्वस्थ एवं आनन्दमय बनाने के लिए पवित्रता की आवश्यकता होती है | हम सबको स्वच्छ पवित्र रहना चाहिए | महर्षि मनु महाराज जी ने सब शुद्धियों में धन की पवित्रता को अधिक महत्त्व दिया है | प्रश्न-3 सन्तोष नामक नियम का अर्थ लिखें ? और इसके पालन करने के लाभ भी बताएँ | उत्तर-3 पूरी तत्परता ,पुरूषार्थ और प्रयत्न से किए गए काम का जो फल प्राप्त हो , उससे अधिक का लोभ ना करना सन्तोष कहलाता है | संतोषी बनने के लाभ इस प्रकार हैं –मनुष्य दु:खी नहीं होता | सु:ख दु:ख की चिन्ता नहीं करता | सन्तोष रखने वाला हमेशा प्रसन्न रहता है | जय-पराजय से परेशान नहीं होता | सन्तोष का अर्थ आलस्य बिलकुल नहीं है अपितु अपने उद्देश्य की प्राप्ति में निरन्तर आगे ही आगे बढ़ते रहना है || प्रश्न-4 तप नामक नियम की व्याख्या कीजिए | उत्तर-4 जीवन में अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए धैर्य एवं प्रसन्नता से सु:ख-दु:ख , भूख-प्यास ,सर्दी-गर्मी को सहन करना तप कहलाता है | सु:ख आए या दु:ख, मान हो या अपमान ,सर्दी हो या गर्मी,कष्ट हो या आराम , मनुष्य को चाहिए कि-वह अपना कर्त्तव्य कर्म करता रहे | अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाए | यही तप है | प्रश्न-5 स्वाध्याय के कोई दो अर्थ लिखें | उत्तर-5 स्वाध्याय का पहला अर्थ = स्वाध्याय अर्थात् स्व-अध्ययन ,अपने मन एवं आत्मा का निरिक्षण |ओ३म् का जाप,गायत्री का जाप करना और वेद दर्शन गीता उपनिषद आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है | विद्यार्थी जीवन में स्वाध्याय बहुत आवश्यक होता है | स्वाध्याय का दूसरा अर्थ= मनुष्य को हमेशा अपने जीवन में होने वाली घटनाओं के विषय में जानना कि- मैंने क्या किया है ? मैं क्या कर रहा हूँ | मै किधर जा रहा हूँ ? आदि भी स्वाध्याय कहलाता है | प्रश्न-6 ईश्वरभक्ति आपके अपने कर्म से कैसे होती है ? समझाएँ | उत्तर-6 जो मनुष्य अपने सब कर्मों को परमात्मा की सेवा में अर्पण कर देता है वही सच्चा भक्त है | इसका भाव यह है कि-जो भी कर्म किये जाएँ फल सहित उनको अर्पण कर देना सच्ची ईश्वर भक्ति कहलाती है | यह बात ध्यान रखनी चाहिए हमारे मन,वचन,कर्म ऐसे हों कि- जब भी कोई वस्तु भेंट करें तो भक्त को प्रभु के सामने शर्म न आए ,लज्जा न आए | अर्थात् जो पुरूष सब कर्मों को परमात्मा को अर्पण करके , स्वार्थ को त्याग करके कर्म करेगा वह जल में कमल के पत्ते के समान पाप से बचा रहेगा | यही ईश्वरप्रणिधान का भाव है | पाठ संख्या -12 ( वर्ण व्यवस्था का आधुनिक स्वरुप ) प्रश्न-1 चारों वर्णों में ब्राह्मणों को समाज रूपी शरीर का मुख क्यों बताया गया है ? उत्तर -1 चारों वर्णों में ब्राह्मण को समाज रूपी शरीर का मुख इसलिए बताया गया है क्योंकि – यदि सारे समाज को एक शरीर की तरह से मान लिया जाए तो उसमें ब्राह्मण का स्थान मुख का है |क्षत्रिय इस शरीर की बाहू हैं | वैश्य शरीर के मध्य भाग हैं और शुद्र पैर के समान है | यही बात वेद में भी कही गई है - ब्राह्मणोंऽ स्य मुखमासीद बाहू राजन्य: कृत: | ऊरूतदस्य यद्वैश्य : पद् भ्याम् शुद्रोऽजायत ||वेद || अर्थात् हमारे शरीर की पाँचों ज्ञान इन्द्रियाँ मुख भाग में स्थित हैं | इस प्रकार समाज में जो लोग ज्ञान प्रधान हैं और अपने ज्ञान का उपयोग सारे समाज के हित के लिए करते हैं वे ब्राह्मण कहे जाने योग्य हैं | प्रश्न-2 सभी वर्णों के भरण – पोषण का दायित्व किस वर्ण पर है ? और इस वर्ण के लोग उस दायित्व का निर्वाह किस प्रकार करते हैं ? उत्तर -2 सभी वर्णों के भरण-पोषण का दायित्व वैश्य वर्ण पर है और इस वर्ण के लोग इस दायित्व का निर्वाह-कृषि, कला, व्यापार एवं अपने कौशल के द्वारा करते हैं | समाज को सम्पन्न बनाने का प्रयास करते हैं | यह भी व्रत लेतें हैं कि-समाज का कोई भी सदस्य भूखा,नंगा,और आवासहीन नहीं रहेगा | सबको रोटी कपड़ा आदि मूलभूत सुविधाएँ मिलेंगीं| इस प्रकार वैश्य लोग समाज के तीनों वर्णों ( ब्राह्मण,क्षत्रिय,और शुद्र ) के भरण-पोषण का दायित्व सम्भालते हैं | प्रश्न-3 समाज की गति और स्थिति से क्या अभिप्राय है ? इसको बनाये रखनें में शुद्र वर्ण के लोग किस प्रकार सहयोग देते हैं ? उत्तर-3 समाज की गति और स्थिति से अभिप्राय है कि-समाज की गति और स्थिति शूद्रों पर ही निर्भर है | इसको बनाये रखनें में शुद्र वर्ण के लोग ब्राह्मण,क्षत्रिय,और वैश्यों की सेवा आदि करके सहयोग करते हैं | किसी भी समाज को प्रतिष्ठित स्थिति में रखनें तथा उन्नतिशील बनाने में शूद्रों का महत्त्व सर्वाधिक होता है | शुद्र समाज के लिए उपेक्षणीय नही होते | उपनिषद् में शुद्र को पालक कहा गया है | शुद्र का अर्थ सेवा है | प्रश्न-4 क्षत्रियों की समाज में क्या भूमिका है ? स्पष्ट कीजिए उत्तर-4 क्षत्रियों को समाज में बाहुओं का स्थान प्राप्त है |बाहू समाज की रक्षा करते हैं | सिर से पाँव तक रक्षार्थ हमारी बाहूयें पहुँचती हैं |सिर पर पड़नेवाले पत्थरों को रोकनें के लिए हाथ ही तो आगे आते हैं | इस प्रकार समाज में जो लोग शक्ति सम्पन्न होते हैं और अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरों के हित के लिए करते हैं, समाज के हित के लिए करतें हैं , वो लोग क्षत्रिय कहे जाने योग्य हैं | समाज के शासन का अधिकार भी क्षत्रियों को समाज की सुरक्षा तथा न्याय के विचार से ही दिया गया था | और आज भी सच्चे एवं कर्तव्य परायण क्षत्रियों द्वारा ही धरती पर सुरक्षा तथा न्याय की व्यवस्था बनीं हुई है | प्रश्न-5 वर्ण व्यवस्था का आधुनिक स्वरुप स्पष्ट कीजिए | उत्तर-5 वैदिक जीवन में मनुष्य की सामाजिक व व्यक्तिगत उन्नति को ध्यान में रखकर दो प्रकार की व्यवस्थाओं का निर्माण किया गया था | ये व्यवस्थाएँ थीं –वर्ण व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था | किन्तु आज के समय में जन्मगत जाति को देखकर वर्णों के वास्तविक स्वरुप का अनुमान लगाना कठिन हो गया है | आधुनिक भाषा में इनका नामकरण इस प्रकार किया जा सकता है -1.शिक्षक 2.रक्षक 3. पोषक 4.सेवक |ये चारों वर्ण समाज के लिए बहुत आवश्यक हैं | इनके बिना राष्ट्र में सुव्यवस्था हो ही नहीं सकती | कर्मचारियों की प्रथम,द्वितीय,तृतीय,और चतुर्थ श्रेणियां वर्ण व्यवस्था का ही तो आधुनिक रूप हैं और ये श्रेणियां जन्म के आधार पर नहीं अपितु गुण, कर्म, स्वभाव, और मेरिट के आधार पर बनती हैं | हालांकि आज के समय में मनुष्य अपने गुण,कर्म,स्वभाव अर्थात् मेरिट=शिक्षा और काम से ही छोटा –बड़ा होता है | किन्तु फिर भी भारत माता और धरती माता के सन्तान के रूप में हम सब बराबर हैं | प्रश्न-6 वर्ण एवं जन्मजात जाति में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए | उत्तर-6 वास्तव में जन्मजात जाति तो मनुष्य है | मानव समाज में व्यवस्था तो वर्ण =अर्थात् काम से होती है | स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द महात्मा गांधी जी आदि महापुरूषों ने जन्मजात जाति का विरोध किया था | जबकि आज के समय में मनुष्य अपने गुण,कर्म,स्वभाव अर्थात् मेरिट=शिक्षा और काम से ही छोटा –बड़ा माना जाता है | किन्तु फिर भी भारत माता और धरती माता के सन्तान के रूप में हम सब बराबर हैं | पाठ संख्या -13 ( आश्रम व्यवस्था ) प्रश्न-1 आश्रम व्यवस्था क्यों आवश्यक है ? उत्तर-1 वैदिक जीवन में मनुष्य की सामाजिक व व्यक्तिगत उन्नति को ध्यान में रखकर दो प्रकार की व्यवस्थाओं का निर्माण किया गया था | ये व्यवस्थाएँ थीं –वर्ण व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था | इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने आश्रम व्यवस्था का निर्माण किया था | दुसरा अभिप्राय यह भी था कि- हमारा समाज मनुष्यों से मिलकर बना है और यदि समाज को उन्नत एवं सुव्यवस्थित देखना चाहतें हैं तो इसे बनाने वाले मनुष्यों का जीवन भी सुव्यवस्थित होना चाहिए –इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने आश्रम व्यवस्था का निर्माण किया था | प्रश्न-2 चारों आश्रमों के नाम लिखें तथा उनकी आयु सीमा भी बताएँ | उत्तर-2 चारों आश्रमों के नाम इस प्रकार हैं ¬ ब्रह्मचर्य आश्रम गृहस्थ आश्रम वानप्रस्थ आश्रम सन्यास आश्रम जन्म से 25 वर्ष तक 25 से 50 वर्ष तक 50 से 75 वर्ष तक 75 से जीने तक प्रश्न-3 ब्रह्मचर्य आश्रम क्यों महत्त्व पूर्ण है ? समझाएँ | उत्तर-3 जन्म से लेकर 25 वर्ष की आयु तक के समय को ब्रह्मचर्य काल कहा जा सकता है | अर्थात् जीवन का यह समय ज्ञान प्राप्ति और जीवन की तैयारी के लिए है | ब्रह्मचर्य का यह समय जीवनरूपी भवन की नींव के समान होता है विद्यार्थी इस काल में जो भी सीखता है वह जीवन भर उसके काम आता है इसलिए यह आश्रम बहुत महत्त्वपूर्ण है | विद्यार्थियों को यह बात याद रखनी चाहिए कि- 1.कठोर परिश्रम करना चाहिए | 2.यदि यह समय हाथ से गया तो गया लौटकर नहीं आता | 3. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि- यह समय सैर-सपाटे का नहीं है | माता-पिता और गुरू से बड़ा कोई आपका मित्र नहीं है | 4. विद्यार्थी जीवन बहुत ही सादा और सयंमी एवं अनुशासित होना चाहिए | प्रश्न-4 गृहस्थाश्रम को सबसे ऊँचा और श्रेष्ठ क्यों माना जाता है ? उत्तर-4 गृहस्थाश्रम को सबसे ऊँचा और श्रेष्ठ इसलिए माना जाता है क्योंकि बाकि के तीन आश्रमों के मनुष्यों के लिए भोजन,वस्त्र एवं आवास आदि अन्य आवश्यकताओं की व्यवस्था गृहस्थी ही किया करतें हैं | गृहस्थी देश,धर्म,समाज की सेवा किया करतें हैं | सबकी रक्षा,सुख, समृद्धि की व्यवस्था आदि गृहस्थी ही तो करते हैं | अत : यह आश्रम सबसे ऊँचा और सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है | प्रश्न-5 एक वानप्रस्थी के क्या कर्तव्य होते है ? लिखें | उत्तर-5 प्राचीन काल में वानप्रस्थी लोग वन आदि में जाकर रहते थे परन्तु आज कल यह सम्भव नहीं है | अत: इस आश्रम के लोग अपने कर्त्तव्यों का पालन घर में रहकर भी कर सकते हैं | वानप्रस्थीयों को चाहिए कि- वे अपनी जिम्मेदारी अगली पीढीयों को सौंप कर निम्नलिखित कामों को करते रहना चाहिए जैसे कि-- 1.वानप्रस्थियों को धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना चाहिए | 2. यज्ञ करना कराना, एवं वेद पढ़ना पढ़ाना चाहिए | 3.प्रभु की उपासना तथा योगाभ्यास आदि करना चाहिए | 4. सत्संग आदि भी करना चाहिए | प्रश्न-6 संन्यास आश्रम का क्या महत्त्व है ? विस्तार से समझाएँ | उत्तर-6 संन्यास आश्रम का समय 75 वर्ष की आयु से समझा जाता है | परन्तु हर व्यक्ति को सन्यासी बनने का अधिकार नहीं होता |इस आश्रम में उसी को प्रवेश करना चाहिए जिसका मन सन्यासी हो गया हो | सन्यासी के मन में छल, कपट, क्रोध, लालच, झूठ या अन्य किसी प्रकार की बुरी भावना नहीं होनी चाहिए | भगवा वस्त्र धारण करने से कोई भी सन्यासी नहीं बन जाता | यह आश्रम बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस आश्रम की सहायता के बिना विद्या और धर्म की उन्नति नहीं हो सकती | सत्य का उपदेश करना वेद आदि सब सत्य विद्याओं का प्रचार-प्रसार करना एक सच्चे सन्यासी का परम कर्त्तव्य है | पाठ संख्या -14 ( किस दर जाऊं मैं ) प्रश्न-1 भक्त भगवान् के दर को छोड़कर किसी अन्य के दर पर जाना पसन्द क्यों नहीं करता | उत्तर-1. भक्त भगवान् के दर को छोड़कर किसी अन्य के दर पर जाना पसन्द नहीं करता क्योंकि वहाँ उसकी कोई बात नही सुनता | ” सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊं मैं , प्रभु तेरे दर को छोड़कर किस ..” प्रश्न-2 भगवान् की याद भुलाने का क्या परिणाम हुआ ? उत्तर-2 भगवान् की याद भुलानेका यह परिणाम हुआकि- भक्त को लांखों कष्ट उठाने पड़े हैं | “ जब से याद भुलाई तेरी लाखों कष्ट उठायें हैं , ना जानूं इस ..........” प्रश्न-3 भक्त भगवान् से क्यों शर्म महसूस करता है ? उत्तर -3 भक्त भगवान् से शर्म इसलिए महसूस करता है क्योंकि उसने अपने जीवन में बहुत से पाप किये हैं ,अपने गलत कामों और पापों की वजह से प्रभु से शर्म करता है – “ ना जानूं इस जीवन अन्दर कितने पाप कमाए हैं ,हूँ शर्मिन्दा आपसे क्या बतलाऊं मैं , तेरे दर को छोड़कर ........” प्रश्न-4 भगवान् से मिलनें में भक्त को कौन रूकावट पैदा करतें हैं ? उत्तर-4 भगवान् से मिलनें में भक्त को उसके पाप कर्म रूकावट पैदा करते हैं | “ मेरे पाप कर्म ही तुझसे प्रीति न करने देते है ,जो मै चाहूँ मिलूं आपसे रोक मुझे वे लेते हैं , कैसे स्वामी आपके दर्शन .........” प्रश्न-5 भक्त के होश में आने का क्या उपाय है ? उत्तर-5 भक्त के होश में आने का उपाय है यदि भगवान् भक्त को ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, विवेक रुपी छींटा दे दें तो भक्त होश में आ सकता है | “ छींटा दे दो ज्ञान का होश में आ जाऊं मै ,तेरे दर को छोड़कर ..........” पाठ-15 ( आर्य समाज के नियम {7,8,9,10,} ) प्रश्न-उत्तर -1. पाठ्य पुस्तक से देखकर आर्य समाज के अंतिम चारों नियमों को लिखिए | प्रश्न-2 सातवें नियम के अनुसार अन्य लोगों के साथ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? विस्तार से वर्णन करें | उत्तर-2 सातवें नियम के अनुसार अन्य लोगों के साथ हमारा व्यवहार प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार,और यथायोग्य होना चाहिए | अर्थात् – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसका व्यवहार समाज के अन्य सभी लोगों के साथ प्रीतिपूर्वक होना चाहिए | सबके साथ प्यार से बोलना चाहिए | प्रीतिपूर्वक के साथ हमारा व्यवहार धर्मानुसार भी होना चाहिए | हमारे व्यवहार में सुधार हो | हमारे व्यवहार से किसी को हानि न हो | इतना ही नही बल्कि हम सबका व्यवहार यथायोग्य भी होना चाहिए इसलिए क्योंकि हम समाज में सबके साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकते | यह सातवाँ नियम हम सबको सामाजिक व्यवहार की शिक्षा देता है | प्रश्न-3 विद्या और अविद्या से आप क्या समझते हैं ? आर्य समाज ने अविद्या नाश के लिए क्या क्या किया है ? समझाएँ | उत्तर-3 विद्या और अविद्या से तात्पर्य है कि-इस संसार में जो भी सच्चे ज्ञान हैं, जितनी भी सत्य वस्तुएँ हैं वे सब सत्य विद्या कहलाती हैं और इससे विपरीत जो कुछ भी है वह अविद्या=अर्थात् अज्ञान है,अन्धकार है | आर्य समाज ने अविद्या नाश के लिए बहुत कुछ किया है किया है जैसे- सती प्रथा, बालविवाह, छुआछूत, अंधविश्वास, पाखण्ड,आदि कुरीतियों को समाज से दूर करनें का प्रयास किया है | हम सब आज विज्ञान के युग में रहते हैं | यह युग स्वतंत्रता और जनतन्त्र का युग है | दोनों के लिए शिक्षा और विद्या=ज्ञान का होना आवश्यक है | समाज के लिए अविद्या और अज्ञान दोनों ही अभिशाप हैं | इसलिए अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करना प्रत्येक नागरिक का प्रमुख कर्त्तव्य होना चाहिए | प्रश्न-4 अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों की उन्नति का ध्यान रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए ? उत्तर-4 अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों की उन्नति का ध्यान रखने के लिए हमें कोई भी कार्य करने पहले यह सोच लेना चाहिए कि-जो भी काम हम कर रहें हैं उसका हमारे आस पास रहने वाले अन्य लोंगों पर कोई गलत प्रभाव तो नहीं होगा | अर्थात् सबकी उन्नति होनी चाहिए | उन्नति का अर्थ है कि-शारीरिक,आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक और आत्मिक उन्नति हम सबको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि- हमारे द्वारा की गई उन्नति समाज, देश,और मानवमात्र की उन्नति का अंग हो तभी संसार में सच्चा सु:ख होगा | प्रश्न-5 आर्य समाज का दसवाँ नियम सामाजिक व्यवस्था को दृढ़ करने में किस प्रकार सहायक होता है ? विस्तार से समझाएँ | उत्तर-5 आर्य समाज का दसवाँ नियम सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में सहायक होता है | अर्थात् इस नियम में बताया गया है कि- किस अवस्था और क्षेत्र में स्वतंत्रता =अर्थात् अपनी इच्छा से कार्य करना चाहिए | अपनी इच्छा को एक ओर रखकर समाज के हित का ध्यान रखते हुए सामाजिक एवं राष्ट्रीय नियमों के अनुसार कार्य करना चाहिए | जैसे –व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए समाज में हर स्थान पर अलग-अलग नियम बनें होते हैं जैसे –खिलाड़ी को खेल के मैदान में, विद्यार्थी को विद्यालय में, सिपाही को युद्ध के मैदान में नियमो को पालन करना चाहिए किन्तु देशद्रोहियों को सहायता करने के लिए आप स्वतन्त्र नहीं है अर्थात् जिन कार्यों को करने से समाज का भला हो वहाँ पर स्वतंत्र हैं | जहाँ राष्ट्र का अहित हो वहाँ आप स्वतंत्र नहीं हैं | हमें राष्ट्र के नियमों के अनुकूल ही कार्य करना चाहिए | पाठ संख्या -16 ( सत्यार्थ प्रकाश ) प्रश्न-1 ईश्वर के कोई पांच नाम बताकर उनकी व्याख्या कीजिए | उत्तर-1 सत्यार्थ प्रकाश एक महँ ग्रन्थ है जिसकी रचना स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने की थी | स्वामी जी नें इस ग्रन्थ में ईश्वर के सौ नामों की व्याख्या की है जिसमें से पाँच नाम और उनका अर्थ इस प्रकार हैं | विराट्= जो बहु प्रकार के जगत को प्रकाशित करता है | अग्नि= जो ज्ञानस्वरुप , सर्वज्ञ और सबके द्वारा पूजा करने योग्य है | शिव= जो सब जगत का स्वामी और सबका कल्याण करने वाला है | मित्र= जो सबका मित्र है और जो सबसे स्नेह करता है | ब्रह्मा= अर्थात् सारे जगत का निर्माण किया है और इस जगत पालन आदि करता है | यही ईश्वर निराकार और सर्वव्यापक है | प्रश्न-2 स्वामी दयानन्द जी ने बच्चे का परम गुरू किसको माना है ? उत्तर-2 स्वामी दयानन्द जी ने बच्चे का परम गुरू बच्चे की माँ को माना है क्योकि माँ का अर्थ है कि- निर्माण करने वाली | ”माता निर्माता भवति “ | प्रश्न-3 स्वामी दयानन्द जी अनुसार मातापिता का अपने बच्चों के प्रति परम कर्तव्य क्या होना चाहिए ? उत्तर-3 स्वामी दयानन्द जी के अनुसार मातापिता का अपने बच्चों के प्रति परम कर्तव्य होना चाहिए कि- वे अपनी संतान को उत्तम संस्कार दें | अपनी सन्तान को चोरी, आलस्य, मादकद्रव्य सेवन, झूठ, हिंसा, क्रूरता इर्ष्या आदि दुर्गुणों से दूर रखें क्योंकि स्वामी दयानन्द जी का मानना है कि- वही व्यक्ति ज्ञानवान् बनता है जिसे तीन उत्तम शिक्षक मिलें – माता - पिता और आचार्य | प्रश्न-4 स्वामी दयानन्दजी के अनुसार कोई देश सौभाग्यवान कैसे बन सकता है ? उत्तर-4 स्वामी दयानन्द जी के अनुसार = जिस देश में यथायोग्य ब्रह्मचर्य, विद्या, और वेदों के ज्ञान का, धर्म का प्रचार-प्रसार होता है वही देश सौभाग्यवान बनता है | प्रश्न-5 वर्ण व्यवस्था आधार क्या होना चाहिए ? उत्तर-5 स्वामी दयानन्द जी के विचार से = वर्ण व्यवस्था का आधार गुण कर्म तथा स्वभाव अनुसार होना चाहिए जन्म के आधार पर नहीं | किसी भी व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर उसे ब्राह्मण क्षत्रिय या वैश्य आदि नहीं कहा जा सकता बल्कि उसे उसके गुणों के आधार पर कहा जा सकता है | प्रश्न-6 चारों आश्रमों के नाम लिखिए | ब्रह्मचर्य आश्रम गृहस्थ आश्रम वानप्रस्थ आश्रम संन्यास आश्रम 0 से 25 वर्ष 25 से 50 वर्ष 50 से 75 वर्ष 75 से आगे तक उत्तर-6 प्रश्न-7 एक अच्छे राजा में क्या-क्या गुण आवश्यक होनें चाहिए ? उत्तर-7 स्वामी दयानन्द जी के अनुसार एक अच्छे राजा में निम्नलिखित गुण होनें चाहिए | जैसे - * राजा को स्वतन्त्र नहीं होना चाहिए | * राजा को सभा के अधीन और सभा को राजा के अधीन होना चाहिए | * राजा का जीवन एक आदर्श जीवन होना चाहिए | * राजा को प्रजा के साथ न्यायकारी होना चाहिए | * राजा में कोई दुर्गुण आदि भी नहीं होना चाहिए | * राजा शासन और दण्ड एक साथ होने चाहिए | प्रश्न-8 सृष्टि की रचना को कितने वर्ष हो गए हैं ? बताएँ | उत्तर -8 स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश के आठवें समुल्लास में सृष्टि उत्पत्ति के विषय में लिखा कि- सृष्टि को बने हुए अब तक लगभग एक अरब, छियानब्बे करोड़, आठ लाख, तरेपन हजार से भी ज्यादा वर्ष हो गए है | प्रश्न-9 स्वराज्य के विषय में स्वामी दयानंद जी क्या विचार हैं ? उत्तर-9 स्वामी दयानन्द जी स्वराज्य के विषय में लिखते है कि- किसी भी देश के लिए स्वराज्य या स्वतन्त्रता बहुत महत्वपूर्ण होती है | स्वामी जी के अनुसार “ कोई भी विदेशी राज्य चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो स्वदेशी राज्य के समान नहीं हो सकता | विदेशी राज्य में कोई भी सुखी नही रह सकता ” | प्रश्न-10 सत्यार्थ प्रकाश के अंतिम चार समुल्लासों में क्या बताया है ? उत्तर-10 स्वामी दयानन्द सरस्वती जी नें सत्यार्थ प्रकाश के अन्तिम चार ( 11से 14 ) समुल्लासों में हिन्दूधर्म, सिक्खधर्म,बौद्ध और जैनधर्म,इसाई धर्म आदि अन्य अनेक धर्मों के विषय में लिखा है | अपना मत प्रस्तुत किया है | अंधविश्वासों के विषय में लिखा है | प्रश्न-11 मनुष्य के मुख्य कर्तव्य क्या-क्या हैं ? लिखिए | उत्तर-11 स्वामी दयानन्द जी के अनुसार मनुष्यों के प्रमुख कर्तव्य इस प्रकार हैं | * मनुष्य को सत्य बोलना चाहिए | * अप्रिय सत्य =कडवा लगने वाला कभी नहीं बोलना चाहिए | * जो -जो काम करने से संसार का उपकार होता हो वह –वह काम करना चाहिए और हानिकारक कर्मों को छोड़ देना चाहिए | यही मनुष्य का परम कर्तव्य है | प्रश्न-12 स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना क्यों की ? उत्तर-12 स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना इसलिए की क्योंकि – स्वामी जी का मानना था कि- संसार के लोग सत्य को मानें | सत्य को ठीक प्रकार से जान कर उसका आचरण करें | क्योंकि सच्चे अर्थों में धार्मिक वह व्यक्ति है जो अपने जीवन में सत्य का आचरण करता है | अत : सत्य को मानना मनवाना,असत्य को छोड़ना छुड़वाना ही सत्यार्थ प्रकाश लिखने का मुख्य प्रयोजन था | पाठ संख्या -17 ( डी.ए.वी.सँस्थाएँ ) प्रश्न-1 डीएवी संस्था की स्थापना के पीच्छे क्या भावना थी ? और यह भावना क्यों पैदा हुई ? स्पष्ट कीजिए | उत्तर-1 डीएवी संस्था की स्थापना के पीछे यह भावना थी कि- उन दिनों भारत केवल में इसाई शिक्षण सँस्थाएँ ही चलती थीं जिनका भारतीय संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं था और न ही ये संस्थाएँ कोई भारतीय चेतना उत्पन्न कर पा रहीं थीं अत: विद्वत शिरोमणि महात्मा हंसराज जी तथा अन्य आर्य सज्जनों द्वारा निर्णय लिया गया कि- हम सब मिलकर एक ऐसी संस्था खोंलें जिसमें पूर्व और पश्चिम की भाषाओं को पढ़ाया जाए तथा संस्कृति एवं विज्ञान का मिला-जुला रूप हो |अत: (डी.ए.वी.)यह संस्था इस उद्देश्य को पूरा करती है | प्रश्न-2 डीएवी शिक्षण संस्था की स्थापना के समय आर्य नेताओं की दृष्टि की तीन बातों की ओर शुरू से ही रही ? इसकी पूर्ति कैसे की गई ? उत्तर-2 डीएवी शिक्षण संस्था की स्थापना के समय आर्य नेताओं की दृष्टि निम्नलिखित तीन बातों की ओर शुरू से ही रही थी | 1.आत्मनिर्भरता= वर्त्तमान में डी.ए.वी.शिक्षण सँस्थाएँ देश की सबसे बड़ी गैर स्वावलम्बी शिक्षण संस्था है | जून सन् 1886 में लाहौर में पहला डी.ए.वी.स्कूल और फिर बाद में डी.ए.वी. कालेज खोला गया | कभी भी सरकार से कोई सहायता नहीं ली गई |अत:यह संस्था पूर्णतया आत्मनिर्भरहै| 2.स्वार्थत्याग =इस संस्था से जुड़े लोगों में त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है |स्वार्थ त्याग इस संस्था का आदर्श रहा है |महात्मा हंसराज जी नें आजीवन सदस्य बनकर मात्र 75 रूपये मासिक या अवैतनिक कार्य करके इस संस्था की सेवा की है |यह संस्था वख्शी रामरतन, प्रिंसिपल मेहरचन्द जी महाजन, पंडित राजाराम एवं त्यागशील महानुभावों के शिरोमणि महात्मा हंसराज जी को कभी नहीं भूलेगी | 3.मितव्ययिता =मितव्ययिता की दृष्टि से ये सस्थाएँ आदर्श मानी जाती हैं जनता द्वारा दिए गए दान से आज भी बिना किसी फ़ालतू खर्च के ये सँस्थाएँ अपने उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम हैं | अपने इन्हीं गुणों के कारण शिक्षा के क्षेत्र में परंपरागत वैदिक शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा देनें में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं | प्रश्न-3 महात्मा हंसराज जी के मनमें जीवनदान की भावना कैसे पैदा हुई ? इन्होनें इस भावना को कैसे साकार किया ? उत्तर-3 महात्मा हंसराज जी के मनमें जीवनदान की भावना ऐसे पैदा हुई -31 अक्तूबर 1883 में स्वामी दयानन्द जी के देहांत के बाद उनके आदर्शों को बनाये रखने के लिए एक विचार रखा गया, “ स्वामी जी नें जीवन भर स्वदेश,स्वभाषा,स्वसंस्कृति तथा मानव जाति और वैदिक धर्म की सेवा की है इस लिए हम ऋणी हैं ,तो क्यों न इनके नाम से एक स्मारक स्थापित किया जाए | अत: इसी उद्देश्य को सामने रखकर डी.ए.वी. स्कूलों की स्थापना की गई और इस भावना को महात्मा हंसराज जी नें आजीवन अवैतनिक काम करके / सेवा करके किया साकार किया | प्रश्न-4 डीएवी संस्था में किन-किन महानुभावों का विशेष हाथ रहा था ? उत्तर-4 डीएवी संस्था में निम्नलिखित महानुभावों का विशेष हाथ रहा है जैसे – बख्शी रामरतन , पंडित राजाराम, प्रिंसिपल मेहरचन्द महाजन, एवं त्यागी,तपस्वी,आर्यरत्न महात्मा हंसराज जी आदि का विशेष हाथ रहा है | प्रश्न-5 डी.ए.वी. संस्था को अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूल क्यों खोलनें पड़े ? उत्तर-5 डीएवी संस्थाको अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूल इसलिए खोलनें पड़े क्योंकि - डीएवी संस्था की स्थापना के पीच्छे यह भावना थी कि- उन दिनों भारत में केवल में इसाई शिक्षण सँस्थाएँ ही चलती थीं जिनका भारतीय संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं था और न ही ये संस्थाएँ कोई भारतीय चेतना उत्पन्न कर पा रहीं थीं अत: विद्वत शिरोमणि महात्मा हंसराज जी तथा अन्य आर्य सज्जनों द्वारा निर्णय लिया गया कि- हम सब मिलकर एक ऐसी संस्था खोंलें जिसमें पूर्व और पश्चिम की भाषाओं को पढ़ाया जाए तथा संस्कृति एवं विज्ञान का मिला-जुला रूप हो |अत: (डी.ए.वी.)यह संस्था इस उद्देश्य को पूरा करती है | अतिरिक्त प्रश्न – 1.शिक्षा हमें क्या बनाती है ? शिक्षा का अर्थ क्या है ? उत्तर-1. शिक्षा कोई भी हो व्यक्ति को सभ्य और सुसंस्कृत तो बनाती ही है इसके साथ साथ | शिक्षा मानव को अनुभूतिशील और विचारशील बनाती है | धार्मिक और कर्तव्यनिष्ठ बनाती है | शिक्षा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करके जीवन के लिए उसे पूर्णतया सक्षम भी बनाती है| ( धर्मशिक्षा पुस्तक भाग-8 Pg.no. 05 प्रस्तावना से उत्तर ) 2. शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य क्या है ? शिक्षा का उद्देश्य मानव के मन की शाक्तियों को जगाना एवं बढ़ाना है शिक्षा समाज का आईना है | शिक्षा जन-जागृति और समाजसेवा का सन्देश देती है | शिक्षा हमारे जीवन मूल्यों की रक्षा करती है | शिक्षा देश की नैतिक, चारित्रिक, व् सामाजिक डोर को शक्ति से थामे रखती है | शिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है | ( धर्मशिक्षा पुस्तक भाग-8 Pg.no. 05 प्रस्तावना से उत्तर ) प्रश्न-2 मनुष्य किसे कहते हैं ? मनुष्य का धर्म क्या है ? “मत्वा कर्माणि सीव्यति “ अर्थात् मनुष्य सोच समझ कर काम करता है | मननशीलता मानव का धर्म है | सत्कार,सेवा, सहयोग, समर्पण आदि गुण आध्यात्मिक उन्नति के आधार हैं | इन सब गुणों से ही मनुष्य की वास्तविक पहचान होती है | इन सब गुणों को जीने वाला व्यक्ति आचरण से पहचान लिया जाता है | (धर्मशिक्षा पुस्तकभाग-8 Pg.no. 05 प्रस्तावना से उत्तर ) प्रश्न-3 धर्म शिक्षा पढनें का क्या उद्देश्य है ? उत्तर-3 धर्म का वास्तविक अर्थ मजहब, मत या रिलिजन न होकर मानवता और ईमान है | धार्मिक का अर्थ सदाचारी ,और धार्मिकता का अर्थ सदाचार है | व्यक्ति ईमानदार बने अपने प्रति, और समाज के प्रति यही धर्मशिक्षा पढनें पढ़ाने का उद्देश्य है | ( धर्मशिक्षा पुस्तक भाग-8 Pg.no. 06 प्रस्तावना से यह उत्तर ) पाठ संख्या-18 ( न्यायमूर्ति डा.मेहर चन्द महाजन ) प्रश्न-1. मेहरचन्द महाजन का जन्म कब और कहाँ हुआ ? उत्तर-1. मेहरचन्द महाजन का जन्म 23 दिसम्बर सन् 1889 को हिमाचल प्रदेश के गाँव टिकका नगरोटा में हुआ |इनके पिता का नाम बृजलाल था जो गाँव के एक सज्जन और सम्पन्न महाजन थे | प्रश्न-2 मेहरचन्द महाजन की धाय माँ का क्या नाम था ? उत्तर-2 मेहरचन्द महाजन की धाय माँ का नाम राजपूतानी आया रंगंटू था | इसी माता रंगटू नें महाजन को अपना दूध पिलाकर बड़ा किया था यह भी हो सकता कि अनाम रहकर जीता पर विधाता तो कुछ और ही इनसे काम कराना चाहता था | प्रश्न-3 बालक मेहरचन्द महाजन को इनके पिताने धाय माँ को क्यों दिया ? उत्तर-3 बालक मेहरचन्द महाजन को इनके पिता ने धाय माँ को इसलिए दिया क्योंकि बालक के जन्म के समय ज्योतिषियों ने बालक को अशुभ घोषित कर दिया था | इस बात से दु:खी होकर इनके पिता ने इन्हें एक राजपूतानी आया रंगटू को सौंप दिया | इनके पिता का ज्योतिष शास्त्र में अटूट विशवास था | यही कारण था इन्हें 12 वर्ष तक माता पिता से दूर रहना पड़ा | प्रश्न-4 मेहरचन्द महाजन को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश कब बनाया गया ? उत्तर-4 मेहरचन्द महाजनको सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश 04 जनवरी सन् 1954 को बनाया गया था |अपने जीवन में महाजन जी ने जितने भी फैसले किये उनमें से कोई भी ऊँची अदालत में उलटाया नहीं गया इससे इनकी बुद्धि की सूक्ष्मता एवं न्याय निपुणता प्रकट होती है | प्रश्न-5 महाजन जी को कश्मीर का प्रधानमन्त्री कब बनाया गया ? उत्तर -5 महाजन जी को कश्मीर का प्रधानमन्त्री 18 सितम्बर सन् 1947 को बनाया गया | कश्मीर के प्रसंग में यह जानना भी जरूरी है कि- महाराजा हरि सिंह जी ने इन्हें अपना प्रधान मन्त्री नियुक्त किया था | प्रश्न-6 प्रधानमंत्री काल में डा.महाजन ने कश्मीर को भारत से जोड़े रखने के लिए क्या-क्या कार्य किये ? उत्तर-6 प्रधानमंत्री काल में डा.महाजन ने कश्मीर को भारत से जोड़े रखने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये जैसे – 1.भारत को कश्मीर जोड़े रखने वाली सड़कों का निर्माण कराया | 2.कश्मीर में रेडियो स्टेशन की स्थापना कराई | 3. डी.ए.वी. संस्थाओं के निर्माण में सहायता और स्थापना आदि के कार्य किये | 4. भारत विभाजन से बेघर हुए लोंगों की सहायता करना आदि इन्होनें प्रमुख कार्य किये थे | प्रश्न-7 भारत विभाजन के समय डा.महाजन नें डीएवी की किस प्रकार सहायता की थी ? उत्तर-7 भारत विभाजन के समय डा.महाजन नें डीएवी की बहुत प्रकार से सहायता की | उस समय भारत विभाजन से डी.ए.वी.को बहुत बड़ी क्षति पहुंची थी | धन का नितान्त अभाव हो गया था असंख्य कर्मचारी बेघर हो गए थे | छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकारमय हो गया था | ऐसी गम्भीर परिस्थितियों में डा.महाजन नें डी.ए.वी. नेताओं का मार्गदर्शन और सहायता आदि न की होती तो ना जाने हम सबका क्या भविष्य होता | प्रश्न-8 डा.महाजन की डीएवी की सेवाओं का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट करें | उत्तर-8 डा.महाजन की डी.ए.वी. की सेवाओं का बहुत महत्त्व है क्योकि- कोई भी व्यक्ति कितना भी महान व गुण सम्पन्न क्यों न हो उसका जीवन सीमित होता है | संसार के इस कटु सत्य से महाजन भी अछूते नहीं रहे और उन्होंने सन् 1967 में अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया था | यह आज प्रसन्नता का विषय है कि- डी.ए.वी. कमेटी नें उनकी सेवाओं को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए उनके जन्म स्थान –कांगड़ा में उनकी स्मृति में कालेज का नाम रखा है , इसी प्रकार चंडीगढ़ में भी लड़कियों के लिए इन्हें के नाम पर कालेज को समर्पित किया गया है | प्रश्न-9 भारत के राष्ट्रपति डा.जाकिर हुसैन ने जस्टिस महाजन की प्रशंसा में क्या शब्द कहे थे ? उत्तर-9 भारत के राष्ट्रपति डा.जाकिर हुसैन ने जस्टिस महाजन की प्रशंसा में निम्नलिखित शब्द कहे थे | “ अनेक महत्त्वपूर्ण कमिशनों के सदस्य के रूप में , अनेक शिक्षण संस्थाओं के संचालक , उच्च न्यायालय के न्यायाधीश , तथा उच्चतम न्यायालय के रूप में जस्टिस महाजन ने अपना उत्तर दायित्व शानदार ढंग से एवं निष्ठा पूर्वक निभाया है | वे उच्च कोटि के न्यायविद और भारतमाता के सच्चे समर्पित पुत्र थे |” पाठ संख्या -19 ( राष्ट्रीय गीत ) प्रश्न-1 इस गीत में भारत माता के स्वरुप को कैसा बताया गया है ? उत्तर-1 इस गीत में भारतमाता के स्वरुप को बहुत सुन्दर बताया गया है | और भारतमाता के स्वरूप के विषय में कहा गया है कि- यह भारत माता सुन्दर जलवाली, सुन्दर फलों वाली, चन्दन से शीतल, खेती से हरी भरी है | हम सबको इस पालन करनें वाली माता की वंदना करनी चाहिए | सुरक्षा करनी चाहिए | इसकी रोज शोभा बढानी चाहिए | प्रश्न-2 भारत भूमि को माता क्यों कहा जाता है ? उत्तर-2 भारत भूमि को माता इसलिए कहा जाता है क्योंकि- यह हमारी जन्मदात्री माँ के समान हम सबका पालन-पोषण करती है | यह मातृभूमि ही तो है जहाँ अन्न, फल, फूल, मेवा आदि को उपजाकर मनुष्य अपना और अन्य प्राणियों का ध्यान रखते हुए जीवनयापन करता है | प्रश्न-3 डीएवी के साथ स्वामी दयानन्द जी का और महात्मा हंसराज जी का क्या सम्बन्ध बताया गया है ? उत्तर-3 डीएवी के साथ स्वामी दयानन्द जी का प्रेमभक्ति का सम्बन्ध और महात्मा हंसराजजी का त्याग की शक्ति का सम्बन्ध बताया गया है | दयानन्द से प्रेमभक्ति ले ,हंसराज से त्यागशक्ति ले | ( धर्मशिक्षा भाग-8 Pg.no. 35 पर पाठ 10 से ) धर्मभक्ति का राष्ट्रशक्ति का हो दिनमान उदय || डीएवी जय जय || प्रश्न-4 (उत्तरसहित ) इस गीत को सस्वर कंठस्थ कीजिए अर्थात् याद कीजिए | पाठ संख्या -20 ( नित्यकर्म के मन्त्र ) नोट :- इस पाठ में दिए गए निम्नलिखित मन्त्रों को अर्थ सहित याद कीजिए| 1.आचमन मन्त्र 2. प्राणायाम मन्त्र 3.गायत्री मन्त्र 4.समर्पण मन्त्र 5. नमस्कार मन्त्र 6.ईश्वर स्तुतिप्रार्थना उपासना मन्त्र 7. शान्ति पाठ मन्त्र | pramod kumar at 00:44 Share  No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version About Me  pramod kumar  View my complete profile Powered by Blogger. 

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